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01 जनवरी 2010

फूड प्रोसेसिंग : किसानों की खुशहाली का मंत्र

अगला दशक फूड प्रोसेसिंग उद्योग और किसानों के लिए काफी उम्मीद भरा रहने वाला है। इस दौरान फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री की विकास दर 10-15 फीसदी तक पहुंचने की संभावना है। जिससे किसानों को भी अपनी उपज के बेहतर दाम मिलने के आसार हैं। लोगों के खान-पान शैली में आ रहे बदलाव की नब्ज को अब उद्योगपतियों ने भी पहचान लिया है। लोगों की आय बढ़ने से उनका रुझान प्रोसेस्ड फूड खाने में बढ़ा है। इसके परिणाम स्वरूप ही अब फूड प्रोसेसिंग उद्योग में कंपनियां संभावनाएं देख रही हैं। बीते सालों के दौरान रिलायंस फ्रेश, बिग एप्पल, आई टेन, 6 टेन, जैसी कई रिटेल कंपनियां इस कारोबार में उतरी हैं। साथ ही फलों के शीतल पेय पदार्थे का चलन भी बढ़ने लगा है। बाजार में पहले आम का पेय पदार्थ मैंगो फ्रूटी ब्रांड से बिकता था, लेकिन, अमरूद, संतरा, सेब, लीची आदि फलों के पेय पदार्थ बाजार में मौजूद है। वहीं, प्रोसेस्ड फूड की मांग बढ़ने से एक ओर जहां किसानों को उपज के बेहतर दाम मिलेंगे वहीं, दूसरी ओर तकनीकी दक्षतापूर्ण कोल्ड चेन बनने से उनकी उनकी उपज की बर्बादी कम होगी। कृषि उत्पादों के विपणन की प्रक्रिया में भी आमूल-चूल परिवर्तन होगा। देश में मंडियों के आधुनिकीकरण और बोली प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक नीलामी व्यवस्था पर काम चल रहा है। उम्मीद है कि अगले दशक यह काम पूरा हो जाएगा। किसान जिंसों के बाजार भाव इंटरनेट के जरिये घर बैठे ही जान सकेंगे। वे बाजार की नब्ज को पहचानते हुए फसल उगाएंगे। फूड प्रोसेसिंग उद्योग के बढ़ने की ठोस वजह भी है। सरकार भी इसके विकास के लिए नई योजनाएं चला रही है। सरकार ने इस उद्योग में 100 एफडीआई की अनुमति दी है। वहीं कोल्ड चेन और वेयरहाउस के अभाव में बर्बाद होने वाली कृषि उत्पादों की गंभीर समस्या है। इस बर्बादी को रोकने के लिए सरकार कोल्ड चेन और वेयरहाउस स्थापित करने में निवेश करने पर टैक्स में छूट दे रही है। इस इंडस्ट्री के विकास के लिए राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड बागवानी एकीकृत विकास को प्रोत्साहन, पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेंट के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर, फल एवं सब्जियों के उत्पादन और इनके प्रोसेसिंग को प्रोत्साहन, मार्केट इंफोर्मेशन सिस्टम को मजबूती और बागवानी उत्पादों के अनुसंधान व विकास और प्रोसेसिंग में सहयोग कर रहा है। एनएचबी व्यावसायिक बागवानी और पोस्ट हार्वेस्ट टैक्निक के लिए कई वित्तीय स्कीम मुहैया कराता है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के डिप्टी डायरेक्टर ब्रिजेंद्र सिंह का कहना है कि बोर्ड की टेक्निकल विशेषज्ञता वाले कोल्ड चेन की स्थापना पर सब्सिडी मुहैया करा रहा है।sg.ramveer@businessbhaskar.netये कोल्ड चेन पर्यावरण के अनुकूल, बिजली की बचत करने वो और बेहतर गुणवत्ता वाले है। उनका कहना है कि परंपरागत कोल्ड चेन में फल एवं सब्जियों की गुणवत्ता अच्छी नहीं मिल पाती है। इस वजह किसानों को भी अपने उत्पादों के बेहतर दाम नहीं मिल पा रहे हैं। लेकिन तकनीकी विशेषज्ञता वाले कोल्ड स्टोर बन जाने से उत्पादों की गुणवत्ता सुधरने से जहां कोल्ड स्टोर वालों को फायदा होगा वहीं किसान भी अपने उत्पादों के बाजार में बेहतर दाम प्राप्त कर सकेंगे और अधिक से अधिक उत्पादों को कोल्ड स्टोर में भंडारित करेंगे। वर्तमान में करीब 50,000 करोड़ रुपये मूल्य के फल एवं सब्जियां हर साल बर्बाद हो जाती है। वर्तमान में फल एवं सब्जियों के कुल उत्पादन महज एक फीसदी ही प्रोसेस्ड होता है। इन कोल्ड स्टोर के बन जाने से इस बर्बादी को रोकना संभव हो जाएगा। साथ ही अगले दशक तक इनके प्रोसेस्ड के विकास दर बढ़कर 12 फीसदी तक होने की संभावना है। जिससे सीजन के समाप्त होने के बाद फूड प्रोसेसिंग कंपनियों किसानों से उत्पादों को खरीद कर प्रोसेस करेगी। लिहाजा फूड प्रोसेसिंग के कारोबार में भारी वृद्धि होगी। फूड प्रोसेसिंग की वर्तमान में विकास दर चार से पांच फीसदी है। जिसके अगले दशक में 10-15 फीसदी तक होने का अनुमान है। वहीं, फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय भी टेक्नॉलोजी अपग्रेडेशन मानव विकास संसाधन, गुणवत्ता की जांच और फूड पार्क के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध करा रही है। मंत्रालय फूड प्रोसेसिंग के लिए मेगा फूड पार्क स्थापित करने की योजना है। इसके तहत सरकार मूलभूत सुविधाओं के लिए 50 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता महैया कराती है।प्रोसेस्ड फूड के निर्यात में भी काफी संभावनाएं है। प्रोसेस्ड फूड की कुल फूड बाजार में करीब 32 फीसदी हिस्सेदारी है। फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय के मुताबिक अगले पांच साल के दौरान ही करीब एक लाख करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता होगी। जिससे करीब 90 हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। मंत्रालय के मुताबिक 2015 तक फूड प्रोसेसिंग बाजार के बढ़कर 13.5 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है। चालू वित्त वर्ष में इसके 8.2 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है। जबकि वित्त वर्ष 2003-04 में करीब 4.6 लाख करोड़ था। (बिसनेस भास्कर)

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