जलवायु परिवर्तन, सतत कृषि और सार्वजनिक नेतृत्व पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन कल से यहां शुरु होगा। भारतीय कृषि अनुसंधान और शिक्षा परिषद् तथा राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन, सतत विकास और सार्वजनिक नेतृत्व परिषद के गठजोड़ में इस सम्मेलन का आयोजन किया गया है।
इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, सतत कृषि और सार्वजनिक नेतृत्व के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा के लिए विश्व भर से वैज्ञानिकों, शिक्षकों, अनुसंधानकर्ताओं, अर्थशास्त्रियों, प्रबंधकों और नीति निर्धारकों को एक मंच पर एकत्रित करना और भविष्य के जलवायु परिदृश्य, भारतीय कृषि और खाद्य सुरक्षा को संबोधित करने के लिए बहुमूल्य संस्तुतियों के माध्यम से सर्वसम्मति विकसित करना है।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल और विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार जलवायु परिवर्तन वैश्विक पर्यावरण, कृषि उत्पादकता और मानव जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। विशेष बात यह है कि जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में विकासशील देशों के किसानों के लिए खेती करना मुश्किल होगा। विकासशील देश, खासकर भारत जलवायु बदलाव और जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील है क्योंकि यहां काफी हद तक कृषि वर्षा पर आधारित होती है। कृषि फसलों के रोपण क्षेत्र और वार्षिक उत्पादन में बदलाव सीधे तौर पर एक दूसरे से जुडे हैं, विशेषकर वर्षा और वर्षा के क्रम पर।
राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के विषय में ज्ञान और इसके संबंध में जानकारी अपर्याप्त तथा अधूरी है। 1992 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन प्रारुप संधिपत्र को अपनाने का साथ जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के अंतरराष्ट्रीय प्रयास प्रारंभ हुए। जलवायु परिवर्तन के प्रति प्राकृतिक और मानव तंत्र की संवेदनशीलता के महत्व और इन बदलावों के प्रति अनुकूलन को तेजी से समझा जा रहा है।
विभिन्न राष्ट्रीय संगठनों के साथ आईसीआरआईएसएटी (ICRISAT), एफएओ (FAO), आईएफएडी (IFAD) और आईसीएआरडीए(ICARDA) जैसे कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठन तथा मोरक्को, केन्या, सीरिया, कनाडा, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और सिंगापुर के विशेषज्ञों के इस सम्मेलन में हिस्सा लेने की संभावना है। (PIB)
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