28 अगस्त 2012
गेहूं की किल्लत से जूझ रही हैं आटा मिलें
साल 2011-12 में गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद देश भर की रोलर फ्लोर मिलें पिछले कुछ महीने से गेहूं की भारी किल्लत का सामना कर रही हैं। मिलें फिलहाल दोहरी समस्याओं से जूझ रही हैं - देसी बाजार में इसकी कीमतें काफी ऊंची हैं और भारतीय खाद्य निगम की निविदा में देरी हो रही है। गेहूं की कीमतें बढ़ रही हैं और मिलें किल्लत का सामना कर रही हैं, बावजूद इसके कि एफसीआई के पास 502 लाख टन गेहूं का भंडार है।
उत्तर भारत के खुले बाजार में गेहूं की कीमतें जहां 1650 रुपये प्रति क्विंटल दायरे में है, वहीं कर्नाटक व तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में यह 2000 रुपये प्रति क्विंटल। ज्यादातर उत्तरी राज्यों में गेहूं 1700 रुपये प्रति क्विंटल पर उपलब्ध है। मालभाड़े की अतिरिक्त लागत के चलते दक्षिणी राज्यों में यह और भी महंगा यानी 2000
रुपये प्रति क्विंटल के आसपास पहुंच जाता है। दिल्ली के बाजार में गेहूं दो महीने पहले महज 1200 रुपये प्रति क्विंटल पर था। कीमतों में तेजी के चलते जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग ने गेहूं वायदा पर 10 फीसदी स्पेशल मार्जिन लगा दिया है।
देसी बाजार में गेहूं की कीमतें तब बढऩी शुरू हुई जब पिछले साल नवंबर में सरकार ने निर्यात की अनुमति दी। अमेरिका में सूखे के परिणामस्वरूप देश के निजी कारोबारी निर्यात के लिए उत्साहित हुए और अब तक उन्होंने करीब 20 लाख टन गेहूं की निर्यात किया है। उद्योग के सूत्रों के मुताबिक, निजी कारोबारी निर्यात बाजार में 1750 रुपये प्रति क्विंटल का भाव हासिल कर रहे हैं (जबकि लागत करीब 1600 रुपये प्रति क्विंटल है) और गुजरात के कांडला बंदरगाह से बड़ी मात्रा में गेहूं का निर्यात हुआ।
रोलर फ्लोर मिलें एफसीआई की निविदा के जरिए 1170-1185 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर गेहूं प्राप्त कर रहे हैं। निविदा व्यवस्था के जरिए एक फ्लोर मिल हर हफ्ते अधिकतम 3000 टन गेहूं प्राप्त कर सकता है, लेकिन इसकी पर्याप्त मात्रा उपलब्ध नहीं है।
रोलर फ्लोर मिलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष आदी नारायण गुप्ता के मुताबिक, गेहूं का आवंटन क्षमता और पिछले तीन साल मेंं मिलों के प्रदर्शन के आधार पर होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर गेहूं का अबाधित निर्यात होता रहा तो गेहूं की कीमतें और बढ़ सकती हैं। मिलों को अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए मंडी आने को बाध्य होना पड़ा है और इस वजह से खुले बाजार में भी दबाव बढ़ गया है।
कर्नाटक में स्थिति और भी खराब है क्योंकि मिलों को अगस्त महीने के लिए स्टॉक आवंटित नहीं हुआ है। जुलाई के आखिरी हफ्ते से एफसीआई ने कर्नाटक के लिए निविदा रोक दी है। राज्य में संचालित 56 मिलें बंद होने के कगार पर हैं क्योंकि न तो वह ऊंची कीमतों पर खुले बाजार से गेहूं खरीद सकती हैं, न ही एफसीआई से क्योंकि मौजूदा समय में निविदा जारी नहीं हुई है।
कर्नाटक रोलर फ्लोर मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एम के गोपाल कृष्ण ने कहा - खुले बाजार में गेहूं नहीं है क्योंकि निजी कारोबारियों ने अपने स्टॉक के निर्यात को प्राथमिकता दे रहे हैं। चूंकि एफसीआई ने अगस्त में निविदा जारी नहीं की है, लिहाजा हमारे पास स्टॉक नहीं है और अगर एफसीआई तत्काल निविदा जारी नहीं करता है तो हम अपना कामकाज बंद कर देंगे।
जुलाई से सितंबर के लिए एफसीआई ने कर्नाटक के लिए 2.30 लाख टन गेहूं आवंटित किया था। हालांकि जुलाई में उन्हें सिर्फ 1.30 लाख टन गेहूं मिला है जबकि बाकी स्टॉक एफसीआई के पास ही है। उन्होंने कहा कि एफसीआई निविदा की आधार कीमत 1285 रुपये प्रति क्विंटल करने की खातिर केंद्र सरकार की मंजूरी की प्रतीक्षा कर रहा है। जब तक उसे आधार कीमत में बढ़ोतरी की इजाजत नहीं मिलती, अगस्त व सितंबर के लिए वे निविदा जारी नहीं करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि पंजाब की मिलों ने सरकार से निविदा की व्यवस्था समाप्त करने की मांग की है। सरकार के पास गेहूं का बड़ा भंडार है और इसे खुले बाजार में उतारा जाना चाहिए।
गोपाल कृष्ण ने कहा - निजी कारोबारियों की तरफ से हो रहे गेहूं निर्यात पर सरकार को पाबंदी लगा देनी चाहिए और एफसीआई को सीधा निर्देश देना चाहिए कि वह सितंबर से ऊंची कीमत पर ही रही, थोक उपभोक्ताओं के लिए गेहूं जारी करे। (BS Hindi)
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