मुंबई November 03, 2011
दुग्ध उत्पाद निर्यातकों को आंशिक राहत देते हुए विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने एक बार फिर से केसिन और केसिन उत्पादों के निर्यात की अनुमति दे दी है, लेकिन इसके लिए 1053.62 मीट्रिक टन (एमटी) की सीमा निर्धारित की गई है। दूध एवं दुग्ध उत्पादों की बढ़ती लागत की वजह से फरवरी 2011 में इस निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया गया था। हालांकि अधिकारियों ने यह स्पष्ट किया है कि यह राहत 18 फरवरी 2011 से पहले निर्मित केसिन के लिए ही है। 18 फरवरी 2011 को ही दुग्ध और दुग्ध उत्पादों के निर्यात को रोक दिया गया था। इस घटनाक्रम से नजदीकी से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, 'काफी विचार-विमर्श के बाद केसिन निर्यात की अनुमति का फैसला लिया गया है। हालांकि घरेलू बाजार में दूध के लिए मांग का दबाव बना हुआ है और ऐसी स्थिति में सामान्य तरह से निर्यात की अनुमति नहीं दी जा सकेगी।' डीजीएफटी ने कुछ महीने पहले स्किम्ड मिल्क पाउडर के आयात का कोटा 30,000 एमटी से बढ़ा कर 50,000 एमटी कर दिया। केसिन एक तरह का प्रोटीन है जो दूध में पाया जाता है। केसिन का अनाज, विटामिन और खनिज, टेबलेट, इंस्टैंट ड्रिंक, पोषक भोजन, पास्ता, इन्फैंट न्यूट्रीशन, सॉस, सूप, ब्रेड, केक उत्पादों, मिठाई एवं पेस्ट्री, दही, आइसक्रीम, पुडिंग्स एवं प्रसंस्करित पनीर आदि में इस्तेमाल किया जाता है। इसका उपयोग पेंट, ग्लूज, कॉस्मेटिक, लेदर केमिकल, प्लास्टिक, एल्युमीनियम फोइल, सेफ्टी मैच, पिगमेंट्स, कोटेड पेपर, प्लाइवुड इंडस्ट्रीज, पेपर कोन्स, पेपर ट्यूब्स, पेपर केमिकल आदि जैसे औद्योगिक इस्तेमाल में भी होता है। दूध की कीमतें पिछले एक साल में खुदरा बाजार में लगभग 20 फीसदी और थोक बाजार में 12 फीसदी तक बढ़ी हैं जिससे खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिला है। खाद्य मुद्रास्फीति फरवरी में 11.05 फीसदी पर थी, जब दूध और दूध से बने उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध का फैसला लिया गया था। मुद्रास्फीति सूचकांक में दूध एवं दूध से बने उत्पादों की भागीदारी 17-18 फीसदी की है। भारत का केसिन निर्यात लगभग 10,000 टन का है और मुख्य तौर पर इसे अमेरिका, जर्मनी और कोरिया जैसे देशों को भेजा जाता है। (BS Hindi)
05 नवंबर 2011
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