नई दिल्ली। देश के करोड़ों गरीबों को भोजन देने की सोनिया गांधी की महत्वाकांक्षी योजना, कृषि मंत्री शरद पवार को रास नहीं आ रही है। शरद पवार ने कहा है कि मौजूदा पीडीएस सिस्टम के तहत खाद्य सुरक्षा योजना लागू करने में कई दिक्कतें हैं। ऐसे में सवाल खड़ा हो गया है कि क्या पवार राजनीतिक कारणों से इस लोकलुभावन योजना में अड़ंगा डाल रहे हैं।
दरअसल देश के करीब 65 फीसदी गरीबों को भोजन की गारंटी का अधिकार को मनरेगा के बाद कांग्रेस इस प्रस्तावित कानून को अपना ब्रह्मास्त्र मान रही है। सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के दिमाग से उपजी ये योजना अब बिल की शक्ल में संसदीय समिति के पास है। लेकिन कृषि मंत्री शरद पवार को ये पहल रास नहीं आ रही है। शरद पवार का कहना है कि मौजूदा पीडीएस की सीमाएं हैं, जैसे कि मंडियों की क्षमता, राज्य की एजेंसियों की वित्तीय स्थिति, कर्मचारी, भंडारण आदि। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार किए बिना इसे पूरे देश के में लागू करने में दिक्कतें आएंगी।
वहीं भ्रष्टाचार के तमाम मामलों में घिरी कांग्रेस को यकीन है कि ये कानून लागू हुआ तो 2014 के लोकसभा चुनाव में उसकी नैया आसानी से पार हो जाएगी। जाहिर है, कांग्रेस को पवार का ये रुख रास नहीं आ रहा है। शरद पवार की ये दलील भी है कि इस योजना के लागू होने से मंत्रालय पर सब्सिडी का बोझ 65000 करोड़ रुपए से बढ़कर 1 लाख करोड़ तक हो जाएगा। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी भी कह रहे हैं कि बढ़ती सब्सिडी से उनकी नींद उड़ जाती है। लेकिन उनका ये भी कहना है कि खाद्य सुरक्षा के कानूनी अधिकार के लिए जनता अब और इंतजार नहीं कर सकती।
राजनीतिक गलियारों में शरद पवार के विरोध को उनके पिछले बयानों से जोड़कर भी देखा जा रहा है। पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि घोटालों से यूपीए सरकार की छवि खराब हुई है। जनता के बीच ये धारणा बनी है कि यूपीए सरकार ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाएगी। तो क्या पवार के रुख में भविष्य की राजनीति छिपी है। इस कानून के दायरे में 75 फीसदी ग्रामीण और 50 फीसदी शहरी आबादी आएगी जिन्हें सस्ते दाम पर गेहूं, चावल और दूसरे अनाज दिए जाएंगे। ऐसे में कांग्रेस को बड़ी राजनीतिक बढ़त मिल सकती है, जो शायद पवार को पसंद नहीं आ रहा। (IBN Khabar)
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