30 जून 2012
उद्योग को लेवी चीनी से राहत मिलने की उम्मीद
लेवी चीनी 10 फीसदी से घटकर 5 फीसदी किए जाने की संभावना
डिकंट्रोल के मसले
लेवी चीनी में कटौती का मुद्दा
गन्ना रिजर्व एरिया व्यस्था पर पुनर्विचार
राज्यों द्वारा लागू एसएपी व्यवस्था
खुले बाजार में चीनी की नियंत्रण मुक्तबिक्री
आयात-निर्यात की दीर्घकालिक नीति
सरकारी नियंत्रण से नुकसान
सरकारी नियंत्रणों के चलते चीनी उद्योग का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है। चीनी उद्योग में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) इसी वजह से आकर्षित नहीं हो पाया। चीनी कंपनियों के वित्तीय प्रदर्शन में गिरावट दर्ज की गई है।
कमेटी से अपेक्षाएं
उद्योग को उम्मीद है कि रंगराजन कमेटी की सिफारिशों का हश्र पिछली कमेटियों जैसा नहीं होगा। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के प्रमुख रंगराजन की अगुवाई में कमेटी सीधे प्रधानमंत्री को ही रिपोर्ट पेश करेगी।
लंबे अरसे से डिकंट्रोल की मांग कर रहे चीनी उद्योग को रंगराजन कमेटी से मनमाफिक सिफारिशें आने की भारी उम्मीद है। उद्योग का कहना है कि कमेटी लेवी चीनी में कटौती करके डिकंट्रोल की दिशा में आगे बढऩे की सिफारिश कर सकती है। मिलों से इस समय 10 फीसदी लेवी चीनी ली जाती है।
संभव है कि इसमें कटौती करके 4-5 फीसदी कर दिया। इससे चीनी मिलों की वित्तीय स्थिति सुधरेगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा सी. रंगराजन की अगुवाई में गठित कमेटी उद्योग प्रतिनिधियों और दूसरे संबंधित पक्षों से बातचीत कर रही है। कमेटी जल्दी ही अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंप देगी।
अगर कमेटी लेवी चीनी में कटौती करने की सिफारिश करती है और सरकार इसे लागू करती है तो उद्योग को करीब 1,250-1500 करोड़ रुपये का हर साल फायदा होगा। सूत्रों के अनुसार लेवी चीनी घटाकर 4-5 फीसदी तय की जा सकती है। गौरतलब है कि सरकार मिलों से दस फीसदी चीनी लेवी के रूप में लेती है। यह चीनी सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत गरीबों को वितरित करती है।
सरकार मिलों से इस समय करीब 1900 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर लेवी चीनी लेती है जबकि मिल डिलीवरी चीनी का भाव करीब 2,900 रुपये प्रति क्विंटल है। कमेटी गन्ना रिजर्व एरिया, राज्यों द्वारा घोषित होने वाले राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी), खुले बाजार में चीनी की नियंत्रण मुक्त बिक्री और चीनी के आयात-निर्यात की छूट के बिंदुओं पर विचार कर रही है।
सरकारी नियंत्रणों के चलते चीनी उद्योग का समुचित विकास नहीं हो पा रहा है। चीनी उद्योग में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) इसी वजह से आकर्षित नहीं हो पाया। चीनी कंपनियों के वित्तीय प्रदर्शन में गिरावट दर्ज की गई है। सबसे बड़ी चीनी कंपनी हिंदुस्थान शुगर्स मिल्स का लाभ सितंबर 2011 को समाप्त वर्ष में 76 फीसदी घटकर 12 करोड़ रुपये रह गया।
इसी तरह बलराम चीनी मिल्स, सिंभावली शुगर्स और त्रिवेणी इंजीनियरिंग के भी मुनाफे पर प्रतिकूल असर रहा है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के डायरेक्टर जनरल अविनाश वर्मा ने कहा कि गरीबों को सस्ती चीनी सुलभ कराना सरकार का सामाजिक दायित्व है।
इसलिए इसका वित्तीय भार सरकार को ही उठाना चाहिए। मिलों पर इसका भार नहीं डालना चाहिए। नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्री के मैनेजिंग डायरेक्टर विनय कुमार ने कहा कि लेवी चीनी का भार घटता है मिलों की वित्तीय स्थिति सुधरेगी। मिलों को किसानों के गन्ने का भुगतान करने में भी मदद मिलेगी।
उद्योग को उम्मीद है कि रंगराजन कमेटी की सिफारिशों को सरकार लागू करने में दिलचस्पी दिखाएगी। इस कमेटी की सिफारिशों का हश्र पिछली कमेटियों जैसा नहीं होगा। इस बार प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के प्रमुख रंगराजन की अगुवाई में कमेटी का गठन खुद मनमोहन सिंह ने किया है। यह कमेटी सीधे प्रधानमंत्री को ही रिपोर्ट पेश करेगी। इस रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने के लिए खाद्य मंत्रालय कैबिनेट बनाकर विचार के लिए मंत्रिमंडल के समक्ष पेश करेगा। (Business Bhaskar.)
पोल्ट्री फीड में मांग बढऩे से मक्का के दाम सुधरे
पोल्ट्री फीड में मांग बढऩे के कारण मक्का की कीमतों में तेजी दर्ज की जा रही है। पिछले एक माह में मक्का का भाव करीब 200 रुपये बढ़कर 1650 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। कारोबारियों का कहना है कि सोया मील के दाम में बढ़ोतरी के कारण पोल्ट्री के लिए मक्का की मांग में तेजी दर्ज की जा रही है। इसके अलावा निर्यातकों की भी मांग बढ़ रही है। इस समय मक्का की आवक बिहार से ही हो रही है व खरीफ की नई फसल सितंबर में आएगी। ऐसे में कीमतों में तेजी जारी रहने की संभावना है।
दिल्ली में मक्का के थोक कारोबारी रविन्द्र कुमार ने बताया कि इन दिनों मक्का की मांग में तेजी दर्ज की जा रही है। इस कारण इसके भाव पिछले कुछ दिनों में 200 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ गए हैं। इनके मुताबिक पिछले पंद्रह दिनों में दिल्ली में मक्का में तेजी आकर भाव 1,350 से 1,650 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं।
अमेरिका में मक्का का उत्पादन कम होने की संभावना से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इसके दाम बढ़े हैं। वियतनाम में इसकी कीमतें करीब 345 डॉलर प्रति टन के आसपास हैं। चालू सीजन सितंबर 2011 से अभी तक करीब 24 लाख टन मक्का का निर्यात हो चुका है। अन्य कारोबारी राजेश अग्रवाल ने बताया कि मक्का की आवक बिहार से हो रही थी जो अब कम हो गई है। खरीफ के मक्का की आवक सितंबर में शुरू होगी।
पोल्ट्री फीड निर्माताओं के साथ ही स्टॉर्च मिलों की मांग में बढ़ोतरी के कारण मक्का की मौजूदा कीमतों में करीब 200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी दर्ज की गई है। एनसीडीईएक्स पर जुलाई महीने के वायदा अनुबंध में पिछले दस दिनों में मक्का की कीमतों में तेजी आई है।
18 जून को जुलाई महीने के वायदा अनुबंध में मक्का का दाम 1,191 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि शुक्रवार को यह बढ़कर 1,269 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2011-12 (रबी और खरीफ मिलाकर) मक्का का उत्पादन 213.3 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2010-11 में उत्पादन 217.3 लाख टन का हुआ था।
(Buisness Bhaskar....R S Rana)
बंपर स्टॉक होने से लाल मिर्च में तेजी की संभावना नहीं
गुंटूर मंडी में 70 लाख बोरी लाल मिर्च का भारी-भरकम स्टॉक
लाल मिर्च की प्रमुख उत्पादक मंडी गुंटूर में लाल मिर्च का करीब 70 लाख बोरी (एक बोरी-40 किलो) का स्टॉक बचा हुआ है जबकि निर्यातकों के साथ ही घरेलू मांग स्थिर बनी हुई है। इसीलिए लाल मिर्च की कीमतों में गिरावट चल रही है।
गुंटूर चिली मर्चेंट्स एसोसिएशन के सचिव अशोक कोठारी ने बताया कि गुंटूर में ही लाल मिर्च का करीब 70 लाख बोरी का स्टॉक हो चुका है तथा दैनिक बिकवाली 35 से 40 हजार बोरियों की बनी हुई है लेकिन बिकवाली की तुलना में मांग कमजोर है। गर्मियों की छुट्टियों के बाद मंडी खुलने के बाद से लाल मिर्च की कीमतों में करीब 250 से 300 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है।
निर्यातक फर्म अशोक एंड कंपनी के डायरेक्टर अशोक दत्तानी ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय लाल मिर्च का दाम 2.87 डॉलर प्रति किलो है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसका भाव 3.64 डॉलर प्रति किलो था। बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया और खाड़ी देशों के साथ-साथ यूरोप की मांग सीमित मात्रा में ही बनी हुई है।
भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार वित्त वर्ष 2011-12 के पहले दस महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान लाल मिर्च के निर्यात में 17 फीसदी की कमी आई है। इस दौरान 169,500 टन लाल मिर्च का ही निर्यात हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 205,000 टन का निर्यात हुआ था।
लाल मिर्च के थोक कारोबारी मांगीलाल मूंदड़ा ने बताया कि कोल्ड स्टोर के मालों में तेजा क्वालिटी की लाल मिर्च के भाव 6,000 से 6,700 रुपये और 334 क्वालिटी की लाल मिर्च के भाव 5,000 से 5,500 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। फटकी क्वालिटी का भाव 2,000 से 2,5,00 रुपये प्रति क्विंटल है।
एनसीडीईएक्स पर जुलाई महीने के वायदा अनुबंध में 13 जून को लाल मिर्च का भाव 5,304 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि बुधवार को घटकर 4,912 रुपये प्रति क्विंटल रह गया।
(Business Bhaskar.....R S Rana)
घटेगा आयात बिल
वैश्विक बाजारों में जिंसों की कीमतों में गिरावट भारतीय नीति निर्माताओं के लिए राहत का संकेत हैं। कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और सोने व पॉलिश किए हुए हीरे पर आयात शुल्क बढ़ाने से चालू वित्त वर्ष में देश का आयात बिल 60 अरब डॉलर तक घटने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2011-12 में कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का औसतन 112 डॉलर प्रति बैरल की दर से आयात किया गया। लेकिन मौजूदा समय में इनकी कीमत 90 से 91 डॉलर प्रति बैरल के करीब है यानी कीमतों में करीब 20 फीसदी की गिरावट आई है।
इक्रा के मुताबिक 2011-12 में करीब 155.6 अरब डॉलर के कच्चे तेल का आयात किया गया। पिछले साल भारत ने 36.5 अरब डॉलर मूल्य के रसायनों का आयात किया था लेकिन अब कीमतों में गिरावट का रुख देखा जा रहा है। इससे करीब 4 से 5 अरब डॉलर की बचत हो सकती है। पिछले साल करीब 61.5 अरब डॉलर मूल्य के सोने-चांदी का आयात किया गया। हालांकि वैश्विक बाजारों में कीमतों में गिरावट के रुख के बावजूद घरेलू बाजार में सोने की कीमतें चढ़ रही हैं। लेकिन कीमतें बढऩे से घरेलू बाजार में मांग करीब 30 से 45 फीसदी घटने की उम्मीद है। 2012-13 के पहले दो महीनों में सोने का आयात बिल घटकर 4.3 अरब डॉलर रहा, जो पिछले साल इस दौरान 9.2 अरब डॉलर था। बुलियन बाजार के जानकारों का कहना है कि इस साल सोने के आयात में 35 से 40 फीसदी की गिरावट आ सकती है।
रत्न एवं आभूषण निर्यात संवर्धन परिषद् के अनुसार 2011-12 में 14.4 अरब डॉलर के हीरे का आयात किया गया लेकिन मार्च के मध्य में 2 फीसदी आयात शुल्क लगाने के बाद हीरों के आयात में भी गिरावट देखी जा रही है। केयर के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'देश के कुल आयात बिल में सोने-चांदी और कच्चे तेल की हिस्सेदारी 50 फीसदी से ज्यादा है। ऐसे में इनकी कीमतों में गिरावट से आयात बिल में भी कमी आने की उम्मीद है।' (BS Hindi)
तांबा वायदा कीमतों में तेजी
वैश्विक बाजारों से सकारात्मक संकेत लेते हुए सटोरियों ने अपने सौदों के आकार को बढ़ाया जिससे वायदा कारोबार में आज तांबा की कीमत 0.59 फीसदी तक की तेजी के साथ 420.10 रुपये प्रति किग्रा हो गई। एमसीएक्स में तांबा के जून डिलिवरी वाले अनुबंध की कीमत 2.45 रुपये की तेजी के साथ 420.10 रुपये प्रति किग्रा हो गई जिसमें 4,286 लॉट के लिए कारोबार हुआ।
तांबा के अगस्त डिलिवरी वाले अनुबंध की कीमत 2.35 रुपये की तेजी के साथ 424.85 रुपये प्रति किग्रा हो गई जिसमें 3,211 लॉट के लिए कारोबार हुआ। इस बीच लंदन मेटल एक्सचेंज में आरंभिक कारोबार के दौरान तीन माह में डिलिवरी वाले तांबा की कीमत 1.7 प्रतिशत की तेजी के साथ 7,492 डॉलर प्रति टन हो गई जो 15 जून के बाद की सर्वाधिक तेजी को दर्शाता है।
बाजार विश्लेषकों ने तांबा वायदा कीमतों में तेजी का श्रेय लंदन मेटल एक्सचेंज में मजबूती के रुख को दिया। उन्होंने कहा कि विदेशों में डालर के कमजोर होने से वैकल्पिक निवेश के रूप में तांबा की अपील बढ़ गई। (BS Hindi)
मॉनसून अटका, धान का रकबा घटा
जून में सामान्य से कम बारिश की वजह से पूरे देश में खरीफ फसलों की बुआई में विलंब हुआ है और खासकर धान एवं मोटे अनाजों पर इसका ज्यादा असर पड़ा है जिनका रकबा 29 जून तक पिछले तीन वर्षों में सबसे कम दर्ज किया गया।
कृषि मंत्रालय से प्राप्त ताजा आंकड़ों के अनुसार 29 जून तक धान की बुआई लगभग 30.7 लाख हेक्टेयर भूमि पर हुई जो पिछले साल की तुलना में लगभग 26 फीसदी कम है। वर्ष 2010 में जून के अंत तक लगभग 46.4 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की बुआई हुई थी जबकि 2009 में यह आंकड़ा 38.1 लाख हेक्टेयर था। कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'मॉनसून में विलंब की वजह से पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ जैसे सभी धान उत्पादक राज्यों धान की बुआई पिछले साल की तुलना में कम है।' हालांकि उन्होंने कहा कि फिलहाल स्थिति ज्यादा गंभीर नहीं है, क्योंकि मॉनसून में जून के बाद के हिस्से में तेजी दर्ज की गई है।
भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार अब तक मॉनसून की बारिश 1 जून से 27 जून के बीच सामान्य से 23 फीसदी कम दर्ज की गई जबकि पिछले साल 1 से 29 जून के बीच इसमें 10.7 फीसदी की वृद्घि दर्ज की गई थी।
दक्षिण-पश्चिम का मॉनसून भारतीय कृषि के लिए अहम है, क्योंकि कुल कृषि योग्य भूमि के लगभग 55 फीसदी में सिंचाई की सुविधाएं नहीं हैं। लगभग 2 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान करीब 15 फीसदी है।
कृषि मंत्रालय के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि खासकर मोटे अनाज के उत्पादन के लिए प्रख्यात दक्षिण और पश्चिम भारत में मोटे अनाज का रकबा पिछले साल की तुलना में लगभग 53 फीसदी कम है। खरीफ फसलों, खासकर तिलहन और दलहन, के उत्पादन में गिरावट से खाद्य मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिल सकता है जो मार्च 2012 के बाद से पहले ही दोहरे अंक में है। हालांकि अनाज में ऐसी कोई समस्या नहीं है, क्योंकि सरकार के पास गोदामों में पर्याप्त भंडार मौजूद है। आंकड़ों के अनुसार 29 जून तक 10.7 लाख हेक्टेयर भूमि पर तिलहन की बुआई हुई जो पिछले साल की तुलना में लगभग 17 फीसदी कम है। (BS Hindi)
आम आदमी की पहुंच से दूर हो रहा है केला
आम लोगों की पसंद और पहुंच में रहने वाले केले का स्वाद भी महंगाई में बिगड़ रहा है। हालांकि थोक बाजार में केला सस्ता है, लेकिन मांग बढऩे और आवक घटने के कारण खुदरा बाजार में महीने भर के अंदर इसके खुदरा भाव करीब दोगुने गए हैं।
महीने भर पहले 25-30 रुपये प्रति दर्जन बिकने वाला केला इस वक्त मुंबई में 40-50 रुपये प्रति दर्जन बिक रहा है। खुदरा कारोबारी बता रहे हैं कि देसी केले की मांग अब विदेश में भी बढ़ रही है, जिससे यहां के बाजारों में आपूर्ति कम है और दाम बढ़ रहे हैं।
हालांकि यह तर्क भी गले नहीं उतर रहा है क्योंकि थोक बाजार में केला सस्ता है। इस महीने की शुरुआत में वाशी थोक मंडी में केला 1,000 से 1,200 रुपये प्रति क्विंटल था, जो अब 800-1,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है। कारोबारियों के मुताबिक बारिश शुरू होने की वजह से माल का ज्यादा भंडारण नहीं हो सकता, इसलिए फटाफट बिक्री हो रही है और दाम गिर गए हैं।
दिल्ली में आजादपुर केला ट्रेडर्स मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष रमेश बसंदानी ने बताया कि मंडी में आजकल 20 से 25 ट्रक (1 ट्रक में 160 क्विंटल केला) केला आ रहा है। उत्तर प्रदेश से आम की आवक शुरू होने से भी केले की मांग कम हुई है। इसलिए केले का थोक भाव 1,000-1,400 रुपये से घटकर 900-1,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है। लेकिन खुदरा भाव यहां भी 40 रुपये दर्जन चल रहा है, जो महीने भर पहले 30 रुपये ही था।
केला कारोबारी रामसिंह यादव ने बताया कि पाकिस्तान में भारतीय केला 200 रुपये दर्जन बिकने और उसकी मांग बहुत ज्यादा होने की खबरें पिछले दिनों आईं। आंधी-तूफान में केले की फसल बर्बाद होने की खबरें भी मिलीं, जिसकी वजह से थोक मंडी और खुदरा कारोबारियों के बीच बिचौलिये का काम करने वालों ने दाम बढ़ा दिए। मुंबई के लोखंडवाला जैसे इलाकों में तो केला 60 रुपये प्रति दर्जन मिल रहा है। (BS Hindi)
खराब मॉनसून, धान की बुआई पर असर
देश में मॉनसून की कमी को लेकर चिंताएं गहराने लगी हैं। वो इसलिए क्योंकि जून का महीना खत्म होने जा रहा है और अबतक मॉनसून की चाल सामान्य से 27 फीसदी नीचे चल रही है।
देश में मॉनसून की स्थिति अब खराब होती जा रही है। पहली जून से 29 जून तक देश में 27 फीसदी कम बारिश हुई है। 29 जून को देश में 71 फीसदी कम बारिश हुई है। सबसे ज्यादा कम बारिश उत्तर पश्चिम भारत में हुई है। यहां जून में 67 फीसदी बादल कम बरसे हैं।
मध्य भारत की हालत भी खराब है। यहां 38 फीसदी कम बारिश हुई है। दक्षिण भारत में भी 28 फीसदी मॉनसूनी बारिश कम है। हालांकि उत्तर पूर्वीय भारत में हालात कुछ बेहतर हैं। लेकिन यहां भी औसत में 1 फीसदी बारिश कम हुई है।
कमजोर मॉनसून के चलते अब धान की फसल कमजोर होने का डर बढ़ गया है। इस साल अबतक कुल 31 लाख हेक्टेयर जमीन पर ही धान बोया गया है, जबकि पिछले साल इस दौरान 42 लाख हेक्टेयर जमीन पर बुआई हुई थी। वहीं कम बारिश के चलते अनाज तो अबतक आधा ही बोया गया है।
पिछले साल 22 लाख हेक्टेयर जमीन पर अनाज की बुआई हुई थी, इस साल अबतक सिर्फ 10 लाख हेक्टेयर है। दालों की बुआई का भी यहीं हाल है, जहां पिछले साल 6 लाख हेक्टेयर जमीन पर दालें बोई गई थी, इस साल सिर्फ 4 लाख हेक्टेयर पर दालों की बुआई हुई है। ऑयलसीड्स यानि तिलहन की बुआई भी इस साल 17 फीसदी घट गई है। (Money Cantrol)
23 जून 2012
मेंथा तेल में और गिरावट की संभावना
