खाद्य सुरक्षा कानून लागू होने पर सब्सिडी में होने वाली भारी बढ़ोतरी का भार कम करने के लिए सरकार ने कीमत सुरक्षा कोष का प्रस्ताव तैयार किया है। खाद्य व उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय इस प्रस्ताव पर विचार कर रहा है और साल 2012-13 के बजट में यह सामने आ सकता है।
आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि इस कोष का ढांचा अभी शुरुआती अवस्था में है और अभी इस पर विस्तार से काम होना बाकी है। कुछ चीजें कीमत सुरक्षा कोष के संबंध में राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा की गई सिफारिशों से ली गई हैं।
कृषि मंत्रालय द्वारा 11वीं पंचवर्षीय योजना से पहले एम एस स्वामीनाथन समिति गठित की गई थी। समिति ने कहा है कि बाजार कीमत स्थिरता कोष की स्थापना केंद्र व राज्य सरकारों के साथ-साथ वित्तीय संस्थाओं द्वारा संयुक्त रूप से की जानी चाहिए ताकि कीमतों में होने वाले उतारचढ़ाव के दौर में किसानों को संरक्षण मिल सके। उदाहरण के तौर पर समिति ने खास तौर से जल्द नष्ट होने वाली जिंसों मसलन प्याज, आलू, टमाटर के बारे में इस तरह की बात कही है।
हालांकि उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित कोष के गठन पर उपभोक्ता के लिहाज से विचार किया जाना अभी बाकी है। उनके मुताबिक, इस कोष का मकसद प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के जरिए सब्सिडी में होने वाली बढ़ोतरी पर विचार किया जाना है और केंद्र पर जरूरत से ज्यादा बोझ देने की बजाय राज्यों पर भी इसका थोड़ा बहुत बोझ होना चाहिए। सब्सिडी का यह बोझ मौजूदा खाद्य सब्सिडी के अतिरिक्त होगा। अधिकारियों ने कहा कि कीमत सुरक्षा कोष का दायरा विस्तृत हो सकता है, न कि सिर्फ बीपीएल तक, जो मौजूदा समय में खाद्य सब्सिडी के लिए बेंचमार्क है। शुरुआती दौर में इस योजना के दायरे में जनवितरण प्रणाली के तहत दी जाने वाली जिंसें होंगी, लेकिन बाद में इसका दायरा दूसरी जिंसों तक बढ़ाया जा सकता है। इन जिंसों का फैसला फसल वर्ष और किसी खास वर्ष में मांग-आपूर्ति की स्थिति पर निर्भर करेगा।
बीपीएल परिवारों को दिए जाने वाले खाद्यान्न तक खाद्य सब्सिडी का बोझ केंद्र सरकार वहन करेगी, वहीं बाकी का भार कीमत सुरक्षा कोष पर होगा और इसकी साझेदारी राज्य सरकारों व केंद्र सरकार के बीच होगी। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि कुल मिलाकर पीडीएस व्यवस्था के तहत सभी केंद्रीय योजनाएं सिर्फ राज्यों के विषय का ही समर्थन करती है। ऐसे में खाद्य सब्सिडी में थोड़ी बहुत हिस्सेदारी करना राज्यों के लिए तार्किक बन जाएगा।
उच्च महंगाई और आवश्यक जिंसों की कीमतों में होने वाले उतारचढ़ाव से आम लोगों को कीमत सुरक्षा कोष के जरिए राहत मिलेगी। इससे खाद्यान्न की आपूर्ति देश के ज्यादातर लोगों तक सुनिश्चित होगी, न कि सिर्फ बीपीएल परिवारों तक। साल 2011-12 के लिए बजट में खाद्य सब्सिडी के तौर पर 60,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, वहीं वास्तविक सब्सिडी करीब 95,300 करोड़ रुपये है। पीडीएस के जरिए गेहूं, चावल, चीनी और केरोसिन की आपूर्ति बीपीएल परिवारों को होती है। (BS Hindi)
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