कोच्चि November 22, 2011
घरेलू बाजार में प्राकृतिक रबर की भारी किल्लत और देसी व वैश्विक बाजार के बीच कीमतों में बड़े अंतर के चलते टायर बनाने वाली अग्रणी कंपनियां थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम जैसे प्रमुख उत्पादक देशों में रबर के बागान के अधिग्रहण का विकल्प तलाश रही हैं। अग्रणी कंपनी अपोलो टायर्स ने तो लाओस में बागान का अधिग्रहण कर भी लिया है और एमआरएफ व जे के टायर्स जैसी कंपनियां इसी राह पर चलने की योजना बना रही हैं।कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए अपोलो टायर्स ने दक्षिण पूर्व एशिया में प्राकृतिक रबर के और बागानों के अधिग्रहण की योजना बनाई है। टायर के उत्पादन कुल लागत में लागत प्राकृतिक रबर का हिस्सा 50 फीसदी से ज्यादा होता है। कंपनी लाओस में 10,000 हेक्टेयर का बागान पहले ही अधिग्रहित कर चुकी है और इसकी योजना और अधिग्रहण करने की है। लाओस के बागान में पौधों को फिर से लगाने का काम जोरों पर है और अगले 5-6 साल में इनसे टैपिंग शुरू हो जाएगी। कीमत के बजाय रबर की उपलब्धता अब चिंता का विषय बन गई है। ऐसे में कंपनियों ने कुल जरूरत का 25 फीसदी अपने बागानों से पूरा करने की योजना बनाई है और यह काम कुछ वर्षों में पूरा हो जाएगा, ताकि लगातार आपूर्ति बनी रह सके। अपोलो टायर्स औसतन 16,000 टन प्राकृतिक रबर का इस्तेमाल एक महीने में करती है। अपोलो विदेश में बागानों के अधिग्रहण करने वाली पहली टायर कंपनी है। भारत में सालाना 2 लाख टन रबर की कमी है और इसकी भरपाई आयात के जरिए होती है।टायर निर्माता कंपनी एमआरएफ भी थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम जैसे देशों में रबर के बागानों का अधिग्रहण करना चाहती है ताकि कच्चे माल की बढ़ती लागत पर लगाम कसी जा सके। कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी। बढ़ती लागत को देखते हुए कंपनी रबर की खरीद के अलावा विदेश में अधिग्रहण और रबर के बागानों का प्रबंधन करने की योजना बना रही है। मौजूदा समय में एमआरएफ ज्यादातर रबर की खरीद या तो घरेलू बाजार में करती है या फिर इसका आयात करती है। कंपनी के एक अधिकारी ने कहा - अगर हम विदेश में रबर के बागान का प्रबंधन कर पाएंगे तो हम इसका फायदा भी उठा सकेंगे। यह पूछे जाने पर किस देश की तरफ कंपनी की नजरें हैं, तो उन्होंने कहा कि हमारी नजर थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम पर है। हालांकि उन्होंने इसकी समयावधि और सौदे के आकार समेत दूसरी सूचनाएं देने से मना कर दिया।लागत घटाने के लिए जेके टायर भी विदेश में बागानों के अधिग्रहण की संभावनाएं गंभीरता से तलाश रही हैं। कंपनी के आला अधिकारी ने कहा - हमारी योजना विदेश में बागानों का अधिग्रहण करने की है। हालांकि उन्होंने इस बाबत निवेश का ब्योरा नहीं दिया। आरपीजी ग्रुप की कंपनी सीएट टायर्स की भी योजना विदेश में बागानों के अधिग्रहण की है।देसी व विदेशी बाजार में रबर की कीमतों के बीच के बड़े अंतर और विदेशी बागानों की कम लागत भी टायर कंपनियों को इसमें निवेश के लिए उत्साहित कर रही है। पिछले तीन महीने से बेंचमार्क आरएसएस-4 किस्म की रबर की औसत कीमतें वैश्विक कीमतों के मुकाबले 20 रुपये प्रति किलोग्राम ज्यादा हैं। साल के ज्यादातर समय में भारतीय कीमतें विदेश के मुकाबले ज्यादा रही हैं और इससे टायर कंपनियों के मुनाफे पर भारी असर पड़ा है। (BS Hindi)
23 नवंबर 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें