January 10, 2011
किसी ने भी पश्चिमी देशों से आ रही उस खबर पर ध्यान नहीं दिया होगा जिसमें कहा गया है कि पुर्तगाल के घरेलू बाजार में पिछले कुछ सप्ताह से चीनी की भारी किल्लत हो गई है। पिछले तीन दशक के इतिहास में यह पहली घटना है कि किसी यूरोपीय देश में आवश्यक वस्तु का स्टॉक बिल्कुल शून्य पर पहुंच गया है। निश्चित रूप से यह घटना अपने आप में यूरोपीय संघ के लिए भी एक गंभीर चेतावनी की ओर इशारा है। चीनी के स्टॉक में कमी के चलते ही ब्रसेल्स ने चालू जाड़ा सीजन तक नए चीनी निर्यात लाइसेंस को स्वीकृति नहीं देने का फैसला किया है। किसी देश या देशों के समूह की ओर से स्थिति गंभीर होने के पहले ही तत्काल कदम उठाया जाना अहम बात है। यानी यूरोपीय संघ ने चीनी निर्यात के नए लाइसेंस जारी करने पर रोक लगा दी इससे अब घरेलू बाजार में चीनी की आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी और मूल्य वृद्घि को रोका जा सकेगा। इसके विपरीत अगर हम भारत की चर्चा करें तो यहां जब तक स्थिति काफी गंभीर नहीं हो जाती तब तक सरकार कोई कदम नहीं उठाती है। भारत और यूरोपीय संघ में यही अंतर है। भारत ने फिर से चीनी निर्यात की अनुमति दे दी है। आने वाले समय में घरेलू बाजार में स्टॉक कम पडऩे से दामों में बढ़ोतरी हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हमें अगस्त 2009 से मार्च 2010 की स्थिति को नहीं भूलना चाहिए जब घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में बेतहाशा वृद्घि हुई थी। ऊंची कीमतों से पीडि़त आम लोगों का गुस्सा जब सातवें आसमान पर पहुंच गया, तब सरकार जागी थी। कीमतों को कम करने के लिए आनन-फानन में कई कदम उठाए गए लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। वर्ष 2008-09 में चीनी का उत्पादन बेहद कम होने के बाद भी सरकार ने घरेलू अपूर्ति की ओर ध्यान नहीं दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि इसके भाव में भयानक तेजी आई। सितंबर 2010 में चीनी मिलों ने सरकार को भरोसा दिलाया कि इस बार चीनी उत्पादन घरेलू खपत की तुलना में बेहतर रहेगी। इसके चलते घरेलू बाजार में यह उपभोक्ताओं को पहले की तुलना में सस्ती दरों पर मिल रही है। पहले चीनी 32 रुपये या इससे भी ऊंची दरों पर मिल रही थी लेकिन सरकार ने जब गैर लेवी सीमा बढ़ाई तो घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में उल्लेखनीय कमी आई। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक अबिनाश वर्मा कहते हैं, 'ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सरकार ने गैर लेवी सीमा बढ़ाकर 200 टन प्रति ट्रेडर कर दिया और लेवी नियमों को काफी उदार बनाया। जनवरी 2011 तक स्टॉक सीमा करीब 17 लाख टन हो गया जबकि पिछले तीन साल तक यह केवल 14.5 लाख टन रहा था।Ó यानी उदार लेवी नियमोंं का फायदा मिला।इसमा के पूर्व अध्यक्ष ओम धनुका के मुताबिक भारत में चालू सीजन में चीनी का उत्पादन काफी बेहतर रहने की उम्मीद है इसका असर घरेलू बाजार की आपूर्ति पर पड़ेगा। दूसरी तरफ अब भारत के पास निर्यात योग्य चीनी भी है। इसमा के एक अन्य पूर्व चेयरमैन विवेक सारावगी कहते हैं कि वर्ष 2010-11 के चीनी सत्र में चीनी का उत्पादन करीब 2.55 करोड़ टन रहने की उम्मीद है। इसके बावजूद सरकार ने खुले लाइसेंस नियम (ओजीएल) के तहत केवल 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है जबकि चीनी उद्योग की मांग थी कि कि कम से कम 35 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति तो मिलनी चाहिए थी। इस समय वैश्विक बाजार में चीनी के दाम 30 साल की ऊंचाई पर है। ऐसे में यदि सरकार ज्यादा चीनी निर्यात की अनुमति देती है तो भारतीय चीनी उद्योग को इसका जबरदस्त फायदा मिल सकता है। उद्योग का कहना है कि सरकार के पास पर्याप्त चीनी स्टॉक है और ज्यादा उत्पादन होने की वजह से घरेलू बाजार में इसकी आपूर्ति को लेकर कोई संकट नहीं है। इस साल चीन में भी चीनी की आपूर्ति का संकट है। घरेलू उत्पादन गिरने की वजह से चीन को करीब 30 लाख टन चीनी आयात की जरूरत हो सकती है। इसी तरह अमेरिका ने भी 3,00,000 टन चीनी आयात करने का फैसला किया है। ऑस्ट्रेलिया में भी बाढ़ के चलते चीनी उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। ऐसे में वैश्विक बाजारों में फिलहाल चीनी की जबरदस्त मांग है और इसके दामों में भी तेजी आ रही है। (BS Hindi)
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