ग्राहकों पर दोतरफा मार - मौजूदा समय में चांदी के भाव आसमान पर बगैर हालमार्क चांदी के गहने में शुद्धता की गांरटी नहीं
चांदी के गहनों की खरीद में ग्राहकों को दोतरफा मार सहनी पड़ रही है। एक तो चांदी के भाव आसमान छू रहे हैं। दूसरे, चांदी के गहने खरीदने पर ग्राहक को शुद्ध चांदी केवल 40 से 60 फीसदी मिल पाती है। जागरूकता के अभाव में ग्राहक बगैर हालमार्क चांदी के गहने खरीद लेता है। हालांकि, उसको बेचने या फिर उसका गहना दोबारा बनवाने पर कुल मात्रा में से 40 से 60 फीसदी ही चांदी मिल पाती है। यही कारण है कि कृत्रिम (आर्टिफिशियल) गहनों की मांग बढ़ रही है।
एमएमटीसी लिमिटेड के हालमार्किंग डिवीजन के उपमहाप्रबंधक संजय आनंद ने 'बिजनेस भास्कर' को बताया कि जागरूकता न होने के कारण ग्राहक बगैर हालमार्क चांदी के गहने खरीद लेते हैं। इसमें शुद्धता की कोई गांरटी नहीं होती है, इसलिए बगैर हालमार्क चांदी के गहनों को बेचने या फिर दोबारा गहने बनाने पर ग्राहक को भारी घाटा उठाना पड़ता है। वहीं, हालमार्क का टेक लगे चांदी के गहनों में शुद्धता 92.5 फीसदी होती है। इसलिए ग्राहक को हालमार्क लगे चांदी के गहने, सिक्के, बर्तन या मूर्ति ही खरीदनी चाहिए।
एच के इंक. की सीईओ नीता जग्गी ने बताया कि बगैर हालमार्क चांदी के गहनों में चांदी की मात्रा केवल 40 से 60 फीसदी होती है। चूंकि ग्राहक को शुद्धता का पता ही नहीं होता है, इसलिए ज्वेलर्स पूरी कीमत वसूल लेते हैं। चांदी के दाम भी पिछले एक साल में 35 से 40 फीसदी बढ़ चुके हैं। ऐसे में चांदी के ग्राहकों को दोहरी मार सहनी पड़ रही है। एक तो उन्हें खरीदे गए वजन के हिसाब से चांदी नहीं मिल पाती है। दूसरे, चांदी की कीमतें भी आसमान पर हंै। आर सी असाइंग एंड हालमार्किंग सेंटर के मालिक नरेश ठाकुर ने बताया कि चांदी पर हालमार्किंग का कामकाज सीमित मात्रा में ही होता है। केवल दीपावली पर थोड़ा काम निकलता है। यही नहीं, सोने के गहनों के मुकाबले चांदी के गहनों की शुद्धता मापने की प्रक्रिया लंबी है।
इसलिए चांदी की शुद्धता मापने के लिए लैब काफी कम हैं। जयपुर स्थित अरिहंत आर्ट के डायरेक्टर सुरेश जैन ने बताया कि चांदी का 80 फीसदी उपयोग उद्योग में होता है। केवल 20 फीसदी खपत ही गहनों में होती है। चांदी की बढ़ती कीमतों के कारण उसके गहनों की निर्यात मांग भी तकरीबन 30 फीसदी तक घट गई है। भारतीय मानक ब्यूरो के सूत्रों के अनुसार देशभर में जहां सोने की शुद्धता मापने के लिए 159 लैब खुली हुई हैं, वहीं चांदी की शुद्धता मापने के लिए केवल 10 लैब ही हैं। चांदी की शुद्धता मापने के लिए 100 ग्राम के पीस के लिए 10 रुपये, 500 ग्राम तक के लिए 50 रुपये तथा 501 ग्राम से ऊपर के हर पीस के लिए 100 रुपये के हिसाब से लैब का खर्च आता है।
बात पते की - जागरूकता के अभाव में ग्राहक बगैर हालमार्क चांदी के गहने खरीद लेता है। हालांकि, उसको बेचने या फिर उसका गहना दोबारा बनवाने पर उसे नुकसान उठाना पड़ता है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
29 नवंबर 2010
मुनाफावसूली से ग्वार और ग्वार गम में गिरावट संभव
हाजिर बाजार ग्वार की कीमतों में 16.6 फीसदी तेजी ग्वार गम के दाम 20 फीसदी तक बढ़ेवायदा बाजारग्वार की कीमतों में 15.5 फीसदी बढ़त ग्वार गम के दाम में 21.9 फीसदी बढ़ोतरी ऊंची कीमतों पर मुनाफावसूली से ग्वार और ग्वार गम की कीमतों में 10 से 12 फीसदी की गिरावट आने की संभावना है। चालू महीने में उत्पादक राज्यों में मौसम खराब होने और स्टॉकिस्टों की सक्रियता बनने से हाजिर बाजार में ग्वार और ग्वार गम की कीमतों में क्रमश: 16.6 फीसदी और 20 फीसदी की तेजी आ चुकी है। इस दौरान वायदा बाजार में इनकी कीमतों में क्रमश: 15.5 फीसदी और 21.9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। चालू सीजन में ग्वार का उत्पादन बढ़कर एक करोड़ बोरी होने का अनुमान है। हरियाणा और राजस्थान में मौसम साफ हो गया है इसीलिए आगामी आठ-दस दिनों में उत्पादक मंडियों में ग्वार की आवक का दबाव बनने की संभावना है। जिससे गिरावट को बल मिलेगा। वायदा में मुनाफावसूली संभव नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर भाव काफी बढ़ गए हैं इसीलिए निवशकों की मुनाफावसूली आ सकती है। चालू महीने में एनसीडीईएक्स पर दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में ग्वार की कीमतें 15.5 फीसदी और ग्वार गम की कीमतें 21.9 फीसदी बढ़ चुकी हैं। पहली नवंबर को दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में ग्वार का भाव 2,155 रुपये प्रति क्विंटल था जो शुक्रवार को बढ़कर 2,490 रुपये क्विंटल हो गया। इस दौरान दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में ग्वार गम के दाम 4,909 रुपये से बढ़कर 5,988 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। दिसंबर महीने के ग्वार वायदा अनुबंध में 2,480 लॉट के सौदे हुए हैं जबकि ग्वार गम के 13,695 लॉट के सौदे हुए हैं। कमोडिटी विशेषज्ञ रेखा मिश्रा ने बताया कि राजस्थान में मौसम साफ हो गया है इसीलिए अगले आठ-दस दिनों में आवक बढ़ जायेगी जिससे ग्वार की कीमतों में करीब 10 फीसदी की गिरावट आने की संभावना है। ग्वार उत्पादन तीन गुना होने का अनुमान हरियाणा ग्वार गम एंड केमिकल के डायरेक्टर सुरेंद्र सिंघल ने बताया कि चालू सीजन में देश में ग्वार का उत्पादन बढ़कर एक करोड़ बोरी से ज्यादा होने का अनुमान है। पिछले साल प्रतिकूल मौसम से देश में ग्वार का उत्पादन घटकर 34-35 लाख बोरी का ही हुआ था। राजस्थान में बारिश और खराब मौसम से ग्वार की आवक नहीं बढ़ पा रही थी लेकिन अब मौसम साफ हो गया है इसीलिए आगामी आठ-दस दिनों में आवक बढ़कर एक लाख बोरी के करीब होने का अनुमान है। हरियाणा में भी आवक 30 से 35 हजार बोरी की हो जायेगी। निर्यात 10 फीसदी बढऩे की संभावना चालू वित्त वर्ष में देश से ग्वार गम के निर्यात में 10 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2009-10 में ग्वार गम का 2.18 लाख टन का निर्यात हुआ था। जबकि चालू वित्त वर्ष में निर्यातकों की भारी मांग को देखते हुए ग्वार गम का निर्यात बढ़कर 2.40 लाख टन से ज्यादा होने की संभावना है। इस समय अमेरिका, यूरोप और चीन की मांग अच्छी बनी हुई है। ग्वार गम निर्यात में भारत की हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी है। चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों, अप्रैल से सितंबर के दौरान करीब 1.25 लाख टन ग्वार गम का निर्यात हो चुका है। पाकिस्तान में ग्वार की फसल प्रभावित होने से भी निर्यात बढऩे का अनुमान है। हाजिर में गिरावट के आसार जोधपुर स्थित वसुंधरा ट्रेडिंग कंपनी के डायरेक्टर मोहन लाल ने बताया कि प्रतिकूल मौसम से राजस्थान के बीकानेर, बाड़मेर और जैसलमेर में दैनिक आवक सीमित मात्रा में ही हो रही थी लेकिन अब मौसम साफ हो गया है इसीलिए आवक बढ़ेगी। इससे ग्वार की मौजूदा कीमतों में करीब 150-200 रुपये और ग्वार गम की कीमतों में 500 से 600 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने की संभावना है। (Business Bhaskar....R S Rana)
एक्सचेंजों में शुरू होगा अक्षय ऊर्जा का कारोबार
मुंबई November 26, 2010
सरकार अक्षय ऊर्जा स्रोतों के जरिये बिजली उत्पादन को बढ़ावा देने पर काम कर रही है। इसके साथ ही अगले दो महीनों के भीतर पावर एक्सचेंजों में अक्षय ऊर्जा रिसीट का कारोबार भी शुरू होने जा रहा है। अक्षय स्रोतों से बिजली पैदा करने वालों के लिए एक और अच्छी बात यह है कि इससे जुड़े उपकरणों के आयात पर सीमा शुल्क में छूट प्रदान की गई है। इससे अक्षय ऊर्जा को और प्रोत्साहित किया जा सकेगा। सरकार जल्द ही अक्षय ऊर्जा रिसीट (आरईसी) के प्रचालन संबंधी नियम और शर्तों को अंतिम रूप दे देगी। माना जा रहा है कि अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली उत्पादन को इससे भी बल मिलने की संभवना है। केंद्रीय ऊर्जा नियामक आयोग (सीईआरसी) ने देश के एनर्जी एक्सचेंजों में अक्षय ऊर्जा रिसीट के कारोबार के लिए इसे पिछले ही सप्ताह लॉन्च किया है। हालांकि निवेशकों के लिए इसमें कारोबार शुरू करने में अभी दो महीने का वक्त लगेगा। अधिकारियों के मुताबिक एक्सचेंजों में इसके पंजीकरण के लिए प्रमाणित दस्तावेज जमा करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। आरईसी एक बाजार आधारित साधन है। किसी राज्य या बिजली उपभोक्ताओं को अक्षय ऊर्जा खरीदने संबंधी शर्तों और नियमों का पालन करना होगा। नियम के मुताबिक सभी राज्यों के लिए यह बाध्यता होगी कि राज्य की कुल ऊर्जा जरूरतों में से एक निश्चित भाग अक्षय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त बिजली का हो। यानी कुल ऊर्जा जरूरत में से अक्षय ऊर्जा से तैयार बिजली को शामिल करना जरूरी है। यह नैशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज के नियमों के अनुरूप तय किया गया है। यदि इस रिसीट की मांग काफी ज्यादा बढ़ जाती है तो खरीदारों को उत्पादकों को ज्यादा प्रीमियम देना पड़ेगा। हालांकि अक्षय ऊर्जा के संबंध में सभी राज्यों के लिए अलग-अलग शर्तें तय की गई है। जैसे दिल्ली में आसानी से अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली तैयार करना मुश्किल है। ऐसे में दिल्ली जैसे राज्यों को कुछ छूट मिली हुई है। तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में इसकी सीमा 5 फीसदी तय की गई है। कारण यह है कि तमिलनाडु में पवन ऊर्जा से बिजली पैदा करने की काफी संभावनाएं है और यहां बिजली की कुल जरूरत का करीब 10 फीसदी हिस्सा अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली पैदा की जा सकती है। नैशनल लोड डिस्पैच कमीशन आरईसी के पंजीकरण के लिए नोडल एजेंसी की तरह काम करेगा। (BS Hindi)
सरकार अक्षय ऊर्जा स्रोतों के जरिये बिजली उत्पादन को बढ़ावा देने पर काम कर रही है। इसके साथ ही अगले दो महीनों के भीतर पावर एक्सचेंजों में अक्षय ऊर्जा रिसीट का कारोबार भी शुरू होने जा रहा है। अक्षय स्रोतों से बिजली पैदा करने वालों के लिए एक और अच्छी बात यह है कि इससे जुड़े उपकरणों के आयात पर सीमा शुल्क में छूट प्रदान की गई है। इससे अक्षय ऊर्जा को और प्रोत्साहित किया जा सकेगा। सरकार जल्द ही अक्षय ऊर्जा रिसीट (आरईसी) के प्रचालन संबंधी नियम और शर्तों को अंतिम रूप दे देगी। माना जा रहा है कि अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली उत्पादन को इससे भी बल मिलने की संभवना है। केंद्रीय ऊर्जा नियामक आयोग (सीईआरसी) ने देश के एनर्जी एक्सचेंजों में अक्षय ऊर्जा रिसीट के कारोबार के लिए इसे पिछले ही सप्ताह लॉन्च किया है। हालांकि निवेशकों के लिए इसमें कारोबार शुरू करने में अभी दो महीने का वक्त लगेगा। अधिकारियों के मुताबिक एक्सचेंजों में इसके पंजीकरण के लिए प्रमाणित दस्तावेज जमा करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। आरईसी एक बाजार आधारित साधन है। किसी राज्य या बिजली उपभोक्ताओं को अक्षय ऊर्जा खरीदने संबंधी शर्तों और नियमों का पालन करना होगा। नियम के मुताबिक सभी राज्यों के लिए यह बाध्यता होगी कि राज्य की कुल ऊर्जा जरूरतों में से एक निश्चित भाग अक्षय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त बिजली का हो। यानी कुल ऊर्जा जरूरत में से अक्षय ऊर्जा से तैयार बिजली को शामिल करना जरूरी है। यह नैशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज के नियमों के अनुरूप तय किया गया है। यदि इस रिसीट की मांग काफी ज्यादा बढ़ जाती है तो खरीदारों को उत्पादकों को ज्यादा प्रीमियम देना पड़ेगा। हालांकि अक्षय ऊर्जा के संबंध में सभी राज्यों के लिए अलग-अलग शर्तें तय की गई है। जैसे दिल्ली में आसानी से अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली तैयार करना मुश्किल है। ऐसे में दिल्ली जैसे राज्यों को कुछ छूट मिली हुई है। तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों में इसकी सीमा 5 फीसदी तय की गई है। कारण यह है कि तमिलनाडु में पवन ऊर्जा से बिजली पैदा करने की काफी संभावनाएं है और यहां बिजली की कुल जरूरत का करीब 10 फीसदी हिस्सा अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली पैदा की जा सकती है। नैशनल लोड डिस्पैच कमीशन आरईसी के पंजीकरण के लिए नोडल एजेंसी की तरह काम करेगा। (BS Hindi)
मसाला निर्यात में विदेशी चुनौती
कोच्चि November 26, 2010
मसाला निर्यात में वृद्घि की रफ्तार थोड़ी सुस्त पड़ती दिख रही है। अंतरराष्टï्रीय स्तर पर कीमतों को लेकर दूसरे देशों से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते भारतीय मसाला निर्यातकों की चुनौती बढ़ गई है। चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में मसाला निर्यात के लक्ष्य का करीब 68 फीसदी हिस्सा पूरा किया जा चुका है लेकिन निर्यात की वृद्घि दर में लगातार हो रही कमी ङ्क्षचता का कारण है। चीन, नाइजीरिया और अन्य देशों के सस्ते मसालों ने भारतीय मसालों की मांग घटा दी है। ऐसे में शेष बचे निर्यात लक्ष्य को हासिल करना आसान नहीं होगा। चालू कारोबारी साल में अप्रैल-अक्टूबर के दौरान कुल 3,685.25 करोड़ रुपये मूल्य के 3,17,800 टन मसाले का निर्यात किया गया जबकि पिछले साल की इसी अवधि के दौरान 3,260.08 करोड़ रुपये मूल्य के कुल 2,99,250 टन मसाले का निर्यात किया गया था। वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान कुल 4,65,000 टन मसाला निर्यात का लक्ष्य रखा गया है। जिसकी कुल कीमत 5,100 करोड़ रुपये यानी 112.5 करोड़ डॉलर है। निर्यात की मात्रा के लिहाज से देखें तो चालू कारोबारी साल के पहले सात महीने यानी अप्रैल-अक्टूबर के दौरान करीब 68 फीसदी निर्यात लक्ष्य हासिल किया जा चुका है। जबकि निर्यात मूल्य के आधार पर लक्ष्य का करीब 72 फीसदी हिस्सा पूरा हो चुका है। इस दौरान काली मिर्च का निर्यात करीब 14 फीसदी गिरा। वहीं छोटी इलायची का निर्यात भी पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 25 फीसदी कम रहा। इसी तरह जायफल और जावित्री का निर्यात करीब 58 फीसदी घटा है। आंकड़ों के मुताबिक बड़ी इलायची, हल्दी, जीरा, अजवाइन, मेथी और पुदीना के निर्यात पर भी प्रतिकूल असर दिख रहा है। हालांकि मूल्य वर्धित उत्पाद यानी करी पाउडर और मसाला तेल आदि के निर्यात में मामूली तौर पर वृद्घि का रुझान है। करी पाउडर का निर्यात केवल 1 फीसदी बढ़ा। हालांकि लहसुन का निर्यात मात्रा के आधार पर रिकॉर्ड 127 फीसदी बढ़कर 15,250 टन पहुंच गया जबकि मूल्य के हिसाब से यह रिकॉर्ड 238 फीसदी बढ़ा। कारोबारियों का अनुमान है कि अगले माह भी लहसुन के निर्यात में रिकॉर्ड तेजी जारी रहेगी। मसाला निर्यात में गिरावट की मूल वजह यह है कि आक्रामक निर्यात नीति बनाने में भारत नाकाम रहा है। खासकर मसाले की कीमतों को लेकर जिस तरह दूसरे देशों से कड़ी चुनौती मिल रही है, भारत इससे निपटने में पूरी तरह विफल रहा है। दूसरे देशों की तुलना में भारतीय मसाला महंगा होने से विदेशों में इसके चाहने वाले घट रहे हैं। काली मिर्च के निर्यात की बात करें तो भारत को ब्राजील, वियतनाम और इंडोनेशिया आदि देशों से मूल्य के स्तर पर कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है। अक्टूबर के दौरान इंडोनेशिया ने 6,500 टन काली मिर्च का निर्यात किया जबकि ब्राजील ने 2,900 टन, वियतनाम ने 6,296 टन निर्यात किया। वहीं भारत से केवल 1,500 टन काली मिर्च का निर्यात किया गया। साफ जाहिर है कि इन देशों की तुलना में भारत का निर्यात कितना कम रहा। इसी तरह अदरक का निर्यात भी चीन और नाइजीरिया से प्रभावित हो रहा है। कारण यह है कि भारत की तुलना में चीन और नाइजीरिया के अदरक के भाव कम हैं। इसी तरह ग्वाटेमाल सस्ती दरों पर इलायची वैश्विक बाजारों में उतार रहा है। इससे भारतीय इलायची की मांग घट गई है। भारत से वनीला का निर्यात तो इस साल हुआ ही नहीं। हालांकि मसाला बोर्ड ने इस बात का कोई संकेत नहीं दिया है कि इस साल वनीला का निर्यात होगा या नहीं। 2008-09 में 305 टन वैनिला का निर्यात हुआ था जो 2009-10 में यह घटकर 200 टन रह गया था। (BS Hindi)
मसाला निर्यात में वृद्घि की रफ्तार थोड़ी सुस्त पड़ती दिख रही है। अंतरराष्टï्रीय स्तर पर कीमतों को लेकर दूसरे देशों से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते भारतीय मसाला निर्यातकों की चुनौती बढ़ गई है। चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में मसाला निर्यात के लक्ष्य का करीब 68 फीसदी हिस्सा पूरा किया जा चुका है लेकिन निर्यात की वृद्घि दर में लगातार हो रही कमी ङ्क्षचता का कारण है। चीन, नाइजीरिया और अन्य देशों के सस्ते मसालों ने भारतीय मसालों की मांग घटा दी है। ऐसे में शेष बचे निर्यात लक्ष्य को हासिल करना आसान नहीं होगा। चालू कारोबारी साल में अप्रैल-अक्टूबर के दौरान कुल 3,685.25 करोड़ रुपये मूल्य के 3,17,800 टन मसाले का निर्यात किया गया जबकि पिछले साल की इसी अवधि के दौरान 3,260.08 करोड़ रुपये मूल्य के कुल 2,99,250 टन मसाले का निर्यात किया गया था। वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान कुल 4,65,000 टन मसाला निर्यात का लक्ष्य रखा गया है। जिसकी कुल कीमत 5,100 करोड़ रुपये यानी 112.5 करोड़ डॉलर है। निर्यात की मात्रा के लिहाज से देखें तो चालू कारोबारी साल के पहले सात महीने यानी अप्रैल-अक्टूबर के दौरान करीब 68 फीसदी निर्यात लक्ष्य हासिल किया जा चुका है। जबकि निर्यात मूल्य के आधार पर लक्ष्य का करीब 72 फीसदी हिस्सा पूरा हो चुका है। इस दौरान काली मिर्च का निर्यात करीब 14 फीसदी गिरा। वहीं छोटी इलायची का निर्यात भी पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 25 फीसदी कम रहा। इसी तरह जायफल और जावित्री का निर्यात करीब 58 फीसदी घटा है। आंकड़ों के मुताबिक बड़ी इलायची, हल्दी, जीरा, अजवाइन, मेथी और पुदीना के निर्यात पर भी प्रतिकूल असर दिख रहा है। हालांकि मूल्य वर्धित उत्पाद यानी करी पाउडर और मसाला तेल आदि के निर्यात में मामूली तौर पर वृद्घि का रुझान है। करी पाउडर का निर्यात केवल 1 फीसदी बढ़ा। हालांकि लहसुन का निर्यात मात्रा के आधार पर रिकॉर्ड 127 फीसदी बढ़कर 15,250 टन पहुंच गया जबकि मूल्य के हिसाब से यह रिकॉर्ड 238 फीसदी बढ़ा। कारोबारियों का अनुमान है कि अगले माह भी लहसुन के निर्यात में रिकॉर्ड तेजी जारी रहेगी। मसाला निर्यात में गिरावट की मूल वजह यह है कि आक्रामक निर्यात नीति बनाने में भारत नाकाम रहा है। खासकर मसाले की कीमतों को लेकर जिस तरह दूसरे देशों से कड़ी चुनौती मिल रही है, भारत इससे निपटने में पूरी तरह विफल रहा है। दूसरे देशों की तुलना में भारतीय मसाला महंगा होने से विदेशों में इसके चाहने वाले घट रहे हैं। काली मिर्च के निर्यात की बात करें तो भारत को ब्राजील, वियतनाम और इंडोनेशिया आदि देशों से मूल्य के स्तर पर कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है। अक्टूबर के दौरान इंडोनेशिया ने 6,500 टन काली मिर्च का निर्यात किया जबकि ब्राजील ने 2,900 टन, वियतनाम ने 6,296 टन निर्यात किया। वहीं भारत से केवल 1,500 टन काली मिर्च का निर्यात किया गया। साफ जाहिर है कि इन देशों की तुलना में भारत का निर्यात कितना कम रहा। इसी तरह अदरक का निर्यात भी चीन और नाइजीरिया से प्रभावित हो रहा है। कारण यह है कि भारत की तुलना में चीन और नाइजीरिया के अदरक के भाव कम हैं। इसी तरह ग्वाटेमाल सस्ती दरों पर इलायची वैश्विक बाजारों में उतार रहा है। इससे भारतीय इलायची की मांग घट गई है। भारत से वनीला का निर्यात तो इस साल हुआ ही नहीं। हालांकि मसाला बोर्ड ने इस बात का कोई संकेत नहीं दिया है कि इस साल वनीला का निर्यात होगा या नहीं। 2008-09 में 305 टन वैनिला का निर्यात हुआ था जो 2009-10 में यह घटकर 200 टन रह गया था। (BS Hindi)
एफएमसी का हस्तक्षेप से इनकार
मुंबई November 26, 2010
जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने टायर निर्माताओं के संगठन ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसेसिएशन (एटमा) और अहमदाबाद स्थित नैशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीई) के बीच रबर कीमतों को लेकर चल रहे विवाद में किसी तरह का हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। एटमा ने एफएमसी से रबर के वायदा कारोबार पर रोक लगाने या इसके प्राइस बैंड यानी रोजाना इसके भावों में उतार-चढ़ाव की सीमा को घटाने की मांग की थी। हालांकि मामले को सुलझाने के लिए एटमा अगले सप्ताह अपना प्रयास और तेज करेगा। एटमा ने कहा है कि उसने अगले सप्ताह एक बार फिर इस मामले पर एफएमसी और एनएमसीई दोनों को पत्र लिख कर मामले से जुड़े हर बिंदु को स्पष्ट करने की योजना बनाई है। टायर निर्माता संघ एटमा चाहता है कि एनएमसीई रबर के वायदा भाव में रोजाना होने वाले उतार-चढ़ाव की सीमा को 4 फीसदी से घटाकर 1 फीसदी कर दे। इसके लिए उसने एफएमसी को पहले ही पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी। अब एक बार फिर से पत्र लिख कर टायर निर्माता संघ अपनी बात रखने का प्रयास करेगा। एटमा के महानिदेशक राजीव बुद्घराज कहते हैं, 'हमारे पास एनएमसीई में प्राकृतिक रबर के दामों में हो रहे उतार-चढ़ाव के पुख्ता प्रमाण हैं। हम इसे अगले सप्ताह सोमवार या मंगलवार तक एफएमसी के सामने पेश करेंगे। इसकी एक कॉपी एनएमसीई को भी दी जाएगी।' वर्ष 2003 में एनएमसीई में रबर का वायदा कारोबार शुरू हुआ है। एटमा का कहना है कि उसके पास तबसे लेकर अब तक रबर की कीमतों में हुए उतार-चढ़ाव से जुड़े प्रमाण हैं। एटमा का आरोप है कि खुले बाजार में रबर की कीमतों में आई उछाल के लिए भी वायदा कारोबार ही जिम्मेदार है। हालांकि एटमा के इस आरोप को हमेशा यह कह कर खारिज कर दिया गया है कि जिंसों के दामों में बढ़ोतरी एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और यह पूरी तरह से मांग और आपूर्ति पर निर्भर करता है। एटमा ने अक्टूबर महीने के दूसरे पखवाड़े में रबर की कीमतों में हुए भारी उतार-चढ़ाव का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए एफएमसी से अनुरोध किया था कि वायदा बाजार में रबर के वायदा भाव में रोजाना उतार-चढ़ाव की सीमा 4 फीसदी से घटाकर 1 फीसदी कर दे। एटमा ने एफएमसी से यह भी अनुरोध किया है कि रबर की कीमतों में भारी उछाल को देखते हुए वायदा बाजार में इसके कारोबार पर प्रतिबंध लगा दे। एफएमसी ने 21 अक्टूबर को एनएमसीई से यह स्पष्टï करने के लिए कहा था कि रबर के वायदा भाव में असमान्य उतार-चढ़ाव के लिए कौन से कारक जिम्मेदार हैं। एक्सचेंज ने इसके बदले में अपना जवाब 23 अक्टूबर को बाजार नियामक को भेज दिया था। इसके बाद एफएमसी ने पिछले सप्ताह एटमा को इसका जवाब देते हुए कहा, 'आंतरिक जांच में पाया गया कि रबर के भाव बढऩे के पीछे एनएमसीई या वायदा बाजार किसी भी तरह जिम्मेदार नहीं है। ऐसे में एक्सचेंज के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है।' यानी जिंस बाजार आयोग ने एटमा का अनुरोघ पूरी तरह ठुकराते हुए इस मामले में कोई हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। टायर निर्माता से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, 'जिंस बाजार में प्राइस बैंड 4 फीसदी तक होना काफी अहम माना जाता है।' इस बीच नवंबर में असमय बारिश के चलते रबर के उत्पादन में 10 फीसदी तक की गिरावट की खबरें आ रही है। आरएसएस-4 रबर के भाव पहले ही 200 रुपये प्रति किलोग्राम के उच्चस्तर पर पहुंच चुके हैं। (BS Hindi)
जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने टायर निर्माताओं के संगठन ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसेसिएशन (एटमा) और अहमदाबाद स्थित नैशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीई) के बीच रबर कीमतों को लेकर चल रहे विवाद में किसी तरह का हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। एटमा ने एफएमसी से रबर के वायदा कारोबार पर रोक लगाने या इसके प्राइस बैंड यानी रोजाना इसके भावों में उतार-चढ़ाव की सीमा को घटाने की मांग की थी। हालांकि मामले को सुलझाने के लिए एटमा अगले सप्ताह अपना प्रयास और तेज करेगा। एटमा ने कहा है कि उसने अगले सप्ताह एक बार फिर इस मामले पर एफएमसी और एनएमसीई दोनों को पत्र लिख कर मामले से जुड़े हर बिंदु को स्पष्ट करने की योजना बनाई है। टायर निर्माता संघ एटमा चाहता है कि एनएमसीई रबर के वायदा भाव में रोजाना होने वाले उतार-चढ़ाव की सीमा को 4 फीसदी से घटाकर 1 फीसदी कर दे। इसके लिए उसने एफएमसी को पहले ही पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी। अब एक बार फिर से पत्र लिख कर टायर निर्माता संघ अपनी बात रखने का प्रयास करेगा। एटमा के महानिदेशक राजीव बुद्घराज कहते हैं, 'हमारे पास एनएमसीई में प्राकृतिक रबर के दामों में हो रहे उतार-चढ़ाव के पुख्ता प्रमाण हैं। हम इसे अगले सप्ताह सोमवार या मंगलवार तक एफएमसी के सामने पेश करेंगे। इसकी एक कॉपी एनएमसीई को भी दी जाएगी।' वर्ष 2003 में एनएमसीई में रबर का वायदा कारोबार शुरू हुआ है। एटमा का कहना है कि उसके पास तबसे लेकर अब तक रबर की कीमतों में हुए उतार-चढ़ाव से जुड़े प्रमाण हैं। एटमा का आरोप है कि खुले बाजार में रबर की कीमतों में आई उछाल के लिए भी वायदा कारोबार ही जिम्मेदार है। हालांकि एटमा के इस आरोप को हमेशा यह कह कर खारिज कर दिया गया है कि जिंसों के दामों में बढ़ोतरी एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और यह पूरी तरह से मांग और आपूर्ति पर निर्भर करता है। एटमा ने अक्टूबर महीने के दूसरे पखवाड़े में रबर की कीमतों में हुए भारी उतार-चढ़ाव का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए एफएमसी से अनुरोध किया था कि वायदा बाजार में रबर के वायदा भाव में रोजाना उतार-चढ़ाव की सीमा 4 फीसदी से घटाकर 1 फीसदी कर दे। एटमा ने एफएमसी से यह भी अनुरोध किया है कि रबर की कीमतों में भारी उछाल को देखते हुए वायदा बाजार में इसके कारोबार पर प्रतिबंध लगा दे। एफएमसी ने 21 अक्टूबर को एनएमसीई से यह स्पष्टï करने के लिए कहा था कि रबर के वायदा भाव में असमान्य उतार-चढ़ाव के लिए कौन से कारक जिम्मेदार हैं। एक्सचेंज ने इसके बदले में अपना जवाब 23 अक्टूबर को बाजार नियामक को भेज दिया था। इसके बाद एफएमसी ने पिछले सप्ताह एटमा को इसका जवाब देते हुए कहा, 'आंतरिक जांच में पाया गया कि रबर के भाव बढऩे के पीछे एनएमसीई या वायदा बाजार किसी भी तरह जिम्मेदार नहीं है। ऐसे में एक्सचेंज के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती है।' यानी जिंस बाजार आयोग ने एटमा का अनुरोघ पूरी तरह ठुकराते हुए इस मामले में कोई हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। टायर निर्माता से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, 'जिंस बाजार में प्राइस बैंड 4 फीसदी तक होना काफी अहम माना जाता है।' इस बीच नवंबर में असमय बारिश के चलते रबर के उत्पादन में 10 फीसदी तक की गिरावट की खबरें आ रही है। आरएसएस-4 रबर के भाव पहले ही 200 रुपये प्रति किलोग्राम के उच्चस्तर पर पहुंच चुके हैं। (BS Hindi)
कपास निर्यात का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल
हैदराबाद November 28, 2010
इस साल कपास निर्यात का लक्ष्य हासिल करने में मुश्किलें पेश आ सकती हैं। केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, गुजरात और महाराष्ट्र में हुई असमय बारिश के साथ-साथ आंध्र प्रदेश में आई बाढ़ ने इस साल कपास उत्पादन के आकलन में भारी फेरबदल कर दिया है।कपड़ा मंत्रालय के संयुक्त सचिव (कपास) वी. श्रीनिवास ने कहा - मंत्रालय का अनुमान है कि 15 दिसंबर तक की समयसीमा में निर्यात का आंकड़ा 25 लाख गांठ (एक गांठ में 170 किलोग्राम) पहुंचने की संभावना है जबकि कुल 55 लाख गांठ कपास के निर्यात की अनुमति दी गई है। मौजूदा अनुमति के तहत कपास निर्यातक को 15 दिसंबर तक निर्यात करना है।हैदराबाद में एकीकृत टेक्सटाइल पार्क की योजना की खातिर आयोजित रोडशो के दौरान मीडियाकर्मियों से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा - कपड़ा मंत्रालय को कपास सलाहकार बोर्ड की बैठक आयोजित करने की दरकार है और इस बाबत इंतजार करने की भी कि कपास की कितनी मात्रा निर्यात की जाएगी। उन्होंने कहा - लगता है कि कुल कपास निर्यात करीब 25 लाख गांठ का होगा। उन्होंने हालांकि कहा कि कारोबारी निकाय को लगता है कि कुल निर्यात 20 लाख गांठ का हो सकता है, जो उचित लग रहा है।श्रीनिवास ने कहा कि केंद्र कपड़ा मंत्रालय ने पहले ही निर्यात के लिए 55 लाख गांठ की अधिकतम सीमा तय कर दी है। मंत्रालय ने यह सीमा इस सीजन में कपास की बंपर पैदावार के अनुमान के बाद तय की थी। उन्होंने कहा कि निर्यातकों के लिए अनुबंध पूरा करना मुश्किल नजर आ रहा है। उन्होंने कहा कि घरेलू के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास के उत्पादों की किल्लत की वजह से इसकी कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। इस मौकेपर केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री पी. लक्ष्मी ने कहा कि केंद्र ने देश के विभिन्न इलाकों के लिए 40 एकीकृत टेक्सटाइल पार्क को मंजूरी दी है और मौजूदा समय में इन पार्कों में से 25 का संचालन हो रहा है। उन्होंने कहा कि टेक्सटाइल पार्क के विकास पर 20 हजार करोड़ के निवेश का अनुमान है और केंद्र सरकार ने 1400 करोड़ रुपये देने का वादा किया है। उन्होंने कहा कि 25 पार्क फिलहाल संचालित हो रहे हैं और बाकी अगले साल तक संचालित होंगे। (BS Hindi)
इस साल कपास निर्यात का लक्ष्य हासिल करने में मुश्किलें पेश आ सकती हैं। केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, गुजरात और महाराष्ट्र में हुई असमय बारिश के साथ-साथ आंध्र प्रदेश में आई बाढ़ ने इस साल कपास उत्पादन के आकलन में भारी फेरबदल कर दिया है।कपड़ा मंत्रालय के संयुक्त सचिव (कपास) वी. श्रीनिवास ने कहा - मंत्रालय का अनुमान है कि 15 दिसंबर तक की समयसीमा में निर्यात का आंकड़ा 25 लाख गांठ (एक गांठ में 170 किलोग्राम) पहुंचने की संभावना है जबकि कुल 55 लाख गांठ कपास के निर्यात की अनुमति दी गई है। मौजूदा अनुमति के तहत कपास निर्यातक को 15 दिसंबर तक निर्यात करना है।हैदराबाद में एकीकृत टेक्सटाइल पार्क की योजना की खातिर आयोजित रोडशो के दौरान मीडियाकर्मियों से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा - कपड़ा मंत्रालय को कपास सलाहकार बोर्ड की बैठक आयोजित करने की दरकार है और इस बाबत इंतजार करने की भी कि कपास की कितनी मात्रा निर्यात की जाएगी। उन्होंने कहा - लगता है कि कुल कपास निर्यात करीब 25 लाख गांठ का होगा। उन्होंने हालांकि कहा कि कारोबारी निकाय को लगता है कि कुल निर्यात 20 लाख गांठ का हो सकता है, जो उचित लग रहा है।श्रीनिवास ने कहा कि केंद्र कपड़ा मंत्रालय ने पहले ही निर्यात के लिए 55 लाख गांठ की अधिकतम सीमा तय कर दी है। मंत्रालय ने यह सीमा इस सीजन में कपास की बंपर पैदावार के अनुमान के बाद तय की थी। उन्होंने कहा कि निर्यातकों के लिए अनुबंध पूरा करना मुश्किल नजर आ रहा है। उन्होंने कहा कि घरेलू के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास के उत्पादों की किल्लत की वजह से इसकी कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। इस मौकेपर केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री पी. लक्ष्मी ने कहा कि केंद्र ने देश के विभिन्न इलाकों के लिए 40 एकीकृत टेक्सटाइल पार्क को मंजूरी दी है और मौजूदा समय में इन पार्कों में से 25 का संचालन हो रहा है। उन्होंने कहा कि टेक्सटाइल पार्क के विकास पर 20 हजार करोड़ के निवेश का अनुमान है और केंद्र सरकार ने 1400 करोड़ रुपये देने का वादा किया है। उन्होंने कहा कि 25 पार्क फिलहाल संचालित हो रहे हैं और बाकी अगले साल तक संचालित होंगे। (BS Hindi)
27 नवंबर 2010
Export drop won’t cut earnings: B&P body
November 1 - 7, 2010
EXPORT earnings from the sale of beans and pulses are unlikely to fall, despite an expected drop in export volumes, an official said last week.
U Min Ko Oo, general secretary of Myanmar Beans, Pulse and Sesame Merchants Association, said good growing weather in India – the nation’s major export market – would probably reduce demand for imports from Myanmar.
“Our exports are sure to decrease compared with last year because weather conditions have been good in India and farmers there have expanded the amount of land they are cropping. Overall domestic production in India is estimated to be about 20 percent higher than last year.
“As a result, demand from India is not as strong as last year,” U Min Ko Oo said.
In the 2009-10 fiscal year, Myanmar exported about 1.3 millions tonnes of beans and pulses to India, earning about US$980 million, Ministry of Commerce statistics show.
By mid-October this year, about 540,000 tonnes of beans and pulses worth about $550 million had been exported to India.
However, U Min Ko Oo did not believe the fall in export volumes would lead to a large loss of export earnings.
“We don’t believe that our export earnings will decline compared to last year because farmers and traders were able to earn excellent prices for their early harvest crop,” he said.
“This month, we sold about 20,000 tonnes to India as a result of increased demand during the Diwali Festival in November,” he said.
“Prices have also fallen a little and only matpe sales are still strong well. Matpe (FAQ – fair to average quality) is $940 a tonne, toor is $750 and green mung beans (pedisein) is more than $1000,” he added.
U Min Ko Oo said Myanmar’s farmers had increased the acreage under cultivation by 10.5 million acres on last year but matpe and green mung bean production had actually fallen as a result of less-than-ideal weather conditions.
“Matpe production is only 500,000 tonnes instead of the regular 600,000 tonnes, and toor is only 200,000 tonnes instead of the 350,000 we saw last year,” he added.
An exporter said beans and pulses export prices had reached record levels between March and June with matpe, toor and green mung beans all selling for more than $1000 a tonne. At the same time last year, matpe sold for $600 a tonne, toor $650 and green mung beans $800-plus. (Myanmar Times)
EXPORT earnings from the sale of beans and pulses are unlikely to fall, despite an expected drop in export volumes, an official said last week.
U Min Ko Oo, general secretary of Myanmar Beans, Pulse and Sesame Merchants Association, said good growing weather in India – the nation’s major export market – would probably reduce demand for imports from Myanmar.
“Our exports are sure to decrease compared with last year because weather conditions have been good in India and farmers there have expanded the amount of land they are cropping. Overall domestic production in India is estimated to be about 20 percent higher than last year.
“As a result, demand from India is not as strong as last year,” U Min Ko Oo said.
In the 2009-10 fiscal year, Myanmar exported about 1.3 millions tonnes of beans and pulses to India, earning about US$980 million, Ministry of Commerce statistics show.
By mid-October this year, about 540,000 tonnes of beans and pulses worth about $550 million had been exported to India.
However, U Min Ko Oo did not believe the fall in export volumes would lead to a large loss of export earnings.
“We don’t believe that our export earnings will decline compared to last year because farmers and traders were able to earn excellent prices for their early harvest crop,” he said.
“This month, we sold about 20,000 tonnes to India as a result of increased demand during the Diwali Festival in November,” he said.
“Prices have also fallen a little and only matpe sales are still strong well. Matpe (FAQ – fair to average quality) is $940 a tonne, toor is $750 and green mung beans (pedisein) is more than $1000,” he added.
U Min Ko Oo said Myanmar’s farmers had increased the acreage under cultivation by 10.5 million acres on last year but matpe and green mung bean production had actually fallen as a result of less-than-ideal weather conditions.
“Matpe production is only 500,000 tonnes instead of the regular 600,000 tonnes, and toor is only 200,000 tonnes instead of the 350,000 we saw last year,” he added.
An exporter said beans and pulses export prices had reached record levels between March and June with matpe, toor and green mung beans all selling for more than $1000 a tonne. At the same time last year, matpe sold for $600 a tonne, toor $650 and green mung beans $800-plus. (Myanmar Times)
26 नवंबर 2010
महंगे प्याज से राहत अभी नहीं
मुंबई November 25, 2010
प्याज की ऊंची कीमतें उपभोक्ताओं को अभी और रुलाएगी। इसके दाम घटने में अभी एक माह से भी लंबा वक्त लग सकता है। असमय बारिश के चलते इसकी पैदावार पर असर पड़ा है। इससे देश की प्रमुख मंडियों में प्याज की नई फसल काफी कम मात्रा में पहुंच रही है। जिससे इसके भाव में नरमी के फिलहाल कोई संकेत नहीं है। कर्नाटक और नासिक आदि कुछ क्षेत्रों में प्याज की पहली फसल पूरी तरह तैयार हो चुकी है लेकिन पिछले दो-तीन दिनों से जारी मूसलाधार बारिश के चलते प्याज की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। यहां तक कि तैयार प्याज को भंडारित कर रख पाना भी मुश्किल हो रहा है क्योंकि प्याज की नई फसल में नमी की मात्र काफी ज्यादा है और इसके खराब होने का खतरा ज्यादा है। प्याज विक्रेता हरिओम ट्रेडर्स के मालिक नितिन पारेख कहते हैं, 'प्याज की नई फसल में नमी इतनी ज्यादा है कि इसे लंबे समय के लिए स्टोर कर रख पाना मुश्किल है। जबकि बाजार की इतनी क्षमता नहीं है कि एक-दो दिन के भीतर बड़ी मात्रा में प्याज की खपत हो सके। इस समय बाजार में नई प्याज तो आ रही है लेकिन इसमें नमी की मात्रा ज्यादा होने से अगले दो-तीन दिन के बाद इसके सडऩे-गलने का खतरा है।' प्रमुख प्याज उत्पादक केंद्रों से बाजार तक यातायात बाधित होने से भी आवक पर असर पड़ा है। भारी बारिश के चलते अगेल दो-तीन दिनों तक स्थिति सामान्य होने के संकेत नहीं है। पुराने और नए दोनों तरह के प्याज की कीमतें पिछले एक माह में दोगुनी से भी ज्यादा उछली है। पुरानी प्याज के दाम पिछले दिनों 33 से 38 रुपये प्रति किलोग्राम दर्ज किए गए। बाजार में जिस तरह नई फसल की आवक घट गई है उससे लगता है कि उपभोक्ताओं को प्याज 44 से 45 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से खरीदना पड़ सकता है। उल्लेखनीय है कि प्याज की कीमतें एक दशक पूर्व भी काफी ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थी। पिछले चार दिनों से लगातार असमय बारिश होने से कर्नाटक समेत नासिक में प्याज की उपज को भारी नुकसान पहुंचा है। कर्नूल और उससे लगे कर्नाटक के जिलों में ,जो प्याज का प्रमुख उत्पादक केंद्र है, 60 फीसदी से ज्यादा फसल बर्बाद हो गई है। इसी तरह गुजरात के कुछ अन्य क्षेत्रों से भी प्याज की आवक प्रभावित हो रही है। मुंबई के बड़े प्याज विके्रता के अनुसार बारिश खत्म होने के बाद नई फसल तैयार होने तक बाजार में इसकी आवक बढऩे की संभावना बिल्कुल भी नहीं है। ऐसे में उपभोक्ताओं को प्याज की ऊंची कीमत से राहत दिसंबर के पहले सप्ताह के बाद ही मिल सकती है। आपूर्ति कम होने की वजह से वैश्विक बाजारों से भी इस समय प्याज की भारी मांग हो रही है। इस साल पाकिस्तान में भी प्राकृतिक आपदा के चलते फसल प्रभावित हुई है जिससे वैश्विक बाजारों में इसकी आवक घटी है। (BS Hindi)
प्याज की ऊंची कीमतें उपभोक्ताओं को अभी और रुलाएगी। इसके दाम घटने में अभी एक माह से भी लंबा वक्त लग सकता है। असमय बारिश के चलते इसकी पैदावार पर असर पड़ा है। इससे देश की प्रमुख मंडियों में प्याज की नई फसल काफी कम मात्रा में पहुंच रही है। जिससे इसके भाव में नरमी के फिलहाल कोई संकेत नहीं है। कर्नाटक और नासिक आदि कुछ क्षेत्रों में प्याज की पहली फसल पूरी तरह तैयार हो चुकी है लेकिन पिछले दो-तीन दिनों से जारी मूसलाधार बारिश के चलते प्याज की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। यहां तक कि तैयार प्याज को भंडारित कर रख पाना भी मुश्किल हो रहा है क्योंकि प्याज की नई फसल में नमी की मात्र काफी ज्यादा है और इसके खराब होने का खतरा ज्यादा है। प्याज विक्रेता हरिओम ट्रेडर्स के मालिक नितिन पारेख कहते हैं, 'प्याज की नई फसल में नमी इतनी ज्यादा है कि इसे लंबे समय के लिए स्टोर कर रख पाना मुश्किल है। जबकि बाजार की इतनी क्षमता नहीं है कि एक-दो दिन के भीतर बड़ी मात्रा में प्याज की खपत हो सके। इस समय बाजार में नई प्याज तो आ रही है लेकिन इसमें नमी की मात्रा ज्यादा होने से अगले दो-तीन दिन के बाद इसके सडऩे-गलने का खतरा है।' प्रमुख प्याज उत्पादक केंद्रों से बाजार तक यातायात बाधित होने से भी आवक पर असर पड़ा है। भारी बारिश के चलते अगेल दो-तीन दिनों तक स्थिति सामान्य होने के संकेत नहीं है। पुराने और नए दोनों तरह के प्याज की कीमतें पिछले एक माह में दोगुनी से भी ज्यादा उछली है। पुरानी प्याज के दाम पिछले दिनों 33 से 38 रुपये प्रति किलोग्राम दर्ज किए गए। बाजार में जिस तरह नई फसल की आवक घट गई है उससे लगता है कि उपभोक्ताओं को प्याज 44 से 45 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से खरीदना पड़ सकता है। उल्लेखनीय है कि प्याज की कीमतें एक दशक पूर्व भी काफी ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थी। पिछले चार दिनों से लगातार असमय बारिश होने से कर्नाटक समेत नासिक में प्याज की उपज को भारी नुकसान पहुंचा है। कर्नूल और उससे लगे कर्नाटक के जिलों में ,जो प्याज का प्रमुख उत्पादक केंद्र है, 60 फीसदी से ज्यादा फसल बर्बाद हो गई है। इसी तरह गुजरात के कुछ अन्य क्षेत्रों से भी प्याज की आवक प्रभावित हो रही है। मुंबई के बड़े प्याज विके्रता के अनुसार बारिश खत्म होने के बाद नई फसल तैयार होने तक बाजार में इसकी आवक बढऩे की संभावना बिल्कुल भी नहीं है। ऐसे में उपभोक्ताओं को प्याज की ऊंची कीमत से राहत दिसंबर के पहले सप्ताह के बाद ही मिल सकती है। आपूर्ति कम होने की वजह से वैश्विक बाजारों से भी इस समय प्याज की भारी मांग हो रही है। इस साल पाकिस्तान में भी प्राकृतिक आपदा के चलते फसल प्रभावित हुई है जिससे वैश्विक बाजारों में इसकी आवक घटी है। (BS Hindi)
बेमौसम बारिश से खरीफ फसल को नुकसान
मुंबई November 25, 2010
असमय बारिश के चलते महाराष्ट्र में 10 लाख हेक्टेयर से ज्यादा भूमि में लगी खरीफ की फसल को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा है। राज्य के कृषि विभाग द्वारा जारी प्राथमिक आंकड़ों के मुताबिक चावल, मक्का, कपास, सोयाबीन, प्याज की फसल को व्यापक तौर पर क्षति पहुंचने की आशंका है। राज्य में करीब 20 लाख हेक्टेयर भूमि में खरीफ की फसल लगी है, इसमें से लगभग 50 फीसदी हिस्से यानी 10 लाख हेक्टेयर भूमि लगी फसल असर बारिश के चलते बर्बाद हो रही है। इसके चलते किसानों को जबरदस्त नुकसान हुआ है। इसको देखते हुए राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टियों और कई सगठनों ने नुकसान की भरपाई के लिए किसानों को भारी मुआवजा देने की भी मांग की है। राज्य के मुख्यमंत्री पृथ्वी राज चह्वान और राजस्व मंत्री बालसाहेब थोराट ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'जिलाधिकारियों और क्षेत्र के वरिष्ठï अधिकारियों को जमीनी स्थिति का जायजा लेकर इसकी विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंपने का निर्देश दिया गया है।' सरकार का अनुमान है कि शीत सत्र के दौरान नुकसान झेल रहे किसानों के लिए राहत पैकेज की घोषणा की जाएगी। कृषि आयुक्त पांडुरंग वथारकर ने कहा कि असमय बारिश का असर राज्य के 19 जिले में पड़ा है। फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान अकोला, अमरावती, नागपुर, भंडारा, गोंडिया, नासिक, सांगली और कोंकण क्षेत्र में हुआ है। उनके अनुसार करीब 1.3 लाख हेक्टेयर में लगी धान की फसल पूरी तरह तबाह हो गई है। बहरहाल, असमय बारिश के चलते राज्य में कुल खरीफ उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है। हालांकि इसके बावजूद राज्य कृषि मंत्रालय ने धान का उत्पादन 28 लाख टन, मक्का 21 लाख टन, कपास 84 लाख गांठ, चना 11.8 लाख टन प्रस्तावित किया है। चालू फसल सत्र के दौरान कापस के रकबे में बढ़ोतरी हुई है। 2009-10 में 35 लाख हेक्टेयर भूमि में कपास की फसल लगाई गई थी जबकि इस साल 38 लाख हेक्टेयर भूमि में इसकी खेती हो रही है। बीटी कॉटन की मांग में वृद्घि के मद्देनजर इस साल किसानों ने कपास की खेती पर अधिक ध्यान दिया। इसके अलावा कपास की उत्पादकता में भी वृद्घि होने से किसानों का जोर इस पर रहा। इसी तरह तुअर का रकबा भी पिछले साल के 12 हेक्टेयर की तुलना में मामूली बढ़कर इस साल 1.24 हेक्टेयर हो गया। (BS Hindi)
असमय बारिश के चलते महाराष्ट्र में 10 लाख हेक्टेयर से ज्यादा भूमि में लगी खरीफ की फसल को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा है। राज्य के कृषि विभाग द्वारा जारी प्राथमिक आंकड़ों के मुताबिक चावल, मक्का, कपास, सोयाबीन, प्याज की फसल को व्यापक तौर पर क्षति पहुंचने की आशंका है। राज्य में करीब 20 लाख हेक्टेयर भूमि में खरीफ की फसल लगी है, इसमें से लगभग 50 फीसदी हिस्से यानी 10 लाख हेक्टेयर भूमि लगी फसल असर बारिश के चलते बर्बाद हो रही है। इसके चलते किसानों को जबरदस्त नुकसान हुआ है। इसको देखते हुए राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टियों और कई सगठनों ने नुकसान की भरपाई के लिए किसानों को भारी मुआवजा देने की भी मांग की है। राज्य के मुख्यमंत्री पृथ्वी राज चह्वान और राजस्व मंत्री बालसाहेब थोराट ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'जिलाधिकारियों और क्षेत्र के वरिष्ठï अधिकारियों को जमीनी स्थिति का जायजा लेकर इसकी विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंपने का निर्देश दिया गया है।' सरकार का अनुमान है कि शीत सत्र के दौरान नुकसान झेल रहे किसानों के लिए राहत पैकेज की घोषणा की जाएगी। कृषि आयुक्त पांडुरंग वथारकर ने कहा कि असमय बारिश का असर राज्य के 19 जिले में पड़ा है। फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान अकोला, अमरावती, नागपुर, भंडारा, गोंडिया, नासिक, सांगली और कोंकण क्षेत्र में हुआ है। उनके अनुसार करीब 1.3 लाख हेक्टेयर में लगी धान की फसल पूरी तरह तबाह हो गई है। बहरहाल, असमय बारिश के चलते राज्य में कुल खरीफ उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है। हालांकि इसके बावजूद राज्य कृषि मंत्रालय ने धान का उत्पादन 28 लाख टन, मक्का 21 लाख टन, कपास 84 लाख गांठ, चना 11.8 लाख टन प्रस्तावित किया है। चालू फसल सत्र के दौरान कापस के रकबे में बढ़ोतरी हुई है। 2009-10 में 35 लाख हेक्टेयर भूमि में कपास की फसल लगाई गई थी जबकि इस साल 38 लाख हेक्टेयर भूमि में इसकी खेती हो रही है। बीटी कॉटन की मांग में वृद्घि के मद्देनजर इस साल किसानों ने कपास की खेती पर अधिक ध्यान दिया। इसके अलावा कपास की उत्पादकता में भी वृद्घि होने से किसानों का जोर इस पर रहा। इसी तरह तुअर का रकबा भी पिछले साल के 12 हेक्टेयर की तुलना में मामूली बढ़कर इस साल 1.24 हेक्टेयर हो गया। (BS Hindi)
राजस्थान में रबी की बंपर पैदावार की उम्मीद पर फिरा पानी
जयपुर November 25, 2010
राजस्थान में पिछले पांच दिनों से जारी बारिश ने रबी की बंपर पैदावार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। नवंबर माह में राजस्थान में बारिश ने 100 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है और इस वजह से खेतों में पानी भर गया है। ज्यादा नमी के कारण एक पखवाड़े पहले बोई गई सरसों, गेहूं और जौ के बीज गलने के कगार पर आ गए हैं। ज्यादा बारिश के कारण इस रबी के बिजाई रकबे में 10 लाख हेक्टेयर की कमी के अनुमान लगाए जा रहे हैं। पिछले पांच दिनों से हो रही बारिश के बीच कृषि वैज्ञानिक फसलों की स्थिति की जानकारी ले रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि मावठ में हल्की वर्षा होती तो फसलों को काफी फायदा मिलता, लेकिन तेज बारिश के कारण खेतों में पानी भर गया है और कुछ समय पूर्व हुई बिजाई के गलने के आसार बन गए हैं। यदि बारिश का दौर शनिवार तक चला तो खराबी निश्चित है।कृषि विभाग ने इस वर्ष रबी में 77.71 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बिजाई का लक्ष्य रखा था। ताजा आंकड़ों के अनुसार 22 नवंबर तक राज्य में 50.29 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में रबी की बिजाई हो चुकी है, जो लक्ष्य का 65 फीसदी बैठता है। आंकड़ों के अनुसार 22 नवंबर तक राज्य में मात्र 31 फीसदी गेहूं की बिजाई हो पाई है। कृषि विभाग का मानना है कि इस बारिश से राजस्थान गेहूं की बिजाई में पिछड़ सकता है। गेहूं की बिजाई का समय 20 नवंबर निकल चुका है और इस बारिश से पछेती बिजाई पर भी पानी फिर सकता है। क्योंकि एक तो अभी तक मौसम साफ नहीं हुआ है और दूसरा मौसम साफ होने के बाद भी खेतों में भरे पानी को सूखने में हफ्ते-दस दिन का समय लग सकता है।जयपुर की चांदपोल अनाज मंडी के व्यापारी अजय खंडेलवाल का कहना है कि राज्य में गेहूं की बिजाई पिछड़ी हुई है। इस वर्ष मौसम में गर्मी के कारण किसानों ने पहले सरसों और चने की बिजाई की है। पिछले 20 दिनों में गेहूं की बिजाई शुरू हुई थी, लेकिन मावठ से खेतों में पानी भरने के कारण बिजाई रुक गई है। ज्यादा बारिश से बीजों के गलने की समस्या रहेगी। सरसों व्यापारी अनिल चतर का कहना है कि इस बारिश से सरसों की फसल को भी नुकसान होने की संभावना है। सरसों के प्रमुख उत्पादक जिले भरतपुर, कोटा, बंूदी, करौली, सवाई माधोपुर, धौलपुर, दौसा, टोंक आदि में बारिश के कारण सरसों की फसल गल सकती है। चना व्यापारी श्याम नाटाणी का कहना है कि जहां इस बारिश से अन्य फसलों को नुकसान होने की संभावना है, वहीं चने में इससे फायदा होगा। चने की बिजाई शुरू हुए अभी एक पखवाड़ा बीता है। इस लिए यह बारिश चने को फायदा पहुंचाएगी। यदि किसी जगह ज्यादा बारिश होती है और बीज गलता है तो किसान चने की दोबारा बिजाई कर सकते है क्योंकि चने की बिजाई अभी हो सकती है। (BS Hindi)
राजस्थान में पिछले पांच दिनों से जारी बारिश ने रबी की बंपर पैदावार की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। नवंबर माह में राजस्थान में बारिश ने 100 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है और इस वजह से खेतों में पानी भर गया है। ज्यादा नमी के कारण एक पखवाड़े पहले बोई गई सरसों, गेहूं और जौ के बीज गलने के कगार पर आ गए हैं। ज्यादा बारिश के कारण इस रबी के बिजाई रकबे में 10 लाख हेक्टेयर की कमी के अनुमान लगाए जा रहे हैं। पिछले पांच दिनों से हो रही बारिश के बीच कृषि वैज्ञानिक फसलों की स्थिति की जानकारी ले रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि मावठ में हल्की वर्षा होती तो फसलों को काफी फायदा मिलता, लेकिन तेज बारिश के कारण खेतों में पानी भर गया है और कुछ समय पूर्व हुई बिजाई के गलने के आसार बन गए हैं। यदि बारिश का दौर शनिवार तक चला तो खराबी निश्चित है।कृषि विभाग ने इस वर्ष रबी में 77.71 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बिजाई का लक्ष्य रखा था। ताजा आंकड़ों के अनुसार 22 नवंबर तक राज्य में 50.29 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में रबी की बिजाई हो चुकी है, जो लक्ष्य का 65 फीसदी बैठता है। आंकड़ों के अनुसार 22 नवंबर तक राज्य में मात्र 31 फीसदी गेहूं की बिजाई हो पाई है। कृषि विभाग का मानना है कि इस बारिश से राजस्थान गेहूं की बिजाई में पिछड़ सकता है। गेहूं की बिजाई का समय 20 नवंबर निकल चुका है और इस बारिश से पछेती बिजाई पर भी पानी फिर सकता है। क्योंकि एक तो अभी तक मौसम साफ नहीं हुआ है और दूसरा मौसम साफ होने के बाद भी खेतों में भरे पानी को सूखने में हफ्ते-दस दिन का समय लग सकता है।जयपुर की चांदपोल अनाज मंडी के व्यापारी अजय खंडेलवाल का कहना है कि राज्य में गेहूं की बिजाई पिछड़ी हुई है। इस वर्ष मौसम में गर्मी के कारण किसानों ने पहले सरसों और चने की बिजाई की है। पिछले 20 दिनों में गेहूं की बिजाई शुरू हुई थी, लेकिन मावठ से खेतों में पानी भरने के कारण बिजाई रुक गई है। ज्यादा बारिश से बीजों के गलने की समस्या रहेगी। सरसों व्यापारी अनिल चतर का कहना है कि इस बारिश से सरसों की फसल को भी नुकसान होने की संभावना है। सरसों के प्रमुख उत्पादक जिले भरतपुर, कोटा, बंूदी, करौली, सवाई माधोपुर, धौलपुर, दौसा, टोंक आदि में बारिश के कारण सरसों की फसल गल सकती है। चना व्यापारी श्याम नाटाणी का कहना है कि जहां इस बारिश से अन्य फसलों को नुकसान होने की संभावना है, वहीं चने में इससे फायदा होगा। चने की बिजाई शुरू हुए अभी एक पखवाड़ा बीता है। इस लिए यह बारिश चने को फायदा पहुंचाएगी। यदि किसी जगह ज्यादा बारिश होती है और बीज गलता है तो किसान चने की दोबारा बिजाई कर सकते है क्योंकि चने की बिजाई अभी हो सकती है। (BS Hindi)
25 नवंबर 2010
चीनी उद्योग में बदलाव स्वागत योग्य
November 24, 2010
देश में चीनी उद्योग का अर्थशास्त्र बदल रहा है। इसमें जो बदलाव आ रहे हैं उसका स्वागत किया जाना चाहिए। चीनी उद्योग का प्रतिनिधित्व मुख्यत: दो प्रमुख संगठन कर रहे हैं। एक भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) और दूसरा, नैशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज। हाल के दिनों में दोनों ने उद्योग के नेतृत्व में सराहनीय भूमिका निभाई है। यही कारण है कि सरकार भी चीनी जैसी अति संवेदनशील जिंस पर कोई निर्णय लेने के पूर्व पूरी सतर्कता बरत रही है। हाल के दिनों में सरकार और उद्योग संगठन के बीच अच्छा सामंजस्य देखने को मिला है क्योंकि इस्मा में तेजी से नया नेतृत्व उभर रहा है। इस साल की शुरुआत में जब चीनी के दाम आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गए थे तब सरकार और चीनी उत्पादक दोनों एक सीमा के तहत काम करने पर राजी हुए। चीनी सत्र 2009-10 में चीनी उद्योग के लिए बेहद ही खराब अनुभव रहा। सरकारी गोदाम में पहले से ही चीनी का काफी कम भंडार पड़ा था। इसके साथ ही उस साल चीनी उत्पादन में भी भारी गिरावट आई और कुल उत्पादन 1.50 करोड़ टन रहने का अनुमान लगाया गया था। इसको देखते हुए कृषि मंत्रालय और चीनी उद्योग ने मिलकर साझा योजना तैयार करने की रणनीति बनाई। कृषि मंत्री शरद पवार ने हाल ही में चीनी उद्योग की तारीफ करते हुए कहा था कि चीनी मिलों ने 2009-10 के दौरान कुल उत्पादन का 20 फीसदी लेवी के रूप में चीनी देने की हामी भरी थी। जबकि आधिकारिक तौर पर इसकी सीमा 10 फीसदी है। हालांकि चीनी मिलों के साथ हुए इस समझौते के बाद भी सरकार जन वितरण प्रणाली के तहत पर्याप्त चीनी की आपूर्ति करने में नाकाम रही थी। जबकि 2009-10 सत्र के दौरान चीनी का कुल उत्पादन अंतिम रूप से 1.89 करोड़ टन रहा था। अक्टूबर से शुरू हुए चालू चीनी सत्र में आपूर्ति को लेकर सरकार की चिंता जरूर कुछ कम हुई है। इस साल कुल उत्पादन का 10 फीसदी की दर से लेवी उगाही के बाद भी सरकार के पास चीनी का पर्याप्त भंडार रहने का अनुमान है। इसका कारण यह है कि इस साल ट्रांजेक्शन में काफी तेजी आई है। इसके अलावा इस्मा का मजबूत नेतृत्व उभरकर सामने आया है। इसने सरकार को इस बात के लिए मनाया कि कृषि विभाग का 12.5 फीसदी लेवी का प्रस्ताव वर्तमान हालात में तर्कसंगत नहीं है। खराब मौसम की वजह से देश में खाद्य मुद्रास्फीति लगातार बढ़ रही है जिससे सरकार की चिंता बढ़ गई है। इसमें खासकर चीनी की बढ़ती कीमतों का भी अहम योगदान रहा है। क्योंकि थोक मूल्य सूचकांक में चीनी का भारांक 3.6 फीसदी है। यही कारण है कि चीनी की बढ़ती कीमतों का खाद्य मुद्रास्फीति पर ज्यादा असर न पड़े इसके लिए सरकार ने थोक मूल्य सूचकांक की नई प्रणाली में चीनी का भारांक घटाकर 1.74 फीसदी कर दिया गया। जबकि इसमें कुछ नई चीजों को शामिल किया गया। मुद्रास्फीति की गणना की नई प्रणाली सितंबर 2010 से लागू हुई है।
(BS Hindi)
देश में चीनी उद्योग का अर्थशास्त्र बदल रहा है। इसमें जो बदलाव आ रहे हैं उसका स्वागत किया जाना चाहिए। चीनी उद्योग का प्रतिनिधित्व मुख्यत: दो प्रमुख संगठन कर रहे हैं। एक भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) और दूसरा, नैशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज। हाल के दिनों में दोनों ने उद्योग के नेतृत्व में सराहनीय भूमिका निभाई है। यही कारण है कि सरकार भी चीनी जैसी अति संवेदनशील जिंस पर कोई निर्णय लेने के पूर्व पूरी सतर्कता बरत रही है। हाल के दिनों में सरकार और उद्योग संगठन के बीच अच्छा सामंजस्य देखने को मिला है क्योंकि इस्मा में तेजी से नया नेतृत्व उभर रहा है। इस साल की शुरुआत में जब चीनी के दाम आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गए थे तब सरकार और चीनी उत्पादक दोनों एक सीमा के तहत काम करने पर राजी हुए। चीनी सत्र 2009-10 में चीनी उद्योग के लिए बेहद ही खराब अनुभव रहा। सरकारी गोदाम में पहले से ही चीनी का काफी कम भंडार पड़ा था। इसके साथ ही उस साल चीनी उत्पादन में भी भारी गिरावट आई और कुल उत्पादन 1.50 करोड़ टन रहने का अनुमान लगाया गया था। इसको देखते हुए कृषि मंत्रालय और चीनी उद्योग ने मिलकर साझा योजना तैयार करने की रणनीति बनाई। कृषि मंत्री शरद पवार ने हाल ही में चीनी उद्योग की तारीफ करते हुए कहा था कि चीनी मिलों ने 2009-10 के दौरान कुल उत्पादन का 20 फीसदी लेवी के रूप में चीनी देने की हामी भरी थी। जबकि आधिकारिक तौर पर इसकी सीमा 10 फीसदी है। हालांकि चीनी मिलों के साथ हुए इस समझौते के बाद भी सरकार जन वितरण प्रणाली के तहत पर्याप्त चीनी की आपूर्ति करने में नाकाम रही थी। जबकि 2009-10 सत्र के दौरान चीनी का कुल उत्पादन अंतिम रूप से 1.89 करोड़ टन रहा था। अक्टूबर से शुरू हुए चालू चीनी सत्र में आपूर्ति को लेकर सरकार की चिंता जरूर कुछ कम हुई है। इस साल कुल उत्पादन का 10 फीसदी की दर से लेवी उगाही के बाद भी सरकार के पास चीनी का पर्याप्त भंडार रहने का अनुमान है। इसका कारण यह है कि इस साल ट्रांजेक्शन में काफी तेजी आई है। इसके अलावा इस्मा का मजबूत नेतृत्व उभरकर सामने आया है। इसने सरकार को इस बात के लिए मनाया कि कृषि विभाग का 12.5 फीसदी लेवी का प्रस्ताव वर्तमान हालात में तर्कसंगत नहीं है। खराब मौसम की वजह से देश में खाद्य मुद्रास्फीति लगातार बढ़ रही है जिससे सरकार की चिंता बढ़ गई है। इसमें खासकर चीनी की बढ़ती कीमतों का भी अहम योगदान रहा है। क्योंकि थोक मूल्य सूचकांक में चीनी का भारांक 3.6 फीसदी है। यही कारण है कि चीनी की बढ़ती कीमतों का खाद्य मुद्रास्फीति पर ज्यादा असर न पड़े इसके लिए सरकार ने थोक मूल्य सूचकांक की नई प्रणाली में चीनी का भारांक घटाकर 1.74 फीसदी कर दिया गया। जबकि इसमें कुछ नई चीजों को शामिल किया गया। मुद्रास्फीति की गणना की नई प्रणाली सितंबर 2010 से लागू हुई है।
(BS Hindi)
बायोडीजल कार्यक्रम की राह में अड़चन
नई दिल्ली November 24, 2010
एक ओर जहां पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने का कार्यक्रम फिर से जोर पकड़ रहा है वहीं बायोडीजल तैयार करने का काम कच्चे पदार्थों की ऊंची कीमत, मार्केटिंग और राज्य सरकारों द्वारा इस पर दोगुना कर वसूलने के चलते प्रभावित हो रहा है। बायोडीजल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक इसकी क्षमता 12 लाख टन बढ़ाने के लिए करीब 1200 करोड़ रुपये के निवेश की योजना अधर में लटकी है। एसोसिएशन के अध्यक्ष संदीप चतुर्वेदी के अनुसार, 'योजना आयोग ने बायोडीजल के उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए एक नीति तैयार की थी। इसके तहत इमामी और रुचि जैसी कंपनियां इस क्षेत्र में निवेश के लिए आगे आईं। लेकिन इस नीति को लागू करने की जिम्मेदारी गैर अक्षय ऊर्जा मंत्रालय की है। जबकि बायोडीजल का वितरण और विपणन केवल तेल मार्केटिंग कंपनियां (ओएमसी) ही कर सकती हैं। यहां तक कि उद्योग इसकी बिक्री सीधे औद्योगिक उपयोगकर्ताओं को भी नहीं बेच सकती है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय स्तर पर बायोडीजल तैयार करने के काम को आगे बढ़ा पाना मुश्किल है।'गैर अक्षय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) द्वारा तैयार ड्राप्ट के मुताबिक पिछले साल दिसंबर में केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रीय बायोडीजल नीति की घोषणा की थी। इस नीति का उद्देश्य बायेईंधन का उत्पादन बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में जैट्रोफा समेत देसी जैव ईंधन तैयार करने के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराना रहा है। नीति में प्रस्तावित किया गया है कि बायोडीजल और बायोएथेनॉल के मिश्रण की मात्रा को वर्ष 2017 तक 20 फीसदी तक बढ़ाया जाएगा। पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने का काम वर्ष 2006 में शुरू किया गया था जो 2009 तक जारी रहा था। इसके बाद एथेनॉल मिलने में हो रही दिक्कतों के चलते इस पर रोक लगा दी गई थी। हालांकि इस साल नवंबर से फिर से एथेनॉल मिश्रण का काम शुरू किया गया है। सरकार का उद्देश्य जैट्रोफा का उत्पादन बढ़ाना है ताकि बायोडीजल मिश्रण के काम में तेजी आए। इसी को देखते हुए रिलायंस इंडस्ट्रीज, इंडियन ऑयल, रुचि समेत अनेक कंपनियों ने जैटरोफा का पौधा लगाने के लिए बड़ी मात्रा में जमीन का अधिग्रहण किया था। रुचि बायोफ्यूल के निदेशक अखिलेश सर्राफ कहते हैं, 'बायोडीजल के मूल्य को लेकर सरकार अब तक कोई प्रभावकारी नीति बनाने में नाकाम रही है। हम इसे 26.50 रुपये के भाव पर बेचने के लिए इसका उत्पादन नहीं कर सकते। जबकि इसके लिए कच्चे माल जैसे पाम एसिड ऑयल आदि की कीमतें तेजी से बढ़ रही है।' कर्नाटक में कंपनी की लगभग 10,000 टन बायोडीजल तैयार करने की क्षमता है। (BS Hindi)
एक ओर जहां पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने का कार्यक्रम फिर से जोर पकड़ रहा है वहीं बायोडीजल तैयार करने का काम कच्चे पदार्थों की ऊंची कीमत, मार्केटिंग और राज्य सरकारों द्वारा इस पर दोगुना कर वसूलने के चलते प्रभावित हो रहा है। बायोडीजल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक इसकी क्षमता 12 लाख टन बढ़ाने के लिए करीब 1200 करोड़ रुपये के निवेश की योजना अधर में लटकी है। एसोसिएशन के अध्यक्ष संदीप चतुर्वेदी के अनुसार, 'योजना आयोग ने बायोडीजल के उत्पादन की क्षमता बढ़ाने के लिए एक नीति तैयार की थी। इसके तहत इमामी और रुचि जैसी कंपनियां इस क्षेत्र में निवेश के लिए आगे आईं। लेकिन इस नीति को लागू करने की जिम्मेदारी गैर अक्षय ऊर्जा मंत्रालय की है। जबकि बायोडीजल का वितरण और विपणन केवल तेल मार्केटिंग कंपनियां (ओएमसी) ही कर सकती हैं। यहां तक कि उद्योग इसकी बिक्री सीधे औद्योगिक उपयोगकर्ताओं को भी नहीं बेच सकती है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय स्तर पर बायोडीजल तैयार करने के काम को आगे बढ़ा पाना मुश्किल है।'गैर अक्षय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) द्वारा तैयार ड्राप्ट के मुताबिक पिछले साल दिसंबर में केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रीय बायोडीजल नीति की घोषणा की थी। इस नीति का उद्देश्य बायेईंधन का उत्पादन बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में जैट्रोफा समेत देसी जैव ईंधन तैयार करने के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराना रहा है। नीति में प्रस्तावित किया गया है कि बायोडीजल और बायोएथेनॉल के मिश्रण की मात्रा को वर्ष 2017 तक 20 फीसदी तक बढ़ाया जाएगा। पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने का काम वर्ष 2006 में शुरू किया गया था जो 2009 तक जारी रहा था। इसके बाद एथेनॉल मिलने में हो रही दिक्कतों के चलते इस पर रोक लगा दी गई थी। हालांकि इस साल नवंबर से फिर से एथेनॉल मिश्रण का काम शुरू किया गया है। सरकार का उद्देश्य जैट्रोफा का उत्पादन बढ़ाना है ताकि बायोडीजल मिश्रण के काम में तेजी आए। इसी को देखते हुए रिलायंस इंडस्ट्रीज, इंडियन ऑयल, रुचि समेत अनेक कंपनियों ने जैटरोफा का पौधा लगाने के लिए बड़ी मात्रा में जमीन का अधिग्रहण किया था। रुचि बायोफ्यूल के निदेशक अखिलेश सर्राफ कहते हैं, 'बायोडीजल के मूल्य को लेकर सरकार अब तक कोई प्रभावकारी नीति बनाने में नाकाम रही है। हम इसे 26.50 रुपये के भाव पर बेचने के लिए इसका उत्पादन नहीं कर सकते। जबकि इसके लिए कच्चे माल जैसे पाम एसिड ऑयल आदि की कीमतें तेजी से बढ़ रही है।' कर्नाटक में कंपनी की लगभग 10,000 टन बायोडीजल तैयार करने की क्षमता है। (BS Hindi)
एफसीआई पूर्वोत्तर में खाद्यान्न आपूर्ति सुविधाएं बढ़ाएगा
अगरतला। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने पूर्वोत्तर के राज्यों में खाद्यान्नों के भंडारण और आबाध आपूर्ति की सेवाओं में वृद्धि के लिए 550 करो़ड रूपये की परियोजना शुरू की है।
एफसीआई के अध्यक्ष और कार्यकारी निदेशक सिराज हुसैन ने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार और खाद्य आपूर्ति मंत्री माणिक डे के साथ बैठक के बाद गुरूवार को पत्रकारों से कहा, ""पूर्वोत्तर के सात राज्यों में ब़डे गोदाम बनाने के लिए निगम ने 550 करो़ड रूपये की परियोजना पर काम शुरू कर दिया है।"" हुसैन ने कहा, ""पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में रेलवे लाइन के विस्तार के बाद यहां खाद्यान्नों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित हो जाएगी।"" उन्होंने कहा, ""पूर्वोत्तर के राज्यों में मौजूदा गोदामों की पूरी क्षमता का उपयोग करने का प्रयास किया जा रहा है और निगम के वरिष्ठ अधिकारी खाद्यान्नों की आपूर्ति की निगरानी कर रहे हैं।"" पूर्वोत्तर के राज्यों में विभिन्न कारणों से समय-समय पर स़डक संपर्क बाधित होने के कारण खाद्यान्नों की आपूर्ति प्रभावित हो जाती है। त्रिपुरा के खाद्य मंत्री माणिक डे ने कहा, ""पह़ाडी इलाकों में रेलवे लाइन की अनुपलब्धता के कारण खाद्यान्नों और जरूरी वस्तुओं की नियमित आपूर्ति में बाधा पहुंचती है।"" (khas Khbar)
एफसीआई के अध्यक्ष और कार्यकारी निदेशक सिराज हुसैन ने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार और खाद्य आपूर्ति मंत्री माणिक डे के साथ बैठक के बाद गुरूवार को पत्रकारों से कहा, ""पूर्वोत्तर के सात राज्यों में ब़डे गोदाम बनाने के लिए निगम ने 550 करो़ड रूपये की परियोजना पर काम शुरू कर दिया है।"" हुसैन ने कहा, ""पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में रेलवे लाइन के विस्तार के बाद यहां खाद्यान्नों की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित हो जाएगी।"" उन्होंने कहा, ""पूर्वोत्तर के राज्यों में मौजूदा गोदामों की पूरी क्षमता का उपयोग करने का प्रयास किया जा रहा है और निगम के वरिष्ठ अधिकारी खाद्यान्नों की आपूर्ति की निगरानी कर रहे हैं।"" पूर्वोत्तर के राज्यों में विभिन्न कारणों से समय-समय पर स़डक संपर्क बाधित होने के कारण खाद्यान्नों की आपूर्ति प्रभावित हो जाती है। त्रिपुरा के खाद्य मंत्री माणिक डे ने कहा, ""पह़ाडी इलाकों में रेलवे लाइन की अनुपलब्धता के कारण खाद्यान्नों और जरूरी वस्तुओं की नियमित आपूर्ति में बाधा पहुंचती है।"" (khas Khbar)
24 नवंबर 2010
मंडियों में धीमी आवक से चावल हुआ महंगा
ज्यादातर गैर बासमती यानि सामान्य चावल की सरकारी केंद्रों पर ज्यादा बिक्री होने के कारण मंडियों में आवक हल्की चल रही है। इस वजह से इसकी कीमतों में पिछले 15 दिनों में करीब 100 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और पश्चिम बंगाल में गैर-बासमती चावल की फसल आने लगी है जबकि बिहार में नई फसल की आवक दिसंबर महीने के प्रथम सप्ताह में बनने की संभावना है। लेकिन ज्यादातर चावल सरकारी केंद्रों पर बिक्री के लिए किसान ले जा रहे हैं। चालू सीजन में उत्पादन पिछले साल से ज्यादा होने की संभावना है इसीलिए मौजूदा कीमतों में और तेजी की संभावना नहीं है। सुल्तानिया एंड संस के पार्टनर राजेश सुलतानिया ने बताया कि मांग बढऩे से पिछले पंद्रह दिनों में गैर-बासमती चावल की कीमतों में करीब 100 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। दिल्ली बाजार में शुक्रवार को परमल सेला का भाव 1,950-2,000 रुपये, परमल वंड का भाव 2,150-2,200 रुपये प्रति क्विंटल और आईआर-8 चावल का भाव 1,550-1,650 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। दिसंबर महीने में बिहार में नई फसल की आवक शुरू हो जायेगी इसीलिए परमल चावल की मौजूदा कीमतों में और तेजी की संभावना नहीं है। खुरानिया एग्रो के डायरेक्टर रामनिवास अग्रवाल ने बताया कि हरियाणा और पंजाब में परमल की कुल आवक का करीब 80 से 90 फीसदी धान सरकारी एजेंसियां खरीद रही है। मंडियों में परमल धान की आवक भी पहले की तुलना में कम हो गई है तथा इस समय पूसा-1121 और बासमती धान की आवक ज्यादा हो रही है। उत्पादक मंडियों में परमल धान का भाव 1,030 से 1,050 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। हरियाणा की करनाल मंडी में परमल सेला का भाव 1,900-1,950 रुपये और परमल वंड का भाव 2,100 से 2,150 रुपये प्रति क्विंटल है। चावल के थोक कारोबारी पवन अग्रवाल ने बताया कि उत्तर प्रदेश की मंडियों में आईआर-8 धान का भाव 950 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है जबकि चावल का भाव 1,450-1,550 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। उधर, बिहार में मोटे धान की आवक दिसंबर महीने के प्रथम सप्ताह में बनने की संभावना है। पश्चिम बंगाल की मंडियों में मंसूरी धान का भाव 1,000 से 1,050 रुपये प्रति क्विंटल और चावल का भाव 1,650-1,750 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। रुद्रपुर मंडी में परमल धान का भाव 1,000 रुपये प्रति क्विंटल और चावल का भाव 1,750 से 1,850 रुपये प्रति क्विंटल है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के अनुसार चालू विपणन सीजन में चावल की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद पिछले साल की तुलना में आठ फीसदी कम हुई है। चालू सीजन में अभी तक 102.84 लाख टन चावल की ही खरीद हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी खरीद 111.78 लाख टन की हो चुकी थी। कृषि मंत्रालय के आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू खरीफ में चावल का उत्पादन पिछले साल के 759.1 लाख टन से बढ़कर 804.1 लाख टन होने का अनुमान है। बात पते की - चालू सीजन में उत्पादन पिछले साल से ज्यादा होने की संभावना है इसीलिए मौजूदा कीमतों में और तेजी की संभावना नहीं है। (Business Bhaskar......R S Rana)
मक्का, सरसों, सायोबीन और मेंथा तेल में निवेश के मौके
चालू सीजन में मेंथा तेल की पैदावार पिछले साल के 32-33 हजार टन से घटकर 27-28 हजार टन रहने का अनुमान है। ऐसे में आगामी दिनों में इसकी कीमतों में तेजी के ही आसार हैं। उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल का भाव 1,330-1,340 रुपये प्रति किलो है।मक्का, सरसों, सोयाबीन और मेंथा तेल में वायदा बाजार में निवेश की अच्छी संभावनाएं हैं। निर्यातकों की अच्छी मांग से मक्का की कीमतों में तेजी की संभावना है। जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों के दाम बढऩे और घरेलू बाजार में शादियों की अच्छी मांग से सरसों और सोयाबीन की कीमतों में भी तेजी की उम्मीद है।खली में निर्यात लगातार बढ़ रहा है जिससे तिलहनों की तेजी को बल मिल रहा है। मेंथा तेल की पैदावार में कमी और निर्यातकों की मांग बढऩे से भविष्य में तेजी के ही आसार हैं। एंजेल कमोडिटी के एग्री विश्लेषक बद्दरुदीन ने बिजनेस भास्कर को बताया कि निवेशकों की मुनाफावसूली से एनसीडीईएक्स पर दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में चालू महीने में मक्का की कीमतों में 1.6 फीसदी की नरमी आई है। पहली नवंबर को दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में मक्का का भाव 1,014 रुपये प्रति क्विंटल था, जबकि मंगलवार को भाव घटकर 997 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।अंतरराष्ट्रीय बाजार में मक्का का भाव बढ़कर 260-280 डॉलर प्रति टन हो गया है, जबकि चालू सीजन में निर्यात बढ़कर 22 से 25 लाख टन होने का अनुमान है। पिछले साल आठ लाख टन मक्का निर्यात ही हुआ था। ऐसे में निर्यातकों की मांग बढऩे से मक्का की कीमतों में तेजी की संभावना है। उत्पादक मंडियों में मक्का का भाव 900 से 940 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। कमोडिटी विशेषज्ञ अभय लाखवान ने बताया कि खली में निर्यातकों की अच्छी मांग है। चीन द्वारा रिजर्व स्टॉक की बिकवाली करने से अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में हल्की नरमी आई है, लेकिन आगामी दिनों में चीन की मांग निकलने से फिर तेजी की संभावना है। घरेलू बाजार में भी खाद्य तेलों में शादियों की अच्छी मांग बनी हुई है। इसीलिए सरसों और सोयाबीन की कीमतों में तेजी के ही आसार हैं। एनसीडीईएक्स पर दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में सोयाबीन की कीमतों में दो फीसदी की तेजी आकर मंगलवार को भाव 2,298 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। इस दौरान सरसों की कीमतों में भी दो फीसदी की तेजी आकर भाव 580.10 रुपये प्रति 20 किलो हो गए। उत्पादक मंडियों में सोयाबीन के डिलीवरी भाव 2,200-2,250 रुपये और सरसों का भाव 2,700-2,750 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है।कासा कमोडिटी के सीनियर एग्री विश्लेषक मुन्ना महतो ने बताया कि मुनाफावसूली से मेंथा तेल की कीमतों में चालू महीने में 4.4 फीसदी की गिरावट आई है। एक नवंबर को एमसीएक्स पर दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में मेंथा तेल का भाव 1,291 रुपये प्रति किलो था जबकि मंगलवार को भाव घटकर 1,234 रुपये प्रति किलो रह गया। चालू सीजन में मेंथा तेल की पैदावार पिछले साल के 32-33 हजार टन से घटकर 27-28 हजार टन ही होने का अनुमान है। जबकि निर्यातकों की अच्छी मांग बनी हुई है। ऐसे में आगामी दिनों में इसकी कीमतों में तेजी के ही आसार हैं। (Business Bhaskar....R S Rana)
'ओएमएसएस' में गेहूं के भाव घटने के आसार
केंद्रीय पूल से गेहूं के उठाव में तेजी लाने के लिए सरकार खुला बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत बिक्री भावों में 64 रुपये प्रति क्विंटल की कमी कर सकती है। दिल्ली में गेहूं का ओएमएसएस के तहत बिक्री भाव 1,254.08 रुपये प्रति क्विंटल है जिसे घटाकर 1,190.08 रुपये प्रति क्विंटल करने की संभावना है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उच्चाधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) की अगले सप्ताह होने वाली बैठक में इस पर निर्णय लिए जाने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि इसी आधार पर अन्य राज्यों में भी ओएमएसएस के तहत बिक्री भावों में कमी की जाएगी। पंजाब और हरियाणा में ओएमएसएस के तहत गेहूं का बिक्री भाव 1,239.89 रुपये प्रति क्विंटल है। उत्तर प्रदेश में बिक्री भाव 1,287.24 रुपये, राजस्थान में 1,274.09 रुपये, मध्य प्रदेश में 1,310.61 रुपये तथा छत्तीसगढ़ में बिक्री भाव 1,364.75 रुपये प्रति क्विंटल है। दिल्ली के एक फ्लोर मिलर ने बताया कि राजधानी में एफसीआई के गेहूं का बिक्री भाव 1,254.08 रुपये प्रति क्विंटल है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के गेहूं को उठाने पर परिवहन आदि की लागत मिलाकर करीब 50-60 रुपये प्रति क्विंटल का खर्च आ जाता है। इसके अलावा एफसीआई को एंडवास पेमेंट करनी होती है, जबकि खुले बाजार में गेहूं 1,290-1,300 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। खुले बाजार में फ्लोर मिलर को पेमेंट देने के लिए भी 15 दिन से एक महीने तक की मोहलत भी मिल जाती है, इसलिए मिलें ओएमएसएस के बजाय खुले बाजार से गेहूं की खरीद को तरजीह दे रही हैं। एफसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार अक्टूबर 2009 से मार्च 2011 तक सरकार ने खुला बाजार बिक्री योजना के तहत बल्क कंज्यूमर को बेचने के लिए 16,69,342 टन गेहूं का आवंटन किया था। इसमें से 12 नवंबर तक 13,14,007 टन गेहूं की ही निविदा हो पाई है जबकि उठाव केवल 12,96,007 टन का हुआ है। ऐसे में 3,55,335 टन गेहूं अब भी बचा हुआ है। केंद्रीय पूल में पहली नवंबर को 255.58 लाख टन गेहूं का स्टॉक बचा हुआ था जो बफर के तय मानकों से ज्यादा है। उधर, चालू सीजन में कृषि मंत्रालय के अधिकारियों को 820 लाख टन गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन होने का भरोसा है। इसलिए सरकार गेहूं के नए मार्केटिंग सीजन से पहले गोदामों को हल्का करना चाहती है। केंद्रीय पूल में पहली नवंबर को खाद्यान्न का कुल स्टॉक 487.31 लाख टन का बचा हुआ था जो पिछले साल की समान अवधि के 485.09 लाख टन से ज्यादा है। वैसे भी इस समय चावल की सरकारी खरीद चल रही है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
स्टॉक कम होने से जीरे में तेजी की संभावना
निर्यात मांग कमजोर होने के बावजूद उत्पादक राज्यों में जीरे का बकाया स्टॉक कम होने से भविष्य में तेजी के ही आसार हैं। चालू महीने में वायदा बाजार में जीरे की कीमतों में करीब 9 फीसदी और हाजिर बाजार में 8.3 फीसदी की तेजी आई है। चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से सितंबर के दौरान जीरा निर्यात में 32 फीसदी की कमी रही है। लेकिन उत्पादक मंडियों में जीरे का बकाया स्टॉक 9 से 10 लाख बोरी (एक बोरी-55 किलो) का ही बचा हुआ है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 4 से 5 लाख बोरी कम है। प्रतिकूल मौसम के कारण बुवाई भी करीब एक महीने की देरी से हुई है। ऐसे में ऊंचे भाव पर मुनाफावसूली से जीरे की कीमतों में आंशिक गिरावट तो आ सकती है लेकिन भविष्य तेजी का ही है। वायदा में मुनाफावसूली नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर ऊंचे भावों में निवशकों की मुनाफावसूली से जीरे की कीमतों में शुक्रवार को हल्की नरमी देखी गई। शुक्रवार को दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में जीरे का भाव घटकर 14,412 रुपये प्रति क्विंटल रह गया जबकि 18 नवंबर को भाव 14,704 रुपये प्रति क्विंटल था। चालू महीने में वायदा बाजार में जीरे की कीमतों में करीब 9 फीसदी की तेजी आई है। पहली नवंबर को दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में जीरे का भाव 13,129 रुपये प्रति क्विंटल था। दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में 12,483 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। कमोडिटी विशेषज्ञ अभय लाखवान ने बताया कि भाव तेज होने से निवेशकों की मुनाफावसूली से आंशिक गिरावट आई है लेकिन नीचे भावों में फिर से खरीद निकलने की संभावना है। इसीलिए आगामी दिनों में कीमतें मजबूत ही बनी रहने की संभावना है। जीरे का स्टॉक कम हनुमान प्रसाद पीयूष कुमार के प्रोपराइटर विरेंद्र अग्रवाल ने बताया कि उत्पादक मंडियों में जीरे का 9-10 लाख बोरी का स्टॉक ही बचा हुआ है जो कि पिछले साल की समान अवधि के 13-15 लाख बोरी से कम है। दैनिक आवक 7-8 हजार बोरी की हो रही है जबकि दैनिक व्यापार 8-9 हजार बोरी का हो रहा है। आमतौर पर गुजरात में जीरे की बुवाई दिपावली पर शुरू हो जाती है लेकिन मौसम गर्म होने से इस बार बुवाई करीब एक माह की देरी से चल रही है। ऐसे में नई फसल की आवक में भी देरी होने की आशंका है। निर्यात घटा भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों अप्रैल से सितंबर के दौरान जीरा निर्यात में 32 फीसदी की कमी आई है। इस दौरान 17,750 टन जीरे का ही निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 26,200 टन जीरे का निर्यात हुआ था। मुंबई स्थित मैसर्स जैब्स प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर एस शाह ने बताया कि सीरिया और टर्की की फसल आने से पिछले दो महीने से भारत से निर्यात मांग कमजोर बनी हुई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत, सीरिया और चीन के जीरे का भाव 3.53 डॉलर प्रति किलो है जोकि पिछले एक महीने से स्थिर बना हुआ है। हालांकि ये भाव पिछले साल की समान अवधि के 2.93 डॉलर प्रति किलो से ज्यादा है। सीरिया के पास स्टॉक होने से अभी भारत से निर्यात मांग कमजोर ही रहने की संभावना है। चालू सीजन में टर्की में जीरे का उत्पादन 15 से 20 हजार टन होने की संभावना है जबकि सीरिया में उत्पादन 30-35 हजार टन होने का अनुमान है। घरेलू बाजार में दाम बढ़े जीरा के थोक कारोबारी रजनीकांत बी पोपट ने बताया कि घरेलू बाजार में स्टॉक कम है जबकि मांग ज्यादा निकल रही है। इसीलिए चालू महीने में जीरे की कीमतों में करीब 1,000 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। पहली नवंबर को ऊंझा मंडी में जीरे का भाव 12,000 से 12,100 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि शुक्रवार को भाव 13,000 से 13,100 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। (Business Bhaskar....R S Rana)
गेहूं, दलहन, तिलहन की बुवाई पिछड़ी
सितंबर महीने में अच्छी बारिश होने के बावजूद रबी में गेहूं की बुवाई 30.87 फीसदी कम हुई है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार अभी तक देश में गेहूं की बुवाई 70.75 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 101.62 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। सामान्यत: रबी सीजन में गेहूं की बुवाई 281.84 लाख हैक्टेयर में होती है। गेहूं के अलावा दलहन, तिलहन और मोटे अनाजों की भी बुवाई शुरूआती चरण में पिछड़ रही है। चालू रबी सीजन में दलहन की बुवाई अभी तक 76.25 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 82.85 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। इसी तरह से मोटे अनाजों ज्वार, बाजरा और मक्का की बुवाई चालू रबी में अभी तक 39.01 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 46.46 लाख हैक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। चालू रबी सीजन में तिलहनों की बुवाई अभी तक 58.53 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुवाई 67.53 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। रबी तिलहनों की प्रमुख फसल सरसों की बुवाई चालू सीजन में अभी तक 49.66 लाख हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 54.57 लाख हैक्टेयर में सरसों की बुवाई हो चुकी थी। रबी धान की रोपाई चालू सीजन में अभी तक 48 हजार हैक्टेयर में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 85 हजार हैक्टेयर में हो चुकी थी। सामान्यत: रबी में धान की रोपाई 42.52 लाख हैक्टेयर में होती है। (Business Bhaskar...R S Rana)
त्योहारी मांग से विदेशों में बढ़ी आभूषणों की चमक
मुंबई November 23, 2010
अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत विकसित देशों में सीजन आधारित मांग बढऩे से देश के रत्न एवं आभूषणों के निर्यात में भारी बढ़ोतरी दर्ज हुई है। निर्यात में यह वृद्घि कारोबारियों की उम्मीदों के अनुरूप है। रत्न एवं आभूषण निर्यात संवद्र्धन परिषद (जीजेईपीसी) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर माह में रत्न एवं आभूषणों का कुल निर्यात डॉलर के हिसाब में 37.82 फीसदी बढ़कर 2.92 अरब डॉलर हो गया जबकि पिछले साल इसी अवधि में 2.12 अरब डॉलर का निर्यात किया गया था। इसी तरह रुपये के हिसाब से देखें तो निर्यात में यह वृद्घि करीब 31 फीसदी रही। अक्टूबर माह में कुल 12,979.19 करोड़ रुपये के रत्न एवं आभूषणों का निर्यात किया गया जबकि पिछले साल इसी माह में कुल निर्यात 9,907.61 करोड़ रुपये का रहा था। जीजेईपीसी के चेयरमैन राजीव जैन नेे पहले अनुमान व्यक्त किया था कि चालू त्योहारी सीजन के दौरान विदेशों में रत्न एवं आभूषणों की मांग 15 से 20 फीसदी की दर से बढ़ेगी। विदेशों में क्रिसमस, नव वर्ष और मदर्स डे जैसे त्योहारों को लेकर अभी से ही जमकर रत्न, अभूषण एवं हीरे आदि की खरीदारी कर रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अक्टूबर के दौरान रत्न एवं आभूषणों का कुल निर्यात 41.64 फीसदी बढ़कर 21.39 अरब डॉलर हो गया जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 15.10 अरब डॉलर रहा था। इसी तरह रुपये के हिसाब में देखें तो इस अवधि में निर्यात 34.48 फीसदी उछलकर 98,088.53 करोड़ रुपये हो गया। इसी तरह अक्टूबर माह में रत्न एवं आभूषणों का आयात भी 33.69 फीसदी बढ़कर 2.30 अरब डॉलर रहा। पिछले साल इसी माह में यह 1.72 अरब डॉलर रहा था। चालू वित्त वर्ष के पहले 7 माह में कच्चे हीरे का आयात 44.86 फीसदी बढ़कर 6.58 अरब डॉलर पहुंच गया जबकि गत वर्ष की इसी अवधि में 4.54 अरब डॉलर का आयात हुआ था। करीब दो माह के शीत मौसम में अमेरिका और यूरोपीय देशों में रत्न, आभूषणों की खूब मांग रहती है। इसकी तुलना भारत में दीवाली और धनतेरस से की जा सकती है। इसकी शुरुआत क्रिसमस से होती है जबकि फरवरी में मदर्स डे के बाद इस त्योहार सीजन की समाप्ति मानी जाती है। अमेरिका में आभूषणों की साल भर की कुल बिक्री का करीब 40 फीसदी बिक्री इसी त्योहारी सीजन के दौरान हो जाती है। अमेरिका में ज्यादातर आभूषण भारत से मंगाए जाते हैं। यही कारण है कि देश के कुल आभूषण निर्यात का करीब 37 फीसदी हिस्से का निर्यात इसी अवधि के दौरान होता है। (BS Hindi)
अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत विकसित देशों में सीजन आधारित मांग बढऩे से देश के रत्न एवं आभूषणों के निर्यात में भारी बढ़ोतरी दर्ज हुई है। निर्यात में यह वृद्घि कारोबारियों की उम्मीदों के अनुरूप है। रत्न एवं आभूषण निर्यात संवद्र्धन परिषद (जीजेईपीसी) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर माह में रत्न एवं आभूषणों का कुल निर्यात डॉलर के हिसाब में 37.82 फीसदी बढ़कर 2.92 अरब डॉलर हो गया जबकि पिछले साल इसी अवधि में 2.12 अरब डॉलर का निर्यात किया गया था। इसी तरह रुपये के हिसाब से देखें तो निर्यात में यह वृद्घि करीब 31 फीसदी रही। अक्टूबर माह में कुल 12,979.19 करोड़ रुपये के रत्न एवं आभूषणों का निर्यात किया गया जबकि पिछले साल इसी माह में कुल निर्यात 9,907.61 करोड़ रुपये का रहा था। जीजेईपीसी के चेयरमैन राजीव जैन नेे पहले अनुमान व्यक्त किया था कि चालू त्योहारी सीजन के दौरान विदेशों में रत्न एवं आभूषणों की मांग 15 से 20 फीसदी की दर से बढ़ेगी। विदेशों में क्रिसमस, नव वर्ष और मदर्स डे जैसे त्योहारों को लेकर अभी से ही जमकर रत्न, अभूषण एवं हीरे आदि की खरीदारी कर रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से अक्टूबर के दौरान रत्न एवं आभूषणों का कुल निर्यात 41.64 फीसदी बढ़कर 21.39 अरब डॉलर हो गया जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 15.10 अरब डॉलर रहा था। इसी तरह रुपये के हिसाब में देखें तो इस अवधि में निर्यात 34.48 फीसदी उछलकर 98,088.53 करोड़ रुपये हो गया। इसी तरह अक्टूबर माह में रत्न एवं आभूषणों का आयात भी 33.69 फीसदी बढ़कर 2.30 अरब डॉलर रहा। पिछले साल इसी माह में यह 1.72 अरब डॉलर रहा था। चालू वित्त वर्ष के पहले 7 माह में कच्चे हीरे का आयात 44.86 फीसदी बढ़कर 6.58 अरब डॉलर पहुंच गया जबकि गत वर्ष की इसी अवधि में 4.54 अरब डॉलर का आयात हुआ था। करीब दो माह के शीत मौसम में अमेरिका और यूरोपीय देशों में रत्न, आभूषणों की खूब मांग रहती है। इसकी तुलना भारत में दीवाली और धनतेरस से की जा सकती है। इसकी शुरुआत क्रिसमस से होती है जबकि फरवरी में मदर्स डे के बाद इस त्योहार सीजन की समाप्ति मानी जाती है। अमेरिका में आभूषणों की साल भर की कुल बिक्री का करीब 40 फीसदी बिक्री इसी त्योहारी सीजन के दौरान हो जाती है। अमेरिका में ज्यादातर आभूषण भारत से मंगाए जाते हैं। यही कारण है कि देश के कुल आभूषण निर्यात का करीब 37 फीसदी हिस्से का निर्यात इसी अवधि के दौरान होता है। (BS Hindi)
काली मिर्च के निर्यात में भारत से काफी आगे है वियतनाम
कोच्चि November 23, 2010
मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल-अक्टूबर के दौरान वियतनाम ने भारत के मुकाबले 7 गुने से ज्यादा काली मिर्च का निर्यात किया। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, काली मिर्च के मामले में दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक और निर्यातक ने इस अवधि में 73,848 टन का निर्यात किया जबकि भारत का कुल निर्यात 9,600 टन रहा। जनवरी-अक्टूबर की अवधि में वियतनाम का निर्यात एक लाख टन को पार करते हुए 1,01,909 टन पर जा पहुंचा।ताजा सूचना के मुताबिक, इस महीने के पहले दो हफ्ते में (1-15 नवंबर) वियतनाम ने 3,500 टन काली मिर्च का निर्यात किया है। एक अग्रणी निर्यातक ने कहा कि इन आंकड़ों से संकेत मिलता है कि देश का कुल निर्यात 2010 केकैलंडर वर्ष में 1.10 लाख टन को पार कर जाएगा। वहीं मौजूदा साल में भारत का निर्यात आंकड़ा 11,500 टन के स्तर पर पहुंचने की संभावना है। इंटरनैशनल पेपर कम्युनिटी के मुताबिक, साल 2010 में कुल वैश्विक निर्यात 2,37,650 टन का है और इसमें काली मिर्च की हिस्सेदारी 2,00,300 टन की है जबकि सफेद मिर्च की हिस्सेदारी 37,350 टन की है। इस मामले में वियतनाम 1.05 लाख टन के साथ सबसे ऊपर रहा। 44,000 टन काली मिर्च के निर्यात के साथ इंडोनेशिया दूसरे नंबर पर रहा जबकि 34,000 टन काली मिर्च के निर्यात के साथ ब्राजील तीसरे स्थान पर रहा। 18,050 टन काली मिर्च के निर्यात के साथ भारत का स्थान चौथा रहा। इस बात पर गौर करना दिलचस्प है कि एक ओर जहां वियतनाम ने 1970 के दशक के मध्य में काली मिर्च की खेती शुरू की थी, वहीं भारत एक हजार साल से ज्यादा समय से प्रमुख निर्यातक रहा है। अनुमान है कि साल 2011 में 2,29,710 टन का निर्यात होगा और इसमें काली मिर्च की हिस्सेदारी 1,85,250 टन की होगी जबकि सफेद मिर्च की हिस्सेदारी 44,460 टन की होगी। इस मामले में वियतनाम एक बार फिर 1.10 लाख टन के साथ अग्रणी होगा। उसके बाद 30,000 टन के साथ ब्राजील का स्थान होगा जबकि इंडोनेशिया से 23,000 टन का निर्यात होगा और यह तीसरे स्थान पर रहेगा। 21,950 टन निर्यात के साथ मलयेशिया चौथे स्थान पर और 19,000 टन के आंकड़े के साथ भारत 5वें स्थान पर रहेगा।इंटरनैशनल पेपर कम्युनिटी के मुताबिक, साल 2009 में कुल निर्यात 2,68,386 टन का था और इसमें काली मिर्च की हिस्सेदारी 2,28,797 टन की थी जबकि सफेद मिर्च की 39,589 टन की। (BS Hindi)
मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल-अक्टूबर के दौरान वियतनाम ने भारत के मुकाबले 7 गुने से ज्यादा काली मिर्च का निर्यात किया। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, काली मिर्च के मामले में दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक और निर्यातक ने इस अवधि में 73,848 टन का निर्यात किया जबकि भारत का कुल निर्यात 9,600 टन रहा। जनवरी-अक्टूबर की अवधि में वियतनाम का निर्यात एक लाख टन को पार करते हुए 1,01,909 टन पर जा पहुंचा।ताजा सूचना के मुताबिक, इस महीने के पहले दो हफ्ते में (1-15 नवंबर) वियतनाम ने 3,500 टन काली मिर्च का निर्यात किया है। एक अग्रणी निर्यातक ने कहा कि इन आंकड़ों से संकेत मिलता है कि देश का कुल निर्यात 2010 केकैलंडर वर्ष में 1.10 लाख टन को पार कर जाएगा। वहीं मौजूदा साल में भारत का निर्यात आंकड़ा 11,500 टन के स्तर पर पहुंचने की संभावना है। इंटरनैशनल पेपर कम्युनिटी के मुताबिक, साल 2010 में कुल वैश्विक निर्यात 2,37,650 टन का है और इसमें काली मिर्च की हिस्सेदारी 2,00,300 टन की है जबकि सफेद मिर्च की हिस्सेदारी 37,350 टन की है। इस मामले में वियतनाम 1.05 लाख टन के साथ सबसे ऊपर रहा। 44,000 टन काली मिर्च के निर्यात के साथ इंडोनेशिया दूसरे नंबर पर रहा जबकि 34,000 टन काली मिर्च के निर्यात के साथ ब्राजील तीसरे स्थान पर रहा। 18,050 टन काली मिर्च के निर्यात के साथ भारत का स्थान चौथा रहा। इस बात पर गौर करना दिलचस्प है कि एक ओर जहां वियतनाम ने 1970 के दशक के मध्य में काली मिर्च की खेती शुरू की थी, वहीं भारत एक हजार साल से ज्यादा समय से प्रमुख निर्यातक रहा है। अनुमान है कि साल 2011 में 2,29,710 टन का निर्यात होगा और इसमें काली मिर्च की हिस्सेदारी 1,85,250 टन की होगी जबकि सफेद मिर्च की हिस्सेदारी 44,460 टन की होगी। इस मामले में वियतनाम एक बार फिर 1.10 लाख टन के साथ अग्रणी होगा। उसके बाद 30,000 टन के साथ ब्राजील का स्थान होगा जबकि इंडोनेशिया से 23,000 टन का निर्यात होगा और यह तीसरे स्थान पर रहेगा। 21,950 टन निर्यात के साथ मलयेशिया चौथे स्थान पर और 19,000 टन के आंकड़े के साथ भारत 5वें स्थान पर रहेगा।इंटरनैशनल पेपर कम्युनिटी के मुताबिक, साल 2009 में कुल निर्यात 2,68,386 टन का था और इसमें काली मिर्च की हिस्सेदारी 2,28,797 टन की थी जबकि सफेद मिर्च की 39,589 टन की। (BS Hindi)
भू-राजनैतिक अस्थिरता से जिंसों में उतारचढ़ाव
मुंबई November 23, 2010
ताजा भू-राजनैतिक अस्थिरता के बाद कारोबारियों और सटोरियों द्वारा जोखिम से बचाव की कोशिश जारी रही और इस वजह से घरेलू बाजार मेंं जिसों की कीमतों में उतारचढ़ाव बना रहा। उत्तर कोरिया द्वारा दक्षिण कोरिया के एक द्वीप पर हमले केबाद भू-राजनैतिक स्थिति पर असर दिखा। इस गतिरोध से विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर में मजबूती आई और इसके परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर जिंसों की कीमतों में उतारचढ़ाव देखा गया।दक्षिण कोरिया द्वारा जवाबी कार्रवाई के डर के बीच मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में कीमतों के मामले में वैश्विक बाजार से जुड़ाव रखने वाले विभिन्न जिंसों (कीमती धातु, बेस मेटल और ऊर्जा) का शुरुआती कारोबार नरम रहा और इन जिंसों में दो फीसदी की गिरावट आई। हालांकि बाद में इसमें सुधार देखा गया। वैश्विक बाजार में भी इन जिंसों की कीमतों में गिरावट आई। डॉलर में मजबूती के चलते लंदन में तांबा 1.5 फीसदी गिरा जबकि शंघाई में 3 फीसदी। इस वजह से लंदन मेटल एक्सचेंज में तांबा 1.4 फीसदी टूटकर 8165 डॉलर प्रति टन पर आ गया। एलएमई में जस्ते में 1.7 फीसदी की गिरावट आई और यह 2101 डॉलर प्रति टन पर आ गया। उधर शंघाई में भी जस्ते की कीमतों में गिरावट आई।शुरुआती कारोबार में सोने में 0.5 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई थी, पर बाद में इसमें सुधार आया। हाजिर बाजार में सोना 1362 डॉलर प्रति आउंस पर रहा जबकि कारोबार के दौरान यह 1370 डॉलर प्रति आउंस केस्तर पर पहुंचा था। 83.49 डॉलर प्रति बैरल को छूने के बाद कच्चा तेल गिरकर 82.87 डॉलर प्रति बैरल पर आ पहुंचा।कमोडिटी ब्रोकिंग फर्म कॉमट्रेड के निदेशक जी. त्यागराजन ने कहा - भारतीय बाजार में जिंसों की कीमतों में हुए उतारचढ़ाव के लिए उत्तर व दक्षिण कोरिया के बीच जारी गतिरोध को पूरी तरह जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि यहां उतारचढ़ाव प्रत्याशित सीमा में रहा। कीमती धातुओं, बेस मेटल और ऊर्जा जैसे जिंसों में 1-2 फीसदी का उतारचढ़ाव सामान्य बात हो गई है। उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया के द्वीप पर दर्जनों गोले दागे और इस घटना में दो सैनिक मारे गए जबकि दर्जनों घरों में आग लग गई। उत्तर कोरिया का यह हमला 1953 में हुई कोरियाई युद्ध की समाप्ति के बाद अब तक का सबसे बड़ा हमला है।इस बीच, मलयेशिया में पाम तेल वायदा तीन हफ्ते के निचले स्तर पर आ गया। बुरसा मलयेशिया डेरिवेटिव पर फरवरी का कच्च्चा पाम तेल वायदा 2.2 फीसदी टूट कर 3115 रिंगिट प्रति टन (1005 डॉलर) पर आ गया। दिन में कारोबार के दौरान यह 3103 रिंगिट तक नीचे आया था।यूरो जोन के कर्ज संकट के चलते जिंस बाजार पहले से ही दबाव में था, पर उत्तर-दक्षिण कोरिया के हमले ने डॉलर की कीमतों में बढ़ोतरी कर दी और 10 वर्षीय अमेरिकी ट्रेजरी फ्यूचर में इजाफा हुआ।यूरो के मुकाबले अमेरिकी मुद्रा में 0.5 फीसदी की तेजी आई और 1.3542 डॉलर पर इसका कारोबार हुआ। त्यागराजन ने कहा - चूंकि घरेलू बाजार की कीमतें का वैश्विक बाजार से जुड़ाव है, ऐसे में विदेशी बाजार में जिंसों की कीमतों में होने वाला उतारचढ़ाव उसी अनुपात में घरेलू बाजार को प्रभावित करता है। कीमतों में होने वाला परिवर्तन मोटे तौर पर डॉलर पर भी निर्भर करता है क्योंकि ये आयात उन्मुख जिंस हैं। त्यागराजन का कहना है कि ग्लोबल हेज फंड की तरफ से सोने-चांदी में मुनाफावसूली करने की संभावना है और इससे कीमती धातुओं में गिरावट आ सकती है। सामान्य तौर पर ग्लोबल हेज फंड दिसंबर महीने में अपना सौदा बेचते हैं और क्रिसमस की छुट्टी पर चले जाते हैं। कोटक कमोडिटीज के विश्लेषक धर्मेश भाटिया के मुताबिक, आयरलैंड की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए दिए जाने वाले पैकेज से कीमती धातुओं की कीमतें बढ़ेंगी। (BS Hindi)
ताजा भू-राजनैतिक अस्थिरता के बाद कारोबारियों और सटोरियों द्वारा जोखिम से बचाव की कोशिश जारी रही और इस वजह से घरेलू बाजार मेंं जिसों की कीमतों में उतारचढ़ाव बना रहा। उत्तर कोरिया द्वारा दक्षिण कोरिया के एक द्वीप पर हमले केबाद भू-राजनैतिक स्थिति पर असर दिखा। इस गतिरोध से विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर में मजबूती आई और इसके परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर जिंसों की कीमतों में उतारचढ़ाव देखा गया।दक्षिण कोरिया द्वारा जवाबी कार्रवाई के डर के बीच मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज में कीमतों के मामले में वैश्विक बाजार से जुड़ाव रखने वाले विभिन्न जिंसों (कीमती धातु, बेस मेटल और ऊर्जा) का शुरुआती कारोबार नरम रहा और इन जिंसों में दो फीसदी की गिरावट आई। हालांकि बाद में इसमें सुधार देखा गया। वैश्विक बाजार में भी इन जिंसों की कीमतों में गिरावट आई। डॉलर में मजबूती के चलते लंदन में तांबा 1.5 फीसदी गिरा जबकि शंघाई में 3 फीसदी। इस वजह से लंदन मेटल एक्सचेंज में तांबा 1.4 फीसदी टूटकर 8165 डॉलर प्रति टन पर आ गया। एलएमई में जस्ते में 1.7 फीसदी की गिरावट आई और यह 2101 डॉलर प्रति टन पर आ गया। उधर शंघाई में भी जस्ते की कीमतों में गिरावट आई।शुरुआती कारोबार में सोने में 0.5 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई थी, पर बाद में इसमें सुधार आया। हाजिर बाजार में सोना 1362 डॉलर प्रति आउंस पर रहा जबकि कारोबार के दौरान यह 1370 डॉलर प्रति आउंस केस्तर पर पहुंचा था। 83.49 डॉलर प्रति बैरल को छूने के बाद कच्चा तेल गिरकर 82.87 डॉलर प्रति बैरल पर आ पहुंचा।कमोडिटी ब्रोकिंग फर्म कॉमट्रेड के निदेशक जी. त्यागराजन ने कहा - भारतीय बाजार में जिंसों की कीमतों में हुए उतारचढ़ाव के लिए उत्तर व दक्षिण कोरिया के बीच जारी गतिरोध को पूरी तरह जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि यहां उतारचढ़ाव प्रत्याशित सीमा में रहा। कीमती धातुओं, बेस मेटल और ऊर्जा जैसे जिंसों में 1-2 फीसदी का उतारचढ़ाव सामान्य बात हो गई है। उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया के द्वीप पर दर्जनों गोले दागे और इस घटना में दो सैनिक मारे गए जबकि दर्जनों घरों में आग लग गई। उत्तर कोरिया का यह हमला 1953 में हुई कोरियाई युद्ध की समाप्ति के बाद अब तक का सबसे बड़ा हमला है।इस बीच, मलयेशिया में पाम तेल वायदा तीन हफ्ते के निचले स्तर पर आ गया। बुरसा मलयेशिया डेरिवेटिव पर फरवरी का कच्च्चा पाम तेल वायदा 2.2 फीसदी टूट कर 3115 रिंगिट प्रति टन (1005 डॉलर) पर आ गया। दिन में कारोबार के दौरान यह 3103 रिंगिट तक नीचे आया था।यूरो जोन के कर्ज संकट के चलते जिंस बाजार पहले से ही दबाव में था, पर उत्तर-दक्षिण कोरिया के हमले ने डॉलर की कीमतों में बढ़ोतरी कर दी और 10 वर्षीय अमेरिकी ट्रेजरी फ्यूचर में इजाफा हुआ।यूरो के मुकाबले अमेरिकी मुद्रा में 0.5 फीसदी की तेजी आई और 1.3542 डॉलर पर इसका कारोबार हुआ। त्यागराजन ने कहा - चूंकि घरेलू बाजार की कीमतें का वैश्विक बाजार से जुड़ाव है, ऐसे में विदेशी बाजार में जिंसों की कीमतों में होने वाला उतारचढ़ाव उसी अनुपात में घरेलू बाजार को प्रभावित करता है। कीमतों में होने वाला परिवर्तन मोटे तौर पर डॉलर पर भी निर्भर करता है क्योंकि ये आयात उन्मुख जिंस हैं। त्यागराजन का कहना है कि ग्लोबल हेज फंड की तरफ से सोने-चांदी में मुनाफावसूली करने की संभावना है और इससे कीमती धातुओं में गिरावट आ सकती है। सामान्य तौर पर ग्लोबल हेज फंड दिसंबर महीने में अपना सौदा बेचते हैं और क्रिसमस की छुट्टी पर चले जाते हैं। कोटक कमोडिटीज के विश्लेषक धर्मेश भाटिया के मुताबिक, आयरलैंड की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए दिए जाने वाले पैकेज से कीमती धातुओं की कीमतें बढ़ेंगी। (BS Hindi)
चीन में आयात में गिरावट
मुंबई November 23, 2010
अक्टूबर माह में चीन में विभिन्न धातुओं के साथ-साथ कृषि जिंसों के आयात में गिरावट आई है, इस तरह की स्थिति कई महीने बाद देखने को मिली है। अर्थव्यवस्था में नरमी लाने और महंगाई पर लगाम कसने के लिए चीनी अधिकारियों द्वारा उठाए गए कदमों के नकारात्मक असर का डर ही आयात में गिरावट की मुख्य वजह है। चीन सरकार पिछले एक महीने से सख्ती की बात कर रही थी और पिछले हफ्ते इसने बैंकों के लिए रिजर्व की अनिवार्यता को बढ़ा दिया था।आयात में गिरावट का असर जिंसों की कीमतों पर पड़ा क्योंकि पिछले कुछ हफ्तों केदौरान ज्यादातर जिंसों में 6-10 फीसदी तक की गिरावट आई है। हालांकि इस गिरावट की वजह चीन द्वारा दरें बढ़ाए जाने का डर था और बाद में जब चीन ने बैंकों के लिए रिजर्व की अनिवार्यता में इजाफा किया तो कीमतें ढलान पर आ गईं।दो साल केसर्वोच्च स्तर पर पहुंचने के बाद ज्यादातर जिंसों में 11 नवंबर से गिरावट शुरू हो गई थी और यह सोमवार तक जारी रही। इस गिरावट के पीछे चीन सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदमों का भय काम कर रहा था। उस समय से लेकर अब तक तांबे में 5.8 फीसदी, एल्युमीनियम में 7.4 फीसदी, सीसे में 14 फीसदी और कच्चे तेल में 6.4 फीसदी की गिरावट आई है। मंगलवार को जिंसों की कीमतें 2-3 फीसदी तब और लुढ़ गई जब दक्षिण कोरिया ने दक्षिण कोरिया के एक द्वीप पर गोलीबारी की।चीन प्राथमिक एल्युमीनियम का शुद्ध आयातक रहा है, हालांकि उच्च निर्यात केबाद इसका वॉल्यूम 60 फीसदी से ज्यादा गिरा है। चीन में अभी भी एल्युमीनियम का उत्पादन गिरावट का रुख दिखा रहा है। पिछले साल के मुकाबले चीन में प्राथमिक एल्युमीनियम की खपत में 5 फीसदी की गिरावट आई है। सितंबर महीने के मुकाबले परिष्कृत तांबे का आयात 30 फीसदी गिरा है और यह अक्टूबर 2009 के बाद का न्यूनतम स्तर है। जस्ते का आयात भी एक महीने पहले के मुकाबले 24 फीसदी गिरा है। अक्टूबर महीने में चीन आश्चर्यजनक रूप से परिष्कृत सीसे का शुद्ध निर्यातक बन गया था और अप्रैल 2010 के बाद ऐसा पहली बार देखा गया था। सितंबर के मुकाबले आयात आधा हो गया है जबकि इस अवधि में निर्यात में 66 फीसदी की उछाल आई । (BS Hindi)
अक्टूबर माह में चीन में विभिन्न धातुओं के साथ-साथ कृषि जिंसों के आयात में गिरावट आई है, इस तरह की स्थिति कई महीने बाद देखने को मिली है। अर्थव्यवस्था में नरमी लाने और महंगाई पर लगाम कसने के लिए चीनी अधिकारियों द्वारा उठाए गए कदमों के नकारात्मक असर का डर ही आयात में गिरावट की मुख्य वजह है। चीन सरकार पिछले एक महीने से सख्ती की बात कर रही थी और पिछले हफ्ते इसने बैंकों के लिए रिजर्व की अनिवार्यता को बढ़ा दिया था।आयात में गिरावट का असर जिंसों की कीमतों पर पड़ा क्योंकि पिछले कुछ हफ्तों केदौरान ज्यादातर जिंसों में 6-10 फीसदी तक की गिरावट आई है। हालांकि इस गिरावट की वजह चीन द्वारा दरें बढ़ाए जाने का डर था और बाद में जब चीन ने बैंकों के लिए रिजर्व की अनिवार्यता में इजाफा किया तो कीमतें ढलान पर आ गईं।दो साल केसर्वोच्च स्तर पर पहुंचने के बाद ज्यादातर जिंसों में 11 नवंबर से गिरावट शुरू हो गई थी और यह सोमवार तक जारी रही। इस गिरावट के पीछे चीन सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदमों का भय काम कर रहा था। उस समय से लेकर अब तक तांबे में 5.8 फीसदी, एल्युमीनियम में 7.4 फीसदी, सीसे में 14 फीसदी और कच्चे तेल में 6.4 फीसदी की गिरावट आई है। मंगलवार को जिंसों की कीमतें 2-3 फीसदी तब और लुढ़ गई जब दक्षिण कोरिया ने दक्षिण कोरिया के एक द्वीप पर गोलीबारी की।चीन प्राथमिक एल्युमीनियम का शुद्ध आयातक रहा है, हालांकि उच्च निर्यात केबाद इसका वॉल्यूम 60 फीसदी से ज्यादा गिरा है। चीन में अभी भी एल्युमीनियम का उत्पादन गिरावट का रुख दिखा रहा है। पिछले साल के मुकाबले चीन में प्राथमिक एल्युमीनियम की खपत में 5 फीसदी की गिरावट आई है। सितंबर महीने के मुकाबले परिष्कृत तांबे का आयात 30 फीसदी गिरा है और यह अक्टूबर 2009 के बाद का न्यूनतम स्तर है। जस्ते का आयात भी एक महीने पहले के मुकाबले 24 फीसदी गिरा है। अक्टूबर महीने में चीन आश्चर्यजनक रूप से परिष्कृत सीसे का शुद्ध निर्यातक बन गया था और अप्रैल 2010 के बाद ऐसा पहली बार देखा गया था। सितंबर के मुकाबले आयात आधा हो गया है जबकि इस अवधि में निर्यात में 66 फीसदी की उछाल आई । (BS Hindi)
23 नवंबर 2010
धातु वायदा शुरू करेगा एस कमोडिटी एक्सचेंज
अहमदाबाद November 21, 2010
अरंडी पर अपनी नजरें बनाए रखने के अलावा कोटक प्रवर्तित एस डेरिवेटिव्स ऐंड कमोडिटी एक्सचेंज लिमिटेड धातु व ऊर्जा क्षेत्र में भी प्रवेश करने जा रहा है यानी यह एक्सचेंज जल्दी ही धातु व ऊर्जा वायदा लॉन्च करेगा। देश का पांचवां सबसे बड़ा राष्ट्रीय जिंस एक्सचेंज अगले छह महीने में 12 जिंसों में वायदा अनुबंध पेश करेगा।एक्सचेंज के सीईओ दिलीप भाटिया ने कहा - हम धातु, ऊर्जा और कृषि जिंसों में अनुबंध पेश करेंगे। हालांकि अरंडी हमारे एक्सचेंज का बेंचमार्क जिंस बन जाएगा। उन्होंने कहा कि इस एक्सचेंज में रोजाना अरंडी में 15-20 करोड़ रुपये का कारोबार हो रहा है और यह सबसे ज्यादा है।मौजूदा समय में करीब 60 लोग इस एक्सचेंज के सदस्य हैं और एक्सचेंज ने इनके लिए न्यूनतम जमा राशि 8 लाख रुपये से घटाकर 2 लाख रुपये कर दी है और सालाना सब्सक्रिप्शन 5000 रुपये। साथथही लॉक इन पीरियड को भी तीन साल से घटाकर तीन महीने कर दिया है। क्षेत्रीय एक्सचेंज (अहमदाबाद कमोडिटी एक्सचेंज) से राष्ट्रीय एक्सचेंज के रूप में तब्दील होने वाले इस एक्सचेंज ने वायदा बाजार नियामक एफएमसी के पास गैर-कृषि जिंसों मसलन क्रूड, सोना और बुलियन में कारोबार करने की अनुमति की बाबत आवेदन किया है। भाटिया ने कहा कि पिछले साल अक्टूबर में करीब 150 करोड़ रुपये के कारोबार के मुकाबले इस साल हमारे एक्सचेंज का कारोबार 200 करोड़ रुपये को पार कर गया है। (BS Hindi)
अरंडी पर अपनी नजरें बनाए रखने के अलावा कोटक प्रवर्तित एस डेरिवेटिव्स ऐंड कमोडिटी एक्सचेंज लिमिटेड धातु व ऊर्जा क्षेत्र में भी प्रवेश करने जा रहा है यानी यह एक्सचेंज जल्दी ही धातु व ऊर्जा वायदा लॉन्च करेगा। देश का पांचवां सबसे बड़ा राष्ट्रीय जिंस एक्सचेंज अगले छह महीने में 12 जिंसों में वायदा अनुबंध पेश करेगा।एक्सचेंज के सीईओ दिलीप भाटिया ने कहा - हम धातु, ऊर्जा और कृषि जिंसों में अनुबंध पेश करेंगे। हालांकि अरंडी हमारे एक्सचेंज का बेंचमार्क जिंस बन जाएगा। उन्होंने कहा कि इस एक्सचेंज में रोजाना अरंडी में 15-20 करोड़ रुपये का कारोबार हो रहा है और यह सबसे ज्यादा है।मौजूदा समय में करीब 60 लोग इस एक्सचेंज के सदस्य हैं और एक्सचेंज ने इनके लिए न्यूनतम जमा राशि 8 लाख रुपये से घटाकर 2 लाख रुपये कर दी है और सालाना सब्सक्रिप्शन 5000 रुपये। साथथही लॉक इन पीरियड को भी तीन साल से घटाकर तीन महीने कर दिया है। क्षेत्रीय एक्सचेंज (अहमदाबाद कमोडिटी एक्सचेंज) से राष्ट्रीय एक्सचेंज के रूप में तब्दील होने वाले इस एक्सचेंज ने वायदा बाजार नियामक एफएमसी के पास गैर-कृषि जिंसों मसलन क्रूड, सोना और बुलियन में कारोबार करने की अनुमति की बाबत आवेदन किया है। भाटिया ने कहा कि पिछले साल अक्टूबर में करीब 150 करोड़ रुपये के कारोबार के मुकाबले इस साल हमारे एक्सचेंज का कारोबार 200 करोड़ रुपये को पार कर गया है। (BS Hindi)
फिर शुरू हो गर्ई एथेनॉल युक्त पेट्रोल की बिक्री
नई दिल्ली November 22, 2010
लगभग एक साल के अंतराल के बाद पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने का काम फिर से शुरू हो गया है। बेंगलुरु, मथुरा और गुजरात के कुछ भागों में एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की बिक्री शुरू हो गई है। पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने का काम धीरे-धीरे आगे बढ़ाया जाएगा और देश के बाकी हिस्सों में भी जल्द ही एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की बिक्री की जाएगी। हालांकि इसमें एथेनॉल की मात्रा अभी भी काफी सीमित है। इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी) के एक वरिष्ठï अधिकारी ने कहा, 'इस कार्यक्रम को स्थायी करने में हमें 2 से 3 सप्ताह का समय लगेगा। इसके बाद इसे देश के दूसरे भागों में भी बढ़ाया जाएगा। अनुमान है कि दिसंबर तक एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की बिक्री दिल्ली और मुंबई से शुरू हो जाएगी।' आईओसी के अलावा भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने भी एथेनॉल युक्त ईंधन की बिक्री शुरू की है। पेट्रोल में एथेनॉल मिश्रण की मात्रा फिलहाल केवल 5 फीसदी पर स्थिर है। यह मात्रा पिछले दो सालों से जारी है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल अक्टूबर माह से ही पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने का काम रोक दिया गया था क्योंकि तब देश में गन्ने का उत्पादन गिरने से एथेनॉल का आपूर्ति पूरी तरह बाधित हो गई थी। एथेनॉल को ग्रीन एनर्जी के दायरे में रखा जाता है और प्रदूषण कम करने के लिए एथेनॉल युक्त ईंधन पर जोर दिया जाता है। इसके अलावा ईंधन में एथेनॉल का प्रयोग बढऩे से कच्चे तेल के आयात पर हमारी निर्भरता कुछ हद तक कम होगी। कुछ तेल कंपनियां खुद ही एथेनॉल उत्पादन करने की योजना बना रही हैं। हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने एथेनॉल उत्पादन के लिए वर्ष 2008 में बिहार की दो बीमार चीनी मिलें खरीदी थी। इन मिलों में इस साल दिसंबर तक एथेनॉल उत्पादन शुरू कर देने की योजना है। चीनी उद्योग के अधिकारियों ने बताया कि एथेनॉल निर्माताओं ने तेल कंपनियों को 100 करोड़ लीटर एथेनॉल का ऑफर किया था, लेकिन इसमें से केवल 58 करोड़ लीटर एथेनॉल ही तय मानकों के अनुरूप पाया गया। ऐसे में तेल कंपनियों ने बाकी एथेनॉल लेने से मना कर दिया। सरकार ने एथेनॉल युक्त ईंधन के दाम 27 रुपये प्रति लीटर की मंजूरी दी है। पेट्रोल में करीब 5 फीसदी एथेनॉल मिलाने के लिए इसकी सालाना जरूरत करीब 86 करोड़ लीटर एथेनॉल की दरकार होगी। कंपनियां एथेनॉल के लिए फिर से नया टेंडर जारी कर सकती हैं। (BS Hindi)
लगभग एक साल के अंतराल के बाद पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने का काम फिर से शुरू हो गया है। बेंगलुरु, मथुरा और गुजरात के कुछ भागों में एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की बिक्री शुरू हो गई है। पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने का काम धीरे-धीरे आगे बढ़ाया जाएगा और देश के बाकी हिस्सों में भी जल्द ही एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की बिक्री की जाएगी। हालांकि इसमें एथेनॉल की मात्रा अभी भी काफी सीमित है। इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (आईओसी) के एक वरिष्ठï अधिकारी ने कहा, 'इस कार्यक्रम को स्थायी करने में हमें 2 से 3 सप्ताह का समय लगेगा। इसके बाद इसे देश के दूसरे भागों में भी बढ़ाया जाएगा। अनुमान है कि दिसंबर तक एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की बिक्री दिल्ली और मुंबई से शुरू हो जाएगी।' आईओसी के अलावा भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने भी एथेनॉल युक्त ईंधन की बिक्री शुरू की है। पेट्रोल में एथेनॉल मिश्रण की मात्रा फिलहाल केवल 5 फीसदी पर स्थिर है। यह मात्रा पिछले दो सालों से जारी है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल अक्टूबर माह से ही पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने का काम रोक दिया गया था क्योंकि तब देश में गन्ने का उत्पादन गिरने से एथेनॉल का आपूर्ति पूरी तरह बाधित हो गई थी। एथेनॉल को ग्रीन एनर्जी के दायरे में रखा जाता है और प्रदूषण कम करने के लिए एथेनॉल युक्त ईंधन पर जोर दिया जाता है। इसके अलावा ईंधन में एथेनॉल का प्रयोग बढऩे से कच्चे तेल के आयात पर हमारी निर्भरता कुछ हद तक कम होगी। कुछ तेल कंपनियां खुद ही एथेनॉल उत्पादन करने की योजना बना रही हैं। हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने एथेनॉल उत्पादन के लिए वर्ष 2008 में बिहार की दो बीमार चीनी मिलें खरीदी थी। इन मिलों में इस साल दिसंबर तक एथेनॉल उत्पादन शुरू कर देने की योजना है। चीनी उद्योग के अधिकारियों ने बताया कि एथेनॉल निर्माताओं ने तेल कंपनियों को 100 करोड़ लीटर एथेनॉल का ऑफर किया था, लेकिन इसमें से केवल 58 करोड़ लीटर एथेनॉल ही तय मानकों के अनुरूप पाया गया। ऐसे में तेल कंपनियों ने बाकी एथेनॉल लेने से मना कर दिया। सरकार ने एथेनॉल युक्त ईंधन के दाम 27 रुपये प्रति लीटर की मंजूरी दी है। पेट्रोल में करीब 5 फीसदी एथेनॉल मिलाने के लिए इसकी सालाना जरूरत करीब 86 करोड़ लीटर एथेनॉल की दरकार होगी। कंपनियां एथेनॉल के लिए फिर से नया टेंडर जारी कर सकती हैं। (BS Hindi)
असमय बारिश से धुली मिठास
मुंबई November 22, 2010
चीनी निर्माताओं को आशंका है कि चीनी उत्पादन के लिहाज से यह साल भी बुरा साल साबित हो सकता है। गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में अनियमित बारिश से गन्ना फसल को नुकसान पहुंचा है इसके अलावा अन्य कारणों से भी चीनी मिलों तक पर्याप्त गन्ना की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इससे चीनी उत्पादन पर अप्रत्याशित असर पड़ सकता है। चालू सत्र के दौरान देश के दो महत्वपूर्ण चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में पहले से ही गन्ना मूल्य निर्धारण को लेकर उलझन बना हुआ है। ऊपर से राज्य में हो रही असमय बारिश ने चीनी उत्पादन में बढ़ोतरी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। पिछले साल चीनी उत्पादन में भारी कमी के चलते इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था इससे चीनी उत्पादकों के मुनाफे पर काफी दबाव रहा था। इसके अलावा घरेलू स्तर पर चीनी की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने अतिरिक्त कोटा भी जारी कर दिया था। चीनी उत्पादकों ने पहले पहले उम्मीद जताई थी कि इस साल गन्ना की कम कीमत और चीनी के ऊंचे भाव के चलते उनकी लाभदायता बढ़ेगी। उद्योग के आकलन के मुताबिक अक्टूबर में आने वाली गन्ने की पहली फसल में करीब 0.5 से 1 फीसदी तक गिरावट दर्ज की गई है। गन्ने की पहली फसल अक्टूबर में कटाई के लिए पूरी तरह तैयार हो जाती है और इसी सत्र के दौरान सबसे ज्यादा गन्ना फसल आती है। उत्तर प्रदेश की चीनी मिल द्वारिकेश शुगर के निदेशक बी जे माहेश्वरी कहते हैं, 'फसल कटाई के समय बारिश के चलते गन्ना उत्पादन असर पड़ा है और इसका उत्पादन लागत खर्च बढऩे की आशंका है। जो अंतिम रूप से चीनी मिलों पर असर डालेगा।' कुछ इसी तरह की राय नैशननल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव्स शुगर फैक्र्टीज के प्रबंध निदेशक विनय कुमार की भी है। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में अक्टूबर माह में आने वाली गन्ने की पहली फसल में गिरावट आई है। इस दौरान महाराष्ट्र में गन्ना की आवक पर बुरा प्रभाव पड़ा है। महाराष्ट्र में 131 चीनी मिलें चालू सत्र के दौरान अब तक केवल 4.4 लाख टन चीनी उत्पादन किया है जबकि इसी अवधि में पिछले साल 5.7 लाख टन चीनी का उत्पादन किया गया था। इससे साफ है कि पिछले साल की तुलना में यहां चीनी उत्पादन में 1 फीसदी से 8 फीसदी तक गिरावट आई है। महाराष्ट्र के चीनी मिल संगठनों ने भी आशंका व्यक्त की है कि उत्पादन में गिरावट आ सकती है। महाराष्ट्र के सहकारी चीनी मिल परिसंघ, जिसके अंतर्गत 170 चीनी मिलें आती है, ने पहले चालू सत्र के अंत तक चीन उत्पादन 95 लाख टन रहने का अनुमान था लेकिन अब उत्पादन घटने की आशंका है। (BS Hindi)
चीनी निर्माताओं को आशंका है कि चीनी उत्पादन के लिहाज से यह साल भी बुरा साल साबित हो सकता है। गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में अनियमित बारिश से गन्ना फसल को नुकसान पहुंचा है इसके अलावा अन्य कारणों से भी चीनी मिलों तक पर्याप्त गन्ना की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इससे चीनी उत्पादन पर अप्रत्याशित असर पड़ सकता है। चालू सत्र के दौरान देश के दो महत्वपूर्ण चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में पहले से ही गन्ना मूल्य निर्धारण को लेकर उलझन बना हुआ है। ऊपर से राज्य में हो रही असमय बारिश ने चीनी उत्पादन में बढ़ोतरी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। पिछले साल चीनी उत्पादन में भारी कमी के चलते इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था इससे चीनी उत्पादकों के मुनाफे पर काफी दबाव रहा था। इसके अलावा घरेलू स्तर पर चीनी की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने अतिरिक्त कोटा भी जारी कर दिया था। चीनी उत्पादकों ने पहले पहले उम्मीद जताई थी कि इस साल गन्ना की कम कीमत और चीनी के ऊंचे भाव के चलते उनकी लाभदायता बढ़ेगी। उद्योग के आकलन के मुताबिक अक्टूबर में आने वाली गन्ने की पहली फसल में करीब 0.5 से 1 फीसदी तक गिरावट दर्ज की गई है। गन्ने की पहली फसल अक्टूबर में कटाई के लिए पूरी तरह तैयार हो जाती है और इसी सत्र के दौरान सबसे ज्यादा गन्ना फसल आती है। उत्तर प्रदेश की चीनी मिल द्वारिकेश शुगर के निदेशक बी जे माहेश्वरी कहते हैं, 'फसल कटाई के समय बारिश के चलते गन्ना उत्पादन असर पड़ा है और इसका उत्पादन लागत खर्च बढऩे की आशंका है। जो अंतिम रूप से चीनी मिलों पर असर डालेगा।' कुछ इसी तरह की राय नैशननल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव्स शुगर फैक्र्टीज के प्रबंध निदेशक विनय कुमार की भी है। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश में अक्टूबर माह में आने वाली गन्ने की पहली फसल में गिरावट आई है। इस दौरान महाराष्ट्र में गन्ना की आवक पर बुरा प्रभाव पड़ा है। महाराष्ट्र में 131 चीनी मिलें चालू सत्र के दौरान अब तक केवल 4.4 लाख टन चीनी उत्पादन किया है जबकि इसी अवधि में पिछले साल 5.7 लाख टन चीनी का उत्पादन किया गया था। इससे साफ है कि पिछले साल की तुलना में यहां चीनी उत्पादन में 1 फीसदी से 8 फीसदी तक गिरावट आई है। महाराष्ट्र के चीनी मिल संगठनों ने भी आशंका व्यक्त की है कि उत्पादन में गिरावट आ सकती है। महाराष्ट्र के सहकारी चीनी मिल परिसंघ, जिसके अंतर्गत 170 चीनी मिलें आती है, ने पहले चालू सत्र के अंत तक चीन उत्पादन 95 लाख टन रहने का अनुमान था लेकिन अब उत्पादन घटने की आशंका है। (BS Hindi)
खाद्य तेल उत्पादन बढ़ाएगी इमामी
नई दिल्ली November 22, 2010
खाद्य तेल के कारोबार में तीन बड़ी कंपनियों में से एक बनने की खातिर कोलकाता का इमामी समूह उत्तर भारत के राज्यों में अधिग्रहण करने की योजना बना रहा है। इसके साथ ही विस्तार योजना पर 700 करोड़ रुपये खर्च करने की कंपनी की योजना है।इमामी समूह के निदेशक आदित्य वी. अग्रवाल ने कहा कि उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में से एक में हम अधिग्रहण करना चाहते हैं और राजस्थान हमारी प्राथमिकता होगी। इस अधिग्रहण और जारी विस्तार योजना से हमें देश के अग्रणी खाद्य तेल उत्पादक बनने में मदद मिलेगी। फिलहाल अदाणी, रुचि सोया और के. एस. ऑयल तीन बड़ी कंपनियां हैं।कंपनी फिलहाल अपने हल्दिया संयंत्र में रोजाना 1600 टन खाद्य तेल का उत्पादन करती है। 250 करोड़ रुपये के निवेश से कंपनी इस संयंत्र का विस्तार कर रही है और इस विस्तार के बाद मौजूदा क्षमता 2800 टन रोजाना हो जाएगा। कंपनी ने कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा में हेल्दी व टेस्टी ब्रांड के नाम से सरसों, सोया, सनफ्लावर आदि तेल पेश किए हैं। ये उत्पाद आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और झारखंड में भी पेश किए जाएंगे।आंध्र प्रदेश के कृष्णापट्टनम में कंपनी 200 करोड़ रुपये की लागत से संयंत्र स्थापित करेगी। इस संयंत्र की क्षमता 1200 टन रोजाना की होगी। इसके अलावा कंपनी गुजरात में बंदरगाह आधारित इकाई लगाने पर भी गंभीरता से विचार कर रही है। अग्रवाल ने कहा - इस इकाई की क्षमता 1000 से 1500 टन रोजाना की होगी और इसके लिए 250 करोड़ रुपये के निवेश की दरकार होगी। उन्होंने कहा कि अगले कुछ महीनों में इस पर अंतिम फैसला ले लिया जाएगा।भारत में प्रति व्यक्ति सालाना खपत 12.7 किलोग्राम की है जो कि वैश्विक औसत 20 किलोग्राम से काफी कम है। हाल में राबो इंडिया की रिपोर्ट में भारतीय खाद्य तेल उद्योग के लिए उपलब्ध विकास के मौके की बात कही गई थी।शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में कुल खपत का 50 फीसदी बिना पैकिंग वाले तेल का होता है। हालांकि आय बढऩे के साथ भारत में खुदरा क्षेत्र के विकास हुआ है और इसने खास तौर से शहरी भारत में ब्रांडेड तेल बेचने का मौका उपलब्ध कराया है। ब्रांडेड तेल की बिक्री सालाना 20 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है जबकि बाजार में सनफ्लावर और सोया तेल का अग्रणी स्थान है। भारतीय खाद्य तेल उद्योग 150 लाख टन का है और साल 2015 तक इसके 200 लाख टन तक पहुंचने की उम्मीद है। (BS Hindi)
खाद्य तेल के कारोबार में तीन बड़ी कंपनियों में से एक बनने की खातिर कोलकाता का इमामी समूह उत्तर भारत के राज्यों में अधिग्रहण करने की योजना बना रहा है। इसके साथ ही विस्तार योजना पर 700 करोड़ रुपये खर्च करने की कंपनी की योजना है।इमामी समूह के निदेशक आदित्य वी. अग्रवाल ने कहा कि उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में से एक में हम अधिग्रहण करना चाहते हैं और राजस्थान हमारी प्राथमिकता होगी। इस अधिग्रहण और जारी विस्तार योजना से हमें देश के अग्रणी खाद्य तेल उत्पादक बनने में मदद मिलेगी। फिलहाल अदाणी, रुचि सोया और के. एस. ऑयल तीन बड़ी कंपनियां हैं।कंपनी फिलहाल अपने हल्दिया संयंत्र में रोजाना 1600 टन खाद्य तेल का उत्पादन करती है। 250 करोड़ रुपये के निवेश से कंपनी इस संयंत्र का विस्तार कर रही है और इस विस्तार के बाद मौजूदा क्षमता 2800 टन रोजाना हो जाएगा। कंपनी ने कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा में हेल्दी व टेस्टी ब्रांड के नाम से सरसों, सोया, सनफ्लावर आदि तेल पेश किए हैं। ये उत्पाद आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और झारखंड में भी पेश किए जाएंगे।आंध्र प्रदेश के कृष्णापट्टनम में कंपनी 200 करोड़ रुपये की लागत से संयंत्र स्थापित करेगी। इस संयंत्र की क्षमता 1200 टन रोजाना की होगी। इसके अलावा कंपनी गुजरात में बंदरगाह आधारित इकाई लगाने पर भी गंभीरता से विचार कर रही है। अग्रवाल ने कहा - इस इकाई की क्षमता 1000 से 1500 टन रोजाना की होगी और इसके लिए 250 करोड़ रुपये के निवेश की दरकार होगी। उन्होंने कहा कि अगले कुछ महीनों में इस पर अंतिम फैसला ले लिया जाएगा।भारत में प्रति व्यक्ति सालाना खपत 12.7 किलोग्राम की है जो कि वैश्विक औसत 20 किलोग्राम से काफी कम है। हाल में राबो इंडिया की रिपोर्ट में भारतीय खाद्य तेल उद्योग के लिए उपलब्ध विकास के मौके की बात कही गई थी।शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में कुल खपत का 50 फीसदी बिना पैकिंग वाले तेल का होता है। हालांकि आय बढऩे के साथ भारत में खुदरा क्षेत्र के विकास हुआ है और इसने खास तौर से शहरी भारत में ब्रांडेड तेल बेचने का मौका उपलब्ध कराया है। ब्रांडेड तेल की बिक्री सालाना 20 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है जबकि बाजार में सनफ्लावर और सोया तेल का अग्रणी स्थान है। भारतीय खाद्य तेल उद्योग 150 लाख टन का है और साल 2015 तक इसके 200 लाख टन तक पहुंचने की उम्मीद है। (BS Hindi)
18 नवंबर 2010
अक्टूबर में वनस्पति तेलों का आयात 25 फीसदी बढ़ा
रुपये के मुकाबले डॉलर कमजोर होने और घरेलू खपत बढऩे से अक्टूबर महीने में वनस्पति तेलों के आयात में 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस बढ़त के साथ अक्टूबर में वनस्पति तेलों का आयात बढ़कर 8.32 लाख टन हो गया है। जबकि तेल वर्ष 2009-10 (नवंबर-09 से अक्टूबर-10) के दौरान रिकार्ड 92.4 लाख टन का आयात हुआ है। सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी. वी. मेहता ने बताया कि देश में खाद्य तेलों की प्रति व्यक्ति खपत बढ़ी है। इसके अलावा खली का निर्यात कम होने से मिलों का मुनाफा कम हो गया था जिससे तिलहनों की पेराई कम होने के कारण भी खाद्य तेलों के आयात को बढ़ावा मिला है। वैसे भी रुपये के मुकाबले डॉलर कमजोर होने से भी आयातकों को ज्यादा मुनाफा हो रहा है। उन्होंने बताया कि अक्टूबर माह में 8.32 लाख टन वनस्पति तेलों का आयात हुआ है जो पिछले साल की समान अवधि के 6.67 लाख टन से 25 फीसदी ज्यादा है। चालू तेल वर्ष 2009-10 के दौरान देश में रिकार्ड ९2.4 लाख टन वनस्पति तेलों का आयात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 86.62 लाख टन वनस्पति तेलों का आयात हुआ था। घरेलू बाजार में वनस्पति तेलों का कुल स्टॉक 14.50 लाख टन है जो बीते अक्टूबर के मुकाबले करीब 50 हजार टन कम है। फिलहाल खरीफ तिलहनों की आवकों का दबाव बना हुआ है साथ ही खली में निर्यात मांग अच्छी बनी हुई है। ऐसे में आगामी दिनों में घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की उपलब्धता तो बढ़ेगी लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में भाव तेज होने और ब्याह-शादियों की मांग निकलने से खाद्य तेलों की कीमतों में मजबूती ही बने रहने की संभावना है।बात पते कीतेल वर्ष 2009-10 मे कुल वनस्पति तेल आयात 92.4 लाख टन का रहा है। जो तेल वर्ष 2008-09 के दौरान 86.62 लाख टन रहा था। (Business Bhaskar)
देश में टायर उत्पादन बढ़ा
कोच्चि November 16, 2010
चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-सितंबर माह के दौरान देश की प्रमुख टायर निर्माता कंपनियों के टायर उत्पादन में 28 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई। हालांकि इस दौरान टायर निर्यात भी अपेक्षाकृत अच्छा रहा। इस साल अप्रैल-सितंबर में टायर निर्यात 18 फीसदी की दर से बढ़ा। जबकि पिछले साल इसी अवधि में निर्यात में वृद्घि 15.5 फीसदी रही थी। ऑटोमोटिव टायर मैन्युफेक्चरर्स एसोसिएशन (एटीएमए) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक सभी तरह के टायरों के उत्पादन में वृद्घि में दर्ज हुई। जहां तक निर्यात की बात है, ट्रक और बसों के टायर, हल्के वाणिज्यिक वाहन और ट्रैक्टर के टायरों के निर्यात में गिरावट दर्ज हुई है। एटीएमए के आंकड़ों के मुताबिक देश में सभी तरह के टायरों का कुल उत्पादन बढ़कर 95,33,237 हो गया जबकि 2009-10 की समान अवधि (अप्रैल-सितंबर) में कुल 74,38,997 टायरों का निर्माण हुआ था। इस दौरान 4,86,608 टायरों का निर्यात किया गया। वहीं पिछले साल इसी अवधि में 4,13,587 टायरों को विदेश भेजा गया था। माना जा रहा है कि देश में सभी तरह की गाडिय़ों की बिक्री में भारी इजाफा होने से टायरों का उत्पादन बढ़ा।उत्पादन में सबसे ज्यादा वृद्घि मोटरसाइकिल और स्कूटर सेगमेंट में हुई। दोपहिया वाहनों के टायर का उत्पादन 67 फीसदी बढ़ा। वहीं तीन पहिया वाहनों के टायरों का उत्पादन 46 फीसदी की दर से बढ़ा। इस साल अप्रैल-सितंबर में दोपहिया वाहनों के लिए 9,60,289 टायरों का निर्माण हुआ जबकि पिछसे साल इसी माह के दौरान 5,75,046 टायर तैयार किए गए थे। वहीं इस साल 5,66,532 टायर तीन पहिया वाहनों के लिए तैयार किए गए। पिछले साल की समान अवधि में यह आंकड़ा 3,87,400 टायर था। उत्पादन में सबसे कम बढ़ोतरी ट्रक, बस, हल्के वाणिज्यिक वाहन और टै्रक्टर के टायरों में रही। इस साल हल्के वाणिज्यिक वाहनों के टायरों का उत्पादन केवल 2 फीसदी और बस एवं ट्रक के टायरों का उत्पादन 5 फीसदी ज्यादा रहा। इस साल ट्रक व बसों के लिए कुल 12,68,024 टायर तैयार किए गए जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 12,13,146 टायर रहा था। दूसरी तरफ, यात्री कारों की बिक्री बढऩे से इसका उत्पादन भी बढ़ा। इसके चलते कार के टायरों की मांग सबसे ज्यादा रही। इस साल अप्रैल-सितंबर माह में कार के टायरों का उत्पादन 41 फीसदी बढ़कर 20,91,044 टायर हो गया। निर्यात में सबसे ज्यादा वृद्घि औद्योगिक उपयोगी वाहनों और जीप के टायरों में रही। इसका निर्यात रिकॉर्ड 1956 फीसदी बढ़कर 9151 टायर हो गया जबकि पिछले साल की इसी अवधि में यह केवल 445 टायर था। जीप के टायरों का निर्यात भी 889 फीसदी बढ़ा। (BS Hindi)
चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-सितंबर माह के दौरान देश की प्रमुख टायर निर्माता कंपनियों के टायर उत्पादन में 28 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई। हालांकि इस दौरान टायर निर्यात भी अपेक्षाकृत अच्छा रहा। इस साल अप्रैल-सितंबर में टायर निर्यात 18 फीसदी की दर से बढ़ा। जबकि पिछले साल इसी अवधि में निर्यात में वृद्घि 15.5 फीसदी रही थी। ऑटोमोटिव टायर मैन्युफेक्चरर्स एसोसिएशन (एटीएमए) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक सभी तरह के टायरों के उत्पादन में वृद्घि में दर्ज हुई। जहां तक निर्यात की बात है, ट्रक और बसों के टायर, हल्के वाणिज्यिक वाहन और ट्रैक्टर के टायरों के निर्यात में गिरावट दर्ज हुई है। एटीएमए के आंकड़ों के मुताबिक देश में सभी तरह के टायरों का कुल उत्पादन बढ़कर 95,33,237 हो गया जबकि 2009-10 की समान अवधि (अप्रैल-सितंबर) में कुल 74,38,997 टायरों का निर्माण हुआ था। इस दौरान 4,86,608 टायरों का निर्यात किया गया। वहीं पिछले साल इसी अवधि में 4,13,587 टायरों को विदेश भेजा गया था। माना जा रहा है कि देश में सभी तरह की गाडिय़ों की बिक्री में भारी इजाफा होने से टायरों का उत्पादन बढ़ा।उत्पादन में सबसे ज्यादा वृद्घि मोटरसाइकिल और स्कूटर सेगमेंट में हुई। दोपहिया वाहनों के टायर का उत्पादन 67 फीसदी बढ़ा। वहीं तीन पहिया वाहनों के टायरों का उत्पादन 46 फीसदी की दर से बढ़ा। इस साल अप्रैल-सितंबर में दोपहिया वाहनों के लिए 9,60,289 टायरों का निर्माण हुआ जबकि पिछसे साल इसी माह के दौरान 5,75,046 टायर तैयार किए गए थे। वहीं इस साल 5,66,532 टायर तीन पहिया वाहनों के लिए तैयार किए गए। पिछले साल की समान अवधि में यह आंकड़ा 3,87,400 टायर था। उत्पादन में सबसे कम बढ़ोतरी ट्रक, बस, हल्के वाणिज्यिक वाहन और टै्रक्टर के टायरों में रही। इस साल हल्के वाणिज्यिक वाहनों के टायरों का उत्पादन केवल 2 फीसदी और बस एवं ट्रक के टायरों का उत्पादन 5 फीसदी ज्यादा रहा। इस साल ट्रक व बसों के लिए कुल 12,68,024 टायर तैयार किए गए जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 12,13,146 टायर रहा था। दूसरी तरफ, यात्री कारों की बिक्री बढऩे से इसका उत्पादन भी बढ़ा। इसके चलते कार के टायरों की मांग सबसे ज्यादा रही। इस साल अप्रैल-सितंबर माह में कार के टायरों का उत्पादन 41 फीसदी बढ़कर 20,91,044 टायर हो गया। निर्यात में सबसे ज्यादा वृद्घि औद्योगिक उपयोगी वाहनों और जीप के टायरों में रही। इसका निर्यात रिकॉर्ड 1956 फीसदी बढ़कर 9151 टायर हो गया जबकि पिछले साल की इसी अवधि में यह केवल 445 टायर था। जीप के टायरों का निर्यात भी 889 फीसदी बढ़ा। (BS Hindi)
इस साल बढ़ेगी चावल की पैदावार : एफएओ
मुंबई November 17, 2010
बेहतर मॉनसून और रकबे में बढ़ोतरी के कारण इस साल चावल की पैदावार 12.36 फीसदी बढऩे की संभावना है। बुधवार को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा जारी अनुमान में यह बात कही गई है। संगठन का अनुमान है कि इस साल चावल की पैदावार पिछले साल के 8.9 करोड़ टन के मुकाबले 10 करोड़ टन रहेगी। चावल उत्पादन का वैश्विक अनुमान 46.7 करोड़ टन का है, जो जून की शुरुआत में व्यक्त किए गए 47.2 करोड़ टन से कम है, लेकिन 2009-10 से ज्यादा।उच्च उत्पादन के बावजूद भारत व यूनान समेत कई और देशों द्वारा पाबंदी लगाने की वजह से विश्व व्यापार के लिए इसकी उपलब्धता सीमित रहेगी। पिछले साल भारत ने महंगाई पर लगाम कसने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले चावल के निर्यात पर रोक लगा दी थी।साल 2011 में वैश्विक स्तर पर 46 करोड़ टन चावल के इस्तेमाल का अनुमान लगाया गया है, जिसमें भोजन, चारा और दूसरे इस्तेमाल शामिल हैं। लेकिन यह साल 2010 के मौजूदा अनुमान से 1.6 फीसदी ज्यादा है। इसकी ज्यादातर मात्रा भोजन के रूप में इस्तेमाल होगी और मौजूदा साल के 38.8 करोड़ टन के मुकाबले यह 39.4 करोड़ टन के स्तर पर रहेगी। दूसरी ओर, चारे के रूप में इसका इस्तेमाल मौजूदा साल के 1.2 करोड़ टन के स्तर पर ही रहने की संभावना है। ताजा अनुमान के मुताबिक, साल 2010-11 में वैश्विक चावल उत्पादन इसकी खपत से करीब 70 लाख टन ज्यादा होगा। इस वजह से साल 2010 में बचे हुए (कैरीओवर स्टॉक) 12.6 करोड़ टन से बढ़कर 13.1 करोड़ टन हो जाएगी। इस बढ़ोतरी का ज्यादातर हिस्सा चीन और भारत में जमा होगा। (BS Hindi)
बेहतर मॉनसून और रकबे में बढ़ोतरी के कारण इस साल चावल की पैदावार 12.36 फीसदी बढऩे की संभावना है। बुधवार को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा जारी अनुमान में यह बात कही गई है। संगठन का अनुमान है कि इस साल चावल की पैदावार पिछले साल के 8.9 करोड़ टन के मुकाबले 10 करोड़ टन रहेगी। चावल उत्पादन का वैश्विक अनुमान 46.7 करोड़ टन का है, जो जून की शुरुआत में व्यक्त किए गए 47.2 करोड़ टन से कम है, लेकिन 2009-10 से ज्यादा।उच्च उत्पादन के बावजूद भारत व यूनान समेत कई और देशों द्वारा पाबंदी लगाने की वजह से विश्व व्यापार के लिए इसकी उपलब्धता सीमित रहेगी। पिछले साल भारत ने महंगाई पर लगाम कसने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले चावल के निर्यात पर रोक लगा दी थी।साल 2011 में वैश्विक स्तर पर 46 करोड़ टन चावल के इस्तेमाल का अनुमान लगाया गया है, जिसमें भोजन, चारा और दूसरे इस्तेमाल शामिल हैं। लेकिन यह साल 2010 के मौजूदा अनुमान से 1.6 फीसदी ज्यादा है। इसकी ज्यादातर मात्रा भोजन के रूप में इस्तेमाल होगी और मौजूदा साल के 38.8 करोड़ टन के मुकाबले यह 39.4 करोड़ टन के स्तर पर रहेगी। दूसरी ओर, चारे के रूप में इसका इस्तेमाल मौजूदा साल के 1.2 करोड़ टन के स्तर पर ही रहने की संभावना है। ताजा अनुमान के मुताबिक, साल 2010-11 में वैश्विक चावल उत्पादन इसकी खपत से करीब 70 लाख टन ज्यादा होगा। इस वजह से साल 2010 में बचे हुए (कैरीओवर स्टॉक) 12.6 करोड़ टन से बढ़कर 13.1 करोड़ टन हो जाएगी। इस बढ़ोतरी का ज्यादातर हिस्सा चीन और भारत में जमा होगा। (BS Hindi)
इस साल रहेगी सोने की रिकॉर्ड मांग!
मुंबई November 17, 2010
ऊंची कीमत के बावजूद इस साल सोने की मांग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने की संभावना है। इस धातु की आंतरिक कीमत और निवेश पर ज्यादा रिटर्न मिलने की वजह से उपभोक्ताओं का इसके प्रति भरोसा चौंकाने वाला रहा है और यही कारण है कि सोने की मांग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकती है। वैश्विक आर्थिक गिरावट के पूर्व साल 2007 में कुल मिलाकर 750 टन सोने की मांग दर्ज की गई थी। तीसरी तिमाही में सोने की मौजूदा औसत कीमत में डॉलर के हिसाब से 44 फीसदी की उछाल आई है और रुपये के हिसाब से यह बढ़ोतरी 105 फीसदी है।वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के प्रबंध निदेशक (एशिया प्रशांत) अजय मित्रा ने तीसरी तिमाही में सोने की मांग की घोषणा करते हुए कहा - अगर उपभोक्ता का उत्साह अगले एक से डेढ़ महीने तक जारी रहता है तो सोने की मांग साल 2007 के स्तर को पार कर जाएगी।सोना और हीरा जडि़त आभूषणों के प्रति मध्य वर्ग की बढ़ती रुचि की बदौलत मौजूदा साल की तीसरी तिमाही में इस कीमती धातु की मांग 27 फीसदी बढ़कर 229.5 टन (41823 करोड़ रुपये) पर पहुंच गई है जबकि पिछले साल इस अवधि में 179.6 टन सोने की मांग रही थी। इस तिमाही में आभूषणों की मांग में 36 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और यह 184.5 टन पर जा पहुंचा है जबकि एक साल पहले यह 135.2 टन था। रुपये के हिसाब से मांग 33800 करोड़ रुपये पर पहुंच गई है, जो साल 2009 के मुकाबले 67 फीसदी ज्यादा है।तीसरी तिमाही में देश में शुद्ध खुदरा निवेश 45.1 टन पर पहुंच गया, जो साल 2009 की समान अवधि के मुकाबले एक फीसदी ज्यादा है। रुपये के हिसाब से हालांकि मांग 8023 करोड़ रुपये पर पहुंच गई और 2009 की समान अवधि के मुकाबले इसमें 30 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है। यह बढ़ोतरी खुदरा निवेशकों की उन उम्मीदों को प्रतिबिंबित करता है कि अभी कीमतों में और बढ़ोतरी होगी। मौजूदा निवेशक इस उम्मीद में अपना निवेश बनाए हुए हैं कि लंबी अवधि में उन्हें बेहतर रिटर्न मिलेगा। इस्तेमाल किए गए आभूषण की बिक्री इस तिमाही की शुरुआत में अच्छी थी और यह 25 टन पर पहुंच गई जबकि पिछले साल यह 18 टन था और पिछली तिमाही में 20 टन।वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक, समीक्षाधीन तिमाही के दौरान सोने का कुल आयात 214 टन पर पहुंच गया जबकि साल 2009 की समान अवधि में यह 176 टन था और मौजूदा साल की पहली तिमाही में 160 टन था। मित्रा ने कहा कि ऐसे समय में जब इस बात पर बहस चल रही थी कि क्या उच्च कीमत के बाद भी उपभोक्ताओं के बीच निवेश की खातिर सोना प्राथमिकता वाले विकल्प के तौर पर बना रहेगा, पर यह मांग के हमारे अनुमान से काफी आगे चला गया है। जनवरी-सितंबर की अवधि में भारत में सोने की मांग में 79 फीसदी की बढ़त आई है और यह 650.4 टन पर पहुंच गया है जबकि पिछले साल इस अवधि में 363 टन की मांग थी। यह आंकड़ा बताता है कि मांग में काफी तेजी आई है।मौजूदा साल की पहली तीन तिमाही में सोने का आयात 624 टन का रहा और साल 2009 के मुकाबले यह 65 टन ज्यादा है। पहले नौ महीने में स्वर्ण आभूषण की मांग में 73 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 513.5 टन पर जा पहुंचा जबकि साल 2009 में यह 297.2 टन था। कीमत के हिसाब से मांग में पिछले साल के मुकाबले 105 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 89453 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। जनवरी-सितंबर के दौरान सोने में निवेश में 108 फीसदी की बढ़त आई और यह 136.9 फीसदी पर पहुंच गया जबकि साल 2009 की समान अवधि में यह 65.8 टन रहा था। पिछले पांच साल में उपभोक्ताओं को इसमें औसतन 21-24 फीसदी का रिटर्न मिला है और निवेश के दूसरे गंतव्यों के मुकाबले यह ज्यादा है। (BS Hindi)
ऊंची कीमत के बावजूद इस साल सोने की मांग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने की संभावना है। इस धातु की आंतरिक कीमत और निवेश पर ज्यादा रिटर्न मिलने की वजह से उपभोक्ताओं का इसके प्रति भरोसा चौंकाने वाला रहा है और यही कारण है कि सोने की मांग रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकती है। वैश्विक आर्थिक गिरावट के पूर्व साल 2007 में कुल मिलाकर 750 टन सोने की मांग दर्ज की गई थी। तीसरी तिमाही में सोने की मौजूदा औसत कीमत में डॉलर के हिसाब से 44 फीसदी की उछाल आई है और रुपये के हिसाब से यह बढ़ोतरी 105 फीसदी है।वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के प्रबंध निदेशक (एशिया प्रशांत) अजय मित्रा ने तीसरी तिमाही में सोने की मांग की घोषणा करते हुए कहा - अगर उपभोक्ता का उत्साह अगले एक से डेढ़ महीने तक जारी रहता है तो सोने की मांग साल 2007 के स्तर को पार कर जाएगी।सोना और हीरा जडि़त आभूषणों के प्रति मध्य वर्ग की बढ़ती रुचि की बदौलत मौजूदा साल की तीसरी तिमाही में इस कीमती धातु की मांग 27 फीसदी बढ़कर 229.5 टन (41823 करोड़ रुपये) पर पहुंच गई है जबकि पिछले साल इस अवधि में 179.6 टन सोने की मांग रही थी। इस तिमाही में आभूषणों की मांग में 36 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और यह 184.5 टन पर जा पहुंचा है जबकि एक साल पहले यह 135.2 टन था। रुपये के हिसाब से मांग 33800 करोड़ रुपये पर पहुंच गई है, जो साल 2009 के मुकाबले 67 फीसदी ज्यादा है।तीसरी तिमाही में देश में शुद्ध खुदरा निवेश 45.1 टन पर पहुंच गया, जो साल 2009 की समान अवधि के मुकाबले एक फीसदी ज्यादा है। रुपये के हिसाब से हालांकि मांग 8023 करोड़ रुपये पर पहुंच गई और 2009 की समान अवधि के मुकाबले इसमें 30 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है। यह बढ़ोतरी खुदरा निवेशकों की उन उम्मीदों को प्रतिबिंबित करता है कि अभी कीमतों में और बढ़ोतरी होगी। मौजूदा निवेशक इस उम्मीद में अपना निवेश बनाए हुए हैं कि लंबी अवधि में उन्हें बेहतर रिटर्न मिलेगा। इस्तेमाल किए गए आभूषण की बिक्री इस तिमाही की शुरुआत में अच्छी थी और यह 25 टन पर पहुंच गई जबकि पिछले साल यह 18 टन था और पिछली तिमाही में 20 टन।वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक, समीक्षाधीन तिमाही के दौरान सोने का कुल आयात 214 टन पर पहुंच गया जबकि साल 2009 की समान अवधि में यह 176 टन था और मौजूदा साल की पहली तिमाही में 160 टन था। मित्रा ने कहा कि ऐसे समय में जब इस बात पर बहस चल रही थी कि क्या उच्च कीमत के बाद भी उपभोक्ताओं के बीच निवेश की खातिर सोना प्राथमिकता वाले विकल्प के तौर पर बना रहेगा, पर यह मांग के हमारे अनुमान से काफी आगे चला गया है। जनवरी-सितंबर की अवधि में भारत में सोने की मांग में 79 फीसदी की बढ़त आई है और यह 650.4 टन पर पहुंच गया है जबकि पिछले साल इस अवधि में 363 टन की मांग थी। यह आंकड़ा बताता है कि मांग में काफी तेजी आई है।मौजूदा साल की पहली तीन तिमाही में सोने का आयात 624 टन का रहा और साल 2009 के मुकाबले यह 65 टन ज्यादा है। पहले नौ महीने में स्वर्ण आभूषण की मांग में 73 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 513.5 टन पर जा पहुंचा जबकि साल 2009 में यह 297.2 टन था। कीमत के हिसाब से मांग में पिछले साल के मुकाबले 105 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 89453 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। जनवरी-सितंबर के दौरान सोने में निवेश में 108 फीसदी की बढ़त आई और यह 136.9 फीसदी पर पहुंच गया जबकि साल 2009 की समान अवधि में यह 65.8 टन रहा था। पिछले पांच साल में उपभोक्ताओं को इसमें औसतन 21-24 फीसदी का रिटर्न मिला है और निवेश के दूसरे गंतव्यों के मुकाबले यह ज्यादा है। (BS Hindi)
दुल्हन के गहनों में अब नहीं रहा पहले सा 'दम'!
November 17, 2010
सोने का भाव आसमान पर पहुंचने के बावजूद शादी-ब्याह के मौसम में लोग गहने और जेवरात खरीदने से चूक नहीं रहे हैं। लेकिन गहनों के दाम पिछले साल के मुकाबले ज्यादा होने के कारण वे कम वजन के जेवर खरीदने पर जोर दे रहे हैं। इसलिए आभूषण विक्रेता भी कम वजन के गहनों के जरिये ग्राहकों को लुभा रहे हैं।आभूषण कारोबारियों का यह भी कहना है कि मंदी छंटने और आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर होने की वजह से लोग गहनों में पैसा लगा रहे हैं। इसके अलावा शादी-ब्याह के बहाने वे सोने में निवेश से भी नहीं चूक रहे हैं। इसलिए शादियों के सीजन को भुनाने के लिए कारोबारियों ने भी कमर कस ली है।दिल्ली बुलियन ऐंड ज्वैलर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष और आभूषण कारोबारी विमल कुमार गोयल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पिछले साल इसी वक्त सोने का भाव 16,500 रुपये के करीब था, जो अब 20,000 रुपये का आंकड़ा लांघ चुका है। इसके बावजूद कारोबार में कमी नहीं दिख रही है। वह कहते हैं, 'दीवाली पर भी इस बार कारोबार में 20 फीसदी का इजाफा रहा। लेकिन ग्राहक वजन के मामले में चौकस हो गए हैं। अब वे हल्के गहनों को तरजीह दे रहे हैं। मसलन 50 ग्राम वजन के नेकलेस के बजाय 30 या 40 ग्राम का सोने का नेकलेस खरीदा जा रहा है।'चांदनी चौक स्थित शिवम ज्वैलर्स के मोहित अग्रवाल भी इस बात से इत्तफाक रखते हैं। वह कहते हैं कि आमतौर पर ग्राहक बजट के हिसाब से ही गहने खरीदता है। अगर शादी में गहने खरीदने के लिए किसी ने 10 लाख रुपये का बजट रखा है तो इतना पैसा वह खर्च जरूर करेगा। हां, अब वह कम वजन के गहने लेगा। निवेश के लिहाज से भी ग्राहक गहनों की तरफ मुड़ रहे हैं।'ऑल इंडिया सर्राफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शीलचंद जैन बताते हैं कि महंगाई की वजह से ग्राहक हीरे के गहनों में भी समझौता करने को तैयार हैं। उन्होंने बताया कि हीरे के गहनों की मांग तो बाजार में खूब है, लेकिन कारोबारी सस्ते गहनों पर ही जोर दे रहे हैं। ग्राहकों के बजट को देखते हुए 18 कैरट के बजाय 14 या 12 कैरट की डायमंड ज्वैलरी बाजार में छाई है। ग्राहक भी उसे हाथोहाथ ले रहे हैं क्योंकि वह अपेक्षाकृत सस्ती है।गोयल ने बताया कि आभूषण कारोबारियों को इस बार पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी ज्यादा बिक्री होने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि आर्थिक हालत अच्छी होने के कारण और सोने का भाव आगे और बढऩे के अंदेशे में इस बार खरीदारी तेज है। (BS Hindi)
सोने का भाव आसमान पर पहुंचने के बावजूद शादी-ब्याह के मौसम में लोग गहने और जेवरात खरीदने से चूक नहीं रहे हैं। लेकिन गहनों के दाम पिछले साल के मुकाबले ज्यादा होने के कारण वे कम वजन के जेवर खरीदने पर जोर दे रहे हैं। इसलिए आभूषण विक्रेता भी कम वजन के गहनों के जरिये ग्राहकों को लुभा रहे हैं।आभूषण कारोबारियों का यह भी कहना है कि मंदी छंटने और आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर होने की वजह से लोग गहनों में पैसा लगा रहे हैं। इसके अलावा शादी-ब्याह के बहाने वे सोने में निवेश से भी नहीं चूक रहे हैं। इसलिए शादियों के सीजन को भुनाने के लिए कारोबारियों ने भी कमर कस ली है।दिल्ली बुलियन ऐंड ज्वैलर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष और आभूषण कारोबारी विमल कुमार गोयल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि पिछले साल इसी वक्त सोने का भाव 16,500 रुपये के करीब था, जो अब 20,000 रुपये का आंकड़ा लांघ चुका है। इसके बावजूद कारोबार में कमी नहीं दिख रही है। वह कहते हैं, 'दीवाली पर भी इस बार कारोबार में 20 फीसदी का इजाफा रहा। लेकिन ग्राहक वजन के मामले में चौकस हो गए हैं। अब वे हल्के गहनों को तरजीह दे रहे हैं। मसलन 50 ग्राम वजन के नेकलेस के बजाय 30 या 40 ग्राम का सोने का नेकलेस खरीदा जा रहा है।'चांदनी चौक स्थित शिवम ज्वैलर्स के मोहित अग्रवाल भी इस बात से इत्तफाक रखते हैं। वह कहते हैं कि आमतौर पर ग्राहक बजट के हिसाब से ही गहने खरीदता है। अगर शादी में गहने खरीदने के लिए किसी ने 10 लाख रुपये का बजट रखा है तो इतना पैसा वह खर्च जरूर करेगा। हां, अब वह कम वजन के गहने लेगा। निवेश के लिहाज से भी ग्राहक गहनों की तरफ मुड़ रहे हैं।'ऑल इंडिया सर्राफा एसोसिएशन के अध्यक्ष शीलचंद जैन बताते हैं कि महंगाई की वजह से ग्राहक हीरे के गहनों में भी समझौता करने को तैयार हैं। उन्होंने बताया कि हीरे के गहनों की मांग तो बाजार में खूब है, लेकिन कारोबारी सस्ते गहनों पर ही जोर दे रहे हैं। ग्राहकों के बजट को देखते हुए 18 कैरट के बजाय 14 या 12 कैरट की डायमंड ज्वैलरी बाजार में छाई है। ग्राहक भी उसे हाथोहाथ ले रहे हैं क्योंकि वह अपेक्षाकृत सस्ती है।गोयल ने बताया कि आभूषण कारोबारियों को इस बार पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी ज्यादा बिक्री होने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि आर्थिक हालत अच्छी होने के कारण और सोने का भाव आगे और बढऩे के अंदेशे में इस बार खरीदारी तेज है। (BS Hindi)
16 नवंबर 2010
प्याज की तेजी रोकने के लिए एमईपी 150 डॉलर बढ़ाया
प्याज की कीमतों में आई भारी तेजी को रोकने के लिए सरकार ने न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) में 150 डॉलर की बढ़ोतरी कर दी है। इस बढ़ोतरी के साथ अब प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य 525 डॉलर प्रति टन हो गया है। सरकार ने यह कदम घरेलू बाजार में बढ़ रही कीमतों के मद्देनजर उठाया है। फुटकर में प्याज के दाम बढ़कर 38-40 रुपये प्रति किलो हो गए हैं। भारतीय राष्ट्रीय सहकारी विपणन संघ (नेफेड) के मैनेजिंग डायरेक्टर (अतिरिक्त प्रभार) संजीव चोपड़ा ने सोमवार को दिल्ली में पत्रकारों को बताया कि नेफेड और नेशनल कॉआपरेटिव कंजूमर्स फैडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनसीसीएफ) अपने स्टोर और मोईबाल वैन से 25 रुपये प्रति किलो की दर से प्याज की बिक्री शुरू करेंगे। यह बिक्री 16 नवंबर से शुरू की जाएगी। मालूम हो कि नवंबर महीने के दौरान सरकार ने प्याज के एमईपी में 50 डॉलर की कमी की थी। उन्होंने बताया कि चालू महीने में दस नवंबर तक 14,970 टन प्याज के निर्यात सौदे हो चुके हैं। 30 नवंबर को फिर से स्थिति की समीक्षा की जायेगी तथा उसी के आधार पर न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) में बढ़ोतरी या कमी की जायेगी। महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में मौसम खराब होने से करीब 10 फीसदी प्याज की फसल को नुकसान हुआ है। चालू वित्त वर्ष में अभी तक 10.27 लाख टन प्याज का निर्यात हो चुका है जबकि पिछले साल अप्रैल से अक्टूबर के दौरान 12.99 लाख टन प्याज का निर्यात हुआ था। वर्ष 2010-11 में रबी और खरीफ में मिलाकर प्याज का उत्पादन 130 लाख टन होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के 121.7 लाख टन से ज्यादा है। आजादपुर मंडी में प्याज के थोक कारोबारी पी एम शर्मा ने बताया कि दिल्ली में प्याज की दैनिक आवक घटकर 50 हजार कट्टें (एक कट्टा-40 किलो) ही रह गई है जबकि मांग अच्छी होने से थोक में कीमतें बढ़कर 20 से 30 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई हैं।बात पते कीचालू वित्त वर्ष में अभी तक १०.२७ लाख टन प्याज का निर्यात किया गया है। जबकि पिछले साल अप्रैल-से अक्टूबर के दौरान १२.९९ लाख टन प्याज का निर्यात किया गया था। वर्तमान नवंबर माह में १० तारीख तक १४,९७० टन प्याज निर्यात के सौदें हो चुके हैं। (Business Bhaskar......R S Rana)
नए गोदाम बनाने के लिए टेंडर मिलने में आ रही है मुश्किल
वेस्टेज मानक तय न होने से भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को कई राज्यों में टेंडर मिलने में मुश्किलें आ रही हैं। एफसीआई द्वारा भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए नोडल एजेंसी बनाई गई केंद्रीय भंडारण निगम(सीडब्ल्यूसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गोदामें में रखे अनाज में होने वाले नुकसान की कोई मात्रा तय नहीं की गई है। साथ ही परिवहन के दौरान होने वाले नुकसान की मात्रा भी टेंडर में स्पष्ट नहीं की गई है। इसीलिए कई राज्यों में 10 साल की गांरटी योजना स्कीम के तहत पब्लिक प्राइवेट पाटर्नशिप (पीपीपी) के लिए नए गोदाम बनाने में कंपनियां कम रुचि ले रही हैं। उन्होंने बताया कि गोदाम में रखे अनाज में होने वाले नुकसान की मात्रा तय करने और परिवहन के दौरान होने वाले नुकसान की जिम्मेदारी तय करने के लिए खाद्य मंत्रालय को पत्र लिखा गया है। उन्होंने बताया कि केरल में 15 हजार टन की भंडारण क्षमता के गोदामों के लिए निविदा मांग गई थी लेकिन निवेशकों ने कोई टेंडर ही नहीं भरा। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र में भी टेंडर भरने में निवेशकों की रूचि कम है। उधर मध्य प्रदेश में अभी निविदा की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई है। बिहार में भी दो बार निविदा मांगी जा चुकी है लेकिन निवेशकों से अपेक्षित भंडारण क्षमता की निविदा नहीं मिली हैं। अन्य राज्यों में भी निविदा फिर से मांगी जा रही हैं। एफसीआई ने पीपीपी माडल के तहत 10 साल की गांरटी स्कीम योजना के लिए 164.25 लाख टन की भंडारण क्षमता के लिए नए गोदाम बनाने की मंजूरी दी हुई है। पंजाब और हरियाणा को छोड़ अन्य राज्यों में निवेशकों ने निविदा भरने में दिलचस्पी कम ली है। एफसीआई के सूत्रों के अनुसार पंजाब में 51.25 लाख के गोदाम बनाने है जबकि निविदा 100 लाख टन की प्राप्त हुई है। इसी तरह से हरियाणा में 38.80 लाख टन की भंडारण क्षमता विकसित करनी है। जबकि एक करोड़ बीस लाख टन क्षमता के गोदाम बनाने की निविदा प्राप्त हुई है। अन्य राज्यों उत्तर प्रदेश में 26.81 लाख टन, राजस्थान में 2.60 लाख टन, मध्य प्रदेश में 2.95 लाख टन, केरल में 15 हजार टन, कर्नाटक में 6.36 लाख टन, आंध्रप्रदेश में 5.56 लाख टन, तमिलनाडु में 3.45 लाख टन, महाराष्ट्र में 8.14 लाख टन, छत्तीसगढ़ में 5,000 टन, गुजरात में 3.52 लाख टन, पश्चिम बंगाल में 1.56 लाख टन, झारखंड में 1.75 लाख टन, बिहार में 3 लाख टन, हिमाचल प्रदेश में 1.42 लाख टन, जम्मू-कश्मीर में 3.61 लाख टन, उत्तराखंड में 25 हजार टन, और उड़ीसा में तीन लाख टन की भंडारण क्षमता बढ़ानी है।बात पते कीपंजाब और हरियाणा के छोड़कर यूपी, बिहार जैसे बड़े राज्यों में पीपीपी मॉडल के तहत गोदाम बनाने में निवेशक कम रुचि ले रहे है। केवल हरियाणा में आवश्यकता से ज्यादा गोदाम बनाने की निविदा मिली है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
15 नवंबर 2010
मुनाफावसूली से काली मिर्च में नरमी के आसार
ऊंची कीमतों पर मुनाफावसूली होने से काली मिर्च की कीमतों में गिरावट की संभावना है। पिछले एक महीने में हाजिर बाजार में काली मिर्च के दाम 16.2 फीसदी और वायदा बाजार में 18.1 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। विश्व में काली मिर्च के उत्पादन में गिरावट की संभावना है लेकिन उम्मीद जताई जा रही है कि भारत में उत्पादन पिछले साल से अधिक होगी। तथा उत्पादक क्षेत्रों में दिसंबर में नई काली मिर्च की आवक शुरू हो जायेगी। इसीलिए मुनाफावसूली की वजह से मौजूदा कीमतों में गिरावट के आसार हैं।वायदा में मुनाफावसूली संभवनेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर निवशकों की खरीद से पिछले एक महीने में काली मिर्च की कीमतों में 18.1 फीसदी की तेजी आ चुकी है। शुक्रवार को एनसीडीईएक्स पर दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध के लिए काली मिर्च का भाव 21,974 रुपये प्रति क्विंटल पर कारोबार करते देखा गया जबकि 12 अक्टूबर को इसका भाव 18,603 रुपये प्रति क्विंटल था। दिसंबर महीने के काली मिर्च के वायदा अनुबंध में 9,292 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। कमोडिटी विश£ेशक अभय लाखवान ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें तेज होने से घरेलू बाजार में कालीमिर्च के दाम बढ़े हैं। लेकिन कीमतें उच्चतम स्तर पर होने के कारण निवेशकों की मुनाफावसूली आ सकती है जिससे मौजूदा कीमतों में गिरावट बनने की संभावना है।घरेलू उत्पादन बढऩे की संभावनाकेदरानाथ एंड संस के डायरेक्टर अजय अग्रवाल ने बताया कि नए फसल सीजन में कालीमिर्च का घरेलू उत्पादन बढऩे की संभावना है। पिछले साल काली मिर्च का कुल उत्पादन 4,500 टन का ही हुआ था जबकि चालू सीजन में उत्पादन बढ़कर 5,000 टन से ज्यादा होने की संभावना है। नीलामी केंद्रों पर दिसंबर में नई कालीमिर्च की आवक शुरू हो जाएगी। हालांकि अभी ब्याह-शादियों का सीजन है इसीलिए मांग बराबर बनी हुई है। लेकिन नई फसल को देखते हुए अगले दस-पंद्रह दिनों में मांग कम हो सकती है साथ ही स्टॉकिस्टों की बिकवाली बढ़ सकती है। जिससे घरेलू बाजार में भी कालीमिर्च की कीमतों में नरमी आने की संभावना है।वैश्विक उत्पादन घटने का अनुमानइंटरनेशनल पीपर कम्यूनिटी (आईपीसी) की हाल ही में हुई बैठक के नतीजों के अनुसार, नए सीजन में वैश्विक स्तर पर काली मिर्च के कुल उत्पादन में कमी आने का अनुमान है। आईपीसी के मुताबिक चालू सीजन में उत्पादन घटकर 3,16,380 टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल उत्पादन 3,18,662 टन का हुआ था। प्रमुख उत्पादक देश वियतनाम में उत्पादन 95 हजार टन और इंडानेशिया में 52 हजार टन का होने का अनुमान है। वियतनाम में नई फसल की आवक मार्च महीने में बनेगी जबकि इंडोनेशिया में नई फसल जून-जुलाई में आयेगी।निर्यात घटाभारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों अप्रैल से अगस्त के दौरान भारत से काली मिर्च के निर्यात में पांच फीसदी की कमी आई है। अप्रैल से अगस्त के दौरान निर्यात घटकर 7,600 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 8,000 टन का निर्यात हुआ थाऊंचे भाव पर आयातकों की मांग घटीबेंगलुरु के काली मिर्च निर्यातक अनीश रावथर ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय कालीमिर्च का भाव बढ़कर 5,100 डॉलर प्रति टन (एफओबी) हो गया हैं। जबकि वियतनाम और इंडोनेशियाई काली मिर्च का भाव क्रमश: 4,900 और 4,950 डॉलर प्रति टन है। ब्राजील की काली मिर्च का भाव 4,850-4,900 डॉलर प्रति टन है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंची कीमतों के कारण अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों की आयात मांग पहले की तुलना में कम हुई है।घरेलू बाजार में दाम बढ़ेबाफना इंटरप्राइजेज के सीईओ जोजॉन मोईली ने बताया कि केरल की कोच्चि मंडी में एमजी-वन क्वालिटी की काली मिर्च का भाव बढ़कर 21,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। दस अक्टूबर को कोच्चि में इसका भाव 18,500 रुपये प्रति क्विंटल था। वैश्विक स्तर पर कालीमिर्च का उत्पादन कम होने से घरेलू बाजार के साथ ही विदेशी बाजार में कीमतों में तेजी आई है। लेकिन अगले महीने घरेलू फसल आ जायेगी। नए सीजन में भारत में काली मिर्च का उत्पादन भी पिछले साल से ज्यादा होने की संभावना है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में गिरावट आ सकती है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
अच्छे मानसून के बावजूद रबी फसलों बुवाई कम
कृषि मंत्रालय भले ही अच्छे मानसून से रबी फसलों की बंपर बुवाई की उम्मीद कर रहा हो, लेकिन शुरुआती चरण में बुवाई पिछले साल की तुलना में कम हुई है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार तिलहन, दलहन और गेहूं की बुवाई में पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले कमी दर्ज की गई है। कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी सीजन में तिलहनों की बुवाई अभी तक 49.65 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान 61.37 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में तिलहनों की बुवाई हुई थी। इसी तरह से दलहनी फसलों की बुवाई भी अभी तक केवल 36.24 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में ही हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इनकी बुवाई 64.97 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई चालू रबी में अभी तक 33 लाख हैक्टेयर में ही हो पाई है जबकि बीते वर्ष इस अवधि के दौरान इनका बुवाई क्षेत्रफल 57.17 लाख हैक्टेयर था। मोटे अनाजों में ज्वार की बुवाई चालू रबी में 27.36 लाख हैक्टेयर हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी बुवाई 29.16 लाख हैक्टेयर में हो चुकी थी। हालांकि मक्का के बुवाई क्षेत्रफल में हल्की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। चालू रबी में अभी तक 1.56 लाख हैक्टेयर में मक्का की बुवाई हो चुकी है। जो बीते वर्ष की समान अवधि के मुकाबले ज्यादा है। पिछले साल इस अवधि के दौरान 1.53 लाख हैक्टेयर में मक्का की बुवाई हुई थी। कृषि मंत्रालय के अनुसार अभी तक रबी धान की रोपाई 47 हजार हैक्टेयर में हुई है।लक्ष्य से ज्यादा गेहूं उपज संभवनई दिल्ली। चालू रबी सीजन में भारत का गेहूं उत्पादन ८२० लाख टन के लक्ष्य से ज्यादा होने की संभावना है। कृषि सचिव पी. के. बसु ने बताया कि अच्छे मानसून के कारण वातावरण में नमी की मात्रा पर्याप्त होने के कारण इस साल गेहूं उत्पादन अच्छा होगा। इसके अलावा समय से बुवाई होने और बीज व खादों की आपूर्ति समय से होने के कारण भी उत्पादन में बढ़ोतरी होने की संभावना है। गेहूं उत्पादन के मामले में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। वर्ष २००९-१० के दौरान भारत में ८०७.१ लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ था। कृषि सचिव के अनुसार के आठ नवंबर तक लगभग १० लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में गेहूं की फसल की बुवाई की जा चुकी है। (एजेंसी) यह क्षेत्रफल पिछले साल के बराबर ही है। बसु ने कहा कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य-प्रदेश में गेहूं के बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी होने की संभावना है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
सीडब्ल्यूसी भंडारण क्षमता बढ़ाएगी
अनाज भंडारण की समस्या से निपटने के लिए केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्यूसी) वित्त वर्ष 2011-12 में दो लाख टन की खाद्यान्न भंडारण क्षमता के नए गोदाम बनायेगा। निगम द्वारा बनाए जा रहे नए गोदामों के निर्माण में करीब 60 करोड़ रुपये का खर्च आने की संभावना है। सीडब्ल्यूसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि चालू वित्त वर्ष 2010-11 में कंपनी ने 1.75 लाख टन की भंडारण क्षमता के नए गोदाम बनाने का लक्ष्य तय किया हुआ है। इसमें से बीते सितंबर माह तक 55 हजार टन की क्षमता के गोदामों का निर्माण करने के साथ ही इन्हे भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को सौंपा भी जा चुका है। शेष बचे हुए 1.20 लाख टन की भंडारण क्षमता के नए गोदामों का निर्माण कार्य मार्च के आखिर तक पूरा हो जाने की संभावना है। वित्त वर्ष 2009-10 में कंपनी ने अपनी भंडारण क्षमता में केवल 17,500 टन की ही बढ़ोतरी की थी, तथा ये गोदाम भी एफसीआई को सौपे जा चुके हैं। उन्होंने बताया कि इसके अलावा निगम एफसीआई की और से निजी उद्यमी गांरटी योजना-2008 के तहत दस साल की गांरटी स्कीम पर नए गोदामों का निर्माण करायेगा। निगम महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और हिमाचल प्रदेश में राज्य सरकारों की एजेंसियों के साथ मिलकर नए गोदामों का निर्माण करेगा। कई राज्यों में इसके लिए निविदा मांगी जा चुकी है तथा कई राज्यों में निविदा अगले कुछ दिनों में मंगाई जायेगी। उन्होंने बताया कि इस समय सीडबल्यूसी के पास 68.61 लाख टन की (कवर) भंडारण क्षमता स्वयं की है तथा निगम ने 12.85 लाख टन (कवर) भंडारण क्षमता के गोदाम किराये पर ले रखे हैं। इसके अलावा निगम के पास 15.11 लाख टन की भंडारण क्षमता सीएपी (कवर एंड प्लेनिथ) की है। इस समय निगम के पास कुल भंडारण क्षमता करीब 104 लाख टन की है तथा देश भर में निगम के 492 वेयर हाउस हैं। वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस समय निगम के पास मौजूद कुल भंडारण क्षमता के 87 फीसदी का ही उपयोग हो रहा है। (Business Bhaskar....R S Rana)
भारतीय बासमती पर यूरोपीय यूनियन के कड़े नियम
यूरोपीय यूनियन ने भारतीय बासमती चावल के लिए नियम कड़े कर दिए हैं। यूरोपीय यूनियन के देशों ने बासमती चावल के आयात में मिश्रण की अधिकतम सीमा को सात फीसदी से घटाकर पांच फीसदी कर दिया है। इसका असर बासमती निर्यात पर पडऩे की आशंका है। रुपये के मुकाबले डॉलर की कमजोरी और आयात मांग कमजोर होने से चालू वित्त वर्ष में अभी तक बासमती चावल के निर्यात सौदों में 8.1 फीसदी की कमी आई है। कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यूरोपीय यूनियन ने बासमती चावल के आयात में मिश्रण की मात्रा को सात फीसदी से घटाकर पांच कर फीसदी कर दिया है। उन्होंने कहा कि यूरोपीय यूनियन के देश उच्च क्वालिटी का बासमती चावल आयात करना चाहते हैं इसीलिए नियम कड़े किए हैं। इसका आंशिक असर निर्यात पर पडऩे की आशंका है। एपीडा के अनुसार चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्टूबर के दौरान भारत से 17 लाख टन बासमती चावल के निर्यात सौदों का पंजीकरण हुआ है जो पिछले साल की तुलना में करीब 1.5 लाख टन कम है। पिछले साल की समान अवधि में 18.5 लाख टन के निर्यात सौदों का पंजीकरण हुआ था। ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय सेतिया ने बताया कि निर्यात सौदे पिछले साल की तुलना में कम हुए है इसका प्रमुख कारण रुपये के मुकाबले डॉलर कमजोर होना है। केआरबीएल लिमिटेड के ज्वांइट मैंनेजिंग डायरेक्टर अनुप गुप्ता ने बताया कि बासमती चावल में निर्यात मांग कमजोर है। भारत की नई फसल को देखते हुए आयातक नए आयात सौदे कम मात्रा में कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पूसा-1121 बासमती चावल सेला का भाव 1100 डॉलर और ट्रेडिशनल बासमती चावल सेला का भाव 1,250 डॉलर प्रति टन है। हालांकि उन्होंने माना कि आगामी महीनों में निर्यात सौदों में तेजी आने की संभावना है। बासमती चावल के थोक कारोबारी राम विलास खुरानियां ने बताया कि ब्याह-शादियों की मांग से घरेलू बाजार में बासमती चावल और धान की कीमतों में तेजी बनी हुई है। पूसा-1121 बासमती चावल की कीमतों में पिछले सप्ताह भर में ही करीब 300 रुपये की तेजी आ चुकी है। दिल्ली में पूसा-1121 चावल का दाम बढ़कर 4,700 से 5,300 रुपये और बासमती कॉमन का भाव 5,800 से 5,900 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। उत्पादक मंडियों में पूसा-1121 बासमती धान की कीमतों में 200 रुपये की तेजी भाव 2,400 से 2,450 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।बात पते कीयूरोप में कड़ाई से बासमती निर्यात पर असर पडऩे की आशंका है। रुपये के मुकाबले डॉलर गिरने और आयात मांग कमजोर होने से चालू वित्त वर्ष में अभी तक निर्यात सौदों में 8.1' की कमी आई है। (Business Bhaskar....R S Rana)
कमोडिटी ट्रैकर
सोयामील में निर्यातकों की अच्छी मांग को देखते हुए चालू सीजन में सोयाबीन के दाम भी तेज ही बने रहने की संभावना है। चालू सीजन में सोयाबीन का उत्पादन पिछले साल के बराबर ही होने की संभावना है लेकिन सोयामील के निर्यात में दस फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी होने की संभावना है। सितंबर के मुकाबले अक्टूबर में सोयामील के निर्यात में 35.97 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। चालू वित्त वर्ष में सोयामील का निर्यात बढ़कर 32-35 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल कुल निर्यात 29 लाख टन ही हुआ था। चालू वित्त वर्ष के पहले सात महीनों (अप्रैल से अक्टूबर) में ही 12.48 लाख टन सोयामील का निर्यात हो चुका है। जुलाई से अक्टूबर के दौरान हर महीने निर्यात में बढ़ोतरी आई है। जुलाई महीने में इसका निर्यात 1.66 लाख टन का था जबकि अगस्त में निर्यात बढ़कर 1.76 लाख टन का हो गया। सितंबर महीने में निर्यात बढ़कर 2.90 लाख टन और अक्टूबर में निर्यात बढ़कर 3.95 लाख टन का हुआ है।निर्यातकों की अच्छी मांग से सोयामील की कीमतों में भी तेजी आई है। जून से अभी तक सोयामील की कीमतों में 17.7 फीसदी की तेजी आ चुकी है। 10 जून को सोयामील का भाव भारतीय बंदरगाह पर 349 डॉलर प्रति टन था जबकि तीन नवंबर को भाव बढ़कर 411 डॉलर प्रति टन हो गया। जापान, दक्षिण कोरिया और अन्य देशों की अच्छी मांग से आगामी दिनों में कीमतों में और भी तेजी की संभावना है। रिफाइंड सोया तेल में घरेलू मांग बढऩे और मील में निर्यातकों की अच्छी मांग से उत्पादक मंडियों में सोयाबीन के दाम भी पिछले एक महीने में बढ़े हैं लेकिन चीन द्वारा रिजर्व स्टॉक से सोयाबीन की बिकवाली करने की खबर से पिछले दो दिनों से सोयाबीन और रिफाइंड तेल की कीमतों में हल्की नरमी आई। चीन सोयाबीन का सबसे बड़ा आयातक देश होने के कारण चीन की मांग से अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोयाबीन की कीमतों पर असर पड़ता है। लेकिन आगामी दिनों में चीन की मांग बढऩे की संभावना है। साथ ही भारत से सोयामील की निर्यात मांग अच्छी रहेगी, इसीलिए सोयाबीन की कीमतों में तेजी के ही आसार हैं। मध्य प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन के प्लांट डिलीवरी भावों में 50 रुपये की नरमी आकर शनिवार को भाव 2,225-2,250 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। इस दौरान रिफाइंड सोया तेल का भाव इंदौर में 530 रुपये प्रति दस किलो रह गया। सोयामील का भाव 18,500 से 18,600 रुपये प्रति टन चल रहा है। उद्योग सूत्रों के अनुसार चालू सीजन में देश में सोयाबीन का उत्पादन 100 लाख टन होने का अनुमान है जो पिछले साल के लगभग बराबर ही है। कृषि मंत्रालय के प्रारंभिक अनुमान के अनुसार सोयाबीन का उत्पादन 98 लाख टन होने का अनुमान है। - - आर.एस. राणा rana@businessbhaskar.netबात पते की - मध्य प्रदेश की मंडियों में प्लांड डिलीवरी सोयाबीन के 2,225-2,250 रुपये प्रति क्विंटल रहे। इस दौरान रिफाइंड सोया तेल का भाव इंदौर में 530 रुपये प्रति दस किलो रह गया। सोयामील का भाव 18,500 से 18,600 रुपये प्रति टन रहा। (Business Bhaskar...R S Rana)
रोजगार देने में कृषि क्षेत्र अब भी अव्वल
नई दिल्ली। पिछले वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान कृषि व संबद्ध क्षेत्र में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार मिला। वहीं इस दौरान देश में बेरोजगारी की दर 9.4 फीसदी रही। श्रम व रोजगार मंत्रालय के श्रम ब्यूरो द्वारा देश भर में किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है। इस सर्वे के मुताबिक बीते वित्त वर्ष के दौरान कुल एक हजार रोजगार प्राप्त लोगों में 455 कृषि, वानिकी और मत्स्यन [फिशरीज] क्षेत्र में लगे थे। इसके बाद 89 लोगों के साथ मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र दूसरे नंबर पर रहा। थोक एवं खुदरा क्षेत्र, सामुदायिक सेवा और निर्माण क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या क्रमश: 88, 84 और 75 रही।
पूर्वोत्तर क्षेत्र को छोड़कर अन्य सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के 300 जिलों में यह सर्वे किया गया। इसका मकसद रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति का पता लगाना था। सर्वे के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 10.1 और शहरी इलाकों में 7.3 फीसदी रही। इसमें यह भी सामने आया कि एक हजार लोगों में 439 स्वरोजगार में लगे थे। स्वरोजगार में लगे लोगों में बहुसंख्यक [एक हजार में 572 लोग] कृषि, वानिकी और मत्स्यन क्षेत्र में कार्यरत थे। थोक और खुदरा क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या 135 रही।
इस सर्वे में कुल 45,859 घरों को शामिल किया गया। इनमें 24,653 ग्रामीण और 21,206 शहरी क्षेत्रों के थे। इसमें लिंग अनुपात 1000 पुरुषों पर 917 महिलाएं होने का अनुमान लगाया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात 915 और शहरी में 924 रहा। इसी तरह सात साल या उससे अधिक आयु वर्ग में साक्षरता दर 77.7 फीसदी आंकी गई है। ग्रामीण क्षेत्र में यह आंकड़ा 74.6 और शहरी में 86 फीसदी है। (Dainik Jagran)
पूर्वोत्तर क्षेत्र को छोड़कर अन्य सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के 300 जिलों में यह सर्वे किया गया। इसका मकसद रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति का पता लगाना था। सर्वे के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 10.1 और शहरी इलाकों में 7.3 फीसदी रही। इसमें यह भी सामने आया कि एक हजार लोगों में 439 स्वरोजगार में लगे थे। स्वरोजगार में लगे लोगों में बहुसंख्यक [एक हजार में 572 लोग] कृषि, वानिकी और मत्स्यन क्षेत्र में कार्यरत थे। थोक और खुदरा क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या 135 रही।
इस सर्वे में कुल 45,859 घरों को शामिल किया गया। इनमें 24,653 ग्रामीण और 21,206 शहरी क्षेत्रों के थे। इसमें लिंग अनुपात 1000 पुरुषों पर 917 महिलाएं होने का अनुमान लगाया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात 915 और शहरी में 924 रहा। इसी तरह सात साल या उससे अधिक आयु वर्ग में साक्षरता दर 77.7 फीसदी आंकी गई है। ग्रामीण क्षेत्र में यह आंकड़ा 74.6 और शहरी में 86 फीसदी है। (Dainik Jagran)
ऊंची कीमत से मुश्किल में कपास निर्यातक
मुंबई November 14, 2010
भारी-भरकम मुनाफे की उम्मीद लगाए कपास निर्यातकों को झटका लग सकता है क्योंंकि बाजार में कपास पहुंचने की शुरुआत होने से काफी पहले सौदा करने के बावजूद उन्हें कम कीमत पर कपास की खरीद में दिक्कत हो रही है। पिछले तीन महीने में कपास की कीमतें 50 फीसदी तक बढ़ गई हैं और अभी भी 52 लाख गांठ कपास का निर्यात संभव नहीं हो पाया है। समस्या यहींं खत्म नहीं हो जाती, अब निर्यातकों को इस बात का डर सता रहा है कि ऊंची कीमतें और जरूरत से कम आपूर्ति व अन्य बाधाओं की वजह से तय समय पर वह शायद माल नहीं भेज पाएंगे।पिछले अगस्त में केंद्र सरकार ने ऐलान किया था कि अक्टूबर महीने से कपास निर्यात की अनुमति दी जाएगी और इसके लिए सितंबर महीने में पंजीकरण का काम शुरू होगा। बाद में पंजीकरण व निर्यात की तारीख एक महीने के लिए टाल दी गई थी। हालांकि निर्यात की संभावना को देखते हुए कुछ निर्यातकों ने कपास प्रसंस्कृत करने वालों से भविष्य का सौदा करना शुरू कर दिया था। कपास प्रसंस्कृत करने वाले ये लोग कच्चे कपास से बीज अलग करते हैं और उसे बाजार में बेचते हैं। इन्हें लग रहा था कि जब बाजार में कपास की आवक शुरू होगी तो वे इसकी खरीद कर लेंगे और फिर निर्यातकों के साथ हुए समझौते के मुताबिक उन्हें माल दे देंगे। इनमें से ज्यादातर समझौते 25 हजार से 40 हजार प्रति कैंडी (356 किलो) के हिसाब से हुई थी। निर्यातक सामान्यत: फॉरवर्ड डील के जरिए ही कपास की खरीद करते हैं।जब अक्टूबर महीने में कपास की आवक शुरू हुई तो कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी होने लगी और प्रसंस्कृत करने वालों को कपास किसानों से उस भाव पर माल नहीं मिल पाया, जिससे कि वे निर्यातकों से किया गया वादा पूरा कर सकें। इस तरह से वह डिफॉल्टर होने लगे। हालांकि ऐसे डिफॉल्ट केबाद विवाद पैदा होता है, लेकिन निर्यातकों ने पाया कि वे फंस गए हैं, लिहाजा उन्होंने खुले बाजार से कपास की खरीद शुरू कर दी और इस वजह से भी कीमतों में और मजबूती आई।इसके बाद निर्यातकों ने या तो अनुबंध पर सीधे-सीधे फिर से बातचीत की या ऐसे डिफॉल्टर की शिकायत कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया से की। एसोसिएशन के सूत्र बताते हैं कि उन्हें इस तरह की शिकायतें मिली हैं और मामला अभी मध्यस्थता के दायरे में है। यहां एक विकल्प यह भी है कि निर्यातक और प्रसंस्करण करने वाले (गिनर्स) कीमत पर फिर से बातचीत करते हुए अनुबंध का निपटारा करें।चूंकि वैश्विक स्तर पर कीमतें बढ़ी हैं, लिहाजा निर्यातकों ने स्थानीय बाजारों से उच्च कीमतों पर कपास की खरीद जारी रखी। निर्यातकों की संख्या हालांकि कम है, लेकिन उनके पास काफी ज्यादा ऑर्डर हैं और उन्हें 52 लाख गांठ कपास की जरूरत है। हालांकि कपड़ा मिलें वही कपास खोज रही हैं क्योंकि यह अब स्टॉक में नहीं है। बाजार में अभी भी 52 लाख गांठ कपास नहीं पहुंच पाया है। निर्यातकों को निर्यात की इजाजत मिलने के 45 दिन के भीतर माल भेजना होगा और ऐसी इजाजत 10 अक्टूबर को मिली थी। इसका मतलब यह हुआ कि 25 दिसंबर तक उन्हें अपना शिपमेंट पूरा करना होगा।निर्यातकों को डर है कि 52 लाख गांठ कपास का निर्यात नहीं हो पाएगा क्योंकि बाजार में अब तक पर्याप्त कपास की आवक नहीं हुई है। हमें बंदरगाहों से शिपमेंट की क्षमता का भी ध्यान रखना होगा। बंदरगाह हर महीने 25 लाख गांठ कपास ही भेज सकता है और नवंबर महीने में कई छुट्टियां भी हैं। भाईदास करसनदास ऐंड कंपनी के पार्टनर शिरीष शाह कहते हैं कि इसे देखते हुए और आपूर्ति के संकट को देखते हुए तय समय में 52 लाख गांठ कपास का निर्यात करना मुश्किल है।देश की मंडियों में अब तक 37.5 लाख गांठ कपास ही पहुंचा है और कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के अनुमान के मुताबिक, रोजाना 2-2.25 लाख गांठ कपास ही मंडियों में पहुंचता है, ऐसे में नवंबर महीने में 75-80 लाख गांठ से ज्यादा कपास नहीं पहुंच पाएगा। 10 दिसंबर तक यह आंकड़ा एक करोड़ गांठ तक पहुंच सकता है। बाजार पहुंचने वाले ऐसे कपास की खरीद कपड़ा कंपनियां भी करती हैं और कपड़ा मिलों की मांग प्रति माह 20-22 लाख गांठ होती है।निर्यातकों का कहना है कि वे इसमें ज्यादा रकम नहींं कमा पाएंगे। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में मौजूदा समय में कीमतों के अंतर को देखते हुए निर्यात मार्जिन सिर्फ 5-8 फीसदी रहेगा।सरकार के पास विकल्प यह है कि वह शिपमेंट का समय बढ़ाए या फिर 15 दिसंबर के बाद स्थिति की समीक्षा करे और मौजूदा मांग-आपूर्ति की स्थिति को ध्यान में रखे। अच्छी खबर यह है कि पिछले दो दिनों में कपास की कीमतें 47 हजार से 43 हजार पर आ गई हैं और कीमतों में गिरावट जारी रही तो गिनर्स अपना वादा निभा सकते हैं। समझा जाता है कि उत्तर भारत के गिनर्स ने कीमतों में गिरावट के बाद निर्यातकों से फिर से बातचीत शुरू कर दी है। (BS Hindi)
भारी-भरकम मुनाफे की उम्मीद लगाए कपास निर्यातकों को झटका लग सकता है क्योंंकि बाजार में कपास पहुंचने की शुरुआत होने से काफी पहले सौदा करने के बावजूद उन्हें कम कीमत पर कपास की खरीद में दिक्कत हो रही है। पिछले तीन महीने में कपास की कीमतें 50 फीसदी तक बढ़ गई हैं और अभी भी 52 लाख गांठ कपास का निर्यात संभव नहीं हो पाया है। समस्या यहींं खत्म नहीं हो जाती, अब निर्यातकों को इस बात का डर सता रहा है कि ऊंची कीमतें और जरूरत से कम आपूर्ति व अन्य बाधाओं की वजह से तय समय पर वह शायद माल नहीं भेज पाएंगे।पिछले अगस्त में केंद्र सरकार ने ऐलान किया था कि अक्टूबर महीने से कपास निर्यात की अनुमति दी जाएगी और इसके लिए सितंबर महीने में पंजीकरण का काम शुरू होगा। बाद में पंजीकरण व निर्यात की तारीख एक महीने के लिए टाल दी गई थी। हालांकि निर्यात की संभावना को देखते हुए कुछ निर्यातकों ने कपास प्रसंस्कृत करने वालों से भविष्य का सौदा करना शुरू कर दिया था। कपास प्रसंस्कृत करने वाले ये लोग कच्चे कपास से बीज अलग करते हैं और उसे बाजार में बेचते हैं। इन्हें लग रहा था कि जब बाजार में कपास की आवक शुरू होगी तो वे इसकी खरीद कर लेंगे और फिर निर्यातकों के साथ हुए समझौते के मुताबिक उन्हें माल दे देंगे। इनमें से ज्यादातर समझौते 25 हजार से 40 हजार प्रति कैंडी (356 किलो) के हिसाब से हुई थी। निर्यातक सामान्यत: फॉरवर्ड डील के जरिए ही कपास की खरीद करते हैं।जब अक्टूबर महीने में कपास की आवक शुरू हुई तो कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी होने लगी और प्रसंस्कृत करने वालों को कपास किसानों से उस भाव पर माल नहीं मिल पाया, जिससे कि वे निर्यातकों से किया गया वादा पूरा कर सकें। इस तरह से वह डिफॉल्टर होने लगे। हालांकि ऐसे डिफॉल्ट केबाद विवाद पैदा होता है, लेकिन निर्यातकों ने पाया कि वे फंस गए हैं, लिहाजा उन्होंने खुले बाजार से कपास की खरीद शुरू कर दी और इस वजह से भी कीमतों में और मजबूती आई।इसके बाद निर्यातकों ने या तो अनुबंध पर सीधे-सीधे फिर से बातचीत की या ऐसे डिफॉल्टर की शिकायत कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया से की। एसोसिएशन के सूत्र बताते हैं कि उन्हें इस तरह की शिकायतें मिली हैं और मामला अभी मध्यस्थता के दायरे में है। यहां एक विकल्प यह भी है कि निर्यातक और प्रसंस्करण करने वाले (गिनर्स) कीमत पर फिर से बातचीत करते हुए अनुबंध का निपटारा करें।चूंकि वैश्विक स्तर पर कीमतें बढ़ी हैं, लिहाजा निर्यातकों ने स्थानीय बाजारों से उच्च कीमतों पर कपास की खरीद जारी रखी। निर्यातकों की संख्या हालांकि कम है, लेकिन उनके पास काफी ज्यादा ऑर्डर हैं और उन्हें 52 लाख गांठ कपास की जरूरत है। हालांकि कपड़ा मिलें वही कपास खोज रही हैं क्योंकि यह अब स्टॉक में नहीं है। बाजार में अभी भी 52 लाख गांठ कपास नहीं पहुंच पाया है। निर्यातकों को निर्यात की इजाजत मिलने के 45 दिन के भीतर माल भेजना होगा और ऐसी इजाजत 10 अक्टूबर को मिली थी। इसका मतलब यह हुआ कि 25 दिसंबर तक उन्हें अपना शिपमेंट पूरा करना होगा।निर्यातकों को डर है कि 52 लाख गांठ कपास का निर्यात नहीं हो पाएगा क्योंकि बाजार में अब तक पर्याप्त कपास की आवक नहीं हुई है। हमें बंदरगाहों से शिपमेंट की क्षमता का भी ध्यान रखना होगा। बंदरगाह हर महीने 25 लाख गांठ कपास ही भेज सकता है और नवंबर महीने में कई छुट्टियां भी हैं। भाईदास करसनदास ऐंड कंपनी के पार्टनर शिरीष शाह कहते हैं कि इसे देखते हुए और आपूर्ति के संकट को देखते हुए तय समय में 52 लाख गांठ कपास का निर्यात करना मुश्किल है।देश की मंडियों में अब तक 37.5 लाख गांठ कपास ही पहुंचा है और कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के अनुमान के मुताबिक, रोजाना 2-2.25 लाख गांठ कपास ही मंडियों में पहुंचता है, ऐसे में नवंबर महीने में 75-80 लाख गांठ से ज्यादा कपास नहीं पहुंच पाएगा। 10 दिसंबर तक यह आंकड़ा एक करोड़ गांठ तक पहुंच सकता है। बाजार पहुंचने वाले ऐसे कपास की खरीद कपड़ा कंपनियां भी करती हैं और कपड़ा मिलों की मांग प्रति माह 20-22 लाख गांठ होती है।निर्यातकों का कहना है कि वे इसमें ज्यादा रकम नहींं कमा पाएंगे। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में मौजूदा समय में कीमतों के अंतर को देखते हुए निर्यात मार्जिन सिर्फ 5-8 फीसदी रहेगा।सरकार के पास विकल्प यह है कि वह शिपमेंट का समय बढ़ाए या फिर 15 दिसंबर के बाद स्थिति की समीक्षा करे और मौजूदा मांग-आपूर्ति की स्थिति को ध्यान में रखे। अच्छी खबर यह है कि पिछले दो दिनों में कपास की कीमतें 47 हजार से 43 हजार पर आ गई हैं और कीमतों में गिरावट जारी रही तो गिनर्स अपना वादा निभा सकते हैं। समझा जाता है कि उत्तर भारत के गिनर्स ने कीमतों में गिरावट के बाद निर्यातकों से फिर से बातचीत शुरू कर दी है। (BS Hindi)
सोने पर मार्जिन बढ़ा सकता है एमसीएक्स
मुंबई November 14, 2010
वायदा बाजार का सबसे बड़ा कारोबारी प्लैटफॉर्म मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज बहुमूल्य धातुओं की कीमत में हो रहे उतारचढ़ाव पर नजरें बनाए हुए है। अगर यह स्थिति बनी रही तो अगले हफ्ते एमसीएक्स इन बहुमूल्य धातुओं पर मार्जिन की रकम बढ़ा सकता है। कारोबारियों को लगता है कि अगर इन धातुओं में उच्च उतारचढ़ाव सोमवार को भी जारी रहता है तो एमसीएक्स मार्जिन की रकम बढ़ा सकता है।एमसीएक्स ने बेंचमार्क न्यू यॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज (नायमेक्स) की राह पर चलते हुए पिछले बुधवार को चांदी पर मार्जिन की रकम 5 से बढ़ाकर 9 फीसदी कर दिया था। इससे एक दिन पहले नायमेक्स ने मार्जिन की रकम 5 हजार डॉलर से बढ़ाकर 6500 डॉलर कर दी थी। नायमेक्स के इस कदम से सटोरिया गतिविधियों से हो रहे उतारचढ़ाव पर तत्काल नियंत्रण हासिल करने में मदद मिली और चांदी की कीमतें कारोबारी सत्र में 29.36 डॉलर से गिरकर 26.34 डॉलर पर आ गई थी, हालांकि यह अंत में मामूली बढ़त के साथ 29.93 डॉलर पर बंद हुआ था। (BS Hindi)
वायदा बाजार का सबसे बड़ा कारोबारी प्लैटफॉर्म मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज बहुमूल्य धातुओं की कीमत में हो रहे उतारचढ़ाव पर नजरें बनाए हुए है। अगर यह स्थिति बनी रही तो अगले हफ्ते एमसीएक्स इन बहुमूल्य धातुओं पर मार्जिन की रकम बढ़ा सकता है। कारोबारियों को लगता है कि अगर इन धातुओं में उच्च उतारचढ़ाव सोमवार को भी जारी रहता है तो एमसीएक्स मार्जिन की रकम बढ़ा सकता है।एमसीएक्स ने बेंचमार्क न्यू यॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज (नायमेक्स) की राह पर चलते हुए पिछले बुधवार को चांदी पर मार्जिन की रकम 5 से बढ़ाकर 9 फीसदी कर दिया था। इससे एक दिन पहले नायमेक्स ने मार्जिन की रकम 5 हजार डॉलर से बढ़ाकर 6500 डॉलर कर दी थी। नायमेक्स के इस कदम से सटोरिया गतिविधियों से हो रहे उतारचढ़ाव पर तत्काल नियंत्रण हासिल करने में मदद मिली और चांदी की कीमतें कारोबारी सत्र में 29.36 डॉलर से गिरकर 26.34 डॉलर पर आ गई थी, हालांकि यह अंत में मामूली बढ़त के साथ 29.93 डॉलर पर बंद हुआ था। (BS Hindi)
12 नवंबर 2010
वैश्विक कीमतों से प्रभावित होने वाली कृषि जिंसों में उफान
मुंबई November 10, 2010
पिछले कुछ महीनों से कम उत्पादन व दुनिया भर में स्टॉक में कमी के अनुमान से उन कृषि जिंसों की कीमतें बढ़ रही हैं जिनकी कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार से प्रभावित होती हैं। निर्यात मांग में बढ़ोतरी और बड़ी अटकलों के बाद एक ओर जहां कपास की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है, वहीं चीनी की कीमतें निर्यात में सुधार की संभावना की वजह से बढ़ी है। खाद्य तेल के मामले में भारत आयात पर आश्रित है और यही वजह है कि पाम तेल व सोया तेल में वैश्विक संकेतों की वजह से इजाफा हो रहा है।पिछले एक महीने में चीनी की कीमतों में 5.8 फीसदी की बढ़त आई है और यह बढ़ोतरी इस उम्मीद में हुई है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती कीमतों का फायदा उठाने के लिए सरकार चीनी निर्यात की अनुमति देगी। लंदन एक्सचेंज में चीनी की कीमतें 30 साल के सर्वोच्च स्तर पर है और यह 800 डॉलर से ऊपर चल रहा है, ऐसे में चीनी की कीमत में पिछले एक महीने में करीब 40 फीसदी की उछाल आई है।कपास भी रिकॉर्ड स्तर पर है और रिकॉर्ड उत्पादन के अनुमान के बावजूद इसकी कीमतें पिछले एक महीने में 22.3 फीसदी बढ़ी है और पिछले तीन महीने के दौरान यह 52.7 फीसदी चढ़ा है। वैश्विक स्तर पर सिर्फ एक महीने में कीमत में 56 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। मंगलवार को यूएसडीए ने चीन से कपास की आपूर्ति के अनुमान में कमी रहने की संभावना जताई है और इससे संकेत मिलता है कि चीन ज्यादा कपास का आयात करेगा। भारत ने पहले ही 50 लाख गांठ कपास के निर्यात की मंजूरी दे दी है। इसके बाद से स्थानीय बाजार में कीमतें बढ़ रही हैं क्योंकि इस बाबत बड़ी अटकलें भी हैं। अहमदाबाद की जोखिम प्रबंधन वाली कंपनी के निदेशक ने कहा कि कपड़ा मिलों की मांग पूरी करना अभी बाकी है और सटोरिये इसकी कीमतें ऊंची रख रहे हैं। भारत में इस साल 3500 लाख गांठ कपास के उत्पादन की उम्मीद है। 1.52 डॉलर प्रति पाउंड के स्तर पर अंतरराष्ट्रीय कीमतें 140 साल के सर्वोच्च स्तर पर है। वैश्विक बाजार में बढ़ती कीमत की वजह से भारत में सोया तेल और पाम तेल की कीमतें पिछले एक महीने में 16-18 फीसदी बढ़ी हैं। आगे भी इसकेबढऩे की संभावना है क्योंकि मांग के मुकाबले उत्पादन में कमी की संभावना है और चीन के आयात में बढ़ोतरी होनी है।गोदरेज इंटरनैशनल के निदेशक दोराब मिस्त्री का अनुमान है कि साल 2010 में विश्व में पाम तेल के उत्पादन में मामूली बढ़ोतरी होगी यानी इसमें करीब 3 लाख की बढ़ोतरी होगी। मलयेशिया में उत्पादन नकारात्मक रहेगा और इंडोनेशिया में इसमें मामूली बढ़ोतरी होगी।साल 2010 में मलयेशिया में 172 लाख टन कच्चा पाम तेल के उत्पादन का अनुमान है, जो कि साल 2009 के मुकाबले मामूली कम होगा, लेकिन मांग को पूरा करने के लिए अपर्याप्त होगा। खाद्य बाजार भी सख्त नजर आ रहा है। चीन संभवत: अमेरिकी सोयाबीन की फसल का एक तिहाई खरीदेगा। यूएसडीए ने कहा है कि मक्का और सोयाबीन का भंडार तेजी से कम होगा। भारत मक्के का भी निर्यात करता है, हालांकि खरीफ सीजन में उगाई जाने वाली फसल के तेजी से बाजार में उतरने के बाद कीमतों में गिरावट शुरू हो गई है। (BS Hindi)
पिछले कुछ महीनों से कम उत्पादन व दुनिया भर में स्टॉक में कमी के अनुमान से उन कृषि जिंसों की कीमतें बढ़ रही हैं जिनकी कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार से प्रभावित होती हैं। निर्यात मांग में बढ़ोतरी और बड़ी अटकलों के बाद एक ओर जहां कपास की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है, वहीं चीनी की कीमतें निर्यात में सुधार की संभावना की वजह से बढ़ी है। खाद्य तेल के मामले में भारत आयात पर आश्रित है और यही वजह है कि पाम तेल व सोया तेल में वैश्विक संकेतों की वजह से इजाफा हो रहा है।पिछले एक महीने में चीनी की कीमतों में 5.8 फीसदी की बढ़त आई है और यह बढ़ोतरी इस उम्मीद में हुई है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ती कीमतों का फायदा उठाने के लिए सरकार चीनी निर्यात की अनुमति देगी। लंदन एक्सचेंज में चीनी की कीमतें 30 साल के सर्वोच्च स्तर पर है और यह 800 डॉलर से ऊपर चल रहा है, ऐसे में चीनी की कीमत में पिछले एक महीने में करीब 40 फीसदी की उछाल आई है।कपास भी रिकॉर्ड स्तर पर है और रिकॉर्ड उत्पादन के अनुमान के बावजूद इसकी कीमतें पिछले एक महीने में 22.3 फीसदी बढ़ी है और पिछले तीन महीने के दौरान यह 52.7 फीसदी चढ़ा है। वैश्विक स्तर पर सिर्फ एक महीने में कीमत में 56 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। मंगलवार को यूएसडीए ने चीन से कपास की आपूर्ति के अनुमान में कमी रहने की संभावना जताई है और इससे संकेत मिलता है कि चीन ज्यादा कपास का आयात करेगा। भारत ने पहले ही 50 लाख गांठ कपास के निर्यात की मंजूरी दे दी है। इसके बाद से स्थानीय बाजार में कीमतें बढ़ रही हैं क्योंकि इस बाबत बड़ी अटकलें भी हैं। अहमदाबाद की जोखिम प्रबंधन वाली कंपनी के निदेशक ने कहा कि कपड़ा मिलों की मांग पूरी करना अभी बाकी है और सटोरिये इसकी कीमतें ऊंची रख रहे हैं। भारत में इस साल 3500 लाख गांठ कपास के उत्पादन की उम्मीद है। 1.52 डॉलर प्रति पाउंड के स्तर पर अंतरराष्ट्रीय कीमतें 140 साल के सर्वोच्च स्तर पर है। वैश्विक बाजार में बढ़ती कीमत की वजह से भारत में सोया तेल और पाम तेल की कीमतें पिछले एक महीने में 16-18 फीसदी बढ़ी हैं। आगे भी इसकेबढऩे की संभावना है क्योंकि मांग के मुकाबले उत्पादन में कमी की संभावना है और चीन के आयात में बढ़ोतरी होनी है।गोदरेज इंटरनैशनल के निदेशक दोराब मिस्त्री का अनुमान है कि साल 2010 में विश्व में पाम तेल के उत्पादन में मामूली बढ़ोतरी होगी यानी इसमें करीब 3 लाख की बढ़ोतरी होगी। मलयेशिया में उत्पादन नकारात्मक रहेगा और इंडोनेशिया में इसमें मामूली बढ़ोतरी होगी।साल 2010 में मलयेशिया में 172 लाख टन कच्चा पाम तेल के उत्पादन का अनुमान है, जो कि साल 2009 के मुकाबले मामूली कम होगा, लेकिन मांग को पूरा करने के लिए अपर्याप्त होगा। खाद्य बाजार भी सख्त नजर आ रहा है। चीन संभवत: अमेरिकी सोयाबीन की फसल का एक तिहाई खरीदेगा। यूएसडीए ने कहा है कि मक्का और सोयाबीन का भंडार तेजी से कम होगा। भारत मक्के का भी निर्यात करता है, हालांकि खरीफ सीजन में उगाई जाने वाली फसल के तेजी से बाजार में उतरने के बाद कीमतों में गिरावट शुरू हो गई है। (BS Hindi)
अच्छे बीज की कमी से जूझ रहे आलू किसान
लखनऊ November 10, 2010
बेहतर बारिश और खेतों में मौजूद पर्याप्त नमी के चलते अच्छी फसल की आस रखने वाले उत्तर प्रदेश के आलू किसानों के सामने अब बढिय़ा क्वॉलिटी के बीजों का संकट गहरा रहा है। सरकार के लाख दावों के बावजूद किसानों को आलू के बेहतर बीज उपलब्ध नही हो पा रहे हैं। आलू की बुआई का समय निकलता जा रहा है जबकि बाजार में उत्तम क्वॉलिटी के बीज नदारद हैं। आलू किसानों की पहली पसंद कुफरी और कुफरी बादशाह प्रजाति के आलू के बीज खोजने से नही मिल रहे हैं। सूबे की आलू बेल्ट फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, आगरा के किसानों के बीज बीते साल खासा लोकप्रिय हुआ। चिप्सोना प्रजाति के बीज भी बाजार से इस साल गायब हैं। आलू किसानों का कहना है कि इस समय जो भी बीज उपलब्ध हैं उनसे होने वाली पैदावार में पानी की मात्रा ज्यादा होती है जिससे अच्छी कीमत मिल पाना मुश्किल होता है। हालांकि सूबे के उद्यान अधिकारी रंजीत सिंह का कहना है कि सरकार की ओर से किसानों के लिए 12.45 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से कुफरी, कुफरी बादशाह और बहार प्रजाति के बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में सिंह ने बताया कि कम से कम लखनऊ जनपद के किसानों के लिए को राजकीय उद्यान विभाग के सीड स्टोरों पर बीज ठीक-ठाक मात्रा में उपलब्ध हैं। किसानों की मांग पर बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं। उन्नत खेती करने वाले किसान ही इन अच्छी प्रजाति के बीजों की मांग करते हैं। दूसरी ओर सरकार की ओर से बीज की उपलब्धता के बारे में प्रादेशिक निजी पौधशाला संघ के सचिव शिवसरन सिंह का कहना है कि अब जबकि आलू की बोआई आधे से ज्यादा क्षेत्रफल में हो चुकी है तब बीज दिए जा रहे हैं। ऐसे में किसानों का नुकसान तो हो ही चुका है। मंहगे दामों पर आलू खरीदने वाली चिप्स कंपनियां चिप्सोना, कुफरी बादशाह से निचली क्वालटी का आलू खरीदती ही नही हैं। देशी आलू के बीज पैदावार तो दे देते हैं मगर उनमें पानी की मात्रा ज्यादा होने से सड़ते जल्दी हैं और कीमत भी अच्छी नहीं मिल पाती है। (BS Hindi)
बेहतर बारिश और खेतों में मौजूद पर्याप्त नमी के चलते अच्छी फसल की आस रखने वाले उत्तर प्रदेश के आलू किसानों के सामने अब बढिय़ा क्वॉलिटी के बीजों का संकट गहरा रहा है। सरकार के लाख दावों के बावजूद किसानों को आलू के बेहतर बीज उपलब्ध नही हो पा रहे हैं। आलू की बुआई का समय निकलता जा रहा है जबकि बाजार में उत्तम क्वॉलिटी के बीज नदारद हैं। आलू किसानों की पहली पसंद कुफरी और कुफरी बादशाह प्रजाति के आलू के बीज खोजने से नही मिल रहे हैं। सूबे की आलू बेल्ट फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, आगरा के किसानों के बीज बीते साल खासा लोकप्रिय हुआ। चिप्सोना प्रजाति के बीज भी बाजार से इस साल गायब हैं। आलू किसानों का कहना है कि इस समय जो भी बीज उपलब्ध हैं उनसे होने वाली पैदावार में पानी की मात्रा ज्यादा होती है जिससे अच्छी कीमत मिल पाना मुश्किल होता है। हालांकि सूबे के उद्यान अधिकारी रंजीत सिंह का कहना है कि सरकार की ओर से किसानों के लिए 12.45 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से कुफरी, कुफरी बादशाह और बहार प्रजाति के बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में सिंह ने बताया कि कम से कम लखनऊ जनपद के किसानों के लिए को राजकीय उद्यान विभाग के सीड स्टोरों पर बीज ठीक-ठाक मात्रा में उपलब्ध हैं। किसानों की मांग पर बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं। उन्नत खेती करने वाले किसान ही इन अच्छी प्रजाति के बीजों की मांग करते हैं। दूसरी ओर सरकार की ओर से बीज की उपलब्धता के बारे में प्रादेशिक निजी पौधशाला संघ के सचिव शिवसरन सिंह का कहना है कि अब जबकि आलू की बोआई आधे से ज्यादा क्षेत्रफल में हो चुकी है तब बीज दिए जा रहे हैं। ऐसे में किसानों का नुकसान तो हो ही चुका है। मंहगे दामों पर आलू खरीदने वाली चिप्स कंपनियां चिप्सोना, कुफरी बादशाह से निचली क्वालटी का आलू खरीदती ही नही हैं। देशी आलू के बीज पैदावार तो दे देते हैं मगर उनमें पानी की मात्रा ज्यादा होने से सड़ते जल्दी हैं और कीमत भी अच्छी नहीं मिल पाती है। (BS Hindi)
गारंटी से बढ़ेगी एफसीआई की भंडारण क्षमता
नई दिल्ली November 11, 2010
अगस्त 2010 में पेश प्राइवेट एंटरप्रेन्योर गारंटी स्कीम को संशोधित और इसे ज्यादा उदार बनाए जाने के बाद भारतीय खाद्य निगम को निजी खिलाडिय़ों की तरफ से बेहतर समर्थन मिलने लगा है। पहले पेश योजना के तहत एफसीआई 7 साल की लीज गारंटी दे रहा था। लेकिन यह पंजाब और हरियाणा में निजी खिलाडिय़ों को आकर्षित करने में नाकाम रहा था। इसको देखते हुए एफसीआई ने बाद में इसमें संशोधित करते हुए लीज गारंटी की अवधि को बढ़ाकर 10 साल कर दिया।हरियाणा में बोली लगाने की प्रक्रिया 17 सितंबर 2010 को शुरू हुई और अब तक कुल 467 टेंडर मिले हैं जिसके तहत राज्य में कुल 1.20 करोड़ टन क्षमता का विस्तार संभव हो सकेगा। इनमें से करीब 39 लाख टन क्षमता विस्तार को स्वीकृति मिल चुकी है जबकि अन्य टेंडरों की जांच का काम चल रहा है। पंजाब में टेंडर भरने का समय 29 जुलाई को शुरू हुआ था। यहां एफसीआई को कुल 532 आवदेन मिले हैं। जिसके तहत यहां कुल 1.01 करोड़ टन क्षमता का विस्तार संभव हो सकेगा। अंतिम मंजूरी के लिए फिलहाल 311 साइटों पर जांच का काम चल रहा है। पूर्व योजना के तहत निजी खिलाडिय़ों ने उत्साह नहीं दिखाया था। इसका कारण यह था कि दोनों राज्यों में जमीन की बढ़ती कीमतों और इसके लिए जमीन के अभाव के चलते निजी खिलाडिय़ों को लीज गारंटी की अवधि रास नहीं आई थी। इसके बाद एफसीआई की ओर से लीज गारंटी स्कीम की अवधि 7 साल से बढ़ाकर 10 साल किए जाने से निजी क्षेत्र को काफी हद तक बढ़ी कीमतों से राहत मिल सकती है। नए दिशा निर्देशों के तहत पहले 5,000 टन के लिए भूमि की जरूरत 3 एकड़ से घटाकर 2 एकड़ कर दी गई। इसके बाद अतिरिक्ति 5,000 टन के लिए भी जमीन की जरूरत 2 एकड़ से घटाकर 1.7 एकड़ कर दी गई। इसके अलावा निजी संस्थान भी नए दिशा-निर्देशों के तहत इसके लिए आवेदन कर सकते हैं। पहले पेश योजना के दिशा-निर्देशों के तहत हरियाणा में 3-4 माह की अवधि में कुल 43 लाख टन क्षमता विस्तार के लिए टेंडर प्राप्त हुए थे। पंजाब में यह आंकड़ा केवल 51 लाख टन रहा था। एफसीआई की उच्च स्तरीय समिति के द्वारा निजी खिलाडिय़ों द्वारा भरे गए टेंडर्स की चांज के बाद ही इसे अंतिम स्वीकृति प्रदान की जाएगी। नई योजना के तहत एफसीआई की उच्च स्तरीय समिति ने 19 राज्यों में अब तक कुल 1.58 करोड़ टन क्षमता विस्तार के आवेदनों को स्वीकृति दे दी है। इसमें मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु आदि राज्य शामिल हैं। एफसीआई का अनुमान है कि चालू कारोबारी साल के अंत तक अनाज भंडारण क्षमता में उल्लेखनीय विस्तार संभव हो सकेगा। नई योजना को कई राज्यों में लोगों का अच्छा समर्थन मिल रहा है ऐसे में एफसीआई इससे काफी आशान्वित है। केंद्रीय माल गोदाम निगम (सीडब्ल्यूसी) भी मार्च 2011 तक अपनी भंडारण क्षमता 3,00,000 टन बढ़ाने जा रहा है। इसमें से करीब 97,000 टन क्षमता का विस्तार अब तक किया जा चुका है। (BS Hindi)
अगस्त 2010 में पेश प्राइवेट एंटरप्रेन्योर गारंटी स्कीम को संशोधित और इसे ज्यादा उदार बनाए जाने के बाद भारतीय खाद्य निगम को निजी खिलाडिय़ों की तरफ से बेहतर समर्थन मिलने लगा है। पहले पेश योजना के तहत एफसीआई 7 साल की लीज गारंटी दे रहा था। लेकिन यह पंजाब और हरियाणा में निजी खिलाडिय़ों को आकर्षित करने में नाकाम रहा था। इसको देखते हुए एफसीआई ने बाद में इसमें संशोधित करते हुए लीज गारंटी की अवधि को बढ़ाकर 10 साल कर दिया।हरियाणा में बोली लगाने की प्रक्रिया 17 सितंबर 2010 को शुरू हुई और अब तक कुल 467 टेंडर मिले हैं जिसके तहत राज्य में कुल 1.20 करोड़ टन क्षमता का विस्तार संभव हो सकेगा। इनमें से करीब 39 लाख टन क्षमता विस्तार को स्वीकृति मिल चुकी है जबकि अन्य टेंडरों की जांच का काम चल रहा है। पंजाब में टेंडर भरने का समय 29 जुलाई को शुरू हुआ था। यहां एफसीआई को कुल 532 आवदेन मिले हैं। जिसके तहत यहां कुल 1.01 करोड़ टन क्षमता का विस्तार संभव हो सकेगा। अंतिम मंजूरी के लिए फिलहाल 311 साइटों पर जांच का काम चल रहा है। पूर्व योजना के तहत निजी खिलाडिय़ों ने उत्साह नहीं दिखाया था। इसका कारण यह था कि दोनों राज्यों में जमीन की बढ़ती कीमतों और इसके लिए जमीन के अभाव के चलते निजी खिलाडिय़ों को लीज गारंटी की अवधि रास नहीं आई थी। इसके बाद एफसीआई की ओर से लीज गारंटी स्कीम की अवधि 7 साल से बढ़ाकर 10 साल किए जाने से निजी क्षेत्र को काफी हद तक बढ़ी कीमतों से राहत मिल सकती है। नए दिशा निर्देशों के तहत पहले 5,000 टन के लिए भूमि की जरूरत 3 एकड़ से घटाकर 2 एकड़ कर दी गई। इसके बाद अतिरिक्ति 5,000 टन के लिए भी जमीन की जरूरत 2 एकड़ से घटाकर 1.7 एकड़ कर दी गई। इसके अलावा निजी संस्थान भी नए दिशा-निर्देशों के तहत इसके लिए आवेदन कर सकते हैं। पहले पेश योजना के दिशा-निर्देशों के तहत हरियाणा में 3-4 माह की अवधि में कुल 43 लाख टन क्षमता विस्तार के लिए टेंडर प्राप्त हुए थे। पंजाब में यह आंकड़ा केवल 51 लाख टन रहा था। एफसीआई की उच्च स्तरीय समिति के द्वारा निजी खिलाडिय़ों द्वारा भरे गए टेंडर्स की चांज के बाद ही इसे अंतिम स्वीकृति प्रदान की जाएगी। नई योजना के तहत एफसीआई की उच्च स्तरीय समिति ने 19 राज्यों में अब तक कुल 1.58 करोड़ टन क्षमता विस्तार के आवेदनों को स्वीकृति दे दी है। इसमें मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु आदि राज्य शामिल हैं। एफसीआई का अनुमान है कि चालू कारोबारी साल के अंत तक अनाज भंडारण क्षमता में उल्लेखनीय विस्तार संभव हो सकेगा। नई योजना को कई राज्यों में लोगों का अच्छा समर्थन मिल रहा है ऐसे में एफसीआई इससे काफी आशान्वित है। केंद्रीय माल गोदाम निगम (सीडब्ल्यूसी) भी मार्च 2011 तक अपनी भंडारण क्षमता 3,00,000 टन बढ़ाने जा रहा है। इसमें से करीब 97,000 टन क्षमता का विस्तार अब तक किया जा चुका है। (BS Hindi)
बंपर पैदावार से काबू में रहेंगी कीमतें
मुंबई November 11, 2010
देश में इस साल अनाज की बंपर पैदावार होने का अनुमान है। इसके अलावा सरकारी गोदामों में भी पहले से ही अनाज के ढेर लगे हुए हैं। इसके चलते खाद्यान्न के भाव इस साल सीमित दायरे में रहने की संभावना है। चालू फसल सत्र के दौरान भारत में चावल उत्पादन करीब 9 फीसदी बढ़कर 9.60 से 9.70 करोड़ टन रह सकता सकता है। पिछले सत्र के दौरान चावल उत्पादन 8.90 टन रहा था। देश के कुल चावल उत्पादन में लगभग 90 फीसदी हिस्से का उत्पादन खरीफ सत्र के दौरान होता है। इस साल खरीफ सत्र में चावल उत्पादन 7.59 करोड़ टन से बढ़कर 8.04 करोड़ टन हो जाने का अनुमान है। अच्छे मॉनसून की वजह से इस साल जमकर बारिश हुई। इससे खेतों में अभी भी पर्याप्त नमी है। जिसका असर रबी की बुआई पर भी पड़ेगा। यानी अनुकूल मौसम से रबी सीजन में दलहल, तिलहन समेत सभी तरह के अनाज की उपज भी पिछले साल की तुलना में बेहतर रहने का अनुमान है। सरकारी अनुमान के मुताबिक चालू फसल वर्ष में गेहूं उत्पादन में भारी बढ़ोतरी होगी। वर्ष 2010-11 के रबी सीजन में गेहूं उत्पादन बढ़कर 8.2 करोड़ टन हो जाने की संभावना है जबकि पिछले साल इसी सत्र में गेहूं का उत्पादन 8.07 करोड़ टन रहा था। नैशनल कोलैटरल मैनेजमेंट सर्विस लिमिटेड (एनसीएमएसएल) के प्रबंध निदेशक संजय कौल कहते हैं, 'देश में खाद्यान्न के ज्यादा उत्पादन से इस साल इसके दामों पर दबाव रह सकता है। कीमतों में गिरावट की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन यह देखना होगा कि खुले बाजार में अनाज की आपूर्ति कितनी हो पाती है।'देश के कुल 23.40 करोड़ टन अनाज उत्पादन का करीब आधा हिस्सा तो यहां के किसान खुद के उपभोग के लिए अपने पास ही रख लेते हैं। इसके अलावा सरकारी खरीद एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) उपज का एक बड़ा हिस्सा सालाना लगभग 6.50 करोड़ टन अनाज खरीदकर सरकारी गोदामों में रख देती है। इसके बाद जो शेष अनाज बचता है, यानी लगभग 3.50 से 4.0 करोड़ टन अनाज ही खुले बाजार में खरीद-बिक्री के लिए उपलब्ध हो पाता है। ऐसे में यह कह पाना मुश्किल है कि देश में बंपर अनाज उत्पादन का कीमतों पर कितना असर पड़ेगा। कमोडिटी इयरबुक 2011 के लॉन्चिंग के मौके पर कौल ने कहा, कीमतों में तेज उतारचढ़ाव होने पर अक्सर कारोबारियों पर आरोप लगते हैं। पर एफसीआई ही वह एजेंसी है जिसे जिंस बाजार में दखल की इजाजत देनी चाहिए। ठीक उसी तरह जैसे भारतीय जीवन बीमा निगम शेयर बाजार में निभाता है। खाद्य सुरक्षा विधेयक के कानून बनने के बाद एफसीआई पर निर्भरता और बढ़ जाएगी।खाद्य सुरक्षा विधेयक (एफएसबी) लागू होने की स्थिति में केंद्रीय खरीद एजेंसी एफसीआई की भूमिका और बढ़ जाएगी। क्योंकि तब उन्हें और ज्यादा अनाज खरीद की जरूरत होगी। इस आधार पर कहें कि देश के खुले अनाज बाजार में खाद्यान्नों की आपूर्ति में एफसीआई की भूमिका और अहम हो जाएगी। पिछले साल एफसीआई ने चावल और गेहूं सेमत कुल 5.50 करोड़ टन अनाज की खरीद की थी। लेकिन एफएसबी लागू होने से हर साल करीब 6.50 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी। यानी एफसीआई को और ज्यादा मात्रा में अनाज खरीदना होगा। इससे खुले बाजार में अनाज की आपूर्ति पर असर पडऩा तय है। इस बीच केंद्रीय पूल में 30 सितंबर 2010 तक कुल 4.62 करोड़ टन अनाज का सुरक्षित भंडारण किया जा चुका है। जबकि बफर नार्म केवल 1.62 करोड़ टन है। कॉल ने आगे कहा कि एफएसबी लागू होने से सरकार प्राथमिकता श्रेणी के लोगों को रियायती दर पर 35 किलोग्राम अनाज मुहैया कराएगी। इसके तहत गेहूं 2 रुपये और चावल 3 रुपये प्रति किलाग्राम की दर से उपलब्ध करायी जाएगी। सरकार ने यह भी कहा है कि इसके अतिरिक्त खाद्यान्न 10 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से उपलब्ध होगा। यानी सरकारी खरीद एजेंसी द्वारा बाजार से भारी मात्रा में अनाज खरीदा जाएगा और इसे रियायती दरों पर गरीब लोगों के बीच वितरित किया जाएगा। ऐसे में खुले बाजार के लिए जगह काफी सीमित हो जाती है और यहां कीमतों में ज्यादा उतार-चढ़ाव की गुंजाइश भी कम बचती है। हालांकि कौल ने जोर देकर कहा कि खाद्यान्न बाजार में सरकारी एजेंसी को अपनी भूमिका कुछ सीमित करनी चाहिए और निजी क्षेत्र की भूमिका और बढऩी चाहिए। (BS Hindi)
देश में इस साल अनाज की बंपर पैदावार होने का अनुमान है। इसके अलावा सरकारी गोदामों में भी पहले से ही अनाज के ढेर लगे हुए हैं। इसके चलते खाद्यान्न के भाव इस साल सीमित दायरे में रहने की संभावना है। चालू फसल सत्र के दौरान भारत में चावल उत्पादन करीब 9 फीसदी बढ़कर 9.60 से 9.70 करोड़ टन रह सकता सकता है। पिछले सत्र के दौरान चावल उत्पादन 8.90 टन रहा था। देश के कुल चावल उत्पादन में लगभग 90 फीसदी हिस्से का उत्पादन खरीफ सत्र के दौरान होता है। इस साल खरीफ सत्र में चावल उत्पादन 7.59 करोड़ टन से बढ़कर 8.04 करोड़ टन हो जाने का अनुमान है। अच्छे मॉनसून की वजह से इस साल जमकर बारिश हुई। इससे खेतों में अभी भी पर्याप्त नमी है। जिसका असर रबी की बुआई पर भी पड़ेगा। यानी अनुकूल मौसम से रबी सीजन में दलहल, तिलहन समेत सभी तरह के अनाज की उपज भी पिछले साल की तुलना में बेहतर रहने का अनुमान है। सरकारी अनुमान के मुताबिक चालू फसल वर्ष में गेहूं उत्पादन में भारी बढ़ोतरी होगी। वर्ष 2010-11 के रबी सीजन में गेहूं उत्पादन बढ़कर 8.2 करोड़ टन हो जाने की संभावना है जबकि पिछले साल इसी सत्र में गेहूं का उत्पादन 8.07 करोड़ टन रहा था। नैशनल कोलैटरल मैनेजमेंट सर्विस लिमिटेड (एनसीएमएसएल) के प्रबंध निदेशक संजय कौल कहते हैं, 'देश में खाद्यान्न के ज्यादा उत्पादन से इस साल इसके दामों पर दबाव रह सकता है। कीमतों में गिरावट की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन यह देखना होगा कि खुले बाजार में अनाज की आपूर्ति कितनी हो पाती है।'देश के कुल 23.40 करोड़ टन अनाज उत्पादन का करीब आधा हिस्सा तो यहां के किसान खुद के उपभोग के लिए अपने पास ही रख लेते हैं। इसके अलावा सरकारी खरीद एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) उपज का एक बड़ा हिस्सा सालाना लगभग 6.50 करोड़ टन अनाज खरीदकर सरकारी गोदामों में रख देती है। इसके बाद जो शेष अनाज बचता है, यानी लगभग 3.50 से 4.0 करोड़ टन अनाज ही खुले बाजार में खरीद-बिक्री के लिए उपलब्ध हो पाता है। ऐसे में यह कह पाना मुश्किल है कि देश में बंपर अनाज उत्पादन का कीमतों पर कितना असर पड़ेगा। कमोडिटी इयरबुक 2011 के लॉन्चिंग के मौके पर कौल ने कहा, कीमतों में तेज उतारचढ़ाव होने पर अक्सर कारोबारियों पर आरोप लगते हैं। पर एफसीआई ही वह एजेंसी है जिसे जिंस बाजार में दखल की इजाजत देनी चाहिए। ठीक उसी तरह जैसे भारतीय जीवन बीमा निगम शेयर बाजार में निभाता है। खाद्य सुरक्षा विधेयक के कानून बनने के बाद एफसीआई पर निर्भरता और बढ़ जाएगी।खाद्य सुरक्षा विधेयक (एफएसबी) लागू होने की स्थिति में केंद्रीय खरीद एजेंसी एफसीआई की भूमिका और बढ़ जाएगी। क्योंकि तब उन्हें और ज्यादा अनाज खरीद की जरूरत होगी। इस आधार पर कहें कि देश के खुले अनाज बाजार में खाद्यान्नों की आपूर्ति में एफसीआई की भूमिका और अहम हो जाएगी। पिछले साल एफसीआई ने चावल और गेहूं सेमत कुल 5.50 करोड़ टन अनाज की खरीद की थी। लेकिन एफएसबी लागू होने से हर साल करीब 6.50 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी। यानी एफसीआई को और ज्यादा मात्रा में अनाज खरीदना होगा। इससे खुले बाजार में अनाज की आपूर्ति पर असर पडऩा तय है। इस बीच केंद्रीय पूल में 30 सितंबर 2010 तक कुल 4.62 करोड़ टन अनाज का सुरक्षित भंडारण किया जा चुका है। जबकि बफर नार्म केवल 1.62 करोड़ टन है। कॉल ने आगे कहा कि एफएसबी लागू होने से सरकार प्राथमिकता श्रेणी के लोगों को रियायती दर पर 35 किलोग्राम अनाज मुहैया कराएगी। इसके तहत गेहूं 2 रुपये और चावल 3 रुपये प्रति किलाग्राम की दर से उपलब्ध करायी जाएगी। सरकार ने यह भी कहा है कि इसके अतिरिक्त खाद्यान्न 10 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से उपलब्ध होगा। यानी सरकारी खरीद एजेंसी द्वारा बाजार से भारी मात्रा में अनाज खरीदा जाएगा और इसे रियायती दरों पर गरीब लोगों के बीच वितरित किया जाएगा। ऐसे में खुले बाजार के लिए जगह काफी सीमित हो जाती है और यहां कीमतों में ज्यादा उतार-चढ़ाव की गुंजाइश भी कम बचती है। हालांकि कौल ने जोर देकर कहा कि खाद्यान्न बाजार में सरकारी एजेंसी को अपनी भूमिका कुछ सीमित करनी चाहिए और निजी क्षेत्र की भूमिका और बढऩी चाहिए। (BS Hindi)
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