पैदावार में बढ़ोतरी और निर्यात मांग कमजोर होने से मेंथा तेल की मौजूदा कीमतों में और भी 10 फीसदी की गिरावट आने की संभावना है। पिछले 15 दिनों में इसकी कीमतों में 125 रुपये की गिरावट आकर भाव 1,425 रुपये प्रति किलो रह गए हैं। चालू सीजन में मेंथा तेल के उत्पादन में 15 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल उत्पादन 40,000 टन का होने का अनुमान है।
उत्तरप्रदेश मेंथा उद्योग एसोसिएशन के अध्यक्ष फूल प्रकाश ने बताया कि चालू सीजन में मेंथा की बुवाई में तो बढ़ोतरी हुई थी, साथ ही मौसम भी फसल के अनुकूल रहा है। इसीलिए चालू सीजन में मेंथा तेल का उत्पादन पिछले साल से 15 फीसदी बढऩे का अनुमान है। पिछले साल मेंथा तेल का उत्पादन करीब 34,000 से 35,000 टन का हुआ था। जबकि चालू सीजन में उत्पादन 40,000 टन होने का अनुमान है। उत्पादक मंडियों में नए मेंथा तेल की आवक का दबाव बना हुआ है इसीलिए कीमतों में गिरावट देखी जा रही है।
एसेंशियल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष योगेश दुबे ने बताया कि उत्पादन में बढ़ोतरी को देखते हुए अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों के आयातक नए आयात सौदे सीमित मात्रा में कर रहे हैं। आयातक अप्रैल-मई में 30 डॉलर प्रति किलो की दर से क्रिस्टल बोल्ड के खरीद सौदे कर रहे थे लेकिन अब 26-28 डॉलर का भाव ऑफर कर रहे हैं।
भारतीय मसाला बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2011-12 के पहले दस महीनों (अप्रैल से जनवरी) में मेंथा उत्पादों के निर्यात में छह फीसदी की कमी आई है। इस दौरान 12,800 टन मेंथा उत्पादों का निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 13,550 टन का निर्यात हुआ था।
कांता केमिकल के प्रबंधक जुगल किशोर ने बताया कि उत्पादक मंडियों में नए तेल की आवक बढ़कर 1,100 से 1,200 ड्रम (एक ड्रम-180 किलो) की हो गई है।
मौसम फसल के एकदम अनुकूल है, ऐसे में आगामी दिनों में और में और बढ़ोतरी की संभावना है। उत्पादक मंडियों में मेंथा तेल का दाम घटकर शुक्रवार को 1,420-1,425 रुपये प्रति किलो रह गया जबकि क्रिस्टल बोल्ड का दाम 1,650 से 1,675 रुपये प्रति किलो रह गया है। पिछले 15 दिनों में इसकी कीमतों में 125 रुपये प्रति किलो की गिरावट आ चुकी है।
(Business Bhaskar....R S Rana)
सोना घरेलू बाजार से कहीं ज्यादा विदेश में सस्ता
सोना
१,५६९ डॉलर प्रति औंस पर सोना विदेश में दो फीसदी गिरने के बाद थोड़ा सुधरा
३०,४०० रुपये प्रति किलो पर सोना घरेलू बाजार में 190 रुपये घटा
चांदी
२६.९५ डॉलर प्रति औंस पर चांदी विदेश में 4.4 फीसदी गिरने के बाद संभली
५३,९०० रुपये प्रति किलो पर चांदी घरेलू बाजार में 900 रुपये सस्ती
गुरुवार को सोना विदेश में दो फीसदी गिरा, देश में 0.7 फीसदी की कमी
नई दिल्ली नकारात्मक संकेतों के चलते विश्व बाजार में बीती रात सोने के मूल्य में दो फीसदी से ज्यादा गिरावट दर्ज की गई। लेकिन शुक्रवार को ताजा लिवाली निकलने से थोड़ी तेजी आ गई। दूसरी ओर घरेलू बाजार में सोने के दाम करीब 190 रुपये (0.7 फीसदी) गिरे। सोने के दाम विदेशी बाजार में शुक्रवार को 1,569.39 डॉलर प्रति औंस रहे जबकि घरेलू बाजार में 30,400 रुपये प्रति दस ग्राम रहे। घरेलू बाजार में चांदी के दाम 900 रुपये घटकर 53,900 रुपये प्रति किलो रह गए।
गुरुवार की रात को विश्व बाजार में सोने के भाव दो फीसदी से ज्यादा गिरावट रही। अमेरिकी वायदा बाजार में भाव करीब 35 डॉलर घटकर 1567.10 डॉलर प्रति औंस रह गए। इसके बाद शुक्रवार को इसमें थोड़ी तेजी आई। लंदन के हाजिर बाजार में सोने के दाम 0.3 फीसदी बढ़कर 1,569.39 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर पहुंच गए।
अमेरिका में अगस्त डिलीवरी सोना 4.60 डॉलर सुधरकर 1,570.10 डॉलर प्रति औंस हो गया। उधर, घरेलू बाजार में शुक्रवार को सोने के दाम 190 रुपये गिरकर 30,400 रुपये प्रति दस ग्राम रह गए। विश्लेषकों के अनुसार अमेरिका में राहत पैकेज न दिए जाने के कारण सोने के साथ क्रूड में भी गिरवट आई। शुक्रवार को क्रूड में सुधार आने के साथ सोना भी थोड़ा सुधर गया।
निचले भाव पर लिवाली निकलने से भी तेजी को समर्थन मिला। शुक्रवार को चांदी में 0.4 फीसदी की तेजी के साथ भाव 26.95 डॉलर प्रति औंस हो गया। गुरुवार को चांदी में भी 4.4 फीसदी की जोरदार गिरावट आई। इसके विपरीत घरेलू बाजार में चांदी 900 रुपये (1.5 फीसदी) गिरकर 53,900 रुपये प्रति किलो रह गई।
(Business Bhaskar)
ग्वार वायदा शुरू करने पर सरकार का सतर्क रुख
चौकस क्यों :- वायदा कारोबार शुरू होने की चर्चाएं शुरू होते ही सट्टेबाजी तेज हो जाएगी और हाजिर में भाव और बढऩे लगेंगे। अभी भी ग्वार गम और ग्वार सीड के भाव पिछले साल के स्तर से सात-आठ गुना तक ज्यादा हैं।
67,000 रुपये प्रति क्विटंल पर ग्वार गम जोधपुर में काफी ऊंचे स्तर पर
20,000 रुपये के भाव पर ग्वार सीड बिक रहा है मंडियों में
पिछले सीजन में ग्वार गम और ग्वार सीड के मूल्य में दस गुना से भी ज्यादा तेजी आने के बाद इसके वायदा कारोबार पर लगी रोक हटवाने के लिए प्रयास तेज हो गए हैं। हालांकि वायदा कारोबार की प्रशासनिक जिम्मेदारी संभालने वाला उपभोक्ता मामलात मंत्रालय अगले सीजन में ग्वार वायदा शुरू करने के सवाल पर सतर्कता बरत रहा है। मंत्रालय ने फॉरवर्ड मार्केट्स कमीशन (एफएमसी) से कहा है कि इस मसले पर अभी विचार की कोई जरूरत नहीं है।
सितंबर में ग्वार की नई फसल की आवक शुरू होने के बाद स्थिति की समीक्षा की जाएगी और वायदा कारोबार शुरू करने के बारे में कोई फैसला किया जाएगा। मंत्रालय ने अगस्त तक इस पर कोई विचार करने से इंकार किया है। हाजिर और वायदा बाजार में ग्वार और ग्वार गम की कीमतों में रिकॉर्ड तेजी आने के बाद सरकार ने मार्च 2012 में इसके वायदा कारोबार पर रोक लगा दी थी।
उपभोक्ता मामले मंत्रालय एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एफएमसी से कहा गया है कि सितंबर में नई फसल की आवक शुरू होने के बाद ही स्थिति की समीक्षा की जाएगी और वायदा कारोबार को दोबारा शुरू करने पर विचार किया जाएगा।
दरअसल मंत्रालय ग्वार वायदा के सवाल पर अत्यधिक सतर्क है क्योंकि वायदा कारोबार शुरू होने की चर्चाएं शुरू होते ही सट्टेबाजी तेज हो जाएगी और हाजिर में भाव और बढऩे लगेंगे। अभी भी ग्वार गम और ग्वार सीड के भाव पिछले साल के स्तर से सात-आठ गुना तक ज्यादा हैं।
अधिकारी ने बताया कि ग्वार के प्रमुख उत्पादक राज्यों राजस्थान और हरियाणा में मानसून पूर्व की बारिश भी नहीं हुई है तथा मानसूनी बारिश शुरू होने के बाद ही ग्वार की बुवाई इन राज्यों में बढ़ेगी। इसलिए अभी ग्वार की बुवाई एरिया का भी कोई अनुमान लगाना मुश्किल है। मंत्रालय नई आवक शुरू होने के बाद ही कोई विचार करेगा। उन्होंने बताया कि एफएमसी के अधिकारी ग्वार की बुवाई और मंडियों में इसकी कीमतों पर नजर रखे हुए हैं।
स्टॉकिस्टों की सक्रियता से वायदा और हाजिर बाजार में फरवरी-मार्च में ग्वार और ग्वार गम की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थीं, जिसके बाद सरकार ने 22 मार्च को इसके वायदा कारोबार पर रोक लगा दी थी। मार्च महीने में उत्पादक मंडियों में ग्वार गम का दाम बढ़कर एक लाख रुपये प्रति क्विंटल और ग्वार सीड का दाम 33,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था।
ग्वार गम की निर्यात मांग में भारी बढ़ोतरी से भी ग्वार और ग्वार गम की कीमतों में तेजी को बल मिला था। हालांकि बाद में निर्यात संबंधी आंकड़ों पर भी सवाल उठने लगे।
हरियाणा ग्वार गम एंड केमिकल के डायरेक्टर सुरेंद्र सिंघल ने बताया कि जोधपुर में ग्वार गम का भाव इस समय 67,000 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि ग्वार का भाव 20,000 रुपये प्रति क्विंटल है। हरियाणा और राजस्थान में मानसूनी बारिश शुरू होने के बाद ग्वार गम की कीमतें खासी गिरावट आने की संभावना है। उन्होंने बताया कि ऊंचे भावों के कारण चालू सीजन में हरियाणा और राजस्थान में ग्वार की बुवाई में बढ़ोतरी होने की संभावना है।
(Business Bhaskar....R S Rana)
सोने के आयात में 6.2 अरब डॉलर की कमी
नई दिल्ली चालू वित्त वर्ष के पहले दो माह अप्रैल व मई के दौरान देश में सोने का आयात मूल्य के लिहाज से करीब 6.2 अरब डॉलर कम रहा।
वित्त सचिव आर. एस. गुजराल ने शुक्रवार को बताया कि देश में सोने के आयात में 6.2 अरब डॉलर की कमी दर्ज की गई। हालांकि इस दौरान आयात हुए सोने का कुल मूल्य और मात्रा के बारे में जानकारी नहीं दी।
सोने के भाव में रोजाना रिकॉर्ड तेजी आने और सोने पर आयात शुल्क बढ़ाकर चार फीसदी किए जाने से इसके आयात में गिरावट आई है। इसके अलावा रुपये की लगातार कमजोरी से भी आयात पर प्रतिकूल असर पड़ा। (एजेंसी)
(Business Bhaskar)
गिरते रुपये में फंसा सर्राफा कारोबार
गिरते रुपये के कारण भारत में सर्राफा कीमतें काफी ऊंची बनी हुई हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर इसकी कीमतों में भारी गिरावट आई है। इसके कारण देश में सर्राफा कारोबार लगभग रुक सा गया है, क्योंकि मांग नहीं निकल रही है। घरेलू बाजार में बड़े खरीदार ताजा खरीदारी से दूरी बनाए हुए हैं, क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि रुपये में मामूली सुधार से भी उन्हें लगातार ऊंची बनी हुई कीमतों से काफी राहत मिलेगी। इसके कारण भारतीय आभूषणों के आयातक भी अपनी खरीदारी को टाल रहे हैं।
बड़े कारोबारी बाजार से दूरी बनाए हुए हैं, क्योंकि वे उम्मीद कर रहे हैं कि आरबीआई द्वारा रुपये को सहारा देने के लिए कड़े उपायों की घोषणा की जा सकती है। इससे डॉलर के मुकाबले रुपये के मजबूत होने का अर्थ है कि सोने की कीमतें इस स्तर से नीचे जाएंगी। कारोबारियों की अनुपस्थिति से मांग में भारी गिरावट आई है और केवल वही खरीदारी है, जो बहुत जरूरी है। ऑल इंडिया जेम्स ऐंड ज्वैलरी ट्रेड फेडरेशन (जीजेएफ) के चेयरमैन बच्छराज बामलवा के मुताबिक कुल मिलाकर सोने की मांग पिछले एक महीने में 30 से 50 फीसदी घटी है। इसकी वजह बड़े उपभोक्ताओं की ओर से थोक खरीद का अभाव है। बड़े उपभोक्ता वे हैं जो बड़ी मात्रा में सोने की खरीद कर खुदरा बिक्री के लिए उपलब्ध कराते हैं। ये अपना सोना आभूषण निर्माताओं, स्पॉट ट्रेडर्स, गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेड फंडों (ईटीएफ) के प्रदाता को बेचते हैं।
इन कारोबारियों ने कुछ समय के लिए नए ऑर्डर रद्द कर दिए हैं या खरीदारी की मात्रा कम से कम आधी कर दी है। खुदरा उपभोक्ता भी फिलहाल रुक कर इंतजार करने की रणनीति अपना रहे हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि बैंकिंग क्षेत्र का नियामक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) रुपये को और गिरने से रोक सकेगा। अगर ऐसा होता है तो सोना समेत आयातित जिंसों का मूल्य घट जाएगा जो फिलहाल रुपये की कमजोरी के कारण काफी बढ़ गया है। इस तरह उपभोक्ताओं को खुद-ब-खुद थोड़ी राहत मिल जाएगी।
शुक्रवार को दिन के कारोबार में डॉलर के मुकाबले रुपया अपने सबसे निचले स्तर 57.33 पर पहुंच गया था जिसके बाद वह 57.16 रुपये पर बंद हुआ। गुरुवार को रुपया डॉलर के मुकाबले 56.31 रुपये पर बंद हुआ था। मई 2011 में भारतीय मुद्रा का औसत 44.9 था। बामलवा ने कहा, 'पिछले एकाध दिनों में वैश्विक बाजार में सोना घटकर 65 से 70 डॉलर तक पहुंच गया है जो रुपये के संदर्भ में प्रति 10 ग्राम कम से कम 1100 रुपया होता। हालांकि भारतीय मुद्रा में रिकॉर्ड कमजोरी की वजह से सोने की कीमतों में गिरावट प्रति 10 ग्राम 300 से 400 रुपये तक ही सीमित रह गई है। रुपये का मूल्य बढ़ते ही हम सोने की कीमतों में और गिरावट देख सकते हैं।'
शुक्रवार को मुंबई बाजार में सोना प्रति 10 ग्राम 125 रुपया घटकर 29,940 रुपये पर बंद हुआ। 9 दिनों के बाद पहली बार सोना 30,000 रुपये के स्तर से नीचे बंद हुआ है। साल 2011 में सोने का आयात 969 टन था, मगर मार्च में रॉयटर्स के एक सर्वे के मुताबिक 2012 में सोने का आयात घटकर 655 टन रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है।
जेम्स ऐंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन राजीव जैन ने बताया, 'मौजूदा वित्त वर्ष के पहले दो महीनों में विकास सुस्त रहने के कारण फिलहाल स्थानीय और विदेशी दोनों ही बाजारों के लिए मांग कमजोर रही है। रुपये की कमजोरी के कारण सोना, चांदी और हीरा समेत सभी कच्चे माल की लागत बढ़ गई है। इस तरह आभूषण के भाव बढ़ गए हैं। दुनिया भर में उपभोक्ता कीमतें नीचे आने की उम्मीद में नए ऑर्डर फिलहाल टालते नजर आ रहे हैं।' (BS Hindi)
औसत बारिश से भी मिलेगी राहत
मौसम विभाग के ताजा अनुमान के जितनी भी बारिश हो जाए तो खेती सुकून में रहेगी। कृषि जानकारों की का कहना है कि बारिश में देरी से खरीफ की बुआई प्रभावित जरूर हुई, पर बहुत नुकसान नहीं हुआ है। अगले माह से अच्छी बारिश का सबसे ज्यादा फायदा धान और सोयाबीन की फसल होगा।
कटक के केंद्रीय चावल अनुंसधान संस्थान के निदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र कहते हैं कि यह अनुमान सूखाग्रस्त छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार और बंगाल के कुछ इलाकों के धान किसानों के लिए वरदान साबित होगा। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल ने कहा अब तक कम बारिश व इसमें देरी से सोयाबीन को नुकसान नहीं होने वाला है क्योंकि इसकी बुआई जून के अंतिम सप्ताह से शुरू होती है। ऐसे में सामान्य बारिश भी हुई तो सोयाबीन का रकबा 5 से 7 फीसदी बढ़ सकता है। सूरजमुखी, मूंगफली की फसल को भी फायदा होगा। केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. के.आर. क्रांति के अनुसार जुलाई-अगस्त में सामान्य व नियमित बारिश कपास के लिए जरूरी होती है। इस अवधि के दौरान बारिश में ज्यादा अंतराल नुकसानदेह होता है। महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब में बुआई चल रही है और जल्द ही मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान कर्नाटक, आंध्र में शुरू होने वाली है। लेकिन बीते सत्र में कम दाम मिलने के कारण कपास के रकबे में गिरावट आ सकती है। कानपुर स्थित दलहन अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एस.के. सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश में अरहर की बुआई तो 15 जुलाई के बाद अच्छी मानी है। (BS Hindi)
आएगी बरखा पर कम बदरा
मौसम विभाग (आईएमडी) ने आज भविष्यवाणी करते हुए कहा कि अगले तीन महीनों में उत्तर पश्चिम और दक्षिण भारत को छोड़कर अन्य इलाकों में दक्षिण पश्चिमी मॉनसून देश भर में सामान्य रहेगा।
2012 के मॉनसून सीजन के लिए मौसम विभाग द्वारा आज जारी दूसरे सालाना अग्रिम अनुमान की रिपोर्ट के अनुसार जुलाई, अगस्त और सितंबर में लंबी अवधि के औसत (एलपीए) की 96 फीसदी बारिश ही होगी। एलपीए 1951-2000 के बीच देश भर में हुई बारिश का औसत होता है और यह 89 सेंटीमीटर आंका गया है। एलपीए के 96 फीसदी से कम बारिश सामान्य से कम माना जबकि 96 से 104 फीसदी को बारिश को सामान्य माना जाता है। विभाग ने कहा कि जुलाई में देश भर में एलपीए की 98 फीसदी बारिश हो सकती है जबकि अगस्त में यह 96 फीसदी रह सकती है। दोनों ही सामान्य श्रेणी में शामिल हैं।
विभाग की इस भविष्यवाणी से कई लाख किसानों को राहत मिल सकती है क्योंकि खरीफ फसल की बुआई के लिए जुलाई और अगस्त बेहद अहम हैं। हालांकि प्रमुख रूप से धान की फसल उगाने वाले उत्तर पश्चिमी क्षेत्र के पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में इस साल सामान्य से कम मॉनसून रहने की आशंका है। मौसम विभाग ने कहा कि उत्तर पश्चिमी भारत में इस साल मॉनसून एलपीए का 93 फीसदी रह सकता है। मौसम विभाग के महानिदेशक डॉ एल एस राठौड़ ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ' राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ हिस्सों में इस साल सामान्य से कम बारिश हो सकती है।' लेकिन कुल मिलाकर देश भर में इस साल मॉनसून सामान्य रहेगा।
केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों में कम बारिश से खरीफ फसलों की बुआई पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि 80 फीसदी जमीन की सिंचाई हो चुकी है। उन्होंने कहा कि विभाग द्वारा बारिश के अनुमान को एलपीए के 99 फीसदी से घटाकर 96 फीसदी करना चिंता की बात है। (BS Hindi)
22 जून 2012
सेब की पैदावार 50 फीसदी बढऩे का अनुमान
नई फसल जुलाई में - अगस्त से हिमाचल में सेब की नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी। घरेलू आवक शुरू होने के साथ ही आयातित सेब की सप्लाई कम होने के आसार हैं। इस साल विदेशी सेब के आयात में करीब 47 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई है।
अगस्त से हिमाचल में सेब की नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी। अभी तक के मौसम को देखते हुए सेब की पैदावार में भी 50 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। ऐसे में जुलाई से सेब के आयात में कमी आ जाएगी। चालू वर्ष के पहले चार महीनों में मूल्य के हिसाब से सेब का आयात 47 फीसदी बढ़कर 7.5 करोड़ डॉलर तक पहुंच चुका है।
सेब उत्पादक संघ के अध्यक्ष लेखराज चौहान ने बताया कि हिमाचल में जुलाई के आखिर में सेब की तुड़ाई शुरू हो जाएगी तथा अगस्त-सितंबर में सेब की आवक का दबाव बन जाएगा।
राज्य में 6,000 फुट तक ऊंचाई वाले क्षेत्र के बागानों से सेब की आवक का दबाव अगस्त से सितंबर तक रहता है जबकि ज्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्रों से आवक का दबाव अक्टूबर के बाद शुरू होता है। अभी तक के मौसम को देखते हुए सेब की पैदावार पिछले साल के मुकाबले 50 फीसदी से ज्यादा होने का अनुमान है।
पिछले साल हिमाचल में सेब की कुल पैदावार 1.3 करोड़ पेटी (एक पेटी-20 किलो) हुई थी। ऐसे में उपभोक्ताओं को नए सीजन में सस्ता सेब मिलने की संभावना है। कश्मीर एप्पल मर्चेंट एसोसिएशन के सचिव मीठा राम कृपलानी ने बताया कि चालू सीजन में सेब की घरेलू पैदावार ज्यादा होने का अनुमान है। (Business Bhaskar)
गैर-कृषि जिंसों पर स्पेशल मार्जिन!
जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने गैर-कृषि जिंसों के लिए स्पेशल मार्जिन या ओपन पोजीशन की सीमा में फेरबदल करने जैसे कदम (मार्केट करेक्शन) उठाने का प्रस्ताव रखा है। फिलहाल इन कदमों का इस्तेमाल कृषि जिंसों के कारोबार में होने वाले उतारचढ़ाव व सटोरिया गतिविधियों पर लगाम कसने के लिए किया जाता है।
सूत्रों ने कहा, खास तौर से कीमती धातुओं सोना-चांदी और आम धातुओं जैसे तांबे आदि का कारोबार कभी-कभी वास्तविक मांग व आपूर्ति के बजाय सटोरिया कारोबार बन जाता है। एक अधिकारी ने कहा - 'यह सच है कि ज्यादातर कीमती व आम धातुओं की कीमतें वैश्विक बाजार से निर्देशित होती हैं, लेकिन इन धातुओं खास तौर से सोने-चांदी की मांग में भारत का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां तक कि आम धातुओं में भी वैश्विक औद्योगिक गतिविधियों के मुकाबले भारत का परिदृश्य अभी भी बेहतर है, जो मांग पैदा करता है।'
सूत्रों ने कहा, हालांकि ज्यादातर समय इस बात की चिंता होती है कि जिंस एक्सचेंजों पर वैश्विक कीमतों की आड़ में शायद गैर-कृषि जिंसों में सटोरिया कारोबार को छुपा दिया जाता है। उन्होंने कहा कि सोने-चांदी में ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जब वैश्विक कीमतें नरम होती हैं, लेकिन जिंस एक्सचेंजों पर इसकी कीमतें आसमान पर होती हैं। ऐसे वक्त में यह जानकारी आम है कि पिछले साल के आखिर से अब तक कीमती धातुओं की खुदरा मांग में सुस्ती रही है। हालिया निगरानी में कारोबार की मात्रा के लिहाज से ओपन पोजीशन का उच्च अनुपात कीमती धातुओं व आम धातुओं में भी पाया गया है। इस महीने की शुरुआत में एफएमसी ने एक्सचेंजों से कहा था कि इन अनुपातों को वैश्विक मानकों के स्तर पर लाने के लिए वह आयोग के सामने रोडमैप पेश करे। इसके अलावा नियामक ने राष्ट्रीय एक्सचेंजों से कहा है कि वह एक हफ्ते के भीतर 2009-10, 2010-11 और 2011-12 में 15 प्रमुख जिंसों में हुए कारोबार व ओपन इंटरेस्ट के अनुपातों की जानकारी महीनेवार व वर्षवार पेश करे। (BS Hindi)
केंद्रीय भंडारण निगम का कारोबार 17 फीसदी बढ़ा
केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्यूसी) का कारोबार 2011-12 में 17 प्रतिशत बढ़कर 1,210 करोड़ रुपये रहा। इससे पूर्व वित्त वर्ष में यह 1,030 करोड़ रुपये था। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ने 2019-20 तक 1,395 करोड़ रुपये के निवेश से 22 लाख टन अतिरिक्त भंडारण क्षमता सृजित करने की योजना बनाई है।
सीडब्ल्यूसी के प्रबंध निदेशक बी बी पटनायक ने कहा, 'बिना लेखा परीक्षा के पिछले वित्त वर्ष हमारा कारोबार 1,210 करोड़ रुपये रहा जबकि इससे पूर्व वित्त वर्ष में 1,030 करोड़ रुपये था।'
शुरू में कंपनी की स्थापना खाद्यान और अन्य कृषि जिंसों के भंडारण के लिए की गई थी लेकिन बाद में इसने खुद को कस्टम केंद्र से जुड़े वेयरहाउस, हवाई कार्गो परिसर, 'लैंड कस्टम स्टेशन' जैसे क्षेत्रों में विस्तार किया।
सीडब्ल्यूसी ने 2019-20 तक 2,558 करोड़ रुपये के कारोबार का लक्ष्य हासिल करने के लिए 22 लाख टन अतिरिक्त भंडारण क्षमता सृजित करने की योजना बनाई है। (BS Hindi)
96 फीसद बारिश की संभावना
नई दिल्ली। मॉनसून की लेट-लतीफी ने हलकान कर दिया है। मॉनसून फिलहाल उत्तार भारत में पहुंचा ही है, लेकिन उसके तेवर ढीले हैं। पूर्वी उत्तार प्रदेश में मॉनसून ने दस्तक दे दी है लेकिन शेष हिस्से अभी सूखे के सूखे हैं। मौसम विभाग के अनुसार आगामी दो-तीन दिन में मॉनसून उत्तार भारत को अपनी गिरफ्त में ले सकता है। मौसम विभाग ने कहा है कि मॉनसून का दूसरा चरण सामान्य रहेगा। 96 फीसद बारिश की संभावना जताई गई है।
मौसम विभाग के मुताबिक मॉनसून बिहार में पूरी तरह से प्रवेश कर चुका है। पूर्वी उत्तार प्रदेश के गोरखपुर, वाराणसी और आसपास के जिलों में गुरुवार को मानसून ने दस्तक दे दी और अगले दो से तीन दिनों के भीतर इसके लखनऊ पहुंचने की उम्मीद है। (Jagran)
20 जून 2012
अल्यूमीनियम उत्पादन में कटौती की तैयारी
दुनिया की सबसे बड़ी अल्यूमीनियम निर्माता कंपनी रुसाल ने इस
साल उत्पादन में कटौती करने की तैयारी की है। रूस की इस कंपनी के एक वरिष्ठ
अधिकारी ने बताया कि अल्यूमीनियम के मूल्य में सुधार लाने के लिए यह कटौती
की जाएगी। अगर चीन भी उत्पादन में कटौती करता है तो अगले साल 2013 में
अल्यूमीनियम के दाम सुधर सकते हैं।
रुसाल के प्रमुख (इक्विटी व कॉरपोरेट डेवलपमेंट) ओलेग मुखामेदशिन ने कहा कि अल्यूमीनियम का भाव उस स्तर पर है, जिस स्तर पर 30 फीसदी निर्माताओं के लिए उत्पादन करना फायदेमंद नहीं है। इससे निर्माता पूंजीगत खर्च में कमी करने को मजबूर होंगे और इसके परिणाम स्वरूप उद्योग का विकास रुक जाएगा।
वैश्विक स्तर पर खपत घटने की आशंका से एल्यूमीनियम का भाव घटकर 18 माह के निचले स्तर पर रह गया। सोमवार को लंदन मेटल एक्सचेंज में अल्यूमीनियम का भाव 1,930 डॉलर प्रति टन के स्तर पर रहा। (Business bhaskar)
रुसाल के प्रमुख (इक्विटी व कॉरपोरेट डेवलपमेंट) ओलेग मुखामेदशिन ने कहा कि अल्यूमीनियम का भाव उस स्तर पर है, जिस स्तर पर 30 फीसदी निर्माताओं के लिए उत्पादन करना फायदेमंद नहीं है। इससे निर्माता पूंजीगत खर्च में कमी करने को मजबूर होंगे और इसके परिणाम स्वरूप उद्योग का विकास रुक जाएगा।
वैश्विक स्तर पर खपत घटने की आशंका से एल्यूमीनियम का भाव घटकर 18 माह के निचले स्तर पर रह गया। सोमवार को लंदन मेटल एक्सचेंज में अल्यूमीनियम का भाव 1,930 डॉलर प्रति टन के स्तर पर रहा। (Business bhaskar)
रोग प्रतिरोधी चावल की किस्म विकसित
बैक्टीरियल ब्लाइट बीमारी में मुरझा जाते हैं धान के पौधे
वैज्ञानिकों ने चावल की एक ऐसी किस्म विकसित की है जो बैक्टीरियल ब्लाइट (मुरझाना) की बीमारी से सुरक्षित रहेगी। वैज्ञानिकों ने इसका नाम परिष्कृत सांबा महसूरी (आईएसएम) दिया है। यह किस्म डायरेक्टर ऑफ राइस रिसर्च (डीआरआर) और सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलेक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) ने मिलकर विकसित की है।
वैज्ञानिकों ने बायोटैक्नोलॉजी का उपयोग करके पहली चावल किस्म विकसित की है। देश में खेती के लिए यह किस्म जल्दी ही रिलीज की जाएगी। सीसीएमबी के डायरेक्टर मोहन राव ने बताया कि आईएसएम किस्म ट्रांसजेनिक प्लांट नहीं है। उन्होंने यहां एक विज्ञप्ति जारी करके बताया है कि बैक्टीरियल ब्लाइट चावल की काफी गंभीर बीमारी है।
इस बीमारी के केमिकल कंट्रोल के लिए कोई भरोसेमंद तरीका उपलब्ध नहीं है। आंध्र प्रदेश के एएनजीआरएयू द्वारा विकसित सांबा महसूरी (बीपीटी 5204) काफी प्रचलित है। इसकी खेती मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश और आसपास के राज्यों में की जाती है। सांबा महसूरी में यह बीमारी जल्दी लगती है।
हालांकि आईएसएम किस्म के चावल की पैदावार में कोई सुधार नहीं होगा लेकिन इसकी फसल एक सप्ताह पहले विकसित हो जाएगी। आईएसएम किस्म उन क्षेत्रों के किसानों के लिए खासी उपयोगी साबित होगी, जहां यह बीमारी फैलने की आशंका ज्यादा रहती है।
आंध्र प्रदेश में कुरनूल जिले के नांदयाल क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में इस बीमारी का ज्यादा असर रहा। फील्ड ट्रायल के दौरान आईएसएम किस्म की फसल इस बीमारी से सुरक्षित रही है। कृषि संस्थानों ने इस किस्म को लोकप्रिय बनाने के लिए चलाए एक कार्यक्रम में 500 किसानों को 10-10 किलो आईएसएम का बीज देना शुरू किया है। (Business Bhaskar)
वैज्ञानिकों ने चावल की एक ऐसी किस्म विकसित की है जो बैक्टीरियल ब्लाइट (मुरझाना) की बीमारी से सुरक्षित रहेगी। वैज्ञानिकों ने इसका नाम परिष्कृत सांबा महसूरी (आईएसएम) दिया है। यह किस्म डायरेक्टर ऑफ राइस रिसर्च (डीआरआर) और सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलेक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) ने मिलकर विकसित की है।
वैज्ञानिकों ने बायोटैक्नोलॉजी का उपयोग करके पहली चावल किस्म विकसित की है। देश में खेती के लिए यह किस्म जल्दी ही रिलीज की जाएगी। सीसीएमबी के डायरेक्टर मोहन राव ने बताया कि आईएसएम किस्म ट्रांसजेनिक प्लांट नहीं है। उन्होंने यहां एक विज्ञप्ति जारी करके बताया है कि बैक्टीरियल ब्लाइट चावल की काफी गंभीर बीमारी है।
इस बीमारी के केमिकल कंट्रोल के लिए कोई भरोसेमंद तरीका उपलब्ध नहीं है। आंध्र प्रदेश के एएनजीआरएयू द्वारा विकसित सांबा महसूरी (बीपीटी 5204) काफी प्रचलित है। इसकी खेती मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश और आसपास के राज्यों में की जाती है। सांबा महसूरी में यह बीमारी जल्दी लगती है।
हालांकि आईएसएम किस्म के चावल की पैदावार में कोई सुधार नहीं होगा लेकिन इसकी फसल एक सप्ताह पहले विकसित हो जाएगी। आईएसएम किस्म उन क्षेत्रों के किसानों के लिए खासी उपयोगी साबित होगी, जहां यह बीमारी फैलने की आशंका ज्यादा रहती है।
आंध्र प्रदेश में कुरनूल जिले के नांदयाल क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में इस बीमारी का ज्यादा असर रहा। फील्ड ट्रायल के दौरान आईएसएम किस्म की फसल इस बीमारी से सुरक्षित रही है। कृषि संस्थानों ने इस किस्म को लोकप्रिय बनाने के लिए चलाए एक कार्यक्रम में 500 किसानों को 10-10 किलो आईएसएम का बीज देना शुरू किया है। (Business Bhaskar)
पर्वतीय राज्यों में गेहूं-चावल का उत्पादन बढ़ाने के प्रयास
यह भी फायदा
सरकार की इस पहल से गेहूं की फसल पर लगने वाली येला-रस्ट जैसी बीमारी पर रोक लगाने में भी मदद मिलने की संभावना है क्योंकि इन राज्यों को एनएफएसएम में शामिल किए जाने से रोगों से बचाने के लिए निगरानी बढ़ जाएगी। इन राज्यों में येलो-रस्ट बीमारी ज्यादा फैलती है।
गेहूं और चावल के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश को भी चालू वित्त वर्ष (2012-13) में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) में शामिल किया गया है। इससे गेहूं की फसल पर लगने वाली येला-रस्ट जैसी बीमारी पर रोक लगाने में भी मदद मिलने की संभावना है क्योंकि इन राज्यों को एनएफएसएम में शामिल किए जाने से रोगों से बचाने के लिए निगरानी बढ़ जाएगी। इन राज्यों में येलो-रस्ट बीमारी ज्यादा फैलती है।
एनएफएसएम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गेहूं और चावल के उत्पादन में और बढ़ोतरी के लिए चालू वित्त वर्ष 2012-13 के लिए जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश को भी एनएफएसएम में शामिल किया गया है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में एनएफएसएम के तहत गेहूं और चावल के उत्पादन को बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा जबकि जम्मू-कश्मीर में चावल उत्पादन में बढ़ोतरी मुख्य लक्ष्य होगा।
गेहूं की फसल पर येलो-रस्ट नामक बीमारी इन्हीं राज्यों में ज्यादा देखने को मिलती है, इसीलिए एनएफएसएम के तहत आने के बाद गेहूं की फसल की निगरानी बढ़ेगी, जिससे इस पर रोक लगाने में मदद मिलेगी।
उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष 2012-13 के लिए हिमाचल प्रदेश को चावल का उत्पादन बढ़ाने के लिए 15.54 करोड़ रुपये और गेहूं के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए 7.49 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। इसी तरह से उत्तराखंड में चावल उत्पादन के लिए 16.07 करोड़ रुपये और गेहूं के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए 7.23 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। जम्मू-कश्मीर में चावल के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए 2.92 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।
उन्होंने बताया कि एनएफएसएम के तहत चालू वित्त वर्ष के लिए आवंटित की गई राशि में भी 500 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी कर कुल आवंटन 1,850 करोड़ रुपये का किया गया है। एनएफएसएम द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के परिणामस्वरूप ही देश में वर्ष 2011-12 में रिकॉर्ड 25.25 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन होने का अनुमान है। पिछले दो साल से देश में गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा है।
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में गेहूं का रिकॉर्ड 902.3 लाख टन और चावल का 10.34 करोड़ टन उत्पादन होने का अनुमान है। हालांकि दलहन और तिलहनों का उत्पादन वर्ष 2010-11 के मुकाबले वर्ष 2011-12 में कम होने का अनुमान है। लेकिन आयात पर निर्भरता कम करने के लिए वित्त वर्ष 2012-13 में तिलहन और दलहन का उत्पादन बढ़ाने पर भी एनएफएसएम के तहत विशेष जोर दिया जा रहा है। (Business Bhaskar....R S Rana)
सरकार की इस पहल से गेहूं की फसल पर लगने वाली येला-रस्ट जैसी बीमारी पर रोक लगाने में भी मदद मिलने की संभावना है क्योंकि इन राज्यों को एनएफएसएम में शामिल किए जाने से रोगों से बचाने के लिए निगरानी बढ़ जाएगी। इन राज्यों में येलो-रस्ट बीमारी ज्यादा फैलती है।
गेहूं और चावल के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश को भी चालू वित्त वर्ष (2012-13) में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) में शामिल किया गया है। इससे गेहूं की फसल पर लगने वाली येला-रस्ट जैसी बीमारी पर रोक लगाने में भी मदद मिलने की संभावना है क्योंकि इन राज्यों को एनएफएसएम में शामिल किए जाने से रोगों से बचाने के लिए निगरानी बढ़ जाएगी। इन राज्यों में येलो-रस्ट बीमारी ज्यादा फैलती है।
एनएफएसएम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गेहूं और चावल के उत्पादन में और बढ़ोतरी के लिए चालू वित्त वर्ष 2012-13 के लिए जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश को भी एनएफएसएम में शामिल किया गया है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में एनएफएसएम के तहत गेहूं और चावल के उत्पादन को बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा जबकि जम्मू-कश्मीर में चावल उत्पादन में बढ़ोतरी मुख्य लक्ष्य होगा।
गेहूं की फसल पर येलो-रस्ट नामक बीमारी इन्हीं राज्यों में ज्यादा देखने को मिलती है, इसीलिए एनएफएसएम के तहत आने के बाद गेहूं की फसल की निगरानी बढ़ेगी, जिससे इस पर रोक लगाने में मदद मिलेगी।
उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष 2012-13 के लिए हिमाचल प्रदेश को चावल का उत्पादन बढ़ाने के लिए 15.54 करोड़ रुपये और गेहूं के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए 7.49 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। इसी तरह से उत्तराखंड में चावल उत्पादन के लिए 16.07 करोड़ रुपये और गेहूं के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए 7.23 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। जम्मू-कश्मीर में चावल के उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए 2.92 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है।
उन्होंने बताया कि एनएफएसएम के तहत चालू वित्त वर्ष के लिए आवंटित की गई राशि में भी 500 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी कर कुल आवंटन 1,850 करोड़ रुपये का किया गया है। एनएफएसएम द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के परिणामस्वरूप ही देश में वर्ष 2011-12 में रिकॉर्ड 25.25 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन होने का अनुमान है। पिछले दो साल से देश में गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन हो रहा है।
कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में गेहूं का रिकॉर्ड 902.3 लाख टन और चावल का 10.34 करोड़ टन उत्पादन होने का अनुमान है। हालांकि दलहन और तिलहनों का उत्पादन वर्ष 2010-11 के मुकाबले वर्ष 2011-12 में कम होने का अनुमान है। लेकिन आयात पर निर्भरता कम करने के लिए वित्त वर्ष 2012-13 में तिलहन और दलहन का उत्पादन बढ़ाने पर भी एनएफएसएम के तहत विशेष जोर दिया जा रहा है। (Business Bhaskar....R S Rana)
देश भर की फ्लोर मिलों को एक दाम पर गेहूं
बड़ी राहत भी
बीपीएल परिवारों को 50 लाख टन गेहूं का अतिरिक्त आवंटन
एपीएल परिवारों को भी होगा 10 लाख टन गेहूं का आवंटन
गेहूं के भारी-भरकम स्टॉक को हल्का करने के लिए केंद्र सरकार खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत देश भर की फ्लोर मिलों को एक दाम पर 30 लाख टन गेहूं का आवंटन करेगी।
इसके अलावा 60 लाख टन गेहूं का अतिरिक्तआवंटन सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से किया जाएगा। खाद्य पर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई उच्चाधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) की बैठक में इस आशय का निर्णय लिया गया।
ईजीओएम की बैठक के बाद खाद्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के वी थॉमस ने पत्रकारों को बताया कि ओएमएसएस के तहत 30 लाख टन गेहूं का आवंटन किया जाएगा। इसके तहत देश भर की फ्लोर मिलों को 1,170 रुपये प्रति क्विंटल के एक दाम पर निविदा के माध्यम से गेहूं की बिक्री की जाएगी।
उन्होंने बताया कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले (बीपीएल) परिवारों के लिए पीडीएस में 50 लाख टन गेहूं का अतिरिक्त आवंटन किया जाएगा। इसके अलावा गरीबी रेखा से ऊपर वाले (एपीएल) परिवारों को 10 लाख टन गेहूं का आवंटन होगा। एपीएल परिवारों को आवंटित किए जाने वाला 10 लाख टन गेहूं पहले से आवंटित स्टॉक का बचा हुआ है।
ओएमएसएस के तहत देश भर की मिलों को 1,170 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 30 लाख टन गेहूं की बिक्री पर सरकार को 1,956 करोड़ रुपये की सब्सिडी का भार उठाना पड़ेगा। इसके तहत उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की फ्लोर मिलों के साथ-साथ दक्षिण भारत के राज्यों कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु की फ्लोर मिलों को भी एक ही दाम पर गेहूं मिलेगा।
मालूम हो कि बीपीएल परिवारों को पीडीएस में गेहूं की बिक्री 415 रुपये और एपीएल परिवारों को बिक्री 610 रुपये प्रति क्विंटल के आधार पर की जाती है। केंद्रीय पूल में पहली जून को 824.39 लाख टन खाद्यान्न का रिकॉर्ड स्टॉक रहा। इसमें 501.69 लाख टन गेहूं और 321.48 लाख टन चावल है। (Business Bhaskar...R S Rana)
बीपीएल परिवारों को 50 लाख टन गेहूं का अतिरिक्त आवंटन
एपीएल परिवारों को भी होगा 10 लाख टन गेहूं का आवंटन
गेहूं के भारी-भरकम स्टॉक को हल्का करने के लिए केंद्र सरकार खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत देश भर की फ्लोर मिलों को एक दाम पर 30 लाख टन गेहूं का आवंटन करेगी।
इसके अलावा 60 लाख टन गेहूं का अतिरिक्तआवंटन सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से किया जाएगा। खाद्य पर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई उच्चाधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) की बैठक में इस आशय का निर्णय लिया गया।
ईजीओएम की बैठक के बाद खाद्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के वी थॉमस ने पत्रकारों को बताया कि ओएमएसएस के तहत 30 लाख टन गेहूं का आवंटन किया जाएगा। इसके तहत देश भर की फ्लोर मिलों को 1,170 रुपये प्रति क्विंटल के एक दाम पर निविदा के माध्यम से गेहूं की बिक्री की जाएगी।
उन्होंने बताया कि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले (बीपीएल) परिवारों के लिए पीडीएस में 50 लाख टन गेहूं का अतिरिक्त आवंटन किया जाएगा। इसके अलावा गरीबी रेखा से ऊपर वाले (एपीएल) परिवारों को 10 लाख टन गेहूं का आवंटन होगा। एपीएल परिवारों को आवंटित किए जाने वाला 10 लाख टन गेहूं पहले से आवंटित स्टॉक का बचा हुआ है।
ओएमएसएस के तहत देश भर की मिलों को 1,170 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 30 लाख टन गेहूं की बिक्री पर सरकार को 1,956 करोड़ रुपये की सब्सिडी का भार उठाना पड़ेगा। इसके तहत उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की फ्लोर मिलों के साथ-साथ दक्षिण भारत के राज्यों कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु की फ्लोर मिलों को भी एक ही दाम पर गेहूं मिलेगा।
मालूम हो कि बीपीएल परिवारों को पीडीएस में गेहूं की बिक्री 415 रुपये और एपीएल परिवारों को बिक्री 610 रुपये प्रति क्विंटल के आधार पर की जाती है। केंद्रीय पूल में पहली जून को 824.39 लाख टन खाद्यान्न का रिकॉर्ड स्टॉक रहा। इसमें 501.69 लाख टन गेहूं और 321.48 लाख टन चावल है। (Business Bhaskar...R S Rana)
एमएसपी से नीचे अनाज का हाजिर भाव
बंपर पैदावार और बड़ी कारोबारी फर्म की तरफ से खरीदारी के अभाव के चलते
अनाज की आपूर्ति बढ़ गई है, लिहाजा मंगलवार को इसकी कीमतें दिल्ली के हाजिर
बाजार में न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे चली गईं। भारतीय खाद्य निगम ने
पहले के अनुमान के मुकाबले ज्यादा खरीदारी कर ली है और इसके परिणामस्वरूप
भंडारण की समस्या पैदा हुई है। ये चीजें समस्या को और बढ़ा रही है।
औसत किस्म का गेहूं मंगलवार को 1222 रुपये प्रति क्विंटल पर रहा, जो 2012-13 के लिए घोषित एमएसपी से नीचे है। केंद्र सरकार ने गेहूं के एमएसपी में 15 फीसदी यानी 165 रुपये की बढ़ोतरी कर इसे 1285 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। इसी तरह धान की सामान्य किस्म की कीमतें घटकर 990-1020 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई जबकि अच्छी गुणवत्ता वाला धान 1240-1250 रुपये प्रति क्विंटल पर बिका। केंद्र सरकार ने इन दोनों किस्मों की एमएसपी क्रमश: 1250 व 1280 रुपये प्रति क्विंटल घोषित की है।
हाजिर बाजार में मुख्य अनाज की कीमतों में गिरावट से संकेत मिलता है कि कारोबारियों ने एमएसपी में बढ़ोतरी को तवज्जो नहीं दी है, जिससे दिलचस्प रूप से पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों के उत्पादकों को ही लाभ मिलने की संभावना है, जहां एफसीआई अनाज की खरीद में सक्रिय है। घबराहट में बिकवाली हालांकि अन्य उत्पादक राज्यों मसलन बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में जारी है, जहां किसान एमएसपी से नीचे आढतियों को अपना माल बेच रहे हैं। इन राज्यों में एफसीआई की अनुपस्थिति और निजी कारोबारी की तरफ से एमएसपी पर अनाज की खरीद अनुपयुक्त पाए जाने के चलते देश भर में प्रमुख अनाज की कीमतें नीचे आई हैं। कारोबारियों को अब अहसास हुआ है कि सिर्फ एफसीआई ही एमएसपी पर अनाज की खरीद कर सकता है। दिल्ली के कारोबारी और सुपीरियर एग्रो क्रॉप्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रोप्राइटर विकास गुप्ता ने कहा कि निकट भविष्य में कीमतें और नीचे जाने के आसार हैं।
एनसीडीईएक्स पर सितंबर में डिलिवरी वाली गेहूं की कीमतें गिरकर 1205 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गईं। जुलाई में एक्सपायर होने वाला गेहूं का अनुबंध 1168 रुपये पर है। अनाज की कीमतें देश में रिकॉर्ड उत्पादन के चलते नीचे आ रही हैं। देश में चावल और गेहूं का उत्पादन क्रमश: 1020 लाख टन व 883 लाख टन होने का अनुमान है। सालाना खरीद का दायित्व पूरा करने के लिए एफसीआई को सरकार से 3000-4000 करोड़ रुपये के आवंटन की दरकार होती है। एमएसपी में इजाफे के बाद यह आवंटन भी बढ़ेगा। हालांकि निजी क्षेत्र के नैशनल कॉलेटरल मैनेजमेंट सर्विसेज और नैशनल बल्क हैंडलिंग कॉरपोरेशन ने सरकार से कहा है कि अगर उन्हें सरकारी खरीद की इजाजत दी जाती है तो वह खरीद लागत में कम से कम 10 फीसदी की कमी ला सकते हैं। एनसीएमएसएल के प्रबंध निदेशक संजय कौल ने कहा - अनाज खरीद के मसले पर सरकार को मकसद साफ करना होगा। (BS Hindi)
औसत किस्म का गेहूं मंगलवार को 1222 रुपये प्रति क्विंटल पर रहा, जो 2012-13 के लिए घोषित एमएसपी से नीचे है। केंद्र सरकार ने गेहूं के एमएसपी में 15 फीसदी यानी 165 रुपये की बढ़ोतरी कर इसे 1285 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है। इसी तरह धान की सामान्य किस्म की कीमतें घटकर 990-1020 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई जबकि अच्छी गुणवत्ता वाला धान 1240-1250 रुपये प्रति क्विंटल पर बिका। केंद्र सरकार ने इन दोनों किस्मों की एमएसपी क्रमश: 1250 व 1280 रुपये प्रति क्विंटल घोषित की है।
हाजिर बाजार में मुख्य अनाज की कीमतों में गिरावट से संकेत मिलता है कि कारोबारियों ने एमएसपी में बढ़ोतरी को तवज्जो नहीं दी है, जिससे दिलचस्प रूप से पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों के उत्पादकों को ही लाभ मिलने की संभावना है, जहां एफसीआई अनाज की खरीद में सक्रिय है। घबराहट में बिकवाली हालांकि अन्य उत्पादक राज्यों मसलन बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में जारी है, जहां किसान एमएसपी से नीचे आढतियों को अपना माल बेच रहे हैं। इन राज्यों में एफसीआई की अनुपस्थिति और निजी कारोबारी की तरफ से एमएसपी पर अनाज की खरीद अनुपयुक्त पाए जाने के चलते देश भर में प्रमुख अनाज की कीमतें नीचे आई हैं। कारोबारियों को अब अहसास हुआ है कि सिर्फ एफसीआई ही एमएसपी पर अनाज की खरीद कर सकता है। दिल्ली के कारोबारी और सुपीरियर एग्रो क्रॉप्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रोप्राइटर विकास गुप्ता ने कहा कि निकट भविष्य में कीमतें और नीचे जाने के आसार हैं।
एनसीडीईएक्स पर सितंबर में डिलिवरी वाली गेहूं की कीमतें गिरकर 1205 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गईं। जुलाई में एक्सपायर होने वाला गेहूं का अनुबंध 1168 रुपये पर है। अनाज की कीमतें देश में रिकॉर्ड उत्पादन के चलते नीचे आ रही हैं। देश में चावल और गेहूं का उत्पादन क्रमश: 1020 लाख टन व 883 लाख टन होने का अनुमान है। सालाना खरीद का दायित्व पूरा करने के लिए एफसीआई को सरकार से 3000-4000 करोड़ रुपये के आवंटन की दरकार होती है। एमएसपी में इजाफे के बाद यह आवंटन भी बढ़ेगा। हालांकि निजी क्षेत्र के नैशनल कॉलेटरल मैनेजमेंट सर्विसेज और नैशनल बल्क हैंडलिंग कॉरपोरेशन ने सरकार से कहा है कि अगर उन्हें सरकारी खरीद की इजाजत दी जाती है तो वह खरीद लागत में कम से कम 10 फीसदी की कमी ला सकते हैं। एनसीएमएसएल के प्रबंध निदेशक संजय कौल ने कहा - अनाज खरीद के मसले पर सरकार को मकसद साफ करना होगा। (BS Hindi)
एमएसपी की सिफारिश पर घिरा सीएसीपी
कृषि जिंसों के न्यूनतम समर्थन की सिफारिश करने वाली सरकारी एजेंसी मूल्य
कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) अनाज, दलहन और तिलहन के एमएसपी में भारी
भरकम बढ़ोतरी की सिफारिश पर आलोचनाएं झेल रहा है।
सरकार को सौंपी रिपोर्ट में आयोग ने कई फसलों की उत्पादन लागत में साल 2008-09 से हुई बढ़ोतरी की पृष्ठभूमि में एमएसपी में इजाफे को सही ठहराया है। आयोग ने कहा है कि जिस हिसाब से लागत बढ़ी है, उसके आधे की भी भरपाई एमएसपी के जरिए नहीं हुई है। उदाहरण के तौर पर धान का मामला देखें तो साल 2008-09 से अब तक इसकी उत्पादन लागत में 53 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इस अवधि में धान के एमएसपी में महज 20 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है।
खाद्यान्न व र्ईंधन की बढ़ती कीमतों के चलते थोक मूल्य पर आधारित महंगाई मई में 7.55 फीसदी पर पहुंच गई जबकि अप्रैल में यह 7.23 फीसदी थी। पिछले हफ्ते कैबिनेट ने सीएसीपी की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए धान की सामान्य किस्म की एमएसपी 15.7 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 1250 रुपये प्रति क्विंटल करने का ऐलान किया था जबकि ए श्रेणी धान की एमएसपी 1280 रुपये प्रति क्विंटल घोषित की थी।
इसी तरह, सीएसपीसी ने अन्य खरीफ फसलों मसलन ज्वार, सोयाबीन, कपास, सूरजमुखी और उड़द की एमएसपी में की गई बढ़ोतरी की सिफारिश को जायज ठहराया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है - 'साल 2008 के मुकाबले साल 2011 में मजदूरी की लागत करीब 74 फीसदी बढ़ी है, वहीं उर्वरक की कीमतों में जनवरी 2008 से जनवरी 2012 के बीच 30 फीसदी की उछाल आई है। साथ ही डीजल की कीमतें 44 फीसदी जबकि चारे की कीमत इस अवधि में 60 फीसदी बढ़ी है।' आयोग ने कहा है कि अगर सरकारी एजेंसियां उस समय किसानों से अनाज खरीदने में नाकाम रहती है जब बाजार कीमतें एमएसपी से नीचे चली जाती है तो एमएसपी की साख समाप्त हो जाएगी, जैसा कि पिछले साल पूर्वी भारत में हुआ था। इस बात पर भी भ्रम है कि केंद्रीय या राज्य की एजेंसियों की प्राथमिक भूमिका कृषि उत्पादों की खरीद में है या नहीं, ऐसे में केंद्र सरकार को अधिसूचना के जरिए उनकी भूमिका को स्पष्ट करना चाहिए। (BS Hindi)
सरकार को सौंपी रिपोर्ट में आयोग ने कई फसलों की उत्पादन लागत में साल 2008-09 से हुई बढ़ोतरी की पृष्ठभूमि में एमएसपी में इजाफे को सही ठहराया है। आयोग ने कहा है कि जिस हिसाब से लागत बढ़ी है, उसके आधे की भी भरपाई एमएसपी के जरिए नहीं हुई है। उदाहरण के तौर पर धान का मामला देखें तो साल 2008-09 से अब तक इसकी उत्पादन लागत में 53 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन इस अवधि में धान के एमएसपी में महज 20 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है।
खाद्यान्न व र्ईंधन की बढ़ती कीमतों के चलते थोक मूल्य पर आधारित महंगाई मई में 7.55 फीसदी पर पहुंच गई जबकि अप्रैल में यह 7.23 फीसदी थी। पिछले हफ्ते कैबिनेट ने सीएसीपी की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए धान की सामान्य किस्म की एमएसपी 15.7 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 1250 रुपये प्रति क्विंटल करने का ऐलान किया था जबकि ए श्रेणी धान की एमएसपी 1280 रुपये प्रति क्विंटल घोषित की थी।
इसी तरह, सीएसपीसी ने अन्य खरीफ फसलों मसलन ज्वार, सोयाबीन, कपास, सूरजमुखी और उड़द की एमएसपी में की गई बढ़ोतरी की सिफारिश को जायज ठहराया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है - 'साल 2008 के मुकाबले साल 2011 में मजदूरी की लागत करीब 74 फीसदी बढ़ी है, वहीं उर्वरक की कीमतों में जनवरी 2008 से जनवरी 2012 के बीच 30 फीसदी की उछाल आई है। साथ ही डीजल की कीमतें 44 फीसदी जबकि चारे की कीमत इस अवधि में 60 फीसदी बढ़ी है।' आयोग ने कहा है कि अगर सरकारी एजेंसियां उस समय किसानों से अनाज खरीदने में नाकाम रहती है जब बाजार कीमतें एमएसपी से नीचे चली जाती है तो एमएसपी की साख समाप्त हो जाएगी, जैसा कि पिछले साल पूर्वी भारत में हुआ था। इस बात पर भी भ्रम है कि केंद्रीय या राज्य की एजेंसियों की प्राथमिक भूमिका कृषि उत्पादों की खरीद में है या नहीं, ऐसे में केंद्र सरकार को अधिसूचना के जरिए उनकी भूमिका को स्पष्ट करना चाहिए। (BS Hindi)
19 जून 2012
फ्लोर मिलों के लिए समान नीति बनाने की मांग
पूरे देश में समान भाव पर गेहूं देने से उत्तर भारत की मिलों को नुकसान : उद्योग
उत्तर भारत की फ्लोर मिलों ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत फ्लोर मिलों को गेहूं बिक्री में भाड़ा से छूट देने की योजना का विरोध किया है। उत्तर भारत की फ्लोर मिलों का कहना है कि इससे दूरवर्ती राज्यों खासकर दक्षिणी भारत की फ्लोर मिलों को फायदा मिलेगा जबकि उत्तर भारत की फ्लोर मिलों को भारी नुकसान होगा। उत्तर भारत की मिलों ने मांग की है कि सरकार गेहू बिक्री के लिए इस तरह की नीति अपनाए, जिससे पूरे देश की मिलों को समान लाभ मिले।
गौरतलब है कि उत्तर भारत के राज्यों में ही गेहूं का ज्यादा उत्पादन होता है, इस वजह से यहां की मिलों को फ्लोर मिलों को कम परिवहन खर्च के चलते सस्ते गेहूं का फायदा मिलता है। इससे स्पर्धा लेने में उत्तर भारत की मिलें दक्षिण भारत की मिलों के मुकाबले फायदे में रहती हैं। जबकि भाड़ा में छूट के प्रस्ताव से उत्तर भारत की मिलों का यह लाभ खत्म हो जाएगा।
सरकार ने गेहूं पूरा भाड़ा छूट देकर गेहूं बिक्री करने का प्रस्ताव बनाया है। अभी सरकार गेहूं की कीमत के साथ राज्य की राजधानी का 50 फीसदी भाड़ा जोड़कर तय भाव पर गेहूं की बिक्री करती है।
उत्तर भारत के फ्लोर मिलों ने सरकार से मांग की है कि देशभर की फ्लोर मिलों के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार ऐसी नीति बनाए, जिसका फायदा उपभोक्ताओं को भी मिले। कन्फेडरेशन ऑफ रोलर फ्लोर मिल्स के नॉर्दर्न जोन के चेयरमैन राज कुमार गर्ग ने सोमवार को दिल्ली में पत्रकारों से कहा कि सरकार ओएमएसएस में गेहूं की बिक्री के लिए दीर्घकालिक नीति बनाए।
उन्होंने कहा कि सरकार ने ओएमएसएस में गेहूं की बिक्री एक दाम 1,170 रुपये प्रति क्विंटल पर करने की योजना बनाई है, इससे दक्षिण भारत की मिलों को तो फायदा होगा लेकिन उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात की फ्लोर मिलों को भारी घाटा उठाना होगा।
गर्ग ने कहा कि ओएमएसएस के तहत खाद्य मंत्रालय के गेहूं की बिक्री प्रस्ताव से सरकार पर 2,400 रुपये करोड़ की सब्सिडी का भार पड़ेगा। चंडीगढ़ फ्लोर मिलर एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद मित्तल ने कहा कि सरकार को ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,285 रुपये प्रति क्विंटल से कम दाम पर गेहूं की बिक्री नहीं हो। (Business Bhaskar)
उत्तर भारत की फ्लोर मिलों ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत फ्लोर मिलों को गेहूं बिक्री में भाड़ा से छूट देने की योजना का विरोध किया है। उत्तर भारत की फ्लोर मिलों का कहना है कि इससे दूरवर्ती राज्यों खासकर दक्षिणी भारत की फ्लोर मिलों को फायदा मिलेगा जबकि उत्तर भारत की फ्लोर मिलों को भारी नुकसान होगा। उत्तर भारत की मिलों ने मांग की है कि सरकार गेहू बिक्री के लिए इस तरह की नीति अपनाए, जिससे पूरे देश की मिलों को समान लाभ मिले।
गौरतलब है कि उत्तर भारत के राज्यों में ही गेहूं का ज्यादा उत्पादन होता है, इस वजह से यहां की मिलों को फ्लोर मिलों को कम परिवहन खर्च के चलते सस्ते गेहूं का फायदा मिलता है। इससे स्पर्धा लेने में उत्तर भारत की मिलें दक्षिण भारत की मिलों के मुकाबले फायदे में रहती हैं। जबकि भाड़ा में छूट के प्रस्ताव से उत्तर भारत की मिलों का यह लाभ खत्म हो जाएगा।
सरकार ने गेहूं पूरा भाड़ा छूट देकर गेहूं बिक्री करने का प्रस्ताव बनाया है। अभी सरकार गेहूं की कीमत के साथ राज्य की राजधानी का 50 फीसदी भाड़ा जोड़कर तय भाव पर गेहूं की बिक्री करती है।
उत्तर भारत के फ्लोर मिलों ने सरकार से मांग की है कि देशभर की फ्लोर मिलों के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार ऐसी नीति बनाए, जिसका फायदा उपभोक्ताओं को भी मिले। कन्फेडरेशन ऑफ रोलर फ्लोर मिल्स के नॉर्दर्न जोन के चेयरमैन राज कुमार गर्ग ने सोमवार को दिल्ली में पत्रकारों से कहा कि सरकार ओएमएसएस में गेहूं की बिक्री के लिए दीर्घकालिक नीति बनाए।
उन्होंने कहा कि सरकार ने ओएमएसएस में गेहूं की बिक्री एक दाम 1,170 रुपये प्रति क्विंटल पर करने की योजना बनाई है, इससे दक्षिण भारत की मिलों को तो फायदा होगा लेकिन उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात की फ्लोर मिलों को भारी घाटा उठाना होगा।
गर्ग ने कहा कि ओएमएसएस के तहत खाद्य मंत्रालय के गेहूं की बिक्री प्रस्ताव से सरकार पर 2,400 रुपये करोड़ की सब्सिडी का भार पड़ेगा। चंडीगढ़ फ्लोर मिलर एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद मित्तल ने कहा कि सरकार को ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,285 रुपये प्रति क्विंटल से कम दाम पर गेहूं की बिक्री नहीं हो। (Business Bhaskar)
सौराष्ट्र में आवक कम होने से केस्टर सीड के मूल्य में तेजी
बाजार की संभावनाएं :- केस्टर तेल में चीन की आयात मांग इस समय
कम है। जबकि केस्टर सीड की पैदावार में बढ़ोतरी होने के कारण तेल की
उपलब्धता पिछले साल से ज्यादा है। ऐसे में घरेलू बाजार में केस्टर सीड की
मौजूदा कीमतों में भारी तेजी की संभावना नहीं है।
केस्टर तेल का मूल्य
अंतरराष्ट्रीय बाजार 1,425 डॉलर प्रति टन (वर्तमान भाव)
1,600 डॉलर प्रति टन (पिछले साल का भाव)
उत्पादक मंडियां 670 रुपये प्रति 10 किलो
गुजरात के सौराष्ट्र इलाके में बारिश होने से उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड की आवक कम हो गई है। इससे पिछले तीन-चार दिनों में केस्टर सीड की कीमतों में 250 रुपये की तेजी आकर भाव 2,900 से 2,950 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। चालू सीजन में केस्टर सीड की बंपर पैदावार होने का अनुमान है जबकि केस्टर तेल के निर्यात में कोई बढ़ोतरी होने की संभावना नहीं है। निर्यात पिछले साल के लगभग बराबर ही रह सकता है। ऐसे में मौजूदा कीमतों में सीमित तेजी की ही संभावना है।
जयंत एग्रो ऑरनामिक लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक वामन भाई ने बताया कि सौराष्ट्र में पिछले दो-तीन दिनों से बारिश हो रही है जिसकी वजह से उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड की दैनिक आवक एक लाख बोरी (एक बोरी-75 किलो) से घटकर 55 से 60 हजार बोरियों की रह गई है। इसीलिए सोमवार को उत्पादक मंडियों में सीड का भाव बढ़कर 580 से 590 रुपये प्रति 20 किलो हो गया।
पंद्रह जून को इसका भाव 540-550 रुपये प्रति 20 किलो था। चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों अप्रैल-मई में केस्टर तेल का 50 हजार टन का निर्यात हुआ है जबकि वित्त वर्ष 2011-12 में 4.20 लाख टन केस्टर तेल का निर्यात हुआ था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में केस्टर तेल का भाव 1,425 डॉलर प्रति टन है जबकि पिछले साल भाव 1,600 डॉलर प्रति टन था।
एससी केमिकल के डायरेक्टर के. आर. पारिख ने बताया कि केस्टर तेल में चीन की आयात मांग इस समय कम है। जबकि केस्टर सीड की पैदावार में बढ़ोतरी होने के कारण तेल की उपलब्धता पिछले साल से ज्यादा है। ऐसे में घरेलू बाजार में केस्टर सीड की मौजूदा कीमतों में भारी तेजी की संभावना नहीं है। उत्पादक मंडियों में केस्टर तेल का दाम 670 रुपये प्रति 10 किलो चल रहा है। वैसे भी उत्पादक राज्यों में अभी करीब 40 से 45 फीसदी फसल बची हुई है।
सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार 2011-12 में केस्टर सीड का उत्पादन बढ़कर 16.19 लाख टन होने का अनुमान है। जबकि वर्ष 2011-12 में इसकी बुवाई 11.50 लाख हैक्टेयर में हुई, जो पिछले साल के 8.6 लाख हैक्टेयर से ज्यादा थी।
नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर निवेशकों की खरीद से जुलाई महीने के वायदा अनुबंध में सप्ताहभर में केस्टर सीड की कीमतों में 12.5 फीसदी की तेजी आई है। जुलाई महीने के वायदा अनुबंध में 11 जून को केस्टर सीड का भाव 2,882 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि सोमवार को भाव बढ़कर 3,244 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। (Business Bhaskar....R S Rana)
केस्टर तेल का मूल्य
अंतरराष्ट्रीय बाजार 1,425 डॉलर प्रति टन (वर्तमान भाव)
1,600 डॉलर प्रति टन (पिछले साल का भाव)
उत्पादक मंडियां 670 रुपये प्रति 10 किलो
गुजरात के सौराष्ट्र इलाके में बारिश होने से उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड की आवक कम हो गई है। इससे पिछले तीन-चार दिनों में केस्टर सीड की कीमतों में 250 रुपये की तेजी आकर भाव 2,900 से 2,950 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। चालू सीजन में केस्टर सीड की बंपर पैदावार होने का अनुमान है जबकि केस्टर तेल के निर्यात में कोई बढ़ोतरी होने की संभावना नहीं है। निर्यात पिछले साल के लगभग बराबर ही रह सकता है। ऐसे में मौजूदा कीमतों में सीमित तेजी की ही संभावना है।
जयंत एग्रो ऑरनामिक लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक वामन भाई ने बताया कि सौराष्ट्र में पिछले दो-तीन दिनों से बारिश हो रही है जिसकी वजह से उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड की दैनिक आवक एक लाख बोरी (एक बोरी-75 किलो) से घटकर 55 से 60 हजार बोरियों की रह गई है। इसीलिए सोमवार को उत्पादक मंडियों में सीड का भाव बढ़कर 580 से 590 रुपये प्रति 20 किलो हो गया।
पंद्रह जून को इसका भाव 540-550 रुपये प्रति 20 किलो था। चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों अप्रैल-मई में केस्टर तेल का 50 हजार टन का निर्यात हुआ है जबकि वित्त वर्ष 2011-12 में 4.20 लाख टन केस्टर तेल का निर्यात हुआ था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में केस्टर तेल का भाव 1,425 डॉलर प्रति टन है जबकि पिछले साल भाव 1,600 डॉलर प्रति टन था।
एससी केमिकल के डायरेक्टर के. आर. पारिख ने बताया कि केस्टर तेल में चीन की आयात मांग इस समय कम है। जबकि केस्टर सीड की पैदावार में बढ़ोतरी होने के कारण तेल की उपलब्धता पिछले साल से ज्यादा है। ऐसे में घरेलू बाजार में केस्टर सीड की मौजूदा कीमतों में भारी तेजी की संभावना नहीं है। उत्पादक मंडियों में केस्टर तेल का दाम 670 रुपये प्रति 10 किलो चल रहा है। वैसे भी उत्पादक राज्यों में अभी करीब 40 से 45 फीसदी फसल बची हुई है।
सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार 2011-12 में केस्टर सीड का उत्पादन बढ़कर 16.19 लाख टन होने का अनुमान है। जबकि वर्ष 2011-12 में इसकी बुवाई 11.50 लाख हैक्टेयर में हुई, जो पिछले साल के 8.6 लाख हैक्टेयर से ज्यादा थी।
नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर निवेशकों की खरीद से जुलाई महीने के वायदा अनुबंध में सप्ताहभर में केस्टर सीड की कीमतों में 12.5 फीसदी की तेजी आई है। जुलाई महीने के वायदा अनुबंध में 11 जून को केस्टर सीड का भाव 2,882 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि सोमवार को भाव बढ़कर 3,244 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। (Business Bhaskar....R S Rana)
भारत के गहने, पाक भी पहने
सभी पड़ोसी देशों से कारोबार के मामले में स्थिति सामान्य होने के साथ ही
भारत अब पाकिस्तान को कीमती धातुओं व नगों से तैयार आभूषणों का निर्यात
सीधे शुरू कर सकता है।
संस्कृति के साथ-साथ मिलती जुलती पसंद वाले दोनों एशियाई देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार की अपार संभावनाओं के बावजूद दोनों देशों के बीच महज 88.5 करोड़ रुपये के आभूषणों का निर्यात होता है। एक ओर जहां भारत कटे व तराशे गए हीरे के साथ-साथ 87 करोड़ रुपये के आभूषणों का निर्यात करता है, वहीं ऐसी चीजों का आयात महज 1.5 करोड़ रुपये का है। चूंकि एक-दूसरे के बाजार तक सीधी पहुंच नहीं है, लिहाजा कारोबार दुबई, श्रीलंका और दूसरे एशियाई देशों के जरिए होता है।
जेम्स ऐंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के उपाध्यक्ष संजय कोठारी की अगुआई वाले 12 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने 7-12 जून को पाकिस्तान का दौरा किया और वहां कारोबारियों व खुदरा विक्रेताओं से मुलाकात कर आभूषणों के निर्यात की संभावनाएं तलाशी। प्रतिनिधिमंडल ने वहां प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी से भी मुलाकात की और आभूषण के कारोबार में बढ़ोतरी की संभावनाओं पर चर्चा की। कोठारी के मुताबिक, गिलानी दोनों देशों के बाजारों तक पहुंच में मुश्किलें पैदा करने वाली कर व वीजा संबंधी समस्याओं पर ध्यान देने के लिए सहमत नजर आए। उन्होंने कहा - हम इतना कह सकते हैं कि पाकिस्तान को जल्द ही यानी कुछ ही महीनों में आभूषणों का निर्यात शुरू हो सकता है।
एक ओर जहां पाकिस्तान हमारे देश के लिए आभूषणों के निर्यात का नया ठिकाना होगा, जहां भारत में तैयार आभूषण पसंद किए जाते हैं। वहीं दूसरी ओर रंगीन नगों का आयात आसान हो जाएगा।
पाकिस्तान का आभूषण बाजार अनुमानित तौर पर 12 अरब डॉलर का है जबकि भारत से आभूषणों का सालाना निर्यात करीब 32-33 अरब डॉलर बैठता है। कोठारी ने कहा - हमने पाकिस्तान सरकार को सुझाव दिया है कि वह कर के मुद्दे पर ध्यान दे, जिसके जरिए उन्हें अभी कुछ लाख रुपये ही मिलते हैं। साथ ही वहां वैट की दर काफी ऊंची है और अगर वे इसे घटाते हैं तो इससे भारत की तरफ से सीधा निर्यात काफी हद तक बढ़ जाएगा।
पाकिस्तान में सरकार ने 19 फीसदी वैट के अलावा 5 फीसदी आयकर भी आरोपित कर रखा है। भारत में हालांकि वैट की दर महज 1 फीसदी है, ऐसे में यहां आभूषणों का कारोबार आसान हो गया है।
इसके अतिरिक्त, भारत दूसरे देशों मसलन रूस, अफ्रीकी देशों और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में भी निर्यात की संभावनाएं तलाश रहा है। पाकिस्तान के आभूषण बाजार तक सीधी पहुंच से यूरोपीय देशों को निर्यात में होने वाली गिरावट की आंशिक भरपाई हो जाएगी, जो मौजूदा यूरो जोन संकट के चलते गहरा गया है। इसके अलावा पाकिस्तान में रंगीन नगों का भंडार है, जिसका आयात भारत प्रसंस्करण के लिए कर सकता है। एक ओर जहां पाकिस्तान को सीधे आभूषणों का निर्यात जल्द शुरू हो सकता है, वहीं निर्यातक इसे सिर्फ बिजनेस-टु-बिजनेस तक ही सीमित रहना चाहते हैं। कोठारी ने कहा कि भारतीय आभूषण निर्यातकों के लिए यह काफी मुश्किल होगा कि वह उपभोक्ताओं के पास जाए, जैसा कि वह दूसरे बाजारों में करता है। (BS Hindi)
संस्कृति के साथ-साथ मिलती जुलती पसंद वाले दोनों एशियाई देशों के बीच द्विपक्षीय कारोबार की अपार संभावनाओं के बावजूद दोनों देशों के बीच महज 88.5 करोड़ रुपये के आभूषणों का निर्यात होता है। एक ओर जहां भारत कटे व तराशे गए हीरे के साथ-साथ 87 करोड़ रुपये के आभूषणों का निर्यात करता है, वहीं ऐसी चीजों का आयात महज 1.5 करोड़ रुपये का है। चूंकि एक-दूसरे के बाजार तक सीधी पहुंच नहीं है, लिहाजा कारोबार दुबई, श्रीलंका और दूसरे एशियाई देशों के जरिए होता है।
जेम्स ऐंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के उपाध्यक्ष संजय कोठारी की अगुआई वाले 12 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने 7-12 जून को पाकिस्तान का दौरा किया और वहां कारोबारियों व खुदरा विक्रेताओं से मुलाकात कर आभूषणों के निर्यात की संभावनाएं तलाशी। प्रतिनिधिमंडल ने वहां प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी से भी मुलाकात की और आभूषण के कारोबार में बढ़ोतरी की संभावनाओं पर चर्चा की। कोठारी के मुताबिक, गिलानी दोनों देशों के बाजारों तक पहुंच में मुश्किलें पैदा करने वाली कर व वीजा संबंधी समस्याओं पर ध्यान देने के लिए सहमत नजर आए। उन्होंने कहा - हम इतना कह सकते हैं कि पाकिस्तान को जल्द ही यानी कुछ ही महीनों में आभूषणों का निर्यात शुरू हो सकता है।
एक ओर जहां पाकिस्तान हमारे देश के लिए आभूषणों के निर्यात का नया ठिकाना होगा, जहां भारत में तैयार आभूषण पसंद किए जाते हैं। वहीं दूसरी ओर रंगीन नगों का आयात आसान हो जाएगा।
पाकिस्तान का आभूषण बाजार अनुमानित तौर पर 12 अरब डॉलर का है जबकि भारत से आभूषणों का सालाना निर्यात करीब 32-33 अरब डॉलर बैठता है। कोठारी ने कहा - हमने पाकिस्तान सरकार को सुझाव दिया है कि वह कर के मुद्दे पर ध्यान दे, जिसके जरिए उन्हें अभी कुछ लाख रुपये ही मिलते हैं। साथ ही वहां वैट की दर काफी ऊंची है और अगर वे इसे घटाते हैं तो इससे भारत की तरफ से सीधा निर्यात काफी हद तक बढ़ जाएगा।
पाकिस्तान में सरकार ने 19 फीसदी वैट के अलावा 5 फीसदी आयकर भी आरोपित कर रखा है। भारत में हालांकि वैट की दर महज 1 फीसदी है, ऐसे में यहां आभूषणों का कारोबार आसान हो गया है।
इसके अतिरिक्त, भारत दूसरे देशों मसलन रूस, अफ्रीकी देशों और दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में भी निर्यात की संभावनाएं तलाश रहा है। पाकिस्तान के आभूषण बाजार तक सीधी पहुंच से यूरोपीय देशों को निर्यात में होने वाली गिरावट की आंशिक भरपाई हो जाएगी, जो मौजूदा यूरो जोन संकट के चलते गहरा गया है। इसके अलावा पाकिस्तान में रंगीन नगों का भंडार है, जिसका आयात भारत प्रसंस्करण के लिए कर सकता है। एक ओर जहां पाकिस्तान को सीधे आभूषणों का निर्यात जल्द शुरू हो सकता है, वहीं निर्यातक इसे सिर्फ बिजनेस-टु-बिजनेस तक ही सीमित रहना चाहते हैं। कोठारी ने कहा कि भारतीय आभूषण निर्यातकों के लिए यह काफी मुश्किल होगा कि वह उपभोक्ताओं के पास जाए, जैसा कि वह दूसरे बाजारों में करता है। (BS Hindi)
सामान्य रहेगा धान का रकबा
धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढऩे का इसकी बुआई पर सकारात्मक असर
तो होगा, लेकिन धान के रकबे में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी की संभावना कम है।
कृषि जानकार और किसानों का कहना है कि एमएसपी में बढ़ोतरी पर मॉनसून में
देरी भारी पड़ सकती है। अगर मॉनसून यहां से अनुकूल हो जाता है, तो कम से कम
इसमें गिरावट आने की संभावना नहीं है। किसान लागत में बढ़ोतरी और मिलने
वाली कीमत के हिसाब से इस बढ़ोतरी को नाकाफी बता रहे हैं। उनका तर्क है कि
बिजली कटौती से डीजल का खर्चा बढ़ा है और कामगारों को भी ज्यादा मजदूरी
देनी पड़ रही है, जिससे किसानों की लागत बढ़ गई है।
सरकार ने पिछले सप्ताह वर्ष 2012-13 के लिए सामान्य किस्म की धान का एमएसपी 170 रुपये बढ़ाकर 1250 रुपये कर दिया। ए श्रेणी के धान का एमएसपी भी बढ़कर 1280 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2011-12 में 394.7 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई हुई थी। पंजाब के किसान भगवान सिंह कहते हैं - लागत के हिसाब से एमएसपी अभी भी कम है, लेकिन राज्य के किसानों के पास दूसरा विकल्प नहीं होने से मजबूरी में धान की खेती करनी पड़ेगी। सिंह कहते हैं कि बीते कुछ वर्षो में बंपर पैदावार व निर्यात पाबंदी के कारण किसानों को कम दाम मिले हैं। इस बार एमएसपी बढऩे से दाम ज्यादा मिलने की उम्मीद है, बशर्ते धान की सरकारी खरीद सुनिश्चित हो। ऐसे में इसका रकबा थोड़ा बढ़ सकता है। राज्य में करीब 28 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है।
कटक स्थित केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र कहते हैं कि एमएसपी बढऩे से किसान धान की खेती की ओर आकर्षित होंगे, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती किसानों को समर्थन मूल्य दिलाने की है। बीते वर्षो में देखा गया है कि किसानों को समर्थन मूल्य से कम दाम पर धान बेचना पड़ा है। रकबे में बढ़ोतरी के सवाल पर उनका कहना है यह काफी हद तक मॉनसून पर भी निर्भर करेगा। अभी तक मॉनसून में हुई देरी का असर तो इसकी बुआई पर होगा। अगर आगे मॉनसून ठीक रहता है तो रकबा बीते साल के बराबर या इससे ज्यादा होने की उम्मीद है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के डॉ. डीएस चीमा भी मानते है कि धान का रकबा मॉनसून पर काफी हद तक निर्भर करेगा। चीमा कहते हैं कि दूसरी फसल का विकल्प न होने के कारण पंजाब में इसके रकबे में गिरावट की आशंका नहीं है।
उत्तर प्रदेश के पंचशील नगर जिले के किसान मलूक सिंह का कहना हैं कि एमएसपी बढऩे से रकबा भले ही न बढ़े, पर इसमें कमी नहीं आएगी। अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष विजय सेतिया ने बताया कि मॉनसून में और देरी होने पर बासमती धान का रकबा बढऩा तय है। दरअसल बासमती धान को सामान्य धान की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है। (BS Hindi)
सरकार ने पिछले सप्ताह वर्ष 2012-13 के लिए सामान्य किस्म की धान का एमएसपी 170 रुपये बढ़ाकर 1250 रुपये कर दिया। ए श्रेणी के धान का एमएसपी भी बढ़कर 1280 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2011-12 में 394.7 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई हुई थी। पंजाब के किसान भगवान सिंह कहते हैं - लागत के हिसाब से एमएसपी अभी भी कम है, लेकिन राज्य के किसानों के पास दूसरा विकल्प नहीं होने से मजबूरी में धान की खेती करनी पड़ेगी। सिंह कहते हैं कि बीते कुछ वर्षो में बंपर पैदावार व निर्यात पाबंदी के कारण किसानों को कम दाम मिले हैं। इस बार एमएसपी बढऩे से दाम ज्यादा मिलने की उम्मीद है, बशर्ते धान की सरकारी खरीद सुनिश्चित हो। ऐसे में इसका रकबा थोड़ा बढ़ सकता है। राज्य में करीब 28 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है।
कटक स्थित केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्र कहते हैं कि एमएसपी बढऩे से किसान धान की खेती की ओर आकर्षित होंगे, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती किसानों को समर्थन मूल्य दिलाने की है। बीते वर्षो में देखा गया है कि किसानों को समर्थन मूल्य से कम दाम पर धान बेचना पड़ा है। रकबे में बढ़ोतरी के सवाल पर उनका कहना है यह काफी हद तक मॉनसून पर भी निर्भर करेगा। अभी तक मॉनसून में हुई देरी का असर तो इसकी बुआई पर होगा। अगर आगे मॉनसून ठीक रहता है तो रकबा बीते साल के बराबर या इससे ज्यादा होने की उम्मीद है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के डॉ. डीएस चीमा भी मानते है कि धान का रकबा मॉनसून पर काफी हद तक निर्भर करेगा। चीमा कहते हैं कि दूसरी फसल का विकल्प न होने के कारण पंजाब में इसके रकबे में गिरावट की आशंका नहीं है।
उत्तर प्रदेश के पंचशील नगर जिले के किसान मलूक सिंह का कहना हैं कि एमएसपी बढऩे से रकबा भले ही न बढ़े, पर इसमें कमी नहीं आएगी। अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष विजय सेतिया ने बताया कि मॉनसून में और देरी होने पर बासमती धान का रकबा बढऩा तय है। दरअसल बासमती धान को सामान्य धान की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है। (BS Hindi)
और महंगा नहीं होगा अमूल दूध
नई दिल्ली।।
अमूल दूध के कन्ज़यूमर्स के लिए एक अटरली बटरली डेलिशस खबर है। कंपनी ने
ऐलान किया है कि वह इस साल दूध की कीमतें नहीं बढ़ाएगी। इसकी वजह यह है कि
कंपनी के पास सरप्लस दूध है।
गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) के मैनेजिंग डायरेक्टर आर.एस. सोढ़ी ने बताया कि इस साल दूध की कीमतों में कोई उतार-चढ़ाव नहीं आएगा, क्योंकि हमारे पास जरूरत से ज्यादा दूध है।
देश में दूध की सप्लाई करने वाली प्रमुख कंपनी अमूल ने बीते अप्रैल में दिल्ली, गुजरात और मुंबई में दूध की कीमतें दो रुपये तक बढ़ा दी थीं। पिछले वित्त वर्ष में जीसीएमएमएफ ने कीमतों में 14-15 फीसदी का इजाफा किया था। कंपनी के एमडी ने कहा कि पिछले साल दूध की कीमतें जरूर बढ़ी थीं, लेकिन इस साल सरप्लस दूध होने की वजह से कीमतें बढ़ने की गुंजाइश बेहद कम है। (Navbharat)
गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) के मैनेजिंग डायरेक्टर आर.एस. सोढ़ी ने बताया कि इस साल दूध की कीमतों में कोई उतार-चढ़ाव नहीं आएगा, क्योंकि हमारे पास जरूरत से ज्यादा दूध है।
देश में दूध की सप्लाई करने वाली प्रमुख कंपनी अमूल ने बीते अप्रैल में दिल्ली, गुजरात और मुंबई में दूध की कीमतें दो रुपये तक बढ़ा दी थीं। पिछले वित्त वर्ष में जीसीएमएमएफ ने कीमतों में 14-15 फीसदी का इजाफा किया था। कंपनी के एमडी ने कहा कि पिछले साल दूध की कीमतें जरूर बढ़ी थीं, लेकिन इस साल सरप्लस दूध होने की वजह से कीमतें बढ़ने की गुंजाइश बेहद कम है। (Navbharat)
एमईपी हटने से प्याज के निर्यात में बंपर बढ़ोतरी
किसानों के लिए उम्मीद
मध्य प्रदेश व राजस्थान में प्याज के बंपर उत्पादन के कारण फिलहाल कीमतों में नरमी का रुख है लेकिन निर्यात में बढ़ोतरी से इसकी थोक कीमतों में तेजी आ सकती है। जिससे किसानों को अच्छी कीमत मिलने की संभावना है।
सरकार द्वारा प्याज के लिए लागू न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) हटाए जाने के बाद इसके निर्यात में बढ़ोतरी होने लगी है। निर्यात बढऩे से प्याज के दाम सुधरने की संभावना है। हालांकि बंपर उत्पादन के कारण अभी कीमतों में गिरावट ही आ रही है। कारोबारियों का कहना है कि एमईपी की बाध्यता नहीं रही तो प्याज का निर्यात और बढ़ेगा और घरेलू बाजार में इसके दाम सुधरने लगेंगे।
मध्य प्रदेश व राजस्थान में बंपर उत्पादन के कारण पिछले एक माह में प्याज के थोक मूल्य में 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट दर्ज की गई है। आजादपुर मंडी समिति के चेयरमैन आर. के. शर्मा ने बताया कि इस समय प्याज का थोक भाव करीब 400-800 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर है। लेकिन निर्यात में बढ़ोतरी को देखते हुए भविष्य में प्याज के भाव सुधरने की उम्मीद है।
प्याज के दाम पुन: 200 रुपये प्रति क्विंटल तक तेज हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि पड़ोसी देशों के अलावा अन्य देशों को भी प्याज निर्यात तेजी से किया जा रहा है। सरकार ने प्याज निर्यात पर एमईपी की बाध्यता को 2 जुलाई तक के लिए हटाया है।
राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास संघ के मुताबिक मई माह में 1.71 लाख टन प्याज का निर्यात किया गया, जो अप्रैल के दौरान हुए 89 हजार टन निर्यात की तुलना में 91.5 फीसदी अधिक रहा है। पिछले साल मई में हुए निर्यात की तुलना में भी यह 16.78 फीसदी ज्यादा है। पिछले साल मई के दौरान 1.46 लाख टन प्याज का निर्यात किया गया था।
प्रधान ट्रेडिंग कंपनी के प्रोपराइटर विजय यादव ने बताया कि मध्य प्रदेश व राजस्थान में प्याज के बंपर उत्पादन के कारण फिलहाल कीमतों में नरमी का रुख है लेकिन निर्यात में बढ़ोतरी से इसकी थोक कीमतों में तेजी आ सकती है। जिससे किसानों को अच्छी कीमत मिलने की संभावना है। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में भी उत्पादन बेहतर रहने की संभावना से कीमतों पर फिलहाल दबाव दर्ज किया जा रहा है।
अन्य थोक कारोबारी सोनू त्यागी ने बताया कि इन दिनों आजादपुर मंडी में प्याज की आवक 80-100 ट्रकों की दर्ज की जा रही है। उन्होंने कहा कि बंपर उत्पादन के कारण घरेलू बाजार में प्याज के भाव कम होने से भी निर्यात मांग बढ़ रही है। निर्यात मांग बढऩे से अगले महीने तक प्याज की कीमतों में 200 रुपये प्रति क्विंटल तक की तेजी आने की संभावना है। (Business Bhaskar)
मध्य प्रदेश व राजस्थान में प्याज के बंपर उत्पादन के कारण फिलहाल कीमतों में नरमी का रुख है लेकिन निर्यात में बढ़ोतरी से इसकी थोक कीमतों में तेजी आ सकती है। जिससे किसानों को अच्छी कीमत मिलने की संभावना है।
सरकार द्वारा प्याज के लिए लागू न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) हटाए जाने के बाद इसके निर्यात में बढ़ोतरी होने लगी है। निर्यात बढऩे से प्याज के दाम सुधरने की संभावना है। हालांकि बंपर उत्पादन के कारण अभी कीमतों में गिरावट ही आ रही है। कारोबारियों का कहना है कि एमईपी की बाध्यता नहीं रही तो प्याज का निर्यात और बढ़ेगा और घरेलू बाजार में इसके दाम सुधरने लगेंगे।
मध्य प्रदेश व राजस्थान में बंपर उत्पादन के कारण पिछले एक माह में प्याज के थोक मूल्य में 200 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट दर्ज की गई है। आजादपुर मंडी समिति के चेयरमैन आर. के. शर्मा ने बताया कि इस समय प्याज का थोक भाव करीब 400-800 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर है। लेकिन निर्यात में बढ़ोतरी को देखते हुए भविष्य में प्याज के भाव सुधरने की उम्मीद है।
प्याज के दाम पुन: 200 रुपये प्रति क्विंटल तक तेज हो सकते हैं। उन्होंने बताया कि पड़ोसी देशों के अलावा अन्य देशों को भी प्याज निर्यात तेजी से किया जा रहा है। सरकार ने प्याज निर्यात पर एमईपी की बाध्यता को 2 जुलाई तक के लिए हटाया है।
राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास संघ के मुताबिक मई माह में 1.71 लाख टन प्याज का निर्यात किया गया, जो अप्रैल के दौरान हुए 89 हजार टन निर्यात की तुलना में 91.5 फीसदी अधिक रहा है। पिछले साल मई में हुए निर्यात की तुलना में भी यह 16.78 फीसदी ज्यादा है। पिछले साल मई के दौरान 1.46 लाख टन प्याज का निर्यात किया गया था।
प्रधान ट्रेडिंग कंपनी के प्रोपराइटर विजय यादव ने बताया कि मध्य प्रदेश व राजस्थान में प्याज के बंपर उत्पादन के कारण फिलहाल कीमतों में नरमी का रुख है लेकिन निर्यात में बढ़ोतरी से इसकी थोक कीमतों में तेजी आ सकती है। जिससे किसानों को अच्छी कीमत मिलने की संभावना है। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में भी उत्पादन बेहतर रहने की संभावना से कीमतों पर फिलहाल दबाव दर्ज किया जा रहा है।
अन्य थोक कारोबारी सोनू त्यागी ने बताया कि इन दिनों आजादपुर मंडी में प्याज की आवक 80-100 ट्रकों की दर्ज की जा रही है। उन्होंने कहा कि बंपर उत्पादन के कारण घरेलू बाजार में प्याज के भाव कम होने से भी निर्यात मांग बढ़ रही है। निर्यात मांग बढऩे से अगले महीने तक प्याज की कीमतों में 200 रुपये प्रति क्विंटल तक की तेजी आने की संभावना है। (Business Bhaskar)
स्टैंडर्ड पैकिंग सिस्टम अपनाने के लिए दो महीने की मोहलत
बिजनेस भास्कर नई दिल्ली
सरकार ने बिस्किट, नमकीन, चिप्स और अन्य खाद्य पदार्थ बनाने वाली कंपनियों को स्टैंडर्ड पैकिंग सिस्टम अपनाने के लिए दो महीने की मोहलत दे दी है। अब पहली सितंबर 2012 से खाद्य पदार्थों की पैकिंग के लिए स्टैंडर्ड पैकिंग सिस्टम लागू किया जायेगा। इससे पहले इसके लिए 1 जुलाई से लागू किए जाने की बात थी।
उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कंपनियों की मांग को देखते हुए स्टैंडर्ड पैकिंग सिस्टम के लिए दो महीने की मोहलत दी गई है। कंपनियों को पैकेजिंग मैटेरियल और पुराने स्टॉक को समाप्त करने के लिए 31 अगस्त 2012 तक का समय दिया गया है। ऐसे में अब एक सितंबर 2012 से देशभर में खाद्य पदार्थों की पैकिंग के लिए स्टैंडर्ड सिस्टम लागू हो जाएगा। उन्होंने बताया कि दस रुपये की कीमत और दस ग्राम के पैकेट पर स्टैंडर्ड पैकिंग सिस्टम लागू नहीं होगा।
सरकार ने उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए खाद्य पदार्थों की पैकिंग के लिए स्टैंडर्ड सिस्टम लागू करने की योजना बनाई है। खाद्य पदार्थों की पैकिंग के लिए वस्तु की मात्रा तय नहीं होने के कारण कंपनियां कितने भी भार में पैकिंग कर देती हैं। ऐसे में कभी-कभी कंपनियां पैकेट की कीमत तो बराबर रखती हैं लेकिन पैकेट के अंदर रखे पदार्थ की मात्रा में कमी कर देती हैं। जिसका आमतौर पर उपभोक्ताओं को पता ही नहीं चल पाता है।
उन्होंने बताया कि स्टैंडर्ड पैकिंग सिस्टम लागू होने के बाद कंपनियां 18, 39, 49 या फिर 59 ग्राम में खाद्य पदार्थों की पैकिंग नहीं कर सकेंगी। कंपनियों को खाद्य पदार्थों की पैकिंग सीधे तौर पर जैसे 20 ग्राम, 40 ग्राम, 60 ग्राम या फिर 90 ग्राम के आधार पर ही करनी होगी।
स्टैंडर्ड पैकिंग सिस्टम लागू होने के बाद उल्लंघन करने वाली कंपनियों के खिलाफ दंड और सजा दोनों का प्रावधान होगा।
उन्होंने बताया कि डिब्बाबंद वस्तु अधिनियम के प्रावधानों और माप-तौल मानक (पैकेज्ड वस्तु) नियम, 1977 देशभर में सितंबर 1977 से लागू हैं। तथा 17 जुलाई 2006 को अधिसूचना और नियमों की समीक्षा की गई तथा उपभोक्ताओं के हितों के लिए नए प्रावधान लागू किए गए। इसके आधार पर वैट के अंतर्गत शामिल खुदरा विक्रेताओं को बेची गई चीजों की कीमत एवं भार की लिखित सूचना कंपनियों को पैकेट पर छापनी अनिवार्य है। साथ ही प्रत्येक पैकेट पर कंपनी का नाम, पता और टेलीफोन नंबर लिखना होगा ताकि उपभोक्ता अपनी शिकायतों की सूचना दे सकें। (Business Bhaskar......R S Rana)
सरकार ने बिस्किट, नमकीन, चिप्स और अन्य खाद्य पदार्थ बनाने वाली कंपनियों को स्टैंडर्ड पैकिंग सिस्टम अपनाने के लिए दो महीने की मोहलत दे दी है। अब पहली सितंबर 2012 से खाद्य पदार्थों की पैकिंग के लिए स्टैंडर्ड पैकिंग सिस्टम लागू किया जायेगा। इससे पहले इसके लिए 1 जुलाई से लागू किए जाने की बात थी।
उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कंपनियों की मांग को देखते हुए स्टैंडर्ड पैकिंग सिस्टम के लिए दो महीने की मोहलत दी गई है। कंपनियों को पैकेजिंग मैटेरियल और पुराने स्टॉक को समाप्त करने के लिए 31 अगस्त 2012 तक का समय दिया गया है। ऐसे में अब एक सितंबर 2012 से देशभर में खाद्य पदार्थों की पैकिंग के लिए स्टैंडर्ड सिस्टम लागू हो जाएगा। उन्होंने बताया कि दस रुपये की कीमत और दस ग्राम के पैकेट पर स्टैंडर्ड पैकिंग सिस्टम लागू नहीं होगा।
सरकार ने उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए खाद्य पदार्थों की पैकिंग के लिए स्टैंडर्ड सिस्टम लागू करने की योजना बनाई है। खाद्य पदार्थों की पैकिंग के लिए वस्तु की मात्रा तय नहीं होने के कारण कंपनियां कितने भी भार में पैकिंग कर देती हैं। ऐसे में कभी-कभी कंपनियां पैकेट की कीमत तो बराबर रखती हैं लेकिन पैकेट के अंदर रखे पदार्थ की मात्रा में कमी कर देती हैं। जिसका आमतौर पर उपभोक्ताओं को पता ही नहीं चल पाता है।
उन्होंने बताया कि स्टैंडर्ड पैकिंग सिस्टम लागू होने के बाद कंपनियां 18, 39, 49 या फिर 59 ग्राम में खाद्य पदार्थों की पैकिंग नहीं कर सकेंगी। कंपनियों को खाद्य पदार्थों की पैकिंग सीधे तौर पर जैसे 20 ग्राम, 40 ग्राम, 60 ग्राम या फिर 90 ग्राम के आधार पर ही करनी होगी।
स्टैंडर्ड पैकिंग सिस्टम लागू होने के बाद उल्लंघन करने वाली कंपनियों के खिलाफ दंड और सजा दोनों का प्रावधान होगा।
उन्होंने बताया कि डिब्बाबंद वस्तु अधिनियम के प्रावधानों और माप-तौल मानक (पैकेज्ड वस्तु) नियम, 1977 देशभर में सितंबर 1977 से लागू हैं। तथा 17 जुलाई 2006 को अधिसूचना और नियमों की समीक्षा की गई तथा उपभोक्ताओं के हितों के लिए नए प्रावधान लागू किए गए। इसके आधार पर वैट के अंतर्गत शामिल खुदरा विक्रेताओं को बेची गई चीजों की कीमत एवं भार की लिखित सूचना कंपनियों को पैकेट पर छापनी अनिवार्य है। साथ ही प्रत्येक पैकेट पर कंपनी का नाम, पता और टेलीफोन नंबर लिखना होगा ताकि उपभोक्ता अपनी शिकायतों की सूचना दे सकें। (Business Bhaskar......R S Rana)
उर्वरक परिवहन पर सब्सिडी के लिए दूरी की सीमा तय
उर्वरक मंत्रालय ने कंपनियों को निर्देश दिया है कि बंदरगाहों
और प्लांटों से 1,400 किलोमीटर से दूर उर्वरकों की सप्लाई न की जाए।
मंत्रालय ने यह कदम रेलवे ट्रैफिक का भार घटाने और भाड़ा सब्सिडी घटाने के
लिए उठाया है। पिछले वित्त वर्ष 2011-12 में मंत्रालय ने करीब 4,500 करोड़
रुपये की भाड़ा सब्सिडी का भुगतान किया था।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उर्वरकों के बेवजह से परिवहन को रोकने के लिए मंत्रालय ने यह कदम उठाया है। कंपनियां बंदरगाह या प्लांट से 1,400 किलोमीटर से ज्यादा दूरी पर उर्वरकों की सप्लाई नहीं भेज सकेंगी। कंपनियों को इस दूरी के भीतर ही सप्लाई सुनिश्चित करनी चाहिए। अधिकारी ने बताया कि इस आदेश के अनुपालन के साथ भी निर्माता और आयातक आसानी से उपभोक्ता राज्यों को उर्वरकों की आसानी से सप्लाई कर सकेंगे।
दूरी की सीमा तय होने से रेलवे रूटों पर ट्रैफिक का भार कम होगा और भाड़ा सब्सिडी का सही इस्तेमाल हो सकेगा। यह आदेश सभी निर्माताओं और आयातकों पर लागू होगा। इस आदेश का आशय है कि सरकार सिर्फ 1,400 किलोमीटर तक उर्वरक परिवहन के लिए ही भाड़ा सब्सिडी का भुगतान करेगी। इससे सरकार को भाड़ा सब्सिडी घटाने में भी मदद मिलेगी।
इससे पहले कंपनियां बंदरगाहों और प्लांटों से देश में किसी भी स्थान पर उर्वरक भेजने के लिए स्वतंत्र थीं और कंपनियों को पूरे भाड़े पर सब्सिडी मिल जाती थी। अभी तक दूरी की कोई सीमा तय नहीं थी। मंत्रालय ने देश के 14 बंदरगाहों को चिन्हित किया है, जहां से रेलवे के जरिये निकटवर्ती राज्यों को उर्वरक भेजे जा सकेंगे।
मसलन, कंपनियां पश्चिमी तट पर कांडला, मूंदड़ा, पीपावाव और जोजी बंदरगाहों से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश को उर्वरकों की सप्लाई कर सकेंगी। भारत हर साल करीब 60-60 लाख टन पोटाश व यूरिया और 70 लाख टन डीएपी का आयात करता है। (Business Bhaskar)
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उर्वरकों के बेवजह से परिवहन को रोकने के लिए मंत्रालय ने यह कदम उठाया है। कंपनियां बंदरगाह या प्लांट से 1,400 किलोमीटर से ज्यादा दूरी पर उर्वरकों की सप्लाई नहीं भेज सकेंगी। कंपनियों को इस दूरी के भीतर ही सप्लाई सुनिश्चित करनी चाहिए। अधिकारी ने बताया कि इस आदेश के अनुपालन के साथ भी निर्माता और आयातक आसानी से उपभोक्ता राज्यों को उर्वरकों की आसानी से सप्लाई कर सकेंगे।
दूरी की सीमा तय होने से रेलवे रूटों पर ट्रैफिक का भार कम होगा और भाड़ा सब्सिडी का सही इस्तेमाल हो सकेगा। यह आदेश सभी निर्माताओं और आयातकों पर लागू होगा। इस आदेश का आशय है कि सरकार सिर्फ 1,400 किलोमीटर तक उर्वरक परिवहन के लिए ही भाड़ा सब्सिडी का भुगतान करेगी। इससे सरकार को भाड़ा सब्सिडी घटाने में भी मदद मिलेगी।
इससे पहले कंपनियां बंदरगाहों और प्लांटों से देश में किसी भी स्थान पर उर्वरक भेजने के लिए स्वतंत्र थीं और कंपनियों को पूरे भाड़े पर सब्सिडी मिल जाती थी। अभी तक दूरी की कोई सीमा तय नहीं थी। मंत्रालय ने देश के 14 बंदरगाहों को चिन्हित किया है, जहां से रेलवे के जरिये निकटवर्ती राज्यों को उर्वरक भेजे जा सकेंगे।
मसलन, कंपनियां पश्चिमी तट पर कांडला, मूंदड़ा, पीपावाव और जोजी बंदरगाहों से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश को उर्वरकों की सप्लाई कर सकेंगी। भारत हर साल करीब 60-60 लाख टन पोटाश व यूरिया और 70 लाख टन डीएपी का आयात करता है। (Business Bhaskar)
मॉनसून पर टिकी हैं नजरें
दक्षिण पश्चिम मॉनसून धीरे-धीरे जुलाई जैसे महत्वपूर्ण माह की तरफ बढ़ रहा
है, लिहाजा हर किसी की निगाहें अगले 10-15 दिनों में भारत में होने वाली
इसकी प्रगति पर टिकी होंगी।
विशेषज्ञों ने कहा कि खरीफ की मुख्य फसलों मसलन धान, सोयाबीन, मूंगफली और दलहन की बुआई व उत्पादन इस पर निर्भर करेगा कि अगले 10-15 दिनों में किस तरह की बारिश होती है। सामान्य तौर पर चार महीने लंबी मॉनसून अवधि में जुलाई काफी महत्वपूर्ण होता है, लेकिन देश के ज्यादातर इलाकों में बारिश में हुई करीब 10 दिन की देरी को देखते हुए अगले कुछ दिन काफी महत्वपूर्ण होंगे।
भारतीय मौसम विभाग ने हालांकि आधिकारिक रूप से उम्मीद जताई है कि आने वाले हफ्तों में बारिश में सुधार देखने को मिलेगा और 22 जून तक यह धान की बुआई वाले मुख्य इलाके पूर्वी भारत तक पहुंच जाएगा। लेकिन अब तक बारिश की स्थिति को देखते हुए ज्यादातर विशेषज्ञ कुछ बोलने की स्थिति में नहीं हैं। (BS HIndi)
विशेषज्ञों ने कहा कि खरीफ की मुख्य फसलों मसलन धान, सोयाबीन, मूंगफली और दलहन की बुआई व उत्पादन इस पर निर्भर करेगा कि अगले 10-15 दिनों में किस तरह की बारिश होती है। सामान्य तौर पर चार महीने लंबी मॉनसून अवधि में जुलाई काफी महत्वपूर्ण होता है, लेकिन देश के ज्यादातर इलाकों में बारिश में हुई करीब 10 दिन की देरी को देखते हुए अगले कुछ दिन काफी महत्वपूर्ण होंगे।
भारतीय मौसम विभाग ने हालांकि आधिकारिक रूप से उम्मीद जताई है कि आने वाले हफ्तों में बारिश में सुधार देखने को मिलेगा और 22 जून तक यह धान की बुआई वाले मुख्य इलाके पूर्वी भारत तक पहुंच जाएगा। लेकिन अब तक बारिश की स्थिति को देखते हुए ज्यादातर विशेषज्ञ कुछ बोलने की स्थिति में नहीं हैं। (BS HIndi)
तेजी की बहार से पुराने सोने में भी चमकार
वैश्विक अर्थव्यस्था में अस्थिरता से सोने की कीमतों में मजबूती बनी हुई
है। इस कारण खरीदार भले ही नदारद हों लेकिन पुराना सोना बेचने वाले निकल
पड़े हैं। कारोबारियों को लगता है कि इस बार पुराने सोने की बिक्री पिछले
साल से दोगुनी होगी। मुंबई के जवेरी बाजार में ज्वैलरों के यहां ग्राहकोंं
की संख्या आम दिनों से ज्यादा नजर आ रही है लेकिन यह खरीदारों की नहींं
बल्कि पुराना सोना बेचने वालों की भीड़ होती है। लोगों को लगता है कि आने
वाले समय में सोने की कीमतों में गिरावट आ सकती है क्योंकि सोने की मांग
धीरे धीरे कमजोर पड़ रही है।
मुंबई ज्वैलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष कुमार जैन के अनुसार बाजार में खरीदार बिलकुल नहीं है। बारिश के साथ ग्राहकी और कम हो जाएगी। बाजार में रोजाना आने वाले पुराने सोने का सही आंकड़ा तो बताना मुश्किल होगा लेकिन पिछले साल की अपेक्षा दोगुनी रफ्तार से बिकवाल आ रहे हैं।
बाम्बे बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष पृथ्वीराज कोठारी कहते हैं कि बाजार में अस्थिरता का माहौल है जिसके चलते पैसों की कमी है। शेयर बाजार से भी निवेशक निराश हैं। कोठारी को उम्मीद है कि इस साल पुराने सोने की बिक्री 400 टन तक हो सकती है जबकि पिछले साल 130 टन पुराने सोने की बिक्री हुई थी।
घरेलू और वैश्विक स्तर पर सोने की मांग कमजोर रहने के बावजूद कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। साल भर में में सोने की कीमतों में 35 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। एक साल पहले सोना 22300 रुपये प्रति 10 ग्राम के आस पास था जो इस समय 30 हजार रुपये को पार कर चुका है। जबकि वैश्विक बाजार में सोने की कीमतें घटी हैं।
बुलियन कारोबार के जानकार मोहित के अनुसार घरेलू बाजार में सोने की कीमतों में बढ़ोतरी की प्रमुख वजह डॉलर का मजबूत होना है। लेकिन कारोबारी डॉलर की मौजूदा कीमत को वास्ताविक नहीं मान रहे हैं। बाजार में धारणा है कि डॉलर कमजोर हुआ तो सोना भी सस्ता होगा। (BS Hindi)
मुंबई ज्वैलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष कुमार जैन के अनुसार बाजार में खरीदार बिलकुल नहीं है। बारिश के साथ ग्राहकी और कम हो जाएगी। बाजार में रोजाना आने वाले पुराने सोने का सही आंकड़ा तो बताना मुश्किल होगा लेकिन पिछले साल की अपेक्षा दोगुनी रफ्तार से बिकवाल आ रहे हैं।
बाम्बे बुलियन एसोसिएशन के अध्यक्ष पृथ्वीराज कोठारी कहते हैं कि बाजार में अस्थिरता का माहौल है जिसके चलते पैसों की कमी है। शेयर बाजार से भी निवेशक निराश हैं। कोठारी को उम्मीद है कि इस साल पुराने सोने की बिक्री 400 टन तक हो सकती है जबकि पिछले साल 130 टन पुराने सोने की बिक्री हुई थी।
घरेलू और वैश्विक स्तर पर सोने की मांग कमजोर रहने के बावजूद कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। साल भर में में सोने की कीमतों में 35 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है। एक साल पहले सोना 22300 रुपये प्रति 10 ग्राम के आस पास था जो इस समय 30 हजार रुपये को पार कर चुका है। जबकि वैश्विक बाजार में सोने की कीमतें घटी हैं।
बुलियन कारोबार के जानकार मोहित के अनुसार घरेलू बाजार में सोने की कीमतों में बढ़ोतरी की प्रमुख वजह डॉलर का मजबूत होना है। लेकिन कारोबारी डॉलर की मौजूदा कीमत को वास्ताविक नहीं मान रहे हैं। बाजार में धारणा है कि डॉलर कमजोर हुआ तो सोना भी सस्ता होगा। (BS Hindi)
यूनान पर टिकी सोने की चमक
सोने-चांदी की घरेलू और निवेश दोनों मांग कमजोर होने के बावजूद इनकी चमक
बढ़ती जा रही है। यूरो जोन संकट सोने को और चमका सकता है। जानकारों का कहना
है कि बाजार और बुलियन की चाल इस सप्ताह के वैश्विक घटनाक्रम से तय होगी।
दूसरी तरफ कमोडिटी एक्सचेंज कारोबारियों को हेंजिंग के गुर सिखा कर मोटी
कमाई का गुरुमंत्र देने में जुट गए हैं।
ये एक्सचेंज सोना कारोबारियों को हेजिंग के गुर सिखाने के लिए सेमिनार कर रहे हैं। एमसीएक्स ने जोधपुर में करीब 300 ज्वैलरों को हेजिंग सिखाई। एमसीएक्स ने जोधपुर सर्राफा एसोसिएशन और जोधपुर ज्वैलर्स एसोसिएशन से करार भी किया है। जून महीने में लगभग सभी कमोडिटी एक्सचेंज अलग अलग शहरों में सेमिनार करके कारोबारियों को गोल्ड हेजिंग के फायदे बता रहे हैं।
बीते हफ्ते घरेलू बाजार में सोने की कीमतें 700 रुपये प्रति 10 ग्राम और चांदी की कीमतें 300 रुपये प्रति किलोग्राम से ज्यादा उछलीं। हाजिर बाजार में सोना 30175 रुपये और वायदा में 30765 रुपये (एमसीएक्स दिसंबर) तक पहुंच गया। वैश्विक बाजार में भी सोना 2.11 फीसदी बढ़कर 1627.10 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गया।चांदी की कीमतें करीबन एक फीसदी बढ़कर 28.69 डॉलर प्रति औंस और घरेलू बाजार में 55115 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गईं। एंजेल बोकिंग के बुलियन एंव करेंसी हेड नवीन माथुर के अनुसार इस सप्ताह के बाजार का अनुमान पहले से लगा पाना मुश्किल है क्योंकि बाजार और सोने-चांदी की चाल ग्रीस चुनावों से तय होगी। एसएमसी कमोडिटी के प्रबंध निदेशक डीके अग्रवाल की लगभग ऐसी ही राय है। (BS Hindi)
ये एक्सचेंज सोना कारोबारियों को हेजिंग के गुर सिखाने के लिए सेमिनार कर रहे हैं। एमसीएक्स ने जोधपुर में करीब 300 ज्वैलरों को हेजिंग सिखाई। एमसीएक्स ने जोधपुर सर्राफा एसोसिएशन और जोधपुर ज्वैलर्स एसोसिएशन से करार भी किया है। जून महीने में लगभग सभी कमोडिटी एक्सचेंज अलग अलग शहरों में सेमिनार करके कारोबारियों को गोल्ड हेजिंग के फायदे बता रहे हैं।
बीते हफ्ते घरेलू बाजार में सोने की कीमतें 700 रुपये प्रति 10 ग्राम और चांदी की कीमतें 300 रुपये प्रति किलोग्राम से ज्यादा उछलीं। हाजिर बाजार में सोना 30175 रुपये और वायदा में 30765 रुपये (एमसीएक्स दिसंबर) तक पहुंच गया। वैश्विक बाजार में भी सोना 2.11 फीसदी बढ़कर 1627.10 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गया।चांदी की कीमतें करीबन एक फीसदी बढ़कर 28.69 डॉलर प्रति औंस और घरेलू बाजार में 55115 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गईं। एंजेल बोकिंग के बुलियन एंव करेंसी हेड नवीन माथुर के अनुसार इस सप्ताह के बाजार का अनुमान पहले से लगा पाना मुश्किल है क्योंकि बाजार और सोने-चांदी की चाल ग्रीस चुनावों से तय होगी। एसएमसी कमोडिटी के प्रबंध निदेशक डीके अग्रवाल की लगभग ऐसी ही राय है। (BS Hindi)
हल्दी के रकबे में भारी गिरावट के आसार
हल्दी की कीमतों में भारी गिरावट के बाद किसानों को हुए काफी ज्यादा नुकसान
के चलते इस साल हल्दी के रकबे में पिछले साल के मुकाबले करीब 50-60 फीसदी
की गिरावट के आसार हैं। कुछ इलाकों में हल्दी की कीमतें उत्पादन लागत से
नीचे है।
मौजूदा समय में कारोबारी और किसान इस मसाले की बिक्री नुकसान पर कर रहे हैं। हल्दी की उत्पादन लागत प्रति किलोग्राम 40 रुपये है, लेकिन मौजूदा समय में इसकी बाजार कीमत करीब 30-35 रुपये प्रति किलोग्राम है। पिछले एक साल में हल्दी की कीमतें 50 फीसदी कम हुई हैं और एनसीडीईएक्स पर इसका भाव 7252 रुपये प्रति क्विंटल से घटकर 3554 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गया है।
भारतीय मसाला बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी भी इस बात की पुष्टि की है कि इस साल हल्दी के रकबे में भारी गिरावट के आसार हैं। आंध्र प्रदेश के कृषि विभाग के मुताबिक, पिछले साल 81,000 हेक्टेयर में हल्दी की बुआई हुई थी, जो इस साल घटकर 35,000 हेक्टेयर पर आ सकता है।
किसान इस साल कपास, दलहन और तिलहन की बुआई के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं क्योंकि इन जिंसों मेंं पिछले एक साल में बेहतर प्रतिफल दिया है और यहां तक कि सरकार ने इन जिंसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी तीव्र बढ़ोतरी की है। इस तरह से सरकार ने हल्दी किसानों को इसके मुकाबले ज्यादा प्रतिफल का भरोसा दिया है।
इस साल की स्थिति साल 2008-09 की तरह है जब हल्दी की कीमतें गिरकर 20 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गई थी और इसी वजह से किसानों ने कपास और तिलहन का रुख किया था। इस घटने के बाद हल्दी की कीमतें साल 2010 में 17,500 से 20,000 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई थीं क्योंकि इसका उत्पादन घट गया था।
कारोबारियों को इस साल पुरानी घटना के दोहराव की संभावना नजर आ रही है और उन्हें उम्मीद है कि सितंबर 2013 से इसकी कीमतें बढऩी शुरू होंगी। पिछले साल 1 करोड़ बैग (प्रति बैग 75 किलोग्राम) हल्दी का उत्पादन हुआ था और इससे पूर्व वर्ष का कैरीओवर स्टॉक 20 लाख बैग था। (BS Hindi)
मौजूदा समय में कारोबारी और किसान इस मसाले की बिक्री नुकसान पर कर रहे हैं। हल्दी की उत्पादन लागत प्रति किलोग्राम 40 रुपये है, लेकिन मौजूदा समय में इसकी बाजार कीमत करीब 30-35 रुपये प्रति किलोग्राम है। पिछले एक साल में हल्दी की कीमतें 50 फीसदी कम हुई हैं और एनसीडीईएक्स पर इसका भाव 7252 रुपये प्रति क्विंटल से घटकर 3554 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गया है।
भारतीय मसाला बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी भी इस बात की पुष्टि की है कि इस साल हल्दी के रकबे में भारी गिरावट के आसार हैं। आंध्र प्रदेश के कृषि विभाग के मुताबिक, पिछले साल 81,000 हेक्टेयर में हल्दी की बुआई हुई थी, जो इस साल घटकर 35,000 हेक्टेयर पर आ सकता है।
किसान इस साल कपास, दलहन और तिलहन की बुआई के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं क्योंकि इन जिंसों मेंं पिछले एक साल में बेहतर प्रतिफल दिया है और यहां तक कि सरकार ने इन जिंसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी तीव्र बढ़ोतरी की है। इस तरह से सरकार ने हल्दी किसानों को इसके मुकाबले ज्यादा प्रतिफल का भरोसा दिया है।
इस साल की स्थिति साल 2008-09 की तरह है जब हल्दी की कीमतें गिरकर 20 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गई थी और इसी वजह से किसानों ने कपास और तिलहन का रुख किया था। इस घटने के बाद हल्दी की कीमतें साल 2010 में 17,500 से 20,000 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई थीं क्योंकि इसका उत्पादन घट गया था।
कारोबारियों को इस साल पुरानी घटना के दोहराव की संभावना नजर आ रही है और उन्हें उम्मीद है कि सितंबर 2013 से इसकी कीमतें बढऩी शुरू होंगी। पिछले साल 1 करोड़ बैग (प्रति बैग 75 किलोग्राम) हल्दी का उत्पादन हुआ था और इससे पूर्व वर्ष का कैरीओवर स्टॉक 20 लाख बैग था। (BS Hindi)
16 जून 2012
धान का एमएसपी 15.7' बढ़कर 1,250 रुपये
बिजनेस भास्कर नई दिल्ली
केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन (2012-13) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में 15.7 फीसदी से 53.1 फीसदी की बढ़ोतरी की है। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की गुरुवार को हुई बैठक में सामान्य किस्म के धान का एमएसपी 15.7 फीसदी बढ़ाकर 1,250 रुपये और ग्रेड-ए का 1,280 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
सबसे ज्यादा बढ़ोतरी ज्वार के एमएसपी में 53.1 फीसदी की गई है। खरीफ विपणन सीजन 2012-13 के लिए ज्वार (संकर किस्म) का एमएसपी 1,500 रुपये और ज्वार (मालडंडी) का 1,520 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। कपास (मीडियम स्टेपल) का एमएसपी 2,800 रुपये से बढ़ाकर 3,600 रुपये तथा लांग स्टेपल कपास का 3,300 रुपये से बढ़ाकर 3,900 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है। दलहन में उड़द का एमएसपी 3,300 रुपये से बढ़ाकर 4,300 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। खरीफ की अन्य दलहनों अरहर और मूंग के एमएसपी पर फैसला नहीं हो सका।
तिलहनों में मूंगफली के एमएसपी में 37 फीसदी की बढ़ोतरी कर 3,700 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। सोयाबीन (काला) का एमएसपी 1,650 रुपये से बढ़ाकर 2,200 रुपये तथा सोयाबीन (पीला) का 2,240 रुपये प्रति क्विंटल तय हुआ है। सनफ्लावर सीड का एमएसपी 2,800 रुपये से बढ़ाकर 3,700 रुपये और शीशम सीड का 3,400 रुपये से बढ़ाकर 4,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। (Business Bhaskar...R S Rana)
केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन (2012-13) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में 15.7 फीसदी से 53.1 फीसदी की बढ़ोतरी की है। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की गुरुवार को हुई बैठक में सामान्य किस्म के धान का एमएसपी 15.7 फीसदी बढ़ाकर 1,250 रुपये और ग्रेड-ए का 1,280 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
सबसे ज्यादा बढ़ोतरी ज्वार के एमएसपी में 53.1 फीसदी की गई है। खरीफ विपणन सीजन 2012-13 के लिए ज्वार (संकर किस्म) का एमएसपी 1,500 रुपये और ज्वार (मालडंडी) का 1,520 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। कपास (मीडियम स्टेपल) का एमएसपी 2,800 रुपये से बढ़ाकर 3,600 रुपये तथा लांग स्टेपल कपास का 3,300 रुपये से बढ़ाकर 3,900 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है। दलहन में उड़द का एमएसपी 3,300 रुपये से बढ़ाकर 4,300 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। खरीफ की अन्य दलहनों अरहर और मूंग के एमएसपी पर फैसला नहीं हो सका।
तिलहनों में मूंगफली के एमएसपी में 37 फीसदी की बढ़ोतरी कर 3,700 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है। सोयाबीन (काला) का एमएसपी 1,650 रुपये से बढ़ाकर 2,200 रुपये तथा सोयाबीन (पीला) का 2,240 रुपये प्रति क्विंटल तय हुआ है। सनफ्लावर सीड का एमएसपी 2,800 रुपये से बढ़ाकर 3,700 रुपये और शीशम सीड का 3,400 रुपये से बढ़ाकर 4,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। (Business Bhaskar...R S Rana)
कैलिफोर्निया से बादाम आयात 10 फीसदी बढ़ा
400 करोड़ रुपये के बादाम का आयात किया गया पिछले चार माह में
350 करोड़ के बादाम का आयात किया गया था पिछले साल समान अवधि में
चालू वर्ष के पहले चार महीनों (जनवरी से अप्रैल) के दौरान कैलिफोर्निया से बादाम के आयात में मूल्य के हिसाब से 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और कुल 400 करोड़ रुपये का आयात हुआ। जबकि पिछले साल की समान अवधि में 350 करोड़ रुपये मूल्य का बादाम आयात हुआ था।
अमेरिका कृषि विभाग (यूएसडीए) के भारत में एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कैलिफोर्निया बादाम का भारत सबसे बड़ा आयातक देश है तथा हर साल भारत को कैलिफोर्निया से बादाम के आयात में बढ़ोतरी हो रही है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2011 में जनवरी से दिसंबर के दौरान भारत ने 75,000 टन बादाम का आयात किया था, जिनका मूल्य करीब 1,500 करोड़ रुपये था। किराना कमेटी के अध्यक्ष प्रेम अरोड़ा ने बताया कि गर्मियों में बादाम की मांग बढ़ जाती है।
इसी कारण घरेलू बाजार में महीने भर में इसकी कीमतों में 40 से 50 रुपये की तेजी आ चुकी है। खारी बावली में बादाम के भाव बढ़कर 380 से 440 रुपये प्रति किलो हो गए। जुलाई के बाद त्योहारी सीजन शुरू हो जाएगा, जिससे कीमतों में तेजी को समर्थन मिल सकता है। उन्होंने बताया कि रुपये के मुकाबले डॉलर की मजबूती से भी आयातित बादाम महंगा पड़ रहा है। (Business Bhaskar)
350 करोड़ के बादाम का आयात किया गया था पिछले साल समान अवधि में
चालू वर्ष के पहले चार महीनों (जनवरी से अप्रैल) के दौरान कैलिफोर्निया से बादाम के आयात में मूल्य के हिसाब से 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और कुल 400 करोड़ रुपये का आयात हुआ। जबकि पिछले साल की समान अवधि में 350 करोड़ रुपये मूल्य का बादाम आयात हुआ था।
अमेरिका कृषि विभाग (यूएसडीए) के भारत में एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कैलिफोर्निया बादाम का भारत सबसे बड़ा आयातक देश है तथा हर साल भारत को कैलिफोर्निया से बादाम के आयात में बढ़ोतरी हो रही है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2011 में जनवरी से दिसंबर के दौरान भारत ने 75,000 टन बादाम का आयात किया था, जिनका मूल्य करीब 1,500 करोड़ रुपये था। किराना कमेटी के अध्यक्ष प्रेम अरोड़ा ने बताया कि गर्मियों में बादाम की मांग बढ़ जाती है।
इसी कारण घरेलू बाजार में महीने भर में इसकी कीमतों में 40 से 50 रुपये की तेजी आ चुकी है। खारी बावली में बादाम के भाव बढ़कर 380 से 440 रुपये प्रति किलो हो गए। जुलाई के बाद त्योहारी सीजन शुरू हो जाएगा, जिससे कीमतों में तेजी को समर्थन मिल सकता है। उन्होंने बताया कि रुपये के मुकाबले डॉलर की मजबूती से भी आयातित बादाम महंगा पड़ रहा है। (Business Bhaskar)
विदेश में कॉटन के दाम गिरने से निर्यात घटने का अनुमान
घरेलू हालात
अहमदाबाद में कॉटन के दाम घटकर 32,300-32,500 रुपये प्रति कैंडी रह गए
एक माह पहले कॉटन बिक रही थी 35,200 से 35,500 रुपये प्रति कैंडी
लुधियाना में यार्न के दाम 10 फीसदी घटकर 195-200 रुपये प्रति किलो रह गए
घरेलू मिलों के पास कॉटन का पर्याप्त स्टॉक मौजूद है
यार्न का भी निर्यात हल्का होने से निर्यातकों की भी मांग कमजोर
भारतीय निर्यातकों के लिए शिपमेंट सौदे करना फायदेमंद नहीं रह गया
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉटन (जिनिंग की हुई रुई) की कीमतों में आई भारी गिरावट से कॉटन का निर्यात धीमा पडऩे का अनुमान है क्योंकि निर्यातकों को भाव पड़ते नहीं लग रहे हैं। साल भर में विश्व बाजार में कॉटन की कीमतें 77.45 फीसदी घट चुकी हैं। न्यूयॉर्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में जुलाई डिलीवरी कॉटन 78.09 सेंट प्रति पाउंड रह गई है।
केसीटी एंड एसोसिएट्स के मैनेजिंग डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि वर्ष 2012-13 में विश्व स्तर पर कॉटन का बकाया स्टॉक 737 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) बचने की संभावना है, जो पिछले साल से दस फीसदी अधिक है। चीन की आयात मांग भी कमजोर बनी हुई है जिससे विश्व बाजार में कॉटन के दाम लगातार घट रहे हैं।
उन्होंने बताया कि न्यूयॉर्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में जुलाई महीने के वायदा अनुबंध में कॉटन की कीमतें घटकर 14 जून को 78.09 सेंट प्रति पाउंड रह गईं जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसका भाव 155.54 सेंट प्रति पाउंड था।
गुजरात जिनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दलीप पटेल ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम घटने से निर्यातकों की मांग काफी कम हो गई है। यार्न मिलों की मांग भी कमजोर होने के कारण घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में गिरावट बनी हुई है।
अहमदाबाद मंडी में शंकर-6 किस्म की कॉटन का भाव शुक्रवार को घटकर 32,300 से 32,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) रह गया जबकि आठ मई को इसका भाव 35,200 से 35,500 रुपये प्रति कैंडी था। मुक्तसर कॉटन प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर नवीन ग्रोवर ने बताया कि यार्न की कीमतों में भी गिरावट बनी हुई है। लुधियाना में यार्न का दाम घटकर शुक्रवार को 195-200 रुपये प्रति किलो रह गया। महीने भर में इसकी कीमतों में करीब 10 फीसदी की गिरावट आ चुकी है।
घरेलू मिलों के पास कॉटन का पर्याप्त स्टॉक है जबकि यार्न में निर्यातकों की मांग कमजोर है। गुजरात और महाराष्ट्र की मंडियों में करीब 24,000 से 25,000 गांठ कपास की आवक हो रही है। कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2011-12 में कपास का उत्पादन 352 लाख गांठ होने का अनुमान है। जबकि वर्ष 2010-11 में 330 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। (Business bhskar...R S Rana)
अहमदाबाद में कॉटन के दाम घटकर 32,300-32,500 रुपये प्रति कैंडी रह गए
एक माह पहले कॉटन बिक रही थी 35,200 से 35,500 रुपये प्रति कैंडी
लुधियाना में यार्न के दाम 10 फीसदी घटकर 195-200 रुपये प्रति किलो रह गए
घरेलू मिलों के पास कॉटन का पर्याप्त स्टॉक मौजूद है
यार्न का भी निर्यात हल्का होने से निर्यातकों की भी मांग कमजोर
भारतीय निर्यातकों के लिए शिपमेंट सौदे करना फायदेमंद नहीं रह गया
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉटन (जिनिंग की हुई रुई) की कीमतों में आई भारी गिरावट से कॉटन का निर्यात धीमा पडऩे का अनुमान है क्योंकि निर्यातकों को भाव पड़ते नहीं लग रहे हैं। साल भर में विश्व बाजार में कॉटन की कीमतें 77.45 फीसदी घट चुकी हैं। न्यूयॉर्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में जुलाई डिलीवरी कॉटन 78.09 सेंट प्रति पाउंड रह गई है।
केसीटी एंड एसोसिएट्स के मैनेजिंग डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि वर्ष 2012-13 में विश्व स्तर पर कॉटन का बकाया स्टॉक 737 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) बचने की संभावना है, जो पिछले साल से दस फीसदी अधिक है। चीन की आयात मांग भी कमजोर बनी हुई है जिससे विश्व बाजार में कॉटन के दाम लगातार घट रहे हैं।
उन्होंने बताया कि न्यूयॉर्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में जुलाई महीने के वायदा अनुबंध में कॉटन की कीमतें घटकर 14 जून को 78.09 सेंट प्रति पाउंड रह गईं जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसका भाव 155.54 सेंट प्रति पाउंड था।
गुजरात जिनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दलीप पटेल ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम घटने से निर्यातकों की मांग काफी कम हो गई है। यार्न मिलों की मांग भी कमजोर होने के कारण घरेलू बाजार में कॉटन की कीमतों में गिरावट बनी हुई है।
अहमदाबाद मंडी में शंकर-6 किस्म की कॉटन का भाव शुक्रवार को घटकर 32,300 से 32,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) रह गया जबकि आठ मई को इसका भाव 35,200 से 35,500 रुपये प्रति कैंडी था। मुक्तसर कॉटन प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर नवीन ग्रोवर ने बताया कि यार्न की कीमतों में भी गिरावट बनी हुई है। लुधियाना में यार्न का दाम घटकर शुक्रवार को 195-200 रुपये प्रति किलो रह गया। महीने भर में इसकी कीमतों में करीब 10 फीसदी की गिरावट आ चुकी है।
घरेलू मिलों के पास कॉटन का पर्याप्त स्टॉक है जबकि यार्न में निर्यातकों की मांग कमजोर है। गुजरात और महाराष्ट्र की मंडियों में करीब 24,000 से 25,000 गांठ कपास की आवक हो रही है। कृषि मंत्रालय के तीसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2011-12 में कपास का उत्पादन 352 लाख गांठ होने का अनुमान है। जबकि वर्ष 2010-11 में 330 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। (Business bhskar...R S Rana)
हरियाणा में धान की बुआई शुरू
रियाणा में आज धान की बुआई शुरू हो गई और राज्य में इस साल 12 लाख हेक्टेयर
में इसकी बुआई की संभावना है। पिछले साल धान का रकबा 12.35 लाख हेक्टेयर
था। राज्य के कृषि अधिकारी धान का लक्षित रकबा हासिल करने के प्रति
आत्मविश्वास से लबरेज नजर आए। चावल निर्यातकों को लगता है कि केंद्र सरकार
की तररफ से बेहतर समर्थन मूल्य घोषित किए जाने के चलते धान की सामान्य
किस्म की बुआई में बढ़ोतरी हो सकती है। सरकार ने धान की सामान्य किस्म की
एमएसपी 1250 रुपये प्रति क्विंटल तय की है जबकि ए श्रेणी के धान का समर्थन
मूल्य 1280 रुपये प्रति क्विंटल होगा। नया समर्थन मूल्य पिछले साल के
एमएसपी के मुकाबले 170 रुपये की बढ़ोतरी को प्रतिबिंबित करता है। साल
2011-12 में एमएसपी में 80 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई थी।
हरियाणा में बासमती का रकबा पिछले कुछ सालों में बढ़ा है क्योंकि इसमें लाभकारी कीमतें मिलती हैं। धान की सामान्य किस्म के रकबे में बढ़ोतरी की दूसरी वजह यह है कि पिछले साल कम कीमतों के चलते बासमती किसानों को नुकसान उठाना पड़ा था।
मॉनसून की चिंता?
