नई दिल्ली।। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की नींद उड़ गई है। वजह है सरकार का बढ़ता सब्सिडी बिल। शायद ही सरकार की ओर से पहले खुलकर इस सचाई को स्वीकार किया गया है। प्रणब के कबूलनामे के बाद यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के ड्रीम प्रॉजेक्ट खाद्य सुरक्षा बिल की राह और कठिन हो गई है। कई सूबे खुलकर और गैर-कांग्रेसी केंद्रीय मंत्री इशारों-इशारों में पहले ही खाद्य सुरक्षा बिल का विरोध कर चुके हैं।
पब्लिक डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम और स्टोरेज पर आयोजित एक समारोह में प्रणब ने कहा, 'वित्त मंत्री होने के नाते जब मैं सोचता हूं कि कितनी ज्यादा सब्सिडी देनी है तो मेरी नींद उड़ जाती है।' उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा बिल लागू करने की भारी जिम्मेदारी सरकार ने उठाई है, लेकिन आसमान छूते सब्सिडी के आंकड़ें चिता बढ़ा रहे हैं। यह सब्सिडी बिल को खतरनाक स्तर पर पहुंचा देगा। मैं इस चिंता में सो नहीं पा रहा हूं।'
इस बयान का मेसेज साफ है। मुखर्जी की इमेज ऐसा नेता की है, जो बहुत सोच-समझकर ही कुछ बोलते हैं। उनके इस बयान का मतलब यह निकाला जा रहा है कि बजट में सब्सिडी पर चोट हो सकती है। क्रिसिल में चीफ इकनॉमिस्ट सुनील सिन्हा ने कहा, 'वित्त मंत्री साफगोई बरत रहे हैं। वह इसकी जमीन तैयार कर रहे हैं कि बजट से नाटकीय रियायतों की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए।'
इससे पता चलता है कि 2012-13 बजट में जोर फिस्कल कंसॉलिडेशन पर होगा। 16 मार्च को पेश होने जा रहे बजट से टैक्स रियायतों की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। सरकारी खर्च बेकाबू होने से उनके मंत्रालय को काफी आलोचनाएं सुननी पड़ी हैं। इससे वित्त मंत्रालय का परफॉर्मेंस भी दागदार हुआ है।
पिछले हफ्ते उन्होंने कोलकाता में कहा था कि इंडस्ट्री को ज्यादा टैक्स देने के लिए तैयार रहना चाहिए। इसका मतलब यह निकाला गया कि सरकार ने 2008-09 के स्लोडाउन के वक्त जो राहत दी थी, उसे बजट में वापस लिया जा सकता है। ऐसे में इंडस्ट्री को अगले फाइनैंशल ईयर में ज्यादा एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स देना पड़ सकता है।
खजाने को लेकर सरकार बड़ी मुश्किल में है। 2011-12 में सब्सिडी लक्ष्य से काफी ज्यादा रह सकता है और टैक्स रेवेन्यू में कमी आई है। सरकार दूसरे जरियों से भी खजाने में पैसा नहीं डाल पाई है। दिसंबर 2011 में संसद के शीतकालीन सत्र में प्रणब ने कहा था कि सब्सिडी बिल बजट अनुमान से एक लाख करोड़ रुपये ज्यादा रह सकता है। 2011-12 के बजट में सब्सिडी के करीब 1.4 लाख करोड़ रहने का अंदाजा लगाया गया था। सरकार विनिवेश और टैक्स से ज्यादा पैसा नहीं जुटा पाई है। वह टेलिकॉम स्पेक्ट्रम की नीलामी भी नहीं कर सकी है। सिर्फ इनडायरेक्ट टैक्स का लक्ष्य हासिल होता दिखाई दे रहा है।(Navbharat)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें