मुंबई December 31, 2010
जिंस वायदा बाजार को प्रशासित करने वाले वायदा अनुबंध विनियमन अधिनियम के संशोधन की खातिर पेश किया जाने वाला विधेयक उपभोक्ता मंत्रालय से जुड़ी स्थायी समिति को सुपुर्द कर दिया गया है। विधेयक की स्वीकृति महत्वपूर्ण है क्योंकि जिंस वायदा बाजार आने वाले सालों में बड़ी छलांग लगाने के लिए तैयार है, लिहाजा बाजार नियामक को मजबूत बनाए जाने की दरकार है। इसके लिए उसके पास गलत कदम उठाने वालों को आर्थिक रूप से दंडित करने का अधिकार होना चाहिए और बाजार पर कड़ी निगरानी रखने के लिए पर्याप्त कर्मचारी भी होने चाहिए।सात साल पहले राष्ट्रीय स्तर के तीन ऑनलाइन एक्सचेंज को अनुमति देने के साथ जिंस वायदा बाजार की शुरुआत हुई थी और बुधवार का इसका सालाना वॉल्यूम 100 खरब रुपये को पार कर गया। ऐसी अभूतपूर्व बढ़त इस वास्तविकता से बावजूद है कि कई संस्थागत खिलाडिय़ों को बाजार में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई है और वायदा बाजार आयोग और ज्यादा अधिकार हासिल करने का इंतजार कर रहा है। अब तक बाजार में कोई बड़ी अनियमितता नजर नहीं आई है, लेकिन बढ़ते वॉल्यूम के साथ उचित निगरानी की दरकार महसूस हो रही है।उद्योग के एक अधिकारी ने कहा, 'हमें उम्मीद करनी चाहिए कि स्थायी समिति विधेयक को मंजूरी देने में ज्यादा वक्त नहीं लगाएगी क्योंकि पिछले साल कुछ समिति ने राय दी थी कि समय गंवाए बिना विधेयक को पारित किया जाना चाहिए क्योंकि आर्थिक रूप से दंडित करने की ताकत के बिना नियामक का होना और श्रमशक्ति की कमी बाजार के विकास के लिए ठीक नहीं है।Ó एफएमसी को जैसे ही अधिकार मिलेगा, वह कई नियम तैयार कर लेगा और इस बाबत शुरुआती काम हो चुका है। आज के समय में एफएमसी को एक्सचेंज से सीधे आंकड़े प्राप्त होते हैं, लेकिन इनकी निगरानी मुश्किल है क्योंकि नियामक के पास इन आंकड़ों को विश्लेषित करने के लिए पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं। जैसे ही संसद में यह विधेयक पारित हो जाएगा, सात साल पुराना जिंस वायदा बाजार में बड़ा बदलाव दिखेगा। बाजार में गहराई नजर आने लगेगी और तरलता भी बढ़ेगी क्योंकि नए उपकरण मसलन इंडेक्स ऐंड ऑप्शन ट्रेडिंग, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड के साथ-साथ नए कारोबारी मसलन बैंकों व संस्थागत निवेशकों को इस बाजार में प्रवेश की अनुमति मिल जाएगी। परिणामस्वरूप भारत में विभिन्न जिंस निवेश वर्ग के रूप में उभर सकता है, जो फिलहाल सोने-चांदी तक सीमित है।जिंस वायदा पर करीब साढ़े तीन दशक की पाबंदी के बाद साल 2003 में तीन राष्ट्रीय एक्सचेंज (ऑनलाइन) की स्थापना हुई और पिछले तीन साल से यह सालाना 40 फीसदी की रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। 2003 तक वायदा कुछ चुनिंदा जिंसों तक सीमित था और वह भी क्षेत्रीय स्तर पर ही होता था। रेलिगेयर कमोडिटीज के प्रेजिडेंट जयंत मांगलिक कहते हैं 'एक ओर जहां साल 2010 को जिंस वायदा बाजार के मजबूत आधार के तौर पर याद किया जाएगा, वहींं साल 2011 एक ऐसा साल होगा जब विकास योजनाएं क्रियान्वित होने की उम्मीद है।Ó जिंस वायदा बाजार में फिलहाल राष्ट्रीय स्तर के पांच एक्सचेंज हैं और कुछ और स्थापित होने की संभावना है।प्राइसवाटरहाउस के साझेदार कुमार दासगुप्ता कहते हैं - जिंस वायदा बाजार में पर्याप्त नकदी की कमी है और संस्थागत खिलाडिय़ों के प्रवेश से इस बाजार में पर्याप्त नकदी आएगी, जो इसे हेजिंग के लिहाज से भी आकर्षक बनाएगी। भारतीय उद्योग अब वैश्वीकृत हो गया है, लेकिन उसका मुख्य बाजार स्थानीय ही है। घरेलू बाजार में हेजिंग उपयोगी होगा क्योंकि मांग-पूर्ति के बीच की खाई और मुद्रा में होने वाले उतार-चढ़ाव की वजह से स्थानीय और विदेशी बाजारों की प्रवृत्ति अलग-अलग होने की संभावना है। धातुओं व अन्य उत्पादों में हेजिंग की खातिर भारतीय बाजार को आकर्षक बनाने के लिए वह नकदी वाले लंबी अवधि के अनुबंध को अनुकूल मानते हैं। (BS Hindi)
01 जनवरी 2011
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