कमजोर मॉनसून का असर धान की बुआई पर पड़ सकता है। मौसम विभाग के मुताबिक, पिछले हफ्ते तक मॉनसून की बारिश में 50 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। चावल निर्यातकों का कहना है कि जुलाई के पहले हफ्ते तक मॉनसून का धान पर काफी कम असर होगा, लेकिन अगर उस समय तक भी मॉनसून नाकाम रहता है तो इसका असर खरीफ फसलों पर पड़ सकता है।
चूंकि बासमती के उत्पादन में कम पानी की दरकार होती है, लिहाजा अगर जुलाई में भी मॉनसून कमजोर रहा तो बासमती के रकबे में इजाफा हो सकता है। (BS Hindi)
हरियाणा में बासमती का रकबा पिछले कुछ सालों में बढ़ा है क्योंकि इसमें लाभकारी कीमतें मिलती हैं। धान की सामान्य किस्म के रकबे में बढ़ोतरी की दूसरी वजह यह है कि पिछले साल कम कीमतों के चलते बासमती किसानों को नुकसान उठाना पड़ा था।
मॉनसून की चिंता?
कमजोर मॉनसून का असर धान की बुआई पर पड़ सकता है। मौसम विभाग के मुताबिक, पिछले हफ्ते तक मॉनसून की बारिश में 50 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। चावल निर्यातकों का कहना है कि जुलाई के पहले हफ्ते तक मॉनसून का धान पर काफी कम असर होगा, लेकिन अगर उस समय तक भी मॉनसून नाकाम रहता है तो इसका असर खरीफ फसलों पर पड़ सकता है।
चूंकि बासमती के उत्पादन में कम पानी की दरकार होती है, लिहाजा अगर जुलाई में भी मॉनसून कमजोर रहा तो बासमती के रकबे में इजाफा हो सकता है। (BS Hindi)
मार्जिन में सावधि जमा की रसीद भी स्वीकार्य
नकद मार्जिन के दायित्व के तौर पर सावधि जमा की रसीद स्वीकार करने से मना
करने के महज एक हफ्ते बाद ही नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज ने इसे
दोबारा बहाल कर दिया है।
7 जून को वायदा बाजार आयोग ने सभी एक्सचेंजों को नकद मार्जिन के दायित्व के तौर पर एफडीआर स्वीकार नहीं करने का निर्देश दिया था। हालांकि ब्रोकिंग फर्मों ने इस कदम की आलोचना की थी। उनका कहना था कि एफडीआर की प्राप्ति बैंक में नकद जमा कराने के बाद ही होती है, लिहाजा एफडीआर नकदी की तरह ही है। शुक्रवार को हालांकि एफएमसी ने पूर्व स्थिति बहाल कर दी और एक्सचेंजों को नकद मार्जिन के दायित्व के तौर पर एफडीआर स्वीकार करने की छूट दे दी।
एफएमसी की पूर्वानुमति से जिंस एक्सचेंज वायदा बाजार में उतारचढ़ाव को देखते हुए मार्जिन और स्पेशल मार्जिन लगा सकते हैं। कुछ वैश्विक जिंस मसलन सोना, चांदी, कच्चा तेल और रिफाइंस सोया तेल आदि सीधे तौर पर अमेरिका व यूरोप के बाजार से जुड़ाव रखते हैं और इनमें शाम के सत्र में तेज उतारचढ़ाव होता है। इसके परिणामस्वरूप कारोबारियों की कारोबारी सीमा स्वत: ही सिकुड़ जाती है। अगर किसी कारोबारी ने अपनी पूरी क्षमता के हिसाब से पोजीशन ली होती है और कीमतों में बहुत ज्यादा उतारचढ़ाव होता है तो क्लाइंट को या तो उस सौदे को बेचना होता है या फिर दूसरे दिन मार्जिन की रकम जमा करानी होती है। ऐसे में उनकी कारोबारी सीमा तब सिकुड़ जाती है जब कीमतों में शाम के सत्र में काफी उतारचढ़ाव होता है। ऐंजल ब्रोकिंग के सहायक निदेशक नवीन माथुर ने कहा - एफएमसी की तरफ से पुराने फैसले को बहाल करने से सदस्य ब्रोकरों को फायदा मिल सकता है। (BS Hindi)
7 जून को वायदा बाजार आयोग ने सभी एक्सचेंजों को नकद मार्जिन के दायित्व के तौर पर एफडीआर स्वीकार नहीं करने का निर्देश दिया था। हालांकि ब्रोकिंग फर्मों ने इस कदम की आलोचना की थी। उनका कहना था कि एफडीआर की प्राप्ति बैंक में नकद जमा कराने के बाद ही होती है, लिहाजा एफडीआर नकदी की तरह ही है। शुक्रवार को हालांकि एफएमसी ने पूर्व स्थिति बहाल कर दी और एक्सचेंजों को नकद मार्जिन के दायित्व के तौर पर एफडीआर स्वीकार करने की छूट दे दी।
एफएमसी की पूर्वानुमति से जिंस एक्सचेंज वायदा बाजार में उतारचढ़ाव को देखते हुए मार्जिन और स्पेशल मार्जिन लगा सकते हैं। कुछ वैश्विक जिंस मसलन सोना, चांदी, कच्चा तेल और रिफाइंस सोया तेल आदि सीधे तौर पर अमेरिका व यूरोप के बाजार से जुड़ाव रखते हैं और इनमें शाम के सत्र में तेज उतारचढ़ाव होता है। इसके परिणामस्वरूप कारोबारियों की कारोबारी सीमा स्वत: ही सिकुड़ जाती है। अगर किसी कारोबारी ने अपनी पूरी क्षमता के हिसाब से पोजीशन ली होती है और कीमतों में बहुत ज्यादा उतारचढ़ाव होता है तो क्लाइंट को या तो उस सौदे को बेचना होता है या फिर दूसरे दिन मार्जिन की रकम जमा करानी होती है। ऐसे में उनकी कारोबारी सीमा तब सिकुड़ जाती है जब कीमतों में शाम के सत्र में काफी उतारचढ़ाव होता है। ऐंजल ब्रोकिंग के सहायक निदेशक नवीन माथुर ने कहा - एफएमसी की तरफ से पुराने फैसले को बहाल करने से सदस्य ब्रोकरों को फायदा मिल सकता है। (BS Hindi)
14 जून 2012
खरीफ बुवाई पर अल्प वर्षा के प्रभाव का आकलन जून अंत में
मानसून में देरी के बुवाई पर प्रभाव पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी: पवार
मानसून का मौजूदा हाल :- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार दूसरे सप्ताह में मानसून पश्चिमी तट और पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय हो पाया है जबकि दूसरे सप्ताह में सामान्यतौर पर मानसून देश के ज्यादा हिस्से में सक्रिय हो जाता है।
मानसूनी बारिश कम होने और इसकी प्रगति धीमी होने के कारण देश में खरीफ की बुवाई प्रभावित होने की आशंका पैदा होने लगी है। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने भी माना है कि मानसूनी बारिश में देरी हो रही है लेकिन खरीफ की बुवाई पर इसके प्रभाव के बारे में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। अगर मानसूनी बारिश में कमी बनी रहती है तो जून के अंत में खरीफ फसलों की बुवाई पर इसके प्रभाव का आकलन लगाया जा सकेगा।
मानसून में देरी से बुवाई प्रभावित होने के बारे में पूछे गए सवाल पर पवार ने कहा कि अभी कुछ भी कहना मुश्किल है। उन्होंने बताया कि इससे पहले जून 2008 में मानसूनी बारिश में देरी हुई थी लेकिन जुलाई व अगस्त में अच्छी बारिश हुई। यह स्थिति 2008 में पैदा हुई थी। इस साल मानसून में देरी हो रही है। इसके संबंध में वह इस महीने के अंतिम सप्ताह में कोई निष्कर्ष निकाल पाएंगे।
पवार ने बताया कि कुछ इलाकों में किसानों ने धान की बुवाई के लिए खेत तैयार करना शुरू कर दिया है। खरीफ में धान के अलावा दलहन, तिलहन और कपास की मुख्य रूप से खेती होती है। भारतीय कृषि के लिए जीवन रेखा दक्षिण-पश्चिम मानसून इस साल चार दिन की देरी से पांच जून को केरल पहुंचा। इसके बाद मानसून पश्चिम तटीय क्षेत्रों को पूर्वोत्तर राज्यों में छह जून को आगे बढ़ा।
छह जून को समाप्त मानसून के पहले सप्ताह में देश में बारिश करीब 32 फीसदी कम रही। देश में कृषि क्षेत्र के लिए मानसूनी बारिश बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि सिर्फ 40 फीसदी खेतिहर जमीन ही सिंचित है। कृषि क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में करीब 15 फीसदी का योगदान करता है। जबकि इस पर 60 फीसदी आबादी निर्भर है। पिछले दो वर्षों 2010 और 2011 में अच्छी बारिश होने की वजह से रिकॉर्ड उत्पादन हुआ। (Business Bhaskar)
मानसून का मौजूदा हाल :- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार दूसरे सप्ताह में मानसून पश्चिमी तट और पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रिय हो पाया है जबकि दूसरे सप्ताह में सामान्यतौर पर मानसून देश के ज्यादा हिस्से में सक्रिय हो जाता है।
मानसूनी बारिश कम होने और इसकी प्रगति धीमी होने के कारण देश में खरीफ की बुवाई प्रभावित होने की आशंका पैदा होने लगी है। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने भी माना है कि मानसूनी बारिश में देरी हो रही है लेकिन खरीफ की बुवाई पर इसके प्रभाव के बारे में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। अगर मानसूनी बारिश में कमी बनी रहती है तो जून के अंत में खरीफ फसलों की बुवाई पर इसके प्रभाव का आकलन लगाया जा सकेगा।
मानसून में देरी से बुवाई प्रभावित होने के बारे में पूछे गए सवाल पर पवार ने कहा कि अभी कुछ भी कहना मुश्किल है। उन्होंने बताया कि इससे पहले जून 2008 में मानसूनी बारिश में देरी हुई थी लेकिन जुलाई व अगस्त में अच्छी बारिश हुई। यह स्थिति 2008 में पैदा हुई थी। इस साल मानसून में देरी हो रही है। इसके संबंध में वह इस महीने के अंतिम सप्ताह में कोई निष्कर्ष निकाल पाएंगे।
पवार ने बताया कि कुछ इलाकों में किसानों ने धान की बुवाई के लिए खेत तैयार करना शुरू कर दिया है। खरीफ में धान के अलावा दलहन, तिलहन और कपास की मुख्य रूप से खेती होती है। भारतीय कृषि के लिए जीवन रेखा दक्षिण-पश्चिम मानसून इस साल चार दिन की देरी से पांच जून को केरल पहुंचा। इसके बाद मानसून पश्चिम तटीय क्षेत्रों को पूर्वोत्तर राज्यों में छह जून को आगे बढ़ा।
छह जून को समाप्त मानसून के पहले सप्ताह में देश में बारिश करीब 32 फीसदी कम रही। देश में कृषि क्षेत्र के लिए मानसूनी बारिश बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि सिर्फ 40 फीसदी खेतिहर जमीन ही सिंचित है। कृषि क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में करीब 15 फीसदी का योगदान करता है। जबकि इस पर 60 फीसदी आबादी निर्भर है। पिछले दो वर्षों 2010 और 2011 में अच्छी बारिश होने की वजह से रिकॉर्ड उत्पादन हुआ। (Business Bhaskar)
विदेशियों को सस्ता गेहूं देने की तैयारी
आर एस राणा नई दिल्ली
घरेलू उपभोक्ताओं को भले ही ऊंचे दाम पर आटा खरीदना पड़ रहा हो, लेकिन केंद्र सरकार ने विदेशियों को सस्ता गेहूं देने की पूरी तैयारी कर ली है। खाद्य मंत्रालय ने सस्ते दाम पर 20 लाख टन गेहूं का निर्यात करने की योजना बनाई है जिससे सरकार को लगभग 1,556 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ेगा। हालांकि, इस बारे में फैसला प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में गठित खाद्य पर उच्चाधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) को करना है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 20 लाख टन गेहूं निर्यात करने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। चालू रबी विपणन सीजन में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने 1,285 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की दर से गेहूं की खरीद की है। अन्य खर्चे जोडऩे के बाद इस गेहूं की इकोनॉमिक लागत 18,225 रुपये प्रति टन बैठ रही है, जबकि खाद्य मंत्रालय को उम्मीद है कि इसका बिक्री भाव उसे 10,445 रुपये प्रति टन मिल जाएगा। इस आधार पर 20 लाख टन गेहूं का निर्यात करने में केंद्र सरकार को 1,556 करोड़ रुपये का घाटा उठाना होगा। निर्यात सार्वजनिक कंपनियों के माध्यम से ही करने की योजना है।
गेहूं निर्यातक फर्म के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 20 लाख टन गेहूं का निर्यात करने पर घाटा खाद्य मंत्रालय के अनुमान से कहीं ज्यादा होने की संभावना है। सरकार ने इकोनॉमिक लागत के आधार पर घाटे का आकलन किया है, लेकिन इसमें गोदाम से बंदरगाह तक की परिवहन लागत शामिल नहीं है। एफसीआई के अनुसार चालू रबी विपणन सीजन के आधार पर गेहूं की इकोनॉमिक लागत 18,225 रुपये प्रति टन है तथा लुधियाना से कांडला बंदरगाह तक का रेल भाड़ा करीब 1,460 रुपये प्रति टन होता है। इस आधार पर बंदरगाह पर पहुंच गेहूं का भाव 19,680.50 रुपये प्रति टन हो जाएगा, इसलिए घाटा खाद्य मंत्रालय के अनुमान से ज्यादा होगा।
हाल ही में सार्वजनिक कंपनी एसटीसी द्वारा गेहूं निर्यात के लिए मांगी गई निविदा में कंपनियों ने खरीद के लिए 150 से 230 डॉलर प्रति टन (एफओबी) के आधार पर भाव कोट किया था तथा इस भाव पर भी केवल छह कंपनियों ने मात्र 5.5 लाख टन गेहूं की खरीद में रुचि दिखाई थी।
केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का रिकॉर्ड स्टॉक जमा हो चुका है। पहली जून को सरकारी गोदामों में 824.39 लाख टन खाद्यान्न का बंपर स्टॉक था। इसमें गेहूं का स्टॉक 501.69 लाख टन है तथा गेहूं की सरकारी खरीद अभी चल रही है। कुल स्टॉक के मुकाबले सरकार के पास भंडारण क्षमता कम है, जबकि पहली अक्टूबर से धान की सरकारी खरीद शुरू हो जाएगी। इसलिए सरकार किसी भी कीमत पर सरकारी गोदामों को हल्का करना चाहती है।
किसकी योजना
खाद्य मंत्रालय ने बनाई है सस्ते दाम पर 20 लाख टन गेहूं के निर्यात की योजना
कितना घाटा
इससे सरकार को उठाना पड़ेगा 1,556 करोड़ रुपये का घाटा
कौन लेगा निर्णय
इस बारे में फैसला करेगा प्रणब की अध्यक्षता वाला ईजीओएम (Business Bhaskar....R S Rana)
घरेलू उपभोक्ताओं को भले ही ऊंचे दाम पर आटा खरीदना पड़ रहा हो, लेकिन केंद्र सरकार ने विदेशियों को सस्ता गेहूं देने की पूरी तैयारी कर ली है। खाद्य मंत्रालय ने सस्ते दाम पर 20 लाख टन गेहूं का निर्यात करने की योजना बनाई है जिससे सरकार को लगभग 1,556 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ेगा। हालांकि, इस बारे में फैसला प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में गठित खाद्य पर उच्चाधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह (ईजीओएम) को करना है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 20 लाख टन गेहूं निर्यात करने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। चालू रबी विपणन सीजन में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने 1,285 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की दर से गेहूं की खरीद की है। अन्य खर्चे जोडऩे के बाद इस गेहूं की इकोनॉमिक लागत 18,225 रुपये प्रति टन बैठ रही है, जबकि खाद्य मंत्रालय को उम्मीद है कि इसका बिक्री भाव उसे 10,445 रुपये प्रति टन मिल जाएगा। इस आधार पर 20 लाख टन गेहूं का निर्यात करने में केंद्र सरकार को 1,556 करोड़ रुपये का घाटा उठाना होगा। निर्यात सार्वजनिक कंपनियों के माध्यम से ही करने की योजना है।
गेहूं निर्यातक फर्म के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 20 लाख टन गेहूं का निर्यात करने पर घाटा खाद्य मंत्रालय के अनुमान से कहीं ज्यादा होने की संभावना है। सरकार ने इकोनॉमिक लागत के आधार पर घाटे का आकलन किया है, लेकिन इसमें गोदाम से बंदरगाह तक की परिवहन लागत शामिल नहीं है। एफसीआई के अनुसार चालू रबी विपणन सीजन के आधार पर गेहूं की इकोनॉमिक लागत 18,225 रुपये प्रति टन है तथा लुधियाना से कांडला बंदरगाह तक का रेल भाड़ा करीब 1,460 रुपये प्रति टन होता है। इस आधार पर बंदरगाह पर पहुंच गेहूं का भाव 19,680.50 रुपये प्रति टन हो जाएगा, इसलिए घाटा खाद्य मंत्रालय के अनुमान से ज्यादा होगा।
हाल ही में सार्वजनिक कंपनी एसटीसी द्वारा गेहूं निर्यात के लिए मांगी गई निविदा में कंपनियों ने खरीद के लिए 150 से 230 डॉलर प्रति टन (एफओबी) के आधार पर भाव कोट किया था तथा इस भाव पर भी केवल छह कंपनियों ने मात्र 5.5 लाख टन गेहूं की खरीद में रुचि दिखाई थी।
केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का रिकॉर्ड स्टॉक जमा हो चुका है। पहली जून को सरकारी गोदामों में 824.39 लाख टन खाद्यान्न का बंपर स्टॉक था। इसमें गेहूं का स्टॉक 501.69 लाख टन है तथा गेहूं की सरकारी खरीद अभी चल रही है। कुल स्टॉक के मुकाबले सरकार के पास भंडारण क्षमता कम है, जबकि पहली अक्टूबर से धान की सरकारी खरीद शुरू हो जाएगी। इसलिए सरकार किसी भी कीमत पर सरकारी गोदामों को हल्का करना चाहती है।
किसकी योजना
खाद्य मंत्रालय ने बनाई है सस्ते दाम पर 20 लाख टन गेहूं के निर्यात की योजना
कितना घाटा
इससे सरकार को उठाना पड़ेगा 1,556 करोड़ रुपये का घाटा
कौन लेगा निर्णय
इस बारे में फैसला करेगा प्रणब की अध्यक्षता वाला ईजीओएम (Business Bhaskar....R S Rana)
एमईपी हटने से प्याज निर्यात को मिला दम
न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) की बाध्यता खत्म होने के बाद प्याज का
निर्यात रफ्तार पकडऩे लगा है। जिससे प्याज किसानों की लागत निकलने लगी है।
दरअसल बंपर उत्पादन के कारण प्याज के दाम उत्पादन लागत से भी नीचे चले गए
थे, जो अब निर्यात के दम पर सुधरने शुरू हो गए हैं।
बीते माह सरकार ने दो माह (2 जुलाई 2012 तक) के लिए एमईपी की बाध्यता खत्म कर दी थी। इसका परिणाम यह हुआ कि मई में 1.71 लाख टन प्याज निर्यात हुआ, जो अप्रैल में निर्यात 89 हजार टन की तुलना में 90 फीसदी ज्यादा है। बीते साल की समान अवधि से भी यह करीब 17 फीसदी ज्यादा है।
प्याज निर्यातक केबल कोचर ने कहा कि एमईपी हटने से प्याज के निर्यात ने जोर पकड़ा है। इस समय बांग्लादेश, मलयेशिया, दुबई और कोलंबो को प्याज का निर्यात हो रहा है। उनका कहना है कि बंपर उत्पादन के कारण घरेलू बाजार में प्याज सस्ता है, जिससे निर्यात मांग अच्छी है। महाराष्ट्र की पिंपलगांव मंडी के प्याज कारोबारी महेंद्र ठक्कर कहते हैं - निर्यात मांग बढऩे से इसके दाम 50-70 रुपये सुधरकर 400 से 550 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। अगले माह दाम 50 से 100 रुपये और चढऩे की संभावना हैं। दिल्ली में प्याज का थोक भाव 400 से 700 रुपये प्रति क्विंटल है।
राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास संघ के निदेशक आर. पी. गुप्ता कहते हैं - उत्पादन लागत 300 से 400 रुपये प्रति क्विंटल है और मंडी में इसका भाव 400 से 500 रुपये प्रति क्विंटल है। नई फसल की आवक के समय तो भाव 250 से 350 रुपये प्रति क्विंटल था, लेकिन अब किसानों की लागत निकलने लगी है। (BS Hindi)
