बेंगलुरु January 11, 2011
मौजूदा वर्ष (2010-11) में 168 लाख टन दाल उत्पादन का सरकारी लक्ष्य शायद पूरा न हो पाए, क्योंकि अरहर दाल के मुख्य उत्पादक राज्यों में से एक कर्नाटक विभिन्न तरह की समस्याओं से जूझ रहा है। ज्यादा बारिश और बीमारियों के हमले से मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में अरहर की फसल को काफी ज्यादा नुकसान हुआ है। देश में कुल दलहन ïउत्पादन में कर्नाटक करीब 10 फीसदी की भागीदारी करता है और अरहर यहां की मुख्य फसल है।साल 2010 के खरीफ सीजन में रिकॉर्ड 8.33 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अरहर की बुआई हुई थी जबकि एक साल पहले बुआई का रकबा 7.5 लाख हेक्टेयर था। राज्य में अरहर उत्पादन का ज्यादातर हिस्सा पैदा करने वाले क्षेत्र गुलबर्गा में 4.8 लाख हेक्टेयर में इसकी बुआई हुई थी। बीजापुर, बागलकोट, बीदर और रायचूर में भी इस साल रकबे में बढ़ोतरी देखी गई थी, लिहाजा बंपर पैदावार की उम्मीद बंध रही थी।राज्य कृषि विभाग के प्रारंभिक अनुमानों के मुताबिक, इस साल 14.7 लाख टन दाल उत्पादन की संभावना है। इनमें से 4 लाख टन अरहर के उत्पादन की संभावना जताई गई है जबकि पिछले साल 2.82 लाख टन अरहर का उत्पादन हुआ था। यहां औसत उत्पादन प्रति हेक्टेयर करीब 5 क्विंटल का होता है। हालांकि यह आकलन अचानक बदल गया है क्योंकि दिसंबर महीने में ज्यादा बारिश और नमी आने से फसलों पर असर पड़ा है। इसके अलावा स्टर्लिटी मोजाइक डिजीज (एसएमडी) के प्रकोप से भी राज्य के कई हिस्सों में फसल खराब हुई है। गुलबर्गा, अफजलपुर, अलंद और जेवारगी मेंं बीमारी की वजह से काफी नुकसान का पता चला है। इन तालुकों में करीब 45 फीसदी फसल बर्बाद हो गई है।इसके अतिरिक्त सेदम, चीतापुर और चिंतौली तालुका में भारी बारिश की वजह से करीब 50 फीसदी फसल बर्बाद हुई है। इस साल औसत उत्पादन 4-6 क्विंटल से गिरकर2-3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पर आ जाने की आशंका है। कर्नाटक राज्य रेडग्राम ग्रोअर्स एसोसिएशन के अनुमान के मुताबिक, इस साल अरहर का उत्पादन 12 लाख टन से 15 लाख टन के बीच रहने की संभावना है।राज्य के कृषि विभाग के अधिकारियों ने कहा - प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में अरहर की कटाई शुरू हो गई है और जनवरी के आखिर तक यह जारी रहेगा। एसएमडी बीमारी से अरहर की फसल को हुए नुकसान व इसकी पैदावार का सही अंदाज लगाना अभी जल्दबाजी होगी।इस बीच, खुले बाजार में कीमतों में भारी गिरावट आई है और मौजूदा समय में यह गुणवत्ता के मुताबिक 2500 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक रहा है, जो पिछले साल के मुकाबले 44 फीसदी की गिरावट दर्शाता है। हालत यह है कि कीमत फिलहाल सरकार द्वारा इस साल घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 3000 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे है।कर्नाटक प्रदेश रेडग्राम एसोसिएशन के अध्यक्ष बासवराज इंगिन के मुताबिक, सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद केंद्रों के अभाव की वजह से ही कीमतों में गिरावट आई है क्योंकि निजी कारोबारी एमएसपी से नीचे का भाव बता रहे हैं। किसानों के लिए उम्मीद का एकमात्र सहारा दक्षिण कर्नाटक का अरहर बोर्ड था, लेकिन इस साल बोर्ड ने अभी तक खरीद केंद्र नहीं खोला है।किसानों ने राज्य व केंद्र सरकार दोनों से तत्काल खरीद केंद्र खोलने की मांग की है, ताकि किसानों को अपने उत्पाद की बेहतर कीमत मिल सके। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने किसानों के लिए 500 रुपये प्रति क्विंटल के प्रोत्साहन का ऐलान किया था, लेकिन उन्हें इसका कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है क्योंकि इस साल कोई भी सरकारी खरीद केंद्र अभी तक नहीं खुला है। किसानों ने राज्य सरकार से मांग की है कि निजी कारोबारियों को एमएसपी से कृषि उत्पाद खरीदने से रोकने के लिए वह कानून बनाए। (BS Hindi)
12 जनवरी 2011
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