सरकार ने अफीम उत्पादन के पारंपरिक तरीके को फिलहाल जारी रखने का फैसला किया है। इस पर सरकार का एकाधिकार है और वह अभी अफीम उत्पादन से जुड़े कारोबार का मशीनीकरण के जरिए निजीकरण नहीं करेगी। सरकार अफीम तैयार करने की प्रक्रिया के निजीकरण की खातिर भारतीय व विदेशी कंपनियों को अनुमति देने का प्रस्ताव तैयार कर रही है ताकि इसकी बढ़ती मांग पूरी की जा सके। निर्यात बाजार और घरेलू दवा उद्योग में इसकी अच्छी मांग है।
अधिकारियों ने कहा कि इस साल जनवरी में सरकार ने दवा और अन्य नशीली दवाओं आदि के लिए राष्ट्रीय नीति का ऐलान किया था ताकि इस तरह की दवाओं को नियंत्रित किया जा सके। एक हफ्ते के भीतर इस बारे में दृष्टि पत्र व कार्ययोजना जारी किए जाएंगे ताकि अफीम से औषधि के लिए निकाले जाने वाले तत्वों के संग्रह में निजीकरण को प्रोत्साहित किया जा सके।
अफीम के प्रसंस्करण से अंतिम उत्पाद मॉर्फीन और कोडीन बनता है और इसलिए कच्चे माल के तौर पर अफीम का औद्योगिक महत्व है। इसके उपोत्पाद का इस्तेमाल दवा कंपनियां विभिन्न दवाओं के निर्माण में करती हैं। ये रसायन सामूहिक रूप से अल्कलॉयड कहलाते हैं। तुर्की और अफगानिस्तान के अलावा भारत अफीम का तीसरा प्रमुख उत्पादक है और देश से अल्कलॉयड का निर्यात होता है। दुनिया में जितने अल्कलॉयड की जरूरत होती है, उसका आधे से ज्यादा निर्यात भारत करता है। भारतीय अफीम के तत्वों का अमेरिका प्रमुख आयातक है।
निजीकरण के लिए प्रस्तावित दिशानिर्देशों के मुताबिक लाइसेंस के लिए बोली लगाने वाली कंपनी थोक में दवा का विनिर्माण करने वाली होनी चाहिए। उसकी साख भी बेहतर हो और पिछले तीन साल से उस कंपनी का कारोबार 1 अरब रुपये सालाना से ज्यादा हो और यह कमाई सिर्फ दवा कारोबार से हुई हो।
संयुक्त उद्यम के लिए लाइसेंस की बोलीदाता कंपनी का ऐसे उद्यम में कम से कम 51 फीसदी हिस्सा होना चाहिए। विदेशी कंपनी को संचालन के लिए भारतीय सब्सिडियरी कंपनी बनानी होगी। सबसे ऊंची बोली लगाने वाली कंपनी को लाइसेंस दिया जाएगा, लेकिन अगर उसने वादा पूरा नहीं किया तो बोली के लिए जमा बॉन्ड की रकम या लाइसेंस शुल्क (जिसकी बैंक गारंटी दी गई हो) की रकम जब्त कर ली जाएगी। सरकार द्वारा तय समय सीमा में अलग बोली लगाने वाली कंपनी आपूर्ति के वादे को पूरा नहीं करेगी तो लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा और लाइसेंस शुल्क जब्त हो जाएगा।
इस समय पूरी प्रक्रिया पर सरकार का एकाधिकार है, मसलन उत्पादन, कीमत और अफीम के पौधे का निपटारा आदि। सूत्रों ने स्पष्ट किया कि अफीम से अल्कलॉयड तैयार करने का काम पारंपरिक तरीके से होता रहेगा और कार्ययोजना के जरिए एक समयसीमा तय की जाएगी, जिसमें पूरी प्रक्रिया मशीनीकृत हो जाएगी। इस मामले में मूल मकसद वैश्विक प्रक्रिया अपनाना है ताकि नशीली दवाओं का अवैध कारोबार रोका जा सके।
अधिकारियों ने यह भी कहा कि मशीनीकरण के सामाजिक व राजनीतिक नतीजे भी होंगे क्योंकि इससे किसान सूखे अफीम के दोबारा इस्तेमाल से वंचित हो जाएंगे। यहां तक कि किसान बीज भी नहीं रख पाएंगे। वे इसके सूखे पौधे का इस्तेमाल चारे के तौर पर भी नहीं कर पाएंगे जैसा कि अभी होता है। ऐसे में मशीनीकरण की प्रक्रिया अपनाने से पहले सरकार को राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में अफीम किसानों के लिए व्यापक पुनर्वास पैकेज तैयार करना होगा।
अधिकारियों ने कहा कि अफीम उत्पादन से लेकर इसके संग्रह व अल्कलॉयड निर्माण तक की प्रक्रिया पर सरकार का एकाधिकार बना रहेगा। इसके संग्रह के बाद हालांकि शोधन की आंशिक प्रक्रिया निजी कंपनियों को सौंप दी जाएगी और यह लाइसेंस की व्यवस्था पर आधारित होगा। (BS Hindi)
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