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31 जनवरी 2012

विदेश में भारतीय मक्का सबसे सस्ता, तेजी संभव

आर.एस. राणा नई दिल्ल

विश्व बाजार में भारतीय मक्का सबसे सस्ती होने के कारण निर्यातकों की खरीद बढ़ गई है। इसके अलावा स्टार्च मिलों की ओर से भी मक्का की अच्छी मांग निकल रही है। चालू महीने में मक्का की कीमतों में 200 रुपये की तेजी आकर दिल्ली में भाव 1,375-1,380 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं।

चालू फसल सीजन में अक्टूबर से अभी तक करीब 12 लाख टन मक्का के निर्यात सौदे हो चुके हैं। मक्का में चीन और सीरिया की आयात मांग में बढ़ोतरी हुई है। जबकि उत्पादक मंडियों में खरीफ मक्का की आवक घट गई है जबकि रबी की मक्का की फसल आने में करीब तीन महीने का समय शेष है। इसलिए मौजूदा कीमतों में तेजी की ही संभावना है।अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के भारत में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अक्टूबर से अभी तक करीब 12 लाख टन मक्का के निर्यात सौदे हो चुके है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय मक्का सबसे सस्ती है। वियतनाम भारतीय मक्का की खरीद 311 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) की दर से कर रहा है जबकि चीन 304 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) पर कर रहा है। चीन की आयात मांग में 10 लाख टन की बढ़ोतरी होकर कुल मांग 40 लाख टन की हो गई है।उन्होंने बताया कि अर्जेंटीना और ब्राजील में मक्का की नई फसल की आवक शुरू हो गई है तथा इन देशों में उत्पादन भी पिछले साल से ज्यादा है लेकिन अमेरिका में पैदावार में कमी आने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढ़े हुए हैं। अर्जेंटीना में मक्का की पैदावार 2.6 करोड़ टन और ब्राजील में 6.1 करोड़ टन होने का अनुमान है। पिछले साल इन देशों में क्रमश: 2.25 और 5.75 करोड़ टन की पैदावार हुई थी।अमेरिका में मक्का का उत्पादन पिछले साल के 31.6 करोड़ टन से घटकर 31.4 करोड़ टन का हुआ है। चीन के अलावा इस समय सीरिया सबसे बड़ा आयातक देश है।

बीएम इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग डायरेक्टर एम. एल. अग्रवाल ने बताया कि खरीफ मक्का की आवक पहले की तुलना में कम हो गई है जबकि रबी फसल की आवक अप्रैल महीने में बनेगी।

निर्यातकों के साथ ही स्टॉर्च मिलों की मांग बनी हुई है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु की मंडियों में मक्का की कीमतें 1,180-1,200 रुपये प्रति क्विंटल हो गई हैं। काकीनाडा बंदरगाह पर पहुंच मक्का के सौदे 1,350-1,360 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हो रहे हैं। कृषि मंत्रालय के अनुसार रबी में मक्का की बुवाई 11.71 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 10.72 लाख हैक्टेयर में हुई थी। (Business Bhaskar.....R S Rana)

इस साल दशहरी की भारी पैदावार की उम्मीद

कड़ाके की ठंड और जनवरी के पहले सप्ताह में हुई बारिश के चलते उत्तर प्रदेश की फल पट्टी मलिहाबाद में इस बार दशहरी की बंपर फसल की उम्मीद है। तापमान बढऩे के साथ ही आम के पेड़ों पर अच्छी बौर नजर आने लगी है जो बढिय़ा सीजन का संकेत दे रही है। हालांकि साल दर साल पेड़ कटने, नई रिहायशी कॉलोनियां बनने और फल पट्टी में चल रहे ईंट भट्ठों के धुएं से आम के पेड़ घट रहे हैं। दशकों पहले फल पट्टी क्षेत्र का दर्जा पा चुके मलिहाबाद में आज तक एक भी खाद्य प्रसंस्करण इकाई नही लगी है। हर साल सीजन में यहां पैदा होने वाले दशहरी आम का लगभग आधा या तो सड़ जाता है या खराब होने की आशंका में औने पौने दाम पर बिकता है।
उत्तर प्रदेश नर्सरी संघ के अध्यक्ष शिवसरन सिंह का कहना है कि विदेशों में भी अपनी खुशबू और मिठास के चलते पहचान बनाने वाले दशहरी आम के लिए मलिहाबाद में आज तक किसी ने प्रसंस्करण इकाई नही लगाई है। न ही दशहरी के भंडारण या बाहर भेजने के लिए कोल्ड चेन का कोई इंतजाम किया गया है। सिंह बताते हैं कि आम उत्पादकों को सीजन के समय सिंचाई के लिए बिजली उपलब्ध कराने का वादा जरूर किया जाता है, पर तैयार फसल का भंडारण कैसे हो इस बारे में कोई माकूल इंतजाम नहीं किए जाते हैं। पिछले साल की कमजोर फसल के बाद इस साल मलिहाबाद के बागवानों के चहरे बंपर फसल की उम्मीद से खिले हुए हैं। आम उत्पादकों को आशा है कि इस साल दशहरी का बंपर उत्पादन होगा। पांच दशक से ज्यादा से आम की खेती में जुटे पदमश्री कलीमुल्लाह बताते हैं - 'बौर ने भरोसा दिलाया है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल उत्पादन कम से 70 से 80 फीसदी ज्यादा होगी। जनवरी के पहले सप्ताह में हुई बारिश के चलते आम के पेड़ों से कीट, जाला जैसे हानिकारक कीड़े खत्म हो गए हैं। इस बार बौर छोटी है, जो इस बात का संकेत है कि फसल बेहतर होगी।'
दशहरी के जानकार माल इलाके के अखिलेश सिंह बताते हैं - आम निर्यात के मामले में मलिहाबाद की हालात बहुत अच्छी नहीं है। अभी तक मुंबई के कारोबारियों के भरोसे ही आम का निर्यात होता है, जो पिछले सीजन में 1000 टन से ज्यादा नहीं रहा था।
शिवसरन सिंह के मुताबिक बरसों पहले यहां स्थानीय आम उत्पादक राजा भूंपेंद्र सिंह ने एक प्रसंस्करण इकाई लगाई थी, पर पिछले 20 साल से यह इकाई बंद पड़ी है। हाल ही में लखनऊ की निजी कंपनी ऑर्गेनिक इंडिया ने जरूर इस इलाके में एक मैंगो फ्लेक बनाने की इकाई लगाने का वादा किया है। (BS Hindi)

सेबी की तरह 65 साल में हो एफएमसी के चेयरमैन की सेवानिवृत्ति

वायदा बाजार आयोग ने उपभोक्ता मामले, खाद्य व सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर बनी स्थायी समिति की उस सिफारिश का विरोध किया है जिसमें समिति ने नियामक के चेयरमैन व सदस्यों के अवकाश प्राप्त करने की उम्र 60 साल रखने को कहा है। समिति ने हाल में फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट रेग्युलेशन अधिनियम (एफसीआरए) में संशोधन के लिए सिफारिशें सौंपी है।
समिति ने कहा है कि दूसरे सरकारी विभाग के अधिकारियों की तरह एफएमसी चेयरमैन की अवकाश प्राप्त करने की उम्र 60 साल होनी चाहिए। सेबी के सदस्य और चेयरमैन की अवकाश प्राप्त करने की उम्र हालांकि 65 साल है। एफएमसी चाहता है कि सेबी की तरह ही एफएमसी के चेयरमैन व सदस्यों की अवकाश प्राप्त करने की उम्र 65 हो।
शुक्रवार को उपभोक्ता मामलों के विभाग को भेजे आधिकारिक नोट में वायदा बाजार आयोग ने कहा है कि इस संस्था को सेबी समेत अन्य नियामक निकाय से अलग रखा जा रहा है। बैंकिंग नियामक आरबीआई के गवर्नर के लिए सरकार ने अवकाश प्राप्त करने की कोई उम्र तय नहीं की है, जबकि डिप्टी गवर्नर 62 साल तक पद पर बने रहते हैं। एफएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, एफएमसी का गठन फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट (रेग्युलेशन) अधिनियम के तहत हुआ है। ऐसे में इसके साथ दूसरे नियामक की तरह ही व्यवहार होना चाहिए और अवकाश की उम्र 65 साल की जानी चाहिए।
नागपुर के कांग्रेस सांसद विलास मुत्तेमवार की अगुआई वाली स्थायी समिति ने हाल में अपनी सिफारिशें सौंपी हैं। मुत्तेमवार ने कहा, एफएमसी चेयरमैन और सदस्यों की अवकाश प्राप्त करने की उम्र 60 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। मोटे तौर पर एफएमसी ने अन्य सिफारिशों पर सहमति जताई है। इन सिफारिशों में विदेशी प्रतिभागियों को जिंस वायदा प्लैटफॉर्म पर कारोबार की अनुमति नहीं देना शामिल है। समिति को डर है कि विदेशी कारोबारियों के मोटे निवेश से किसी एक जिंस की कीमतें उनके मनमुताबिक बढ़ सकती हैं। समिति ने हाजिर और वायदा कारोबार एफएमसी के दायरे मेंं लाने की भी सिफारिश की है।
जिंस वायदा बाजार में और मजबूती लाने की दरकार पर बल देते हुए एफएमसी ने कहा है कि बीमा कंपनियों, म्युचुअल फंडों और बैंकों समेत संस्थागत निवेशकों को वायदा प्लैटफॉर्म पर कारोबार की फौरन अनुमति दी जानी चाहिए। समिति की एक अन्य सिफारिश में कहा गया है कि एफएमसी के पास अलग जांच एजेंसी होनी चाहिए
ताकि वह एक्सचेंज के प्लैटफॉर्म पर हुई अनियमितता की जांच कर सके। समिति ने यहां भी ऑप्शन ट्रेडिंग की अनुमति देने की सिफारिश की है।
अधिकारियों ने कहा कि एफसीआरए संशोधन विधेयक से एफएमसी और मजबूत बनेगा और यह दूसरे नियामक के समान आ जाएगा। यह विधेयक बजट सत्र में पेश किया जा सकता है। उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय एफएमसी की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए अंतिम निर्णय करने के लिए इन्हें सदस्यों के पास भेजेगा। मामला कानून मंत्रालय के पास भी विचार के लिए जाएगा। कानून मंत्रालय प्रस्तावित विधेयक में सिफारिशों को शामिल करने की बाबत अपनी राय देगा। अंत में मामला कैबिनेट कमेटी के सामने पहुंचेगा।
इन प्रक्रियाओं में कम से कम दो महीने का वक्त लगेगा। अधिकारी ने कहा कि इस विधेयक को बजट सत्र के दौरान संसद में पेश किया जा सकता है। (BS Hindi)

मसाला निर्यात में 5 फीसदी की गिरावट

मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल-नवंबर के दौरान मात्रा के लिहाज से मसालों और इसके उत्पादों के निर्यात में 5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इस दौरान 3,51,900 टन मसाले का निर्यात हुआ जबकि पिछले साल की समान अवधि में 3,72,010 टन मसाले का निर्यात हुआ था। हालांकि रुपये में कीमत के लिहाज से इसमें 43 फीसदी जबकि डॉलर के लिहाज से 40 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस दौरान भारत ने 6209.08 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित की जबकि पिछले साल की समान अवधि में 4336 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा कमाई थी।
अप्रैल-नवंबर 2011 के दौरान काली मिर्च, छोटी इलायची, बड़ी इलाइची, अदरक, हल्दी, जीरा, जायफल और जावित्री समेत दूसरे मसालों के निर्यात में मात्रा व कीमत दोनों लिहाज से बढ़ोतरी दर्ज की गई। मिर्च, मसालों के तेल आदि के मामले में सिर्फ कीमत के लिहाज से बढ़ोतरी हुई। धनिया, लहसुन समेत दूसरे मसालों के निर्यात में पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले मात्रा व कीमत दोनों लिहाज से गिरावट दर्ज की गई।
सबसे अच्छा प्रदर्शन छोटी इलायची का रहा, जिसमें मात्रा के लिहाज से 444 फीसदी की और कीमत के लिहाज से 290 फीसदी की उछाल आई। इस अवधि में 3100 टन इलायची का निर्यात हुआ और इससे 253.74 करोड़ रुपये हासिल हुए जबकि पिछले साल की समान अवधि में 570 टन इलायची का निर्यात हुआ था और इससे 65.12 करोड़ रुपये मिले थे। देश में इलायची के सालाना उत्पादन का करीब 30 फीसदी हिस्सा पहले ही निर्यात किया जा चुका है। निर्यात मुख्य रूप से पश्चिम एशिया, अमेरिका और यूरोप को हुआ। जायफल व जावित्री के मामले में मात्रा व कीमत दोनों लिहाज से भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई। पिछले वित्त वर्ष में अप्रैल-नवंबर की अवधि के 1295 टन और 55 करोड़ रुपये की रकम के मुकाबले इस वित्त वर्ष की समान अवधि में 2250 टन का निर्यात हुआ और इससे 157.81 करोड़ रुपये हासिल हुए।
इस अवधि में 17,000 टन काली मिर्च का निर्यात हुआ और इससे 518.80 करोड़ रुपये हासिल हुए, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले मात्रा के लिहाज से 43 फीसदी जबकि कीमत के लिहाज से 139 फीसदी ज्यादा है। इस दौरान 475 टन बड़ी इलायची का निर्यात हुआ और इससे 37.02 करोड़ रुपये हासिल हुए, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले मात्रा के लिहाज से 25 फीसदी व कीमत के लिहाज से 100 फीसदी ज्यादा हैं। इस अवधि में मिर्च का निर्यात मात्रा के लिहाज से 24 फीसदी घटा जबकि धनिये का निर्यात 41 फीसदी। अदरक के निर्यात में मात्रा के लिहाज से 94 फीसदी की गिरावट आई।
अप्रैल-नवंबर के दौरान 26,500 टन जीरे का निर्यात हुआ और इससे 379.24 करोड़ रुपये प्राप्त हुए जबकि पिछले साल की समान अवधि में 20,750 टन जीरे का निर्यात हुआ था और इससे 248.79 करोड़ रुपये हासिल हुए थे। इस अवधि में कुल 11,500 टन करी पाउडर व पेस्ट का निर्यात हुआ और इससे 164.53 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। (BS Hindi)

मोन्सेंटो ने ब्रीडिंग स्टेशन खोला

मोन्सेंटो इंडिया ने संकर मक्का और सब्जियों के बीजों की नई किस्मों के विकास और परीक्षण के लिए कर्नाटक में ब्रीडिंग स्टेशन स्थापित किया है। कंपनी ने एक बयान में कहा है कि यह ब्रीडिंग स्टेशन मुख्य रूप से दक्षिणी भारत में पैदा होने वाली फसलों जैसे मक्के, टमाटर, बंदगोभी, फूलगोभी, खीरे और तरबूज के उच्च उपज वाले संकर बीज विकसित करने पर केंद्रित होगा।

इसमें कहा गया है कि प्रयोगशालाओं से खेतों तक एकीकरण करने वाली यह सुविधा संकर बीजों में अनुसंधान का उत्कृष्ट केंद्र होगा और इसका मॉडल, चेस्टफील्ड विलेज, सेंट लुईस, अमेरिका में स्थित मोन्सेंटो की मुख्य अनुसंधान इकाई पर आधारित है।

यह ब्रीडिंग स्टेशन, भारत में मोन्सेंटो का ऐसा दूसरा केंद्र है, जिसमें एक ही जगह पर अनुसंधान विकास के सभी आयाम, प्रयोगशालाएं, परीक्षणों के लिए खेत, ग्रीनहाउस इत्यादि हैं। (BS Hindi)

ICAR probing govt scientists’ claims on Bt cotton version

Apart from ethical questions on scientific propriety, the investigation raises questions as to whether government agriculture scientists are capable of developing original GM seeds and if due processes are being followed in the way seed development is undertaken

New Delhi: The Indian Council of Agricultural Research (ICAR) is investigating allegations that government scientists from several institutions falsely claimed to have developed an indigenous variety of Bt cotton called Bikaneri Narma (BN-Bt).

This cotton seed, allegations go, is an unoriginal version of Bt cotton developed by Monsanto Co. in the early 1990s and the genetic backbone of several types of cotton seeds being used by Indian farmers. In 2010, ICAR stopped the commercial sale of BN-Bt.

“BN-Bt seed samples were reported to contain Monsanto’s gene/event (MON 531). Consequently, ICAR had seed multiplication and commercialization suspended,” according to an ICAR note that describes the investigative committee’s plan of action. An “event” is, in this case, biotechspeak for genetically modified (GM) plants that are insect-resistant.

While Indian law recognizes patents on events, MON531 isn’t patented in India, according to a Monsanto spokesperson.

The main agenda of the investigative committee that will be led by S.K. Sopory, vice-chancellor of Jawaharlal Nehru University, is to ascertain in three months whether scientists from the University of Agricultural Sciences (UAS), Dharwad, National Research Centre on Plant Biotechnology (NRCPB), and the Central Institute for Cotton Research (CICR), Nagpur, did indeed develop an indigenous Bt variety or whether BN-Bt got mixed, or “contaminated”, with seeds that contained MON 531.

If it was the latter, the committee will also investigate how these seeds escaped expert scrutiny and made it to the farmers’ fields.

Apart from ethical questions on scientific propriety, the investigation raises questions as to whether government agriculture scientists are capable of developing original GM seeds and if due processes are being followed in the way seed development is undertaken in India’s agricultural research institutes.

Bt cotton—predominantly based on MON 531—occupies over 90% of India’s arable cotton area and is credited with transforming India from an importer to a net exporter of cotton. The environment ministry subsequently stymied attempts to introduce Bt into food crops, notably brinjal.

Jairam Ramesh, the then environment minister, argued that before these were introduced, there needed to be a consensus within states on the safety of GM food crops, more scientific study of the possible fallout, and strong public sector-backed production of GM seeds.

If the investigating committee finds that Indian scientists hadn’t developed these seeds, or if it turns out that the government machinery couldn’t ensure the purity of the seeds that it distributes to farmers, it will further undermine the case for the country’s billion-dollar agribiotech industry.

In 2007, I.S. Katageri, H.M. Vamadeviah, S.S. Udikeri, B.M. Khadi and P. Ananda Kumar reported a new event, BNLA106, in the journal Current Science. This was three years after NRCPB, led by Ananda Kumar, constructed the genetic package, and Katageri and Khadi at UAS used that to produce BN-Bt, the GM version of a popular Indian cotton variety that was fortified against insects.

They did this as part of a 2001 government initiative to introduce Bt into cotton varieties as an alternative to the more expensive, commercial hybrids marketed by seed companies.

NRCPB, which comes under the purview of ICAR, was tasked with creating an event that could be incorporated into Indian cotton varieties by UAS and then marketed by CICR.

Such cotton varieties are much cheaper and produce reusable, fertile seeds, but they don’t yield as much cotton as hybrids. In contrast, hybrids (the Bt cotton seeds currently sold by Monsanto’s partners in India) are high-yielding and expensive.

Companies make money because farmers must buy fresh seed from them every sowing season to maintain their yield and it is this aspect of seed procurement that has seen contentious litigation in several states such as Andhra Pradesh and Maharashtra, where governments have moved to cap the prices at which companies can sell such seeds.

Creating an event typically involves using genes derived from a soil bacterium called Bacillus thuringiensis (Bt) that are then integrated into the cotton seeds’ genome.

While scientists and seed companies may know how to get these genes into the plant genome, they can’t predict the exact location where they will lodge. Through trial and error, genes are gunned into several plant saplings until the biotechnologists hit upon a suitable niche of the genome where the bacterial genes can stimulate the plant into producing the insecticide.

The controversy first came to light on 29 December, when The Indian Express cited data sourced from Right to Information activists to say that Monsanto’s “genes were present in BN-Bt”.

Independent scientists say that discovering events is the primary concern for seed developers. “There are a limited arsenal of genes available. It’s creating viable events that is the bread and butter of seed developers,” said K.K. Narayanan, managing director of Metahelix Life Sciences Ltd, a private seed company that too develops events.

Swapan Kumar Datta, deputy director general at ICAR, who stopped the commercialization, said that “issues would be looked into very seriously”.

The Monsanto spokesperson said the company “would not like to comment on Bikaneri Narma as it is an internal matter of ICAR”.

Khadi, Ananda Kumar and CICR director K. Kranthi declined to comment saying it would be improper to discuss the matter before the committee’s verdict. Sopory’s office didn’t return calls from Mint seeking comment.

“We haven’t formally met yet, as a committee. We will do so soon and then decide how to proceed on this,” said R.V. Sonti, deputy director at Centre for Cellular and Molecular Biology, Hyderabad, one of the investigation committee members. (Live Mint)

30 जनवरी 2012

कृषि क्षेत्र पर खर्च बढ़ाए बिना खाद्य सुरक्षा मुश्किल

कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा है कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू करने के लिए कृषि क्षेत्र का उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है। उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषि क्षेत्र को पर्याप्त धन मुहैया कराए बगैर खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू करना मुश्किल है। उन्होंने कृषि क्षेत्र के लिए कम बजट आवंटन पर चिंता जताई है।

पवार ने एक इंटरव्यू में कहा कि कृषि क्षेत्र के लिए बजट में सिर्फ 20,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है जबकि सब्सिडी के लिए 65,000 करोड़ रुपये दिए गए। इस साल सब्सिडी का खर्च बढ़कर एक लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। जब तक हम कृषि क्षेत्र पर खर्च नहीं बढ़ाएंगे, तब तक हम खाद्य सुरक्षा कानून लागू नहीं कर पाएंगे। खाद्य सुरक्षा विधेयक में देश की 63.5' आबादी को सस्ता अनाज देने का प्रावधान किया गया है।

दूसरी ओर खाद्य मंत्री के. वी. थॉमस ने कहा है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के प्रस्तावों को लागू करने के लिए ग्रामीण और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालयों को सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना का काम जल्द-से-जल्द पूरा किया जाए। थॉमस ने कहा है कि इस सर्वेक्षण का उपयोग बहुत सारे योजनाओं के तहत मिलने वाले लाभ के लाभार्थियों की पहचान में किया जाएगा।

उन्होंने खाद्य मामलों पर बनी संसद स्थायी समिति का संदर्भ देते हुए कहा कि खाद्य सुरक्षा विधेयक के तहत देश की 63.5 फीसदी आबादी को सस्ता अनाज मुहैया कराना है। उन्होंने ग्रामीण और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रियों को अलग-अलग पत्र में लिखा है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को लागू करने में परिवारों की पहचान करना एक जटिल कड़ी है। स्थायी समिति के सामने यह मसला कभी भी आ सकता है। यही वजह है कि मैं यह सुनिश्चित करने का निवेदन करता हूं कि जनगणना का काम जल्दी-से-जल्दी निबटाया जाए।

खाद्य मंत्री ने सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना 2011 की ताजी स्थिति से अवगत कराने को कहा है।उन्होंने मंत्रालयों को सर्वेक्षण का काम जल्दी से पूरा कराने के बारे सुनिश्चित कराने को कहा ताकि प्रस्तावित कानू को लागू करने में सहूलियत हों।

इस बीच ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्रामीण इलाकों में परिवारों की पहचान के लिए सर्वेक्षण के बारे में तालमेल बिठाना शुरू कर दिया। शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय ने भी शहरी इलाकों में परिवारों की पहचान के काम में तेजी लाने का मन बना लिया है। संसद की शीतकालीन सत्र के दौरान योजना राज्य मंत्री अश्विनी कुमार ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि उम्मीद है कि एसईसीसी का काम जनवरी 2012 तक पूरा कर लिया जाएगा।
एसईसीसी का काम बीते साल के जून में शुरू कर दिया गया था।

हालांकि बहुत सारे राज्यों में इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हो सकी है। कुछ राज्यों में एसईसीसी का काम अभी तक शुरू भी नहीं किया जा सका है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस काम के जून तक पूरा हो जाने की उम्मीद जताई है। (Business Bhaskar)

कपास के वायदा सौदों पर 10% अतिरिक्त मार्जिन

कपास की कीमतें चालू महीने में उत्पादक मंडियों में भले ही बढ़ी हों, लेकिन इस दौरान कमोडिटी एक्सचेंजों में इसके दाम लगातार घटे हैं। ऐसे में स्टॉकिस्टों की सक्रियता कम करने के लिए वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने कपास के सभी वायदा अनुबंधों की खरीद और बिक्री पर
10 फीसदी का अतिरिक्त मार्जिन लगा दिया है। एफएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एनसीडीईएक्स के साथ ही एमसीएक्स पर कपास के चल रहे सभी महीनों के वायदा अनुबंधों पर 10 फीसदी का अतिरिक्त मार्जिन लगाया है। यह मार्जिन खरीद और बिक्री करने वाले दोनों तरह के निवेशकों पर लागू होगा तथा 27 जनवरी से ही यह प्रभावी हो गया है। उन्होंने बताया कि वायदा बाजार में कपास की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव नहीं हो, इसके लिए यह कदम उठाया गया है। मार्जिन में बढ़ोतरी करने से वायदा एक्सचेंजों पर कपास की कीमतें सीमित दायरे में रहने की संभावना है जिससे निवेशकों को सौदे करने में आसानी होगी। ब्रोकिंग फर्म ऐंजल कमोडिटीज के एग्री विश्लेेषक बदरुद्दीन ने बताया कि महीनेभर में हाजिर बाजार में कपास की कीमतों में तेजी आई है लेकिन वायदा बाजार में पिछले दस दिनों में इसके दाम घटे हैं। अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव 31 दिसंबर को 35,100 से 37,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) था जबकि शनिवार को इसका भाव बढ़कर 37,200 से 37,500 रुपये प्रति कैंडी हो गया। इसके उलट एनसीडीईएक्स पर अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में पिछले दस दिनों में 12.1 फीसदी की गिरावट आई है। 19 जनवरी को अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में कपास का भाव 995 रुपये प्रति 20 किलो था जबकि शनिवार को भाव घटकर 874 रुपये प्रति 20 किलो रह गया। उन्होंने बताया कि कपास के वायदा कारोबार में सट्टेबाजी नहीं हो पाए, इसलिए एफएमसी ने अतिरिक्त मार्जिन लगाया है।
मालूम हो कि ग्वार और ग्वार गम की कीमतों में आई भारी तेजी को रोकने के लिए एफएमसी ने ग्वार और ग्वार गम के वायदा अनुबंधों पर अतिरिक्त मार्जिन लगाया था। लेकिन ग्वार गम में निर्यातकों की भारी मांग बनी हुई है। ऐसे में अतिरिक्त मार्जिन लगाने के बावजूद भी कीमतों में तेजी का ही रुख बना हुआ है। (Business Bhaskar....R S Rana)

मांग के मुकाबले दूध उत्पादन में बढ़त धीमी : उद्योग

नई दिल्ली दुग्ध उत्पादों के मामले में आयात पर निर्भरता कम करने के लिए दूध का घरेलू उत्पादन बढ़ाना जरूरी है। इंडियन डेयरी एसोसिएशन (आईडीए) के अनुसार अगले दस साल में दूध की घरेलू मांग बढ़कर 20 से 21 करोड़ टन हो जाएगी। जबकि चालू साल में दूध का घरेलू उत्पादन 11.50 करोड़ टन होने का अनुमान है।

आईडीए (उत्तर भारत) दिल्ली में दो से पांच फरवरी के दौरान डेयरी इंडस्ट्री कांफ्रेंस का आयोजन कर रहा है। आईडीए के अध्यक्ष डॉ. एन. आर. भसीन ने बताया कि कांफ्रेंस में देशभर से करीब 1,800 प्रतिनिधि भाग लेंगे, जिसमें करीब 100 प्रतिनिधि विदेश से होंगे। डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कोल्ड चेन को मजबूत किए जाने की आवश्यकता है।इसके अलावा सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क में कमी किए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि आयात पर निर्भरता कम करने के लिए दूध के घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी जरूरी है। मांग के मुकाबले आपूर्ति कम होने के कारण वर्ष 2011 में 30 हजार टन एसएमपी और 15 हजार टन बटर ऑयल का आयात किया गया था।दूध उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए सरकार को उद्योग को प्रोत्साहन देना होगा। घरेलू बाजार में दूध के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। दिल्ली में फूल क्रीम दूध के दाम बढ़कर 37 से 38 रुपये प्रति लीटर हो गए हैं। (Business Bhaskar....R S Rana)

खाद्य विधेयक पर वित्त मंत्रालय चिंतित

भारत के आम नागरिकों को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन प्रमुख सोनिया गांधी की महत्त्वाकांक्षी योजना ने सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है। राज्यों और कुछ केंद्रीय मंत्रियों द्वारा चिंता व्यक्त किए जाने के बाद अब वित्त मंत्रालय भी खाद्य सुरक्षा विधेयक को लेकर आशंकित है।
संसद की स्थायी समिति विधेयक की जांच कर रही है, लेकिन इस विधेयक से वित्त मंत्रालय के कई अधिकारियों की भृकुटि तन गई है। उन्हें लगता है कि इस योजना के संचालन से न सिर्फ सरकार पर सब्सिडी का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा बल्कि राज्य की एजेसियों को ज्यादा अनाज की खरीद भी करनी पड़ेगी। लिहाजा, बाजार में काफी कम अनाज बच पाएगा। अधिकारियों ने कहा, सबसे बड़ी चिंता मौजूदा स्तर से अनाज की खरीद बढ़ाने की है, जिससे महंगाई का दबाव और खुदरा कीमतें बढ़ सकती हैं।
यह भी देखना होगा कि इसकी व्यावहारिक समस्याओं का समाधान कैसे हो। इस योजना के लिए रकम की उपलब्धता से ज्यादा चिंता अनाज की खरीद को लेकर है। वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, खुले बाजार में अनाज की घटती आपूर्ति से कीमतों पर दबाव बढ़ेगा। इसके अलावा अगर किसी साल फसल खराब होती है तो भारत को ऊंची कीमतों पर वैश्विक बाजार से अनाज खरीदना होगा।
खाद्य सब्सिडी बिल के जरिए सरकार पर करीब 1 लाख करोड़ रुपये सालाना का भार पडऩे का अनुमान है और न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी के चलते हर साल इसमें बढ़ोतरी हो सकती है। यह रकम मौजूदा वर्ष में अनुमानित कुल कर संग्रह का 10 फीसदी और भारत के जीडीपी का करीब 1 फीसदी है।
इससे पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा नियुक्त आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन की अगुआई वाली विशेषज्ञ समिति ने अनाज की खरीद पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि विधेयक में देश की बड़ी आबादी को शामिल करने पर सवाल उठाया था।
खाद्य सुरक्षा कानून लागू होने के बाद देश में सालाना अनाज की खरीद बढ़कर 6 से 6.5 करोड़ टन हो जाएगी, जो मौजूदा खरीद स्तर के मुकाबले करीब 1 करोड़ टन से ज्यादा है। योजना की अनुमानित लागत 3.5 लाख करोड़ रु. हो सकती है। हालांकि खाद्य मंत्रालय को लगता है कि सब्सिडी के बोझ में महज 28,000 करोड़ रुपये का इजाफा होगा और उत्पादन के प्रतिशत के लिहाज से अनाज की खरीद करीब 30 फीसदी रहेगी।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, साल 2007-08 से सरकार की तरफ से सालाना अनाज खरीद कुल उत्पादन का औसतन 30 फीसदी रही है। उत्पादन में सामान्य बढ़त की संभावना के बाद भी कुल उत्पादन का 30 फीसदी अनाज खरीदने में परेशानी नहीं होगी। उन्होंने कहा कि इससे निजी कारोबार पर असर नहीं पड़ेगा।
पहले भी इस विधेयक पर कृषि मंत्रालय के मतभेद रहे हैं। कृषि मंत्री शरद पवार ने योजना पर प्रस्तावित भारी सब्सिडी का विरोध किया था। बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश समेत कई और राज्यों ने भी प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू किए जाने की दशा में वित्तीय भार साझा करने पर अपनी राय साफ कर दी है। कुछ राज्यों ने जोर देते हुए कहा है कि यह विधेयक लागू करने के लिए केंद्र सरकार को बजट में पर्याप्त प्रावधान करना चाहिए।
विधेयक का लक्ष्य देश के नागरिकों को उचित कीमत पर पोषक तत्व उपलब्ध कराना है और इसे पिछले साल दिसंबर में लोकसभा में पेश किया गया था। यह देश की 63.5 फीसदी आबादी को सस्ती दरों खाद्यान्न पाने का कानूनी अधिकार देता है। इसके दायरे में गांवों के 75 फीसदी लोग और शहरों के 50 फीसदी लोग शामिल होंगे और इनमें कम से कम 28 फीसदी को तरजीह दी जानी है।
प्राथमिक श्रेणी के लोग हर महीने 7 किलोग्राम अनाज (चावल, गेहूं और मोटे अनाज समेत) पाने के हकदार होंगे। इन्हें 3 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से चावल, 2 रुपये प्रति किलोग्राम पर गेहूं और 1 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से मोटे अनाज उपलब्ध कराए जाएंगे। सामान्य श्रेणी के लोगों को कम से कम 3 किलो अनाज उस दर पर मिलेगा जो एमएसपी से 50 फीसदी से ज्यादा न हो। मौजूदा समय में लक्षित जन वितरण प्रणाली के तहत सरकार गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले 6.52 करोड़ लोगों को हर महीने 35 किलोग्राम चावल व गेहूं क्रमश: 4.15 व 5.65 रुपये प्रति किलोग्राम की सब्सिडी वाली दरों पर देती है। गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले 11.5 करोड़ लोगों को चावल और गेहूं 6.10 व 8.30 रुपये प्रति किलोग्राम पर मुहैया कराया जाता है। (BS Hindi)

सटोरियों को बाजार से दूर रखेगा एफएमसी

वायदा बाजार आयोग ने जिंस बाजार के सटोरिया सौदों पर नियंत्रण के लिए अपने नियामक प्रावधानों की समीक्षा शुरू कर दी है। सूत्रों का कहना है कि जल्द ही जिंसों पर मार्जिन में इजाफा किया जा सकता है।
सूत्रों ने बताया, 'अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुकाबले घरेलू ग्राहकों को काफी कम मार्जिन देना पड़ता है। आम तौर पर कारोबार के दौरान यह 6 से 10 फीसदी के बीच रहता है और कुछ मामलों में 5 फीसदी की विशेष मार्जिन की व्यवस्था होती है। सिर्फ अस्थिरता के दौर में मार्जिन बढ़कर 20 से 40 फीसदी और कभी-कभी तो नकदी मार्जिन 60 फीसदी तक हो जाती है। सामान्य तौर पर यह 10 फीसदी से कम नहीं हो सकता है और अस्थिरता के दौर में ही बढ़ाया जा सकता है। इसलिए मार्जिन बढ़ाकर इसे स्तर में लाना जरूरी है।'
आयोग किसी एक पक्ष पर मार्जिन थोपने के बजाय दोनों पक्षों पर लगाने के बारे में भी विचार कर रहा है। फिलहाल कीमतों पर आधारित मार्जिन कीमतें बढऩे
की दशा में खरीदने वाले और कीमतें कम होने पर बेचने वाले पर लगाया जाता है।
दरअसल, ग्वार गम में पहली बार बेचने वाले पर 10 फीसदी के मार्जिन के साथ-साथ लॉन्ग पोजीशन वाले पर भी 60 फीसदी का विशेष मार्जिन भी लगाया गया। इसी तरह आयोग आगे जिंसों के लिए ओपन पोजीशन लिमिट बढ़ा सकता है। क्योंकि पिछले साल सीमा बढ़ाकर 10 से 15 फीसदी के बीच किये जाने के बावजूद यह काफी कम है। सूत्रों का कहना है कि आयोग कारोबार की ओपन पोजीशन पर नजर रखे हुए है। बाजार में उचित कारोबार के लिए ज्यादा व्यापक ओपन पोजीशन लिमिट होना जरूरी है।
फिलहाल एक सदस्य के लिए ओपन इंटरेस्ट लिमिट का स्तर आयोग द्वारा तय की गई संख्या या बाजार का कुल ओपन पोजीशन का 15 फीसदी होता है। इन दोनों में से जो भी अधिक हो, उसे ही एक सदस्य के लिए ओपन इंटरेस्ट लिमिट तय किया जाता है। मार्जिन वह धन है जिसका भुगतान ग्राहक एक्सचेंज में निर्धारित ओपन पोजीशन के एक निश्चित फीसदी हिस्से के रूप में करता है। यह प्रतिभूति, नकदी या अन्य किसी भी रूप में हो सकता है। इसका मकसद कारोबारी की गंभीरता के अलावा समय सीमा खत्म होने के बाद भुगतान की क्षमता की जांच करना होता है। (BS Hindi)

चीनी करेंगे खाद्य तेल इकाइयों का दौरा

रैपसीड की खली में मैलासाइट जैसे हरे दूषित तत्व मिलने के मामले में चीन की एक टीम अगले महीने भारतीय तेल प्रसंस्करण इकाइयों का दौरा करने आ सकती है। छह सदस्यों की यह टीम इस मामसे में भारतीय अधिकारियों के जवाब से संतुष्ट नहीं हुई है। लिहाजा, चीनी अधिकारियों की टीम गुणवत्ता की जांच के लिए भारत आ सकती है।
पिछले छह महीने के दौरान चीनी अधिकारियों ने खली में हरे रंग का दूषित तत्व देखा है और भारतीय निर्यातकों से कहा है कि वे चीन के नियमों का पालन करें। लेकिन भारत से खली की खेप में लगातार ऐसे तत्व मिले हैं।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने बताया, चीनी अधिकारियों की शिकायत के बाद हमने पाया कि जूट की बोरियों पर निशान लगाने के लिए हरे रंग का इस्तेमाल किया गया था और शायद इसी से खली दूषित हुई होगी। तब हमने उद्योग से जुड़े लोगों से जूट की बोरियों का इस्तेमाल न करने और हरी स्याही वाले पार्सल स्वीकार करने से मना किया था।
इस साल जनवरी में चीन द्वारा रैपसीड खली और सोया खली की खेप रोक देने से देश को करीब 600 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा की क्षति हुई है। जापान, कजाकस्तान, पाकिस्तान, रूस, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश खली के निर्यात में भारतीय हिस्सेदारी छीनने में जुट गए हैं। चीन के अधिकारियों के दौरे का मकसद दूषित तत्वों केस्रोत की जांच करना है। इस कृत्रिम रंग का इस्तेमाल सिल्क, ऊन, जूट, चमड़े आदि को रंगने में होता है और सीधे उपभोग किए जाने वाली जिंसों में इसके इस्तेमाल की अनुमति नहीं है। चीन को भारत से आयातित खली की कई खेपों में ऐसे तत्व मिले हैं। पहले चीनी अधिकारी सिर्फ हजार्ड एनालिसिस ऐंड कंट्रोल पाइंट्स (एचएसीसीपी) प्रमाणित इकाइयों का दौरा करते थे, बाद में उन्होंने बड़े संयंत्रों का भी दौरा करना शुरू किया ताकि भारतीय इकाइयों के मानकों की जांच की जा सके। एचएसीसीपी दुनिया में प्रमाणपत्र देने वाला सबसे बड़ा संस्थान है। (BS Hindi)

केन्‍द्रीय उपभोक्‍ता संरक्षण परिषद द्वारा उपभोक्‍ता संरक्षण उपायों की समीक्षा

उपभोक्‍ता संरक्षण क्षेत्र की शीर्ष संस्‍था केन्‍द्रीय उपभोक्‍ता संरक्षण परिषद (सीसीपीसी) देश में उपभोक्‍ता संरक्षण के लिए किये गये उपायों और गतिविधियों की समीक्षा के लिए कल एक बैठक का आयोजन करेगा। इस बैठक की अध्‍यक्षता उपभोक्‍ता मामले, खाद्य एवं जन वितरण मंत्री प्रोफेसर के.वी. थॉमस करेंगे, जिसमें उपभोक्‍ता मामलों के प्रभारी राज्‍य मंत्री (देश के पाँच क्षेत्रों से दो-दो राज्‍य मंत्री), संसद सदस्‍य, संघ शासित प्रदेशों के प्रशासक, केन्‍द्र सरकार के प्रतिनिधि, उपभोक्‍ता संगठन एवं उपभोक्‍ता कार्यकर्ता भी भाग ले रहे हैं।

एक दिन की इस बैठक में सीसीपीसी द्वारा निम्‍नलिखित मुद्दों पर चर्चा की जाएगी - जीवन और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाली वस्‍तु एवं सेवाओं के विपणन के विरूद्ध उपभोक्‍ताओं के अधिकार की रक्षा करना।

गुणवत्‍ता, मात्रा, क्षमता, शुद्धता, मानक एवं वस्‍तुओं तथा सेवाओं की कीमतों के बारे में जानकारी का अधिकार, ताकि अवैध व्‍यापार से सम्‍बन्धित मामलों में उपभोक्‍ताओं को सुरक्षित रखा जा सके।

जहां कहीं संभव हो, प्रतियोगी मूल्‍य पर विभिन्‍न वस्‍तुओं और सेवाओं की पहुंच सुनिश्चित कराने का अधिकार। (PIB)

पूर्वी भारत में हरित क्रांति के लिए 332.87 करोड़ रूपये जारी किए गए

20 जनवरी, 2012 को चालू वित्तीय वर्ष (2011-12) में पूर्वी भारत में हरित क्रांति को बढ़ावा देने के लिए सात राज्यों को 332.87 करोड़ रूपये की राशि जारी की गई।

इस वर्ष के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के अंतर्गत इस उप-योजना के लिए 400 करोड़ रूपये निश्चित किए गए हैं। कार्यक्रम में चयनित राज्यों में चावल पर आधारित फसल पद्धति में सुधार करने का लक्ष्य रखा गया है।

पश्चिमोत्तर राज्यों की तुलना में पूर्वी भारत में दुगनी-तिगनी अधिक वर्षा, दोहन न किए गए अच्छी गुणवत्ता वाले भू-जल स्रोत तथा चावल, केला एवं गन्ने की सतत् पैदावार के लिए सामाजिक पूंजी के विपुल संसाधन इसके पक्ष में जाते हैं। इस क्षेत्र में बेहतर उत्पादन के लिए अपेक्षित प्राकृतिक संसाधनों की उपयुक्त उपलब्धता होते हुए भी कृषि उत्पादन तुलनात्मक रूप से कम है। योजना में यह लक्ष्य रखा गया है कि क्षेत्र की फसल पैदावार को बढ़ाने के लिए सिफारिश की गई कृषि प्रौद्योगिकी एवं पद्धतियों के पैकेज के माध्यम से गहन पैदावार की जाए।(PIB)

28 जनवरी 2012

चीनी के विनियंत्रण की कोशिश

चीनी उद्योग को विनियंत्रित करने से जुड़े मसलों की समीक्षा के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शुक्रवार को आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समिति का गठन किया। यह फैसला ऐसे समय लिया गया है जब देश के सबसे बड़े गन्ना उत्पादक और दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होने को हैं तथा सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय के चुनाव होने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के बयान के मुताबिक, 'यह समिति चीनी उद्योग को विनियंत्रित करने से जुड़े सभी मसलों पर विचार करेगी। समिति को जल्द से जल्द अपना कार्य पूरा कर प्रधानमंत्री को रिपोर्ट सौपने को कहा गया है।' हालांकि समिति को रिपोर्ट सौंपने के लिए कोई समय सीमा नहीं तय की गई है।
इस समिति के अन्य सदस्यों में वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु, कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) के अध्यक्ष अशोक गुलाटी, पूर्व खाद्य एवं कृषि सचिव टी नंद कुमार, केंद्रीय कृषि सचिव और केंद्रीय खाद्य सचिव शामिल हैं। इस फैसले का स्वागत करते हुए उद्योग जगत ने कहा है कि समिति की अनुशंसा महज कागजों तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए जैसा कि पूर्व में टुटेजा समिति और थोराट समिति के साथ हुआ। वर्ष 2010 के मध्य में पूर्व केंद्रीय खाद्य मंत्री शरद पवार की ओर से कुछ कोशिशें की गई थीं, जब वह इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री से मिले थे।
बजाज हिंदुस्तान के बाद देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक और 10 चीनी मिलों के मालिक बलरामपुर चीनी के प्रबंध निदेशक विवेक सरावगी का कहना है, 'बहुत सारी समितियों और विशेषज्ञों ने पहले चीनी उद्योग के विनियंत्रण के लिए एकमत से सुझाव दिए थे। हालांकि इन सुझावों को सामने ही नहीं आने दिया गया। इस बार समिति की सिफारिशें तेजी से लागू की जानी चाहिए।' इंडियन शुगर मिल एसोसिएशन के महानिदेशक अविनाश वर्मा को लगता है कि इस नई समिति में अनुभवी लोग हैं और वे चीनी उद्योग के बारे में अच्छे से जानते हैं। वह कहते हैं, 'हम उम्मीद करते हैं कि समिति जल्द ही अपने सकारात्मक सुझाव हमारे सामने रखेगी जिसमें उद्योग के साथ-साथ किसानों के हित का भी ध्यान रखा जाएगा।'
चीनी उत्पादन में करीब 45 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाली सहकारी चीनी मिलों ने भी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। नैशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज के प्रबंध निदेशक विनय कुमार कहते हैं, 'फिलहाल हम जरूरत से ज्यादा उत्पादन कर रहे हैं इसलिए विनियंत्रण के लिए यह सही समय है। हम उम्मीद करते हैं कि इस बार सुझावों को जरूर लागू किया जाएगा।' चीनी उद्योग देश के सबसे नियंत्रित उद्योगों में से एक है। सरकार पिछले सालों के दौरान स्टील और सीमेंट जैसे उद्योगों के नियंत्रण को सरल कर दिया। चीनी उद्योग पर नियंत्रण कोटे के मासिक आवंटन और लेवी चीनी की व्यवस्था के जरिए किया जाता है। चीनी मिलें सिर्फ कोटे की व्यवस्था के तहत ही खुले बाजार में चीनी बेच सकती हैं। केंद्र सरकार का चीनी निदेशालय हर महीने कोटे का निर्धारण करता है और मिलों के हिसाब से बिक्री कोटा तय करता है। एक महीने के भीतर निर्धारित कोटा न बेच पाने पर पेनल्टी का भी प्रावधान है। लेवी चीनी के तहत मिलों को कुल उत्पादन का 10 फीसदी बाजार से कम कीमतों पर सरकार को बेचना होता है। (BS Hindi)

लेनदेन के तुरंत बाद मिलेगा एसएमएस

जिंस वायदा एक्सचेंजों पर सहज, सुरक्षित और पारदर्शी कारोबार और हेजिंग करने वालों की सीधी प्रतिभागिता की खातिर वायदा बाजार आयोग ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाने की योजना बनाई है। इसके लिए नियामक ने कहा है कि सदस्य द्वारा अपने क्लाइंट के लिए किए गए हर लेन-देन की बाबत एक्सचेंज एसएमएस और ईमेल अलर्ट भेजे। इसका मतलब यह हुआ कि एक्सचेंज के प्लैटफॉर्म पर कारोबार संपन्न होने के साथ ही क्लाइंट को एसएमएस और ईमेल मिल जाएगा। ये अलर्ट एक्सचेंज के सॉफ्टवेयर से स्वत: ही भेजे जाएंगे और 1 मई 2012 से यह अनिवार्य होगा। यह काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि स्टॉक एक्सचेंज भी सभी लेनदेन की बाबत ऐसे अलर्ट नहीं भेजता है।
एफएमसी के चेयरमैन रमेश अभिषेक ने कहा - हमने एक्सचेंजों से ऐसे सॉफ्टवेयर विकसित करने को कहा है, जिनके जरिए सौदा संपन्न होते ही तत्काल और स्वत: एसएमएस और ईमेल क्लाइंट के पास पहुंच जाएं। जिंस एक्सचेंजों ने भी इस कदम का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था जल्द ही तैयार हो जाएगी और इसे 1 मई से लागू कर दिया जाएगा।
मौजूदा समय में कुछ ब्रोकरों (जिंस व स्टॉक दोनों) ने ही एक्सचेंज के प्लैटफॉर्म पर सौदा होने के बाद किसी कर्मचारी के जरिए ईमेल अलर्ट भेजने की व्यवस्था की हुई है। लेकिन यह अलर्ट अनिवार्य नहीं है। दोनों ही अलर्ट अपने आप में काफी कुछ बता देंगे, जिसमें सौदे से संबंधित सभी जानकारियां होंगी, मसलन मात्रा, कीमत, कुल लागत और सौदा किए जाने की तारीख व समय आदि। देश के कई बैंकों में इस तरह की व्यवस्था पहले से ही है, जहां लेनदेन के तुरंत बाद ईमेल अलर्ट व एसएमएस भेजे जाते हैं। इसके अलावा नियामक एक्सचेंजों व जिंस वायदा एक्सचेंजों से जुड़े कमीशन व ब्रोकिंग फर्म के अंकेक्षकों के लिए आचार संहिता लागू करने की योजना बना रहा है। नई आचार संहिता के मुताबिक अगर किसी अंकेक्षक ने एक्सचेंज या किसी सदस्य के बही खातों की जांच कर ली है तो उसे इसकी श्रृंखला से जुड़ी अन्य इकाइयों के खाते बही की जांच से तीन साल तक अलग रखा जाएगा। अभिषेक ने कहा कि इस आचार संहिता का मकसद ब्रोकर व एक्सचेंज के हितों के टकराव को टालना है।
जिंस एक्सचेंजों के विवादों को सीमित करने के लिए एफएमसी शेयर बाजार की तरह तिमाही निपटान व्यवस्था पर काम कर रहा है। इसके तहत एक सदस्य को अपने क्लाइंट के खाते को हर तिमाही निपटाना होगा और अगर उसकी रकम निकलती है तो उसे भुगतान करना होगा या फिर अगर क्लाइंट देनदार है तो उससे वसूली करनी होगी। इसका मतलब यह नहीं है कि क्लाइंट को तिमाही की समाप्ति पर सभी पोजीशन काटनी होंगी। एफएमसी के चेयरमैन ने कहा - इससे काम सहज हो जाएगा और शिकायत का निपटान भी जल्द हो जाएगा क्योंकि ऐसी शिकायतें तीन महीने से ज्यादा पुरानी नहीं होंगी। इसके अलावा एफएमसी बाजार के विकास के लिए एक्सचेंज के निवेशक सुरक्षा कोष में जमा ब्याज की राशि के उपयोग की संभावना भी तलाश रहा है। (BS Hindi)

आकर्षक हुई सोने की तस्करी : जीजेएफ

कीमती धातुओं व रत्नों पर आयात शुल्क में भारी बढ़ोतरी से 3,25,000 करोड़ के देसी आभूषण उद्योग को भारी झटका लगा है। ऑल इंडिया जेम्स ऐंड ज्वैलरी ट्रेड फेडरेशन के चेयरमैन बछराज बामलवा ने दिलीप कुमार झा को दिए साक्षात्कार में कहा कि खास तौर से शादी-विवाह के सीजन में उद्योग घटती मांग का सामना कर रहा है, लिहाजा उद्योग पर और भार बढऩे से यह बुरी तरह चरमरा जाएगा। पेश है बातचीत के मुख्य अंश / January 27, 2012




आयात शुल्क में बढ़ोतरी से घरेलू सोने व हीरे के आभूषण उद्योग पर किस तरह का असर पड़ेगा?
आयात शुल्क में बढ़ोतरी भारतीय आभूषण उद्योग को निरुत्साहित कर देगा। रुपये में मजबूती के चलते हालांकि तत्काल इसका प्रभाव महसूस नहीं हुआ है, लेकिन लंबी अवधि में उद्योग पर इसका प्रभाव नजर आएगा।

कच्चे सोने व रिफाइंड सोने के आयात शुल्क में 1 फीसदी के अंतर से क्या भारत में कच्चे सोने का आयात बढ़ेगा?
नहीं, क्योंकि सरकार ने स्वर्ण अयस्क व कच्चे सोने से तैयार किए जाने वाली सिल्लियों पर 1.5 फीसदी का उत्पाद शुल्क लगाया है, जो कच्चे व रिफाइंड सोने के आयात शुल्क के अंतर से मिलने वाले लाभ को समाप्त कर देता है।

उद्योग और कारोबार को हालांकि ऊंचे शुल्क का बोझ सहना पड़ेगा, इसके बदले सरकार से किस चीज की उम्मीद है?
एक ओर जहां सरकार विकसित देशों की तरह जीएसटी जैसी सरलीकृत कर व्यवस्था लागू करने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी ओर वह कच्चे माल पर आयात शुल्क बढ़ा रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आयात शुल्क में बढ़ोतरी से तस्करी को बढ़ावा मिलेगा। आपकी राय?
आयात शुल्क में बढ़ोतरी से निश्चित तौर पर पड़ोसी देशों से तस्करी को बढ़ावा मिलेगा। (BS Hindi)

25 जनवरी 2012

एमआईएस के तहत आलू खरीद का मामला फाइलों में अटका

बिजनेस भास्कर <> नई दिल्ली

<>मार्केट इंटरवेंशन स्कीम (एमआईएस) के तहत उत्तर प्रदेश में आलू की खरीद में विलंब हो रहा है। पिछले महीने भर से मामले की फाइल राज्य सरकार और केंद्रीय कृषि मंत्रालय के बीच अटकी हुई है। 18 जनवरी को दिल्ली में कृषि मंत्रालय के अधिकारियों और उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव की इस संबंध में बैठक हुई है जिसमें राज्य सरकार से नए सिरे से आवेदन करने को कहा गया है।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 19 दिसंबर को मंत्रालय ने आलू किसानों को राहत देने के लिए पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सरकार को एमआईएस के तहत आलू खरीदने को कहा था।
इसके तहत उत्तर प्रदेश ने एमआईएस के तहत आलू की खरीद के लिए कृषि मंत्रालय को आवेदन भेजा था लेकिन आवेदन में खामियां होने के कारण राज्य सरकार को नए सिरे से आवेदन करने को कहा गया है। इस संबंध में राज्य के प्रमुख सचिव के साथ 18 जनवरी को दिल्ली में बैठक हुई है।
उन्होंने बताया कि जैसे ही नया आवेदन मिलेगा खरीद शुरू कर दी जायेगी। राज्य में आलू की खरीद नेफेड और राज्य सरकार की एजेंसियां मिलकर करेगी। आलू की बंपर पैदावार के कारण कई राज्यों में लागत भी वसूल न होने के कारण किसान आलू को सड़कों पर फेंकने को मजबूर हैं।
इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने एमआईएस के तहत आलू खरीद करने की योजना बनाई है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी) के अनुसार वर्ष 2010-11 में देश में आलू की पैदावार बढ़कर चार करोड़ टन से ज्यादा होने का अनुमान है। जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 3.65 करोड़ टन का हुआ था। उन्होंने बताया कि एमआईएस के तहत केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर उन जिंसों की खरीद करती हैं जिनका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सरकार तय नहीं करती और बंपर पैदावार होने के एवज में किसान अपनी उपज को लागत से भी कम मूल्य पर बेचने को मजबूर हो जाते हैं। एमआईएस के तहत खरीदे जाने वाली जिंसों को बेचने में होने वाले नुकसान की भरपाई केंद्र और राज्य सरकारें पचास-पचास फीसदी के आधार पर करती हैं।
भले ही उपभोक्ताओं को आलू का दाम आठ-दस रुपये प्रति किलो चुकाना पड़ रहा हो लेकिन किसान 2 से 2.5 प्रति किलो की दर से आलू बेचने को मजबूर हैं। एशिया की सबसे बड़ी सब्जी मंडी आजादपुर में आलू के थोक दाम घटकर 200 से 300 रुपये प्रति 50 किलो रह गए हैं।(Business Bhaskar.....R S Rana)

फरवरी में बासमती का एमईपी हटने की संभावना

बिजनेस भास्कर >नई दिल्ली

<>सरकार बासमती चावल पर न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) व्यवस्था को खत्म करने और चीनी पर कुछ नियंत्रण हटाने के अलावा ओपन जनरल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत पांच लाख टन और चीनी निर्यात की अनुमति देने पर विचार कर सकती है। बासमती चावल के निर्यात पर इस समय 900 डॉलर प्रति टन एमईपी लागू है। चीनी के मामले में सरकार नियंत्रण हटाने की दिशा में मासिक चीनी कोटा सिस्टम को त्रैमासिक आधार पर करने के बारे में विचार कर सकती है। इन सभी मसलों पर प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले अधिकार प्राप्त मंत्री समूह (ईजीओएम) की अगली बैठक में विचार होने की संभावना है। यह बैठक आगामी सात फरवरी को हो सकती है।
खाद्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बासमती निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एमईपी को हटाया जा सकता है। इस पर फैसला ७ फरवरी को प्रस्तावित ईजीओएम की बैठक में हो सकता है। बासमती के एमईपी को हटाने का प्रस्ताव वाणिज्य मंत्रालय का है जिसे खाद्य मंत्रालय ने भी हरी झंडी दे दी है। अधिकारी के अनुसार बैठक में ओजीएल के तहत पांच लाख टन और चीनी के निर्यात को भी अनुमति दी जा सकती है। साथ ही चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने की दिशा में कोटा रिलीज सिस्टम में बदलाव करने पर विचार हो सकता है। इस समय हर महीने खुले बाजार में बिक्री के लिए कोटा तय होता है। नए सिस्टम में मिलों के लिए तीन महीने का कोटा जारी करने पर चर्चा हो सकती है। बासमती चावल के निर्यात पर 900 डॉलर का एमईपी लागू होने की वजह से निर्यात में तेजी नहीं आ रही है। एमईपी के कारण भारतीय निर्यातकों को पाकिस्तान से कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है। जबकि चालू खरीफ में बासमती चावल की पैदावार में बढ़ोतरी हुई है। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्टूबर के दौरान 16.22 लाख टन बासमती चावल का ही निर्यात हुआ है।
सरकार ने 22 नवंबर को चालू पेराई सीजन 2011-12 (अक्टूबर से सितंबर) के लिए ओजीएल के तहत दस लाख टन चीनी के निर्यात को मंजूरी दी थी। जिसमें से 17 जनवरी तक 5.39 लाख टन के रिलीज आर्डर जारी किए हैं। चालू पेराई सीजन में 15 जनवरी तक चीनी के उत्पादन में 19 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल उत्पादन 104.5 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 87.68 लाख टन का उत्पादन हुआ था।(Business Bhaskar.....R S Rana)

सरसों का उत्पादन 20 फीसदी तक कम होने का अनुमान

बिजनेस भास्कर <> नई दिल्ली
<>रबी तिलहन की प्रमुख तिलहन फसल सरसों की बुवाई में 12.3 फीसदी की कमी आई है जबकि प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान में इसकी बुवाई पिछले साल के मुकाबले 21.4 फीसदी घटी है। ऐसे में सरसों की पैदावार करीब 20 फीसदी घटकर 60 लाख टन उत्पादन रहने का अनुमान है। सरसों का उत्पादन घटने से अगले महीनों में खाद्य तेलों की कीमतों में तेजी आ सकती है।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बुवाई में कमी आने से चालू रबी में सरसों की पैदावार में 15-16 लाख टन की कमी आने की आशंका है। वर्ष 2010-11 में देश में सरसों का उत्पादन 76.67 लाख टन का हुआ था जबकि चालू सीजन में उत्पादन घटकर 60 लाख टन के करीब ही होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान में सरसों की बुवाई 21.4 फीसदी घटकर 26.42 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है। जबकि पिछले साल की समान अवधि में 32.10 लाख हेक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई थी। सरसों रबी तिलहनों की प्रमुख फसल है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार चालू रबी में तिलहनों की कुल बुवाई 83.8 लाख हेक्टेयर में हुई है इसमें सरसों की हिस्सेदारी 63.31 लाख हेक्टेयर है। पिछले साल की समान अवधि में सरसों की बुवाई 71.12 लाख हेक्टेयर में हुई थी। जबकि पिछले साल तिलहनों की कुल बुवाई 71.12 लाख हेक्टेयर में हुई थी। दिल्ली वेजिटेबल ऑयल एसोसिएशन के सचिव हेमंत गुप्ता ने बताया कि सरसों की पैदावार में कमी आने से आयात पर निर्भरता बढ़ जाएगी, जिसका असर खाद्य तेलों की कीमतों पर पड़ सकता है। राजस्थान में सरसों तेल का भाव 750 रुपये प्रति दस किलो है जबकि सरसों का भाव 3,300 रुपये प्रति क्विंटल है। नई फसल की आवक मार्च महीने में बनेगी इसलिए मार्च में तेल और सरसों के दाम में हल्की गिरावट आ सकती है लेकिन भविष्य में दाम तेज ही बने रहने की संभावना है।
अमेरिकी कृषि विभाग के भारत में स्थित एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यूएसडीए की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण अमेरिका में सोयाबीन के उत्पादन में 22 लाख टन और ब्राजील में 10 लाख टन की कमी आने की आशंका है। सूखे और गर्म मौसम के कारण ब्राजील में सोयाबीन का उत्पादन 740 लाख टन होने की संभावना है। (Business Bhaskar.....R S Rana)

वित्त मंत्रालय ने सस्ते कर्ज के लिए दिशानिर्देश जारी किए

आर.एस. राणा < नई दिल्ली
<>क्रेडिट कार्डधारक किसानों को वेयरहाउस रसीद पर बैंकों से सात फीसदी ब्याज दर पर कर्ज मिलेगा। इस संबंध में नए दिशानिर्देश वित्त मंत्रालय ने 28 दिसंबर को सभी संबंधित विभागों को भेज दिए हैं। सस्ती दर पर जिंस की एवज में ऋण मिलने से देशभर के किसान लाभान्वित होंगे और वे भंडारण विकास एवं नियामक प्राधिकरण (डब्ल्यूडीआरए) से मान्यता प्राप्त गोदामों में कृषि उपज रखने के लिए प्रोत्साहित होंगे। डब्ल्यूडीआरए ने देशभर में 200 वेयरहाउसों को रसीद जारी करने के लिए मान्यता दी है।
डब्ल्यूडीआरए के डायरेक्टर (टेक्निकल) डॉ. एन. के. अरोड़ा ने बिजनेस भास्कर को बताया कि मान्यता प्राप्त वेयरहाउस की रसीद पर क्रेडिट कार्डधारक किसानोंं को बैंकों से अब सात फीसदी की दर से ऋण मिलेगा। इसके लिए वित्त मंत्रालय ने अपनी मंजूरी दे दी है। इससे देशभर के करोड़ों किसानो को फायदा होगा। हालांकि जिन किसानों के पास किसान क्रेडिट कार्ड नहीं है, उन किसानों और कारोबारियों को 11-12 फीसदी की ब्याज दर पर ही वेयरहाउस रसीद के आधार पर ऋण मिलेगा। इन वर्गों को भी कम ब्याज पर कर्ज उपलब्ध कराने के लिए सरकारी स्तर पर बातचीत चल रही है।
उन्होंने बताया कि डब्ल्यूडीआरए अभी तक वेयरहाउस रसीद देने के लिए देशभर में 200 वेयरहाउसों को मान्यता प्रदान कर चुका है। जिनकी खाद्यान्न भंडारण क्षमता लगभग 6.5 लाख टन की है। इसमें सबसे ज्यादा 47 वेयरहाउस राजस्थान में हैं। इसके अलावा तमिलनाडु में 43 वेयरहाउस, आंध्र प्रदेश में 35 वेयरहाउस, महाराष्ट्र में 22, हरियाणा में 15, केरल में 9, पंजाब में 4 और मध्य प्रदेश में 3 वेयरहाउस है। उन्होंने बताया कि अब किसानों पर नई फसल की आवक के समय अपनी जिंस बेचने का दबाव नहीं होगा। किसान वेयरहाउस में अपनी जिंस रखकर उसके द्वारा प्राप्त हुई रसीद के आधार पर बैंकों से आसानी से ऋण प्राप्त कर सकेंगे।
अभी तक वेयरहाउस रजिस्ट्रेशन के लिए देशभर से 404 आवेदन मिल चुके हैं जिनकी भंडारण क्षमता लगभग 15 लाख टन की है। इनमें सबसे ज्यादा आवेदन राजस्थान से प्राप्त हुए हैं। अरोड़ा ने बताया कि अभी तक मान्यता प्राप्त वेयरहाउसों की ओर से 958 नेगोशिएबल वेयरहाउस रसीद (एनडब्ल्यूआर) जारी की जा चुकी हैं। निगम ने वेयरहाउस में रखने के लिए 40 एग्री जिंसों को अधिकृत किया है।
वेयर हाउसों को मान्यता देने के लिए डब्ल्यू डीआरए ने सात एजेंसियों को अधिकृत किया है। इनमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर मार्केटिंग (एनआईएएम) को राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पंजाब में वेयरहाउसों को मान्यता देने की जिम्मेदारी दी गई है। उन्होंने कहा कि किसान को अपनी जिंस की ग्रेडिंग, क्लीनिंग, पैकिंग और लेवलिंग करके वेयरहाउस में रखना चाहिए। इससे जिंस की क्वालिटी अच्छी रहेगी।(Business Bhaskar....R S Rana)

क्रूड पाम तेल व आरबीडी पामोलीन पर निर्यात शुल्क बढऩे से खाद्य तेल महंगे होंगे

आर.एस. राणा <>नई दिल्ली
<>इंडोनेशिया फरवरी से क्रूड पाम तेल पर निर्यात शुल्क में 1.5 फीसदी और आरबीडी पामोलीन के निर्यात शुल्क में 1 फीसदी की बढ़ोतरी करेगा। इंडोनेशिया पाम ऑयल एसोसिएशन के अनुसार फरवरी से क्रूड पाम तेल पर निर्यात शुल्क बढ़कर 16.5 फीसदी और आरबीडी पामोलीन पर 8 फीसदी हो जाएगा। इंडोनेशिया के इस फैसले से भारतीय बाजारों में खाद्य तेलों के दाम बढऩे की संभावना है। इससे भारतीय खाद्य तेल रिफाइनरी इकाइयों के लिए मुश्किल और बढ़ जाएगी। क्रूड पाम तेल का निर्यात शुल्क आरबीडी पाम तेल के निर्यात शुल्क से करीब दोगुना होने से रिफाइनरी इकाइयों के मार्जिन पर दबाव बढ़ जाएगा।
इंडोनेशिया पाम ऑयल एसोसिएशन के अनुसार घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने के लिए खाद्य तेलों के निर्यात शुल्क में बढ़ोतरी की जा रही है। इस समय क्रूड पाम तेल पर 15 फीसदी और आरबीडी पामोलीन में 7 फीसदी निर्यात शुल्क लगता है। फरवरी से इनके निर्यात शुल्क में क्रमश: 1.5 फीसदी और 1 फीसदी की बढ़ोतरी की जाएगी। विजय सॉल्वैक्स लिमिटेड के डायरेक्टर विजय डाटा ने बताया कि क्रूड पाम तेल पर निर्यात शुल्क ज्यादा होने के कारण आयातक आरबीडी पामोलीन का आयात ज्यादा मात्रा में करेंगे। इससे घरेलू रिफाइनिंग इंडस्ट्री प्रभावित होगी। इस समय भी घरेलू उद्योग कुल क्षमता का केवल 50 फीसदी ही उपयोग कर पा रहा है। उन्होंने बताया कि इससे क्रूड पाम तेल और आरबीडी पामोलीन की कीमतों में अंतर भी कम होगा। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी अधिकारी डॉ. बी. वी. मेहता ने बताया कि इंडोनेशिया द्वारा क्रूड पाम तेल और आरबीडी पामोलीन के निर्यात शुल्क में बढ़ोतरी का असर घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों पर पड़ेगा। वैसे भी रबी सीजन में तिलहनों की बुवाई में कमी आई है। उन्होंने बताया कि आरबीडी पामोलीन का आयात ज्यादा मात्रा में होगा तथा आयातक इंडोनेशिया के बजाय मलेशिया से ज्यादा मात्रा में आयात करेंगे। भारतीय बंदरगाह पर इस समय क्रूड पाम तेल का भाव 1,035 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) और आरबीडी पामोलीन का भाव 1,070 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) है। जबकि दिसंबर महीने में क्रूड पाम तेल का भाव 1,047 और आरबीडी पामोलीन का 1,152 डॉलर प्रति टन था। एसईए के अनुसार नवंबर-दिसंबर में खाद्य तेलों के आयात में सात फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल आयात 15.25 लाख टन का हुआ है। इसमें क्रूड पाम तेल की हिस्सेदारी 10.47 लाख टन है। (Business Bhaskar....R S Rana)

एक्सचेंज के सदस्यों पर एफएमसी की बढ़ी सख्ती

राष्ट्रीय एक्सचेंजों की रोजमर्रा की गतिविधियों पर नियंत्रण रखने के लिए वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने सभी जिंस एक्सचेंजों के सदस्यों से कहा है कि शेयरधारिता आदि में बदलाव से पहले वे आयोग से मंजूरी लें। नाम व शेयरधारिता में परिवर्तन और सदस्यता के समर्पण के बारे में अभी तक सदस्यों को संबंधित एक्सचेंज से मंजूरी लेनी पड़ती थी। एफएमसी के इस निर्देश को न मानने वाले सदस्यों पर 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा।
एमके कॉमट्रेड लिमिटेड के सीईओ अशोक मित्तल ने कहा, 'एक्सचेंज और सदस्यों के संबंधों के लिए विभिन्न जरिए मौजूद हैं। कुछ मामलों में हम संबंधित एक्सचेंज से मंजूरी लेते हैं। लेकिन दूसरे मामलों में बदलाव के बाद हम पूर्वानुमति के बिना एक्सचेंज को सूचित करते हैं। इस निर्देश के बाद हालांकि कंपनी में महत्वपूर्ण बदलाव से पहले हमें नियामक की मंजूरी लेनी होगी।'
एनसीडीईएक्स ने अपनी वेबसाइट पर एफएमसी का सर्कुलर डाला है। इसमें कहा गया है कि एफएमसी के निर्देशों के मुताबिक सदस्यों को नाम में बदलाव और सदस्यता के हस्तांतरण के अलावा सदस्यता के समर्पण के मामले में नियामक से पहले इजाजत लेनी होगी। सर्कुलर में कहा गया है कि शेयरधारिता में परिवर्तन के प्रस्ताव से कंपनी या फर्म के नियंत्रण में बदलाव होता है, लिहाजा इसके लिए सबसे पहले एफएमसी से मंजूरी जरूरी है। प्रोप्राइटरशिप में बदलाव के लिए भी पहले नियामक की मंजूरी लेनी होगी और फिर एक्सचेंज समेत दूसरी संस्थाओं को बताना होगा। इसमें हिंदू अविभाजित परिवार के भीतर हस्तांतरण के मामले भी शामिल होंगे।
अब तक सदस्य इस तरह के बदलाव की सूचना संबंधित एक्सचेंजों को देते रहे हैं। अन्य बदलावों की बाबत हालांकि अधिकृत एक्सचेंज मंजूरी देते हैं। मित्तल ने कहा, हो सकता है एक्सचेंजों पर बेहतर नियंत्रण, निगरानी आदि की खातिर एफएमसी ने यह कदम उठाया हो।
आम चलन के मुताबिक नाम में बदलाव की मंजूरी पहले रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज देते हैं और बाद में एक्सचेंज इसे प्रमाणित करता है। इस काम में काफी समय भी लगता है। उदाहरण के तौर पर, एक बार जब आरओसी नाम में बदलाव की मंजूरी देकर इसे एक्सचेंज को भेज देते हैं और अगर पाया जाता है कि यह नाम पहले से ही है तो फिर से बदलाव की दरकार होती है।
मित्तल ने कहा, इसके अलवा भ्रम पैदा करने वाले नाम मसलन एबीसी स्टॉक ऐंड शेयर ब्रोकिंग से बचा जाना चाहिए, जो न तो जिंस कारोबार में शामिल कंपनी का संकेत देती है, न ही वह साख वाली कंपनी की तरह नजर आती है। ऐंजल ब्रोकिंग के सहायक निदेशक नवीन माथुर के मुताबिक एफएमसी के दिशानिर्देश से पूरे जिंस वायदा कारोबार में और पारदर्शिता आएगी। 31 दिसंबर 2011 को समाप्त पखवाड़े में वायदा एक्सचेंजों का कुल कारोबार 50 फीसदी उछलकर 665112.10 करोड़ रुपये पर पहुंच गया जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 438394.74 करोड़ रुपये था। (BS Hindi)

विनिवेश के काम में जुटा है एनएमसीई

अहमदाबाद स्थित नैशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीई) नियामकीय दिशा-निर्देशों को पूरा करने की विस्तारित सीमा 31 मार्च 2012 से पहले वर्तमान शेयरधारकों की हिस्सेदारी बेचने के लिए 5 प्राइवेट इक्विटी (पीई) कंपनियों और निजी बैंकों से बातचीत कर रहा है।
वर्तमान में एक्सचेंज के पास कुल 19.12 करोड़ रुपये की शेयर पूंजी है। इसे नए दिशा-निर्देशों के तहत 31 मार्च, 2012 से पहले इसे न्यूनतम 50 करोड़ रुपये किया जाना है। इसकी पुष्टि करते हुए एक्सचेंज के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी अनिल मिश्रा ने कहा, 'कुछ प्रमुख पीई कंपनियों और निजी क्षेत्र के बड़े बैंकों सहित 5 कंपनियों ने एनएमसीई में हिस्सेदारी खरीदने की इच्छा जाहिर की है। हम इनमें कुछ सबसे प्रतिस्पर्धी कंपनियों को चुनने की प्रक्रिया में हैं।' हालांकि मिश्रा ने संभावित बोली लगाने वालों के नाम के बारे में कोई खुलासा नहीं किया।
जुलाई 2009 में शुरू हुए राष्ट्रीय स्तर के जिंस वायदा कारोबार प्लेटफार्मों में हिस्सेदारी को लेकर जारी किए गये संशोधित दिशा-निर्देशों में बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग(एफएमसी) ने नेटवर्थ की सीमा 100 करोड़ रुपये तय की थी, जिसमें इक्विटी पूंजी की सीमा 50 करोड़ रुपये जरूरी की गई थी। ये दिशा-निर्देश राष्ट्रीय स्तर के 3 एक्सचेंजों मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया (एमसीएक्स), नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्ज एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) और एनएमसीई पर लागू किये गए थे। इन तीनों एक्सचेंजों ने वर्ष 2003 में कारोबार शुरू किया था, उस समय इक्विटी पूंजी की सीमा 10 करोड़ रुपये की थी, जिसे वर्ष 2009 में बाजार के बढ़ते कारोबार को देखते हुए संशोधित किया गया था।
इन तीनों में से एमसीएक्स और एनसीडीईएक्स इस शर्त को पिछली समय सीमा 31 अक्टूबर 2011 से पहले ही पूरी कर चुके हैं। जबकि एनएमसीई ने समय सीमा बढ़ाने की मांग की थी, जिसे उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने 6 महीने बढ़ाकर 31 मार्च, 2012 कर दिया है। मिश्रा ने कहा, 'हमने फिर से समय सीमा में विस्तार की कोई मांग नहीं की है क्योंकि हमें उम्मीद है कि हम समय से पहले ही इस शर्त को पूरा कर लेंगे।'
राष्ट्रीय स्तर के नए एक्सचेंज इंडियन कमोडिटी एक्सचेंज (आईसीईएक्स) और ऐश डेरिवेटिव्ज ऐंड कमोडिटी एक्सचेंज(एसीई) ने न्यूनतम 100 करोड़ रुपये की शेयर पूंजी के साथ कारोबार शुरू किया था जिसमें से 50 करोड़ रुपये शेयर इक्विटी पूंजी के लिए आवंटित किए गये थे। इसलिए ये नये एक्सचेंज कारोबार शुरू करने से पहले ही इस शर्त को पूरा कर रहे थे। एनएमसीई में रबर, कॉफी और मसालों का वायदा कारोबार होता है। (BS Hindi)

कपड़ा मिलों में कपास की खपत बढऩे के संकेत

कपास सलाहकार बोर्ड ने कहा है कि कपड़ा मिलों में कपास की खपत पहले के अनुमान के मुकाबले बढऩे की संभावना है। उसने मिलों में कपास की खपत के अनुमान में बढ़ोतरी भी की है। बोर्ड ने कहा कि मिलों में कपास की मांग में बढ़ोतरी की खबरें मिलने के बाद इसकी खपत के अनुमान में संशोधन किया जा रहा है। विश्लेषकों की नजर में यह भारतीय कपड़ा उद्योग के पटरी पर लौटने का संकेत है।
कपास सलाहकार बोर्ड ने मंगलवार को हुई बैठक के बाद कहा, मौजूदा कपास वर्ष (अक्टूबर-सितंबर) में कपड़ा मिलों में कपास की खपत का अनुमान बढ़ाकर 216 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलोग्राम) कर दिया गया है जबकि पहले 210 लाख गांठ की खपत का अनुमान था।
छोटी इकाइयों की खपत का अनुमान भी संशोधित कर 24 लाख गांठ कर दिया गया है जबकि इन इकाइयों में पहले 20 लाख गांठ की खपत का अनुमान था। इस तरह से छोटी व बड़ी मिलें पहले के अनुमान के मुकाबले 10 लाख गांठ ज्यादा खपत कर सकती हैं। ऐसा तब हो रहा है जब कुल उत्पादन के अनुमान में 11 लाख गांठ की कटौती की गई है। ये दोनों संकेत बताते हैं कि कपास की कीमतें मजबूत बनी रहेंगी और यहां तक कि निर्यात के अनुमान में भी संशोधन करते हुए इसमें बढ़ोतरी की गई है।
सूती धागे की निर्यात मांग के साथ-साथ घरेलू बाजार में मजबूत मांग के चलते देश में कच्चे कपास की खपत में ठीक-ठाक सुधार दर्ज किया गया है। चीन, श्रीलंका, बांग्लादेश, वियतनाम और मिस्र जैसे देशों से सूती धागे की मांग ने जोर पकड़ा है।
कनफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (सिटी) के महासचिव डी के नायर ने कहा, मार्च के बाद सूती धागे की मांग में मजबूती की संभावना है। साथ ही देसी-विदेशी परिधान उद्योग की मांग ने भी जोर पकड़ा है। नायर ने कहा कि अमेरिका से मांग में ठीक-ठाक तेजी आई है, जो भारत के सबसे बड़े निर्यात देशों में से एक है। पर यूरो जोन में कर्ज संकट के चलते मांग घटी है।
इस साल कपास का निर्यात भी पहले के 80 लाख गांठ के मुकाबले बढ़कर 84 लाख गांठ हो जाने का अनुमान है। आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में कपास की फसल को हुए नुकसान के चलते कपास सलाहकार बोर्ड ने उत्पादन अनुमान संशोधित कर 345 लाख गांठ कर दिया है जबकि पहले 356 लाख गांठ उत्पादन का अनुमान था। पिछले कपास वर्ष (2010-11) में देश में 325 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था और यह अब तक का सर्वोच्च उत्पादन है। कपास सलाहकार बोर्ड द्वारा उत्पादन अनुमान में संशोधन के बावजूद कुल उत्पादन अब तक का सर्वोच्च होगा। पिछले साल कीमतों में काफी गिरावट आई थी। (BS Hindi)

ग्वार में कारोबार से रोके गए 2 ब्रोकर

सर्किट के जाल से ग्वार को बाहर निकालने की अपनी कवायद के तहत वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने दो ब्रोकरों को इसके कारोबार से बाहर कर दिया। नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सेंज ने भी ग्वार गम और ग्वार सीड के बिकवाली सौदों पर 10 फीसदी का विशेष मार्जिन लगा दिया, जो 25 जनवरी से लागू होगा।
एफएमसी ने ग्वार सौदों में गड़बड़ी रोकने और सटोरियों पर अंकुश लगाने के लिए विनोद कमोडिटीज को कारोबार से 1 साल के लिए और श्रेष्ठ कमोडिटीज ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज को 6 महीने के लिए रोक दिया। यह खबर मिलते ही बाजार में ग्वार गम और ग्वार सीड की बिकवाली चालू हो गई और दोनों जिंस एनसीडीईएक्स पर टॉप गेनर्स की सूची से निकलकर टॉप लूजर्स में शामिल हो गए। सुबह ग्वार सौदों में 3.5 फीसदी की तेजी थी, लेकिन शाम को लगभग सभी सौदों पर 4 फीसदी का निचला सर्किट लग गया। एनसीडीईएक्स पर ग्वार गम फरवरी अनुबंध 39,056 रुये प्रति क्विंटल पर और ग्वार सीड मार्च अनुबंध 11,915 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए। हाजिर बाजार में भी जयपुर मंडी में ग्वार सीड 1,2500 रुपये तथा ग्वार गम 40,000 रुपये प्रति क्ंिवटल से नीचे गिर गए।
एफएमसी और एनसीडीईएक्स के संयुक्त दल ने पिछले महीने राजस्थान और मध्य प्रदेश के कई कमोडिटी ब्रोकरों पर छापे मारकर कुछ अहम दस्तावेज जब्त किए थे। एफएमसी सूत्रों ने बताया था कि उसके बाद 6 ब्रोकरों और 30 सदस्यों को नोटिस भेजे गए हैं। उन्हीं में से 2 को एफएमसी ने वायदा कारोबार से बाहर कर दिया। सूत्रों के मुतािबक कुछ और ब्रोकरों तथा कारोबारियों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई जल्द ही हो सकती है।
एफएमसी ने ग्वार सौदों पर मार्जिन सीमा रिकॉर्ड 72 फीसदी कर दी है और पोजिशन सीमा घटाकर ग्वार सीड के लिए 12,000 टन तथा ग्वार गम के लिए 3,000 टन रोजाना कर दी है। ग्राहकों के लिए सीमा ग्वार सीड में 2,400 टन और ग्वार गम में 1,000 टन तय की गई है। निकट माह के ग्वार सीड सौदों में ब्रोकरों के लिए पोजिशन सीमा 4,000 टन और ग्राहकों के लिए 800 टन की गई है। ग्वार गम में ब्रोकरों की सीमा 600 और ग्राहकों की 200 टन रह गई है। एनसीडीईएक्स ने 25 जनवरी से दोनों जिंसों के सभी बिकवाली सौदों पर 10 फीसदी विशेष मार्जिन लगाने का ऐलान किया है। ऐंजल ब्रोकिंग की विश्लेषक नलिनी राव के मुताबिक अब ग्वार की कीमतें नीचे आएंगी क्योंकि एफएमसी सख्त है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इतने ऊंचे भाव पर खरीदार नहीं हैं। (BS Hindi)

निर्यात पर टिकी चीनी की मिठास

लागत से भी कम दाम पाकर परेशान चीनी मिलों को अब निर्यात पर सरकारी रुख से ही सहारा मिल सकता है। चीनी उद्योग ने सरकार से 10 लाख टन अतिरिक्त चीनी के निर्यात की अनुमति मांगी है। कारोबारियों के मुताबिक अगले महीने इसे हरी झंडी मिली तो चीनी 100 से 150 रुपये प्रति क्विंटल सुधर सकती है। वैश्विक बाजार में चीनी की बढ़ती कीमतों का फायदा भी तब मिल सकता है।
मवाना शुगर लिमिटेड के प्रबंध निदेशक सुनील ककरिया ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि गन्ने पर मिलें अभी ढुलाई समेत 255 रुपये प्रति क्विंटल खर्च कर रही हैं। चीनी की रिकवरी 8.5 फीसदी है और इस हिसाब से उत्पादन लागत 3,000 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि थोक भाव 2,900 से 2,950 रुपये प्रति क्विंटल यानी लागत से कम हैं।
चीनी का कारोबार करने वाली कंपनी एसएनबी एंटरप्राइजेज के मालिक सुधीर भालोटिया ने बताया कि मांग से ज्यादा चीनी उपलब्ध होने के कारण दाम गिरे हैं। पिछले 2 महीने में उत्तर प्रदेश में चीनी के एक्स फैक्टरी दाम में 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई है। इसके उलट वैश्विक बाजार में चीनी 40 डॉलर बढ़कर 640 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई है। ऐसे में निर्यात की अनुमति मिलने पर चीनी के दाम 100 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ सकते हैं। चीनी कारोबारी आर पी गर्ग को ऐसे में भाव 150 रुपये प्रति क्विंटल बढऩे की उम्मीद है।
भारतीय चीनी उत्पादक संघ (इस्मा) के मुताबिक चालू चीनी वर्ष में 2.6 करोड़ टन चीनी उत्पादन का अनुमान है। 15 जनवरी तक ही 1.04 करोड़ टन चीनी तैयार हो चुकी है, जो पिछले साल 15 जनवरी तक के आंकड़े से 17 लाख टन अधिक है। (BS Hindi)

20 जनवरी 2012

फ्लश सीजन में भी ग्राहकों की जेब पर दूध की मार

आर. एस. राणा दिल्ली
आमतौर पर फ्लश सीजन के दौरान उपभोक्ता दूध के मूल्य में राहत मिलने की उम्मीद कर सकते हैं। देश में दूध की सुलभता और मूल्य के ग्राफ को देखें तो सदियों से यह रुख हमेशा देखा गया लेकिन इस साल सर्दियों में भी उपभोक्ताओं को दूध के मूल्य में राहत के मामले में मायूसी ही हाथ लग रही है। दरअसल, डेयरी कंपनियों ने किसानों से दूध की खरीद के मूल्य में तो कमी की है लेकिन इसका फायदा आगे उपभोक्ताओं को नहीं दिया, बल्कि उन्होंने यह फायदा अपनी जेब में रख लिया। बात यहीं खत्म नहीं होती है, होली के बाद दूध की सप्लाई कम होती है तो उपभोक्ताओं की जेब पर भार बढऩे की संभावना पूरी-पूरी है क्योंकि दूध कंपनियां खुदरा दरें बढ़ाने में कोई संकोच नहीं करेंगी। दूध की सप्लाई बढऩे के कारण दूध की खरीद कीमतें तो कंपनियों ने कम कर दी लेकिन बिक्री मूल्य ज्यों के त्यों हैं। दूध की खरीद में 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है इसके अलावा 30 हजार टन स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) और 15 हजार टन बटर ऑयल आयात होने से इस समय दूध की उपलब्धता अच्छी है। देश में दूध वितरण की सबसे बड़ी सहकारी संस्था गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) अमूल दिल्ली में 38 रुपये प्रति लीटर (फुल क्रीम) की दर से दूध बेच रही है। मदर डेयरी फ्रूट एंड वेजिटेबल्स प्राइवेट लिमिटेड 37 रुपये प्रति लीटर की दर से दूध बेच रही है। अमूल ने दूध का खरीद भाव 450 रुपये प्रति किलो फैट से घटाकर 420 रुपये कर दिया है। ऐसे में किसानों को पहले 29 रुपये प्रति लीटर का भाव मिल रहा था लेकिन अब 27 रुपये मिल रहा है। मदर डेयरी ने भी दूध की खरीद के दाम 27.50-29.50 रुपये प्रति लीटर से घटाकर 25.50-27.50 रुपये कर दिए हैं। ऐसे में कंपनियों के मार्जिन में तो बढ़ोतरी हो गई है लेकिन इसका लाभ उपभोक्ताओं को नहीं मिल रहा है। दिल्ली में मदर डेयरी करीब 30 लाख और अमूल 15 लाख लीटर दूध रोजाना बेच रही हैं।
इंडियन डेयरी एसोसिएशन के अध्यक्ष एन. आर. भसीन ने बताया कि कंपनियां दूध के खरीद भाव में कटौती कर देती है जिससे किसानों की दूध बिक्री से आय कम हो गई है। लेकिन कंपनियों ने बिक्री भाव कम नहीं किए हैं। भसीन का कहना है कि सहकारी संस्थाओं को किसानों को दूध का उचित दाम देना चाहिए। इसके अलावा उपभोक्ताओं को भी वाजिब दाम पर दूध की सप्लाई करनी चाहिए। खरीद भाव में कटौती करने से कंपनियों के मार्जिन में तो बढ़ोतरी हुई है लेकिन उसका फायदा उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचा। उन्होंने बताया कि वर्ष 2010 में दूध का उत्पादन 10.85 करोड़ टन और वर्ष 2011 में 11.25 करोड़ टन का हुआ है। चालू वर्ष में उत्पादन बढ़कर 11.50-11.60 करोड़ टन होने का अनुमान है। वर्ष 2011 में दूध की मांग के मुकाबले आपूर्ति कम होने के कारण 30 हजार टन एसएमपी और 15 हजार टन बटर ऑयल का आयात किया गया था। चालू सीजन में अभी दूध की उपलब्ध्ता अच्छी रहने की संभावना है। ऐसे में आयात करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। स्टर्लिंग एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर कुलदीप सलूजा ने बताया कि फ्लश सीजन होने के दूध की सप्लाई बढ़ी है। साथ ही एसएमपी और बटर ऑयल आयात कर लेने से उपलब्ध्ता अच्छी है लेकिन होली के बाद दूध की सप्लाई कम हो जाएगी जिससे दूध और दूध उत्पादों की कीमतों में तेजी आ सकती है। देसी घी का भाव दिल्ली में 3,800-4,000 रुपये प्रति 15 किलो और एसएमपी का भाव 175 से 185 रुपये प्रति किलो है। दिवाली के बाद से घी की कीमतों में 200 रुपये प्रति 15 किलो की और एसएमपी की कीमतों में 15 से 25 रुपये प्रति किलो की गिरावट आई है।(Business Bhaskar...R S Rana)

चीनी मिलें चुकाएंगी 1100 करोड़

बिजनेस भास्कर दिल्ली
<>सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को किसानों को पेराई सीजन 2006-07 और 2007-08 के बकाया भुगतान के रूप में गन्ना किसानों को करीब 1,100 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी आदेश के अनुसार चीनी मिलों को अगले तीन महीने में इसका भुगतान करना होगा। इस कदम का फायदा उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के गन्ना किसानों को मिलेगा। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम के इस आदेश का राजनीतिक लाभ लेने की स्थिति में कोई भी बड़ा राजनीतिक दल नहीं है जबकि इन दोनों राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। हालांकि कांग्रेस को इसका फायदा हो सकता था क्योंकि किसानों के पक्ष में याचिका दायर करने वाले राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वी.एम. सिंह हाल तक कांग्रेस में थे, लेकिन कुछ राजनीतिक मतभेदों के चलते वह कांग्रेस से अलग हो चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पेराई सीजन 2006-07 और 2007-08 के लिए चीनी मिलों पर किसानों के बकाया राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) के आधार पर भुगतान के लिए है। इस अवधि के लिए चीनी मिलों ने सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के आधार पर भुगतान किया था जिसके आधार पर 2007-08 के लिए मिलों पर गन्ना किसानों का 15 रुपये प्रति क्विंटल का बकाया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक चीनी मिलों को यह भुगतान तीन माह में करना है। एसएपी तय करने के राज्यों के संवैधानिक अधिकार का मामला सुप्रीम कोर्ट के सात न्यायाधीशों की बड़ी बेंच को भेजने का फैसला भी सुप्रीम कोर्ट ने लिया है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश उत्तर प्रदेश के करीब 50 लाख गन्ना किसानों के लिए फायदेमंद साबित होगा। लेकिन जहां 2006-07 में राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार थी वहीं 2007-08 में मायावती की बसपा सरकार थी। ऐसे में
कांग्रेस को इसका राजनीतिक फायदा हो सकता था लेकिन अब शायद उसे भी इसका फायदा नहीं मिलेगा। संयोग की बात है कि एसएपी के लिए राज्य के अधिकार को जायज ठहराने वाला फैसला 2004 के लोकसभा चुनावों के अंतिम दौर के चुनावों एकदम पहले आया था और अब यह राज्य के विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया के दौरान आया है। इस फैसले पर बिजनेस भास्कर के साथ बात करते हुए वी.एम. सिंह ने कहा कि 2004 में और उसके बाद अब दोनों बार सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के लिए न्याय किया है हम सुप्रीम कोर्ट को धन्यवाद देना चाहते हैं। साथ ही इसके चलते किसानों का विश्वास न्यायपालिका में और अधिक मजबूत होगा। राजनीतिक सवाल पर उनका कहना है कि आगामी चुनाव में इसका फायदा राज्य में किसी पार्टी को मिलने वाला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद शुगर कंपनियों के शेयरों में भी गिरावट दर्ज की गई। चीनी उद्योग संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन एक पदाधिकारी का कहना है कि इससे उद्योग पर भारी बोझ पड़ेगा लेकिन राज्यों के एसएपी के अधिकार का मामला बड़ी बेंच को जाने से हमें भविष्य में कुछ राहत जरूर मिलती दिखती है। उनके मुताबिक अधिकांश बकाया 2007-08 के सीजन का है क्योंकि उस साल 75 करोड़ क्विंटल गन्ने की पेराई हुई थी। उसके चलते यह बकाया करीब 1100 करोड़ रुपये से ज्यादा बैठता है। (Business Bhaskar....R S Rana)

गहने होंगे और महंगे

बिजनेस भास्कर दिल्ली/जयपुर
सरकार ने सोना, चांदी और प्लेटिनम जैसी कीमती धातुओं पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी कर दी है। हालांकि इसे व्यापार घाटा कम करने की एक कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन इससे गहनों की ऊंची कीमतों की मार से जूझ रहे उपभोक्ताओं की जेब और ज्यादा ढीली होगी। सरकार द्वारा मंगलवार को जारी अधिसूचना के अनुसार सोने के आयात पर मूल्य का दो फीसदी और चांदी पर छह फीसदी आयात शुल्क निर्धारित किया गया है। इसके साथ ही सरकार ने इन धातुओं पर लगने वाले उत्पाद शुल्क की संरचना को भी मूल्य आधारित कर दिया है। इससे सरकार को चालू वित्त वर्ष के बाकी महीनों में करीब 500-600 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय होने का अनुमान है।
सोने पर अभी तक 300 रुपये प्रति दस ग्राम की दर से आयात शुल्क लिया जाता था। अब कीमत का दो फीसदी बतौर आयात शुल्क चुकाना होगा। इसी तरह चांदी पर अभी तक 1500 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से आयात शुल्क लिया जा रहा था जिसे बदलकर मूल्य का छह फीसदी कर दिया गया है। सोने पर उत्पाद शुल्क भी 200 रुपये प्रति दस ग्राम के बजाय मूल्य का 1.5 फीसदी कर दिया गया है। चांदी पर यह मूल्य का चार फीसदी होगा जो पहले 1,000 रुपये प्रति किलोग्राम था। अधिसूचना के मुताबिक अब हीरे पर भी दो फीसदी आयात शुल्क लगेगा। मंगलवार को दिल्ली सराफा बाजार में सोने के दाम 35 रुपये बढ़कर 27,925 रुपये प्रति दस ग्राम हो गए। चांदी की कीमतों में 575 रुपये की तेजी आई और भाव 52,725 रुपये प्रति किलो हो गए।
केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड के चेयरमैन एस.के. गोयल ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सोने और चांदी की कीमतों में बहुत अधिक तेजी आई है। इसलिए यह बदलाव बाजार के अनुरूप ही किया गया है। राजेश एक्सपोट्र्स के एक्जीक्यूटिव चेयरमैन राजेश मेहता ने सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि इसे वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, पहले सोने पर 30 रुपये प्रति 10 ग्राम की दर से ड्यूटी लगती थी। तीन फीसदी सेस के साथ यह 30.90 रुपये पड़ता था। नए आदेश से इसमें मौजूदा भाव पर करीब 25 रुपये (या 250 रुपये प्रति 10 ग्राम) का इजाफा हो जाएगा। ज्वेलर लागत में इस वृद्धि को रिटेल उपभोक्ता पर ही डालेंगे। हालांकि इससे मांग पर ज्यादा असर की संभावना कम है क्योंकि सोने के भाव में वैसे ही रोजाना एक से पांच फीसदी तक का उतार-चढ़ाव होता रहता है। ड्यूटी के कारण बढऩे वाली कीमत को भी उपभोक्ता एक मूल्यवृद्धि मान लेंगे। मेहता ने कहा कि चांदी पर ड्यूटी को 1500 रुपये प्रति किलो से बढ़ाकर छह फीसदी किया गया है, इससे आज के भाव पर वास्तविक ड्यूटी करीब 3100 रुपये की होगी। यानी उपभोक्ता के लिए इसकी कीमत लगभग 1600 रुपये प्रति किलो बढ़ जाएगी। (Business Bhaskar.....R S Rana)

जेम्स एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के अध्यक्ष राजीव जैन ने कहा कि इससे घरेलू बाजार में कीमतों में और इजाफा होगा। बढ़े आयात शुल्क का सीधा भार उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। आयात शुल्क में दोगुने से अधिक बढ़ोतरी सहने की दशा में फिलहाल ज्वैलरी उद्योग नहीं है, क्योंकि कीमती धातुओं में अरसे से लगातार तेजी का माहौल है। नंदकिशोर मेघराज फर्म के मनोहर मेघराज के अनुसार आयात शुल्क बढ़ाना वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार उचित नहीं है। कीमतों में भारी तेजी रहने से ज्वैलर्स का मुनाफा पहले ही प्रभावित हो रहा है। बढ़ी दरों को जोडऩे से ग्राहकी पर विपरीत असर पड़ेगा। इससे निर्यात कारोबार में मंदी के बाद घरेलू बाजार में बिक्री की आस देख रहे ज्वैलर्स को निराशा होंगी।

एमआईएस के तहत आलू खरीद का मामला फाइलों में अटका

बिजनेस भास्कर दिल्ली
स्कीम (एमआईएस) के तहत उत्तर प्रदेश में आलू की खरीद में विलंब हो रहा है। पिछले महीने भर से मामले की फाइल राज्य सरकार और केंद्रीय कृषि मंत्रालय के बीच अटकी हुई है। 18 जनवरी को दिल्ली में कृषि मंत्रालय के अधिकारियों और उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव की इस संबंध में बैठक हुई है जिसमें राज्य सरकार से नए सिरे से आवेदन करने को कहा गया है।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 19 दिसंबर को मंत्रालय ने आलू किसानों को राहत देने के लिए पंजाब, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सरकार को एमआईएस के तहत आलू खरीदने को कहा था।
इसके तहत उत्तर प्रदेश ने एमआईएस के तहत आलू की खरीद के लिए कृषि मंत्रालय को आवेदन भेजा था लेकिन आवेदन में खामियां होने के कारण राज्य सरकार को नए सिरे से आवेदन करने को कहा गया है। इस संबंध में राज्य के प्रमुख सचिव के साथ 18 जनवरी को दिल्ली में बैठक हुई है।
उन्होंने बताया कि जैसे ही नया आवेदन मिलेगा खरीद शुरू कर दी जायेगी। राज्य में आलू की खरीद नेफेड और राज्य सरकार की एजेंसियां मिलकर करेगी। आलू की बंपर पैदावार के कारण कई राज्यों में लागत भी वसूल न होने के कारण किसान आलू को सड़कों पर फेंकने को मजबूर हैं।
इसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने एमआईएस के तहत आलू खरीद करने की योजना बनाई है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी) के अनुसार वर्ष 2010-11 में देश में आलू की पैदावार बढ़कर चार करोड़ टन से ज्यादा होने का अनुमान है। जबकि पिछले साल इसका उत्पादन 3.65 करोड़ टन का हुआ था। उन्होंने बताया कि एमआईएस के तहत केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर उन जिंसों की खरीद करती हैं जिनका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सरकार तय नहीं करती और बंपर पैदावार होने के एवज में किसान अपनी उपज को लागत से भी कम मूल्य पर बेचने को मजबूर हो जाते हैं। एमआईएस के तहत खरीदे जाने वाली जिंसों को बेचने में होने वाले नुकसान की भरपाई केंद्र और राज्य सरकारें पचास-पचास फीसदी के आधार पर करती हैं।
भले ही उपभोक्ताओं को आलू का दाम आठ-दस रुपये प्रति किलो चुकाना पड़ रहा हो लेकिन किसान 2 से 2.5 प्रति किलो की दर से आलू बेचने को मजबूर हैं। एशिया की सबसे बड़ी सब्जी मंडी आजादपुर में आलू के थोक दाम घटकर 200 से 300 रुपये प्रति 50 किलो रह गए हैं।(Business Bhaskar....R S Rana)

फरवरी में बासमती का एमईपी हटने की संभावना

बिजनेस भास्कर दिल्ली
चावल पर न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) व्यवस्था को खत्म करने और चीनी पर कुछ नियंत्रण हटाने के अलावा ओपन जनरल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत पांच लाख टन और चीनी निर्यात की अनुमति देने पर विचार कर सकती है। बासमती चावल के निर्यात पर इस समय 900 डॉलर प्रति टन एमईपी लागू है। चीनी के मामले में सरकार नियंत्रण हटाने की दिशा में मासिक चीनी कोटा सिस्टम को त्रैमासिक आधार पर करने के बारे में विचार कर सकती है। इन सभी मसलों पर प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले अधिकार प्राप्त मंत्री समूह (ईजीओएम) की अगली बैठक में विचार होने की संभावना है। यह बैठक आगामी सात फरवरी को हो सकती है।
खाद्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बासमती निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एमईपी को हटाया जा सकता है। इस पर फैसला ७ फरवरी को प्रस्तावित ईजीओएम की बैठक में हो सकता है। बासमती के एमईपी को हटाने का प्रस्ताव वाणिज्य मंत्रालय का है जिसे खाद्य मंत्रालय ने भी हरी झंडी दे दी है। अधिकारी के अनुसार बैठक में ओजीएल के तहत पांच लाख टन और चीनी के निर्यात को भी अनुमति दी जा सकती है। साथ ही चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने की दिशा में कोटा रिलीज सिस्टम में बदलाव करने पर विचार हो सकता है। इस समय हर महीने खुले बाजार में बिक्री के लिए कोटा तय होता है। नए सिस्टम में मिलों के लिए तीन महीने का कोटा जारी करने पर चर्चा हो सकती है। बासमती चावल के निर्यात पर 900 डॉलर का एमईपी लागू होने की वजह से निर्यात में तेजी नहीं आ रही है। एमईपी के कारण भारतीय निर्यातकों को पाकिस्तान से कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है। जबकि चालू खरीफ में बासमती चावल की पैदावार में बढ़ोतरी हुई है। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्टूबर के दौरान 16.22 लाख टन बासमती चावल का ही निर्यात हुआ है। (Business Bhaskar....R S Rana)

सरकार ने 22 नवंबर को चालू पेराई सीजन 2011-12 (अक्टूबर से सितंबर) के लिए ओजीएल के तहत दस लाख टन चीनी के निर्यात को मंजूरी दी थी। जिसमें से 17 जनवरी तक 5.39 लाख टन के रिलीज आर्डर जारी किए हैं। चालू पेराई सीजन में 15 जनवरी तक चीनी के उत्पादन में 19 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल उत्पादन 104.5 लाख टन का हो चुका है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 87.68 लाख टन का उत्पादन हुआ था।

