बई November 18, 2011 |
चीनी मिलों द्वारा गन्ने की पेराई में देरी करने और इसकी अंतिम कीमतों पर अनिश्चितता बरकरार रहने के कारण देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में किसानों ने गन्ने की बिक्री गुड़ बनाने वाली इकाइयों (कोल्हू) को 220 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर करनी शुरू कर दी है।
सबसे रोचक बात यह है कि गन्ने की यह कीमत राज्य सरकार द्वारा हाल ही में घोषित राज्य परामर्श मूल्य (सैप) 250 रुपये प्रति क्विंटल से 20-30 रुपये कम है। किसान गेहूं की बुआई के लिए खेतों को खाली कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के किसान भी गुड़ बनाने वाली इकाइयों को गन्ने की बिक्री कर रहे हैं। कोल्हू सहजता से अगेती किस्मों के पिछले साल के सैप 205 रुपये प्रति क्विंटल से 15 रुपये अधिक भुगतान कर रहे हैं। इस कीमत पर गुड़ निर्माता इकाइयों की उत्पादन लागत 980 रुपये प्रति 40 किलोग्राम बैठती है। जबकि गुड़ की वर्तमान कीमत 940-950 रुपये प्रति 40 किलोग्राम है। हालांकि गुड़ बनाने वाली इकाइयां गन्ने के अपशिष्ट को कागज मिलों को बेचकर घाटे की भरपाई करती हैं और कुछ लाभ कमाती हैं।
हालांकि चीनी मिलों के लिए अगेती किस्म के गन्ने की पेराई नुकसानदेह रिकवरी के कारण बूते से बाहर है। अगेती किस्म की रिकवरी 7.0-8.0 फीसदी होती है, जो ठंड बढऩे के साथ बढ़ती है। इसके चलते खड़े गन्ने में शर्करा की मात्रा ज्यादा होती है। उत्तर प्रदेश में 9.2-9.3 फीसदी वार्षिक औसत रिकवरी के बावजूद चीनी मिलें अगेती किस्म की खरीद में उत्साह नहीं दिखा रही हैं।
हालांकि समान गन्ने से मिलों को कम रिकवरी मिलती है, वहीं गुड़ बनाने वाली इकाइयों की रिकवरी 9.5 फीसदी होती है, क्योंकि ये अपशिष्ट में बिल्कुल भी रस नहीं छोड़ती हैं।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महासचिव अविनाश वर्मा ने कहा,'उत्तर प्रदेश में चीनी मिलें आमतौर पर नवंबर के तीसरे सप्ताह में पेराई शुरू करती हैं। हालांकि यह कहना सही नहीं होगा कि किसान चीनी मिलों के बजाए कोल्हू को गन्ने की आपूर्ति करने के विकल्प का इस्तेमाल कर रहे हैं। चीनी मिलों ने अभी पेराई शुरू नहीं की है। पैसे की जरूरत वाले किसानों के पास कोल्हू को आपूर्ति के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है।'
उन्होंने कहा कि हालांकि इस साल एक नया रुझान उभरा है, बहुत से कोल्हू पश्चिमी उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश पलायन कर गए हैं। इसकी वजह मप्र में गन्ने की बंपर उपलब्धता है। वहीं, मध्य प्रदेश में कोल्हू को चीनी मिलों से प्रतिस्पर्धा नहीं करनी पड़ती, क्योंकि वहां बड़ी पेराई इकाइयां नहीं हैं।
मध्य प्रदेश में 10-12 लघु चीनी विनिर्माता इकाइयां हैं। लेकिन वे राज्य में उपलब्ध पूरे गन्ने की पेराई नहीं कर पाती हैं। इसके अलावा मध्य प्रदेश में गन्ने की औसत रिकवरी 10.5-11 फीसदी होती है, जो उत्तर प्रदेश में 9.2-9.3 फीसदी रिकवरी से काफी अधिक है। इसलिए मध्य प्रदेश में कोल्हू अन्य राज्यों में अपने समकक्षों की तुलना में ज्यादा फायदे की स्थिति में हैं।
हापुड़ (उत्तर प्रदेश) स्थित गुड़ निर्माता इकाई दुर्गादास नारायणदास के मालिक विजेंद्र कुमार बंसल ने कहा कि आमतौर पर चीनी मिलेें सीजन के प्रारंभ में बड़े किसानों को सूचीबद्ध करती हैं और सबसे पहले उनका गन्ना खरीदती हैं। छोटे और मझोले किसान अपने गन्ने की आपूर्ति कोल्हू को करने को आर्थिक दृष्टि से ज्यादा उचित पाते हैं। क्योंकि वे चीनी मिलों तक गन्ने को पहुंचाने के लिए गाड़ी/ट्रैक्टर किराए पर नहीं ले सकते। इसलिए वे अपने नजदीक के कोल्हू को गन्ने की आपूर्ति करने को प्राथमिकता देते हैं। इससे उन्हें तत्काल नकदी मिल जाती है, जिससे वे अगली फसल के लिए तिलहन या गेहूं, खाद और कीटनाशक खरीद सकते हैं।
बंसल ने कहा कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और बिहार समेत अन्य प्रमुख राज्यों में किसान कोल्हूओं को गन्ने की आपूर्ति करने को ज्यादा फायदेमंद पाते हैं। देशभर में इस साल गुड़ का उत्पादन 1 करोड़ टन के आसपास रहने की संभावना है। हालांकि बंसल ने कहा कि मॉनसून के बाद तेज पूर्वी हवाओं के कारण गन्ने की फसल पूरी तरह पकी नहीं है। इसलिए फसल की औसत उत्पादकता 9 फीसदी से ज्यादा नहीं होगी। (BS Hindi)
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