उत्पादन में कमी की आशंका को देखते हुए सरकार ने तत्काल प्रभाव से कपास निर्यात पर पाबंदी लगा दी। सरकार का मानना है कि उत्पादन कम होने से कीमतों में तेजी आ सकती है, जिससे घरेलू कपड़ा उद्योग प्रभावित हो सकता है। अधिक तापमान और प्रतिकूल मौसम से खड़ी फसल को नुकसान पहुंचने की आशंका है। यही वजह है कि कपास सलाहकार बोर्ड ने 2011-12 के सत्र में कपास उत्पादन का अनुमान 3.56 करोड़ गांठ से घटाकर 3.45 करोड़ गांठ कर दिया है।
सोमवार को विदेश व्यापार महानिदेशालय ने एक अधिसूचना जारी कर अगले आदेश तक कपास निर्यात पर पूरी तरह से रोक लगा दी। अधिसूचना में कहा गया है कि पहले से जारी पंजीकरण प्रमाण पत्र पर भी अब निर्यात की अनुमति नहीं होगी। निर्यात पर प्रतिबंध लगने की खबर से हाजिर बाजार में कपास की कीमतें लुढ़कने के साथ ही वायदा बाजार में 4 फीसदी का लोअर सर्किट लग गया। बाजार में कमजोर मांग के चलते महीने के अंदर कपास (शंकर-6) के दाम 37,100 रुपये प्रति कैंडी से लुढ़ककर 34,000 रुपये प्रति कैंडी के नीचे पहुंच चुके हैं। हाजिर बाजार की तरह वायदा बाजार में भी कपास के कीमतों में भारी गिरावट देखी जा रही थी। सोमवार को एमसीएक्स में कपास मार्च और अप्रैल अनुबंध 4 फीसदी की गिरावट के साथ क्रमश: 739 रुपये और 833 रुपये प्रति 20 किलोग्राम पर पहुंच गए। हाजिर बाजार में भी कीमतें गिरकर 3300 रुपये प्रति कैंडी हो गई।
निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले पर कॉटन एसोशिएसन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष धीरेंद्र शाह ने कहा कि कपास की कीमतों में गिरावट का रुख है। ऐसे में निर्यात पर पाबंदी का मतलब समझ में नहीं आ रहा है। सरकार के निर्णय से कीमतें और घटेंगी जिससे किसानों और कारोबारियों को नुकसान होगा।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकार के निर्णय की आलोचना करते हुए इसे किसान विरोधी कदम बताया। ऐंजल कमोडिटी की वेदिका नार्वेकर कहती हैं कि निर्यात पाबंदी से कीमतों में 10 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। (BS Hindi)
06 मार्च 2012
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