जिंस वायदा बाजार में कमोडिटी ट्रांजैक्शन टैक्स (सीटीटी) लागू किया जाए या नहीं, इस मसले पर स्टॉक एक्सचेंजों और कमोडिटी एक्सचेंजों के बीच शीत युद्घ का माहौल बन गया है। राष्ट्रीय स्तर के स्टॉक एक्सचेंजों का समूह (एनएसईजी) इस मामले में गुटबंदी कर रहा है और जिंस बाजार पर सीटीटी लगाने के लिए सरकार पर दबाव बना रहा है। दूसरी ओर कमोडिटी एक्सचेंज भी सीटीटी से निजात पाने के लिए एकजुट हो रहे हैं। उनकी दलील है कि जिंस हेजिंग का उत्पाद है, इसीलिए उस पर सीटीटी लगाने की कोई तुक ही नहीं है।
एनएसईजी के सदस्यों का दावा है कि इक्विटी वायदा का कारोबार घट गया है और वह जिंस बाजारों की ओर लुढ़क गया है। हालांकि इक्विटी और जिंस के कारोबारी आंकड़ों की तफ्तीश करने पर पता चलता है कि इक्विटी वायदा का कारोबार जिंस वायदा की ओर नहीं बल्कि इक्विटी ऑप्शन के सौदों में जा रहा है क्योंकि वहां सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) ही नहीं है। दरअसल 2007 में जब इक्विटी वायदा पर एसटीटी लगाया गया तो इक्विटी ऑप्शन में सौदे अचानक बढ़ गए। कमोडिटी एक्सचेंज के अधिकारियों का तर्क है कि इक्विटी कैश सेगमेंट पर एसटीटी या पूंजीगत लाभ कर लगाया जा सकता है क्योंकि वे निवेश के उत्पाद हैं। इसके उलट जिंस डेरिवेटिव्स हेजिंग का उत्पाद है, जो जिंसों की कीमतों में भारी उतारचढ़ाव के जोखिम से बचाता है। इसीलिए इसे निवेश के साथ तराजू में नहीं तोला जा सकता।
हालांकि सीटीटी के मसले पर एक्सचेंज के सदस्य खुलकर कुछ नहीं बोलते, लेकिन नाम नहीं छापने की शर्त पर एक प्रमुख कमोडिटी एक्सचेंज के एक वरिष्ठ
अधिकारी ने कहा कि कमोडिटी डेरिवेटिव्स सेगमेंट ब्याज दर वायदा और मुद्रा वायदा की तरह है और मूल्य में उतार चढ़ाव की सूरत में बीमा की तरह काम करता है। इस पर कोई भी कर लगाने से हेजिंग महंगी हो जाएगी और कारोबारी अंतरराष्ट्रीय बाजार या डिब्बा ट्रेडिंग का रुख कर लेंगे। उन्होंने कहा, 'ब्याज दर वायदा और मुद्रा वायदा के बाजार कमोडिटी वायदा से 100 गुना बड़े हैं। इसलिए कमोडिटी के छोटे बाजार पर कर थोपने का कोई औचित्य नहीं है।'
साल 2009 के बजट में कमोडिटी पर ट्रांजैक्शन टैक्स का प्रस्ताव आने के बाद तमाम विश्लेषकों और विशेषज्ञों ने केंद्रीय वित्त मंत्री को सुझाव दिया था कि ट्रांजैक्शन टैक्स को खत्म कर दिया जाए। उनकी इस बात को वित्त मंत्री ने मान भी लिया था। इसीलिए प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) लागू होने के साथ ही एसटीटी खत्म हो जाएगा। यही वजह है कि कमोडिटी एक्सचेंज, भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की), भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (एसोचैम) ने वित्त मंत्रालय से जिंसों पर सीटीटी नहीं लगाने का अनुरोध दिया है।
उद्योग संगठन और राष्ट्रीय स्तर के जिंस एक्सचेंज इस मामले में एक जैसी बात कह रहे हैं। उनका कहना है कि स्टॉक एक्सचेंजों का यह तर्क बिल्कुल बेबुनियाद है कि इक्विटी वॉल्यूम दूसरे कारोबार में चला गया है और लोगों का रुझान आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) के बाजार में घटा है। उनके मुताबिक स्टॉक एक्सचेंज सरकार को यह कहकर गुमराह कर रहे हैं कि लोगों का ध्यान आईपीओ से कमोडिटी बाजारों की ओर हो गया है, जबकि सच्चाई यह है कि आईपीओ मार्केट में गहराई ही नहीं है। इक्विटी ऑप्शन में आज 90 फीसदी सौदे हो रहे हैं और इंडेक्स ऑप्शन में 80 फीसदी सौदे हो रहे हैं। उनका आरोप है कि यह गुट बाजार के विकास के बारे में नहीं सोच रहा बल्कि अपने हित को ही तरजीह दे रहा है।
कमोडिटी एक्सचेंज के एक प्रमुख ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि राष्ट्रीय स्तर के स्टॉक एक्सचेंजों के समूह ने गैर प्रतिस्पर्धक अभियान चलाया है। उन्हें बाजार के विकास से कोई मतलब नहीं दिख रहा है। उसके बजाय वे नीति निर्धारकों, और और कमोडिटी ईकोसिस्टम से जुड़े लोगों को भ्रम में डाल रहे हैं, जो कहीं से भी उचित नहीं है। (BS Hindi)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें