नई दिल्ली November 10, 2011
उपभोक्ता तेजी से बढ़ रही मुद्रास्फीति से परेशान हैं, वहीं दैनिक उपभोग में काम आने वाले ज्यादातर खाद्य उत्पादों की थोक और खुदरा कीमतों के बीच अंतर बढ़ रहा है। इसकी वजह परिवहन, श्रम लागत और कमीशन में बढ़ोतरी के चलते ऊंची ट्रॉन्जेक्शन लागत है। ज्यादातर दैनिक उपभोग के खाद्य उत्पादों की खुदरा कीमतें थोक कीमतों की तुलना में तेजी से बढ़ रही हैं। अक्टूबर 2010 और 2011 के बीच 13 प्रमुख खाद्य उत्पादों की थोक और खुदरा कीमतों के तुलनात्मक अध्ययन से पता चलता है कि 9 उत्पादों की खुदरा कीमतें थोक कीमतों से ज्यादा बढ़ी हैं। उदाहरण के लिए नई दिल्ली के थोक बाजार में गेहूं की कीमतें एक वर्ष पहले की तुलना में 1.62 फीसदी गिरी हैं, लेकिन खुदरा कीमतें 7.14 फीसदी बढ़ी हैं। वहीं, प्याज की थोक कीमतों में 30 फीसदी गिरावट आई है, लेकिन खुदरा कीमतें केवल 12 फीसदी कम हुई हैं। खाद्य मुद्रास्फीति 22 अक्टूबर को समाप्त हुए सप्ताह में बढ़कर 9 महीनों के उच्चतम स्तर 12.21 फीसदी पर पहुंच गई। जिंस विशेषज्ञ और केयर रेटिंग के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि 'ऊंची ट्रॉन्जेक्शन लागत के कारण खुदरा कीमतें ज्यादा हैं। खुदरा विके्रता, विशेष रूप से सब्जी विक्रेताओं को माल के परिवहन पर ज्यादा पैसा देना पड़ रहा है। इसी तरह श्रम लागत भी बढ़ चुकी है। खुदरा विक्रेताओं द्वारा वसूला जाने वाला शुल्क मूल्य के अनुसार (एड वेलोरम) है। इसलिए कीमतों में बढ़ोतरी के साथ ही कमीशन भी बढ़ जाता है। अच्छी पैदावार से मांग-पूर्ति का संतुलन सुधरा है, लेकिन मुनाफाखोरी के कारण उपभोक्ताओं को ज्यादा पैसा चुकाना पड़ रहा है।' सबनवीस ने खुदरा कीमतों में भारी कमी की संभावना से इनकार कर दिया। हालांकि बेस रेट प्रभाव के कारण थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित मुद्रास्फीति में दिसंबर में मामूली कमी आ सकती है। अनाज की बढ़ती कीमतों के कारण ही इनके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में अच्छी खासी बढ़ोतरी की गई है।आजादपुर मंडी से सब्जी खरीदकर मॉडल टाउन में बेचने वाले एक सब्जी विक्रेता ने बताया कि अब उसे 250 किलोग्राम सब्जी लाने के लिए 150 रुपये भाड़ा देना पड़ता है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 120 रुपये था। इसके अलावा बाजार से वाहन में सब्जी चढ़ाने वाले मजदूरों ने मजदूरी 60 रुपये से बढ़ाकर 100 रुपये कर दी है। ज्यादा खुदरा विक्रेता असंगठित हैं और उनका कारोबार सीमित होता है। इसलिए वे ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने का प्रयत्न करते हैं। खाद्य नीति विशेषज्ञ और कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के चेयरमैन अशोक गुलाटी ने कहा कि खुदरा विक्रेताओं की समस्या यह है कि उनकी बिक्री की मात्रा बहुत कम होती है। 'इसलिए वे 20-25 फीसदी मार्जिन वसूलते हैं। संगठित खुदरा विक्रेताओं और किसानों को एक समान मंच पर लाना ही इसका एकमात्र हल है। इससे बिचौलिए समाप्त हो जाएंगे, जिससे खुदरा कीमतें नीचे आएंगी।' गुलाटी इसके लिए मदर डेयरी का उदाहरण देते हैं, जो सीधे किसानों से दूध खरीदती है। उन्होंने कहा, 'हमें एजेंटों को इस श्रृंखला से हटाने, बर्बादी रोकने और लॉजिस्टिक में सुधार लाने की जरूरत है। छोटे खुदरा विक्रेताओं को संगठित होने की जरूरत है, जिससे उनकी बिक्री मात्रा बढ़े और मार्जिन कम हो।' (BS Hindi)
14 नवंबर 2011
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