नई दिल्ली November 14, 2011
एक ओर जहां महंगाई में कमी लाने के लिए सरकार जूझ रही है, वहीं कई कृषि विशेषज्ञों को लगता है कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में उछाल में स्थानीय ऊंची करों की बड़ी भूमिका है। ऐसे कर सामान्यत: राज्य सरकारें वसूलती हैं, लेकिन वास्तव में इससे कीमतें बढ़ती हैं और बाजार कीमतें विकृत हो जाती हैं।कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने हाल में इसका एक समाधान सामने रखा है। अगर कोई राज्य कृषि उत्पादों पर चरणबद्ध तरीके से कर घटाने का फैसला लेते हैं तो वैसे राज्यों के लिए न्यूनतम समर्थन में बढ़ोतरी कर इसकी भरपाई का सुझाव आयोग ने दिया है।दूसरा समाधान राज्यों को कृषि उत्पाद विपणन अधिनियम में संशोधन के लिए प्रोत्साहित करने का है, जिससे किसान कुछ लोगों द्वारा नियंत्रित ढांचे से मुक्त हो जाएंगे और निजी खरीदार सीधे किसानों से खरीदारी कर पाएंगे। हालांकि कुछ राज्यों ने इस बाबत कदम बढ़ाए हैं, लेकिन ज्यादातर राज्य मंडियों पर नियंत्रण ढीला करने के प्रति अनिच्छुक हैं।कुछ कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि एपीएमसी अधिनियम को समाप्त करना कॉरपोरेट कंपनियों की पिछले दरवाजे की कोशिश रही है ताकि वह भारतीय कृषि पर नियंत्रण स्थापित कर सकें और किसानों से सीधे उत्पाद खरीद सकें।चाहे जिस तरह का तर्क हो, लेकिन अनाज का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि पंजाब व हरियाणा में इस साल कृषि उत्पादों खास तौर से अनाज पर कर सबसे ज्यादा है। ये दोनोंं राज्य अनाज से सबसे बड़े उत्पादक राज्य हैं।साल 2011-12 के गेहूं खरीद सीजन में (जो मार्च में समाप्त होगा) पंजाब में स्थानीय कर देश भर में सबसे ज्यादा रहा। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि यहां कुल समर्थन मूल्य का 13.5 फीसदी कर चुकाना होता है। ऐसे में जब गेहूं का एमएसपी 1170 रुपये प्रति क्विंटल है तो इस पर कुल 158 रुपये कर लगता है और इस तरह से उपभोक्ताओं व निजी खरीदारों के लिए यह महंगा हो जाता है।हरियाणा में एमएसपी का 10.5 फीसदी कर वसूला जाता है। पंजाब और हरियाणा देश में उत्पादित होने वाले कुल गेहूं में 80 फीसदी की भागीदारी करता है। न सिर्फ गेहूं के मामले में करों की दरें ऊंची हैं बल्कि चावल के साथ भी ऐसा ही है। (BS Hindi)
15 नवंबर 2011
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