तांबा 10 फीसदी तेज, आगे नरमी के संकेत

इस माह वैश्विक बाजार में तांबे के दाम करीब 10 फीसदी और घरेलू बाजार में 5 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुके हैं। धातु विश्लेषकों का कहना है कि बीते साल खासतौर पर यूरोप में तेजी से आर्थिक हालात बिगड़े, लेकिन फिलहाल यूरोप, अमेरिका में स्थिरता देखी जा रही है। भंडारण बढ़ाने के लिए पिछले माह चीन ने भी तांबे की ज्यादा खरीदारी की है। साथ ही डॉलर भी यूरो की तुलना में नरम हुआ है। यही कारण है कि तांबे की कीमतों में तेजी आई है। धातु विश्लेषकों के मुताबिक अगले सप्ताह से चीन में छुट्टियों के चलते बाजार बंद रहने वाले हैं, जिससे तांबे की मांग घट सकती है। ऐसे में तांबे की कीमतों में तेजी थमने की संभावना है। ऊपरी स्तरों पर खरीद घटने से भी तांबा नरम हो सकता है।
लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में बीते दो सप्ताह के दौरान तांबे के दाम 7,537 डॉलर से बढ़कर 8,300 डॉलर प्रति टन को पार कर चुके हैं। एमसीएक्स में तांबा फरवरी अनुबंध के भाव 402 रुपये से बढ़कर 425 रुपये प्रति किलोग्राम हो गए हैं।
ऐंजल ब्रोकिंग के सह निदेशक (जिंस व मुद्रा) नवीन माथुर ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि अमेरिका में आर्थिक हालात सुधर रहे हैं और यूरोप में भी स्थिरता का माहौल है। आर्थिक मोर्चे पर इसी स्थिरता से तांबे की कीमतों में तेजी को समर्थन मिल रहा है। कमोडिटीइनसाइटडॉटकॉम के धातु विश्लेषक अभिषेक शर्मा का कहना है कि पिछले महीने चीन ने तांबे का भंडारण बढ़ाया है, जिससे दिसंबर में चीन का तांबा आयात 47.7 फीसदी बढ़कर 5.08 लाख टन हो गया। दिल्ली के तांबा कारोबारी सुरेशचंद गुप्ता ने कहा कि घरेलू बाजार में मांग सामान्य ही है, पर वैश्विक कारणों से दाम जरूर बढ़े हैं।
शर्मा का कहना है कि अगले स्पताह से प्रमुख उपभोक्ता देश चीन में छुट्टियों (लुनार नव वर्ष) के कारण 10 दिन बाजार बंद रहने वाले हैं। इससे वैश्विक बाजार में तांबे की मांग गिरेगी। ऐसे में अगले माह तक तांबे के दाम गिरकर 400 रुपये प्रति किलोग्राम से नीचे जा सकते हैं। (BS Hindi)

रबर के उत्पादन में बढ़ोतरी

मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल-दिसंबर के दौरान प्राकृतिक रबर के उत्पादन में 4.3 फीसदी की उछाल आई है। इस तरह से नौ महीने में कुल उत्पादन बढ़कर 6,79,100 टन पर पहुंच गया, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 6,51,150 टन प्राकृतिक रबर का उत्पादन हुआ था।
अप्रैल-दिसंबर के दौरान 7,17,485 टन रबर की खपत हुई, जो पिछले साल की समान अवधि के 7,08,705 टन के मुकाबले 1.2 फीसदी ज्यादा है। इस अवधि में रबर के निर्यात में 320 फीसदी की भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई। अप्रैल-दिसंबर के दौरान 22,472 टन रबर का निर्यात हुआ जबकि पिछले साल की समान अवधि में 7,293 टन रबर का निर्यात हुआ था। इस अवधि में हालांकि आयात में गिरावट आई है और यह 1,33,693 टन रह गया है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 1,66,463 टन रबर का आयात हुआ था।
रबर बोर्ड के संशोधित आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2011 के आखिर में प्राकृतिक रबर के कुल भंडार में गिरावट आई है। इस अवधि में प्राकृतिक रबर का कुल भंडार 2,62,000 टन रहा जबकि पिछले साल इसी दौरान 3,14,890 टन रबर का भंडार था। (BS Hindi)

13 जनवरी 2012

नेफेड की देनदारियां बढ़कर हुई 1,735 करोड़ रुपये

बिजनेस भास्कर नई दिल्ली

कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) की देनदारियां बढ़कर 1,735 करोड़ रुपये हो गई हैं। हालांकि इस दौरान निगम की लेनदारियां भी करीब 1,780 करोड़ रुपये की हैं। पिछले साल निगम ने करीब 9 करोड़ रुपये की लेनदारियां निपटाई हैं। निगम को उम्मीद है कि सरकार चालू वित्त वर्ष के आखिर मार्च 2012 तक निगम की देनदारियों का निपटारा कर देगी।
नेफेड के मैनेजिंग डायरेक्टर राजीव गुप्ता ने बताया कि चालू वित्त वर्ष के आखिर मार्च 2012 तक सरकार निगम की देनदारियां निपटा देगी जिससे की वित्त वर्ष 2012-13 में निगम सुचारू रुप से कार्य कर सकेगा। उन्होंने बताया कि नेफेड की 1,780 करोड़ रुपये की लेनदारियां भी है तथा लेनदारियां के लिए निगम ने प्रयास तेज कर दिए हैं। चालू वित्त वर्ष में अभी तक 9 करोड़ रुपये की रिकवरी हुई है तथा आगामी वित्त वर्ष में इसमें और बढ़ोतरी होने की संभावना है। गुप्ता ने कहा कि हमने ब्याज की रकम का भुगतान करने के लिए बैंकों से मार्च 2012 तक का समय लिया हुआ है जिससे निगम को विभिन्न कृषि जिंसों की खरीद-फरोख्त में सुविधा हो रही है।
कृषि मंत्रालय ने नेफेड को 1,200 करोड़ रुपये का राहत पैकेज देने का मसौदा तैयार किया था तथा इसके आधार पर सरकार ने नेफेड में 51 फीसदी हिस्सेदारी की शर्त रखी थी। नेफेड तिलहन, दलहन, कोपरा और कपास की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद के लिए सरकार की नोडल एजेंसी है। नेफेड ने वर्ष 2003 में देशभर की 62 कंपनियों से व्यापार के लिए 3,962 करोड़ रुपये का समझौता किया था जिसके आधार पर वाणिज्यिक बैंकों से लोन लिया था। इसमें ज्यादातर कंपनियां न तो आयात करती थी न ही निर्यात करती थी। इससे कंपनियां नेफेड को पैसे का भुगतान नहीं कर पाई जिससे नेफेड की बैंकों की देनदारियां बढ़कर 1,735 करोड़ रुपये हो गई है। वर्ष 2010-11 में नेफेड को 48 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ लेकिन इस दौरान बैंकों के ब्याज के रुप में ही नेफेड को 170 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ा।(Business Bhaskar.....R S Rana)

मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का समर्थन

भास्कर दिल्ली

ने मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का समर्थन किया है। संगठन के अधिकारियों के मुताबिक इससे उपभोक्ताओं को विश्वस्तरीय उत्पाद मिल सकेंगे और उत्पादों की गुणवत्ता भी अच्छी होगी। कंपनियों में आपसी प्रतिस्पर्धा बढऩे के कारण उपभोक्ताओं को वाजिब कीमत पर उत्पाद उपलब्ध हो सकेंगे। हालांकि देशभर के कारोबारी मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई की खिलाफत कर रहे हैं।
उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने गुरुवार को उपभोक्ता संगठनों के साथ बैठक की। बैठक में देशभर के करीब 12 उपभोक्ता संगठन के अधिकारियों ने हिस्सा लिया। बैठक के बाद उपभोक्ता समन्वय परिषद (सीसीसी) के चेयरमैन अमृत लाल साहा ने कहा कि मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई आने से उपभोक्ताओं को बेहतर दाम पर विश्वस्तरीय उत्पाद मिल सकेंगे। मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी एफडीआई के तहत मौजूदा मसौदे में विदेशी कंपनियों को कुल खरीद में 30 फीसदी खरीद घरेलू मझौले उद्योगों से करनी अनिवार्य होगी। इससे घरेलू मझौली कंपनियों को तो फायदा होगा ही साथ ही देश में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
उपभोक्ता संगठन बिंटी के संयोजक जी सी माथुर ने कहा कि मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई से उपभोक्ताओं के हितों को कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि देश में उपभोक्ताओं के हितों के लिए पर्याप्त कानून हैं। उन्होंने कहा कि मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई से देशभर में आधारभूत ढांचा मजबूत होगा जिसका उपभोक्ताओं के साथ ही उत्पादकों को भी फायदा होगा।
कोर सेंटर के डायरेक्टर एस सी शर्मा ने कहा कि विदेशी निवेश से कंपनियों में आपसी प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी जिससे उपभोक्ताओं को वाजिब दाम पर अच्छे उत्पाद मिल सकेंगे। उन्होंने कहा कि विदेशी कंपनियों को न्यूनतम 10 करोड़ डॉलर का निवेश करना होगा तथा कुल निवेश की 50 फीसदी राशि बैक-एंड सुविधा पर खर्च करना अनिवार्य होने के कारण बुनियादी सुविधाएं बढ़ेगी। हालांकि देशभर के व्यापारी सरकार के इस फैसले को बड़ी शक की नजर से देख रहे हैं। व्यापारियों का मानना है कि दुनिया की दैत्याकार रिटेल कंपनियों के सामने छोटे व्यापारियों की दुकान नहीं चल पाएगी और वे खत्म हो जाएंगे।(Business Bhaskar....R S Rana)

मजबूत डॉलर से इलायची निर्यात बढ़कर पांच गुना

मजबूत डॉलर और अच्छी क्वालिटी से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय इलायची को भरपूर फायदा मिल रहा है। पिछले अप्रैल से नवंबर के दौरान आठ माह में इलायची का निर्यात पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले बढ़कर पांच गुने से भी ज्यादा हो गया।

चालू वित्त वर्ष के पहले आठ माह में इलायची का निर्यात बढ़कर 3,100 टन हो गया जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 570 टन इलायची का निर्यात हुआ था इसी तरह इलायची का निर्यात होता रहा तो चालू वित्त वर्ष 2011-12 की समाप्ति तक इलायची का निर्यात बढ़कर 4,500 से 5,000 टन तक पहुंचने की संभावना है। निर्यातकों की भारी मांग को देखते हुए घरेलू बाजार में इलायची की मौजूदा कीमतों में 10 से 12 फीसदी तेजी आने की संभावना है।

सेमैक्स एजेंसी के मैनेजिंग डायरेक्टर एम. बी. रुबारल ने बताया कि ग्वाटेमाला के मुकाबले भारतीय इलायची की क्वालिटी अच्छी होने के कारण भारत से निर्यात लगातार बढ़ रहा है। घरेलू बाजार में इलायची के दाम कम है जबकि डॉलर की मजबूती से निर्यातकों को मार्जिन अच्छा मिल रहा है। चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों अप्रैल से नवंबर के दौरान निर्यात बढ़कर 3,100 टन का हो चुका है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 570 टन का निर्यात हुआ था।

निर्यातकों की मौजूदा मांग को देखते हुए मार्च 2012 तक निर्यात बढ़कर 4,500 से 5,000 टन होने की संभावना है।
इलायची निर्यातक दीपक पारिख ने बताया कि भारतीय इलायची का भाव अंतरराष्ट्रीय बाजार में 10 से 16 डॉलर प्रति किलो है जबकि ग्वाटेमाला के निर्यातक 8 से 13 डॉलर प्रति किलो की दर से सौदे कर रहे हैं।

घरेलू बाजार में इलायची के दाम घटकर न्यूनतम स्तर पर आ गए हैं जबकि पिछले दो महीनों से रुपये के मुकाबले डॉलर मजबूत हुआ है। इसीलिए निर्यातकों का मार्जिन भी बढ़ गया है। कार्डमम ग्रोवर एसोसिएशन के सचिव के. के. देवेशिया ने बताया कि चालू फसल सीजन में देश में इलायची की पैदावार बढ़कर 17,000-1,8000 टन से भी ज्यादा होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 12,000 टन की पैदावार हुई थी।

नीलामी केंद्रों पर इलायची की साप्ताहिक आवक 4.5 से 5 लाख किलो की हो रही है। दाम नीचे होने के कारण निर्यातकों के साथ घरेलू मांग भी अच्छी है। उधर ग्वाटेमाला में इलायची की पैदावार 22,000 से 23,000 टन होने की संभावना है।
अग्रवाल स्पाइसेज के पार्टनर अरुण अग्रवाल ने बताया कि नीलामी केंद्रों पर 6.5 एमएम की इलायची का भाव 475-475 रुपये, 7 एमएम की इलायची का 500-540 रुपये, 7.5 एमएम का भाव 600-620 रुपये और 8 एमएम का भाव 700-750 रुपये प्रति किलो चल रहा है।

पिछले दो महीनों में इसकी कीमतों में 150 से 200 रुपये की गिरावट आई है। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर फरवरी महीने के वायदा अनुबंध में पिछले सप्ताहभर में इलायची की कीमतों में 4.6 फीसदी की गिरावट आई है। चार जनवरी को वायदा में इलायची का भाव 646 रुपये प्रति किलो था जबकि गुरुवार को भाव घटकर 616 रुपये प्रति किलो रह गया। (Business Bhaskar....R S Rana)

शीत से आएगी गेहूं उत्पादन की लहर

उत्तरी राज्यों और देश के अन्य हिस्सों में जारी ठंडे मौसम का गेहूं की फसल पर बढिय़ा असर होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि मौजूदा रबी सत्र 2011-12 के दौरान गेहूं का उत्पादन 8.7 करोड़ टन तक पहुंच सकता है, जबकि लक्ष्य 8.4 करोड़ टन उत्पादन का है। पिछले साल अनुकूल मौसम और प्रौद्योगिकी के ज्यादा इस्तेमाल की वजह से 8.593 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन हुआ था।
फिर भी, इस मर्तबा गेहूं का रकबा पिछले साल के मुकाबले थोड़ा कम या ज्यादा रह सकता है क्योंकि देश के कुछ हिस्सों में बुआई अब भी जारी है, जिसके 20 जनवरी तक पूरा होने की संभावना है।
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक इस वर्ष 6 जनवरी तक गेहूं बुआई की स्थिति पिछले साल की तुलना में बेहतर थी, फिर भी अंतिम आंकड़े फिलहाल तैयार होने हैं। मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'पूरी बुआई अब तक नहीं हुई है, इसलिए हमने गेहूं उत्पादन संबंधी पहले के अनुमान में संशोधन नहीं किया है।'
वैज्ञानिकों का मानना है कि तापमान में अचानक गिरावट आना रबी फसलों के लिए बढिय़ा है, खास तौर पर गेहूं की फसल के लिए यह मौसम ज्यादा अनुकूल है। लेकिन देश के उत्तरी हिस्से में बारिश के बाद चलने वाली शीतलहर से धुंध बढ़ गई है जिसका गेहूं की फसल पर विपरीत असर हो सकता है क्योंकि इससे प्रकाश संश्लेषण की अवधि घट जाती है, लिहाजा रबी फसलों की उत्पादकता प्रभावित होने की आशंका है। शीतलहरी को आम तौर पर गेहूं की फसल के लिए अच्छा माना जाता है। उत्तरी राज्यों में गेहूं की फसल फिलहाल शुरुआती चरण में है।
गेहूं अनुसंधान संस्थान की परियोजना निदेशक इंदु शर्मा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ' इस वर्ष मौसम में कोई असामान्य बदलाव नहीं आया है, इसलिए इस साल गेहूं उत्पादन 8.7 करोड़ टन के स्तर पर पहुंच सकता है। पिछले साल 8.2 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान लगाया गया था, लेकिन अनुकूल मौसम की वजह से इस फसल का उत्पादन 8.593 करोड़ टन तक पहुंच गया था। इस वर्ष भी गेहूं का रकबा 2.9 करोड़ हेक्टेयर रहने की संभावना है, जो पिछले साल के रकबे के लगभग समान ही है।'
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के पौध क्लिनिक प्रभारी एवं वैज्ञानिक एस के थिंड को उम्मीद है कि उत्तरी राज्यों में इस वर्ष गेहूं की 5-10 फीसदी उत्पादकता बढ़ेगी। पूर्व कृषि अधिकारी यशपाल वर्मा ने कहा कि गेहूं का उत्पादन मुख्य रूप से गेहूं के पौधों में अंकुरणं की स्थिति पर निर्भर करता है।
उच्च तापमान की वजह से 20 दिसंबर तक थोड़ी पहले उगाई जाने वाली फसल के पौधों में कम अंकुरण थे। फिर भी अब, मौसम बदलने और तापमान में बहुत गिरावट के कारण फसल को फायदा हो सकता है।
पंजाब में फसल विविधीकरण की वजह से गेहूं का रकबा तकरीबन 35 लाख हेक्टेयर रह सकता है, जो कमोबेश पिछले साल के समान ही है। राज्य का कृषि विभाग उम्मीद कर रहा है कि इस वर्ष 1.554 करोड़ टन गेहूं का उत्पादन होगा। हरियाणा में 24 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन में गेहूं की बुआई हुई है। यहां इस साल 1.17 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का अनुमान है। (BS Hindi)

पाम तेल व जेट्रोफा के लिए होंगी बेंचमार्क कीमतें!

