16 अगस्त 2012
रबर सस्ता, पर टायर महंगा
पिछले 12 हफ्ते में प्राकृतिक रबर की कीमतें हालांकि 30 फीसदी से ज्यादा फिसली हैं, लेकिन टायर उद्योग कीमतें घटाने के मूड में नहीं है। आरएसएस-4 किस्म की रबर की कीमतें अप्रैल 2011 में 240 रुपये प्रति किलोग्राम को पार कर गई थी जबकि अब यह घटकर 172 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गई है, लेकिन टायर की कीमतें अभी भी उच्च स्तर पर हैं। ऐसा लगता नहीं है कि निकट भविष्य में टायर की कीमतें नीचे आएंगी क्योंकि उद्योग के दिग्गज इसकी कीमतें घटाने के पक्ष में नहीं हैं।
साल 2011 में पूरे साल और साल 2012 की पहली तिमाही में कीमतों में तब-तब बहुत ज्यादा बढ़ोतरी दर्ज की गई थी, जब-जब रबर की कीमतों में उछाल आई थी। इस अवधि में टायर की कीमतें 7 बार संशोधित हुई थी और कुल बढ़ोतरी 15 से 20 फीसदी के दायरे में थी। लेकिन अब तक इसमें कमी नहीं आई है जबकि मौजूदा समय में देसी व वैश्विक बाजार में रबर की कीमतें घट रही हैं। बैंकॉक बाजार में मंगलवार को रबर का भाव 154 रुपये प्रति किलोग्राम रहा और यह देश उद्योग के लिए कच्चे माल के आयात का प्रमुख स्रोत भी है। अप्रैल 2011 में बैंकॉक में रबर का भाव 249 रुपये प्रति किलोग्राम था। मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल-जुलाई की अवधि में 76,666 टन रबर का आयात हुआ है
जबकि पिछले साल की समान अवधि में 60,461 टन रबर का आयात हुआ था। ऐसे में टायर बनाने में रबर की लागत में भारी कमी आई है। लेकिन उद्योग ने विभिन्न कारणों का हवाला देते हुए लागत में कमी का फायदा अभी तक उपभोक्ताओं को नहीं दिया है।
अपोलो टायर्स के चेयरमैन ओंकार कंवर के मुताबिक, रबर की कीमतों में हालांकि गिरावट आई है, लेकिन दूसरे कच्चे माल मसलन रबर केमिकल, स्टील टायर कॉर्ड, कार्बन ब्लैक और सिंथेटिक रबर की कीमतें काफी ज्यादा बढ़ गई हैं। ऐसे में टायरों के विनिर्माण पर रबर की लागत में आई कमी का सकारात्मक असर नहीं पड़ा है। उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा - 'अगर रबर की कीमतें 100 रुपये प्रति किलोग्राम से नीचे चली जाती हैं तो हम कीमतों में कमी पर विचार कर सकते हैं।'
उन्होंने कहा कि वैश्विक बाजार में टायर क्षेत्र में कड़ी प्रतिस्पर्धा है और भारतीय कंपनियों को मिशेलिन जैसी वैश्विक कंपनियों से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। इसके अलावा देसी बाजार में अच्छी गुणवत्ता वाले रबर की भारी किल्लत है। ऐसे में आयात में बढ़ोतरी होगी क्योंकि रेडियल टायर्स बनाने के लिए उद्योग को अच्छी गुणवत्ता वाले रबर की दरकार होती है।
साल 2011-12 में टायर उद्योग का वित्तीय प्रदर्शन काफी खराब रहा था और इनका कुल मुनाफा नकारात्मक क्षेत्र में चला गया था जबकि 2010-11 में आठ अग्रणी कंपनियों का शुद्ध मुनाफा कुल मिलाकर 584.63 करोड़ रुपये रहा था। ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटमा) के आंकड़ों के मुताबिक इनका शुद्ध घाटा 39 करोड़ रुपये रहा था। पिछले वित्त वर्ष में एक साल पहले की तुलना में शुद्ध लाभ में 107 फीसदी की गिरावट आई थी। इस साल पहली तिमाही में हालांकि उद्योग का प्रदर्शन बेहतर रहा, हालांकि अभी भी यह सहज स्थिति में नहीं है। उद्योग के सूत्रों का मानना है कि आगे का समय बेहतर रहेगा, ऐसे में कीमत के मोर्चे पर अभी कोई बदलाव नहीं होगा।
कोचीन रबर मर्चेंट्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एन राधाकृष्णन ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा - टायर की कीमतों में तत्काल कोई बदलाव नहीं होगा क्योंकि रबर को छोड़कर बाकी कच्चे माल की कीमतों में काफी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। उद्योग ने प्राकृतिक रबर की खरीद कीमत 200 रुपये प्रति किलोग्राम तय की थी, ऐसे में उत्पादन की लागत में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है। एटमा के महानिदेशक राजीव बुधराजा ने कहा - डॉलर में उछाल और रबर के अलावा दूसरे कच्चे माल की लागत पिछले साल के मुकाबले काफी ज्यादा बढ़ी है। इनमें से ज्यादातर कच्चे माल का उत्पादन भारत में नहीं होता है। हालांकि प्राकृतिक रबर की कीमतों में रिकॉर्ड स्तर के मुकाबले गिरावट आई है, लेकिन यह अभी भी पिछले कुछ वर्षों के औसत के मुकाबले कम नहीं है। उन्होंने कहा कि टायर कंपनियों की वित्तीय स्थिति बेहतर नहीं है। हो सकता है कि कुछ तिमाहियों में उनका प्रदर्शन बेहतर हो जाए। (BS HIndi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें