यह फैसला पशुपालन विभाग की सिफारिशों पर लिया गया है। राइस मिलिंग के अलावा पशुओं का चारा खली से भी निकाला जाता है। इस क्षेत्र में भारत कच्चे तेल का आयात करता है और खाद्य तेल का रिफाइन करता है। इसके बाद बची खली का इस्तेमाल पशु चारे के रूप में किया जाता है। इसलिए जब इसे घरेलू बाजार में बेचा जाता है तो यह देसी पशु चारे की आपूर्ति की तुलना में अधिक महंगा होता है। अधिकारियों का कहना है कि इसलिए निर्यात को हतोत्साहित करने की जरूरत है।
कच्चे ब्रान के निष्कर्षण के बाद तेल निकला हुआ या बिना वसा का राइस ब्रान मिलता है। पशु चारे और पोल्ट्री के इस्तेमाल के अलावा इसके और भी बहुत सारे उपयोग हैं। इस डिऑयल्ड ब्रान का इस्तेमाल ब्रेड, केक, बिस्कुट जैसे बेकरी उत्पाद बनाने में होता है। खाद के रूप में भी इसका उपयोग किया जा सकता है। दवा के तौर पर इसका इस्तेमाल संभव है। इसमें विटामिन बी कांप्लेक्स, एमिनो एसिड, फॉस्फोरिक एसिड के यौगिक पाए जाते हैं। राइस ब्रान सेे आसानी से प्रोटीन निकाला जाता है।
इस बीच, भारत सरकार की नैशनल डेयरी योजना (एनडीपी) ने कंपनी कानून के तहत दुग्ध उत्पादक कंपनियों की स्थापना का प्रस्ताव किया है। कई राज्यों द्वारा दुग्ध उत्पादन बढ़ाने की पहल के तहत कायम एनडीपी की शुरूआत अप्रैल में नई पंचवर्षीय योजना में की जाएगी। पहले चरण में इसके लिए 2040 करोड़ रुपये का प्रावधान है। उत्पादक कंपनियों की स्थापना मुख्य रूप से डेयरी के लिहाज से 14 सबसे बड़े राज्यों में की जानी है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां सहकारी समितियां नहीं हैं या फिर जहां उत्पादकता कम है। ये राज्य हैं आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल।
प्रस्तावित कानून के मुताबिक सहकारी समिति का कोई मौजूदा सदस्य या फिर सहकारी समिति खुद भी उत्पादक कंपनी बन सकती है। इस मॉडल में साझा वित्तीय तरीके के आधार पर कंपनी/समिति के भीतर, सदस्यों से और एनडीपी से धन आएगा। उत्पादक कंपनियां बनाने का मकसद कुल द़ुग्ध उत्पादन में करीब 50 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाली इन सहकारी समितियों को निजी क्षेत्र से मिलने वाली कड़ी प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना है। अधिकारियों ने बताया कि उत्पादक कंपनियों का पंजीकरण कंपनी कानून के पार्ट 11 के अंतर्गत किया जाएगा। (BS HIndi)
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