खाद्य तेल के बढ़ते आयात बिल पर लगाम कसने की खातिर सरकार ने पाम तेल व जेट्रोफा के लिए औपचारिक संकेतक के रूप में बेंचमार्क कीमतें तय करने का फैसला किया है। इसके लिए कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) कवायद शुरू कर चुका है। अगर हम घरेलू उपभोग के लिए आयात करते हैं तो भी इस पर विचार होना चाहिए कि आयात कीमतों के समतुल्य घरेलू बाजार में उचित कीमतें क्या हो। सीएसीपी ने पहले ही नारियल तेल के लिए ऐसी कवायद शुरू कर दी है।
आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि संकेतक के रूप में बेंचमार्क कीमतें एमएसपी की तरह काम नहीं करेंगी क्योंकि सरकार ने किसी और फसल को एमएसपी के दायरे में शामिल नहीं करने का फैसला किया है क्योंकि अगर इन जिंसों की कीमतें एमएसपी से नीचे आती हैं तो उसे खरीदने की जिम्मेदारी सरकार की होती है। चूंकि पीडीएस के तहत सरकार पर खाद्य तेल की सब्सिडी का बोझ है और खाद्य तेल का आयात बिल बढ़ रहा है, ऐसे में इसकी बेंचमार्क कीमतों की दरकार है। सूत्रों ने कहा कि ज्यादातर कच्चे तेल का आयात होता है और फिर घरेलू बाजार में इसे बेचने से पहले शोधित किया जाता है। बेंचमार्क कीमतों से इसका विश्लेषण करने में मदद मिलेगी कि क्या आयात बिल ज्यादा है या फिर विक्रय मूल्य लागत से ज्यादा है, साथ ही खाद्य महंगाई में यह कितना योगदान दे रहा है।
खाद्य तेल का आयात बिल साल 2011-12 में यह करीब 30,000 करोड़ रुपये हो सकता है, जो ऊर्जा व यूरिया के बाद तीसरा सबसे बड़ा बिल होगा। भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा खाद्य तेल उपभोक्ता है और अपनी जरूरतों का आधा हिस्सा आयात के जरिए पूरा करता है।
देश में उत्पादन बढऩे और रुपये में कमजोरी के चलते आयात लागत बढ़ी है। इससे 2010-11 में भारत का खाद्य तेल आयात पिछले साल के 92.4 लाख टन के मुकाबले 6.2 फीसदी घटकर 86.7 लाख टन रह गया। मौजूदा समय में सरकार की बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) है। वानिकी व उन कृषि जिंसों की कीमतों के लिए यह अस्थायी फॉर्मूला है, जो जल्द खराब हो सकते हैं और जो न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में नहीं है।
कृषि मंत्रालय ने राज्यों व कृषि विश्वविद्यालयों को दलहन व तिलहन की हाइब्रिड किस्में विकसित करने की सलाह दी है। हालांकि सरकार ने स्पष्ट किया है कि देश में उपलब्ध मौजूदा किस्मों की हाइब्रिड किस्में विकसित की जानी चाहिए, न कि जीएम बीज। ये चीजें घरेलू कीमत का फॉर्मूला, आयात शुल्क और पाम तेल व अन्य तिलहनों के लिए एमआईएस पर मंत्रालय की कवायद का हिस्सा है। पाम तेल का उत्पादन अभी काफी कम होता है। दूसरी ओर बायोफ्यूल का बड़ा स्रोत जेट्रोफा है। फिलहाल फिलिपींस व ब्राजील में जेट्रोफा तेल का इस्तेमाल बायोडीजल के उत्पादन में होता है, जहां यह अपने आप उगता है। ब्राजील के दक्षिण पूर्वी, उत्तरी व उत्तर पूर्वी इलाके में इसकी खेती होती है। भारत में भी इस तेल को प्रोत्साहित किया गया है। कई शोध संस्थाओं व महिला स्वसहायता समूहों ने भी देश में बड़े पैमाने पर जेट्रोफा की खेती शुरू की है। (BS Hindi)

12 जनवरी 2012

सीसीआई ने कपास की खरीद शुरू की

आर. एस. राणा नई दिल्ली

कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने मंगलवार से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कपास की खरीद शुरू कर दी। पिछले अक्टूबर से शुरू मौजूदा विपणन सीजन वर्ष 2011-12 में खरीद के लिए सीसीआई ने देशभर की मंडियों में 250 खरीद केंद्र बनाए हैं।

सीसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू विपणन सीजन के लिए निगम ने मंगलवार से कपास की खरीद शुरू कर दी है और खरीद के लिए देशभर की मंडियों में 250 केंद्र स्थापित किए हैं। उन्होंने बताया कि उत्पादक मंडियों में कपास के दाम एमएसपी से ऊपर बने हुए हैं इसलिए सीसीआई के खरीद केंद्रों पर आवक सीमित मात्रा में ही हुई। खरीफ विपणन सीजन 2011-12 के लिए केंद्र सरकार ने (मीडियम स्टेपल) वाली कपास का एमएसपी 2,800 रुपये और (लांग स्टेपल) वाली कपास का एमएसपी 3,300 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।

उन्होंने बताया कि पिछले 20 दिनों में उत्पादक मंडियों में कपास की कीमतों में करीब 7.7 फीसदी की तेजी आ चुकी है। मंगलवार को अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव बढ़कर 37,000 से 37,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) हो गया जबकि 20 दिसंबर को इसका भाव घटकर 34,500 से 34,800 रुपये प्रति कैंडी रह गया था। दाम ऊंचे बने रहे तो निगम के खरीद केंद्रों पर आवक कम ही रहेगी लेकिन अगर कीमतों में गिरावट आई तो आवक बढ़ जाएगी।

उन्होंने बताया कि निगम को रिजर्व स्टॉक के लिए करीब 20 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) कपास की खरीद तो करनी ही होगी। पिछले साल दाम एमएसपी से ऊपर होने के बावजूद निगम ने 13 लाख गांठ कपास की खरीद बाजार मूल्य पर की थी।

उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की मंडियों में कपास की दैनिक आवक 30,000 गांठ की हो रही है। उधर गुजरात और महाराष्ट्र की मंडियों में आवक क्रमश: 65,000 और 55,000 गांठ की आवक हो रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी पिछले बीस दिनों में कपास की कीमतों में तेजी आई है। (Business Bhaskar.....R S Rana)

आवक कम होने से तेजी आने लगी दालों में

दालों की कीमतों में फिर से तेजी आने लगी है। पिछले सप्ताह भर में दालों की थोक कीमतों में 250 से 700 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। उत्पादक मंडियों में दलहन की आवक में कमी आई है जबकि रुपये के मुकाबले डॉलर की मजबूती से आयात पड़ता महंगा पड़ रहा है।

दालों की घरेलू मांग भी पहले की तुलना में बढ़ी है इसीलिए मौजूदा कीमतों में और भी तेजी की संभावना है। दलहन के थोक कारोबारी निशांत मित्तल ने बताया कि दालों की मांग पहले की तुलना में बढ़ गई है जबकि उत्पादक मंडियों में आवकों में कमी आई है। रुपये के मुकाबले डॉलर की मजबूती से आयात पड़ता महंगा होने के कारण आयात सौदे भी सीमित मात्रा में हो रहे हैं।

हालांकि अब डॉलर थोड़ा कमजोर हुआ है। आयात कम हो पाने के कारण दालों की थोक कीमतों में पिछले सप्ताहभर में 250 से 700 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। दिल्ली में उड़द दाल का भाव बढ़कर 4,100 से 6,200 रुपये, अरहर दाल का 4,900 से 6,300 रुपये, मूंग दाल का 5,000 से 6,400 रुपये, मसूर दाल का भाव 3,450 से 4,400 रुपये और चना दाल का 3,900 से 4,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गया।

बंदेवार दाल एंड बेसन मिल के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनिल बंदेवार ने बताया कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और अन्य राज्यों की मंडियों में दालों की आवकों में कमी आई है। रबी दलहन की आवक मार्च-अप्रैल में बनेगी तथा रबी में बुवाई में कमी आई है जिससे तेजी को बल मिल रहा है। महाराष्ट्र की मंडियों में उड़द का भाव बढ़कर 3,700 रुपये, अरहर का भाव 3,400-3,700 रुपये, मूंग का भाव 4,300 रुपये और चने का भाव 3,700 रुपये प्रति क्विंटल हो गया।

रिक्का ग्लोबल इम्पैक्स लिमिटेड के डायरेक्टर कर्ण अग्रवाल ने बताया कि रुपये के मुकाबले डॉलर मजबूत होने से नवंबर-दिसंबर के दौरान आयात सौदे कम हुए हैं। जबकि तंजानिया की मूंग मुंबई पहुंच 4,175 रुपये और पेडीसेवा की 4,560 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। लेमन अरहर का भाव 3,400 रुपये, उड़द एसक्यू 3,800 रुपये और आस्ट्रेलियाई चने का भाव 3,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है।

सूत्रों के अनुसार चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अक्टूबर के दौरान 16.59 लाख टन दलहन का आयात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 16.29 लाख टन का आयात हुआ था। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में दलहन की बुवाई घटकर 140.66 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 142.38 लाख हैक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। (Business Bhaskar.....R S Rana)

प्याज ने बिगाड़ा किसानों और निर्यातकों का साज

पिछले साल ग्राहकों की आंखों से आंसू निकालने वाला प्याज इस बार किसानों, कारोबारियों और निर्यातकों को रुला रहा है। भारी पैदावार होने से मंडियों में प्याज की भरमार है, जिसके चलते किसानों को फसल के सही भाव नहीं मिल रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीन और मिस्र का सस्ता प्याज भी भारतीय कारोबारियों का सिरदर्द बना हुआ है। अगले महीने से मंडी में नए प्याज की आवक शुरू होने के बाद कीमतों में और गिरावट की आशंका है। महाराष्ट्र की प्रमुख थोक मंडी पुणे, नासिक, मुंबई और अहमदनगर में प्याज का दाम घटकर 250 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच गया है। फिलहाल थोक मंडियों में प्याज 250 रुपये से 600 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बिक रहा है।
थोक बाजार में प्याज के भाव का असर खुदरा बाजार पर भी दिख रहा है। कुछ हफ्ते पहले तक 22 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर बिकने वाले प्याज का दाम खुदरा बाजार में अब 10 रुपये प्रति किलोग्राम रह गया है। नवी मुंबई एपीएमसी मार्केट के प्याज व्यापारी मोहनलाल पुतलानी के अनुसार बाजार में प्याज की आवक बहुत ज्यादा है जबकि ग्राहक नहीं के बराबर हैं। प्याज के गिरते भाव से किसानों के साथ निर्यातक भी परेशान हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में घरेलू प्याज की मांग कमजोर पड़ी है। नेफेड से मिली जानकारी के अनुसार अप्रैल-दिसंबर 2011 में देश से कुल 10,37,978 टन प्याज का निर्यात हुआ है, जो पिछले साल की सामान्य अवधि से 23 फीसदी कम है। अप्रैल-दिसंबर 2010 में 13,40,772 टन प्याज का निर्यात किया गया था।
कारोबारियों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीन और मिस्र से आने वाला प्याज 200 डॉलर प्रति टन से भी कम कीमत पर बिक रहा है। जबकि भारतीय प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 250 डॉलर प्रति टन है। कारोबारियों का कहना है कि अब भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में देसी प्याज के दाम ज्यादा हैं, जिस कारण ग्राहक नहीं मिल रहे हैं।
पिछले साल प्याज के ऊंचे भाव देखते हुए किसानों ने इसकी ज्यादा खेती की। मौसम अनुकूल होने के कारण भी पैदावार बढ़ी है लेकिन किसानों के लिए लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है। पुणे मंडी में प्याज लाने वाले किसानों का कहना है कि उन्हें खरीदार नहीं मिल रहे हैं और मजबूरी में औने पौने दाम पर माल बेचना पड़ रहा है।
किसानों की बात मानी जाए, तो कारोबारी 100 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर भी प्याज खरीदने को तैयार नहीं हैं।
एपीएमसी अधिकारियों के अनुसार पिछले तीन दिन में महाराष्ट्र की विभिन्न मंडियों में 40 हजार टन से ज्यादा प्याज आया है। आने वाले समय में आवक और बढ़ेगा। ऐसे में प्याज का भाव और गिरने की आशंका है।
थोक मंडियों में दो-ढाई रुपये किलो बिकने वाला प्याज मुंबई के खुदरा बाजार में 10-20 रुपये किलो के भाव बिक रहा है। इस पर कांग्रेस के प्रवक्ता संजय निरुपम ने राज्य के कृषि मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटिल से मुलाकात की है। उन्होंने उम्मीद जताई कि मार्च के बाद दाम घटने शुरू हो जाएंगे। (BS Hindi)

लाख हुए जतन, पर ग्वार में जारी रहा उफान

ग्वार की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने की वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) की सभी कोशिशें विफल साबित होती दिख रही हैं। वायदा और हाजिर दोनों बाजारों में ग्वार की कीमतें हर दिन रिकॉर्ड बना रही हैं। बुधवार को हाजिर और वायदा दोनों बाजारों में ग्वार गम की कीमतें 30,000 रुपये प्रति क्ंिवटल और ग्वार की कीमतें 9,000 रुपये प्रति क्ंिवटल को पार कर गईं।
एनसीडीईएक्स पर ग्वार गम का मार्च अनुबंध बुधवार को चार फीसदी बढ़त के साथ 30,123 रुपये प्रति क्ंिवटल पर पहुंच गया जबकि दूसरे अनुबंध भी 30 हजार रुपये प्रति क्विंटल के आसपास बोले जा रहे हैं। एनसीडीईएक्स पर ग्वार का मार्च अनुबंध बढ़कर 9,127 रुपये और फरवरी अनुबंध 9,015 रुपये प्रति क्ंिवटल पर पहुंच गया। ग्वार के सबसे बड़े हाजिर बाजार जयपुर मंडी में भी ग्वार गम की कीमतें 30 हजार और ग्वार 9,000 रुपये प्रति क्विंटल के मनोवैज्ञानिक स्तर को छू गईं।
ग्वार की फर्राटा भरती कीमतों को मार्जिन का लगाम और एफएमसी का चाबुक भी नहीं रोक पाया है। एनसीडीईएक्स के तीन बार विशेष मार्जिन बढ़ाए जाने के बावजूद कीमतों में बढ़ोतरी जारी है। इस समय ग्वार और ग्वार गम के सौदों पर कुल 40 फीसदी मार्जिन है, जिसमें 10 फीसदी विनिमय मार्जिन और 30 फीसदी विशेष मार्जिन शामिल है। मार्जिन बढ़ाने के साथ ही एफएमसी ने ग्वार सौदों की जांच के लिए एक समिति भी गठित की थी, जिसने ऐसे कारोबारियों की पहचान भी की जो ग्वार सौदों में गड़बड़ी कर कीमतें बढ़ा रहे थे। बावजूद पिछले एक महीने में ग्वार और ग्वार गम के वायदा सौदों में लगभग हर दिन सर्किट लगा है और एक महीने में कीमतों में करीब 55 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। पिछले एक साल में ग्वार गम की कीमतों में 320 फीसदी और ग्वार की कीमतों में 250 फीसदी बढ़ोतरी हो चुकी है।
ग्वार गम और ग्वार की बढ़ती कीमतों की वजह निर्यात मांग अधिक होने, कमजोर पैदावार और सटोरियों की दिलचस्पी को बताया जा रहा है। ऐंजल कमोडिटी की वेदिका नार्वेकर कहती हैं कि विदेशों में भारी मांग के कारण कीमतें बढ़ रही हैं, लेकिन मौजूदा स्तरों पर पैसा लगाना मेरे विचार से सही नहीं होगा। एफएमसी ग्वार की कीमतों को इस तरह नहीं बढऩे देगा और संभव है कि वह जल्द ही ग्वार के वायदा सौदों पर ट्रेड टू ट्रेड का नियम लागू कर दे यानी 100 फीसदी मार्जिन।
अप्रैल से सितंबर के बीच ग्वार गम का निर्यात 68 फीसदी बढ़ा है। इस दौरान भारत से 3,710.83 करोड़ रुपये का 2.85 लाख टन ग्वार गम का निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल 1.70 लाख टन ग्वार गम का निर्यात हुआ था। माना जा रहा है कि 2011 में ग्वार कम का 4.03 लाख टन का हुआ है। कारोबारियों की मानी जाए तो अमेरिका, रूस, चीन, जर्मनी, इटली और ऑस्ट्रेलिया में ग्वार की जोरदार मांग बनी हुई है।
राजस्थान सरकार द्वारा मंगलवार देर शाम जारी दूसरे अग्रिम अनुमान में कहा गया है कि ग्वार का कुल उत्पादन बढ़कर 12.09 लाख टन पर पहुंच जाएगा। सितंबर में जारी पहले अग्रिम अनुमान में 11.36 लाख टन उत्पादन का अनुमान था। राज्य में ग्वार का औसत रकबा बढ़कर 30.9 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है। (BS Hindi)