राजकोट January 28, 2011
अरंडी की कीमतों में तेजी को और बल मिल सकता है क्योंकि बाजार में इसकी तंग आपूर्ति को देखते हुए दामों में और बढ़ोतरी का अनुमान लगाया जा रहा है। हाजिर बाजर में इसके दाम अब तक 880 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा बढ़ चुके हैं। इसके अलावा वायदा बाजार में भी इसके भाव लगातार ऊपर की ओर बने हुए हैं। साल की पहली तारीख यानी 1 जनवरी को हाजिर बाजार में अरंडी के दाम 3,940 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर थे। लेकिन 25 जनवरी तक इसके दाम 887.50 रुपये बढ़कर 4,827 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गए हैं। वायदा बाजार की बात करें तो यहां भी भाव में तेजी का सफर जारी है। राजकोट कमोडिटी एक्सचेंज (आरसीएक्स) में 25 जनवरी तक इसके दाम प्रति क्विंटल 557 रुपये बढ़कर 4,229 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गए हैं। इस बीच, नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में भी अरंडी का वायदा भाव 666 रुपये प्रति क्विंटल बढ़कर 4,580 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गया है। इसके पहले 1 जनवरी के यह 3,914 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर था। उद्योग जानकारों के मुताबिक मांग की तुलना में अरंडी की आपूर्ति कम रहने की वजह से इसके दाम लगातार चढ़ रहे हैं। जानकारों का कहना है कि इस समय प्रति दिन कम से कम 75,000 से 80,000 बोरी की मांग है जबकि इसकी आपूर्ति करीब आधी यानी 40,000 से 50,000 बोरी के करीब है। ऐसे में इसके दामों में इजाफा होना लाजिमी है। हालांकि उद्योग सूत्रों का अनुमान है कि आगे चलकर अरंडी की आपूर्ति तेज होगी क्योंकि इस साल अरंडी की फसल ज्यादा होने का अनुमान है। पिछले साल देश में अरंडी का उत्पादन 9.3 लाख टन पर स्थिर रहा था जबकि इस साल 12 लाख टन अरंडी उत्पादन का अनुमान लगाया जा रहा है। इसका कारण यह है कि इस साल अरंडी की खेती में 30 से 35 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। उत्पादन ज्यादा होने की स्थिति में देश में इसकी आपूर्ति बढ़ेगी जिससे इसके भाव में थोड़ी नरमी आ सकती है। हालांकि अरंडी की नई फसल तैयार होने में अभी वक्त लगेगा। अच्छी मांग के मद्देनजर उद्योग का अनुमान है कि अरंडी की कीमत अभी और ऊपर चढ़ेगी। पिछले साल अरंडी बीज का औसत मूल्य 30,000 से 33,000 रुपये प्रति टन के बीच रहा था जबकि इस साल इसके 50,000 रुपये प्रति टन के स्तर पर पहुंच जाने का अनुमान है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता कहते हैं, 'अरंडी के भाव में तगड़ी उछाल का मूल कारण यह है कि इसकी मांग और आपूर्ति के बीच भारी असंतुलन पैदा हो गया है।Ó आरसीएक्स के अध्यक्ष राजू पोबारु कहते हैं, 'हाजिर बाजार में मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति काफी कम है जबकि इस समय बड़े पैमाने पर निर्यात ऑर्डर मिल रहे हैं। (BS Hindi)
31 जनवरी 2011
सांठगांठ उजागर कर पाएगा सीसीआई!
नई दिल्ली January 30, 2011
ऐसा समझा जाता है कि प्याज की कीमतों में हुए भारी उतारचढ़ाव की जांच शुरू करने वाला भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) इस क्षेत्र में किसी संगठित सांठगांठ की मौजूदगी साबित करने में नाकाम रह सकता है। एक अधिकारी ने कहा कि जांच के दायरे में आए देश के प्रमुख थोक सब्जी बाजारों में अब तक ऐसी किसी सांठगांठ का पता नहीं चल पाया है। सीसीआई ने अपने सत्यापन विभाग को 7 जनवरी को कीमतों के रुख की जांच करने को कहा था, जब दिसंबर के आखिरी हफ्ते में प्याज की कीमतें 80 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई थी।सीसीआई के अधिकारियों ने कहा कि इस जांच में प्याज कारोबार के सभी पहलुओं की जांच की जाएगी ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या यह वितरण की बाधा थी, उत्पादन में कमी के चलते ऐसा हुआ था या जमाखोरी या सांठगांठ ने कीमतों में बढ़ोतरी में योगदान दिया था।जांच करने का सीसीआई का फैसला ऐसे समय आया, जब विपक्षी दल केंद्र सरकार पर प्याज जैसी आवश्यक वस्तु की कीमतों पर लगाम कसने में नाकाम रहने का आरोप लगा रहे थे। एक अधिकारी ने कहा कि यह जांच कृषि उत्पादों के कारोबार में अनैतिक व गैर-प्रतिस्पर्धी व्यवहार पर लगाम कसने में प्रतिस्पर्धा कानून की भूमिका को सामने रखता है।यह पहला ऐसा मौका है जब आयोग (यह महज दो साल पहले पूरी तरह काम शुरू कर पाया है) ने कृषि उत्पाद में संभावित कार्टलाइजेशन की जांच के लिए कीमतों के रुख की जांच शुरू की है। प्रतिस्पर्धा कानून कार्टल को उत्पादकों, बिक्रेताओं, वितरकों, कारोबारियों के ऐसे एसोसिएशन के तौर पर पारिभाषित करता है जो समझौते के तहत किसी वस्तु या सेवाओं की बिक्री, वितरण, उत्पादन आदि पर नियंत्रण की बाबत आपस में सहमत हों।इस बीच, समाचार एजेंसी भाषा ने खबर दी है कि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के अधिकारी प्याज की कीमतों में हाल में आई तेजी के मद्देनजर उसमें कारोबारियों की भूमिका की जांच के लिए अगले हफ्ते नासिक के थोक बाजार का दौरा करेंगे। सीसीआई सूत्रों ने कहा कि अगले हफ्ते किसी भी समय सीसीआई अधिकारी एशिया के सबसे बड़े प्याज बाजार लासलगांव का दौरा कर सकते हैं। सीसीआई अधिकारियों ने बताया - हमें पता चला है कि प्याज के दाम बढऩे से पूर्व कारोबारियों ने बैठक की और उसके बाद घोषणा की गई। यह स्पष्ट रूप से बड़े कारोबारियों के प्रभाव को दर्शाता है। अन्यथा इससे पहले किसी भी मांग एवं आपूर्ति अध्ययन में प्याज के दाम में इस तरह की इतनी तेजी नहीं देखी गई। सरकार ने 75 से 80 रुपए प्रति किलो के स्तर पर पहुंचे प्याज के दामों पर लगाम लगाने के लिए कई कदम उठाए। उसके बाद सीसीआई ने 7 जनवरी को अपने महानिदेशक (जांच) को प्याज कारोबारियों के बीच सांठगांठ की जांच करने का आदेश दिया था। आयोग सूत्रों ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह जांच का विषय लगता है। इसके बाद महानिदेशक को 45 दिन के भीतर जांच रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया गया। (BS Hindi)
ऐसा समझा जाता है कि प्याज की कीमतों में हुए भारी उतारचढ़ाव की जांच शुरू करने वाला भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) इस क्षेत्र में किसी संगठित सांठगांठ की मौजूदगी साबित करने में नाकाम रह सकता है। एक अधिकारी ने कहा कि जांच के दायरे में आए देश के प्रमुख थोक सब्जी बाजारों में अब तक ऐसी किसी सांठगांठ का पता नहीं चल पाया है। सीसीआई ने अपने सत्यापन विभाग को 7 जनवरी को कीमतों के रुख की जांच करने को कहा था, जब दिसंबर के आखिरी हफ्ते में प्याज की कीमतें 80 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई थी।सीसीआई के अधिकारियों ने कहा कि इस जांच में प्याज कारोबार के सभी पहलुओं की जांच की जाएगी ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या यह वितरण की बाधा थी, उत्पादन में कमी के चलते ऐसा हुआ था या जमाखोरी या सांठगांठ ने कीमतों में बढ़ोतरी में योगदान दिया था।जांच करने का सीसीआई का फैसला ऐसे समय आया, जब विपक्षी दल केंद्र सरकार पर प्याज जैसी आवश्यक वस्तु की कीमतों पर लगाम कसने में नाकाम रहने का आरोप लगा रहे थे। एक अधिकारी ने कहा कि यह जांच कृषि उत्पादों के कारोबार में अनैतिक व गैर-प्रतिस्पर्धी व्यवहार पर लगाम कसने में प्रतिस्पर्धा कानून की भूमिका को सामने रखता है।यह पहला ऐसा मौका है जब आयोग (यह महज दो साल पहले पूरी तरह काम शुरू कर पाया है) ने कृषि उत्पाद में संभावित कार्टलाइजेशन की जांच के लिए कीमतों के रुख की जांच शुरू की है। प्रतिस्पर्धा कानून कार्टल को उत्पादकों, बिक्रेताओं, वितरकों, कारोबारियों के ऐसे एसोसिएशन के तौर पर पारिभाषित करता है जो समझौते के तहत किसी वस्तु या सेवाओं की बिक्री, वितरण, उत्पादन आदि पर नियंत्रण की बाबत आपस में सहमत हों।इस बीच, समाचार एजेंसी भाषा ने खबर दी है कि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के अधिकारी प्याज की कीमतों में हाल में आई तेजी के मद्देनजर उसमें कारोबारियों की भूमिका की जांच के लिए अगले हफ्ते नासिक के थोक बाजार का दौरा करेंगे। सीसीआई सूत्रों ने कहा कि अगले हफ्ते किसी भी समय सीसीआई अधिकारी एशिया के सबसे बड़े प्याज बाजार लासलगांव का दौरा कर सकते हैं। सीसीआई अधिकारियों ने बताया - हमें पता चला है कि प्याज के दाम बढऩे से पूर्व कारोबारियों ने बैठक की और उसके बाद घोषणा की गई। यह स्पष्ट रूप से बड़े कारोबारियों के प्रभाव को दर्शाता है। अन्यथा इससे पहले किसी भी मांग एवं आपूर्ति अध्ययन में प्याज के दाम में इस तरह की इतनी तेजी नहीं देखी गई। सरकार ने 75 से 80 रुपए प्रति किलो के स्तर पर पहुंचे प्याज के दामों पर लगाम लगाने के लिए कई कदम उठाए। उसके बाद सीसीआई ने 7 जनवरी को अपने महानिदेशक (जांच) को प्याज कारोबारियों के बीच सांठगांठ की जांच करने का आदेश दिया था। आयोग सूत्रों ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह जांच का विषय लगता है। इसके बाद महानिदेशक को 45 दिन के भीतर जांच रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया गया। (BS Hindi)
उपभोक्ताओं को राहत दे रही है सस्ती चीनी
नई दिल्ली January 30, 2011
महंगाई केे मोर्चे पर परेशान सरकार और उपभोक्ताओं को चीनी की कीमतों से राहत मिलती दिख रही है। बाजार में चीनी की आपूर्ति बढऩे के कारण इसकी कीमतों में कमी आई है। कारोबारियों का कहना है कि चीनी मिलों की बिकवाली तेज होने के कारण बाजार में आपूर्ति का दबाव है, जिससे दाम घट रहे हैं। उनके मुताबिक आपूर्ति के दबाव के बीच इन दिनों त्योहार न होने के कारण मांग कमजोर है। इस कारण भी चीनी की कीमतों में गिरावट को बल मिला है। आने वाले दिनों में भी चीनी के दाम नरम रहने की संभावना है।पिछले 20 दिनों में मुख्य उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में चीनी का एक्स फैक्ट्री भाव 200 रुपये घटकर 2800-2875 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है। इस दौरान दिल्ली के चीनी बाजार में इसके दाम घटकर 2930-3000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ चुके हैं। चीनी कारोबारी सुधीर भालोटिया ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि चीनी मिलों की बिकवाली तेज होने से बाजार में इसकी आपूर्ति ज्यादा हो रही है, जिससे इसकी कीमतों में गिरावट आ रही है। भालोटिया का कहना है कि ज्यादा आपूर्ति के बीच मांग कमजोर होने के कारण भी चीनी के दाम घटे हैं। मांग में कमी के संबध में उनका कहना है कि जनवरी माह के दौरान खास त्योहार न होने के कारण मांग कमजोर हुई है। इसके अलावा इस माह शादियां भी कम थी। ऐसे में बड़ी मात्रा में खुदरा कारोबारियों ने चीनी की खरीद नहीं की है। चीनी के दाम घटने की बात से श्रीबालाजी ट्रेडर्स के आर.पी. गर्ग भी इत्तेफाक रखते हैं। गर्ग बताते है कि सरकार ने जनवरी माह के लिए करीब 17 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया था। चीनी की यह मात्रा बाजार में आ चुकी है। इस कारण बाजार में आपूर्ति का दबाव है। यही कारण है कि चीनी की कीमतों में गिरावट आ रही है। आगे चीनी की कीमतों के बारे में भालोटिया का कहना है कि अगले माह भी चीनी के दाम बढऩे की संभावना कम है, हालांकि 50 रुपये प्रति क्विंटल का उतार-चढ़ाव जरूर आ सकता है। चीनी वर्ष 2010-11 में चीनी का उत्पादन बढऩे की संभावना है। भारतीय चीनी उद्योग भी 240-250 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान लगा रहा है। पिछले सीजन में यह आंकड़ा करीब 188 लाख टन था। उत्पादन बढऩे की वजह गन्ने की बुआई अधिक होना है। (B S Hindi)
महंगाई केे मोर्चे पर परेशान सरकार और उपभोक्ताओं को चीनी की कीमतों से राहत मिलती दिख रही है। बाजार में चीनी की आपूर्ति बढऩे के कारण इसकी कीमतों में कमी आई है। कारोबारियों का कहना है कि चीनी मिलों की बिकवाली तेज होने के कारण बाजार में आपूर्ति का दबाव है, जिससे दाम घट रहे हैं। उनके मुताबिक आपूर्ति के दबाव के बीच इन दिनों त्योहार न होने के कारण मांग कमजोर है। इस कारण भी चीनी की कीमतों में गिरावट को बल मिला है। आने वाले दिनों में भी चीनी के दाम नरम रहने की संभावना है।पिछले 20 दिनों में मुख्य उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में चीनी का एक्स फैक्ट्री भाव 200 रुपये घटकर 2800-2875 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है। इस दौरान दिल्ली के चीनी बाजार में इसके दाम घटकर 2930-3000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ चुके हैं। चीनी कारोबारी सुधीर भालोटिया ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि चीनी मिलों की बिकवाली तेज होने से बाजार में इसकी आपूर्ति ज्यादा हो रही है, जिससे इसकी कीमतों में गिरावट आ रही है। भालोटिया का कहना है कि ज्यादा आपूर्ति के बीच मांग कमजोर होने के कारण भी चीनी के दाम घटे हैं। मांग में कमी के संबध में उनका कहना है कि जनवरी माह के दौरान खास त्योहार न होने के कारण मांग कमजोर हुई है। इसके अलावा इस माह शादियां भी कम थी। ऐसे में बड़ी मात्रा में खुदरा कारोबारियों ने चीनी की खरीद नहीं की है। चीनी के दाम घटने की बात से श्रीबालाजी ट्रेडर्स के आर.पी. गर्ग भी इत्तेफाक रखते हैं। गर्ग बताते है कि सरकार ने जनवरी माह के लिए करीब 17 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया था। चीनी की यह मात्रा बाजार में आ चुकी है। इस कारण बाजार में आपूर्ति का दबाव है। यही कारण है कि चीनी की कीमतों में गिरावट आ रही है। आगे चीनी की कीमतों के बारे में भालोटिया का कहना है कि अगले माह भी चीनी के दाम बढऩे की संभावना कम है, हालांकि 50 रुपये प्रति क्विंटल का उतार-चढ़ाव जरूर आ सकता है। चीनी वर्ष 2010-11 में चीनी का उत्पादन बढऩे की संभावना है। भारतीय चीनी उद्योग भी 240-250 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान लगा रहा है। पिछले सीजन में यह आंकड़ा करीब 188 लाख टन था। उत्पादन बढऩे की वजह गन्ने की बुआई अधिक होना है। (B S Hindi)
29 जनवरी 2011
मुनाफावसूली से कपास खली में गिरावट
चालू सीजन में कपास की पैदावार पिछले साल की तुलना में करीब 41% ज्यादा होने का अनुमान है। ऐसे में कपास खली की उपलब्धता भी पिछले साल के मुकाबले ज्यादा होगी। कपास की कीमतें घरेलू बाजार में रिकार्ड स्तर पर चल रही है इससे कपास खली की कीमतों में भी चालू महीने में करीब 14.5' की तेजी आई है। लेकिन ऊंचे भावों में निवेशकों की मुनाफावसूली से शुक्रवार को वायदा बाजार में २' की गिरावट दर्ज की गई। ऊंचे भावों में कपास खली में स्टॉकिस्टों की मांग भी कमजोर है इसीलिए मौजूदा कीमतों में और भी मंदा आने की संभावना है।
वायदा में मुनाफावसूली से नरमी नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर कपास खली के फरवरी महीने के वायदा अनुबंध में निवेशकों की मुनाफावसूली से नरमी दर्ज की गई। शुक्रवार को फरवरी महीने के वायदा अनुबंध में कपास खली की कीमतें घटकर 1,175 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुई जबकि 27 जनवरी को इसका भाव बढ़कर 1,200 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था। फरवरी महीने के वायदा अनुबंध में 61,720 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। कमोडिटी विश£ेशक अभय लाखवान ने बताया कि ऊंचे भावों में स्टॉकिस्टों की मांग भी नहीं है जबकि कपास खली की उपलब्धता पिछले साल की तुलना में ज्यादा है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट आने की संभावना है। पहली जनवरी को फरवरी महीने के वायदा अनुबंध का भाव 1,048 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि 27 जनवरी को भाव बढ़कर 1,200 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था।
कपास की पैदावार ज्यादा कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक चालू सीजन में देश में कपास का उत्पादन 339 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के मुकाबले 100 लाख गांठ ज्यादा है। वर्ष 2009-10 में देश में कपास का 239 लाख गांठ का ही उत्पादन हुआ था। हालांकि उद्योग सूत्रों के अनुसार चालू फसल सीजन में देश में कपास का उत्पादन 310 लाख गांठ के करीब ही होगा।
कपास खली की उपलब्धता ज्यादा कमल कॉटन प्रा. लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि सरकार के कपास उत्पादन अनुमान 339 लाख गांठ के हिसाब से बिनौले की उपलब्धता चालू सीजन में 10 करोड़ 95 लाख क्विंटल की बैठेगी। इसके आधार पर कपास खली की उपलब्धता करीब 9 करोड़ 20 लाख क्विंटल की होनी चाहिए। उत्पादक मंडियों में अभी तक करीब 180 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी है इसलिए आगामी दिनों में पेराई होने से बिनौले की उपलब्धता बढ़ जायेगी। जिससे उत्पादक मंडियों में कपास खली की कीमतों में गिरावट की संभावना है।
ऊंचे भावों में मांग कमजोर अकोला मंडी के थोक व्यापारी बिजेंद्र गोयल ने बताया कि कपास खली की ऊंची कीमतों में स्टॉकिस्टों की मांग कमजोर है। कपास के दाम ऊंचे होने से खली की कीमतें भी बढ़ गई है। अकोला मंडी में शुक्रवार को कपास खली का भाव 1,180 रुपये, नांनदेड़ में 1,200 रुपये, गंगानगर में 1,220 रुपये और पंजाब-हरियाणा की मंडियों में 1,300 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।
उत्पादक मंडियों में कपास की आवक नार्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अनुसार उत्तर भारत की मंडियों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की मंडियों में कपास की दैनिक आवक घटकर दस हजार गांठ की रह गई है। उत्तर भारत में करीब 80-85 फीसदी कपास आ चुकी है अब केवल 15-20 फीसदी ही कपास बची हुई है इसीलिए आगामी दिनों में उत्तर भारत में आवक कम रहेगी।
लेकिन गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश की मंडियों में आवक बढ़ जायेगी। गुजरात की मंडियों में शुक्रवार को कपास की आवक करीब 50 हजार गांठ और महाराष्ट्र की मंडियों में 30 हजार गांठ की हुई। शुक्रवार को अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव बढ़कर 50,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया। (Business Bhaskar......R S Rana)
वायदा में मुनाफावसूली से नरमी नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर कपास खली के फरवरी महीने के वायदा अनुबंध में निवेशकों की मुनाफावसूली से नरमी दर्ज की गई। शुक्रवार को फरवरी महीने के वायदा अनुबंध में कपास खली की कीमतें घटकर 1,175 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुई जबकि 27 जनवरी को इसका भाव बढ़कर 1,200 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था। फरवरी महीने के वायदा अनुबंध में 61,720 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। कमोडिटी विश£ेशक अभय लाखवान ने बताया कि ऊंचे भावों में स्टॉकिस्टों की मांग भी नहीं है जबकि कपास खली की उपलब्धता पिछले साल की तुलना में ज्यादा है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट आने की संभावना है। पहली जनवरी को फरवरी महीने के वायदा अनुबंध का भाव 1,048 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि 27 जनवरी को भाव बढ़कर 1,200 रुपये प्रति क्विंटल हो गया था।
कपास की पैदावार ज्यादा कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक चालू सीजन में देश में कपास का उत्पादन 339 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) होने का अनुमान है जोकि पिछले साल के मुकाबले 100 लाख गांठ ज्यादा है। वर्ष 2009-10 में देश में कपास का 239 लाख गांठ का ही उत्पादन हुआ था। हालांकि उद्योग सूत्रों के अनुसार चालू फसल सीजन में देश में कपास का उत्पादन 310 लाख गांठ के करीब ही होगा।
कपास खली की उपलब्धता ज्यादा कमल कॉटन प्रा. लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि सरकार के कपास उत्पादन अनुमान 339 लाख गांठ के हिसाब से बिनौले की उपलब्धता चालू सीजन में 10 करोड़ 95 लाख क्विंटल की बैठेगी। इसके आधार पर कपास खली की उपलब्धता करीब 9 करोड़ 20 लाख क्विंटल की होनी चाहिए। उत्पादक मंडियों में अभी तक करीब 180 लाख गांठ कपास की आवक हो चुकी है इसलिए आगामी दिनों में पेराई होने से बिनौले की उपलब्धता बढ़ जायेगी। जिससे उत्पादक मंडियों में कपास खली की कीमतों में गिरावट की संभावना है।
ऊंचे भावों में मांग कमजोर अकोला मंडी के थोक व्यापारी बिजेंद्र गोयल ने बताया कि कपास खली की ऊंची कीमतों में स्टॉकिस्टों की मांग कमजोर है। कपास के दाम ऊंचे होने से खली की कीमतें भी बढ़ गई है। अकोला मंडी में शुक्रवार को कपास खली का भाव 1,180 रुपये, नांनदेड़ में 1,200 रुपये, गंगानगर में 1,220 रुपये और पंजाब-हरियाणा की मंडियों में 1,300 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।
उत्पादक मंडियों में कपास की आवक नार्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अनुसार उत्तर भारत की मंडियों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की मंडियों में कपास की दैनिक आवक घटकर दस हजार गांठ की रह गई है। उत्तर भारत में करीब 80-85 फीसदी कपास आ चुकी है अब केवल 15-20 फीसदी ही कपास बची हुई है इसीलिए आगामी दिनों में उत्तर भारत में आवक कम रहेगी।
लेकिन गुजरात, महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश की मंडियों में आवक बढ़ जायेगी। गुजरात की मंडियों में शुक्रवार को कपास की आवक करीब 50 हजार गांठ और महाराष्ट्र की मंडियों में 30 हजार गांठ की हुई। शुक्रवार को अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव बढ़कर 50,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया। (Business Bhaskar......R S Rana)
निर्यात के रास्ते चली सोया खली
भोपाल January 28, 2011
विदेश में सोयाबीन खली की भारी मांग के चलते इसके निर्यात में जबरदस्त इजाफा देखने को मिला है। पिछले 3-4 महीनों में इसकी मांग में दोगुनी तक बढ़ोतरी होने से इस दौरान इसका निर्यात भी खूब बढ़ा है। सितंबर 2010 की तुलना में दिसंबर 2010 में लगभग 3 लाख टन तक का इज़ाफा हुआ है। जहां सितंबर 2010 में निर्यात 2 लाख 95 हज़ार 957 टन था, वहीं दिसंबर में यह आंकड़ा बढ़कर 6 लाख 12 हज़ार 66 टन तक पहुंच गया है। दिसंबर का यह आंकड़ा पिछले साल के इसी माह की तुलना में तकरीबन 87 फीसदी से भी अधिक है। सोयाबीन प्रोसेसर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) आगे भी निर्यात में और बढ़ोतरी की बात कर रहा है। सोपा के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि सोयाबीन की नई फसल में अभी कई महीनों की देरी है। वर्तमान में दूसरे देशों से सोयाबीन खली की मांग अधिक बनी हुई है। अक्टूबर से सितंबर तक चलने वाले तेल वर्ष के अंत तक निर्यात में तेजी बनी रहेगी। ऐसे में जनवरी 2011 तक खली का निर्यात 20 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है। हालांकि सोपा की तरफ से तेल वर्ष के अंत तक 35 लाख टन निर्यात का लक्ष्य है।आंकड़ों की मानें तो पूरे तेल वर्ष के दौरान सोयाबीन खली की सबसे अधिक मांग जापान, वियतनाम, इंडोनेशिया, चीन, तुर्की, फ्रांस और कोरिया जैसे देशों में है। जहां जापान में 8 लाख 41 हज़ार 766 टन निर्यात किया गया है, वहीं वियतनाम, इंडोनेशिया, चीन और तुर्की में इसकी संख्या क्रमश: 6,06,000 टन, 2,26,556 टन, 1,11,441 टन और 21,950 टन है। इसके अलावा भारत से फं्रास में 36 हज़ार 287 टन और कोरिया में 31 हज़ार 717 टन सोयाबीन भेजा गया है। विदेशों में सोयाबीन खली की लगातार बढ़ रही मांग को लेकर निर्यातक और उत्पादक दोनों ही काफी खुश नज़र आ रहे हैं। निर्यात बढऩे से जहां एक ओर निर्यातकों की उदासी खत्म हो सकी है, वहीं किसानों को भी मौसम की मार के चलते अन्य फसलों को हुए नुकसान से कुछ राहत मिलती दिख रही है। उज्जैन के सोया उत्पादक इख़्ितयार अहमद ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस सत्र में बोई गई अधिकतर फसल पर मौसम की मार से काफी नुकसान हुआ है। ऐसे में सोयाबीन खली की बढ़ी मांग से किसानों को थोड़ी राहत अवश्य मिली है। साथ ही सोयाबीन के स्टॉक को बाज़ार तक पहुंचाने वालों की संख्या में भी तेजी आई है।उल्लेखनीय है कि देश में मध्य प्रदेश, महाराष्टï्र तथा राजस्थान जैसे राज्यों में काफी मात्रा में सोयाबीन की खेती की जाती है। देश भर का लगभग 65 फीसदी सोया उत्पादन मध्यप्रदेश में ही किया जाता है। साथ ही मध्य प्रदेश में सोया खली की भी भारी उपलब्धता है। राज्य और देश से भारी मात्रा में सोयामील का निर्यात दूसरे देशों को किया जाता है। आयातक देशों में चीन, जापान, ईरान, कोरिया, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, मलेशिया और कुवैत जैसे देश प्रमुख हैं। (BS Hindi)
विदेश में सोयाबीन खली की भारी मांग के चलते इसके निर्यात में जबरदस्त इजाफा देखने को मिला है। पिछले 3-4 महीनों में इसकी मांग में दोगुनी तक बढ़ोतरी होने से इस दौरान इसका निर्यात भी खूब बढ़ा है। सितंबर 2010 की तुलना में दिसंबर 2010 में लगभग 3 लाख टन तक का इज़ाफा हुआ है। जहां सितंबर 2010 में निर्यात 2 लाख 95 हज़ार 957 टन था, वहीं दिसंबर में यह आंकड़ा बढ़कर 6 लाख 12 हज़ार 66 टन तक पहुंच गया है। दिसंबर का यह आंकड़ा पिछले साल के इसी माह की तुलना में तकरीबन 87 फीसदी से भी अधिक है। सोयाबीन प्रोसेसर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) आगे भी निर्यात में और बढ़ोतरी की बात कर रहा है। सोपा के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि सोयाबीन की नई फसल में अभी कई महीनों की देरी है। वर्तमान में दूसरे देशों से सोयाबीन खली की मांग अधिक बनी हुई है। अक्टूबर से सितंबर तक चलने वाले तेल वर्ष के अंत तक निर्यात में तेजी बनी रहेगी। ऐसे में जनवरी 2011 तक खली का निर्यात 20 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है। हालांकि सोपा की तरफ से तेल वर्ष के अंत तक 35 लाख टन निर्यात का लक्ष्य है।आंकड़ों की मानें तो पूरे तेल वर्ष के दौरान सोयाबीन खली की सबसे अधिक मांग जापान, वियतनाम, इंडोनेशिया, चीन, तुर्की, फ्रांस और कोरिया जैसे देशों में है। जहां जापान में 8 लाख 41 हज़ार 766 टन निर्यात किया गया है, वहीं वियतनाम, इंडोनेशिया, चीन और तुर्की में इसकी संख्या क्रमश: 6,06,000 टन, 2,26,556 टन, 1,11,441 टन और 21,950 टन है। इसके अलावा भारत से फं्रास में 36 हज़ार 287 टन और कोरिया में 31 हज़ार 717 टन सोयाबीन भेजा गया है। विदेशों में सोयाबीन खली की लगातार बढ़ रही मांग को लेकर निर्यातक और उत्पादक दोनों ही काफी खुश नज़र आ रहे हैं। निर्यात बढऩे से जहां एक ओर निर्यातकों की उदासी खत्म हो सकी है, वहीं किसानों को भी मौसम की मार के चलते अन्य फसलों को हुए नुकसान से कुछ राहत मिलती दिख रही है। उज्जैन के सोया उत्पादक इख़्ितयार अहमद ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस सत्र में बोई गई अधिकतर फसल पर मौसम की मार से काफी नुकसान हुआ है। ऐसे में सोयाबीन खली की बढ़ी मांग से किसानों को थोड़ी राहत अवश्य मिली है। साथ ही सोयाबीन के स्टॉक को बाज़ार तक पहुंचाने वालों की संख्या में भी तेजी आई है।उल्लेखनीय है कि देश में मध्य प्रदेश, महाराष्टï्र तथा राजस्थान जैसे राज्यों में काफी मात्रा में सोयाबीन की खेती की जाती है। देश भर का लगभग 65 फीसदी सोया उत्पादन मध्यप्रदेश में ही किया जाता है। साथ ही मध्य प्रदेश में सोया खली की भी भारी उपलब्धता है। राज्य और देश से भारी मात्रा में सोयामील का निर्यात दूसरे देशों को किया जाता है। आयातक देशों में चीन, जापान, ईरान, कोरिया, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, मलेशिया और कुवैत जैसे देश प्रमुख हैं। (BS Hindi)
ई-सीरीज में जुड़ेंगे और नए जिंस
बेंगलुरु January 28, 2011
जिंसों के लिए इलेक्ट्रॉनिक हाजिर बाजार नैशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) अप्रैल 2011 तक एल्युमीनियम, निकल, प्लेटिनम, इस्पात सहित अन्य आधार धातुओं में अनुबंध कारोबार शुरू करने की योजना बना रहा है। यह भी एनएसईएल के ई-सीरीज अनुबंध सौदे का ही हिस्सा होंगे। फाइनैंशियल टेक्रोलॉजीज और एनएफईडी प्रवर्तित एनएसईएल अपने ई-सीरीज के तहत कैलेंडर वर्ष में कृषि जिंस में भी अनुबंध कारोबार शुरू करेगा। इस बारे में नैशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी अंजनि सिन्हा ने कहा, 'हमारे ई-सीरीज उत्पादों को अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली हैं और इसे देखते हुए अगले तीन-चार महीने में हम ई-कॉन्ट्रैक्ट के तहत आधार धातुओं में वायदा कारोबार शुरू करेंगे।Ó इस समय एनएसईएल के ई-सीरीज के तहत ई-गोल्ड, ई-सिल्वर, ई-जिंक और ई-कॉपर के नाम से चार अनुबंध हैं और रोजाना इसमें 700-800 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। एनएसईएल विभिन्न कृषि जिंसों के लिए ई-सीरीज अनुबंध शुरू करना चाहता है। सिन्हा का कहना था, 'कृषि जिंसों जैसे चना, ग्वार गम, मेंथा ऑयल, काली मिर्च को ई-कॉन्ट्रैक्ट के तहत सबसे पहले लॉन्च किया जाएगा।Ó उन्होंने कहा कि ई-सीरीज कॉन्ट्रैक्ट से खुदरा निवेशकों को ब्रोकरेज कंपनियों के जरिये छोटी मात्रा में जिंसों की खरीदारी और बिकवाली करने में मदद मिलती है।वर्ष 2011 में कारोबार की तरफ इशारा करते हुए सिन्हा ने कहा कि एक्सचेंज ई-सीरीज कॉन्ट्रैक्ट की शुरुआत के बाद रोजाना 2,000 करोड़ रुपये के कारोबार की उम्मीद कर रहा है। हालांकि उन्होंने कहा कि एनएसईएल एमसीएक्स से ग्राहकों को अपनी ओर खींचने का प्रयास नहीं करेगा। उन्होंने कहा, 'इस बारे में कोई टकराव नहीं है हम इसकी उम्मीद नहीं कर रहे हैं कि एमसीएक्स या किसी अन्य वायदा बाजार से ग्राहक हमारे पास आएंगे। यह एक नया बाजार है और इसके निवेशक भी कुछ अलग होंगे।Ó स्पॉट एक्सचेंज कृषि सहकारिता संगठनों जैसे नैफेड के साथ मिलकर विभिन्न कृषि जिंसों की बिक्री कर रहा है। एक्सचेंज एमएमटीसी की आयातित दालों की बिक्री हाजिर बाजार में कर रहा है। सिन्हा ने कहा कि वह एमएमटीसी के साथ पिग आयरन बेचने के लिए बातचीत कर रहे है। (BS Hindi)
जिंसों के लिए इलेक्ट्रॉनिक हाजिर बाजार नैशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) अप्रैल 2011 तक एल्युमीनियम, निकल, प्लेटिनम, इस्पात सहित अन्य आधार धातुओं में अनुबंध कारोबार शुरू करने की योजना बना रहा है। यह भी एनएसईएल के ई-सीरीज अनुबंध सौदे का ही हिस्सा होंगे। फाइनैंशियल टेक्रोलॉजीज और एनएफईडी प्रवर्तित एनएसईएल अपने ई-सीरीज के तहत कैलेंडर वर्ष में कृषि जिंस में भी अनुबंध कारोबार शुरू करेगा। इस बारे में नैशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी अंजनि सिन्हा ने कहा, 'हमारे ई-सीरीज उत्पादों को अच्छी प्रतिक्रियाएं मिली हैं और इसे देखते हुए अगले तीन-चार महीने में हम ई-कॉन्ट्रैक्ट के तहत आधार धातुओं में वायदा कारोबार शुरू करेंगे।Ó इस समय एनएसईएल के ई-सीरीज के तहत ई-गोल्ड, ई-सिल्वर, ई-जिंक और ई-कॉपर के नाम से चार अनुबंध हैं और रोजाना इसमें 700-800 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। एनएसईएल विभिन्न कृषि जिंसों के लिए ई-सीरीज अनुबंध शुरू करना चाहता है। सिन्हा का कहना था, 'कृषि जिंसों जैसे चना, ग्वार गम, मेंथा ऑयल, काली मिर्च को ई-कॉन्ट्रैक्ट के तहत सबसे पहले लॉन्च किया जाएगा।Ó उन्होंने कहा कि ई-सीरीज कॉन्ट्रैक्ट से खुदरा निवेशकों को ब्रोकरेज कंपनियों के जरिये छोटी मात्रा में जिंसों की खरीदारी और बिकवाली करने में मदद मिलती है।वर्ष 2011 में कारोबार की तरफ इशारा करते हुए सिन्हा ने कहा कि एक्सचेंज ई-सीरीज कॉन्ट्रैक्ट की शुरुआत के बाद रोजाना 2,000 करोड़ रुपये के कारोबार की उम्मीद कर रहा है। हालांकि उन्होंने कहा कि एनएसईएल एमसीएक्स से ग्राहकों को अपनी ओर खींचने का प्रयास नहीं करेगा। उन्होंने कहा, 'इस बारे में कोई टकराव नहीं है हम इसकी उम्मीद नहीं कर रहे हैं कि एमसीएक्स या किसी अन्य वायदा बाजार से ग्राहक हमारे पास आएंगे। यह एक नया बाजार है और इसके निवेशक भी कुछ अलग होंगे।Ó स्पॉट एक्सचेंज कृषि सहकारिता संगठनों जैसे नैफेड के साथ मिलकर विभिन्न कृषि जिंसों की बिक्री कर रहा है। एक्सचेंज एमएमटीसी की आयातित दालों की बिक्री हाजिर बाजार में कर रहा है। सिन्हा ने कहा कि वह एमएमटीसी के साथ पिग आयरन बेचने के लिए बातचीत कर रहे है। (BS Hindi)
चीनी निर्यात की अनुमति पर अभी विचार नहीं
मुंबई 01 28, 2011
केंद्र सरकार फिलहाल खुले सामान्य लाइसेंस नियम (ओजीएल) के तहत मध्यम अवधि के लिए चीनी निर्यात की अनुमति देने पर कोई विचार नहीं कर रही है। खाद्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इस तरह के किसी भी प्रस्ताव पर फिलहाल कोई विचार नहीं किया जा रहा है और न ही इस मसले को मंत्रियों के समूह के सामने पेश किए जाने का इरादा है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा, 'खाद्य मंत्रालय का मुख्य एजेंडा इस समय खाद्य सुरक्षा है। देश में चीनी उत्पादन के वास्तविक आंकड़े उपलब्ध होने के बाद ही चीनी निर्यात की समीक्षा की जाएगी और तभी निर्यात के संबंध में विचार किया जा सकता है।Ó उल्लेखनीय है कि इस साल जनवरी के पहले सप्ताह में मंत्रियों के समूह ने अपने फैसले में देश में बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति के मद्देनजर चीनी निर्यात कोटे पर रोक लगा दी थी और अपने फैसले में कहा था कि बाद में चीनी निर्यात की अनुमति पर विचार किया जाएगा। सूत्रों ने बताया कि पहले ही इस मसले को खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से मंत्रियों के समूह के पास भेज दिया गया था। चीनी निर्यात पर रोक लगा दिए जाने से निर्यातक पूर्व निर्धारित चीनी निर्यात कोटे का निर्यात नहीं कर सकेंगे, जिसके फरवरी माह से शुरू होने की संभावना थी। इस समय अंतरराष्टï्रीय बाजार में चीनी की ऊंची कीमतों के मद्देनजर चीनी मिलों और निर्यातकों को जबरदस्त कमाई की उम्मीद थी। इसके चलते वे सरकार से लगातार चीनी निर्यात पर लगी रोक हटाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार ने निर्यात पर रोक लगाकर उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने इस साल देश में चीनी उत्पादन बेहतर रहने का अनुमान लगाते हुए पहले खुले सामान्य लाइसेंस नियम के तहत 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी थी। आधिकारिक सूत्रों ने कहा, 'घरेलू बाजार में चीनी जैसी आवश्यक वस्तुओं की मांग और आपूर्ति की स्थिति को देखते हुए खाद्य मंत्रालय आगे कोई फैसला लेगा। उत्पादन के वास्तविक आंकड़ों की समीक्षा के बाद आगे निर्यात के मसले पर विचार किया जाएगा।Ó अधिकारी ने कहा कि देश में खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए अंतरराष्टï्रीय बाजारों में लाभ के बेहतरीन मौके हमें गंवाने पड़ेंगे। इस समय वैश्विक बाजारों में चीनी की जबरदस्त मांग है। इसके चलते वहां चीनी के दामों में तेजी बनी हुई है। भारतीय निर्यातक चाहते हैं कि चीनी निर्यात के लिए फरवरी सबसे अच्छा महीना साबित हो सकता है क्योंकि फरवरी के बाद वैश्विक बाजारों में ब्राजील से चीनी की आपूर्ति होने लगेगी। ऐसे में भारत फरवरी माह तक चीनी के ऊंचे दामों का फायदा उठा सकता है। हालांकि बाढ़ और अन्य वजह से ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में इस साल चीनी उत्पादन में कमी की आशंका प्रकट की गई है। इससे अंतरराष्टï्रीय बाजारों में चीनी की आपूर्ति को लेकर तंगी बनी रह सकती है। भारत में इस साल 2.45 से 2.50 करोड़ टन चीनी उत्पादन का अनुमान लगाया गया है। यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में 30 फीसदी ज्यादा है। पिछले चीनी वर्ष में देश में केवल 1.89 करोड़ टन चीनी का उत्पादन हुआ था जबकि देश की इसकी सालाना खपत 2.30 करोड़ टन है। (BS Hindi)
केंद्र सरकार फिलहाल खुले सामान्य लाइसेंस नियम (ओजीएल) के तहत मध्यम अवधि के लिए चीनी निर्यात की अनुमति देने पर कोई विचार नहीं कर रही है। खाद्य मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इस तरह के किसी भी प्रस्ताव पर फिलहाल कोई विचार नहीं किया जा रहा है और न ही इस मसले को मंत्रियों के समूह के सामने पेश किए जाने का इरादा है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा, 'खाद्य मंत्रालय का मुख्य एजेंडा इस समय खाद्य सुरक्षा है। देश में चीनी उत्पादन के वास्तविक आंकड़े उपलब्ध होने के बाद ही चीनी निर्यात की समीक्षा की जाएगी और तभी निर्यात के संबंध में विचार किया जा सकता है।Ó उल्लेखनीय है कि इस साल जनवरी के पहले सप्ताह में मंत्रियों के समूह ने अपने फैसले में देश में बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति के मद्देनजर चीनी निर्यात कोटे पर रोक लगा दी थी और अपने फैसले में कहा था कि बाद में चीनी निर्यात की अनुमति पर विचार किया जाएगा। सूत्रों ने बताया कि पहले ही इस मसले को खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से मंत्रियों के समूह के पास भेज दिया गया था। चीनी निर्यात पर रोक लगा दिए जाने से निर्यातक पूर्व निर्धारित चीनी निर्यात कोटे का निर्यात नहीं कर सकेंगे, जिसके फरवरी माह से शुरू होने की संभावना थी। इस समय अंतरराष्टï्रीय बाजार में चीनी की ऊंची कीमतों के मद्देनजर चीनी मिलों और निर्यातकों को जबरदस्त कमाई की उम्मीद थी। इसके चलते वे सरकार से लगातार चीनी निर्यात पर लगी रोक हटाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार ने निर्यात पर रोक लगाकर उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। उल्लेखनीय है कि सरकार ने इस साल देश में चीनी उत्पादन बेहतर रहने का अनुमान लगाते हुए पहले खुले सामान्य लाइसेंस नियम के तहत 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी थी। आधिकारिक सूत्रों ने कहा, 'घरेलू बाजार में चीनी जैसी आवश्यक वस्तुओं की मांग और आपूर्ति की स्थिति को देखते हुए खाद्य मंत्रालय आगे कोई फैसला लेगा। उत्पादन के वास्तविक आंकड़ों की समीक्षा के बाद आगे निर्यात के मसले पर विचार किया जाएगा।Ó अधिकारी ने कहा कि देश में खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए अंतरराष्टï्रीय बाजारों में लाभ के बेहतरीन मौके हमें गंवाने पड़ेंगे। इस समय वैश्विक बाजारों में चीनी की जबरदस्त मांग है। इसके चलते वहां चीनी के दामों में तेजी बनी हुई है। भारतीय निर्यातक चाहते हैं कि चीनी निर्यात के लिए फरवरी सबसे अच्छा महीना साबित हो सकता है क्योंकि फरवरी के बाद वैश्विक बाजारों में ब्राजील से चीनी की आपूर्ति होने लगेगी। ऐसे में भारत फरवरी माह तक चीनी के ऊंचे दामों का फायदा उठा सकता है। हालांकि बाढ़ और अन्य वजह से ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में इस साल चीनी उत्पादन में कमी की आशंका प्रकट की गई है। इससे अंतरराष्टï्रीय बाजारों में चीनी की आपूर्ति को लेकर तंगी बनी रह सकती है। भारत में इस साल 2.45 से 2.50 करोड़ टन चीनी उत्पादन का अनुमान लगाया गया है। यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में 30 फीसदी ज्यादा है। पिछले चीनी वर्ष में देश में केवल 1.89 करोड़ टन चीनी का उत्पादन हुआ था जबकि देश की इसकी सालाना खपत 2.30 करोड़ टन है। (BS Hindi)
आपूर्ति की तंगी से चढ़ रहे हैं अरंडी के भाव
राजकोट January 28, 2011
अरंडी की कीमतों में तेजी को और बल मिल सकता है क्योंकि बाजार में इसकी तंग आपूर्ति को देखते हुए दामों में और बढ़ोतरी का अनुमान लगाया जा रहा है। हाजिर बाजर में इसके दाम अब तक 880 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा बढ़ चुके हैं। इसके अलावा वायदा बाजार में भी इसके भाव लगातार ऊपर की ओर बने हुए हैं। साल की पहली तारीख यानी 1 जनवरी को हाजिर बाजार में अरंडी के दाम 3,940 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर थे। लेकिन 25 जनवरी तक इसके दाम 887.50 रुपये बढ़कर 4,827 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गए हैं। वायदा बाजार की बात करें तो यहां भी भाव में तेजी का सफर जारी है। राजकोट कमोडिटी एक्सचेंज (आरसीएक्स) में 25 जनवरी तक इसके दाम प्रति क्विंटल 557 रुपये बढ़कर 4,229 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गए हैं। इस बीच, नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में भी अरंडी का वायदा भाव 666 रुपये प्रति क्विंटल बढ़कर 4,580 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गया है। इसके पहले 1 जनवरी के यह 3,914 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर था। उद्योग जानकारों के मुताबिक मांग की तुलना में अरंडी की आपूर्ति कम रहने की वजह से इसके दाम लगातार चढ़ रहे हैं। जानकारों का कहना है कि इस समय प्रति दिन कम से कम 75,000 से 80,000 बोरी की मांग है जबकि इसकी आपूर्ति करीब आधी यानी 40,000 से 50,000 बोरी के करीब है। ऐसे में इसके दामों में इजाफा होना लाजिमी है। हालांकि उद्योग सूत्रों का अनुमान है कि आगे चलकर अरंडी की आपूर्ति तेज होगी क्योंकि इस साल अरंडी की फसल ज्यादा होने का अनुमान है। पिछले साल देश में अरंडी का उत्पादन 9.3 लाख टन पर स्थिर रहा था जबकि इस साल 12 लाख टन अरंडी उत्पादन का अनुमान लगाया जा रहा है। इसका कारण यह है कि इस साल अरंडी की खेती में 30 से 35 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। उत्पादन ज्यादा होने की स्थिति में देश में इसकी आपूर्ति बढ़ेगी जिससे इसके भाव में थोड़ी नरमी आ सकती है। हालांकि अरंडी की नई फसल तैयार होने में अभी वक्त लगेगा। अच्छी मांग के मद्देनजर उद्योग का अनुमान है कि अरंडी की कीमत अभी और ऊपर चढ़ेगी। पिछले साल अरंडी बीज का औसत मूल्य 30,000 से 33,000 रुपये प्रति टन के बीच रहा था जबकि इस साल इसके 50,000 रुपये प्रति टन के स्तर पर पहुंच जाने का अनुमान है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता कहते हैं, 'अरंडी के भाव में तगड़ी उछाल का मूल कारण यह है कि इसकी मांग और आपूर्ति के बीच भारी असंतुलन पैदा हो गया है।Ó आरसीएक्स के अध्यक्ष राजू पोबारु कहते हैं, 'हाजिर बाजार में मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति काफी कम है जबकि इस समय बड़े पैमाने पर निर्यात ऑर्डर मिल रहे हैं। (BS Hindi)
अरंडी की कीमतों में तेजी को और बल मिल सकता है क्योंकि बाजार में इसकी तंग आपूर्ति को देखते हुए दामों में और बढ़ोतरी का अनुमान लगाया जा रहा है। हाजिर बाजर में इसके दाम अब तक 880 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा बढ़ चुके हैं। इसके अलावा वायदा बाजार में भी इसके भाव लगातार ऊपर की ओर बने हुए हैं। साल की पहली तारीख यानी 1 जनवरी को हाजिर बाजार में अरंडी के दाम 3,940 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर थे। लेकिन 25 जनवरी तक इसके दाम 887.50 रुपये बढ़कर 4,827 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गए हैं। वायदा बाजार की बात करें तो यहां भी भाव में तेजी का सफर जारी है। राजकोट कमोडिटी एक्सचेंज (आरसीएक्स) में 25 जनवरी तक इसके दाम प्रति क्विंटल 557 रुपये बढ़कर 4,229 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गए हैं। इस बीच, नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) में भी अरंडी का वायदा भाव 666 रुपये प्रति क्विंटल बढ़कर 4,580 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर पहुंच गया है। इसके पहले 1 जनवरी के यह 3,914 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर था। उद्योग जानकारों के मुताबिक मांग की तुलना में अरंडी की आपूर्ति कम रहने की वजह से इसके दाम लगातार चढ़ रहे हैं। जानकारों का कहना है कि इस समय प्रति दिन कम से कम 75,000 से 80,000 बोरी की मांग है जबकि इसकी आपूर्ति करीब आधी यानी 40,000 से 50,000 बोरी के करीब है। ऐसे में इसके दामों में इजाफा होना लाजिमी है। हालांकि उद्योग सूत्रों का अनुमान है कि आगे चलकर अरंडी की आपूर्ति तेज होगी क्योंकि इस साल अरंडी की फसल ज्यादा होने का अनुमान है। पिछले साल देश में अरंडी का उत्पादन 9.3 लाख टन पर स्थिर रहा था जबकि इस साल 12 लाख टन अरंडी उत्पादन का अनुमान लगाया जा रहा है। इसका कारण यह है कि इस साल अरंडी की खेती में 30 से 35 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। उत्पादन ज्यादा होने की स्थिति में देश में इसकी आपूर्ति बढ़ेगी जिससे इसके भाव में थोड़ी नरमी आ सकती है। हालांकि अरंडी की नई फसल तैयार होने में अभी वक्त लगेगा। अच्छी मांग के मद्देनजर उद्योग का अनुमान है कि अरंडी की कीमत अभी और ऊपर चढ़ेगी। पिछले साल अरंडी बीज का औसत मूल्य 30,000 से 33,000 रुपये प्रति टन के बीच रहा था जबकि इस साल इसके 50,000 रुपये प्रति टन के स्तर पर पहुंच जाने का अनुमान है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता कहते हैं, 'अरंडी के भाव में तगड़ी उछाल का मूल कारण यह है कि इसकी मांग और आपूर्ति के बीच भारी असंतुलन पैदा हो गया है।Ó आरसीएक्स के अध्यक्ष राजू पोबारु कहते हैं, 'हाजिर बाजार में मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति काफी कम है जबकि इस समय बड़े पैमाने पर निर्यात ऑर्डर मिल रहे हैं। (BS Hindi)
दलहन संस्थान में किसानों से रूबरू होंगे शरद पवार
भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आईआईपीआर) में दलहन के क्षेत्र में हो रहे नए शोध के बारे में जानकारी लेने तथा दलहन किसानों से रूबरू हो उनकी समस्याओं को जानने के लिए केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार शनिवार को संस्थान आएंगे। लेकिन इस कार्यक्रम में मीडिया को आमंत्रित नही किया गया है।
आईआईपीआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक और तकनीक टीम के प्रभारी डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि कृषि मंत्री का यह एक सामान्य कार्यक्रम है। इस दौरान यहां हो रहे शोध के बारे में वैज्ञानिकों से जानकारी लेंगे। वह शोध या किसी अन्य क्षेत्र में संस्थान में होने वाली वैज्ञानिकों की परेशानियों के बारे में भी जानेंगे।
उन्होंने बताया कि कृषि मंत्री पवार जिले के विभिन्न इलाकों से बुलाये गये दलहन किसानों से भी बातचीत करेंगे और उनकी समस्याओं को जानेंगे तथा उनके सवालों के जवाब भी देंगे। इसके लिये जिले भर से करीब 200 दलहन किसानों को संस्थान में आमंत्रित किया गया है।
इसके अतिरिक्त पवार संस्थान में बनाये गये क्रॉप पल्स जेनेटिक रिसर्च सेंटर का भी उद्घाटन करेंगे। उसके बाद वह झांसी के लिये रवाना हो जाएंगे, जहां से रविवार को वह ग्वालियर के कृषि संस्थान जाएंगे।
आईआईपीआर के डॉ. गुप्ता से पूछा गया कि संस्थान में आयोजित कृषि मंत्री के इस कार्यक्रम के लिये मीडिया को कोई आमंत्रण नही भेजा गया है तो इस पर उन्होंने जवाब दिया कि कृषि मंत्री कार्यालय से ऐसे निर्देश आये हैं कि मंत्री का यह कार्यक्रम केवल वैज्ञानिकों और किसानों से मिलने का है तथा इसमें किसी अन्य लोगो को आमंत्रित न किया जाए।
उन्होंने कहा कि कृषि मंत्री का यह एक रूटीन दौरा है, जिसमें वह कृषि से संबंधित शोध संस्थानों का दौरा कर वहां के हालात के बारे में जानकारी ले रहे हैं। इसलिए इस कार्यक्रम के लिये मीडिया को कोई आमंत्रण पत्र नही भेजा गया है। (Dainik Hindustan)
आईआईपीआर के वरिष्ठ वैज्ञानिक और तकनीक टीम के प्रभारी डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि कृषि मंत्री का यह एक सामान्य कार्यक्रम है। इस दौरान यहां हो रहे शोध के बारे में वैज्ञानिकों से जानकारी लेंगे। वह शोध या किसी अन्य क्षेत्र में संस्थान में होने वाली वैज्ञानिकों की परेशानियों के बारे में भी जानेंगे।
उन्होंने बताया कि कृषि मंत्री पवार जिले के विभिन्न इलाकों से बुलाये गये दलहन किसानों से भी बातचीत करेंगे और उनकी समस्याओं को जानेंगे तथा उनके सवालों के जवाब भी देंगे। इसके लिये जिले भर से करीब 200 दलहन किसानों को संस्थान में आमंत्रित किया गया है।
इसके अतिरिक्त पवार संस्थान में बनाये गये क्रॉप पल्स जेनेटिक रिसर्च सेंटर का भी उद्घाटन करेंगे। उसके बाद वह झांसी के लिये रवाना हो जाएंगे, जहां से रविवार को वह ग्वालियर के कृषि संस्थान जाएंगे।
आईआईपीआर के डॉ. गुप्ता से पूछा गया कि संस्थान में आयोजित कृषि मंत्री के इस कार्यक्रम के लिये मीडिया को कोई आमंत्रण नही भेजा गया है तो इस पर उन्होंने जवाब दिया कि कृषि मंत्री कार्यालय से ऐसे निर्देश आये हैं कि मंत्री का यह कार्यक्रम केवल वैज्ञानिकों और किसानों से मिलने का है तथा इसमें किसी अन्य लोगो को आमंत्रित न किया जाए।
उन्होंने कहा कि कृषि मंत्री का यह एक रूटीन दौरा है, जिसमें वह कृषि से संबंधित शोध संस्थानों का दौरा कर वहां के हालात के बारे में जानकारी ले रहे हैं। इसलिए इस कार्यक्रम के लिये मीडिया को कोई आमंत्रण पत्र नही भेजा गया है। (Dainik Hindustan)
28 जनवरी 2011
सैकड़ा पार करने की डगर पर तुअर
मुंबई January 27, 2011
प्याज के आंसू अभी ठीक से रुके भी नहीं हैं कि दाल की कीमतें लोगों को बेहाल करने लगी हैं। दो सप्ताह के अंदर अरहर (तुअर) दाल 30 फीसदी से भी ज्यादा महंगी हो गई। लगभग सभी दालों की तेजी से बढ़ रही कीमत की प्रमुख वजह अटकलों का बाजार गर्म होना है। बढ़ा चढ़ा कर फसल खराब होने की अफवाह फैला कर सटोरिये बाजार पर हावी होते जा रहे हैं और लोगों की थाली में दाल पतली होती जा रही है।मौसम की बेवफाई और सटोरियों की कारगुजरी के चलते थाली में दाल पतली होने लगी है। कारोबारियों का मानना है कि यही हाल रहा तो जल्द ही तुअर दाल के दाम सैकड़े को लांघ सकते हैंं। दो सप्ताह पहले थोक बाजार में तुअर 3,000 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही थी जबकि इस समय 4,800 रुपये प्रति क्ंिवटल बिक रही है। तुअर की बढ़ी कीमतें दाल पर भी दिखाई दे रही हैं। 15-20 दिन पहले तुअर दाल 60-65 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से मिल रही थी जो इस समय 85-90 रुपये किलोग्राम तक पहुंच चुकी है। कारोबारियों का कहना है कि मौजूदा हालात को देखते हुए लग रहा है कि तुअर दाल की कीमतें बेलगाम होने वाली हैं। क्योंकि कुछ भी स्पष्ट जानकारी नहीं है चारों तरफ अटकलों का बाजार गर्म हो रहा है जिससे कीमतों को और भी हवा लग रही है।कमोडिटी विशेषज्ञ मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि प्रमुख दाल उत्पादक क्षेत्रों से ऐसी खबरें आ रही हैं कि तुअर की फसल खराब हुई है। लोग 20 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक फसल खराब होने की बात कर रहे हैं। बाजार में इस तरह की अफवाहें कीमतों को बढ़ा रही हैं। क्योंकि सटोरिये पूरी तरह से सक्रिय हो गए हैं। जमाखोरी बढ़ी है, कारोबारी और किसान भी इस समय अपना माल बेचना नहीं चाह रहे हैं जिससे आपूर्ति कम हो रही है जबकि मांग तेज हैं। ऐसे में कीमतों का बढऩा तो लाजिमी है। अग्रवाल कहते हैं कि सबसे पहले सरकार को स्थिति की स्पष्ट जानकारी देनी चाहिए जिससे अटकलों का बाजार खत्म हो और कारोबारी एवं किसान अपना माल बेचने के लिए तैयार हों। जब तक अफवाहों पर काबू नहीं किया जाएगा तब तक कीमतें तेजी से ऊपर की तरफ भागती रहेंगी।तुअर सहित दूसरे दलहनों की कीमतें बढऩे की वजह बताते हुए जियोजित कॉमटे्रड की अंकिता पारिख कहती हैं कि अधिक ठंड और कुछ जगहों पर बारिश के कारण महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक में 20-30 फीसदी फसल खराब होने की खबर है। इसकी वजह से किसान और स्टॉकिस्ट ने तुअर का स्टॉक रोककर रख लिया है जिससे बाजार में तुअर दाल की कमी हो रही है और कीमतें ऊपर की तरफ भाग रही हैं। उनके अनुसार फिलहाल नई फसल आने तक कीमतें ऊपर की तरफ जाती रहेगी ऐसे में तुअर दाल की कीमत के अब तक के सारे रिकॉर्ड टूट जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।तुअर दाल की कीमतें बढ़ाने में सरकार का भी हाथ है। किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने इस बार तुअर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3,000 रुपये प्रति क्ंिवटल घोषित किया था। इसके बाद 500 रुपये प्रति क्विंटल बोनस देने का ऐलान किया। केन्द्र सरकार के अलावा कर्नाटक सरकार ने अतिरिक्त 500 रुपये प्रति क्ंिवटल बोनस देने का ऐलान करके कीमतों को और हवा दी है। इस तरह देखा जाए तो तुअर का सरकरी दाम 4,000 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच चुका है जबकि पिछले साल यह कीमत 2,300 रुपये प्रति क्विंटल थी। सरकार को उम्मीद थी कि सरकार कीमत बढ़ाने से किसानों को फायदा होने के साथ ही जमाखोरी भी रुकेगी। फायदा देखकर किसान उत्पादन ज्यादा करेंगे जिससे बढ़ती मांग को पूरा किया जा सकेगा। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस बार किसानों ने 25 फीसदी ज्यादा रकबे पर तुअर की बुआई की थी जो सरकारी नीति की वजह से ही हुआ है। सरकार को अनुमान था कि इस बार तुअर का उत्पादन 35 लाख टन से भी ज्यादा हो सकता है जबकि पिछले साल तुअर की पैदावार महज 25 लाख टन थी। (BS HIndi)
प्याज के आंसू अभी ठीक से रुके भी नहीं हैं कि दाल की कीमतें लोगों को बेहाल करने लगी हैं। दो सप्ताह के अंदर अरहर (तुअर) दाल 30 फीसदी से भी ज्यादा महंगी हो गई। लगभग सभी दालों की तेजी से बढ़ रही कीमत की प्रमुख वजह अटकलों का बाजार गर्म होना है। बढ़ा चढ़ा कर फसल खराब होने की अफवाह फैला कर सटोरिये बाजार पर हावी होते जा रहे हैं और लोगों की थाली में दाल पतली होती जा रही है।मौसम की बेवफाई और सटोरियों की कारगुजरी के चलते थाली में दाल पतली होने लगी है। कारोबारियों का मानना है कि यही हाल रहा तो जल्द ही तुअर दाल के दाम सैकड़े को लांघ सकते हैंं। दो सप्ताह पहले थोक बाजार में तुअर 3,000 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही थी जबकि इस समय 4,800 रुपये प्रति क्ंिवटल बिक रही है। तुअर की बढ़ी कीमतें दाल पर भी दिखाई दे रही हैं। 15-20 दिन पहले तुअर दाल 60-65 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से मिल रही थी जो इस समय 85-90 रुपये किलोग्राम तक पहुंच चुकी है। कारोबारियों का कहना है कि मौजूदा हालात को देखते हुए लग रहा है कि तुअर दाल की कीमतें बेलगाम होने वाली हैं। क्योंकि कुछ भी स्पष्ट जानकारी नहीं है चारों तरफ अटकलों का बाजार गर्म हो रहा है जिससे कीमतों को और भी हवा लग रही है।कमोडिटी विशेषज्ञ मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि प्रमुख दाल उत्पादक क्षेत्रों से ऐसी खबरें आ रही हैं कि तुअर की फसल खराब हुई है। लोग 20 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक फसल खराब होने की बात कर रहे हैं। बाजार में इस तरह की अफवाहें कीमतों को बढ़ा रही हैं। क्योंकि सटोरिये पूरी तरह से सक्रिय हो गए हैं। जमाखोरी बढ़ी है, कारोबारी और किसान भी इस समय अपना माल बेचना नहीं चाह रहे हैं जिससे आपूर्ति कम हो रही है जबकि मांग तेज हैं। ऐसे में कीमतों का बढऩा तो लाजिमी है। अग्रवाल कहते हैं कि सबसे पहले सरकार को स्थिति की स्पष्ट जानकारी देनी चाहिए जिससे अटकलों का बाजार खत्म हो और कारोबारी एवं किसान अपना माल बेचने के लिए तैयार हों। जब तक अफवाहों पर काबू नहीं किया जाएगा तब तक कीमतें तेजी से ऊपर की तरफ भागती रहेंगी।तुअर सहित दूसरे दलहनों की कीमतें बढऩे की वजह बताते हुए जियोजित कॉमटे्रड की अंकिता पारिख कहती हैं कि अधिक ठंड और कुछ जगहों पर बारिश के कारण महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक में 20-30 फीसदी फसल खराब होने की खबर है। इसकी वजह से किसान और स्टॉकिस्ट ने तुअर का स्टॉक रोककर रख लिया है जिससे बाजार में तुअर दाल की कमी हो रही है और कीमतें ऊपर की तरफ भाग रही हैं। उनके अनुसार फिलहाल नई फसल आने तक कीमतें ऊपर की तरफ जाती रहेगी ऐसे में तुअर दाल की कीमत के अब तक के सारे रिकॉर्ड टूट जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।तुअर दाल की कीमतें बढ़ाने में सरकार का भी हाथ है। किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने इस बार तुअर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3,000 रुपये प्रति क्ंिवटल घोषित किया था। इसके बाद 500 रुपये प्रति क्विंटल बोनस देने का ऐलान किया। केन्द्र सरकार के अलावा कर्नाटक सरकार ने अतिरिक्त 500 रुपये प्रति क्ंिवटल बोनस देने का ऐलान करके कीमतों को और हवा दी है। इस तरह देखा जाए तो तुअर का सरकरी दाम 4,000 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच चुका है जबकि पिछले साल यह कीमत 2,300 रुपये प्रति क्विंटल थी। सरकार को उम्मीद थी कि सरकार कीमत बढ़ाने से किसानों को फायदा होने के साथ ही जमाखोरी भी रुकेगी। फायदा देखकर किसान उत्पादन ज्यादा करेंगे जिससे बढ़ती मांग को पूरा किया जा सकेगा। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस बार किसानों ने 25 फीसदी ज्यादा रकबे पर तुअर की बुआई की थी जो सरकारी नीति की वजह से ही हुआ है। सरकार को अनुमान था कि इस बार तुअर का उत्पादन 35 लाख टन से भी ज्यादा हो सकता है जबकि पिछले साल तुअर की पैदावार महज 25 लाख टन थी। (BS HIndi)
पेट्रोल के साथ चलेगा एथेनॉल!
नई दिल्ली January 27, 2011
पेट्रोल में मिलाए जाने वाले नवीकरण योग्य ईंधन एथेनॉल की कीमत का जुड़ाव पेट्रोल की कीमतों के साथ हो सकता है। लेकिन इससे पहले एथेनॉल का उष्मीय महत्व, माइलेज और कर प्रोत्साहनों का समायोजन किया जाएगा। एथेनॉल कीमत पर योजना आयोग की सदस्य सुमित्रा चौधरी की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ समिति ने सुझाव दिया है कि मौजूदा तिमाही में चीनी कंपनियों के लिए एथेनॉल की कीमत 26.76 रुपये प्रति लीटर होनी चाहिए, जो पिछली तिमाही की पेट्रोल की कीमत पर आधारित है। यह कीमत मंत्रियों के समूह द्वारा पिछले साल घोषित 27 रुपये प्रति लीटर से कम है।नई कीमतें तिमाही समीक्षा के लिए पेश होंगी, जो पिछली तिमाही की पेट्रोल की कीमतों पर आधारित होंगी। कीमतों का नया फॉर्मूला पिछले फॉर्मूले से अलग होगा, जो निविदा प्रक्रिया के जरिए तय होती थी। पेट्रोल में 5 फीसदी एथेनॉल मिलाने का काम पिछले दो साल से जारी था, पर अक्टूबर 2009 में यह इसलिए रोक दिया गया था क्योंकि गन्ने की पैदावार में गिरावट आ गई थी और एथेनॉल विनिर्माताओं की तरफ से भी इसकी आपूर्ति में कमी देखी गई थी। इसे दोबारा नवंबर महीने में शुरू किया गया।एथेनॉल की कीमत 26.76 रुपये तय करने से पहले समिति ने पेट्रोल व एथेनॉल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क (क्रमश: 14.35 रुपये प्रति लीटर और 2.78 रुपये प्रति लीटर) के अंतर पर नजर रखी है और इसे तेल कंपनियों के संचालन लागत, परिवहन लागत और माइलेज में कटौती से समायोजित कर दिया है। विनियमित कीमत व्यवस्था और लागत आधारित कीमत का अध्ययन करने के बाद समिति ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट के मुताबिक, कई अध्ययनों से पता चला है कि एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल का इस्तेमाल करने पर सड़क पर वाहनों के माइलेज में कमी आती है। पर उत्सर्जन में कमी आती है। एथेनॉल को ग्रीन ईंधन माना जाता है और पेट्रोल में इसके मिलावट से कच्चे तेल के आयात पर भारत की बढ़ती निर्भरता में कमी लाने में मदद मिल सकती है। तेल कंपनियों में से कुछ ने एथेनॉल उत्पादन शुरू करने की भी योजना बनाई है। उदाहरण के तौर पर हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने साल 2008 में बिहार की दो बीमार चीनी मिलों को एथेनॉल उत्पादन के लिए खरीदा है। इन मिलों में मौजूदा तिमाही में उत्पादन शुरू होने की संभावना है। (BS Hindi)
पेट्रोल में मिलाए जाने वाले नवीकरण योग्य ईंधन एथेनॉल की कीमत का जुड़ाव पेट्रोल की कीमतों के साथ हो सकता है। लेकिन इससे पहले एथेनॉल का उष्मीय महत्व, माइलेज और कर प्रोत्साहनों का समायोजन किया जाएगा। एथेनॉल कीमत पर योजना आयोग की सदस्य सुमित्रा चौधरी की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ समिति ने सुझाव दिया है कि मौजूदा तिमाही में चीनी कंपनियों के लिए एथेनॉल की कीमत 26.76 रुपये प्रति लीटर होनी चाहिए, जो पिछली तिमाही की पेट्रोल की कीमत पर आधारित है। यह कीमत मंत्रियों के समूह द्वारा पिछले साल घोषित 27 रुपये प्रति लीटर से कम है।नई कीमतें तिमाही समीक्षा के लिए पेश होंगी, जो पिछली तिमाही की पेट्रोल की कीमतों पर आधारित होंगी। कीमतों का नया फॉर्मूला पिछले फॉर्मूले से अलग होगा, जो निविदा प्रक्रिया के जरिए तय होती थी। पेट्रोल में 5 फीसदी एथेनॉल मिलाने का काम पिछले दो साल से जारी था, पर अक्टूबर 2009 में यह इसलिए रोक दिया गया था क्योंकि गन्ने की पैदावार में गिरावट आ गई थी और एथेनॉल विनिर्माताओं की तरफ से भी इसकी आपूर्ति में कमी देखी गई थी। इसे दोबारा नवंबर महीने में शुरू किया गया।एथेनॉल की कीमत 26.76 रुपये तय करने से पहले समिति ने पेट्रोल व एथेनॉल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क (क्रमश: 14.35 रुपये प्रति लीटर और 2.78 रुपये प्रति लीटर) के अंतर पर नजर रखी है और इसे तेल कंपनियों के संचालन लागत, परिवहन लागत और माइलेज में कटौती से समायोजित कर दिया है। विनियमित कीमत व्यवस्था और लागत आधारित कीमत का अध्ययन करने के बाद समिति ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट के मुताबिक, कई अध्ययनों से पता चला है कि एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल का इस्तेमाल करने पर सड़क पर वाहनों के माइलेज में कमी आती है। पर उत्सर्जन में कमी आती है। एथेनॉल को ग्रीन ईंधन माना जाता है और पेट्रोल में इसके मिलावट से कच्चे तेल के आयात पर भारत की बढ़ती निर्भरता में कमी लाने में मदद मिल सकती है। तेल कंपनियों में से कुछ ने एथेनॉल उत्पादन शुरू करने की भी योजना बनाई है। उदाहरण के तौर पर हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने साल 2008 में बिहार की दो बीमार चीनी मिलों को एथेनॉल उत्पादन के लिए खरीदा है। इन मिलों में मौजूदा तिमाही में उत्पादन शुरू होने की संभावना है। (BS Hindi)
भंडारण का पर्याप्त इंतजाम नहीं कर पाया है एफसीआई
चंडीगढ़ January 27, 2011
उत्पादक राज्यों में भंडारण के लिए अतिरिक्त जगह की भारतीय खाद्य निगम की तलाश को झटका लगा है। ऐसी स्थिति इसके बावजूद है जब विभिन्न राज्यों ने पिछले कुछ महीनों में आवंटित अनाज पंजाब व हरियाणा जैसे अतिरेक भंडार वाले गोदामों से उठाया है और इस तरह से मौजूदा सीजन के लिए थोड़ी बहुत जगह उपलब्ध करा दी है। पहचान किए गए नए भंडारण क्षमता में से अब तक महज 10 फीसदी को ही मंजूरी दी गई है और इस तरह से खरीद करने वाली एजेंसियों के लिए वैज्ञानिक तरीके से भंडारण करने की बाबत भारी किल्लत होगी।इस रबी सीजन में 8.2 करोड़ टन गेहूं की पैदावार की संभावना है और इसका करीब 30 फीसदी सरकारी एजेंसियां खरीदती हैं। कुल खरीद का दो तिहाई हिस्सा पंजाब व हरियाणा से आता है। इस सीजन में पंजाब से 110 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा गया है जबकि पिछले साल 102 लाख टन गेहूं खरीदा गया था। इसी तरह हरियाणा से 59 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य है जबकि पिछले साल भी इतना गेहूं ही खरीदा गया था।भारतीय खाद्य निगम ने साल 2009 में भंडारण क्षमता में 150 लाख टन की कमी की पहचान की थी और इसमें से 80 लाख टन पंजाब के लिए और 40 लाख टन हरियाणा के लिए निर्धारित किया था। आज तक पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप योजना के तहत महज 10 लाख टन अनाज के भंडारण क्षमता को ही मंजूरी दी जा सकी है जबकि बाकी के लिए दोबारा बोली आमंत्रित की जाएगी।पंजाब में प्रस्तावित 80 लाख टन क्षमता में से 10 लाख टन क्षमता देश के दूसरे हिस्से में स्थानांतरित किया गया था। बाद में दूसरे राज्यों के लिए पंजाब से 20 लाख टन क्षमता का स्थानांतरण इसलिए किया गया था कि देश के बाकी हिस्सों में बढ़ती पैदावनार के चलते वहां भंडारण की अतिरिक्त क्षमता की दरकार होगी।पंजाब के खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री आदेश प्रताप सिंह कैरों के मुताबिक, सरकार ने भंडारण की प्रस्तावित अतिरिक्त क्षमता 80 लाख टन से घटाकर 50 लाख टन कर दी है और सिर्फ 45 लाख टन की नई क्षमता की मंजूरी निजी क्षेत्र (प्राइवेट एन्टप्रेन्योर गारंटी स्कीम के तहत) की तरफ से सबसे कम बोली लगाने वालों को दी गई है और यह मंजूरी भी पिछले हफ्ते दी गई है। प्रस्तावित 13 लाख टन क्षमता को दूसरे सबसे कम बोलीदाताओं के लिए रखा गया है, लेकिन यह बोली लगाने वालों के लिए उचित भी हो सकता है और नहीं भी।एफसीआई के सूत्रों के मुताबिक, खुले में भंडारण करने की सभी जगहों को खरीद करने वाले प्रमुख राज्यों की तरफ से साल 2012 के मध्य तक ढंक दिया जाएगा। पंजाब के पास 20 लाख टन भंडारण की क्षमता है और इसमें से 10.5 लाख टन खुले में है जबकि 9.5 लाख टन ढंका हुआ है। पंजाब के खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री के मुताबिक, चिंता सिर्फ भंडारण की नहीं है बल्कि वैज्ञानिक तरीके से भंडारण की है। उन्होंने कहा कि फसल को अच्छी स्थिति में रखने के लिए एफसीआई को इस प्रक्रिया में तेजी लानी चाहिए।हरियाणा के मामले में 39 लाख टन की प्रस्तावित अतिरिक्त जगह में से सिर्फ 44 लाख टन की नई क्षमता पीईजी स्कीम के तहत मंजूर किया गया है। पंजाब और हरियाणा केंद्रीय कोष में 170 लाख टन गेहूं का योगदान करते हैं और इसका बड़ा हिस्सा खुले में भंडारित होता है। मध्य प्रदेश और राजस्थान भी राष्ट्रीय कोष में योगदान देते हैं। (BS Hindi)
उत्पादक राज्यों में भंडारण के लिए अतिरिक्त जगह की भारतीय खाद्य निगम की तलाश को झटका लगा है। ऐसी स्थिति इसके बावजूद है जब विभिन्न राज्यों ने पिछले कुछ महीनों में आवंटित अनाज पंजाब व हरियाणा जैसे अतिरेक भंडार वाले गोदामों से उठाया है और इस तरह से मौजूदा सीजन के लिए थोड़ी बहुत जगह उपलब्ध करा दी है। पहचान किए गए नए भंडारण क्षमता में से अब तक महज 10 फीसदी को ही मंजूरी दी गई है और इस तरह से खरीद करने वाली एजेंसियों के लिए वैज्ञानिक तरीके से भंडारण करने की बाबत भारी किल्लत होगी।इस रबी सीजन में 8.2 करोड़ टन गेहूं की पैदावार की संभावना है और इसका करीब 30 फीसदी सरकारी एजेंसियां खरीदती हैं। कुल खरीद का दो तिहाई हिस्सा पंजाब व हरियाणा से आता है। इस सीजन में पंजाब से 110 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा गया है जबकि पिछले साल 102 लाख टन गेहूं खरीदा गया था। इसी तरह हरियाणा से 59 लाख टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य है जबकि पिछले साल भी इतना गेहूं ही खरीदा गया था।भारतीय खाद्य निगम ने साल 2009 में भंडारण क्षमता में 150 लाख टन की कमी की पहचान की थी और इसमें से 80 लाख टन पंजाब के लिए और 40 लाख टन हरियाणा के लिए निर्धारित किया था। आज तक पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप योजना के तहत महज 10 लाख टन अनाज के भंडारण क्षमता को ही मंजूरी दी जा सकी है जबकि बाकी के लिए दोबारा बोली आमंत्रित की जाएगी।पंजाब में प्रस्तावित 80 लाख टन क्षमता में से 10 लाख टन क्षमता देश के दूसरे हिस्से में स्थानांतरित किया गया था। बाद में दूसरे राज्यों के लिए पंजाब से 20 लाख टन क्षमता का स्थानांतरण इसलिए किया गया था कि देश के बाकी हिस्सों में बढ़ती पैदावनार के चलते वहां भंडारण की अतिरिक्त क्षमता की दरकार होगी।पंजाब के खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री आदेश प्रताप सिंह कैरों के मुताबिक, सरकार ने भंडारण की प्रस्तावित अतिरिक्त क्षमता 80 लाख टन से घटाकर 50 लाख टन कर दी है और सिर्फ 45 लाख टन की नई क्षमता की मंजूरी निजी क्षेत्र (प्राइवेट एन्टप्रेन्योर गारंटी स्कीम के तहत) की तरफ से सबसे कम बोली लगाने वालों को दी गई है और यह मंजूरी भी पिछले हफ्ते दी गई है। प्रस्तावित 13 लाख टन क्षमता को दूसरे सबसे कम बोलीदाताओं के लिए रखा गया है, लेकिन यह बोली लगाने वालों के लिए उचित भी हो सकता है और नहीं भी।एफसीआई के सूत्रों के मुताबिक, खुले में भंडारण करने की सभी जगहों को खरीद करने वाले प्रमुख राज्यों की तरफ से साल 2012 के मध्य तक ढंक दिया जाएगा। पंजाब के पास 20 लाख टन भंडारण की क्षमता है और इसमें से 10.5 लाख टन खुले में है जबकि 9.5 लाख टन ढंका हुआ है। पंजाब के खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री के मुताबिक, चिंता सिर्फ भंडारण की नहीं है बल्कि वैज्ञानिक तरीके से भंडारण की है। उन्होंने कहा कि फसल को अच्छी स्थिति में रखने के लिए एफसीआई को इस प्रक्रिया में तेजी लानी चाहिए।हरियाणा के मामले में 39 लाख टन की प्रस्तावित अतिरिक्त जगह में से सिर्फ 44 लाख टन की नई क्षमता पीईजी स्कीम के तहत मंजूर किया गया है। पंजाब और हरियाणा केंद्रीय कोष में 170 लाख टन गेहूं का योगदान करते हैं और इसका बड़ा हिस्सा खुले में भंडारित होता है। मध्य प्रदेश और राजस्थान भी राष्ट्रीय कोष में योगदान देते हैं। (BS Hindi)
आलू में मंदी से मुश्किल में किसान
नई दिल्ली January 27, 2011
आलू की कीमतों में गिरावट ने किसानों की मुश्किल बढ़ा दी है। नई फसल के दबाव आलू की कीमतों में लगातार गिरावट आ रही है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि वर्तमान भाव पर आलू किसानों की लागत भी नहीं निकल पा रही है। किसान और कारोबारियों का दाम कम मिलने के बारे में कहना है कि इस बार करीब-करीब सभी आलू उत्पादक इलाकों में इसकी फसल अच्छी है। जिससे इसकी आवक मंडियों में बढ़ रही है। कांफेडेरेशन ऑफ पोटेटो सीड फारमर्स (पॉस्कोन) पंजाब के महासचिव जंगबहादुर सिंह ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि राज्य में आलू के दाम नई फसल के दबाव में गिरकर 250-280 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। इस भाव पर किसानों की लागत भी नहीं निकल पा रही है। उनका कहना है कि 350-400 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर ही किसानों को फायदा होगा। इससे नीचे वे नुकसान में रहेंगे। पश्चिम बंगाल आलू-बीज व्यवसायी समिति के सदस्य अरुण कुमार घोष का भी कहना है कि इन दिनों के आलू किसानों का बुरा समय चल रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य में आलू के दाम 360-370 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं, जबकि किसानों की लागत 400 रुपये प्रति क्विंटल है। इस तरह आलू किसान घाटे में हैं। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के आलू किसान बटुकनारायण मिश्रा कहते है कि हमने 1,600 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बीज खरीदकर आलू की बुआई की थी, जिससे लागत काफी बढ़ी है। बकौल मिश्रा आलू के दाम घटने से अब किसानों को नुकसान होने लगा हैं। राष्टï्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) निदेशक आर.पी. गुप्ता भी मानते है कि किसानों को कम से कम 400-450 रुपये प्रति क्विंटल आलू के दाम मिलने चाहिए, तभी उनको आलू की खेती में फायदा होगा। नई फसल की आवक बढऩे के कारण आलू की कीमतों में नरमी आई है। दिल्ली में महीने भर में आलू के थोक भाव 360-500 रुपये से घटकर 280-420 रुपये, पश्चिम बंबाल में 500 रुपये से 370 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। कीमतों में गिरावट के संबंध में पोटेटो ऑनियन मर्चेंट ट्रेडर्स एसोसिएशन (पोमा) आजादपुर दिल्ली के अध्यक्ष त्रिलोकचंद शर्मा का कहना है इस बार सभी आलू उत्पादक राज्यों में इसकी फसल बेहतर है। इसलिए एक राज्य दूसरे राज्य को आलू की सप्लाई नहीं पा रही है, जिससे मंडियों में आलू की आवक का दबाव है। उनका कहना है कि मंडी में आलू की आवक बढ़कर 150 ट्रक हो गई है। इस कारण आलू की कीमतों में नरमी का रुख है। आगे कीमतों के बारे में उनका कहना है कि 15 फरवरी के बाद कोल्ड स्टोर में आलू जाने पर ही कीमतों में सुधार हो सकता है। कोल्ड स्टोर में आलू जाने पर भाव चढऩे की बात से घोष भी इत्तेफाक रखते हैं। उत्पादन के संबंध में गुप्ता का कहना है कि इस बार उत्तर प्रदेश में करीब 139 लाख टन, पश्चिम बंगाल में 88 लाख, पंजाब में 21 लाख और बिहार में 56 लाख टन आलू पैदा होने का अनुमान है। इस बार कुल उत्पादन 400 लाख टन से अधिक होने की संभावना है। (BS Hindi)
आलू की कीमतों में गिरावट ने किसानों की मुश्किल बढ़ा दी है। नई फसल के दबाव आलू की कीमतों में लगातार गिरावट आ रही है। हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि वर्तमान भाव पर आलू किसानों की लागत भी नहीं निकल पा रही है। किसान और कारोबारियों का दाम कम मिलने के बारे में कहना है कि इस बार करीब-करीब सभी आलू उत्पादक इलाकों में इसकी फसल अच्छी है। जिससे इसकी आवक मंडियों में बढ़ रही है। कांफेडेरेशन ऑफ पोटेटो सीड फारमर्स (पॉस्कोन) पंजाब के महासचिव जंगबहादुर सिंह ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि राज्य में आलू के दाम नई फसल के दबाव में गिरकर 250-280 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। इस भाव पर किसानों की लागत भी नहीं निकल पा रही है। उनका कहना है कि 350-400 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर ही किसानों को फायदा होगा। इससे नीचे वे नुकसान में रहेंगे। पश्चिम बंगाल आलू-बीज व्यवसायी समिति के सदस्य अरुण कुमार घोष का भी कहना है कि इन दिनों के आलू किसानों का बुरा समय चल रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य में आलू के दाम 360-370 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं, जबकि किसानों की लागत 400 रुपये प्रति क्विंटल है। इस तरह आलू किसान घाटे में हैं। उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के आलू किसान बटुकनारायण मिश्रा कहते है कि हमने 1,600 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बीज खरीदकर आलू की बुआई की थी, जिससे लागत काफी बढ़ी है। बकौल मिश्रा आलू के दाम घटने से अब किसानों को नुकसान होने लगा हैं। राष्टï्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) निदेशक आर.पी. गुप्ता भी मानते है कि किसानों को कम से कम 400-450 रुपये प्रति क्विंटल आलू के दाम मिलने चाहिए, तभी उनको आलू की खेती में फायदा होगा। नई फसल की आवक बढऩे के कारण आलू की कीमतों में नरमी आई है। दिल्ली में महीने भर में आलू के थोक भाव 360-500 रुपये से घटकर 280-420 रुपये, पश्चिम बंबाल में 500 रुपये से 370 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। कीमतों में गिरावट के संबंध में पोटेटो ऑनियन मर्चेंट ट्रेडर्स एसोसिएशन (पोमा) आजादपुर दिल्ली के अध्यक्ष त्रिलोकचंद शर्मा का कहना है इस बार सभी आलू उत्पादक राज्यों में इसकी फसल बेहतर है। इसलिए एक राज्य दूसरे राज्य को आलू की सप्लाई नहीं पा रही है, जिससे मंडियों में आलू की आवक का दबाव है। उनका कहना है कि मंडी में आलू की आवक बढ़कर 150 ट्रक हो गई है। इस कारण आलू की कीमतों में नरमी का रुख है। आगे कीमतों के बारे में उनका कहना है कि 15 फरवरी के बाद कोल्ड स्टोर में आलू जाने पर ही कीमतों में सुधार हो सकता है। कोल्ड स्टोर में आलू जाने पर भाव चढऩे की बात से घोष भी इत्तेफाक रखते हैं। उत्पादन के संबंध में गुप्ता का कहना है कि इस बार उत्तर प्रदेश में करीब 139 लाख टन, पश्चिम बंगाल में 88 लाख, पंजाब में 21 लाख और बिहार में 56 लाख टन आलू पैदा होने का अनुमान है। इस बार कुल उत्पादन 400 लाख टन से अधिक होने की संभावना है। (BS Hindi)
21 जनवरी 2011
कॉपर मूल्य में आ सकती है गर्मी
खपत - अगले महीनों में इलेक्ट्रिकल उपकरणों का सीजन होगा तो मांग बढ़ेगीइलेक्ट्रीकल उद्योग की मांग बढऩे से कॉपर की कीमतों में और भी तेजी की संभावना है। लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में कॉपर की इन्वेंट्री मध्य जुलाई से अभी तक 16.2 फीसदी घट चुकी है। 17 जुलाई को एलएमई में 449,425 टन कॉपर की इन्वेट्री थी जबकि 14 जनवरी को इन्वेट्री घटकर 376,225 टन की रह गई। इन्वेंट्री कम होने और खपत में बढ़ोतरी होने से एलएमई में कॉपर के दाम अगस्त से अभी तक 30.7 फीसदी और घरेलू बाजार में 18 फीसदी बढ़ चुके हैं।
सारु कॉपर एलॉय सेमीस प्रा. लिमिटेड के डायरेक्टर संजीव जैन ने बताया कि फरवरी में इलेक्ट्रिकल उद्योग की कॉपर की मांग बढ़ेगी। वैसे भी भारत में कॉपर के दाम एलएमई की तेजी-मंदी पर निर्भर करते हैं जबकि एलएमई में कॉपर की इन्वेंट्री लगातार कम हो रही है जिससे कीमतों में तेजी बनी हुई है।
एलएमई में तीन माह अनुबंध के भाव चार अगस्त को 7,380 डॉलर प्रति टन थे जबकि बुधवार को कॉपर का कारोबार 9,७४२ डॉलर प्रति टन पर हो रहा था। बुधवार को शुरूआती सत्र में भाव रिकॉर्ड स्तर पर 9781 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया। चीन में कॉपर की औद्योगिक मांग लगातार बढ़ रही है जिससे तेजी को बल मिला है। उन्होंने बताया कि भारत में कॉपर का उत्पादन 30-35 हजार टन पर ही स्थिर बना हुआ है जबकि खपत लगातार बढ़ रही है।
हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लि. के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारत में पावर सेक्टर में निवेश बढ़ रहा है। जिससे कॉपर की खपत में इजाफा हो रहा है। पॉवर सेक्टर में मुख्य रूप से केबल, तार और ट्रांसफार्मर के निर्माण में कॉपर का उपयोग होता है। राठी पंप प्रा. लिमिटेड के डायरेक्टर रामबीर सिंह ने बताया कि अप्रैल में गर्मियों का सीजन शुरू होगा इसीलिए फरवरी-मार्च में उद्योग की कॉपर में मांग बढ़ जाएगी।
घरेलू बाजार में कॉपर आर्मेचर का भाव 425 रुपये प्रति किलो रहा। अगस्त से अभी तक कीमतों में 18 फीसदी की तेजी आ चुकी है। चार अगस्त को घरेलू बाजार में इसका भाव 360 रुपये प्रति किलो था। कॉपर की कीमतों में तेजी से फरवरी में पंप, मोटर और पंखों की कीमतों में तीन से पांच फीसदी की तेजी आने की संभावना है।
नीलकंठ मेटल ट्रेडिंग कंपनी के डायरेक्टर दीपक अग्रवाल ने बताया कि कॉपर की सबसे ज्यादा खपत इलेक्ट्रिकल उद्योग में होती है। मार्च-अप्रैल से इलेक्ट्रिक उपकरणों की मांग का सीजन शुरू हो जाता है। इसीलिए फरवरी में कॉपर की मांग बढऩे की संभावना है। एंजिल ब्रोकिंग के मेटल विश्लेेषक अनुज गुप्ता ने बताया कि मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर चालू महीने में कॉपर की कीमतों में करीब 1.8 फीसदी की तेजी आ चुकी है। पहली जनवरी को फरवरी महीने के वायदा अनुबंध में कॉपर का भाव 439 रुपये प्रति किलो था जबकि बुधवार को बढ़कर 448 रुपये प्रति किलो हो गया। बात पते की - कॉपर की सर्वाधिक खपत इलेक्ट्रिकल उद्योग में होती है। मार्च-अप्रैल से इलेक्ट्रिक उपकरणों की मांग का सीजन शुरू हो जाता है। इसीलिए फरवरी में कॉपर की मांग बढऩे की संभावना है। (Business bhaskar....R S Rana)
सारु कॉपर एलॉय सेमीस प्रा. लिमिटेड के डायरेक्टर संजीव जैन ने बताया कि फरवरी में इलेक्ट्रिकल उद्योग की कॉपर की मांग बढ़ेगी। वैसे भी भारत में कॉपर के दाम एलएमई की तेजी-मंदी पर निर्भर करते हैं जबकि एलएमई में कॉपर की इन्वेंट्री लगातार कम हो रही है जिससे कीमतों में तेजी बनी हुई है।
एलएमई में तीन माह अनुबंध के भाव चार अगस्त को 7,380 डॉलर प्रति टन थे जबकि बुधवार को कॉपर का कारोबार 9,७४२ डॉलर प्रति टन पर हो रहा था। बुधवार को शुरूआती सत्र में भाव रिकॉर्ड स्तर पर 9781 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया। चीन में कॉपर की औद्योगिक मांग लगातार बढ़ रही है जिससे तेजी को बल मिला है। उन्होंने बताया कि भारत में कॉपर का उत्पादन 30-35 हजार टन पर ही स्थिर बना हुआ है जबकि खपत लगातार बढ़ रही है।
हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लि. के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारत में पावर सेक्टर में निवेश बढ़ रहा है। जिससे कॉपर की खपत में इजाफा हो रहा है। पॉवर सेक्टर में मुख्य रूप से केबल, तार और ट्रांसफार्मर के निर्माण में कॉपर का उपयोग होता है। राठी पंप प्रा. लिमिटेड के डायरेक्टर रामबीर सिंह ने बताया कि अप्रैल में गर्मियों का सीजन शुरू होगा इसीलिए फरवरी-मार्च में उद्योग की कॉपर में मांग बढ़ जाएगी।
घरेलू बाजार में कॉपर आर्मेचर का भाव 425 रुपये प्रति किलो रहा। अगस्त से अभी तक कीमतों में 18 फीसदी की तेजी आ चुकी है। चार अगस्त को घरेलू बाजार में इसका भाव 360 रुपये प्रति किलो था। कॉपर की कीमतों में तेजी से फरवरी में पंप, मोटर और पंखों की कीमतों में तीन से पांच फीसदी की तेजी आने की संभावना है।
नीलकंठ मेटल ट्रेडिंग कंपनी के डायरेक्टर दीपक अग्रवाल ने बताया कि कॉपर की सबसे ज्यादा खपत इलेक्ट्रिकल उद्योग में होती है। मार्च-अप्रैल से इलेक्ट्रिक उपकरणों की मांग का सीजन शुरू हो जाता है। इसीलिए फरवरी में कॉपर की मांग बढऩे की संभावना है। एंजिल ब्रोकिंग के मेटल विश्लेेषक अनुज गुप्ता ने बताया कि मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर चालू महीने में कॉपर की कीमतों में करीब 1.8 फीसदी की तेजी आ चुकी है। पहली जनवरी को फरवरी महीने के वायदा अनुबंध में कॉपर का भाव 439 रुपये प्रति किलो था जबकि बुधवार को बढ़कर 448 रुपये प्रति किलो हो गया। बात पते की - कॉपर की सर्वाधिक खपत इलेक्ट्रिकल उद्योग में होती है। मार्च-अप्रैल से इलेक्ट्रिक उपकरणों की मांग का सीजन शुरू हो जाता है। इसीलिए फरवरी में कॉपर की मांग बढऩे की संभावना है। (Business bhaskar....R S Rana)
घट रही गुड़ की मिठास
नई दिल्ली January 19, 2011
मांग घटने का असर गुड़ की कीमतों पर देखा जा रहा है। इस माह गुड़ के दाम 8 फीसदी तक गिर चुके हैं। कारोबारियों का कहना है कि मकर संक्रांति बीत जाने के बाद गुड़ की मांग कम हो गई है। दरअसल इस त्योहार पर ही गुड़ की सबसे अधिक मांग रहती है। सबसे अधिक गिरावट एशिया की सबसे बड़ी मंडी मुजफ्फनगर के गुड़ बाजार में आई है, जिससे कारोबारी परेशान हैं। मुजफ्फरनगर में 25 फीसदी से अधिक कोल्हू बंद पड़े हैं। इस मंडी में गिरावट की बड़ी वजह दूसरे राज्यों से मांग में भारी गिरावट आना है।फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स मुजफ्फरनगर के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि मकर संक्रांति त्योहार बीतने के बाद देश भर में गुड़ की मांग कमजोर पड़ गई है। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के गुड़ कारोबारियों के लिए मध्य प्रदेश और गुजरात के बड़े बाजारों से मांग में भारी गिरावट आई है। उनका कहना है कि मध्य प्रदेश (एमपी)में गुड़ का उत्पादन अधिक हो रहा है। साथ ही वहां गन्ना सस्ता होने से गुड़ के दाम भी कम है। एमपी में गुड़ के दाम यूपी के 2060-2300 रुपये प्रति क्विंटल के मुकाबले 1800-2000 रुपये प्रति क्विंटल है। ऐसे में वहां के कारोबारी उत्तर प्रदेश से गुड़ नहीं खरीदने से परहेज कर रहे हैं। इसी तरह गुजरात की सूरत मंडी गुड़ के दाम यूपी 200 रुपये प्रति क्विंटल कम है। साथ ही वहां गुड़ का उत्पादन भी अधिक है, जिससे उत्तर प्रदेश के गुड़ की मांग कम है। बकौल खंडेलवाल मांग घटने से मुजफ्फनगर मंडी में इस माह गुड़ के दाम 200-250 रुपये घटकर 2060-2300 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। मकर संकांति की मांग घटने से महाराष्टï्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में भी गुड़ की कीमतों में 5 से 7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। गुड़ कारोबारी हरीशंकर मूंदड़ा भी गुड़ की कीमतों में गिरावट की बात से इत्तेफाक रखते हैं। वे बताते है कि इस साल बाजार में स्टॉकिस्ट कम दिलचस्पी ले रहे हैं। इसकी वजह उन्हे पिछले साल नुकसान होना है। खंडेलवाल इस संबंध में बताते है कि पिछले साल कारोबारी और स्टॉकिस्टों ने पहले ऊंचे भाव पर गुड़ खरीदा था, लेकिन बाद में भाव काफी गिर गए थे। ऐसे में नुकसान होने से इस बार अभी तक 4.11 लाख कट्टïे(40 किलोग्राम) गुड़ का स्टॉक हुआ है, पिछले साल यह आंकड़ा 8.97 लाख कट्टïा था। मूंदड़ा का कहना है कि गुड़ का उठाव कम होने के कारण मुजफ्फरनगर के करीब 5000 हजार कोल्हू में से 25 फीसदी कोल्हू बंद हो चुके हैं। गन्ने का रकबा बढऩे से देश में गुड़ उत्पादन का उत्पादन पिछले साल के 90 लाख कट्टïों से बढ़कर 1.05 करोड़ कट्टïा होने का अनुमान है।आने वाले दिनों में गुड़ की कीमतों के बारे में खंडेलवाल का कहना है कि आगे भी गुड़ की कीमतों में तेजी के आसार नहीं है, बल्कि गर्मियों में मांग और घटने पर गिरावट संभव है। (BS Hindi)
मांग घटने का असर गुड़ की कीमतों पर देखा जा रहा है। इस माह गुड़ के दाम 8 फीसदी तक गिर चुके हैं। कारोबारियों का कहना है कि मकर संक्रांति बीत जाने के बाद गुड़ की मांग कम हो गई है। दरअसल इस त्योहार पर ही गुड़ की सबसे अधिक मांग रहती है। सबसे अधिक गिरावट एशिया की सबसे बड़ी मंडी मुजफ्फनगर के गुड़ बाजार में आई है, जिससे कारोबारी परेशान हैं। मुजफ्फरनगर में 25 फीसदी से अधिक कोल्हू बंद पड़े हैं। इस मंडी में गिरावट की बड़ी वजह दूसरे राज्यों से मांग में भारी गिरावट आना है।फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स मुजफ्फरनगर के अध्यक्ष अरुण खंडेलवाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि मकर संक्रांति त्योहार बीतने के बाद देश भर में गुड़ की मांग कमजोर पड़ गई है। वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के गुड़ कारोबारियों के लिए मध्य प्रदेश और गुजरात के बड़े बाजारों से मांग में भारी गिरावट आई है। उनका कहना है कि मध्य प्रदेश (एमपी)में गुड़ का उत्पादन अधिक हो रहा है। साथ ही वहां गन्ना सस्ता होने से गुड़ के दाम भी कम है। एमपी में गुड़ के दाम यूपी के 2060-2300 रुपये प्रति क्विंटल के मुकाबले 1800-2000 रुपये प्रति क्विंटल है। ऐसे में वहां के कारोबारी उत्तर प्रदेश से गुड़ नहीं खरीदने से परहेज कर रहे हैं। इसी तरह गुजरात की सूरत मंडी गुड़ के दाम यूपी 200 रुपये प्रति क्विंटल कम है। साथ ही वहां गुड़ का उत्पादन भी अधिक है, जिससे उत्तर प्रदेश के गुड़ की मांग कम है। बकौल खंडेलवाल मांग घटने से मुजफ्फनगर मंडी में इस माह गुड़ के दाम 200-250 रुपये घटकर 2060-2300 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। मकर संकांति की मांग घटने से महाराष्टï्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में भी गुड़ की कीमतों में 5 से 7 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। गुड़ कारोबारी हरीशंकर मूंदड़ा भी गुड़ की कीमतों में गिरावट की बात से इत्तेफाक रखते हैं। वे बताते है कि इस साल बाजार में स्टॉकिस्ट कम दिलचस्पी ले रहे हैं। इसकी वजह उन्हे पिछले साल नुकसान होना है। खंडेलवाल इस संबंध में बताते है कि पिछले साल कारोबारी और स्टॉकिस्टों ने पहले ऊंचे भाव पर गुड़ खरीदा था, लेकिन बाद में भाव काफी गिर गए थे। ऐसे में नुकसान होने से इस बार अभी तक 4.11 लाख कट्टïे(40 किलोग्राम) गुड़ का स्टॉक हुआ है, पिछले साल यह आंकड़ा 8.97 लाख कट्टïा था। मूंदड़ा का कहना है कि गुड़ का उठाव कम होने के कारण मुजफ्फरनगर के करीब 5000 हजार कोल्हू में से 25 फीसदी कोल्हू बंद हो चुके हैं। गन्ने का रकबा बढऩे से देश में गुड़ उत्पादन का उत्पादन पिछले साल के 90 लाख कट्टïों से बढ़कर 1.05 करोड़ कट्टïा होने का अनुमान है।आने वाले दिनों में गुड़ की कीमतों के बारे में खंडेलवाल का कहना है कि आगे भी गुड़ की कीमतों में तेजी के आसार नहीं है, बल्कि गर्मियों में मांग और घटने पर गिरावट संभव है। (BS Hindi)
ठंड और पाले से उबलेगी दाल
मुंबई January 20, 2011
खाद्य महंगाई की लगातार चढ़ाई में अभी तक सिर्फ सब्जियों का ही रोना रोया जा रहा है। जल्द ही दालें भी खाद्य महंगाई में और आग लगा सकती हैं। दरअसल इस साल बेहतर रकबे के बावजूद ठंड और पाले ने लगभग 20 फीसदी फसल को नुकसान पहुंचाया है जिसका असर दलहन के भाव पर पडऩा तय लग रहा है। रिकॉर्डतोड़ ठंड ने बेहतर फसल अनुमान को गड़बड़ा दिया है। प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों में पाला पडऩे की वजह से काफी नुकसान हुआ है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक पर इसकी सबसे ज्यादा मार पड़ी है। राजस्थान के अलावा दूसरे राज्यों में भी दलहन फसल प्रभावित होने के संकेत मिल रहे हैं। इस सीजन की सबसे प्रमुख दलहन फसल अरहर (तुअर) पर पाले का सबसे ज्यादा असर पड़ा है। करीब 25 फीसदी फसल नष्टï होने की आशंका जताई जा रही है। फसल खराब होने के अलावा इसकी वजह से फसल तैयार होने में भी देरी हो सकती है। जिसका असर दालों की कीमत पर नजर भी आ रहा है। जनवरी में इनकी कीमतों में तकरीबन 3,00 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जानकारों का मानना है कि शादी विवाह का सीजन होने की वजह से भी दालों की मांग बढ़ गई है। ऐंजल ब्रोकिंग की वेदिका नार्वेकर कहती हैं, 'पाले और बारिश की वजह से फसल खराब होने की बात की जा रही है। हालांकि कोई स्पष्ट सरकारी रिपोर्ट नहीं आई है। इसके बावजूद फसल खराब होने की अटकलें तेज हैं। 20 से 40 फीसदी फसल खराब होने की आशंका लगाई जा रही है जिससे कीमतों में तेजी दिख रही है।Óनार्वेकर का कहना है कि मौजूदा मांग और फसल आने में देरी को देखते हुए अभी दलहन फसलों में 250-300 रुपये प्रति क्विंटल तक की तेजी आ सकती है। दलहन कारोबार के जानकार मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि 5 से 10 फीसदी से ज्यादा फसल खराब नहीं हुई है लेकिन इसे बढ़ा-चढ़ा पेश कर सटोरिये भाव चढ़ा रहे हैं क्योंकि अभी फसल आने में लगभग दो महीने का समय है।मौजूदा वर्ष (2010-11) में 168 लाख टन दाल उत्पादन का सरकारी लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा है। हालांकि इस साल दलहन का रकबा पिछले साल के 136.93 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 145 लाख हेक्टेयर बताया जा रहा है। देश में करीब 10 फीसदी दलहन उत्पादन करने वाले कर्नाटक में दिसंबर में हुई बारिश और बीमारियों से फसल को काफी नुकसान हुआ है। अरहर यहां की प्रमुख दलहन फसल है। कड़ाके की ठंड पडऩे से राजस्थान में भी दलहन फसलों पर प्रतिकूल असर की खबर है। (BS Hindi)
खाद्य महंगाई की लगातार चढ़ाई में अभी तक सिर्फ सब्जियों का ही रोना रोया जा रहा है। जल्द ही दालें भी खाद्य महंगाई में और आग लगा सकती हैं। दरअसल इस साल बेहतर रकबे के बावजूद ठंड और पाले ने लगभग 20 फीसदी फसल को नुकसान पहुंचाया है जिसका असर दलहन के भाव पर पडऩा तय लग रहा है। रिकॉर्डतोड़ ठंड ने बेहतर फसल अनुमान को गड़बड़ा दिया है। प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों में पाला पडऩे की वजह से काफी नुकसान हुआ है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक पर इसकी सबसे ज्यादा मार पड़ी है। राजस्थान के अलावा दूसरे राज्यों में भी दलहन फसल प्रभावित होने के संकेत मिल रहे हैं। इस सीजन की सबसे प्रमुख दलहन फसल अरहर (तुअर) पर पाले का सबसे ज्यादा असर पड़ा है। करीब 25 फीसदी फसल नष्टï होने की आशंका जताई जा रही है। फसल खराब होने के अलावा इसकी वजह से फसल तैयार होने में भी देरी हो सकती है। जिसका असर दालों की कीमत पर नजर भी आ रहा है। जनवरी में इनकी कीमतों में तकरीबन 3,00 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। जानकारों का मानना है कि शादी विवाह का सीजन होने की वजह से भी दालों की मांग बढ़ गई है। ऐंजल ब्रोकिंग की वेदिका नार्वेकर कहती हैं, 'पाले और बारिश की वजह से फसल खराब होने की बात की जा रही है। हालांकि कोई स्पष्ट सरकारी रिपोर्ट नहीं आई है। इसके बावजूद फसल खराब होने की अटकलें तेज हैं। 20 से 40 फीसदी फसल खराब होने की आशंका लगाई जा रही है जिससे कीमतों में तेजी दिख रही है।Óनार्वेकर का कहना है कि मौजूदा मांग और फसल आने में देरी को देखते हुए अभी दलहन फसलों में 250-300 रुपये प्रति क्विंटल तक की तेजी आ सकती है। दलहन कारोबार के जानकार मेहुल अग्रवाल कहते हैं कि 5 से 10 फीसदी से ज्यादा फसल खराब नहीं हुई है लेकिन इसे बढ़ा-चढ़ा पेश कर सटोरिये भाव चढ़ा रहे हैं क्योंकि अभी फसल आने में लगभग दो महीने का समय है।मौजूदा वर्ष (2010-11) में 168 लाख टन दाल उत्पादन का सरकारी लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा है। हालांकि इस साल दलहन का रकबा पिछले साल के 136.93 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 145 लाख हेक्टेयर बताया जा रहा है। देश में करीब 10 फीसदी दलहन उत्पादन करने वाले कर्नाटक में दिसंबर में हुई बारिश और बीमारियों से फसल को काफी नुकसान हुआ है। अरहर यहां की प्रमुख दलहन फसल है। कड़ाके की ठंड पडऩे से राजस्थान में भी दलहन फसलों पर प्रतिकूल असर की खबर है। (BS Hindi)
19 जनवरी 2011
निर्यातकों की मांग से कपास के मूल्य में और तेजी संभव
निर्यातकों के साथ घरेलू मिलों की मांग से कपास की कीमतें पांच से सात फीसदी बढऩे की संभावना है। पिछले सप्ताह भर में ही इसके दाम 7.1 फीसदी बढ़ चुके हैं। अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव दस जनवरी को 42,000 रुपये प्रति कैंडी (प्रति कैंडी 356 किलो) था, जो बढ़कर 45,000 रुपये प्रति कैंडी हो गया। निर्यातकों को अगले 40 दिन में 19 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलो) कपास का निर्यात करना है। नॉर्थ इंडिया कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि डीजीएफटी ने 19 लाख गांठ कपास निर्यात के लिए निर्यातकों को कोटा जारी कर दिया है।
इसमें कोलकाता की एक कंपनी को एक लाख गांठ कपास निर्यात का परमिट मिला है लेकिन ज्यादातर निर्यातकों को 500-500 गांठ निर्यात की मंजूरी मिली है। निर्यातकों को 25 फरवरी तक निर्यात करना है इसीलिए निर्यातकों की खरीद बढ़ गई है। जिससे पिछले एक सप्ताह में कपास की कीमतों में करीब 3,000 रुपये प्रति कैंडी की तेजी आ चुकी है। उधर, मंडियों में कपास की आवक पहले की तुलना में कम हो गई है। ऐसे में मौजूदा कीमतों में और भी तेजी की संभावना है।
मुक्तसर कॉटन प्रा. लि. के मैनेजिंग डायरेक्टर नवीन ग्रोवर ने बताया कि बाढ़ से पाकिस्तान, चीन और ऑस्ट्रेलिया में फसल को नुकसान हुआ है। पाकिस्तान में कपास उत्पादन 1.27 करोड़ गांठ (प्रति गांठ 170 किलो) से घटकर 1.12 करोड़ गांठ होने का अनुमान है। उधर चीन में उत्पादन घटकर 3 करोड़ गांठ और ऑस्ट्रेलिया में 40 लाख गांठ से घटकर 38 लाख गांठ (चीन और ऑस्ट्रेलिया में प्रति गांठ 240 किलो) अनुमान है।
चीन और पाकिस्तान प्रमुख उत्पादक देश है। इनमें उत्पादन कम होने के कारण ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की कीमतें पिछले साल की तुलना में करीब 70 फीसदी ज्यादा हैं। परफेक्ट कॉटन कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर चंदूलाल ठक्कर ने बताया कि अभी तक 36 लाख गांठ कपास का निर्यात हो चुका है। सरकार द्वारा तय किए गए निर्यात के लिए 55 लाख गांठ में से 19 लाख गांठ का निर्यात आगामी 40 दिन में करना है।
ऐसे में निर्यातकों की मांग और बढऩे की संभावना है, साथ ही घरेलू मिलों की मांग भी रहेगी। इसीलिए तेजी को बल मिल रहा है। न्यूयार्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में कॉटन मार्च वायदा बढ़कर 141.44 सेंट प्रति पाउंड हो गया। पिछले साल 13 जनवरी को इसका भाव 73.43 सेंट प्रति पाउंड था।
कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कॉटन एडवायजरी बोर्ड (सीएबी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार चालू सीजन में कपास का घरेलू उत्पादन 329 लाख गांठ होने का अनुमान है। जबकि पिछले साल उत्पादन 295 लाख गांठ का हुआ था। अभी तक मंडियों में 162 लाख गांठ की आवक हो चुकी है। पिछले साल इस समय तक 152 लाख गांठ की आवक हुई थी।बात पते की - चालू सीजन में कपास का घरेलू उत्पादन 329 लाख गांठ रह सकता है। जबकि पिछले साल उत्पादन 295 लाख गांठ का हुआ था। अभी तक मंडियों में 162 लाख गांठ की आवक हो चुकी है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
इसमें कोलकाता की एक कंपनी को एक लाख गांठ कपास निर्यात का परमिट मिला है लेकिन ज्यादातर निर्यातकों को 500-500 गांठ निर्यात की मंजूरी मिली है। निर्यातकों को 25 फरवरी तक निर्यात करना है इसीलिए निर्यातकों की खरीद बढ़ गई है। जिससे पिछले एक सप्ताह में कपास की कीमतों में करीब 3,000 रुपये प्रति कैंडी की तेजी आ चुकी है। उधर, मंडियों में कपास की आवक पहले की तुलना में कम हो गई है। ऐसे में मौजूदा कीमतों में और भी तेजी की संभावना है।
मुक्तसर कॉटन प्रा. लि. के मैनेजिंग डायरेक्टर नवीन ग्रोवर ने बताया कि बाढ़ से पाकिस्तान, चीन और ऑस्ट्रेलिया में फसल को नुकसान हुआ है। पाकिस्तान में कपास उत्पादन 1.27 करोड़ गांठ (प्रति गांठ 170 किलो) से घटकर 1.12 करोड़ गांठ होने का अनुमान है। उधर चीन में उत्पादन घटकर 3 करोड़ गांठ और ऑस्ट्रेलिया में 40 लाख गांठ से घटकर 38 लाख गांठ (चीन और ऑस्ट्रेलिया में प्रति गांठ 240 किलो) अनुमान है।
चीन और पाकिस्तान प्रमुख उत्पादक देश है। इनमें उत्पादन कम होने के कारण ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की कीमतें पिछले साल की तुलना में करीब 70 फीसदी ज्यादा हैं। परफेक्ट कॉटन कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर चंदूलाल ठक्कर ने बताया कि अभी तक 36 लाख गांठ कपास का निर्यात हो चुका है। सरकार द्वारा तय किए गए निर्यात के लिए 55 लाख गांठ में से 19 लाख गांठ का निर्यात आगामी 40 दिन में करना है।
ऐसे में निर्यातकों की मांग और बढऩे की संभावना है, साथ ही घरेलू मिलों की मांग भी रहेगी। इसीलिए तेजी को बल मिल रहा है। न्यूयार्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में कॉटन मार्च वायदा बढ़कर 141.44 सेंट प्रति पाउंड हो गया। पिछले साल 13 जनवरी को इसका भाव 73.43 सेंट प्रति पाउंड था।
कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कॉटन एडवायजरी बोर्ड (सीएबी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार चालू सीजन में कपास का घरेलू उत्पादन 329 लाख गांठ होने का अनुमान है। जबकि पिछले साल उत्पादन 295 लाख गांठ का हुआ था। अभी तक मंडियों में 162 लाख गांठ की आवक हो चुकी है। पिछले साल इस समय तक 152 लाख गांठ की आवक हुई थी।बात पते की - चालू सीजन में कपास का घरेलू उत्पादन 329 लाख गांठ रह सकता है। जबकि पिछले साल उत्पादन 295 लाख गांठ का हुआ था। अभी तक मंडियों में 162 लाख गांठ की आवक हो चुकी है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
शुल्क मुक्त रबर आयात की अनुमति दे सरकार : एटमा
कोच्चि January 18, 2011
प्राकृतिक रबर के आयात पर राहत देने के सरकारी ऐलान का स्वागत करते हुए टायर उद्योग ने बाजार की बदली हुई परिस्थितियों में आयात शुल्क में पूरी छूट देने की मांग की है। ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटमा) के मुताबिक, सरकारी फैसला ऐसे वक्त में आया जब प्राकृतिक रबर की कीमतें 225रुपये की ऊंचाई पर है, ऐसे में सीमा शुल्क को 7.5 फीसदी किए जाने के बाद भी आयात करना मितव्ययी नहीं है। वैश्विक बाजार में प्राकृतिक रबर की मौजूदा कीमत घरेलू बाजार के मुकाबले ज्यादा है, ऐसे में 7.5 फीसदी के आयात शुल्क पर रबर का आयात उपयुक्त नजर नहीं आता।वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर को भेजे संदेश में एटमा के चेयरमैन नीरज कंवर ने कहा है कि ऊंची कीमतों के बावजूद प्राकृतिक रबर की आपूर्ति में अनिश्चितता जारी है और टायर की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए टायर उद्योग को रबर की आपूर्ति सुनिश्चित करने में खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। एटमा ने प्राकृतिक रबर पर हाल के सरकारी फैसले पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया है और अगले एक साल में 2 लाख टन प्राकृतिक रबर के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति देने की मांग की है। इसके अलावा एटमा ने सरकार से घरेलू बाजार में रबर की उपलब्धता व खपत के बीच के अंतर के बराबर शुल्क मुक्त आयात की अनुमति वक्त-वक्त पर देने की मांग की है।एटमा के मुताबिक, चूंकि रियायती दर पर प्राकृतिक रबर के आयात का फैसला दिसंबर में लिया गया था, ऐसे में आयात की पूरी प्रक्रिया को 31 मार्च तक पूरा करना व्यावहारिक नहीं है। ऐसे में एटमा ने सरकार से कहा है कि वह अगले वित्त वर्ष के लिए आयात की मात्रा का ऐलान पहले कर दे, ताकि प्राकृतिक रबर के उपभोक्ता समय से इसके आयात की योजना बना सकें।एटमा के अनुमान के मुताबिक, अगले वित्त वर्ष के दौरान देश में रबर का उत्पादन और मांग में करीब 2 लाख टन का अंतर रहेगा। मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल-दिसंबर की अवधि में 1,56,608 टन रबर का आयात किया गया जबकि पिछले साल की समान अवधि में 1,45,459 टन रबर का आयात हुआ था। (BS Hindi)
प्राकृतिक रबर के आयात पर राहत देने के सरकारी ऐलान का स्वागत करते हुए टायर उद्योग ने बाजार की बदली हुई परिस्थितियों में आयात शुल्क में पूरी छूट देने की मांग की है। ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटमा) के मुताबिक, सरकारी फैसला ऐसे वक्त में आया जब प्राकृतिक रबर की कीमतें 225रुपये की ऊंचाई पर है, ऐसे में सीमा शुल्क को 7.5 फीसदी किए जाने के बाद भी आयात करना मितव्ययी नहीं है। वैश्विक बाजार में प्राकृतिक रबर की मौजूदा कीमत घरेलू बाजार के मुकाबले ज्यादा है, ऐसे में 7.5 फीसदी के आयात शुल्क पर रबर का आयात उपयुक्त नजर नहीं आता।वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर को भेजे संदेश में एटमा के चेयरमैन नीरज कंवर ने कहा है कि ऊंची कीमतों के बावजूद प्राकृतिक रबर की आपूर्ति में अनिश्चितता जारी है और टायर की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए टायर उद्योग को रबर की आपूर्ति सुनिश्चित करने में खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। एटमा ने प्राकृतिक रबर पर हाल के सरकारी फैसले पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया है और अगले एक साल में 2 लाख टन प्राकृतिक रबर के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति देने की मांग की है। इसके अलावा एटमा ने सरकार से घरेलू बाजार में रबर की उपलब्धता व खपत के बीच के अंतर के बराबर शुल्क मुक्त आयात की अनुमति वक्त-वक्त पर देने की मांग की है।एटमा के मुताबिक, चूंकि रियायती दर पर प्राकृतिक रबर के आयात का फैसला दिसंबर में लिया गया था, ऐसे में आयात की पूरी प्रक्रिया को 31 मार्च तक पूरा करना व्यावहारिक नहीं है। ऐसे में एटमा ने सरकार से कहा है कि वह अगले वित्त वर्ष के लिए आयात की मात्रा का ऐलान पहले कर दे, ताकि प्राकृतिक रबर के उपभोक्ता समय से इसके आयात की योजना बना सकें।एटमा के अनुमान के मुताबिक, अगले वित्त वर्ष के दौरान देश में रबर का उत्पादन और मांग में करीब 2 लाख टन का अंतर रहेगा। मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल-दिसंबर की अवधि में 1,56,608 टन रबर का आयात किया गया जबकि पिछले साल की समान अवधि में 1,45,459 टन रबर का आयात हुआ था। (BS Hindi)
किसानों पर प्याज़ की गाज
मुंबई January 18, 2011
आम आदमी को लगातार रुला रहा प्याज अब किसानों को रुलाने जा रहा है। नई फसल की आवक से बेहतर हुई आपूर्ति के चलते बाजार में प्याज के भाव 40 फीसदी तक गिर चुके हैं। लेकिन इससे प्याज उत्पादक किसानों को नुकसान होगा जिन्हें अब 4 से 5 रुपये प्रति किलोग्राम तक प्याज बेचना पड़ सकता है। देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी नाशिक में रोजाना औसतन 130 टन प्याज की आवक है जबकि 1 जनवरी को यहां मुश्किल से 71.8 टन प्याज पहुंचा था। एपीएमसी के अनुसार कुछ वक्त पहले 4,200 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिकने वाले प्याज के भाव 2,300 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गए हैं। नाशिक की तरह देश की लगभग सभी प्रमुख मंडियों में प्याज की आपूर्ति बढ़ी है। दिल्ली की प्रमुख आजादपुर सब्जी मंडी में भी प्याज के भाव 2,460 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए हैं। मुंबई की थोक मंडी में भी प्याज के भाव 3,000 रुपये प्रति क्विंटल तक चले गए। एपीएमसी नवी मुंबई की आलू-प्याज मंडी के निदेशक अशोक वलूंज का कहना है, 'आवक बढऩे से भाव गिर रहे हैं। नाशिक के आस-पास पैदा होने वाला प्याज मंडियों में आने लगा है जिससे आपूर्ति का संकट कम हो गया है। कीमतें जिस तेजी से गिर रही हैं उससे आम लोगों को तो फायदा होगा लेकिन किसानों को नुकसान हो सकता है।Ó कारोबारियों का कहना है कि अगले 10 दिनों में थोकमंडी में प्याज के भाव गिरकर 9 से 10 रुपये किलो तक पहुंच जाएंगे। आपूर्ति और बेहतर होने पर कीमतें और भी नीचे जा सकती हैं। इसका नुकसान किसानों को होगा क्योंकि बारिश के कारण नाशिक इलाके की 90 फीसदी प्याज की फसल खराब हो गई थी। नतीजतन, किसानों को दोबारा प्याज की बुआई करनी पड़ी थी। इधर फसल तैयार होने में देरी हुई और उधर प्याज के भाव सातवें आसमान पर चढ़ गए। इसमें किसानों की लागत तो दोगुनी हो गई लेकिन उन्हें कम प्रतिफल मिलने की आशंका सता रही है।किसानों के अलावा सरकारी एजेंसियों को भी प्याज रुला सकता है। दरअसल पाकिस्तान और चीन से महंगी दरों पर खरीदा गया प्याज अब उन्हें कम कीमत पर बेचना पड़ेगा, जिससे उनका नुकसान होना भी तय है। (BS Hindi)
आम आदमी को लगातार रुला रहा प्याज अब किसानों को रुलाने जा रहा है। नई फसल की आवक से बेहतर हुई आपूर्ति के चलते बाजार में प्याज के भाव 40 फीसदी तक गिर चुके हैं। लेकिन इससे प्याज उत्पादक किसानों को नुकसान होगा जिन्हें अब 4 से 5 रुपये प्रति किलोग्राम तक प्याज बेचना पड़ सकता है। देश की सबसे बड़ी प्याज मंडी नाशिक में रोजाना औसतन 130 टन प्याज की आवक है जबकि 1 जनवरी को यहां मुश्किल से 71.8 टन प्याज पहुंचा था। एपीएमसी के अनुसार कुछ वक्त पहले 4,200 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिकने वाले प्याज के भाव 2,300 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गए हैं। नाशिक की तरह देश की लगभग सभी प्रमुख मंडियों में प्याज की आपूर्ति बढ़ी है। दिल्ली की प्रमुख आजादपुर सब्जी मंडी में भी प्याज के भाव 2,460 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए हैं। मुंबई की थोक मंडी में भी प्याज के भाव 3,000 रुपये प्रति क्विंटल तक चले गए। एपीएमसी नवी मुंबई की आलू-प्याज मंडी के निदेशक अशोक वलूंज का कहना है, 'आवक बढऩे से भाव गिर रहे हैं। नाशिक के आस-पास पैदा होने वाला प्याज मंडियों में आने लगा है जिससे आपूर्ति का संकट कम हो गया है। कीमतें जिस तेजी से गिर रही हैं उससे आम लोगों को तो फायदा होगा लेकिन किसानों को नुकसान हो सकता है।Ó कारोबारियों का कहना है कि अगले 10 दिनों में थोकमंडी में प्याज के भाव गिरकर 9 से 10 रुपये किलो तक पहुंच जाएंगे। आपूर्ति और बेहतर होने पर कीमतें और भी नीचे जा सकती हैं। इसका नुकसान किसानों को होगा क्योंकि बारिश के कारण नाशिक इलाके की 90 फीसदी प्याज की फसल खराब हो गई थी। नतीजतन, किसानों को दोबारा प्याज की बुआई करनी पड़ी थी। इधर फसल तैयार होने में देरी हुई और उधर प्याज के भाव सातवें आसमान पर चढ़ गए। इसमें किसानों की लागत तो दोगुनी हो गई लेकिन उन्हें कम प्रतिफल मिलने की आशंका सता रही है।किसानों के अलावा सरकारी एजेंसियों को भी प्याज रुला सकता है। दरअसल पाकिस्तान और चीन से महंगी दरों पर खरीदा गया प्याज अब उन्हें कम कीमत पर बेचना पड़ेगा, जिससे उनका नुकसान होना भी तय है। (BS Hindi)
बढ़ी मांग से चढ़ेगा एल्युमीनियम
बेंगलुरु May 05, 2010
घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में एल्युमीनियम की मांग बरकरार है।
उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में एल्युमीनियम के दाम 4.6 प्रतिशत से लेकर 8.6 प्रतिशत बढ़ेंगे और कीमतें अगली दो तिमाही में 2400-2500 डॉलर प्रति टन पर पहुंच जाएंगी।
कोयले और पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में तेजी की वजह से एल्युमीनियम की कीमतों पर असर पड़ा है और लंदन मेटल एक्सचेंज में उच्च भंडारण के बावजूद कीमतों में तेजी है।
नैशनल एल्युमीनियम कंपनी लि. (नाल्को) के निदेशक (वाणिज्य) अंशुमान दास ने कहा, 'घरेलू मांग में जहां 8 प्रतिशत की तेजी का अनुमान है, वहीं अंतरराष्ट्रीय मांग में भी 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी के अनुमान लगाए जा रहे हैं। बढ़ती मांग के चलते लंदन मेटल एक्सचेंज में कीमतों में मजबूती की उम्मीद है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में सुधार के साफ संकेत मिलने लगे हैं।'
पॉवर, ऑटोमोबाइल, पैकेजिंग और कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में विकास की रफ्तार ठीक-ठाक है, साथ परिवहन और पैकेजिंग क्षेत्र में तेजी की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में जेती का रुख है। अगस्त 2009 में एल्युमीनियम की कीमतें गिरकर 1800 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई थीं। उस समय मांग बहुत ज्यादा घट गई थी। अब कीमतों में स्थिरता है और इस समय कीमतें वर्तमान स्तर पर आने से पहले 2400 डॉलर प्रति टन तक पहुंची थीं।
कीमतों में उतार-चढ़ाव पर बातचीत करते हुए दास ने कहा- जिंस बाजार किसी भी बुरी खबर पर तत्काल प्रतिक्रिया देता है, साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ साथ मांग सुधर रही है और कारोबार मंदी के पहले की स्थिति में पहुंच रहा है।
उन्होंने कहा कि कोयले और पेट्रोलियम की कीमतों के बढ़ने का दबाव इस जिंस पर पड़ रहा है, जो एल्युमीनियम तैयार करने में मुख्य रूप से काम आता है। एशिया में थर्मल कोल की कीमतें 100 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं, क्योंकि मांग में तेजी है और आपूर्ति कमजोर। वहीं पेट्रोलियम की कीमतें भी इस समय बढ़कर 85 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियों में सुधार के संकेत मिल रहे हैं।
एलएमई में एल्युमीनियम के स्टॉक केबारे में दास ने कहा- 45 लाख टन के भंडारण में ज्यादा हिस्सा लंबी अवधि के वित्तीय सौदों के हैं, हाजिर कारोबार की तात्कालिक डिलिवरी के लिए नहीं। जब तक हाजिर डिलिवरी वाले एल्युमीनियम का भंडार नहीं बढ़ता है, इसका कीमतों पर असर मामूली रहेगा।
वेदांत एल्युमीनियम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी इस मसले पर ऐसी ही राय जाहिर की। उन्होंने कहा कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग अच्छी है। भारत के बड़े एल्युमीनियम उत्पादक क्षमता में विस्तार कर रहे हैं, लेकिन मांग में तेजी को देखते हुए उम्मीद है कि पूरे उत्पादन की खपत हो जाएगी।
हालांकि विश्लेषकों की इस मसले पर अलग राय है। केपीएमजी के निदेशक अंबर दुबे ने कहा कि इस समय एलएमई में भंडारण बहुत ज्यादा है, इससे पता चलता है कि इस उद्योग के बड़े खिलाड़ी कीमतों में तेजी की उम्मीद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन में मंदी के दौरान उत्पादन क्षमता में 15 प्रतिशत से ज्यादा की कटौती कर दी गई थी, जहां उत्पादन फिर बहाल किया जा रहा है। (Bs Hindi)
घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में एल्युमीनियम की मांग बरकरार है।
उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में एल्युमीनियम के दाम 4.6 प्रतिशत से लेकर 8.6 प्रतिशत बढ़ेंगे और कीमतें अगली दो तिमाही में 2400-2500 डॉलर प्रति टन पर पहुंच जाएंगी।
कोयले और पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में तेजी की वजह से एल्युमीनियम की कीमतों पर असर पड़ा है और लंदन मेटल एक्सचेंज में उच्च भंडारण के बावजूद कीमतों में तेजी है।
नैशनल एल्युमीनियम कंपनी लि. (नाल्को) के निदेशक (वाणिज्य) अंशुमान दास ने कहा, 'घरेलू मांग में जहां 8 प्रतिशत की तेजी का अनुमान है, वहीं अंतरराष्ट्रीय मांग में भी 4 प्रतिशत की बढ़ोतरी के अनुमान लगाए जा रहे हैं। बढ़ती मांग के चलते लंदन मेटल एक्सचेंज में कीमतों में मजबूती की उम्मीद है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में सुधार के साफ संकेत मिलने लगे हैं।'
पॉवर, ऑटोमोबाइल, पैकेजिंग और कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में विकास की रफ्तार ठीक-ठाक है, साथ परिवहन और पैकेजिंग क्षेत्र में तेजी की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में जेती का रुख है। अगस्त 2009 में एल्युमीनियम की कीमतें गिरकर 1800 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई थीं। उस समय मांग बहुत ज्यादा घट गई थी। अब कीमतों में स्थिरता है और इस समय कीमतें वर्तमान स्तर पर आने से पहले 2400 डॉलर प्रति टन तक पहुंची थीं।
कीमतों में उतार-चढ़ाव पर बातचीत करते हुए दास ने कहा- जिंस बाजार किसी भी बुरी खबर पर तत्काल प्रतिक्रिया देता है, साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ साथ मांग सुधर रही है और कारोबार मंदी के पहले की स्थिति में पहुंच रहा है।
उन्होंने कहा कि कोयले और पेट्रोलियम की कीमतों के बढ़ने का दबाव इस जिंस पर पड़ रहा है, जो एल्युमीनियम तैयार करने में मुख्य रूप से काम आता है। एशिया में थर्मल कोल की कीमतें 100 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई हैं, क्योंकि मांग में तेजी है और आपूर्ति कमजोर। वहीं पेट्रोलियम की कीमतें भी इस समय बढ़कर 85 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियों में सुधार के संकेत मिल रहे हैं।
एलएमई में एल्युमीनियम के स्टॉक केबारे में दास ने कहा- 45 लाख टन के भंडारण में ज्यादा हिस्सा लंबी अवधि के वित्तीय सौदों के हैं, हाजिर कारोबार की तात्कालिक डिलिवरी के लिए नहीं। जब तक हाजिर डिलिवरी वाले एल्युमीनियम का भंडार नहीं बढ़ता है, इसका कीमतों पर असर मामूली रहेगा।
वेदांत एल्युमीनियम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी इस मसले पर ऐसी ही राय जाहिर की। उन्होंने कहा कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग अच्छी है। भारत के बड़े एल्युमीनियम उत्पादक क्षमता में विस्तार कर रहे हैं, लेकिन मांग में तेजी को देखते हुए उम्मीद है कि पूरे उत्पादन की खपत हो जाएगी।
हालांकि विश्लेषकों की इस मसले पर अलग राय है। केपीएमजी के निदेशक अंबर दुबे ने कहा कि इस समय एलएमई में भंडारण बहुत ज्यादा है, इससे पता चलता है कि इस उद्योग के बड़े खिलाड़ी कीमतों में तेजी की उम्मीद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन में मंदी के दौरान उत्पादन क्षमता में 15 प्रतिशत से ज्यादा की कटौती कर दी गई थी, जहां उत्पादन फिर बहाल किया जा रहा है। (Bs Hindi)
देश में तेजी से बढ़ेगी एल्युमीनियम की मांग
December 27, 2010
भारत के खनन मंत्री बी के हांडिक और विश्व की सबसे बड़ी एल्युमीनियम उत्पादक कंपनी एल्कोआ के सीईओ क्लाउस क्लेनफेल्ड द्वारा एल्युमीनियम की दीर्घकालिक मांग और इसकी कीमतों को लेकर दिए गए बयान की समानता को कोई भी आदमी आसानी से समझ सकता है। दोनों का स्पष्टï रूप से मानना है कि वर्ष 2020 तक एल्युमीनियम की मांग में लगातार वृद्घि होगी। हालांकि इसकी कम भार की गुणवत्ता, आघातवर्धनीयता और फिर से तैयार करने की विशेषता के चलते यह बहुत हद तक आगे बढ़ती मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने में कामयाब होगा। भारत के पास विश्व में पांचवां सबसे बड़ा बॉक्साइट का भंडार है। इसमें करीब 3 अरब टन बॉक्साइट का है, जिसमें से 2.5 अरब टन फिर से इस्तेमाल होने वाले संसाधन भी शामिल है। इसके बावजूद यहां प्रति व्यक्ति एल्युमीनियम की खपत काफी कम 1.3 टन है। इसे अच्छी बात नहीं कह सकते। दूसरी तरफ, देश की आर्थिक वृद्घि दर दहाई अंकों में पहुंच चुकी है। यानी देश में एल्युमीनियम का पर्याप्त इस्तेमाल अभी भी नहीं हो पा रहा है। इसकी तुलना में चीन की स्थिति थोड़ी अलग है। चीनी अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार में इन्फ्रास्ट्रक्चर और निर्माण क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर धातुओं का इस्तेमाल हो रहा है। बी के हांडिक का कहना है कि बढ़ती मांग को देखते हुए देश में एल्युमीनियम का उत्पादन वर्ष 2015 तक बढ़कर 50 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है जो इस समय केवल 13 लाख टन के आस-पास है। वह इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति में कोई कमी नहीं रहेगी। उनका कहना है कि दो प्रमुख क्षेत्रों में एल्युमीनियम की मांग में भारी वृद्घि का अनुमान है। एक तो बिजली क्षेत्र में आज भी एल्युमीनियम की सबसे ज्यादा खपत होती है जबकि आगे इस क्षेत्र के विस्तार से एल्युमीनियम की मांग में और इजाफा होगा। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट सेक्टर में भी इसकी खपत बढऩे का अनुमान है। न्यूक्लियर पावर प्लांट स्थापित करने और स्थानीय स्तर पर एयरक्राफ्ट तैयार करने जैसी हमारी महत्वाकांक्षी योजना में बड़े पैमाने पर एल्युमीनियम का उपयोग बढ़ेगा। क्लेनफेल्ड का भी मानना है कि एयरोस्पेस जैसे उभरते क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर एल्युमीनियम की मांग बढ़ेगी। अब सवाल यह उठता है कि अगले पांच साल में भारत में 50 लाख टन एल्युमीनियम का उत्पादन कैसे संभव होगा। एल्युमीनियम जैसी जरूरी धातु के लिए बॉक्साइट खनिज को लंबे समय तक के लिए संरक्षित रखने की जरूरत है। हालांकि ज्यादा एल्युमीनियम उत्पादन की आड़ में बॉक्साइट खनन के बेजा इस्तेमाल का भी खतरा है। वैसे बॉक्साइट खनन के आवंटन और पर्यावरण संबंधी मंजूरी को लेकर सरकारी या निजी क्षेत्र के निवेशकों को भारी परेशाानी का सामना करना पड़ता है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में नियमगिरी बॉक्साइट खनन को लेकर वेदांता समूह इसका शिकार हो चुका है। इसके अलावा अन्य खनन परियोजनाओं को पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिलने की इंतजार है। ऐसे में इस क्षेत्र में निवेश को लेकर थोड़ी-बहुत बाधाएं भी हैं। एल्युमीनियम उत्पादन के क्षेत्र में हिंडाल्को बड़े पैमाने पर निवेश कर रही है। हिंडाल्को के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला का कहना है कि कंपनी करीब 40,000 करोड़ रुपये का निवेश कर लगभग 18 लाख टन एल्युमीनियम उत्पादन क्षमता का निर्माण कर रही है। सरकारी क्षेत्र की नैशनल एल्युमीनियम कंपनी (नाल्को) ने अपनी क्षमता विस्तार योजना को स्थगित कर दिया है। कंपनी देश के अलावा विदेशों में उत्पादन क्षमता बढ़ाने की योजना बना रही थी। हालांकि नाल्को के निदेशक बीएल बागरा का मानना है कि तीसरे चरण के विस्तार के लिए हमें कुछ बुनियादी चीजों पर ध्यान देना होगा। खनन मंत्री हांडिक के अनुसार देश को 2020 तक कम से कम 1 करोड़ टन एल्युमीनियम की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि मांग के अनुरूप एल्युमीनियम की आपूर्ति के लिए हमें घरेलू स्तर पर इसका उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना होगा। देश ज्यादातर बॉक्साइट की खानें उड़ीस और इसके बाद आंध्र प्रदेश में स्थित है। इन राज्यों में एल्युमीनियम उत्पादन बढ़ाने के लिए सुविधाओं का विस्तार हो रहा है। वैश्विक मंदी के पूर्व जुलाई 2008 में एल्युमीनियम की कीमतों में रिकॉर्ड तेजी आई थी। हालांकि मंदी के दौरान इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित होने से एल्यूमीनियम की मांग में भारी कमी आने से कीमतों में थोड़ी गिरावट आई। जुलाई 2008 के उच्च स्तर की तुलना में इस समय एल्युमीनियम के दामों में तकरीबन 30 फीसदी की कमी आ चुकी है। (BS Hindi)
भारत के खनन मंत्री बी के हांडिक और विश्व की सबसे बड़ी एल्युमीनियम उत्पादक कंपनी एल्कोआ के सीईओ क्लाउस क्लेनफेल्ड द्वारा एल्युमीनियम की दीर्घकालिक मांग और इसकी कीमतों को लेकर दिए गए बयान की समानता को कोई भी आदमी आसानी से समझ सकता है। दोनों का स्पष्टï रूप से मानना है कि वर्ष 2020 तक एल्युमीनियम की मांग में लगातार वृद्घि होगी। हालांकि इसकी कम भार की गुणवत्ता, आघातवर्धनीयता और फिर से तैयार करने की विशेषता के चलते यह बहुत हद तक आगे बढ़ती मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने में कामयाब होगा। भारत के पास विश्व में पांचवां सबसे बड़ा बॉक्साइट का भंडार है। इसमें करीब 3 अरब टन बॉक्साइट का है, जिसमें से 2.5 अरब टन फिर से इस्तेमाल होने वाले संसाधन भी शामिल है। इसके बावजूद यहां प्रति व्यक्ति एल्युमीनियम की खपत काफी कम 1.3 टन है। इसे अच्छी बात नहीं कह सकते। दूसरी तरफ, देश की आर्थिक वृद्घि दर दहाई अंकों में पहुंच चुकी है। यानी देश में एल्युमीनियम का पर्याप्त इस्तेमाल अभी भी नहीं हो पा रहा है। इसकी तुलना में चीन की स्थिति थोड़ी अलग है। चीनी अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार में इन्फ्रास्ट्रक्चर और निर्माण क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर धातुओं का इस्तेमाल हो रहा है। बी के हांडिक का कहना है कि बढ़ती मांग को देखते हुए देश में एल्युमीनियम का उत्पादन वर्ष 2015 तक बढ़कर 50 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है जो इस समय केवल 13 लाख टन के आस-पास है। वह इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि मांग की तुलना में इसकी आपूर्ति में कोई कमी नहीं रहेगी। उनका कहना है कि दो प्रमुख क्षेत्रों में एल्युमीनियम की मांग में भारी वृद्घि का अनुमान है। एक तो बिजली क्षेत्र में आज भी एल्युमीनियम की सबसे ज्यादा खपत होती है जबकि आगे इस क्षेत्र के विस्तार से एल्युमीनियम की मांग में और इजाफा होगा। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट सेक्टर में भी इसकी खपत बढऩे का अनुमान है। न्यूक्लियर पावर प्लांट स्थापित करने और स्थानीय स्तर पर एयरक्राफ्ट तैयार करने जैसी हमारी महत्वाकांक्षी योजना में बड़े पैमाने पर एल्युमीनियम का उपयोग बढ़ेगा। क्लेनफेल्ड का भी मानना है कि एयरोस्पेस जैसे उभरते क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर एल्युमीनियम की मांग बढ़ेगी। अब सवाल यह उठता है कि अगले पांच साल में भारत में 50 लाख टन एल्युमीनियम का उत्पादन कैसे संभव होगा। एल्युमीनियम जैसी जरूरी धातु के लिए बॉक्साइट खनिज को लंबे समय तक के लिए संरक्षित रखने की जरूरत है। हालांकि ज्यादा एल्युमीनियम उत्पादन की आड़ में बॉक्साइट खनन के बेजा इस्तेमाल का भी खतरा है। वैसे बॉक्साइट खनन के आवंटन और पर्यावरण संबंधी मंजूरी को लेकर सरकारी या निजी क्षेत्र के निवेशकों को भारी परेशाानी का सामना करना पड़ता है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में नियमगिरी बॉक्साइट खनन को लेकर वेदांता समूह इसका शिकार हो चुका है। इसके अलावा अन्य खनन परियोजनाओं को पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिलने की इंतजार है। ऐसे में इस क्षेत्र में निवेश को लेकर थोड़ी-बहुत बाधाएं भी हैं। एल्युमीनियम उत्पादन के क्षेत्र में हिंडाल्को बड़े पैमाने पर निवेश कर रही है। हिंडाल्को के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला का कहना है कि कंपनी करीब 40,000 करोड़ रुपये का निवेश कर लगभग 18 लाख टन एल्युमीनियम उत्पादन क्षमता का निर्माण कर रही है। सरकारी क्षेत्र की नैशनल एल्युमीनियम कंपनी (नाल्को) ने अपनी क्षमता विस्तार योजना को स्थगित कर दिया है। कंपनी देश के अलावा विदेशों में उत्पादन क्षमता बढ़ाने की योजना बना रही थी। हालांकि नाल्को के निदेशक बीएल बागरा का मानना है कि तीसरे चरण के विस्तार के लिए हमें कुछ बुनियादी चीजों पर ध्यान देना होगा। खनन मंत्री हांडिक के अनुसार देश को 2020 तक कम से कम 1 करोड़ टन एल्युमीनियम की जरूरत होगी। उन्होंने कहा कि मांग के अनुरूप एल्युमीनियम की आपूर्ति के लिए हमें घरेलू स्तर पर इसका उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना होगा। देश ज्यादातर बॉक्साइट की खानें उड़ीस और इसके बाद आंध्र प्रदेश में स्थित है। इन राज्यों में एल्युमीनियम उत्पादन बढ़ाने के लिए सुविधाओं का विस्तार हो रहा है। वैश्विक मंदी के पूर्व जुलाई 2008 में एल्युमीनियम की कीमतों में रिकॉर्ड तेजी आई थी। हालांकि मंदी के दौरान इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित होने से एल्यूमीनियम की मांग में भारी कमी आने से कीमतों में थोड़ी गिरावट आई। जुलाई 2008 के उच्च स्तर की तुलना में इस समय एल्युमीनियम के दामों में तकरीबन 30 फीसदी की कमी आ चुकी है। (BS Hindi)
18 जनवरी 2011
कपास निर्यात कोटा पर वाणिज्य व कपड़ा मंत्रालय आमने-सामने
कपड़ा मंत्रालय ने वाणिज्य मंत्रालय के कपास निर्यात कोटा आवंटन में कमी पायी है और प्रक्रिया बदले जाने का सुझाव दिया है। सरकार ने चालू कपास सीजन (अक्टूबर से सितंबर) में कपास निर्यात 55 लाख गांठ की सीमा निर्धारित की है।
हालांकि 15 दिसंबर तक कपास निर्यात का कोटा निर्धारित करने का अधिकार कपड़ा मंत्रालय के अंतर्गत निहित था। बहरहाल, हाल ही में यह जिम्मेदारी वाणिज्य मंत्रालय ने ले ली है।
कपड़ा सचिव रीता मेनन ने वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर को पत्र लिखकर व्यापारियों के लिए कपास निर्यात के आवंटन के मामले की प्रक्रिया पलटने की मांग की है।
सूत्रों ने कहा कि वाणिज्य मंत्रालय ने निर्यात कोटा आवंटन के लिए उन व्यापारियों से भी आवेदन स्वीकार किए हैं जिन्हें कपास व्यापार का कोई अनुभव नहीं है। कुल 55 लाख गांठ में से 38 लाख गांठ पहले ही 15 दिसंबर तक निर्यात किए जा चुके हैं।
कपड़ा मंत्रालय ने आशंका व्यक्त की है कि नए आवंटन से कीमत स्थिति और बिगड़ेगी। घरेलू कपास कीमत पहले से ही ऊंची है। फिलहाल, कपास कीमत 44,000 रुपए कैंडी (356 किलो) है जबकि पिछले साल की समान अवधि में कीमत 33,000 रुपए कैंडी थी। (Hindustan hindi)
हालांकि 15 दिसंबर तक कपास निर्यात का कोटा निर्धारित करने का अधिकार कपड़ा मंत्रालय के अंतर्गत निहित था। बहरहाल, हाल ही में यह जिम्मेदारी वाणिज्य मंत्रालय ने ले ली है।
कपड़ा सचिव रीता मेनन ने वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर को पत्र लिखकर व्यापारियों के लिए कपास निर्यात के आवंटन के मामले की प्रक्रिया पलटने की मांग की है।
सूत्रों ने कहा कि वाणिज्य मंत्रालय ने निर्यात कोटा आवंटन के लिए उन व्यापारियों से भी आवेदन स्वीकार किए हैं जिन्हें कपास व्यापार का कोई अनुभव नहीं है। कुल 55 लाख गांठ में से 38 लाख गांठ पहले ही 15 दिसंबर तक निर्यात किए जा चुके हैं।
कपड़ा मंत्रालय ने आशंका व्यक्त की है कि नए आवंटन से कीमत स्थिति और बिगड़ेगी। घरेलू कपास कीमत पहले से ही ऊंची है। फिलहाल, कपास कीमत 44,000 रुपए कैंडी (356 किलो) है जबकि पिछले साल की समान अवधि में कीमत 33,000 रुपए कैंडी थी। (Hindustan hindi)
और गुलजार होगा औद्योगिक जिंस का बाजार
मुंबई January 17, 2011
बढ़ती मांग के बीच आपूर्ति के संकट के चलते आधार और कीमती धातुओं समेत तमाम औद्योगिक जिंसों की कीमतों में इस साल मार्च के बाद भी बढ़ोतरी जारी रहने की संभावना है। कहा जा रहा है कि मांग में हुई बढ़ोतरी आर्थिक संकट के पूर्व के वर्षों के स्तर पर पहुंच रहा है, खास तौर से उभरते हुए बाजारों से।आधार धातु और सोना-चांदी में इस साल 15-25 फीसदी तक का रिटर्न मिल सकता है क्योंकि खुदरा व औद्योगिक दोनों ग्राहकों की तरफ से मांग आर्थिक संकट के पूर्व के वर्षों के स्तर पर पहुंचने की संभावना है।स्वतंत्र वैश्विक सलाहकार फर्म बारक्लेज कैपिटल का अनुमान है कि एल्युमीनियम की कीमतें औसतन इस साल 2500 डॉलर प्रति टन पर पहुंच सकती हैं जबकि पिछले साल यह 2206 डॉलर प्रति टन पर उपलब्ध था और मौजूदा कीमत 2433 डॉलर प्रति टन है। इसी तरह, तांबे की औसत कीमत मौजूदा 7540 डॉलर से 9550 डॉलर प्रति टन पर पहुंचने की भविष्यवाणी की गई है। निकल और जस्ता क्रमश: औसतन 25625 डॉलर और 2538 डॉलर प्रति टन पर पहुंच सकता है जबकि पिछले साल भाव क्रमश: 22305 डॉलर और 2209 डॉलर प्रति टन था।विशेषज्ञों का कहना है कि यूनान व आयरलैंड जैसे देशों में जारी मौजूदा आर्थिक संकट यूरो को अस्थिर कर सकता है। यह संकट आसानी से अटलांटिक पार कर सकता है क्योंंकि अमेरिका पहले ही एक बार फिर व्यवस्था में नकदी (क्यूई-2) झोंकने जा रहा है, खास तौर से बुनियादी ढांचे मेंं लंबी अवधि के लिए निवेश बढ़ाने की खातिर। इसके परिणामस्वरूप आधार धातुओं की मांग में बढ़ोतरी की पूरी संभावना है। दूसरी ओर, यूरोप का आर्थिक संकट कोषों (फंड) को कीमती धातुओं में प्राथमिकता के आधार पर निवेश के लिए बाध्य कर सकता है। इस साल कीमती धातुओं का बाजार काफी शानदार नजर आ रहा है और यह रिकॉर्ड बना सकता है। इसके परिणामस्वरूप सोने की कीमतें साल 2011 में 1500-1600 डॉलर प्रति आउंस पर पहुंच सकती है क्योंकि यह क्यूई व मुद्राओं के खिलाफ हेजिंग का उपकरण बना हुआ है। रेलिगेयर कमोडिटीज के विश्लेषक का कहना है कि एक समय में सतत आर्थिक सुधार कीमती धातुओं को चुनौती दे सकता है।साल 2011 में चांदी में उतारचढ़ाव की संभावना है और यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में 35-37 डॉलर प्रति आउंस (50000-60000 रुपये प्रति किलोग्राम) के भाव पर बिक सकता है। ब्रोकिंग फर्म का मानना है कि कच्चा तेल शुरुआती दौर में 100 डॉलर प्रति बैरल की तरफ बढ़ सकता है और इसके बाद यह 120-135 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में भी पहुंच सकता है। वहीं, प्राकृतिक गैस 240-285 रुपये प्रति एमएमबीटीयू की दर पर बिक सकता है। इसमें भी उतारचढ़ाव देखा जा सकता है।बारक्लेज कैपिटल के विश्लेषक कहते हैं - हमें इलाके में मांग में पर्याप्त बढ़त नजर आ रही है और उभरते हुए बाजारों की मांग के साथ जुड़कर यह आर्थिक संकट के पूर्व के वर्षों के स्तर पर पहुंच सकता है। मांग में सुधार के साथ-साथ मौजूदा आर्थिक सुधार की बदौलत औद्योगिक जिंसों की कीमतें साल 2010 में बढ़ी है। खास तौर से ओईसीडी में सुधार बड़े आश्चर्य के तौर पर सामने आया है।मांग रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच सकती है क्योंकि ओईसीडी में अभी भी कई धातुओं की मांग संकट के पूर्व के वर्षों के स्तर पर है। अगस्त के बाद चीन की तरफ से तांबे के आयात में तेजी और चिली में खदान दुर्घटना की वजह से आपूर्ति के संकट के चलते तांबे की कीमतें दिसंबर में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच चुकी है। रेलिगेयर कमोडिटीज के विश्लेषक का कहना है कि तांबे में तेजी आ रही है और वैश्विक स्तर पर आपूर्ति के संकट के चलते यह नए रिकॉर्ड पर भी पहुंच सकती है। (BS Hindi)
बढ़ती मांग के बीच आपूर्ति के संकट के चलते आधार और कीमती धातुओं समेत तमाम औद्योगिक जिंसों की कीमतों में इस साल मार्च के बाद भी बढ़ोतरी जारी रहने की संभावना है। कहा जा रहा है कि मांग में हुई बढ़ोतरी आर्थिक संकट के पूर्व के वर्षों के स्तर पर पहुंच रहा है, खास तौर से उभरते हुए बाजारों से।आधार धातु और सोना-चांदी में इस साल 15-25 फीसदी तक का रिटर्न मिल सकता है क्योंकि खुदरा व औद्योगिक दोनों ग्राहकों की तरफ से मांग आर्थिक संकट के पूर्व के वर्षों के स्तर पर पहुंचने की संभावना है।स्वतंत्र वैश्विक सलाहकार फर्म बारक्लेज कैपिटल का अनुमान है कि एल्युमीनियम की कीमतें औसतन इस साल 2500 डॉलर प्रति टन पर पहुंच सकती हैं जबकि पिछले साल यह 2206 डॉलर प्रति टन पर उपलब्ध था और मौजूदा कीमत 2433 डॉलर प्रति टन है। इसी तरह, तांबे की औसत कीमत मौजूदा 7540 डॉलर से 9550 डॉलर प्रति टन पर पहुंचने की भविष्यवाणी की गई है। निकल और जस्ता क्रमश: औसतन 25625 डॉलर और 2538 डॉलर प्रति टन पर पहुंच सकता है जबकि पिछले साल भाव क्रमश: 22305 डॉलर और 2209 डॉलर प्रति टन था।विशेषज्ञों का कहना है कि यूनान व आयरलैंड जैसे देशों में जारी मौजूदा आर्थिक संकट यूरो को अस्थिर कर सकता है। यह संकट आसानी से अटलांटिक पार कर सकता है क्योंंकि अमेरिका पहले ही एक बार फिर व्यवस्था में नकदी (क्यूई-2) झोंकने जा रहा है, खास तौर से बुनियादी ढांचे मेंं लंबी अवधि के लिए निवेश बढ़ाने की खातिर। इसके परिणामस्वरूप आधार धातुओं की मांग में बढ़ोतरी की पूरी संभावना है। दूसरी ओर, यूरोप का आर्थिक संकट कोषों (फंड) को कीमती धातुओं में प्राथमिकता के आधार पर निवेश के लिए बाध्य कर सकता है। इस साल कीमती धातुओं का बाजार काफी शानदार नजर आ रहा है और यह रिकॉर्ड बना सकता है। इसके परिणामस्वरूप सोने की कीमतें साल 2011 में 1500-1600 डॉलर प्रति आउंस पर पहुंच सकती है क्योंकि यह क्यूई व मुद्राओं के खिलाफ हेजिंग का उपकरण बना हुआ है। रेलिगेयर कमोडिटीज के विश्लेषक का कहना है कि एक समय में सतत आर्थिक सुधार कीमती धातुओं को चुनौती दे सकता है।साल 2011 में चांदी में उतारचढ़ाव की संभावना है और यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में 35-37 डॉलर प्रति आउंस (50000-60000 रुपये प्रति किलोग्राम) के भाव पर बिक सकता है। ब्रोकिंग फर्म का मानना है कि कच्चा तेल शुरुआती दौर में 100 डॉलर प्रति बैरल की तरफ बढ़ सकता है और इसके बाद यह 120-135 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में भी पहुंच सकता है। वहीं, प्राकृतिक गैस 240-285 रुपये प्रति एमएमबीटीयू की दर पर बिक सकता है। इसमें भी उतारचढ़ाव देखा जा सकता है।बारक्लेज कैपिटल के विश्लेषक कहते हैं - हमें इलाके में मांग में पर्याप्त बढ़त नजर आ रही है और उभरते हुए बाजारों की मांग के साथ जुड़कर यह आर्थिक संकट के पूर्व के वर्षों के स्तर पर पहुंच सकता है। मांग में सुधार के साथ-साथ मौजूदा आर्थिक सुधार की बदौलत औद्योगिक जिंसों की कीमतें साल 2010 में बढ़ी है। खास तौर से ओईसीडी में सुधार बड़े आश्चर्य के तौर पर सामने आया है।मांग रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच सकती है क्योंकि ओईसीडी में अभी भी कई धातुओं की मांग संकट के पूर्व के वर्षों के स्तर पर है। अगस्त के बाद चीन की तरफ से तांबे के आयात में तेजी और चिली में खदान दुर्घटना की वजह से आपूर्ति के संकट के चलते तांबे की कीमतें दिसंबर में रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच चुकी है। रेलिगेयर कमोडिटीज के विश्लेषक का कहना है कि तांबे में तेजी आ रही है और वैश्विक स्तर पर आपूर्ति के संकट के चलते यह नए रिकॉर्ड पर भी पहुंच सकती है। (BS Hindi)
चने की फसल पर मौसम की मार
भोपाल January 17, 2011
मौसम की मार से चने के बढ़े रकबे की चमक लगातार फीकी होती जा रही है। अधिकतर चना उत्पादक राज्यों में 20 से 60 फीसदी तक फसल मौसम की भेंट चढ़ चुकी है। दूसरी ओर शादी-विवाह के सीजन के चलते चने की मांग में उछाल आई है। फसल खराब होने की खबर और मांग बढऩे से इसके दामों में बढ़ोतरी दर्र्ज हो रही है। कई वर्षों के बाद चना 2,500 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर तक पहुंच गया है। जानकार अगले महीने तक चने की कीमत 2,700-2,800 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर के पार हो जाने का अनुमान लगा रहे हैं। चना कारोबारी पंकज मिश्रा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस बार चने के रकबे में बढ़ोतरी देखी गई थी लेकिन शीतकाल में मध्य प्रदेश में कई जगह चने की लगभग पूरी फसल खराब हो गई है। दूसरे चना उत्पादक राज्यों में भी स्थिति काफी गंभीर है। ऐसे में आने वाले समय में चने के दामों में उछाल बनी रह सकती है। आंकड़ों के अनुसार, अधिक ठंड के चलते आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में 60 फीसदी तक चने का उत्पादन प्रभावित हुआ है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, महाराष्टï्र और राजस्थान में 20 से 50 फीसदी तक चने की फसल को नुकसान पहुंचा है। मौसम में सुधार नहीं हुआ तो फसल को और ज्यादा नुकसान पहुंचने की आशंका है। घरेलू बाजार में जनवरी से चने की फसल आनी शुरू हो जाती है। आमतौर पर इस दौरान बाजार में विदेशी चने की भी आवक शुरू हो जाती है। हालांकि इस बार ऐसा नहीं है। प्रदेश की कई मंडियों में चने की आवक 1000-1500 बोरी के आस-पास ही है। वर्तमान में चने की मांग में तेजी को पूरा करने में चना व्यापारी खुद को असमर्थ मान रहे हैं। सत्र में प्रदेश में चने के रकबे में काफी उछाल दर्ज की गई थी। इस वर्ष प्रदेश में 31 लाख 45 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई की गई थी, जोकि पिछले कई वर्षों की तुलना में अधिक है। रकबे में इज़ाफे का कारण न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में हुई 20 फीसदी की बढ़ोतरी को बताया जा रहा है। सरकार ने इस वर्ष चने का एमएसपी बढ़ाकर 2,100 रुपये प्रति क्विंटल किया था, जबकि पिछले वर्ष 1,760 रुपये ही था। इंदौर के चना निर्यातक और उत्पादक गंगाराम ने बताया कि सरकार द्वारा चने का एमएसपी बढ़ाने से किसानों को मिली खुशी मौसम की बेरुखी के चलते खत्म हो गई है। देश के साथ ही विदेशों में भी चने की फसल को इस बार नुकसान पहुंचा है। इससे पिछले कुछ हफ्तों में 23 रुपये प्रति किलोग्राम वाले चने का दाम बढ़कर 26 रुपये के आस पास पहुंच गया है। हाल में प्रदेश में हुई असमय बारिश और अधिक ठंड के चलते कई जगह चने की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई है। कहीं-कहीं बारिश के कारण फसलों की बोअनी भी दोबारा करनी पड़ी है। इन क्षेत्रों में देवास, इंदौर, रतलाम, शाजापुर, धार, नीमच, सीहोर और उज्जैन जैसे चना उत्पादक जिले प्रमुख हैं। आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में चने का दाम 2,350 रुपये से लेकर 2,500 रुपये तक बना हुआ है। इसके अलावा डॉलर चने का दाम 5,100 रुपये से लेकर 5,500 रुपये के आस-पास है। देश का लगभग 60 से 65 फीसदी चना उत्पादन मध्यप्रदेश में ही होता है। प्रदेश में देवास, इंदौर, रतलाम, शाजापुर, धार, नीमच, सीहोर और उज्जैन अधिक मात्रा में चने के उत्पादक क्षेत्र हैं। चने के साथ ही प्रदेश में डॉलर चने का उत्पादन भी काफी मात्रा में होता है। भारी मात्रा में उत्पादन होने के चलते यहां के डॉलर चने को विदेशों में निर्यात किया जाता है। निर्यात किये जाने वाले देशों में पाकिस्तान, श्रीलंका, तुर्की, अल्जीरिया, दुबई और कई खाड़ी देश प्रमुख हैं। (BS Hindi)
मौसम की मार से चने के बढ़े रकबे की चमक लगातार फीकी होती जा रही है। अधिकतर चना उत्पादक राज्यों में 20 से 60 फीसदी तक फसल मौसम की भेंट चढ़ चुकी है। दूसरी ओर शादी-विवाह के सीजन के चलते चने की मांग में उछाल आई है। फसल खराब होने की खबर और मांग बढऩे से इसके दामों में बढ़ोतरी दर्र्ज हो रही है। कई वर्षों के बाद चना 2,500 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर तक पहुंच गया है। जानकार अगले महीने तक चने की कीमत 2,700-2,800 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर के पार हो जाने का अनुमान लगा रहे हैं। चना कारोबारी पंकज मिश्रा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस बार चने के रकबे में बढ़ोतरी देखी गई थी लेकिन शीतकाल में मध्य प्रदेश में कई जगह चने की लगभग पूरी फसल खराब हो गई है। दूसरे चना उत्पादक राज्यों में भी स्थिति काफी गंभीर है। ऐसे में आने वाले समय में चने के दामों में उछाल बनी रह सकती है। आंकड़ों के अनुसार, अधिक ठंड के चलते आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में 60 फीसदी तक चने का उत्पादन प्रभावित हुआ है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, महाराष्टï्र और राजस्थान में 20 से 50 फीसदी तक चने की फसल को नुकसान पहुंचा है। मौसम में सुधार नहीं हुआ तो फसल को और ज्यादा नुकसान पहुंचने की आशंका है। घरेलू बाजार में जनवरी से चने की फसल आनी शुरू हो जाती है। आमतौर पर इस दौरान बाजार में विदेशी चने की भी आवक शुरू हो जाती है। हालांकि इस बार ऐसा नहीं है। प्रदेश की कई मंडियों में चने की आवक 1000-1500 बोरी के आस-पास ही है। वर्तमान में चने की मांग में तेजी को पूरा करने में चना व्यापारी खुद को असमर्थ मान रहे हैं। सत्र में प्रदेश में चने के रकबे में काफी उछाल दर्ज की गई थी। इस वर्ष प्रदेश में 31 लाख 45 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई की गई थी, जोकि पिछले कई वर्षों की तुलना में अधिक है। रकबे में इज़ाफे का कारण न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में हुई 20 फीसदी की बढ़ोतरी को बताया जा रहा है। सरकार ने इस वर्ष चने का एमएसपी बढ़ाकर 2,100 रुपये प्रति क्विंटल किया था, जबकि पिछले वर्ष 1,760 रुपये ही था। इंदौर के चना निर्यातक और उत्पादक गंगाराम ने बताया कि सरकार द्वारा चने का एमएसपी बढ़ाने से किसानों को मिली खुशी मौसम की बेरुखी के चलते खत्म हो गई है। देश के साथ ही विदेशों में भी चने की फसल को इस बार नुकसान पहुंचा है। इससे पिछले कुछ हफ्तों में 23 रुपये प्रति किलोग्राम वाले चने का दाम बढ़कर 26 रुपये के आस पास पहुंच गया है। हाल में प्रदेश में हुई असमय बारिश और अधिक ठंड के चलते कई जगह चने की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई है। कहीं-कहीं बारिश के कारण फसलों की बोअनी भी दोबारा करनी पड़ी है। इन क्षेत्रों में देवास, इंदौर, रतलाम, शाजापुर, धार, नीमच, सीहोर और उज्जैन जैसे चना उत्पादक जिले प्रमुख हैं। आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में चने का दाम 2,350 रुपये से लेकर 2,500 रुपये तक बना हुआ है। इसके अलावा डॉलर चने का दाम 5,100 रुपये से लेकर 5,500 रुपये के आस-पास है। देश का लगभग 60 से 65 फीसदी चना उत्पादन मध्यप्रदेश में ही होता है। प्रदेश में देवास, इंदौर, रतलाम, शाजापुर, धार, नीमच, सीहोर और उज्जैन अधिक मात्रा में चने के उत्पादक क्षेत्र हैं। चने के साथ ही प्रदेश में डॉलर चने का उत्पादन भी काफी मात्रा में होता है। भारी मात्रा में उत्पादन होने के चलते यहां के डॉलर चने को विदेशों में निर्यात किया जाता है। निर्यात किये जाने वाले देशों में पाकिस्तान, श्रीलंका, तुर्की, अल्जीरिया, दुबई और कई खाड़ी देश प्रमुख हैं। (BS Hindi)
महंगे प्राकृतिक रबर ने बढ़ाया टायरों का भाव
कोच्चि/नई दिल्ली January 17, 2011
प्राकृतिक रबर के दामों में हो रही बेतहाशा वृद्घि के चलते टायर निर्माता कंपनियां अब सभी तरह के टायरों के दामों में बढ़ोतरी करने जा रही हैं। चालू वित्त वर्ष के दौरान टायरों की कीमतों में यह चौथी बार बढ़ोतरी होने जा रही हैं। घरेलू बाजार में प्राकृतिक रबर के दाम इस समय 225 रुपये प्रति किलोग्राम की ऊंचाई पर पहुंच चुका है जो अब तक का सर्वोच्च स्तर है। जबकि पिछली तिमाही में रबर के दाम 180 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर थे। हालांकि कंपनी दर कंपनी सभी तरह के टायरों के दामों में बढ़ोतरी का स्तर अलग-अलग है लेकिन सभी कंपनियों ने इसमें औसतन 2 से 5 फीसदी का इजाफा करने का मन बनाया है। इस तरह चालू वित्त वर्ष के दौरान सभी तरह के टायर के दामों में अब तक तकरीबन 10 से 20 फीसदी तक की वृद्घि हो चुकी है। इसके पहले दिसंबर 2010 में टायर कंपनियों ने 4 से 5 फीसदी तक दामों में इजाफा किया था। जे के टायर ने अगले सप्ताह से अपने उत्पादों के दामों में 2 से 4 फीसदी तक बढ़ोतरी का निर्णय लिया है। कंपनी ने इसके पहले भी तीन बार टायरों के दामों में इजाफा किया था। कंपनी के निदेशक (विपणन) ए एस मेहता ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'कंपनी अगले सप्ताह से अपने सभी तरह के टायर उत्पाद महंगा करने जा रही है। चूंकि एक साथ इसमें 10 फीसदी तक बढ़ोतरी संभव नहीं है इसलिए फिलहाल हमने इसके दामों में केवल 2 से 4 फीसदी की वृद्घि का निर्णय लिया है।Ó सिंथेटिक रबर और कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी भी टायर उद्योग के लिए चिंता की बात है। मेहता का कहना है कि प्राकृतिक रबर के अलावा सिंथेटिक रबर और कच्चे तेल के दामों में वृद्घि के चलते हमारे पास टायरों के दामों में इजाफा करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि रबर के आयात पर शुल्क में कटौती के बाद भी टायर उद्योगों को पर्याप्त रूप से रबर की उपलब्धता नहीं हो पा रही है। जे के टायर के अलावा दूसरी अन्य टायर निर्माता कंपनियों ने भी टायरों के दामों में वृद्घि करने का फैसला किया है। देसी टायर बाजार में 20 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी रखने वाली कंपनी मेट्रो टायर्स इसी महीने के अंत या फरवरी के आरंभ में कीमत बढ़ाने जा रही है। कंपनी के प्रबंध निदेशक रूमी छाबड़ा ने बताया, 'प्राकृतिक रबर की कीमतों में जबरदस्त उछाल तो सभी देख रहे हैं। कृत्रिम रबर बनाने में काम आने वाला पेट्रोलियम भी वैश्विक बाजार में लगातार महंगा होता जा रहा है। इसलिए टायर कंपनियों के लिए दाम बढ़ाना अब अपरिहार्य हो गया है।Óछाबड़ा ने बताया कि मेट्रो टायर्स अपने उत्पादों की कीमत 5 से 6 फीसदी बढ़ाएगी। हालांकि अभी कंपनी ने इसका ऐलान नहीं किया है, लेकिन फरवरी के शुरुआती हफ्ते तक बढ़ोतरी कर दी जाएगी।अपोलो टायर के प्रमुख (भारत स्थित कारोबार) सतीश शर्मा कहते हैं, 'चालू तिमाही में हमारी कंपनी ने भी टायरों के दामों में बढ़ोतरी करने का फैसला किया है लेकिन बढ़ोतरी के स्तर के बारे में अभी विचार किया जा रहा है। हम कई चीजों को ध्यान में रखते हुए इस पर निर्णय लेंगे। जब तक कोई फैसला नहीं हो जाता तब तक इस बारे में कुछ कह पाना मुश्किल है।Ó चालू वित्त वर्ष के दौरान अपोलो टायर अब तक तीन बार इसके दामों में इजाफा कर चुकी है। उनके अनुसार वित्त वर्ष के दौरान कंपनी ने दामों में अब तक कुल 10 फीसदी की वृद्घि की है। ऑटोमोटिव टायर मैन्युफेक्चरर्स एसोसिएशन (एटमा) के महानिदेशक राजीव बुद्घराज कहते हैं कि प्राकृतिक रबर के दामों में रोज-रोज हो रही वृद्घि से टायर निर्माता कंपनियों की मुश्किलें काफी बढ़ गई हैं। बढ़ते लागत खर्च का भार उठाने में कंपनियां पूरी तरह असमर्थ हैं, ऐसे में टायरों के दाम बढ़ाने के अलावा उनके पास और कोई दूसरा विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्टï्रीय स्तर पर भी टायरों के दाम हर दिन नई ऊंचाई छू रहे हैं। इससे आयात शुल्क में कटौती करने के बाद भी टायर उद्योगों को कोई राहत नहीं मिली। दाम बढऩे के बाद भी रबर की पर्याप्त उपलब्धता न हो पाना भी टायर कंपनियों की एक प्रमुख चिंंता है। उन्होंने कहा कि भारत समेत दुनिया भर में टायर का उत्पादन घटने से इस तरह की मुश्किलें पैदा हो रही हैं। इसका मतलब है कि प्राकृतिक रबर का उत्पादन बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत है। (BS Hindi)
प्राकृतिक रबर के दामों में हो रही बेतहाशा वृद्घि के चलते टायर निर्माता कंपनियां अब सभी तरह के टायरों के दामों में बढ़ोतरी करने जा रही हैं। चालू वित्त वर्ष के दौरान टायरों की कीमतों में यह चौथी बार बढ़ोतरी होने जा रही हैं। घरेलू बाजार में प्राकृतिक रबर के दाम इस समय 225 रुपये प्रति किलोग्राम की ऊंचाई पर पहुंच चुका है जो अब तक का सर्वोच्च स्तर है। जबकि पिछली तिमाही में रबर के दाम 180 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर थे। हालांकि कंपनी दर कंपनी सभी तरह के टायरों के दामों में बढ़ोतरी का स्तर अलग-अलग है लेकिन सभी कंपनियों ने इसमें औसतन 2 से 5 फीसदी का इजाफा करने का मन बनाया है। इस तरह चालू वित्त वर्ष के दौरान सभी तरह के टायर के दामों में अब तक तकरीबन 10 से 20 फीसदी तक की वृद्घि हो चुकी है। इसके पहले दिसंबर 2010 में टायर कंपनियों ने 4 से 5 फीसदी तक दामों में इजाफा किया था। जे के टायर ने अगले सप्ताह से अपने उत्पादों के दामों में 2 से 4 फीसदी तक बढ़ोतरी का निर्णय लिया है। कंपनी ने इसके पहले भी तीन बार टायरों के दामों में इजाफा किया था। कंपनी के निदेशक (विपणन) ए एस मेहता ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'कंपनी अगले सप्ताह से अपने सभी तरह के टायर उत्पाद महंगा करने जा रही है। चूंकि एक साथ इसमें 10 फीसदी तक बढ़ोतरी संभव नहीं है इसलिए फिलहाल हमने इसके दामों में केवल 2 से 4 फीसदी की वृद्घि का निर्णय लिया है।Ó सिंथेटिक रबर और कच्चे तेल के दामों में बढ़ोतरी भी टायर उद्योग के लिए चिंता की बात है। मेहता का कहना है कि प्राकृतिक रबर के अलावा सिंथेटिक रबर और कच्चे तेल के दामों में वृद्घि के चलते हमारे पास टायरों के दामों में इजाफा करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि रबर के आयात पर शुल्क में कटौती के बाद भी टायर उद्योगों को पर्याप्त रूप से रबर की उपलब्धता नहीं हो पा रही है। जे के टायर के अलावा दूसरी अन्य टायर निर्माता कंपनियों ने भी टायरों के दामों में वृद्घि करने का फैसला किया है। देसी टायर बाजार में 20 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी रखने वाली कंपनी मेट्रो टायर्स इसी महीने के अंत या फरवरी के आरंभ में कीमत बढ़ाने जा रही है। कंपनी के प्रबंध निदेशक रूमी छाबड़ा ने बताया, 'प्राकृतिक रबर की कीमतों में जबरदस्त उछाल तो सभी देख रहे हैं। कृत्रिम रबर बनाने में काम आने वाला पेट्रोलियम भी वैश्विक बाजार में लगातार महंगा होता जा रहा है। इसलिए टायर कंपनियों के लिए दाम बढ़ाना अब अपरिहार्य हो गया है।Óछाबड़ा ने बताया कि मेट्रो टायर्स अपने उत्पादों की कीमत 5 से 6 फीसदी बढ़ाएगी। हालांकि अभी कंपनी ने इसका ऐलान नहीं किया है, लेकिन फरवरी के शुरुआती हफ्ते तक बढ़ोतरी कर दी जाएगी।अपोलो टायर के प्रमुख (भारत स्थित कारोबार) सतीश शर्मा कहते हैं, 'चालू तिमाही में हमारी कंपनी ने भी टायरों के दामों में बढ़ोतरी करने का फैसला किया है लेकिन बढ़ोतरी के स्तर के बारे में अभी विचार किया जा रहा है। हम कई चीजों को ध्यान में रखते हुए इस पर निर्णय लेंगे। जब तक कोई फैसला नहीं हो जाता तब तक इस बारे में कुछ कह पाना मुश्किल है।Ó चालू वित्त वर्ष के दौरान अपोलो टायर अब तक तीन बार इसके दामों में इजाफा कर चुकी है। उनके अनुसार वित्त वर्ष के दौरान कंपनी ने दामों में अब तक कुल 10 फीसदी की वृद्घि की है। ऑटोमोटिव टायर मैन्युफेक्चरर्स एसोसिएशन (एटमा) के महानिदेशक राजीव बुद्घराज कहते हैं कि प्राकृतिक रबर के दामों में रोज-रोज हो रही वृद्घि से टायर निर्माता कंपनियों की मुश्किलें काफी बढ़ गई हैं। बढ़ते लागत खर्च का भार उठाने में कंपनियां पूरी तरह असमर्थ हैं, ऐसे में टायरों के दाम बढ़ाने के अलावा उनके पास और कोई दूसरा विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्टï्रीय स्तर पर भी टायरों के दाम हर दिन नई ऊंचाई छू रहे हैं। इससे आयात शुल्क में कटौती करने के बाद भी टायर उद्योगों को कोई राहत नहीं मिली। दाम बढऩे के बाद भी रबर की पर्याप्त उपलब्धता न हो पाना भी टायर कंपनियों की एक प्रमुख चिंंता है। उन्होंने कहा कि भारत समेत दुनिया भर में टायर का उत्पादन घटने से इस तरह की मुश्किलें पैदा हो रही हैं। इसका मतलब है कि प्राकृतिक रबर का उत्पादन बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत है। (BS Hindi)
17 जनवरी 2011
अखाद्य तेल भी हुए महंगे
निर्यातकों के साथ ही औद्योगिक मांग बढऩे से पिछले डेढ़ महीने में अखाद्य तेलों की कीमतों में 10 से 20 फीसदी की तेजी आ चुकी है। पाम फैट्टी तेल की कीमतें दिसंबर के शुरू में 4,000 रुपये प्रति क्विंटल थी जो बढ़कर 4,800 रुपये प्रति क्विंटल हो गई।
राइसब्रान फैट्टी के दाम 3,500 रुपये से बढ़कर 4,100 रुपये, केस्टर तेल का भाव 8,500 रुपये से बढ़कर 9,600 रुपये, महुआ तेल का भाव 4,000 रुपये से बढ़कर 4,700 रुपये, नीम तेल का 3,800 से बढ़कर 4,200 रुपये और अलसी तेल का 4,100 रुपये बढ़कर 4,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। अखाद्य तेलों में लुब्रिकेंट, पेंट, साबुन और डिटर्जेंट निर्माताओं की मांग अच्छी बनी हुई है। बालाजी इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग डायरेक्टर राहुल बजाज ने बताया कि अखाद्य तेलों में औद्योगिक मांग के साथ निर्यात मांग अच्छी है।
साथ ही खाद्य तेल के दाम ऊंचे होने के कारण भी अखाद्य तेलों की कीमतें बढ़ी हैं। मध्य फरवरी तक दाम ऊंचे बने रहने की संभावना है। लेकिन मार्च के बाद रबी फसलों की आवक शुरू हो जाएगी जिससे अखाद्य तेलों के दाम घट सकते हैं। अखाद्य तेलों के थोक विक्रेता आलोक गुप्ता ने बताया कि पाम फैट्टी तेल की कीमतें पहली दिसंबर को मुंबई में 4,000 रुपये प्रति क्विंटल थी जो शनिवार को बढ़कर 4,800 रुपये प्रति क्विंटल हो गई।
इसी तरह से राइसब्रान फैट्टी के दाम एक्स फैक्ट्री पंजाब में 3,500 रुपये प्रति क्विंटल थे, जो बढ़कर 4,100 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। पहली दिसंबर को केस्टर तेल का भाव 8,500 रुपये प्रति क्विंटल था जोकि बढ़कर 9,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। नीम तेल में साबुन निर्माताओं की अच्छी मांग है इसीलिए इसका भाव 3,800 से बढ़कर 4,200 रुपये प्रति क्विंटल हो गया।
अलसी तेल में पेंट निर्माताओं की मांग बढऩे से भाव 4,000 रुपये बढ़कर 4,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी. वी. मेहता ने बताया कि कच्चे माल के दाम बढऩे से अखाद्य तेलों की कीमतें बढ़ रही हैं।
विदेशी में दाम बढऩे से अखाद्य तेलों का आयात भी कम हो रहा है। दिसंबर महीने में अखाद्य तेलों का आयात घटकर 22,494 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल दिसंबर में 25,588 टन का आयात हुआ था। नवंबर-दिसंबर में अखाद्य तेलों के आयात में 41 फीसदी की कमी आकर कुल आयात 39,149 टन का ही हुआ है।
जयंत एग्रो ऑर्गनिक लिमिटेड के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर वामन भाई ने बताया कि चीन के आयातकों की मांग से केस्टर तेल की कीमतों में तेजी बनी हुई है। वर्ष 2010 में केस्टर तेल का निर्यात करीब चार लाख टन का हुआ है। चालू वर्ष में निर्यात और बढऩे की संभावना है। चीन के आयातक इस समय 2050-2,100 डॉलर प्रति टन की दर से सौदे कर रहे हैं जबकि दिसंबर के शुरू में इसका भाव 1850-1900 डॉलर प्रति टन था।
सेंट्रल ऑर्गनाइजेशन ऑफ आयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड (कोएट) के अनुसार वर्ष 2010-11 में केस्टर तेल की उपलब्धता 4.4 लाख टन से बढ़कर 5.31 लाख टन और राइसब्रान तेल की 8 लाख टन से बढ़कर 8.30 लाख टन होने का अनुमान है।rana@businessbhaskar.net (Business Bhaskar....R S Rana)
राइसब्रान फैट्टी के दाम 3,500 रुपये से बढ़कर 4,100 रुपये, केस्टर तेल का भाव 8,500 रुपये से बढ़कर 9,600 रुपये, महुआ तेल का भाव 4,000 रुपये से बढ़कर 4,700 रुपये, नीम तेल का 3,800 से बढ़कर 4,200 रुपये और अलसी तेल का 4,100 रुपये बढ़कर 4,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। अखाद्य तेलों में लुब्रिकेंट, पेंट, साबुन और डिटर्जेंट निर्माताओं की मांग अच्छी बनी हुई है। बालाजी इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग डायरेक्टर राहुल बजाज ने बताया कि अखाद्य तेलों में औद्योगिक मांग के साथ निर्यात मांग अच्छी है।
साथ ही खाद्य तेल के दाम ऊंचे होने के कारण भी अखाद्य तेलों की कीमतें बढ़ी हैं। मध्य फरवरी तक दाम ऊंचे बने रहने की संभावना है। लेकिन मार्च के बाद रबी फसलों की आवक शुरू हो जाएगी जिससे अखाद्य तेलों के दाम घट सकते हैं। अखाद्य तेलों के थोक विक्रेता आलोक गुप्ता ने बताया कि पाम फैट्टी तेल की कीमतें पहली दिसंबर को मुंबई में 4,000 रुपये प्रति क्विंटल थी जो शनिवार को बढ़कर 4,800 रुपये प्रति क्विंटल हो गई।
इसी तरह से राइसब्रान फैट्टी के दाम एक्स फैक्ट्री पंजाब में 3,500 रुपये प्रति क्विंटल थे, जो बढ़कर 4,100 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। पहली दिसंबर को केस्टर तेल का भाव 8,500 रुपये प्रति क्विंटल था जोकि बढ़कर 9,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। नीम तेल में साबुन निर्माताओं की अच्छी मांग है इसीलिए इसका भाव 3,800 से बढ़कर 4,200 रुपये प्रति क्विंटल हो गया।
अलसी तेल में पेंट निर्माताओं की मांग बढऩे से भाव 4,000 रुपये बढ़कर 4,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी. वी. मेहता ने बताया कि कच्चे माल के दाम बढऩे से अखाद्य तेलों की कीमतें बढ़ रही हैं।
विदेशी में दाम बढऩे से अखाद्य तेलों का आयात भी कम हो रहा है। दिसंबर महीने में अखाद्य तेलों का आयात घटकर 22,494 टन का ही हुआ है जबकि पिछले साल दिसंबर में 25,588 टन का आयात हुआ था। नवंबर-दिसंबर में अखाद्य तेलों के आयात में 41 फीसदी की कमी आकर कुल आयात 39,149 टन का ही हुआ है।
जयंत एग्रो ऑर्गनिक लिमिटेड के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर वामन भाई ने बताया कि चीन के आयातकों की मांग से केस्टर तेल की कीमतों में तेजी बनी हुई है। वर्ष 2010 में केस्टर तेल का निर्यात करीब चार लाख टन का हुआ है। चालू वर्ष में निर्यात और बढऩे की संभावना है। चीन के आयातक इस समय 2050-2,100 डॉलर प्रति टन की दर से सौदे कर रहे हैं जबकि दिसंबर के शुरू में इसका भाव 1850-1900 डॉलर प्रति टन था।
सेंट्रल ऑर्गनाइजेशन ऑफ आयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड (कोएट) के अनुसार वर्ष 2010-11 में केस्टर तेल की उपलब्धता 4.4 लाख टन से बढ़कर 5.31 लाख टन और राइसब्रान तेल की 8 लाख टन से बढ़कर 8.30 लाख टन होने का अनुमान है।rana@businessbhaskar.net (Business Bhaskar....R S Rana)
सरकार ने की महंगाई पर चढ़ाई
नई दिल्ली January 13, 2011
कई हफ्तों से सरकार के लिए सिरदर्द बनी महंगाई के आंकड़ों में आज कुछ नरमी नजर आई, लेकिन विपक्ष के हमलों से बचने के लिए सरकार ने उस पर धावा बोलने में कोताही नहीं बरती। उसने महंगाई पर काबू पाने के लिए अंतर मंत्रालय समूह तो बनाया ही, एक के बाद एक उपायों की ताबड़तोड़ घोषणा भी कर डाली। उसने राज्यों से मंडी शुल्क खत्म करने और जमाखोरों पर कार्रवाई करने को कहा है।सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1 जनवरी को खत्म सप्ताह में खाद्य मुद्रास्फीति 1.41 फीसदी घटकर 16.91 फीसदी हो गई। इससे पिछले हफ्ते में आंकड़ा 18.32 फीसदी तक चढ़ गया था। हालांकि इसका असर थाली पर ज्यादा नहीं दिखा और सब्जी, प्याज तथा प्रोटीन वाली जिंसों के भाव में तेजी बनी रही।बहरहाल, दो दिन से कई बैठक और मशविरे कर रही सरकार ने महंगाई की तपिश कम करने के लिए मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु की अध्यक्षता में समूह बना दिया। यह समूह महंगाई के हालात की समीक्षा करेगा। इसके अलावा उसने सांठगांठ कर दाम बढ़ाने वाले कालाबाजारियों और जमाखोरों के खिलाफ भी सख्त रुख अपना लिया। सरकार ने कहा कि उत्पादों को समय से बाजार में पहुंचाने और भाव सामान्य स्तर पर बरकरार रखने के लिए ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई भी की जाएगी।सबसे अहम फैसले में केंद्र ने राज्य सरकारों से महंगाई रोकने में मदद के लिए कहा है। राज्यों के बीच आवश्यक वस्तुओं का आवागमन सरल बनाने और कमीशन एजेंट शुल्क घटाने के उद्देश्य से उसने राज्य सरकारों से मंडी शुल्क, चुंगी और अन्य स्थानीय शुल्क हटाने की अपील की है।इसके अलावा केंद्र सरकार अब आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता बढ़ाने के लिए नियमित आधार पर आयात और निर्यात का जायजा लेगी। निर्यात पर नियंत्रण किया जाएगा और आयात की राह में अड़चनें हटाने के लिए पूरे प्रयास किए जाएंगे। इसके अलावा महंगाई की चाल के मुताबिक जरूरी होने पर देसी आपूर्ति बढ़ाने के लिहाज से शुल्क भी कम किए जाएंगे।सरकार ने कहा है कि खरीफ के मौसम में जबरदस्त फसल के रखरखाव का भी माकूल इंतजाम किया जाएगा। फसल के बेहतर भंडारण के लिए गोदामों की क्षमता में इजाफा किया जाएगा और उन्हें आधुनिक भी बनाया जाएगा। इसके अलावा बुनियादी ढांचे से जुड़े तमाम पहलुओं पर सरकार सहयोग भी देगी।महंगाई के मसले पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को वरिष्ठï कैबिनेट सहयोगियों के साथ बैठक की थी। इसके बाद बुधवार को भी इस मसले पर बैठक हुई, जिसमें महंगाई से निपटने के सभी तरीकों पर विचार किया गया। (BS Hindi)
कई हफ्तों से सरकार के लिए सिरदर्द बनी महंगाई के आंकड़ों में आज कुछ नरमी नजर आई, लेकिन विपक्ष के हमलों से बचने के लिए सरकार ने उस पर धावा बोलने में कोताही नहीं बरती। उसने महंगाई पर काबू पाने के लिए अंतर मंत्रालय समूह तो बनाया ही, एक के बाद एक उपायों की ताबड़तोड़ घोषणा भी कर डाली। उसने राज्यों से मंडी शुल्क खत्म करने और जमाखोरों पर कार्रवाई करने को कहा है।सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1 जनवरी को खत्म सप्ताह में खाद्य मुद्रास्फीति 1.41 फीसदी घटकर 16.91 फीसदी हो गई। इससे पिछले हफ्ते में आंकड़ा 18.32 फीसदी तक चढ़ गया था। हालांकि इसका असर थाली पर ज्यादा नहीं दिखा और सब्जी, प्याज तथा प्रोटीन वाली जिंसों के भाव में तेजी बनी रही।बहरहाल, दो दिन से कई बैठक और मशविरे कर रही सरकार ने महंगाई की तपिश कम करने के लिए मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु की अध्यक्षता में समूह बना दिया। यह समूह महंगाई के हालात की समीक्षा करेगा। इसके अलावा उसने सांठगांठ कर दाम बढ़ाने वाले कालाबाजारियों और जमाखोरों के खिलाफ भी सख्त रुख अपना लिया। सरकार ने कहा कि उत्पादों को समय से बाजार में पहुंचाने और भाव सामान्य स्तर पर बरकरार रखने के लिए ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई भी की जाएगी।सबसे अहम फैसले में केंद्र ने राज्य सरकारों से महंगाई रोकने में मदद के लिए कहा है। राज्यों के बीच आवश्यक वस्तुओं का आवागमन सरल बनाने और कमीशन एजेंट शुल्क घटाने के उद्देश्य से उसने राज्य सरकारों से मंडी शुल्क, चुंगी और अन्य स्थानीय शुल्क हटाने की अपील की है।इसके अलावा केंद्र सरकार अब आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता बढ़ाने के लिए नियमित आधार पर आयात और निर्यात का जायजा लेगी। निर्यात पर नियंत्रण किया जाएगा और आयात की राह में अड़चनें हटाने के लिए पूरे प्रयास किए जाएंगे। इसके अलावा महंगाई की चाल के मुताबिक जरूरी होने पर देसी आपूर्ति बढ़ाने के लिहाज से शुल्क भी कम किए जाएंगे।सरकार ने कहा है कि खरीफ के मौसम में जबरदस्त फसल के रखरखाव का भी माकूल इंतजाम किया जाएगा। फसल के बेहतर भंडारण के लिए गोदामों की क्षमता में इजाफा किया जाएगा और उन्हें आधुनिक भी बनाया जाएगा। इसके अलावा बुनियादी ढांचे से जुड़े तमाम पहलुओं पर सरकार सहयोग भी देगी।महंगाई के मसले पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को वरिष्ठï कैबिनेट सहयोगियों के साथ बैठक की थी। इसके बाद बुधवार को भी इस मसले पर बैठक हुई, जिसमें महंगाई से निपटने के सभी तरीकों पर विचार किया गया। (BS Hindi)
आंध्र प्रदेश में रबी फसल की बढ़ेगी पैदावार
हैदराबाद January 14, 2011
इस रबी सीजन में आंध्र प्रदेश में करीब 4 लाख हेक्टेयर जमीन में धान की बुआई होगी। सामान्यत: रबी की सभी फसलों की बुआई कुल 39.2 लाख हेक्टेयर जमीन में होती है, लेकिन अकेले धान की फसल 14.3 लाख हेक्टेयर में बोई जाती है। इस साल धान की बुआई का कुल रकबा 18 लाख हेक्टेयर रहने की संभावना है। अब तक 24.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई हो चुकी है।इस साल 5 जनवरी तक 4.27 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बुआई हो चुकी है जबकि पिछले साल इस अवधि में 5.55 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बुआई हुई थी। धान का यह रकबा पिछले साल के मुकाबले कम है क्योंकि खरीफ फसल की देर से हुई कटाई के चलते कुछ इलाकों में बुआई का काम देर से शुरू हुआ था। दलहन की फसल का कुल रकबा सामान्यत: 11.3 लाख हेक्टेयर होता है, लेकिन इस साल अभी तक 1.03 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई है। पिछले साल रबी सीजन में सभी फसलों का कुल रकबा 21.9 लाख हेक्टेयर था।कृषि आयुक्त सुनील शर्मा ने कहा - हाल में हुई बारिश की वजह से पानी की स्थिति ठीक है। किसान खरीफ सीजन में हुए नुकसान की भरपाई की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि रबी सीजन के लिए एक ओर जहां 10 लाख क्विंटल बीज की दरकार है और इसकी सब्सिडी की कीमत 114 करोड़ रुपये है, वहीं करीब 34 लाख टन उर्वरक की जरूरत है। रबी सीजन में बैंकों ने अब तक 4800 करोड़ रुपये का कर्ज बांटा है और आने वाले दिनों में और कर्ज बांटे जाएंगे। चना, मिर्च और गन्ने को छोड़कर खरीफ की बाकी फसल की कटाई का काम पूरा हो चुका है। शुरुआती दौर में बोए गए इलाकों और बारिश पर आश्रित इलाकों में शुरुआती काम शुरू हो चुका है। हालांकि मूसलाधार बारिश की वजह से दिसंबर तक राज्य में 17.1 लाख हेक्टेयर जमीन में लगी फसल को नुकसान पहुंचा है। बारिश ने कृषि क्षेत्र पर प्रतिकूल असर डाला है क्योंकि इस वजह से धान, कपास और मक्के की फसल की पैदावार पर भी असर पड़ा है। साथ ही कुर्नूल व अनंतपुर जिले में चने की फसल में लगी बीमारी से भी उत्पादन पर असर पडऩे की संभावना है। मक्के और चने की फसल शुरुआती अïवस्था में है जबकि बंगाली चने में फूल आने लगे हैं क्योंकि इसकी बुआई का काम मध्य जनवरी तक चलेगा। कुएं व सिंचाई के दूसरे छोटे स्रोतों से धान की बुआई का काम भी चल रहा है। साथ ही दलहन की भी बुआई हो रही है। श्रीकाकुलम, नेल्लोर, कुर्नूल, अनंतपुर, रंगारेड्डी, विशाखापट्टनम और महबूबनगर जिले कृषि गतिविधियों के मामले में फिलहाल दूसरे जिलों के मुकाबले अग्रणी स्थान पर हैं। (BS Hindi)
इस रबी सीजन में आंध्र प्रदेश में करीब 4 लाख हेक्टेयर जमीन में धान की बुआई होगी। सामान्यत: रबी की सभी फसलों की बुआई कुल 39.2 लाख हेक्टेयर जमीन में होती है, लेकिन अकेले धान की फसल 14.3 लाख हेक्टेयर में बोई जाती है। इस साल धान की बुआई का कुल रकबा 18 लाख हेक्टेयर रहने की संभावना है। अब तक 24.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई हो चुकी है।इस साल 5 जनवरी तक 4.27 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बुआई हो चुकी है जबकि पिछले साल इस अवधि में 5.55 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बुआई हुई थी। धान का यह रकबा पिछले साल के मुकाबले कम है क्योंकि खरीफ फसल की देर से हुई कटाई के चलते कुछ इलाकों में बुआई का काम देर से शुरू हुआ था। दलहन की फसल का कुल रकबा सामान्यत: 11.3 लाख हेक्टेयर होता है, लेकिन इस साल अभी तक 1.03 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई है। पिछले साल रबी सीजन में सभी फसलों का कुल रकबा 21.9 लाख हेक्टेयर था।कृषि आयुक्त सुनील शर्मा ने कहा - हाल में हुई बारिश की वजह से पानी की स्थिति ठीक है। किसान खरीफ सीजन में हुए नुकसान की भरपाई की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि रबी सीजन के लिए एक ओर जहां 10 लाख क्विंटल बीज की दरकार है और इसकी सब्सिडी की कीमत 114 करोड़ रुपये है, वहीं करीब 34 लाख टन उर्वरक की जरूरत है। रबी सीजन में बैंकों ने अब तक 4800 करोड़ रुपये का कर्ज बांटा है और आने वाले दिनों में और कर्ज बांटे जाएंगे। चना, मिर्च और गन्ने को छोड़कर खरीफ की बाकी फसल की कटाई का काम पूरा हो चुका है। शुरुआती दौर में बोए गए इलाकों और बारिश पर आश्रित इलाकों में शुरुआती काम शुरू हो चुका है। हालांकि मूसलाधार बारिश की वजह से दिसंबर तक राज्य में 17.1 लाख हेक्टेयर जमीन में लगी फसल को नुकसान पहुंचा है। बारिश ने कृषि क्षेत्र पर प्रतिकूल असर डाला है क्योंकि इस वजह से धान, कपास और मक्के की फसल की पैदावार पर भी असर पड़ा है। साथ ही कुर्नूल व अनंतपुर जिले में चने की फसल में लगी बीमारी से भी उत्पादन पर असर पडऩे की संभावना है। मक्के और चने की फसल शुरुआती अïवस्था में है जबकि बंगाली चने में फूल आने लगे हैं क्योंकि इसकी बुआई का काम मध्य जनवरी तक चलेगा। कुएं व सिंचाई के दूसरे छोटे स्रोतों से धान की बुआई का काम भी चल रहा है। साथ ही दलहन की भी बुआई हो रही है। श्रीकाकुलम, नेल्लोर, कुर्नूल, अनंतपुर, रंगारेड्डी, विशाखापट्टनम और महबूबनगर जिले कृषि गतिविधियों के मामले में फिलहाल दूसरे जिलों के मुकाबले अग्रणी स्थान पर हैं। (BS Hindi)
चीनी विनियंत्रण पर अभी विचार नहीं : शरद पवार
पुणे January 16, 2011
बढ़ती कीमतों की वजह से चीनी उद्योग का प्रमुख सुधार टाल गया है। विनियंत्रण के लिए बची एकमात्र जिंस चीनी सरकारी एजेंडे में नहीं है। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने बिजनेस स्टैंडर्ड से स्पष्ट रूप से कहा है कि 250 लाख टन चीनी के उत्पादन के अनुमान को देखते हुए चीनी उद्योग का विनियंत्रण फिलहाल केंद्र सरकार के एजेंडे में नहीं है।चीनी उद्योग की यह प्रमुख मांग है और पवार ने कहा कि उन्हें इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन की तरफ से उद्योग को विनियंत्रित करने का अनुरोध प्राप्त हुआ है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया कि चीनी निर्यात को टाला नहीं गया है। पवार ने कहा - केंद्र पहले ही विभिन्न मिलों को चीनी निर्यात का आदेश जारी कर चुका है। मिलों से 31 जनवरी तक सभी आवश्यक शर्तों को पूरा करने को कहा गया है। इसके साथ ही अधिकार प्राप्त मंत्री समूह चीनी का मौजूदा उत्पादन व कीमतों की समीक्षा कर रहा है।कई और कदमों का संकेत देते हुए पवार ने कहा कि केंद्र आवश्यक नीति व वित्तीय फैसले ले रहा है ताकि स्थिति का सामना किया जा सके और उपभोक्ताओं को जरूरी राहत दी जा सके। हालांकि उन्होंने इस बारे में विस्तार से बताने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि ऐसे महत्वपूर्ण फैसले के बारे में मीडिया को नहीं बताया जा सकता।इस बीच, पुणे जिले में पॉलिटेक्निक कॉलेज के उद्घाटन के बाद पवार ने कहा कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और सौराष्ट्र से प्याज की आवक शुरू होने से इसकी उपलब्धता में सुधार आएगा और कीमतों में भी गिरावट आएगी। उन्होंने कहा कि प्याज का मौजूदा संकट मौसमी चक्र की वजह से है और जल्दी ही स्थिति में सुधार आएगा। पवार ने गेहूं, चावल, चीनी, तिलहन व दलहन के उत्पादन की बाबत केंद्र की नीति का बचाव किया। उन्होंने कहा कि इन नीतियों के सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं क्योंकि पिछले दो सालोंं से उच्च उत्पादन की वजह से केंद्र राज्यों में अनाज भेजता रहा है। उन्होंने कहा कि दूसरे देशों के मुकाबले भारत में गेहूं, चावल और चीनी की कीमत कम है। पवार ने कहा कि विभिन्न राज्यों की कृषि उत्पाद विपणन कमेटी को अलग कानून बनाकर सब्जियों की कीमतों पर फैसला लेते हैं। उन्होंने कहा - हम यह फैसला नहीं लेते कि बाजार का व्यवहार कैसा हो। (BS Hindi)
बढ़ती कीमतों की वजह से चीनी उद्योग का प्रमुख सुधार टाल गया है। विनियंत्रण के लिए बची एकमात्र जिंस चीनी सरकारी एजेंडे में नहीं है। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने बिजनेस स्टैंडर्ड से स्पष्ट रूप से कहा है कि 250 लाख टन चीनी के उत्पादन के अनुमान को देखते हुए चीनी उद्योग का विनियंत्रण फिलहाल केंद्र सरकार के एजेंडे में नहीं है।चीनी उद्योग की यह प्रमुख मांग है और पवार ने कहा कि उन्हें इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन की तरफ से उद्योग को विनियंत्रित करने का अनुरोध प्राप्त हुआ है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया कि चीनी निर्यात को टाला नहीं गया है। पवार ने कहा - केंद्र पहले ही विभिन्न मिलों को चीनी निर्यात का आदेश जारी कर चुका है। मिलों से 31 जनवरी तक सभी आवश्यक शर्तों को पूरा करने को कहा गया है। इसके साथ ही अधिकार प्राप्त मंत्री समूह चीनी का मौजूदा उत्पादन व कीमतों की समीक्षा कर रहा है।कई और कदमों का संकेत देते हुए पवार ने कहा कि केंद्र आवश्यक नीति व वित्तीय फैसले ले रहा है ताकि स्थिति का सामना किया जा सके और उपभोक्ताओं को जरूरी राहत दी जा सके। हालांकि उन्होंने इस बारे में विस्तार से बताने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि ऐसे महत्वपूर्ण फैसले के बारे में मीडिया को नहीं बताया जा सकता।इस बीच, पुणे जिले में पॉलिटेक्निक कॉलेज के उद्घाटन के बाद पवार ने कहा कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और सौराष्ट्र से प्याज की आवक शुरू होने से इसकी उपलब्धता में सुधार आएगा और कीमतों में भी गिरावट आएगी। उन्होंने कहा कि प्याज का मौजूदा संकट मौसमी चक्र की वजह से है और जल्दी ही स्थिति में सुधार आएगा। पवार ने गेहूं, चावल, चीनी, तिलहन व दलहन के उत्पादन की बाबत केंद्र की नीति का बचाव किया। उन्होंने कहा कि इन नीतियों के सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं क्योंकि पिछले दो सालोंं से उच्च उत्पादन की वजह से केंद्र राज्यों में अनाज भेजता रहा है। उन्होंने कहा कि दूसरे देशों के मुकाबले भारत में गेहूं, चावल और चीनी की कीमत कम है। पवार ने कहा कि विभिन्न राज्यों की कृषि उत्पाद विपणन कमेटी को अलग कानून बनाकर सब्जियों की कीमतों पर फैसला लेते हैं। उन्होंने कहा - हम यह फैसला नहीं लेते कि बाजार का व्यवहार कैसा हो। (BS Hindi)
बढ़ती ठंड से चने में मजबूती
मुंबई January 16, 2011
उत्तर भारत में पड़ रही कड़ाके की ठंड ने चने की कीमतों में गरमाहट ला दी है। फसल खराब होने और नई फसल में देरी की आशंका ने चने के भाव बढ़ा दिए हैं। शादी-विवाह का सीजन होने की वजह से बाजार में मांग काफी तेज है। दक्षिण भारत में असमय हुई बारिश के चलते अरहर की फसल को नुकसान पहुंचा है, जो चने की बढ़ती कीमतों को और मजबूती प्रदान कर रही है।पिछले एक सप्ताह के अंदर चना करीब 100 रुपये प्रति क्विंटल महंगा हो चुका है। वायदा बाजार में चना (जून) तकरीबन 2,685 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है जबकि चार दिन पहले यह 2,500 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास था। हाजिर बाजार में भी चने की कीमतें तेजी से मजबूत हो रही हैं। बीकानेर में 2430 रुपये, दिल्ली में 2620 रुपये और मुंबई में 2680 रुपये प्रति क्ंिवटल के हिसाब से चना बिक रहा है। जबकि एक सप्ताह पहले इन मंडिय़ों में चने की कीमतें क्रमश: 2380 रुपये, 2490 रुपये और 2545 रुपये प्रति क्ंिवटल थी। कीमतें बढऩे की प्रमुख वजह चना उत्पादक प्रमुख राज्य मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में पाला पडऩे से चने की फसल खराब होने की आ रही खबरों को माना जा रहा है। साथ ही इन इलाकों में शीत लहर चलने के कारण फसल तैयार होने में 20-30 दिन का अतिरिक्त समय लगने वाला है। ऐंजल ब्रोकिंग की वेदिका नार्वेकर कहती हैं - चालू सीजन में ठंड के कारण चने की फसल में देरी के चलते इस कमोडिटी में तेजी आ रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतें घरेलू बाजार को गरम कर रही हैं। वेदिका का कहना है कि शादी-विवाह का सीजन होने की वजह से घरेलू मांग बहुत अच्छी है और नई फसल आने में समय लगने वाला है। जियोजित कॉमटे्रड की अंकिता पारिख कहती हैं कि पिछले महीने दक्षिण भारत में असमय हुई बारिश की वजह से इस इलाके की फसल प्रभावित हुई है, बरसात से कर्नाटक में अरहर की फसल को काफी नुकसान हुआ है। चने की कीमतों में आ रही तेजी की यह भी एक प्रमुख वजह है। 10 जनवरी तक के सरकारी आंकड़ों में इस बार चने का रकबा 90.83 लाख हेक्टेयर बताया गया है जबकि पिछले साल यह 83.32 लाख हेक्टेयर था। जानकार मानते हैं कि इस साल अच्छी बारिश होने के कारण खेतों में नमी बहुत अच्छी थी। इसके अलावा पिछले साल चना मुनाफे का सौदा साबित हुआ था, जिसे देखते हुए किसानों ने इस बार ज्यादा इलाके में चने की बुआई की थी। इस वजह से उत्पादन ज्यादा होने वाला है, लेकिन ठंड के कारण फसल आने में देरी हो रही है। चना उत्पादक दूसरे देशों में भी फसल खराब होने की आ रही खबरों ने स्टॉकिस्टों को सक्रिय कर दिया है। लेकिन फरवरी के दूसरे सप्ताह के बाद कीमतों में गिरावट आ सकती है। जबकि उत्पादन के वास्तविक आंकड़े आने के बाद ही बाजार में इसकी दिशा तय होगी। (BS Hindi)
उत्तर भारत में पड़ रही कड़ाके की ठंड ने चने की कीमतों में गरमाहट ला दी है। फसल खराब होने और नई फसल में देरी की आशंका ने चने के भाव बढ़ा दिए हैं। शादी-विवाह का सीजन होने की वजह से बाजार में मांग काफी तेज है। दक्षिण भारत में असमय हुई बारिश के चलते अरहर की फसल को नुकसान पहुंचा है, जो चने की बढ़ती कीमतों को और मजबूती प्रदान कर रही है।पिछले एक सप्ताह के अंदर चना करीब 100 रुपये प्रति क्विंटल महंगा हो चुका है। वायदा बाजार में चना (जून) तकरीबन 2,685 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है जबकि चार दिन पहले यह 2,500 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास था। हाजिर बाजार में भी चने की कीमतें तेजी से मजबूत हो रही हैं। बीकानेर में 2430 रुपये, दिल्ली में 2620 रुपये और मुंबई में 2680 रुपये प्रति क्ंिवटल के हिसाब से चना बिक रहा है। जबकि एक सप्ताह पहले इन मंडिय़ों में चने की कीमतें क्रमश: 2380 रुपये, 2490 रुपये और 2545 रुपये प्रति क्ंिवटल थी। कीमतें बढऩे की प्रमुख वजह चना उत्पादक प्रमुख राज्य मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में पाला पडऩे से चने की फसल खराब होने की आ रही खबरों को माना जा रहा है। साथ ही इन इलाकों में शीत लहर चलने के कारण फसल तैयार होने में 20-30 दिन का अतिरिक्त समय लगने वाला है। ऐंजल ब्रोकिंग की वेदिका नार्वेकर कहती हैं - चालू सीजन में ठंड के कारण चने की फसल में देरी के चलते इस कमोडिटी में तेजी आ रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतें घरेलू बाजार को गरम कर रही हैं। वेदिका का कहना है कि शादी-विवाह का सीजन होने की वजह से घरेलू मांग बहुत अच्छी है और नई फसल आने में समय लगने वाला है। जियोजित कॉमटे्रड की अंकिता पारिख कहती हैं कि पिछले महीने दक्षिण भारत में असमय हुई बारिश की वजह से इस इलाके की फसल प्रभावित हुई है, बरसात से कर्नाटक में अरहर की फसल को काफी नुकसान हुआ है। चने की कीमतों में आ रही तेजी की यह भी एक प्रमुख वजह है। 10 जनवरी तक के सरकारी आंकड़ों में इस बार चने का रकबा 90.83 लाख हेक्टेयर बताया गया है जबकि पिछले साल यह 83.32 लाख हेक्टेयर था। जानकार मानते हैं कि इस साल अच्छी बारिश होने के कारण खेतों में नमी बहुत अच्छी थी। इसके अलावा पिछले साल चना मुनाफे का सौदा साबित हुआ था, जिसे देखते हुए किसानों ने इस बार ज्यादा इलाके में चने की बुआई की थी। इस वजह से उत्पादन ज्यादा होने वाला है, लेकिन ठंड के कारण फसल आने में देरी हो रही है। चना उत्पादक दूसरे देशों में भी फसल खराब होने की आ रही खबरों ने स्टॉकिस्टों को सक्रिय कर दिया है। लेकिन फरवरी के दूसरे सप्ताह के बाद कीमतों में गिरावट आ सकती है। जबकि उत्पादन के वास्तविक आंकड़े आने के बाद ही बाजार में इसकी दिशा तय होगी। (BS Hindi)
13 जनवरी 2011
रबर की तेजी से उद्योग संकट में
नेचुरल रबर की कीमतों में आई भारी तेजी से छोटे उत्पाद बनाने वाली इकाइयों का मार्जिन समाप्त हो गया है। इसीलिए कपंनियां उत्पादों की कीमतों में आठ से दस फीसदी तक की बढ़ोतरी करेंगी। पिछले आठ महीने में नेचुरल रबर के दाम 24.11 फीसदी बढ़ चुके हैं जबकि इस दौरान कंपनियों ने उत्पादों के दाम सात से आठ फीसदी ही बढ़ाए हैं।उधर अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत के मुकाबले नेचुरल रबर के दाम 14.6 फीसदी ज्यादा है। ऐसे में आगामी दिनों में आयात कम होगा जबकि भारत से निर्यात बढ़ सकता है। इसीलिए घरेलू बाजार में नेचुरल रबर के दाम और भी बढऩे की संभावना है। एमबी रबर प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर राकेश जैन ने बताया कि जिस अनुपात में कच्चे माल के दाम बढ़े हैं। उस अनुपात में उत्पादों की कीमतें नहीं बढ़ी हैं इसलिए कंपनियों का मार्जिन समाप्त हो गया है।कंपनियां 12 फीसदी मार्जिन तय करके चलती है। पिछले आठ महीने में कच्चे माल के दाम 24.11 फीसदी बढ़ चुके हैं लेकिन इस दौरान उत्पादों की कीमतों में सात-आठ फीसदी की बढ़ोतरी की गई है। ऐसे में नुकसान से बचने के लिए मजबूरन कंपनियों को उत्पादों की कीमतों में आठ से दस फीसदी तक की बढ़ोतरी करनी पड़ेगी।विनको ऑटो इंडस्ट्रीज लिमिटेड मैनेजिंग डायरेक्टर एम. एल. गुप्ता ने बताया कि नेचुरल रबर की कीमतों में आई तेजी से छोटी उत्पादक कंपनियों को परेशानी हो रही है। कच्चे माल के मुकाबले उत्पादों के दाम नहीं बढऩे से छोटी इकाइयां बंद होने के कगार पर है। वैसे भी छोटे उत्पाद बनाने वाली इकाइयों को कच्चा माल नकद पैमेंट पर खरीदना पड़ता है जिससे कंपनियों पर बैंकों का कर्ज लगातार बढ़ रहा है। नेचुरल रबर का भाव कोट्टायम में 211 रुपये प्रति किलो हो गया जबकि जून में इसका भाव 170 रुपये प्रति किलो था।डायमंड टॉयस कंपनी प्रा. लि. के मैनेजिंग डायरेक्टर आर के गुप्ता ने बताया कि छोटी इकाइयों ने अपने उत्पादों के दाम दिसंबर में तीन से चार फीसदी तक बढ़ाए थे लेकिन बढ़े हुई कीमतों पर आर्डर नहीं आ रहे हैं। ऐसे में कंपनियों पर दोहरी मार पड़ रही है। लेबर की पैमेंट के साथ ही बैंकों का ब्याज तो लगातार बढ़ रहा है लेकिन आर्डर कम आने से सप्लाई बाधित हो रही है।आल इंडिया रबर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के डिप्टी जनरल सेक्रेटरी ए. के. गोयल ने बताया कि भारत के मुकाबले विदेशी में नेचुरल रबर के दाम ज्यादा हैं। इसलिए आगामी महीने में आयात कम रहेगा तथा भारत से निर्यात बढऩे की संभावना है।ऐसे में मौजूदा कीमतों में और भी तेजी की संभावना है। रबर बोर्ड के अनुसार वर्ष 2010 में नेचुरल रबर का उत्पादन 8.51 लाख टन होने का अनुमान है जबकि इस दौरान खपत 9.48 लाख टन होने की संभावना है। (Business Bhaskar...R S Rana)
बिहार के किसानों को है रबी फसलों से उम्मीद
पटना January 12, 2011
मॉनसून की आंख-मिचौली के चलते कभी बाढ़ तो कभी सूखे से परेशान रहे बिहार के किसानो ने उम्मीद की दामन नहीं छोड़ी है। इस साल देर तक मॉनसून रहने और ठंड की वजह से किसानों को गेहूं और मक्के की बंपर पैदावार होने की उम्मीद दिख रही है। राज्य के कृषि विभाग के अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि इस साल राज्य में रबी फसलों की सेहद काफी अच्छी रहने वाली है। राज्य के कृषि उत्पाद आयुक्त और कृषि विभाग के प्रधान सचिव अशोक कुमार सिन्हा ने बताया, 'खरीफ सीजन के दौरान स्थिति काफी तकलीफदेह रही थी। लेकिन बुरा समय अब बीत चुका है। हम रबी सीजन के दौरान बंपर पैदावार की उम्मीद कर रहे हैं।Ó उन्होंने कहा कि अब तक जो स्थिति दिख रही है उससे यही लगता है कि रबी सीजन में हम खरीफ फसलों को हुए नुकसान की भरपाई करने में सक्षम होंगे। अगर आगे सभी चीजें आशा के अनुरूप रही तो चालू रबी सीजन के दौरान राज्य में कम से कम 70 लाख टन गेहूं और 20 लाख टन से ज्यादा मक्के की उपज हो सकती है। अधिकारी ने कहा कि हम दलहन की पैदावार भी अच्छी होने की उम्मीद कर रहे हैं। राज्य में इस साल करीब 24 लाख हेक्टेयर भूमि में गेहूं की बुआई की गई है। यह पिछले साल की तुलना में करीब 2 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। जबकि यहां 20 लाख हेक्टेयर भूमि में गेहूं बोने का लक्ष्य रखा गया था जिसे काफी पहले की पार किया जा चुका है। सरकार का अनुमान है कि चालू रबी सत्र में गेहूं का उत्पादन पिछले साल की तुलना में करीब डेढ़ गुना ज्यादा हो सकता है। (BS Hindi)
मॉनसून की आंख-मिचौली के चलते कभी बाढ़ तो कभी सूखे से परेशान रहे बिहार के किसानो ने उम्मीद की दामन नहीं छोड़ी है। इस साल देर तक मॉनसून रहने और ठंड की वजह से किसानों को गेहूं और मक्के की बंपर पैदावार होने की उम्मीद दिख रही है। राज्य के कृषि विभाग के अधिकारी भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि इस साल राज्य में रबी फसलों की सेहद काफी अच्छी रहने वाली है। राज्य के कृषि उत्पाद आयुक्त और कृषि विभाग के प्रधान सचिव अशोक कुमार सिन्हा ने बताया, 'खरीफ सीजन के दौरान स्थिति काफी तकलीफदेह रही थी। लेकिन बुरा समय अब बीत चुका है। हम रबी सीजन के दौरान बंपर पैदावार की उम्मीद कर रहे हैं।Ó उन्होंने कहा कि अब तक जो स्थिति दिख रही है उससे यही लगता है कि रबी सीजन में हम खरीफ फसलों को हुए नुकसान की भरपाई करने में सक्षम होंगे। अगर आगे सभी चीजें आशा के अनुरूप रही तो चालू रबी सीजन के दौरान राज्य में कम से कम 70 लाख टन गेहूं और 20 लाख टन से ज्यादा मक्के की उपज हो सकती है। अधिकारी ने कहा कि हम दलहन की पैदावार भी अच्छी होने की उम्मीद कर रहे हैं। राज्य में इस साल करीब 24 लाख हेक्टेयर भूमि में गेहूं की बुआई की गई है। यह पिछले साल की तुलना में करीब 2 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। जबकि यहां 20 लाख हेक्टेयर भूमि में गेहूं बोने का लक्ष्य रखा गया था जिसे काफी पहले की पार किया जा चुका है। सरकार का अनुमान है कि चालू रबी सत्र में गेहूं का उत्पादन पिछले साल की तुलना में करीब डेढ़ गुना ज्यादा हो सकता है। (BS Hindi)
भारत के दुग्ध पाउडर का निर्यात वर्ष 2011 में 87.5 फीसदी बढ़ेगा
नई दिल्ली: अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में दूध उत्पादन में वृद्धि के कारण वर्ष 2011 में भारत के दूध का निर्यात 87.5 फीसदी बढ़ने की उम्मीद है। यूएसडीए की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2010 का पर्याप्त मात्रा में बचे स्टॉक के कारण वर्ष 2011 में भारत से गैर-वसायुक्त ड्राई मिल्क (सूखा दूध) निर्यात बढ़ सकता है। इसमें कहा गया है कि वर्ष 2010 में कुल दूध पाउडर का निर्यात करीब 8,000 टन रहा। चालू वर्ष में भविष्यवाणी ये है कि देश 15,000 टन दूध पाउडर का निर्यात कर सकता है जो पिछले वर्ष के निर्यात से 7,000 टन अधिक है। रिपोर्ट में कहा गया है, भारत अपने दूग्ध उत्पादों के कुल उत्पादन में से केवल कुछ प्रतिशत का ही निर्यात करता है। वर्ष 2010 के उत्तरार्ध में उम्मीद से बेहतर मानसून के कारण देश में दूध का उत्पादन बढ़ा है। (ET Hindi)
महंगाई रोकने के लिए सरकार के कदम
सरकार कीमतों में असामान्य वृद्धि से आम आदमी के हित के मद्देनजर मुद्रास्फीति पर कड़ी निगरानी रख रही है। सरकार ने हाल ही में स्थिति की समीक्षा की है और कीमतों में लगाम लगाने के लिए कई उपाय किए हैं। इनके तहत नाफेड और एनसीसीएफ को अपने विभिन्न्केन्द्रों पर 35 रुपए प्रति किलो के भाव प्याज बेचने को कहा गया है। पाकिस्तान से आने वाली प्याज से भी मदद मिलेगी। इसके अलावा प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध जारी है। सरकार नियमित आधार पर सभी आवश्यक वस्तुओं के आयात और निर्यात की समीक्षा करेगी। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम खाद्य तेल और दलहनों जैसी आवश्यक वस्तुओं की खरीद तेज करेंगे। मुद्रास्फीति की समग्र स्थिति खास तौर से प्राथमिक खाद्य वस्तुओं के संबंध में समीक्षा के लिए वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार के तहत अन्तर- मंत्रिस्तरीय समूह का गठन किया है। इसके अतिरिक्त कैबिनेट सचिव के तहत सचिवों की समिति, महंगाई की समीक्षा करेगी। सरकार स्थिति पर कड़ी निगरानी रख रही है और आम आदमी को मुद्रास्फीति के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए प्रतिबद्ध है। (PIB)
महंगाई पर काबू के लिए जल्द बड़े फैसले मुमकिन
नई दिल्ली केंद्र सरकार बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए जल्द ही बड़े और कड़े फैसले ले सकती है। महंगाई के मसले पर मंगलवार को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सीनियर कैबिनेट मंत्रियों के साथ बैठक की थी। बुधवार को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कृषि मंत्री शरद पवार और योजना आयोग के उपाध्यक्ष के साथ महंगाई पर लगाम कसने के उपायों पर विचार-विमर्श किया। बैठक के बाद कृषि मंत्री शरद पवार ने पत्रकारों को बताया कि महंगाई को कम करने के लिए जिन उपायों पर चर्चा की गई है, उनका ब्यौरा प्रधानमंत्री को भेज दिया जाएगा। इस पर अंतिम निर्णय लेने के बाद फिर सार्वजनिक रूप से इन उपायों की घोषणा कर दी जाएगी। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि घोषणा कब की जाएगी। इधर, पीएम कार्यालय के अधिकारियों का कहना है कि जल्द ही इन उपायों पर अंतिम फैसला किया जाएगा। कोशिश की जाएगी कि यह काम जल्द से जल्द हो। सूत्रों के अनुसार, बैठक में इस बात का फैसला किया गया कि अब वक्त आ गया है कि बाजार में मनी फ्लो को रोका जाएगा। कृषि उत्पादों के वादा कारोबार पर भी नजर रखी जाए। यह पता लगाया कि जिन कृषि उत्पादों का वादा कारोबार हो रहा है कि उन वस्तुओं की बाजार में कीमतें कितनी बढ़ी है। सरकार पर लगातार यह आरोप लग रहे हैं कि वादा कारोबार जारी रहने के कई कृषि वस्तुओं की कीमतें बढ़ी है। हाल ही में सरकार ने चीनी के वादा कारोबार को फिर शुरू करा दिया है। बैठक में तय किया गया कि कुछ दिनों के लिए जिन कृषि वस्तुओं पर वादा कारोबार हो रहा है, उसको प्रतिबंधित कर दिया जाए। आरबीआई को खुली छूट दी जाए कि वह बाजार और महंगाई की स्थिति को देखते हुए मनी फ्लो को कम करे। बैठक में शरद पवार ने यह भी कहा कि फिलहाल जीडीपी में बढ़ोतरी के बारे में ज्यादा न सोचा जाए। महंगाई को थामने के उपाय किए जाएं। (Navbharat Hindi)
12 जनवरी 2011
प्याज व्यापारी करेंगे हड़ताल
प्याज की आसमान छूती कीमतों से आम आदमी को राहत दिलाने के लिए आयकर विभाग द्वारा छापे मारे जाने के विरोध में आजादपुर मंडी के प्याज व्यापारियों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल करने का ऐलान किया है। आजादपुर मंडी कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) के सदस्य सुरेंद्र बुद्धिराजा ने बताया कि व्यापारियों को बेवजह तंग किया जा रहा है, इसलिए व्यापारी बुधवार से अनिश्चितकालीन हड़ताल कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि इस समय मंडी में कच्चे प्याज की आवक ज्यादा हो रही है तथा कच्चे प्याज को स्टॉक में नहीं रखा जा सकता। मंडी में दैनिक आवक के हिसाब से ही बिक्री हो रही है, लेकिन आयकर विभाग के अधिकारी बेवजह व्यापारियों को परेशान कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि नासिक मंडी में भी व्यापारियों की पिछले चार दिनों से हड़ताल चल रही है, इसलिए आजादपुर मंडी में प्याज की दैनिक आवक कम हो रही है।
उधर, नैफेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि देश के कई अन्य राज्यों हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में भी आयकर विभाग के अधिकारी कालाबाजारी के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। आयकर विभाग के अधिकारी व्यापारियों के बही-खातों का आकलन कर रहे हैं ताकि यह पता चल सके कि व्यापारी किस तरह से प्याज की कालाबाजारी कर रहे हैं।
पोटैटो ओनियन मर्चेंट्स एसोसिएशन के सचिव राजेंद्र शर्मा ने बताया कि केवल प्याज के व्यापारी ही हड़ताल में शामिल होंगे। अन्य सब्जियों की बिक्री पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। मंगलवार को मंडी में प्याज की दैनिक आवक 230 टन की हुई। आवक के मुकाबले मांग ज्यादा होने से मंडी में प्याज का भाव 2,500 से 4,500 रुपये प्रति क्विंटल रहा। गुजरात के भावनगर में नई फसल की आवक शुरू हो गई है, इसलिए आगामी दिनों में यहां आवक बढऩे की संभावना है। मंगलवार को भावनगर से 60 टन प्याज की आवक हुई। वहीं, फुटकर बाजार में अब भी प्याज की कीमतें 50-65 रुपये प्रति किलो चल रही हैं। (Buisness Bhaskar....R S Rana)
उन्होंने बताया कि इस समय मंडी में कच्चे प्याज की आवक ज्यादा हो रही है तथा कच्चे प्याज को स्टॉक में नहीं रखा जा सकता। मंडी में दैनिक आवक के हिसाब से ही बिक्री हो रही है, लेकिन आयकर विभाग के अधिकारी बेवजह व्यापारियों को परेशान कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि नासिक मंडी में भी व्यापारियों की पिछले चार दिनों से हड़ताल चल रही है, इसलिए आजादपुर मंडी में प्याज की दैनिक आवक कम हो रही है।
उधर, नैफेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि देश के कई अन्य राज्यों हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में भी आयकर विभाग के अधिकारी कालाबाजारी के खिलाफ अभियान चला रहे हैं। आयकर विभाग के अधिकारी व्यापारियों के बही-खातों का आकलन कर रहे हैं ताकि यह पता चल सके कि व्यापारी किस तरह से प्याज की कालाबाजारी कर रहे हैं।
पोटैटो ओनियन मर्चेंट्स एसोसिएशन के सचिव राजेंद्र शर्मा ने बताया कि केवल प्याज के व्यापारी ही हड़ताल में शामिल होंगे। अन्य सब्जियों की बिक्री पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। मंगलवार को मंडी में प्याज की दैनिक आवक 230 टन की हुई। आवक के मुकाबले मांग ज्यादा होने से मंडी में प्याज का भाव 2,500 से 4,500 रुपये प्रति क्विंटल रहा। गुजरात के भावनगर में नई फसल की आवक शुरू हो गई है, इसलिए आगामी दिनों में यहां आवक बढऩे की संभावना है। मंगलवार को भावनगर से 60 टन प्याज की आवक हुई। वहीं, फुटकर बाजार में अब भी प्याज की कीमतें 50-65 रुपये प्रति किलो चल रही हैं। (Buisness Bhaskar....R S Rana)
खराब मौसम से वैश्विक बाजार में खाद्य तेल महंगे
विदेशी लहरअर्जेंटीना और ब्राजील में सोयाबीन का उत्पादन घटने की आशंकासीबॉट में खाद्य तेल ढाई साल के उच्च स्तर परआयातित खाद्य तेलों के दाम तीन माह में 26 से 31 फीसदी बढ़ेअर्जेंटीना व ब्राजील में प्रतिकूल मौसम से सोयाबीन का उत्पादन घटने की आशंका है। जबकि मलेशिया में खराब मौसम से पाम उत्पादन प्रभावित हो रहा है। दिसंबर में चीन का खाद्य तेलों का आयात बढ़ा है। इसीलिए सीबॉट में खाद्य तेलों के दाम पिछले ढाई साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं। ऐसे में आगामी दिनों में घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में आठ से दस फीसदी की तेजी आने की संभावना है।
अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के भारत में एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अर्जेंटीना में सोयाबीन उत्पादन पहले के अनुमान 520 लाख टन से घटकर 460-480 लाख टन के बीच रहने की संभावना है। उधर ब्राजील में भी उत्पादन 710 लाख टन से घटकर 680 लाख टन होने का अनुमान है। जबकि मलेशिया में भी पाम का उत्पादन प्रभावित हो रहा है। इसीलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में तेजी बनी हुई है। अर्जेंटीना और ब्राजील में नई फसल की आवक मार्च-अप्रैल में बनेगी।
सेतिया ऑयल लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर अशोक सेतिया ने बताया कि सीबॉट में मार्च महीने के वायदा अनुबंध में सोयाबीन 1,372 सेंट प्रति बुशल हो गया, जो 27 महीने के उच्चतम स्तर पर है। सोया तेल मार्च वायदा अनुबंध का भाव बढ़कर 56.10 सेंट प्रति पाउंड पर कारोबार करते देखा गया, जो 30 महीने के उच्चतम स्तर पर है। विदेश में प्रतिकूल मौसम से आयातित खाद्य तेलों के दाम अक्टूबर से अभी तक 26 से 31' तक बढ़ चुके हैं। आरबीडी पॉमोलीन सीएंडएफ मुंबई में बढ़कर 1,285 डॉलर प्रति टन और क्रूड पाम तेल का भाव 1,270 डॉलर प्रति टन हो गया।
साई सिमरन फूडस लि. के डायरेक्टर नरेश गोयनका ने बताया कि घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतों के आधार पर तय होती हैं। चीन का खाद्य तेलों का आयात भी बढ़ रहा है। चीन ने दिसंबर में 7.90 लाख टन खाद्य तेल आयात किया, जो नवंबर के मुकाबले 32 फीसदी ज्यादा है।
दिल्ली वेजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव हेमंत गुप्ता ने बताया कि ठंड ज्यादा होने के कारण घरेलू बाजार में खाद्य तेलों में मांग कम है। लेकिन फरवरी महीने में मांग बढऩे की संभावना है। हरियाणा की मंडियों में सरसों तेल का भाव 610 रुपये, इंदौर में सोया रिफाइंड तेल का भाव 625 रुपये, कांडला बंदरगाह पर आरबीडी पामोलीन का भाव 585-590 रुपये, पाम तेल का भाव 455 रुपये, बिनौला तेल का 580 रुपये और मूंगफली का राजकोट में 740 रुपये प्रति 10 किलो के करीब चल रहा है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के भारत में एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अर्जेंटीना में सोयाबीन उत्पादन पहले के अनुमान 520 लाख टन से घटकर 460-480 लाख टन के बीच रहने की संभावना है। उधर ब्राजील में भी उत्पादन 710 लाख टन से घटकर 680 लाख टन होने का अनुमान है। जबकि मलेशिया में भी पाम का उत्पादन प्रभावित हो रहा है। इसीलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतों में तेजी बनी हुई है। अर्जेंटीना और ब्राजील में नई फसल की आवक मार्च-अप्रैल में बनेगी।
सेतिया ऑयल लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर अशोक सेतिया ने बताया कि सीबॉट में मार्च महीने के वायदा अनुबंध में सोयाबीन 1,372 सेंट प्रति बुशल हो गया, जो 27 महीने के उच्चतम स्तर पर है। सोया तेल मार्च वायदा अनुबंध का भाव बढ़कर 56.10 सेंट प्रति पाउंड पर कारोबार करते देखा गया, जो 30 महीने के उच्चतम स्तर पर है। विदेश में प्रतिकूल मौसम से आयातित खाद्य तेलों के दाम अक्टूबर से अभी तक 26 से 31' तक बढ़ चुके हैं। आरबीडी पॉमोलीन सीएंडएफ मुंबई में बढ़कर 1,285 डॉलर प्रति टन और क्रूड पाम तेल का भाव 1,270 डॉलर प्रति टन हो गया।
साई सिमरन फूडस लि. के डायरेक्टर नरेश गोयनका ने बताया कि घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतों के आधार पर तय होती हैं। चीन का खाद्य तेलों का आयात भी बढ़ रहा है। चीन ने दिसंबर में 7.90 लाख टन खाद्य तेल आयात किया, जो नवंबर के मुकाबले 32 फीसदी ज्यादा है।
दिल्ली वेजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव हेमंत गुप्ता ने बताया कि ठंड ज्यादा होने के कारण घरेलू बाजार में खाद्य तेलों में मांग कम है। लेकिन फरवरी महीने में मांग बढऩे की संभावना है। हरियाणा की मंडियों में सरसों तेल का भाव 610 रुपये, इंदौर में सोया रिफाइंड तेल का भाव 625 रुपये, कांडला बंदरगाह पर आरबीडी पामोलीन का भाव 585-590 रुपये, पाम तेल का भाव 455 रुपये, बिनौला तेल का 580 रुपये और मूंगफली का राजकोट में 740 रुपये प्रति 10 किलो के करीब चल रहा है। (Business Bhaskar.....R S Rana)
अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ रही चीनी की मांग और कीमतें भी
January 10, 2011
किसी ने भी पश्चिमी देशों से आ रही उस खबर पर ध्यान नहीं दिया होगा जिसमें कहा गया है कि पुर्तगाल के घरेलू बाजार में पिछले कुछ सप्ताह से चीनी की भारी किल्लत हो गई है। पिछले तीन दशक के इतिहास में यह पहली घटना है कि किसी यूरोपीय देश में आवश्यक वस्तु का स्टॉक बिल्कुल शून्य पर पहुंच गया है। निश्चित रूप से यह घटना अपने आप में यूरोपीय संघ के लिए भी एक गंभीर चेतावनी की ओर इशारा है। चीनी के स्टॉक में कमी के चलते ही ब्रसेल्स ने चालू जाड़ा सीजन तक नए चीनी निर्यात लाइसेंस को स्वीकृति नहीं देने का फैसला किया है। किसी देश या देशों के समूह की ओर से स्थिति गंभीर होने के पहले ही तत्काल कदम उठाया जाना अहम बात है। यानी यूरोपीय संघ ने चीनी निर्यात के नए लाइसेंस जारी करने पर रोक लगा दी इससे अब घरेलू बाजार में चीनी की आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी और मूल्य वृद्घि को रोका जा सकेगा। इसके विपरीत अगर हम भारत की चर्चा करें तो यहां जब तक स्थिति काफी गंभीर नहीं हो जाती तब तक सरकार कोई कदम नहीं उठाती है। भारत और यूरोपीय संघ में यही अंतर है। भारत ने फिर से चीनी निर्यात की अनुमति दे दी है। आने वाले समय में घरेलू बाजार में स्टॉक कम पडऩे से दामों में बढ़ोतरी हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हमें अगस्त 2009 से मार्च 2010 की स्थिति को नहीं भूलना चाहिए जब घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में बेतहाशा वृद्घि हुई थी। ऊंची कीमतों से पीडि़त आम लोगों का गुस्सा जब सातवें आसमान पर पहुंच गया, तब सरकार जागी थी। कीमतों को कम करने के लिए आनन-फानन में कई कदम उठाए गए लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। वर्ष 2008-09 में चीनी का उत्पादन बेहद कम होने के बाद भी सरकार ने घरेलू अपूर्ति की ओर ध्यान नहीं दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि इसके भाव में भयानक तेजी आई। सितंबर 2010 में चीनी मिलों ने सरकार को भरोसा दिलाया कि इस बार चीनी उत्पादन घरेलू खपत की तुलना में बेहतर रहेगी। इसके चलते घरेलू बाजार में यह उपभोक्ताओं को पहले की तुलना में सस्ती दरों पर मिल रही है। पहले चीनी 32 रुपये या इससे भी ऊंची दरों पर मिल रही थी लेकिन सरकार ने जब गैर लेवी सीमा बढ़ाई तो घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में उल्लेखनीय कमी आई। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक अबिनाश वर्मा कहते हैं, 'ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सरकार ने गैर लेवी सीमा बढ़ाकर 200 टन प्रति ट्रेडर कर दिया और लेवी नियमों को काफी उदार बनाया। जनवरी 2011 तक स्टॉक सीमा करीब 17 लाख टन हो गया जबकि पिछले तीन साल तक यह केवल 14.5 लाख टन रहा था।Ó यानी उदार लेवी नियमोंं का फायदा मिला।इसमा के पूर्व अध्यक्ष ओम धनुका के मुताबिक भारत में चालू सीजन में चीनी का उत्पादन काफी बेहतर रहने की उम्मीद है इसका असर घरेलू बाजार की आपूर्ति पर पड़ेगा। दूसरी तरफ अब भारत के पास निर्यात योग्य चीनी भी है। इसमा के एक अन्य पूर्व चेयरमैन विवेक सारावगी कहते हैं कि वर्ष 2010-11 के चीनी सत्र में चीनी का उत्पादन करीब 2.55 करोड़ टन रहने की उम्मीद है। इसके बावजूद सरकार ने खुले लाइसेंस नियम (ओजीएल) के तहत केवल 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है जबकि चीनी उद्योग की मांग थी कि कि कम से कम 35 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति तो मिलनी चाहिए थी। इस समय वैश्विक बाजार में चीनी के दाम 30 साल की ऊंचाई पर है। ऐसे में यदि सरकार ज्यादा चीनी निर्यात की अनुमति देती है तो भारतीय चीनी उद्योग को इसका जबरदस्त फायदा मिल सकता है। उद्योग का कहना है कि सरकार के पास पर्याप्त चीनी स्टॉक है और ज्यादा उत्पादन होने की वजह से घरेलू बाजार में इसकी आपूर्ति को लेकर कोई संकट नहीं है। इस साल चीन में भी चीनी की आपूर्ति का संकट है। घरेलू उत्पादन गिरने की वजह से चीन को करीब 30 लाख टन चीनी आयात की जरूरत हो सकती है। इसी तरह अमेरिका ने भी 3,00,000 टन चीनी आयात करने का फैसला किया है। ऑस्ट्रेलिया में भी बाढ़ के चलते चीनी उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। ऐसे में वैश्विक बाजारों में फिलहाल चीनी की जबरदस्त मांग है और इसके दामों में भी तेजी आ रही है। (BS Hindi)
किसी ने भी पश्चिमी देशों से आ रही उस खबर पर ध्यान नहीं दिया होगा जिसमें कहा गया है कि पुर्तगाल के घरेलू बाजार में पिछले कुछ सप्ताह से चीनी की भारी किल्लत हो गई है। पिछले तीन दशक के इतिहास में यह पहली घटना है कि किसी यूरोपीय देश में आवश्यक वस्तु का स्टॉक बिल्कुल शून्य पर पहुंच गया है। निश्चित रूप से यह घटना अपने आप में यूरोपीय संघ के लिए भी एक गंभीर चेतावनी की ओर इशारा है। चीनी के स्टॉक में कमी के चलते ही ब्रसेल्स ने चालू जाड़ा सीजन तक नए चीनी निर्यात लाइसेंस को स्वीकृति नहीं देने का फैसला किया है। किसी देश या देशों के समूह की ओर से स्थिति गंभीर होने के पहले ही तत्काल कदम उठाया जाना अहम बात है। यानी यूरोपीय संघ ने चीनी निर्यात के नए लाइसेंस जारी करने पर रोक लगा दी इससे अब घरेलू बाजार में चीनी की आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी और मूल्य वृद्घि को रोका जा सकेगा। इसके विपरीत अगर हम भारत की चर्चा करें तो यहां जब तक स्थिति काफी गंभीर नहीं हो जाती तब तक सरकार कोई कदम नहीं उठाती है। भारत और यूरोपीय संघ में यही अंतर है। भारत ने फिर से चीनी निर्यात की अनुमति दे दी है। आने वाले समय में घरेलू बाजार में स्टॉक कम पडऩे से दामों में बढ़ोतरी हो जाए तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हमें अगस्त 2009 से मार्च 2010 की स्थिति को नहीं भूलना चाहिए जब घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में बेतहाशा वृद्घि हुई थी। ऊंची कीमतों से पीडि़त आम लोगों का गुस्सा जब सातवें आसमान पर पहुंच गया, तब सरकार जागी थी। कीमतों को कम करने के लिए आनन-फानन में कई कदम उठाए गए लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। वर्ष 2008-09 में चीनी का उत्पादन बेहद कम होने के बाद भी सरकार ने घरेलू अपूर्ति की ओर ध्यान नहीं दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि इसके भाव में भयानक तेजी आई। सितंबर 2010 में चीनी मिलों ने सरकार को भरोसा दिलाया कि इस बार चीनी उत्पादन घरेलू खपत की तुलना में बेहतर रहेगी। इसके चलते घरेलू बाजार में यह उपभोक्ताओं को पहले की तुलना में सस्ती दरों पर मिल रही है। पहले चीनी 32 रुपये या इससे भी ऊंची दरों पर मिल रही थी लेकिन सरकार ने जब गैर लेवी सीमा बढ़ाई तो घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में उल्लेखनीय कमी आई। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक अबिनाश वर्मा कहते हैं, 'ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सरकार ने गैर लेवी सीमा बढ़ाकर 200 टन प्रति ट्रेडर कर दिया और लेवी नियमों को काफी उदार बनाया। जनवरी 2011 तक स्टॉक सीमा करीब 17 लाख टन हो गया जबकि पिछले तीन साल तक यह केवल 14.5 लाख टन रहा था।Ó यानी उदार लेवी नियमोंं का फायदा मिला।इसमा के पूर्व अध्यक्ष ओम धनुका के मुताबिक भारत में चालू सीजन में चीनी का उत्पादन काफी बेहतर रहने की उम्मीद है इसका असर घरेलू बाजार की आपूर्ति पर पड़ेगा। दूसरी तरफ अब भारत के पास निर्यात योग्य चीनी भी है। इसमा के एक अन्य पूर्व चेयरमैन विवेक सारावगी कहते हैं कि वर्ष 2010-11 के चीनी सत्र में चीनी का उत्पादन करीब 2.55 करोड़ टन रहने की उम्मीद है। इसके बावजूद सरकार ने खुले लाइसेंस नियम (ओजीएल) के तहत केवल 5 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है जबकि चीनी उद्योग की मांग थी कि कि कम से कम 35 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति तो मिलनी चाहिए थी। इस समय वैश्विक बाजार में चीनी के दाम 30 साल की ऊंचाई पर है। ऐसे में यदि सरकार ज्यादा चीनी निर्यात की अनुमति देती है तो भारतीय चीनी उद्योग को इसका जबरदस्त फायदा मिल सकता है। उद्योग का कहना है कि सरकार के पास पर्याप्त चीनी स्टॉक है और ज्यादा उत्पादन होने की वजह से घरेलू बाजार में इसकी आपूर्ति को लेकर कोई संकट नहीं है। इस साल चीन में भी चीनी की आपूर्ति का संकट है। घरेलू उत्पादन गिरने की वजह से चीन को करीब 30 लाख टन चीनी आयात की जरूरत हो सकती है। इसी तरह अमेरिका ने भी 3,00,000 टन चीनी आयात करने का फैसला किया है। ऑस्ट्रेलिया में भी बाढ़ के चलते चीनी उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। ऐसे में वैश्विक बाजारों में फिलहाल चीनी की जबरदस्त मांग है और इसके दामों में भी तेजी आ रही है। (BS Hindi)
धुंधली हुई अरहर उत्पादन की उम्मीदें
बेंगलुरु January 11, 2011
मौजूदा वर्ष (2010-11) में 168 लाख टन दाल उत्पादन का सरकारी लक्ष्य शायद पूरा न हो पाए, क्योंकि अरहर दाल के मुख्य उत्पादक राज्यों में से एक कर्नाटक विभिन्न तरह की समस्याओं से जूझ रहा है। ज्यादा बारिश और बीमारियों के हमले से मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में अरहर की फसल को काफी ज्यादा नुकसान हुआ है। देश में कुल दलहन ïउत्पादन में कर्नाटक करीब 10 फीसदी की भागीदारी करता है और अरहर यहां की मुख्य फसल है।साल 2010 के खरीफ सीजन में रिकॉर्ड 8.33 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अरहर की बुआई हुई थी जबकि एक साल पहले बुआई का रकबा 7.5 लाख हेक्टेयर था। राज्य में अरहर उत्पादन का ज्यादातर हिस्सा पैदा करने वाले क्षेत्र गुलबर्गा में 4.8 लाख हेक्टेयर में इसकी बुआई हुई थी। बीजापुर, बागलकोट, बीदर और रायचूर में भी इस साल रकबे में बढ़ोतरी देखी गई थी, लिहाजा बंपर पैदावार की उम्मीद बंध रही थी।राज्य कृषि विभाग के प्रारंभिक अनुमानों के मुताबिक, इस साल 14.7 लाख टन दाल उत्पादन की संभावना है। इनमें से 4 लाख टन अरहर के उत्पादन की संभावना जताई गई है जबकि पिछले साल 2.82 लाख टन अरहर का उत्पादन हुआ था। यहां औसत उत्पादन प्रति हेक्टेयर करीब 5 क्विंटल का होता है। हालांकि यह आकलन अचानक बदल गया है क्योंकि दिसंबर महीने में ज्यादा बारिश और नमी आने से फसलों पर असर पड़ा है। इसके अलावा स्टर्लिटी मोजाइक डिजीज (एसएमडी) के प्रकोप से भी राज्य के कई हिस्सों में फसल खराब हुई है। गुलबर्गा, अफजलपुर, अलंद और जेवारगी मेंं बीमारी की वजह से काफी नुकसान का पता चला है। इन तालुकों में करीब 45 फीसदी फसल बर्बाद हो गई है।इसके अतिरिक्त सेदम, चीतापुर और चिंतौली तालुका में भारी बारिश की वजह से करीब 50 फीसदी फसल बर्बाद हुई है। इस साल औसत उत्पादन 4-6 क्विंटल से गिरकर2-3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पर आ जाने की आशंका है। कर्नाटक राज्य रेडग्राम ग्रोअर्स एसोसिएशन के अनुमान के मुताबिक, इस साल अरहर का उत्पादन 12 लाख टन से 15 लाख टन के बीच रहने की संभावना है।राज्य के कृषि विभाग के अधिकारियों ने कहा - प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में अरहर की कटाई शुरू हो गई है और जनवरी के आखिर तक यह जारी रहेगा। एसएमडी बीमारी से अरहर की फसल को हुए नुकसान व इसकी पैदावार का सही अंदाज लगाना अभी जल्दबाजी होगी।इस बीच, खुले बाजार में कीमतों में भारी गिरावट आई है और मौजूदा समय में यह गुणवत्ता के मुताबिक 2500 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक रहा है, जो पिछले साल के मुकाबले 44 फीसदी की गिरावट दर्शाता है। हालत यह है कि कीमत फिलहाल सरकार द्वारा इस साल घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 3000 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे है।कर्नाटक प्रदेश रेडग्राम एसोसिएशन के अध्यक्ष बासवराज इंगिन के मुताबिक, सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद केंद्रों के अभाव की वजह से ही कीमतों में गिरावट आई है क्योंकि निजी कारोबारी एमएसपी से नीचे का भाव बता रहे हैं। किसानों के लिए उम्मीद का एकमात्र सहारा दक्षिण कर्नाटक का अरहर बोर्ड था, लेकिन इस साल बोर्ड ने अभी तक खरीद केंद्र नहीं खोला है।किसानों ने राज्य व केंद्र सरकार दोनों से तत्काल खरीद केंद्र खोलने की मांग की है, ताकि किसानों को अपने उत्पाद की बेहतर कीमत मिल सके। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने किसानों के लिए 500 रुपये प्रति क्विंटल के प्रोत्साहन का ऐलान किया था, लेकिन उन्हें इसका कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है क्योंकि इस साल कोई भी सरकारी खरीद केंद्र अभी तक नहीं खुला है। किसानों ने राज्य सरकार से मांग की है कि निजी कारोबारियों को एमएसपी से कृषि उत्पाद खरीदने से रोकने के लिए वह कानून बनाए। (BS Hindi)
मौजूदा वर्ष (2010-11) में 168 लाख टन दाल उत्पादन का सरकारी लक्ष्य शायद पूरा न हो पाए, क्योंकि अरहर दाल के मुख्य उत्पादक राज्यों में से एक कर्नाटक विभिन्न तरह की समस्याओं से जूझ रहा है। ज्यादा बारिश और बीमारियों के हमले से मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में अरहर की फसल को काफी ज्यादा नुकसान हुआ है। देश में कुल दलहन ïउत्पादन में कर्नाटक करीब 10 फीसदी की भागीदारी करता है और अरहर यहां की मुख्य फसल है।साल 2010 के खरीफ सीजन में रिकॉर्ड 8.33 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अरहर की बुआई हुई थी जबकि एक साल पहले बुआई का रकबा 7.5 लाख हेक्टेयर था। राज्य में अरहर उत्पादन का ज्यादातर हिस्सा पैदा करने वाले क्षेत्र गुलबर्गा में 4.8 लाख हेक्टेयर में इसकी बुआई हुई थी। बीजापुर, बागलकोट, बीदर और रायचूर में भी इस साल रकबे में बढ़ोतरी देखी गई थी, लिहाजा बंपर पैदावार की उम्मीद बंध रही थी।राज्य कृषि विभाग के प्रारंभिक अनुमानों के मुताबिक, इस साल 14.7 लाख टन दाल उत्पादन की संभावना है। इनमें से 4 लाख टन अरहर के उत्पादन की संभावना जताई गई है जबकि पिछले साल 2.82 लाख टन अरहर का उत्पादन हुआ था। यहां औसत उत्पादन प्रति हेक्टेयर करीब 5 क्विंटल का होता है। हालांकि यह आकलन अचानक बदल गया है क्योंकि दिसंबर महीने में ज्यादा बारिश और नमी आने से फसलों पर असर पड़ा है। इसके अलावा स्टर्लिटी मोजाइक डिजीज (एसएमडी) के प्रकोप से भी राज्य के कई हिस्सों में फसल खराब हुई है। गुलबर्गा, अफजलपुर, अलंद और जेवारगी मेंं बीमारी की वजह से काफी नुकसान का पता चला है। इन तालुकों में करीब 45 फीसदी फसल बर्बाद हो गई है।इसके अतिरिक्त सेदम, चीतापुर और चिंतौली तालुका में भारी बारिश की वजह से करीब 50 फीसदी फसल बर्बाद हुई है। इस साल औसत उत्पादन 4-6 क्विंटल से गिरकर2-3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पर आ जाने की आशंका है। कर्नाटक राज्य रेडग्राम ग्रोअर्स एसोसिएशन के अनुमान के मुताबिक, इस साल अरहर का उत्पादन 12 लाख टन से 15 लाख टन के बीच रहने की संभावना है।राज्य के कृषि विभाग के अधिकारियों ने कहा - प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में अरहर की कटाई शुरू हो गई है और जनवरी के आखिर तक यह जारी रहेगा। एसएमडी बीमारी से अरहर की फसल को हुए नुकसान व इसकी पैदावार का सही अंदाज लगाना अभी जल्दबाजी होगी।इस बीच, खुले बाजार में कीमतों में भारी गिरावट आई है और मौजूदा समय में यह गुणवत्ता के मुताबिक 2500 से 3500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक रहा है, जो पिछले साल के मुकाबले 44 फीसदी की गिरावट दर्शाता है। हालत यह है कि कीमत फिलहाल सरकार द्वारा इस साल घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 3000 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे है।कर्नाटक प्रदेश रेडग्राम एसोसिएशन के अध्यक्ष बासवराज इंगिन के मुताबिक, सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद केंद्रों के अभाव की वजह से ही कीमतों में गिरावट आई है क्योंकि निजी कारोबारी एमएसपी से नीचे का भाव बता रहे हैं। किसानों के लिए उम्मीद का एकमात्र सहारा दक्षिण कर्नाटक का अरहर बोर्ड था, लेकिन इस साल बोर्ड ने अभी तक खरीद केंद्र नहीं खोला है।किसानों ने राज्य व केंद्र सरकार दोनों से तत्काल खरीद केंद्र खोलने की मांग की है, ताकि किसानों को अपने उत्पाद की बेहतर कीमत मिल सके। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने किसानों के लिए 500 रुपये प्रति क्विंटल के प्रोत्साहन का ऐलान किया था, लेकिन उन्हें इसका कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है क्योंकि इस साल कोई भी सरकारी खरीद केंद्र अभी तक नहीं खुला है। किसानों ने राज्य सरकार से मांग की है कि निजी कारोबारियों को एमएसपी से कृषि उत्पाद खरीदने से रोकने के लिए वह कानून बनाए। (BS Hindi)
आर्थिक कुप्रबंधन का नतीजा है खाद्य महंगाई
कुछ सप्ताह पहले जब खाद्य मुद्रास्फीति एक फीसदी की कमी आई तो तमाम अर्थविदों और नीति निर्धारकों ने उम्मीदें जतानी शुरू कर दी थी कि अब इस पर अंकुश लगने लगा है। नवंबर माह की महंगाई दर भी घटकर 7.48 फीसदी पर आ गई थी, जो 11 माह में सबसे न्यूनतम है। इसके चलते ही दिसंबर में भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति की अद्र्ध तिमाही समीक्षा में ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया बल्कि बैंकिंग क्षेत्र को करीब एक लाख करोड़ रुपये की तरलता मुहैया कराने का इंतजाम कर दिया। लेकिन महंगाई पर सरकारी नाकामी की सारी पोल खोली प्याज और दूसरी सब्जियों के संकट ने। इसके पहले ही दूध की कीमत में मदर डेयरी ने इजाफा कर ही दिया था। पेट्रोल की कीमतों में करीब तीन रुपये लीटर की बढ़ोतरी के तेल कंपनियों के फैसले के बाद उम्मीद जताई जा रही थी कि सरकार डीजल की कीमत में भी बढ़ोतरी कर इस पर बढ़ रही अंडर रिकवरी से तेल कंपनियों के निजात दिलाएगी। साथ ही रसोई गैस पर सब्सिडी का इसके बिक्री मूल्य से अधिक हो जाना सरकार को इसके दाम में भी बढ़ोतरी के लिए प्रेरित करेगा। प्याज की कीमत थामने के लिए प्रधानमंत्री से लेकर कैबिनेट सचिव तक और कृषि मंत्री से लेकर राज्यों की सरकारें तक एक साथ जुट गईं। जिस कीमत बढऩे का कारण अक्तूबर की बारिश थी उसका निदान दिसंबर में कीमतों में 200 फीसदी बढ़ोतरी के बाद सोचा गया। वह भी किस्तों में। वहीं 11 दिसंबर को समाप्त सप्ताह में खाद्य महंगााई दर बढ़कर 12.13 फीसदी पर पहुंच गई। इसमें दूध की बढ़ी कीमत और प्याज की आसमान छूती कीमत का पूरा असर शामिल नहीं है। सवाल यह है कि क्या महंगाई पर नाकामी का ठीकरा कृषि और खासतौर से खाद्य उत्पादों के कम उत्पादन पर फोड़ा जा सकता है। सचाई यह नहीं है। अगर हम पिछले करीब डेढ़ दशक के कृषि उत्पादन को देखें तो उसमें आश्चर्यजनक रूप से बढ़ोतरी हुई है। साथ ही केवल उत्पादन ही नहीं किसानों की आय बढ़ाने में अहम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में भी बढ़ोतरी हुई है। लेकिन इसके साथ ही महंगाई दर भी बढ़ी है। केवल खाद्यान्न उत्पाद को देखें तो 1995 से 2000 के बीच इनका औसतन सालाना उत्पादन 19.71 करोड़ टन रहा जबकि से 2000-2005 के बीच औसतन सालाना उत्पादन 19.92 करोड़ टन रहा। लेकिन 2005 से 2010 के दौरान यह बढ़कर 22.19 करोड़ टन पर पहुंच गया। वहीं इस दौरान तिलहन उत्पादन 226.6 लाख टन से बढ़कर 269.0 लाख टन पर पहुंच गए। यह बात जरूर है कि इस दौरान दालों के उत्पादन में कोई खास बदलाव नहीं आया। लेकिन जिस प्याज को लेकर संकट है उसका उत्पादन करीब 45 लाख टन से बढ़कर 100 लाख टन को पार कर गया। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इस बढ़ते उत्पादन के बावजूद महंगाई नया रिकार्ड बना रही है। इसे एक संयोग कहें या कड़वी सचाई कि जब खाद्य महंगाई दर 20 फीसदी को छू रही थी तो प्रधानमंत्री ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाकार नीतिगत बदलावों के लिए ग्रुप बनाए थे। जो उत्पादन में बढ़ोतरी और महंगाई पर अकुंश के उपाय सुझाएंगे। इनमें से एक ग्रुप ने 10 माह बात अपनी रिपोर्ट 16 दिसंबर को सौंप दी। हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुडा की अध्यक्षता वाले इस समूह ने जो सिफारिश की है उसमें कहा गया है कि कृषि उत्पादों की सी-2 लागत के ऊपर 50 फीसदी का मुनाफा किसानों को दिया जाना चाहिए। अगर इस समूह की सिफारिशों पर अमल किया जाता है तो इस समय मौजूद फसलों के एमएसपी में अच्छी खासी बढ़ोतरी करने की जरू रत है। ऐसे में कीमत पर नियंत्रण वाला समूह कीमत बढ़ोतरी का एक नया उपाय लेकर आया है। आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाले समूह की याद प्याज का संकट खड़ा होने के समय आई। वहीं ताजा महंगाई दरें अब रिजर्व बैंक को भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी के लिए मजबूर कर सकती हैं। रिजर्व के नीति निर्धारक खुद इस बात को स्वीकार करते हैं कि मार्च का महंगाई दर का लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं है। साथ ही मैन्यूफैक्चरिंग के रास्ते आ रही महंगाई कॉरपोरेट जगत के लालच के चलते आ रही है। वह इस बात को भी स्वीकारते हैं कि रिजर्व बैंक और सरकारी अमले के बीच भी तालमेल की कमी है और उसी के चलते महंगाई पर अंकुश पाने के लिए नई तिथियां घोषित की जाती रही हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि कीमतों के प्रबंधन में सरकार का कामकाज काफी लचर है। अगर महंगाई दर घटती भी है तो उससे कीमत कम नहीं होती केवल बढऩे का स्तर घटता है। जो आम आदमी की तकलीफ को बहुत कम नहीं करता है। इस कुप्रबंधन के चलते ही 10 फीसदी उत्पादन घटने पर दामों में 200 फीसदी तक बढ़ोतरी वाले प्याज जैसे उदारण सामने आते हैं। (Business Bhaskar)
11 जनवरी 2011
प्याज़ पर सरकार देगी 30 फीसदी सब्सिडी
केंद्र सरकार ने तय किया है कि प्याज़ पर 30 फीसदी सब्सिडी देगी। यानि कि दिल्ली के लोगों को 30 हज़ार टन प्याज़ पर 20 फीसदी सब्सिडी मिलेगी और कारोबारियों को 10 फीसदी। अब उम्मीद जताई जा सकती है कि अगले दो से तीन दिनों में दिल्ली में प्याज़ के दाम सस्ते हो जाएंगे। नेफेड और एनसीसीएफ़ को प्याज़ पर सब्सिडी मिलेगी। हालांकि मदर डेयरी ने जब प्याज़ बेचने शुरू किए थे तब दाम में गिरावट देखी गई थी। लोग 40 रुपये किलो प्याज़ मदर डेयरी से खरीद रहे थे। लेकिन जैसे ही मदर डेयरी पर प्याज़ बिकना बंद हुआ। दिल्ली में प्याज़ के दामों में उछाल आ गया। अब एक बार फिर केंद्र सरकार की पहल से दिल्लीवासियों को राहत मिलेगी। हालांकि ये सुविधा देश के दूसरे राज्यों के लिए नहीं है। (NDTV)
दिल्ली प्याज में प्याज सब्सिडी पर खेल
नई दिल्ली अब आपको 35 रुपये किलो नहीं, बल्कि 37 रुपये किलो प्याज मिलने की संभावना है। वह भी नेफेड के चुनिंदा स्टॉलों पर। मदर डेयरी काउंटर पर तो सोमवार को भी प्याज का भाव 50 रुपये किलो रहा। मदर डेयरी और नेफेड के भावों में इस अंतर को लेकर कोई भी अधिकारी बोलने को तैयार नहीं है। नेफेड के चेयरमैन बिजेंद्र सिंह बताते हैं कि सोमवार को कैबिनेट कमेटी ऑन प्राइज की बैठक हुई। इसमें नेफेड के अधिकारियों ने भी हिस्सा लिया था। बैठक में निर्णय लिया गया कि दिल्ली में 42 रुपये किलो के भाव में आने वाले प्याज पर सरकार 20 फीसदी की सब्सिडी देगी न कि 10 रुपये की। उन्होंने बताया कि पहले दिल्ली को 1300 टन प्याज भेजा जाना था। अब 31 जनवरी तक 6000 टन प्याज केंद्र सरकार भेजेगी। अभी गुजरात व नासिक मंडी में कालाबाजारियों के विरुद्ध छापेमारी जारी है, जिससे मंडी के प्याज व्यापारी हड़ताल पर हैं। यह प्याज अगले सप्ताह से मिलना शुरू होगा। इसके बाद जितनी चाहें उतना प्याज मदर डेयरी, केंद्रीय भंडार नेफेड से ले सकते हैं। इससे पहले 10 रुपये की सब्सिडी देने से हम मदर डेयरी, केंद्रीय भंडार और नेफेड के काउंटरों को 32 रुपये किलो में प्याज बेचते। इसे वह परिवहन खर्च और श्रम जोड़कर 35 रुपये किलो में बेचते। अब 42 रुपये पर 20 फीसदी की छूट से प्याज 37 रुपये किलो तक बिकने की संभावना है। हालांकि सोमवार को नेफेड के सभी छह काउंटरों पर प्याज 35 रुपये किलो बिका, लेकिन मंगलवार से नए मूल्य तय होंगे। सोमवार को केंद्र सरकार ने 65 टन प्याज दिल्ली भेजी। आने वाले दिनों में आवक बढ़ने की उम्मीद है। जहां तक सोमवार को मदर डेयरी पर 50 रुपये किलो प्याज बिकने की बात है तो इस बारे में भारत सरकार या मदर डेयरी कार्रवाई करते हुए राजधानीवासियों को राहत दें। नेफेड ने मदर डेयरी, केंद्रीय भंडार के अधिकारियों को पहले ही सूचित कर दिया था कि जितना चाहे उतना प्याज लो और नेफेड द्वारा तय मूल्यों पर बिक्री करो। उन्होंने यह भी कहा कि अगर नेफेड के काउंटरों पर तय मूल्य से अधिक दामों पर प्याज बिकेगा तो ऐसा करने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उधर आजादपुर मंडी में प्याज का थोक भाव सोमवार को 43 रुपये से 17.5 रुपये किलो रहा और फुटकर में में प्याज का भाव 60 रुपये से 70 रुपये किलो रहा। Press not
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में महंगाई पर बैठक शुरू
नई दिल्ली।। लगातार बढ़ रही महंगाई पर नियंत्रण के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर विचार-विमर्श के लिए मंगलवार सुबह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में प्रमुख केंद्रीय मंत्रियों और सम्बंधित अधिकारियों की बैठक शुरू हुई। प्रधानमंत्री के 7 रेस कोर्स रोड स्थित आवास पर सुबह साढ़े 10 बजे यह बैठक शुरू हुई। बैठक में केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी, केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार, केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदम्बरम, कैबिनेट सचिव के. एम. चंद्रशेखर और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया पहुंचे। खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि के कारण देश की खाद्य महंगाई दर 25 दिसम्बर को समाप्त सप्ताह में बढ़कर 18.32 प्रतिशत हो गई है। (Navbharat)
10 जनवरी 2011
नई फसल की आवक के बावजूद केस्टर सीड में तेजी
निर्यातकों ने केस्टर ऑयल के अग्रिम सौदे ज्यादा मात्रा में कर रखे हैं। इसीलिए प्रमुख उत्पादक राज्यों गुजरात और राजस्थान में केस्टर सीड की नई फसल की आवक शुरू होने के बावजूद कीमतों में तेजी बनी हुई है। हाजिर बाजार में सप्ताह के दौरान इसकी कीमतों में 4.8 फीसदी और वायदा बाजार में 6.6 फीसदी की तेजी आ चुकी है। चालू फसल सीजन में देश में केस्टर सीड का उत्पादन 21.6 फीसदी बढऩे की संभावना तो है लेकिन केस्टर तेल की निर्यात मांग भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में केस्टर सीड की मौजूदा कीमतों में फरवरी-मार्च में आवक बढऩे पर पांच-सात फीसदी की गिरावट तो आ सकती है लेकिन भारी गिरावट की संभावना नहीं है। वायदा बाजार में भाव बढ़े नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर निवेशकों की खरीद से सप्ताह भर में ही केस्टर सीड की कीमतों में 4.8 फीसदी की तेजी आ चुकी है। 30 दिसंबर को जनवरी महीने के वायदा अनुबंध में केस्टर सीड का भाव 4,030 रुपये प्रति क्विंटल था जो शुक्रवार को बढ़कर 4,300 रुपये प्रति क्विंटल हो गया। जनवरी महीने के वायदा अनुबंध में केस्टर सीड में 4,660 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। एंजेल ब्रोकिंग के एग्री कमोडिटी विश£ेषक बदरुदीन ने बताया कि प्रमुख उत्पादक राज्यों गुजरात और राजस्थान में नवंबर महीने में बारिश होने से फसल लेट हो गई है जबकि निर्यातकों ने केस्टर ऑयल के अग्रिम सौदे ज्यादा मात्रा में कर रखे हैं। इसीलिए आवक बढऩे के बावजूद कीमतों में तेजी बनी हुई है। चालू महीने के आखिर तक उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड की आवक तो बढ़ेगी लेकिन कीमतों में गिरावट की संभावना फरवरी-मार्च महीने में बनने की संभावना है। पैदावार में बढ़ोतरी का अनुमान साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार वर्ष 2010-11 में केस्टर सीड का उत्पादन बढ़कर 11.80 लाख टन होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2009-10 में इसका उत्पादन 9.7 लाख टन का ही हुआ था। वर्ष 2009-10 में 4.4 लाख टन तेल की उपलब्धता हुई थी जबकि वर्ष 2010-11 में 5.31 लाख टन तेल की उपलब्धता होने की संभावना है। केस्टर तेल का निर्यात बढ़ा एस. सी. केमिकल के मैनेजिंग डायरेक्टर कुशल राज पारिख ने बताया कि वर्ष 2010 में जनवरी से दिसंबर तक केस्टर तेल का निर्यात बढ़कर 3.75 लाख टन होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2009 में इसका निर्यात 2.90 लाख टन का हुआ ही था। चीन और यूरोपीय देशों की बढ़ी हुई मांग को देखते हुए वर्ष 2011 में केस्टर तेल के निर्यात में और भी बढ़ोतरी होने की संभावना है। चीन के आयातक इस समय 1875 से 1925 डॉलर प्रति टन की दर से आयात सौदे कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि केस्टर तेल की घरेलू खपत भी बढ़कर 1.25 से 1.50 लाख टन की हो गई है जबकि ऑटो उद्योग की बढ़ती मांग को देखते हुए वर्ष 2011 में मांग में और बढ़ोतरी होने की संभावना है। चालू महीने के आखिर तक बढ़ेगी आवक जयंत एग्रो ऑर्नामिक लिमिटेड के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर वामन भाई ने बताया कि गुजरात की मंडियों में केस्टर सीड की दैनिक आवक बढ़कर 25 हजार बोरी (एक बोरी-75 किलो) की हो गई है। चालू महीने के आखिर तक आवक बढ़कर एक लाख बोरी की हो जायेगी। इस समय संयंत्रों के पास स्टॉक नहीं है जबकि संयंत्र ने तेल के अग्रिम सौदे कर लिए थे। वैसे भी प्रतिकूल मौसम के कारण फसल करीब महीना भर लेट हो गई है इसीलिए भाव बढ़ रहे हैं। सीड और तेल की कीमतें तेज मेहसाना के थोक कारोबारी रौनक भाई ने बताया कि आवक के मुकाबले प्लांटों की मांग ज्यादा होने के कारण केस्टर सीड और तेल की कीमतें बढ़ी है। शुक्रवार को केस्टर सीड के भाव बढ़कर 4,250-4,300 रुपये प्रति क्विंटल हो गया जबकि इस दौरान केस्टर तेल का भाव बढ़कर 925-930 रुपये प्रति दस किलो हो गया। प्रमुख उत्पादक राज्यों गुजरात और राजस्थान में फसल लेट हो गई है जबकि आंध्रप्रदेश में आवक लगभग समाप्त हो गई है। फरवरी-मार्च में आवक बढऩे पर मौजूदा कीमतों में पांच से सात फीसदी की गिरावट आने की संभावना है लेकिन भारी गिरावट की संभावना नहीं है। (Buisness Bhaskar....R S Rana)
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