कॉफी उद्योग की मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए उत्पादन में बढ़ोतरी करना आवश्यक है। उत्पादन बढऩे पर ही कॉफी उद्योग फायदेमंद रह सकता है। इस उद्योग में मजदूरी और दूसरी लागत बढऩे के कारण कुल लागत काफी ज्यादा हो गई है।
यहां कॉफी कांफ्रेंस में वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव विजयलक्ष्मी जोशी ने कहा है कि श्रम लागत और कच्चा मूल्य में हो रहे इजाफा और मौसम की प्रतिकूलता से होने वाले नुकसान को देखते हुए इस व्यवसाय को फायदेमंद बनाए रखने के लिए उत्पादन में बढ़ोतरी करने की जरूरत होगी।
हमारी उम्मीद के मुताबिक उत्पादन में बढ़ोतरी नहीं हो पाई है। वह युनाइटेड प्लांटर्स एसोसिएशन ऑफ सदर्न इंडिया कर्नाटक प्लांटर्स द्वारा आयोजित सम्मेलन में भाग लेने आई थीं। कॉफी बोर्ड के चेयरमैन जावेद अख्तर ने कहा कि भारत का कॉफी उत्पादन वर्ष 2000-01 के दौरान तीन लाख टन पहुंचने के बाद से ही कमोबेश स्थिर है।
बीच के वर्षों में उत्पादन में भारी गिरावट के बाद वर्ष 2010 में दुबारा उत्पादन तीन लाख टन हो गया। अगर हम निर्यात और घरेलू बाजार की जरूरतों के अनुपात को बनाकर रखना चाहते हैं तब हमें कम-से-कम उत्पादन में पांच फीसदी सालाना बढ़ोतरी करने की जरूरत होगी। निश्चित तौर पर यह एक बहुत बड़ी चुनौती होगी। फिलहाल कॉफी की पैदावार प्रति हेक्टेयर 838 किलो है।कॉफी निर्यात में कमी संभवनई दिल्ली भारत से वर्ष 2011-12 विपणन वर्ष के दौरान कॉफी निर्यात 24 फीसदी गिरकर 42 लाख बोरी (60 किलो प्रति बोरी) रह सकता है। यह जानकारी अमेरिका के कृषि विभाग (यूएसडीए) ने दी है। कॉफी वर्ष अक्टूबर से लेकर सितंबर तक चलता है। देश से कॉफी विपणन वर्ष 2010-11 के दौरान चाय का निर्यात 55 लाख बोरी रहा था।
यूएसडीए की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत से वर्ष 2010-11 में कॉफी का निर्यात रिकॉर्ड 55 लाख रहा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कॉफी की कीमत ज्यादा होने से भारतीय कॉफी की नई मांग निकल आई लेकिन वर्ष 2011-12 के दौरान कॉफी का निर्यात घटकर 42 लाख बोरी रह गया। (business Bhaskar)
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