बीते माह सरकार ने दो माह (2 जुलाई 2012 तक) के लिए एमईपी की बाध्यता खत्म कर दी थी। इसका परिणाम यह हुआ कि मई में 1.71 लाख टन प्याज निर्यात हुआ, जो अप्रैल में निर्यात 89 हजार टन की तुलना में 90 फीसदी ज्यादा है। बीते साल की समान अवधि से भी यह करीब 17 फीसदी ज्यादा है।
प्याज निर्यातक केबल कोचर ने कहा कि एमईपी हटने से प्याज के निर्यात ने जोर पकड़ा है। इस समय बांग्लादेश, मलयेशिया, दुबई और कोलंबो को प्याज का निर्यात हो रहा है। उनका कहना है कि बंपर उत्पादन के कारण घरेलू बाजार में प्याज सस्ता है, जिससे निर्यात मांग अच्छी है। महाराष्ट्र की पिंपलगांव मंडी के प्याज कारोबारी महेंद्र ठक्कर कहते हैं - निर्यात मांग बढऩे से इसके दाम 50-70 रुपये सुधरकर 400 से 550 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। अगले माह दाम 50 से 100 रुपये और चढऩे की संभावना हैं। दिल्ली में प्याज का थोक भाव 400 से 700 रुपये प्रति क्विंटल है।
राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास संघ के निदेशक आर. पी. गुप्ता कहते हैं - उत्पादन लागत 300 से 400 रुपये प्रति क्विंटल है और मंडी में इसका भाव 400 से 500 रुपये प्रति क्विंटल है। नई फसल की आवक के समय तो भाव 250 से 350 रुपये प्रति क्विंटल था, लेकिन अब किसानों की लागत निकलने लगी है। (BS Hindi)
13 जून 2012
आम आदमी के लिए कड़वा दशहरी
मलिहाबादी दशहरी आम की आवक धीमे-धीमे शुरू हो गई है, लेकिन इस साल इसकी
मिठास आम आदमी की पहुंच से बाहर है। प्रतिकूल मौसम की मार से दशहरी की
पैदावार घटी है, जिससे उपभोक्ताओं को फलों के राजा आम के स्वाद के लिए जेब
थोड़ी ज्यादा ढीली करनी पड़ रही है। उत्पादक इलाकों में दशहरी की कीमत
पिछले साल से 30 फीसदी ज्यादा है और यह फिलहाल 20 से 30 रुपये प्रति
किलोग्राम है। दिल्ली के खुदरा बाजार में भी दशहरी 50 से 70 रुपये प्रति
किलो बिक रहा है।
अखिल भारतीय आम उत्पादक संघ के अध्यक्ष इंसराम अली कहते हैं - देर से ही सही दशहरी बाजार में आना शुरू हो गया है, लेकिन मौसम में भारी उतार-चढ़ाव के कारण उत्पादन कम है, जिसकी वजह से यह पिछले साल से महंगा है। मलिहाबाद के आम उत्पादक शकील बताते हैं कि फिलहाल बाजार में उपलब्ध ज्यादातर दशहरी कृत्रिम रूप से पकाया हुआ है, पर दो-चार दिन बाद डाल का पका दशहरी आने लगेगा। शकील के मुताबिक इस साल अच्छी गुणवत्ता वाले दशहरी की कीमत 20 से लेकर 30 रुपये प्रति किलो रहेगी। ये भाव बीते साल से 30 फीसदी ज्यादा है। उत्तर प्रदेश नर्सरी संघ के अध्यक्ष शिवसरन सिंह भी मानते हैं कि उत्पादन घटने के कारण दशहरी महंगा है। सिंह ने कहा कि शुरुआत में तो दशहरी का भाव 25 से 30 रुपये प्रति किलो रहेगा, लेकिन बाद में आवक बढऩे पर इसमें थोड़ी गिरावट आ सकती है। फिर भी दशहरी का स्वाद बीते साल से महंगा ही होगा। अली कहते हैं कि शुरुआती अनुमान के मुताबिक दशहरी का उत्पादन 20 से 25 फीसदी घट सकता है। (BS Hindi)
अखिल भारतीय आम उत्पादक संघ के अध्यक्ष इंसराम अली कहते हैं - देर से ही सही दशहरी बाजार में आना शुरू हो गया है, लेकिन मौसम में भारी उतार-चढ़ाव के कारण उत्पादन कम है, जिसकी वजह से यह पिछले साल से महंगा है। मलिहाबाद के आम उत्पादक शकील बताते हैं कि फिलहाल बाजार में उपलब्ध ज्यादातर दशहरी कृत्रिम रूप से पकाया हुआ है, पर दो-चार दिन बाद डाल का पका दशहरी आने लगेगा। शकील के मुताबिक इस साल अच्छी गुणवत्ता वाले दशहरी की कीमत 20 से लेकर 30 रुपये प्रति किलो रहेगी। ये भाव बीते साल से 30 फीसदी ज्यादा है। उत्तर प्रदेश नर्सरी संघ के अध्यक्ष शिवसरन सिंह भी मानते हैं कि उत्पादन घटने के कारण दशहरी महंगा है। सिंह ने कहा कि शुरुआत में तो दशहरी का भाव 25 से 30 रुपये प्रति किलो रहेगा, लेकिन बाद में आवक बढऩे पर इसमें थोड़ी गिरावट आ सकती है। फिर भी दशहरी का स्वाद बीते साल से महंगा ही होगा। अली कहते हैं कि शुरुआती अनुमान के मुताबिक दशहरी का उत्पादन 20 से 25 फीसदी घट सकता है। (BS Hindi)
सोया पर तेजी का साया
सोयाबीन की कीमतें उच्चस्तर पर बनी हुई हैं। स्पेशल कैश मार्जिन में कटौती
और मॉनसून में देरी सोयाबीन की कीमतों को मजबूती प्रदान कर सकती हैं। लेकिन
वैश्विक एवं घरेलू मांग में गिरावट और रकबे में बढ़ोतरी की खबरें कीमतों
में गिरावट की वजह भी बन सकती हैं। वायदा बाजार की चाल और हाजिर बाजार में
सुस्ती के कारण फिलहाल सोयाबीन सबसे ज्यादा जोखिम वाली कृषि जिंस के रूप
में देखी जा रही है।
सोयाबीन की कीमतों में आने वाले समय में और मजबूती आने वाली है या फिर अब कीमतें चरम पर पहुंच गई है? इस पर बाजार के जानकारों की राय अलग-अलग है। कुछ लोगों का मानना है कि फिलहाल सोयाबीन जोखिम के दायरे में पहुंच चुका है। इसलिए निवेशकों को सोच समझकर निवेश की सलाह दी जा रही है। ऐंजल कमोडिटी की नलिनी राव कहती हैं - 'स्पेशल मार्जिन में कटौती और मॉनसून में हो रही देरी से कीमतों को और मजबूती मिलेगी। फिलहाल बाजार में मांग के हिसाब से आवक कम है और बुआई सीजन शुरू हो चुका है। ऐसे में फसल तैयार होने में तीन महीने का समय लगने वाला है, जो कीमतों को नीचे आने से रोकेगा। फिलहाल कुछ सप्ताह तक कीमतों में मजबूत बनी रह सकती है।'
रुपये में लगातार हो रही गिरावट के कारण आयात महंगा होता जा रहा है, जबकि घरेलू बाजार में मांग अच्छी होने से कीमतें मजबूत हुई हैं। इस समय हाजिर और वायदा बाजार में सोयाबीन की कीमतें 3400 रुपये प्रति क्ंिवटल के आसपास चल रही हैं। इस साल जनवरी से सोयाबीन की कीमतों में करीब 1000 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हो चुकी है और सितंबर के मुकाबले इसमें 1500 रुपये प्रति क्ंिवटल से भी ज्यादा की उछाल नजर आ रही है। सोपा के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल के अनुसार सोयाबीन की घरेलू मांग अच्छी है, जिसके कारण फिलहाल कीमतों में कमी नहीं होने वाली है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें अधिक होने और रुपये में गिरावट से कीमतों में और मजबूती आने वाली है।
इस साल किसानों को सोयाबीन की रिकॉर्ड कीमत मिलने की वजह से वे इसकी खेती में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं। अभी तक देश में 84,100 हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बुआई हो चुकी है, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले करीब 1.5 फीसदी अधिक है। पिछले सीजन में देश में 103 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुआई हुई थी। किसानों के रुझान को देखते हुए उम्मीद है कि इस साल सोयाबीन के रकबे में 10-15 फीसदी का इजाफा हो सकता है। (B S Hindi)
सोयाबीन की कीमतों में आने वाले समय में और मजबूती आने वाली है या फिर अब कीमतें चरम पर पहुंच गई है? इस पर बाजार के जानकारों की राय अलग-अलग है। कुछ लोगों का मानना है कि फिलहाल सोयाबीन जोखिम के दायरे में पहुंच चुका है। इसलिए निवेशकों को सोच समझकर निवेश की सलाह दी जा रही है। ऐंजल कमोडिटी की नलिनी राव कहती हैं - 'स्पेशल मार्जिन में कटौती और मॉनसून में हो रही देरी से कीमतों को और मजबूती मिलेगी। फिलहाल बाजार में मांग के हिसाब से आवक कम है और बुआई सीजन शुरू हो चुका है। ऐसे में फसल तैयार होने में तीन महीने का समय लगने वाला है, जो कीमतों को नीचे आने से रोकेगा। फिलहाल कुछ सप्ताह तक कीमतों में मजबूत बनी रह सकती है।'
रुपये में लगातार हो रही गिरावट के कारण आयात महंगा होता जा रहा है, जबकि घरेलू बाजार में मांग अच्छी होने से कीमतें मजबूत हुई हैं। इस समय हाजिर और वायदा बाजार में सोयाबीन की कीमतें 3400 रुपये प्रति क्ंिवटल के आसपास चल रही हैं। इस साल जनवरी से सोयाबीन की कीमतों में करीब 1000 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हो चुकी है और सितंबर के मुकाबले इसमें 1500 रुपये प्रति क्ंिवटल से भी ज्यादा की उछाल नजर आ रही है। सोपा के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल के अनुसार सोयाबीन की घरेलू मांग अच्छी है, जिसके कारण फिलहाल कीमतों में कमी नहीं होने वाली है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें अधिक होने और रुपये में गिरावट से कीमतों में और मजबूती आने वाली है।
इस साल किसानों को सोयाबीन की रिकॉर्ड कीमत मिलने की वजह से वे इसकी खेती में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं। अभी तक देश में 84,100 हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बुआई हो चुकी है, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले करीब 1.5 फीसदी अधिक है। पिछले सीजन में देश में 103 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुआई हुई थी। किसानों के रुझान को देखते हुए उम्मीद है कि इस साल सोयाबीन के रकबे में 10-15 फीसदी का इजाफा हो सकता है। (B S Hindi)
देश में अनाज का इफरात भंडार
बंपर उत्पादन और सरकारी एजेंसियों की तरफ से भारी खरीद के चलते भारतीय
खाद्य निगम के प्रशासनिक नियंत्रण में खाद्यान्न का भंडार 25.64 फीसदी
बढ़कर अब तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच रहा है। भंडारण के लिए ढंकी हुई जगह
की कमी को पूरा करने के लिए एफसीआई ने क्षेत्रीय महाप्रबंधकों को निजी
गोदामों को किराए पर लेने के लिए अधिकृत किया है। एफसीआई के आंकड़ों से पता
चलता है कि 1 जून 2012 को केंद्रीय भंडार में अनाज की मात्रा बढ़कर 824.1
लाख टन पर पहुंच गई जबकि एक साल पहले की समान अवधि में कुल 656 लाख टन अनाज
का भंडार था। कुल अनाज में करीब 1 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले मोटे
अनाज को छोड़ दें तो अनाज के भंडार में भारी उछाल आई है। हालांकि मोटे अनाज
का भंडार करीब 23 फीसदी घटकर 0.9 लाख टन पर आ गया है जबकि 1 जून 2011 को
1.2 लाख टन मोटा अनाज मौजूद था।
हालांकि अनाज के उत्पादन में कुल मिलाकर 3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और यह इस साल 25.25 करोड़ टन हो गया है जबकि पिछले साल यह 24.48 करोड़ टन था। कृषि मंत्री ने अपने तीसरे अग्रिम अनुमान में हालांकि कहा है कि उत्पादन का यह नया रिकॉर्ड होगा।
एफसीआई हर दिन न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 34 लाख टन गेहूं की खरीद कर रहा है और एफसीआई 1 जून तक 342.7 लाख टन गेहूं की खरीद कर चुका है, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 80 लाख टन ज्यादा है। नियमों के मुताबिक 1 जुलाई 2012 तक एफसीआई को बफर स्टॉक के तौर पर 98 लाख टन और रणनीतिक रिजर्व के तौर पर 20 लाख टन चावल रखने की दरकार है। इसी तरह इस तारीख को बफर व रणनीतिक भंडार के तौर पर क्रमश: 171 लाख टन व 30 लाख टन गेहूं रखने की दरकार है। ऐसे में नियमों के मुताबिक उपलब्ध स्टॉक करीब 250 फीसदी ज्यादा है।
एफसीआई के एक अधिकारी ने कहा कि इस सीजन में बंपर उत्पादन के चलते खरीद रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। लेकिन राज्यों की तरफ से कम उठाव के चलते भंडार लगातार बढ़ रहा है।
इस बीच, सरकार ने दो साल की गारंटी योजना के तहत निजी गोदामों के किराए पर लेने के लिए उदारता बरती है क्योंकि सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन और स्टेट वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन बहुत ज्यादा जगह उपलब्ध नहीं करा रहा है। सीडब्ल्यूसी के पास जहां 1 करोड़ टन से कम अनाज के भंडारण के लिए जगह है, वहीं राज्यों में एसडब्ल्यूसी के पास इतनी जगह नहीं है कि खरीदे गए और खरीदे जाने वाले अनाज का भंडारण कर सके। गोदामों की किल्लत से जूझ रहे एफसीआई ने अपने क्षेत्रीय प्रबंधकों को दो साल के लिए निजी गोदाम किराए पर लेने के लिए अधिकृत किया है। यह गारंटी अगले एक साल तक के लिए इन्हीं शर्तों पर बढ़ाई जा सकती है।
एक अधिकारी ने कहा - इसके अलावा हम लंबी अवधि के नजरिए से इसका समाधान खोज रहे हैं। एफसीआई ने सभी क्षेत्रीय प्रबंधकों को कहा है कि वे अधिकतम 4.16 रुपये प्रति क्विंटल प्रति माह के हिसाब से गोदाम किराए पर ले सकते हैं, जैसा कि निजी थोक स्टॉकिस्ट पेशकश करते हैं। हालांकि ये दरें 5.21 रुपये प्रति क्विंटल प्रति माह तक भी जा सकती हैं। (BS Hindi)
हालांकि अनाज के उत्पादन में कुल मिलाकर 3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और यह इस साल 25.25 करोड़ टन हो गया है जबकि पिछले साल यह 24.48 करोड़ टन था। कृषि मंत्री ने अपने तीसरे अग्रिम अनुमान में हालांकि कहा है कि उत्पादन का यह नया रिकॉर्ड होगा।
एफसीआई हर दिन न्यूनतम समर्थन मूल्य पर 34 लाख टन गेहूं की खरीद कर रहा है और एफसीआई 1 जून तक 342.7 लाख टन गेहूं की खरीद कर चुका है, जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 80 लाख टन ज्यादा है। नियमों के मुताबिक 1 जुलाई 2012 तक एफसीआई को बफर स्टॉक के तौर पर 98 लाख टन और रणनीतिक रिजर्व के तौर पर 20 लाख टन चावल रखने की दरकार है। इसी तरह इस तारीख को बफर व रणनीतिक भंडार के तौर पर क्रमश: 171 लाख टन व 30 लाख टन गेहूं रखने की दरकार है। ऐसे में नियमों के मुताबिक उपलब्ध स्टॉक करीब 250 फीसदी ज्यादा है।
एफसीआई के एक अधिकारी ने कहा कि इस सीजन में बंपर उत्पादन के चलते खरीद रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। लेकिन राज्यों की तरफ से कम उठाव के चलते भंडार लगातार बढ़ रहा है।
इस बीच, सरकार ने दो साल की गारंटी योजना के तहत निजी गोदामों के किराए पर लेने के लिए उदारता बरती है क्योंकि सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन और स्टेट वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन बहुत ज्यादा जगह उपलब्ध नहीं करा रहा है। सीडब्ल्यूसी के पास जहां 1 करोड़ टन से कम अनाज के भंडारण के लिए जगह है, वहीं राज्यों में एसडब्ल्यूसी के पास इतनी जगह नहीं है कि खरीदे गए और खरीदे जाने वाले अनाज का भंडारण कर सके। गोदामों की किल्लत से जूझ रहे एफसीआई ने अपने क्षेत्रीय प्रबंधकों को दो साल के लिए निजी गोदाम किराए पर लेने के लिए अधिकृत किया है। यह गारंटी अगले एक साल तक के लिए इन्हीं शर्तों पर बढ़ाई जा सकती है।
एक अधिकारी ने कहा - इसके अलावा हम लंबी अवधि के नजरिए से इसका समाधान खोज रहे हैं। एफसीआई ने सभी क्षेत्रीय प्रबंधकों को कहा है कि वे अधिकतम 4.16 रुपये प्रति क्विंटल प्रति माह के हिसाब से गोदाम किराए पर ले सकते हैं, जैसा कि निजी थोक स्टॉकिस्ट पेशकश करते हैं। हालांकि ये दरें 5.21 रुपये प्रति क्विंटल प्रति माह तक भी जा सकती हैं। (BS Hindi)
सीबॉट में मक्का के मूल्य में तेजी जारी
सीबॉट में मक्का के दाम 5.98 डॉलर प्रति बुशेल पर रहे
विदेशी बाजार में मक्का के मूल्य उच्च स्तर पर बने रहे। शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (सीबॉट) में मक्का वायदा के कारोबार में थोड़ी कमी रही लेकिन मूल्य में मजबूती का ही रुख रहा। पिछले सप्ताह अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) की रिपोर्ट में उत्पादन घटने की संभावना जताए जाने के कारण तेजी आई थी।
सीबॉट में जुलाई डिलीवरी मक्का के दाम 0.13 फीसदी बढ़कर 5.98 डॉलर प्रति बुशेल हो गए। पिछले शुक्रवार को भाव ने 6.05 डॉलर प्रति बुशेल का दो सप्ताह का उच्च स्तर छू लिया था। हालांकि बाद में थोड़ी गिरावट आ गई थी। एक विश्लेषक ने कहा कि मक्का के दाम अभी भी मजबूत बने हुए हैं। पिछले सप्ताह के उच्च स्तर से मूल्य में मामूली ही गिरावट आई।
पिछले सप्ताह यूएसडीए ने सूखे के हालात के कारण अमेरिका में मक्का की पैदावार घटने का अनुमान जताया था। विश्लेषकों के अनुसार अगर सूखे के हालात जुलाई में भी जारी रहे तो पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
इस सप्ताह अमेरिका में पिछले सीजन के मक्का के बकाया स्टॉक पर फोकस ज्यादा हो सकता है। विश्लेषकों का अनुमान है कि यूएसडीए अपनी अगली रिपोर्ट में स्टॉक घटने की संभावना जताएगा। गेहूं महंगा होने की वजह से मक्का की खपत में बढ़ोतरी हुई। (Business Bhaskar)
विदेशी बाजार में मक्का के मूल्य उच्च स्तर पर बने रहे। शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (सीबॉट) में मक्का वायदा के कारोबार में थोड़ी कमी रही लेकिन मूल्य में मजबूती का ही रुख रहा। पिछले सप्ताह अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) की रिपोर्ट में उत्पादन घटने की संभावना जताए जाने के कारण तेजी आई थी।
सीबॉट में जुलाई डिलीवरी मक्का के दाम 0.13 फीसदी बढ़कर 5.98 डॉलर प्रति बुशेल हो गए। पिछले शुक्रवार को भाव ने 6.05 डॉलर प्रति बुशेल का दो सप्ताह का उच्च स्तर छू लिया था। हालांकि बाद में थोड़ी गिरावट आ गई थी। एक विश्लेषक ने कहा कि मक्का के दाम अभी भी मजबूत बने हुए हैं। पिछले सप्ताह के उच्च स्तर से मूल्य में मामूली ही गिरावट आई।
पिछले सप्ताह यूएसडीए ने सूखे के हालात के कारण अमेरिका में मक्का की पैदावार घटने का अनुमान जताया था। विश्लेषकों के अनुसार अगर सूखे के हालात जुलाई में भी जारी रहे तो पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
इस सप्ताह अमेरिका में पिछले सीजन के मक्का के बकाया स्टॉक पर फोकस ज्यादा हो सकता है। विश्लेषकों का अनुमान है कि यूएसडीए अपनी अगली रिपोर्ट में स्टॉक घटने की संभावना जताएगा। गेहूं महंगा होने की वजह से मक्का की खपत में बढ़ोतरी हुई। (Business Bhaskar)
सदस्यता लें
संदेश (Atom)