उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने नैशनल स्टॉक एक्सचेंज की मांग खारिज कर दी है। एक्सचेंज ने नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज में अपनी हिस्सेदारी के पुनर्गठन संबंधी संशोधित दिशानिर्देश में छूट मांगी थी।
जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग ने साल 2009 में हिस्सेदारी पुनर्गठन के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे, जिसमें साल 2010 में संशोधन किया गया। इसके तहत स्टॉक एक्सचेंज के तौर पर एनएसई को अपनी हिस्सेदारी 15 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी करनी थी। दिशानिर्देश के तहत वैयक्तिक इकाई के लिए 15 फीसदी हिस्सेदारी रखने की अनुमति है जबकि ऐंकर निवेशक किसी जिंस एक्सचेंज में 26 फीसदी तक हिस्सेदारी रख सकता है।
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से इनकार के बाद हिस्सेदार के तौर पर एनएसई को अपनी हिस्सेदारी घटाकर 5 फीसदी करनी होगी। हालांकि एक्सचेंज को इस दिशानिर्देश के अनुपालन के लिए 30 सितंबर तक का समय दिया गया है। एनएसई का मानना है कि दिशानिर्देश के मुताबिक मूल प्रमोटरों व निवेशकों को जिंस एक्सचेंजों में 26 फीसदी हिस्सेदारी रखने की अनुमति है और इस दिशानिर्देश के तहत किसी स्टॉक एक्सचेंज की हिस्सेदारी 5 फीसदी तक सीमित कर दी गई है।
हिस्सेदारी के पुनर्गठन से जुड़े दिशानिर्देशों में संशोधन के जरिए एनसीडीईएक्स में 15 फीसदी तक हिस्सेदारी बनाए रखने के लिए या फिर इस बाबत किसी एक इकाई के लिए विशेष प्रावधान की मांग करते हुए पिछले महीने एनएसई ने एमसीए का दरवाजा खटखटाया था।
एफएमसी के चेयरमैन रमेश अभिषेक ने गुरुवार को एक सेमिनार में हिस्सा लेने के बाद कहा था - मंत्रालय ने एनएसई की मांग खारिज कर दी है। इस बाबत एनएसई के एक अधिकारी ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
एनएसई ने हालांकि एमसीए से अनुरोध किया था कि मूल प्रमोटर होने के नाते एक्सचेंज ने एनसीडीईएक्स की प्रगति के लिए काफी कुछ किया है और उसके पास अभी काफी कुछ और बचा हुआ है। ऐसे में उन्हें ज्यादा हिस्सेदारी रखने की अनुमति मिलनी चाहिए। (BS Hindi)
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