अहमदाबाद January 06, 2010
निर्यात की जरूरतें पूरी करने के लिए कपड़ा मिलों की लगातार खरीदारी से मौजूदा कपास वर्ष में मिलों में कपास की खपत बढ़ने की संभावना है।
उद्योग विश्लेषकों का अनुमान है कि मिलों में कपास की खपत पिछले साल के 2.4 करोड़ गांठ से बढ़कर 2.6 करोड़ गांठ तक जा सकती है। मिलों और लघु दर्जे की इकाइयों में खपत के आंकड़े इसमें शामिल हैं।
कपड़ा मिलें विशेषकर उत्तरी भारत की मिलें कपास की जोरदार खरीदारी कर रही हैं। उदाहरण के लिए गुजरात की मंडियों में होने वाली कुल 65 हजार गांठों की रोजाना आवक में से 40 से 50 हजार गांठों की खरीदारी अकेली ये मिलें ही कर ले रही हैं।
अहमदाबाद स्थित कपास की शीर्ष कारोबारी संस्था अरुण दलाल ऐंड कंपनी के मालिक अरुण दलाल ने बताया, 'कपास की कीमतें ज्यादा होने के बावजूद घरेलू मिलों ने अब तक पूरे देश में 60 लाख कपास की गांठें खरीद ली हैं।'
गौरतलब है कि विदेश में सूती धागे, कपड़े और गारमेंट की अच्छी मांग है। इस चलते कपड़ा मिलें कपास का भंडार एकत्र करने को प्रोत्साहित हुई हैं। गत 6 महीनों में सूती धागे के तकरीबन 35 फीसदी महंगा होने से कपड़ा मिलें महंगी कपास की लगातार खरीदारी कर रही हैं। इसके बावजूद भारतीय कपास अंतरराष्ट्रीय बाजार में अब भी सस्ती है।
फिलहाल भारतीय कपास 73 से 74 सेंट प्रति पाउंड बैठ रही हैं, वहीं दूसरे देशों की कपास 76 सेंट प्रति पाउंड बैठ रही है। यहां उल्लेख किया जा सकता है कि स्थानीय बाजारों में कपास की ऊंची कीमतों के चलते घरेलू मिलों को कपास का आयात करना पड़ा था। देश में पर्याप्त कपास उपलब्ध होने से भारतीय मिलें अपनी प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में फायदे में हैं।
सेंट्रल गुजरात कॉटन डीलर्स एसोसिएशन (सीजीसीडीए) के किशोर शाह के मुताबिक, 'ऊंची लागत के बावजूद घरेलू मिलें अपने उत्पाद विदेश में बेच ले रही हैं और मुनाफा भी अर्जित कर रही हैं।' चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश और सुदूर पूर्व में कपास की आपूर्ति कम है। ये देश सूती धागा के निर्यातक हैं। (बीएस हिन्दी)
06 जनवरी 2010
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