14 मार्च 2012
रिकॉर्ड पैदावार के बावजूद उत्पादकता को लेकर चिंता
नई दिल्ली खाद्यान्न की रिकॉर्ड पैदावार के बावजूद फसलों की उत्पादकता न बढ़ने को लेकर सरकार के माथे पर बल पड़ने लगे हैं। कृषि वैज्ञानिकों के लिए भी यही गंभीर चिंता का विषय है। कृषि सर्वेक्षण रिपोर्ट में खेती के विभिन्न पहलुओं को गंभीरता से लेते हुए फसलों के साथ बागवानी, पशु विकास, दुग्ध और पोल्ट्री उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया गया है। प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के बाद पहली बार कृषि क्षेत्र के लिए सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश की गई। सर्वेक्षण रिपोर्ट से स्पष्ट है कि आम बजट में इन विषयों पर खास ध्यान दिया जाएगा। फसलों की उत्पादकता बढ़ाने वाली संभावनाओं को खंगालने के लिए हर संभव उपायों की घोषणा हो सकती है। उत्पादकता के अंतर को पाटने के लिए कृषि क्षेत्र में बायो, जीएम और नैनो टेक्नोलॉजी के अलावा बायो इनफोटेक जैसे क्षेत्रों को बजट में विशेष स्थान मिल सकता है। धान व गेहूं की उत्पादकता के मामले में भारत की उत्पादकता चीन व जापान से बहुत नीचे है। इसलिए खेती को आगे बढ़ाने का काफी कुछ दारोमदार कृषि वैज्ञानिकों पर है। खाद, बीज, सिंचाई, कीटनाशक और खेती के अन्य जरूरी कार्यो के लिए कर्ज मुहैया को सरकार सभी किसानों को क्रेडिट कार्ड जारी करेगी। चालीस फीसदी असिंचित भूमि की उत्पादकता बढ़ाने के लिए महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में विशेष अभियान चलाया जाएगा। पूर्वी राज्यों में हरित क्रांति को जोर पकड़ाने के लिए सरकार और धन झोंक सकती है। रिपोर्ट के बारे में कृषि सचिव पीके बसु ने बताया कि मिट्टी की सेहत खतरे में है। खेतों की उर्वरता लगातार घट रही है। इससे उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ाने के लिए खाद और कीटनाशकों के संतुलित उपयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा। माइक्रो इरिगेशन के साथ जल संरक्षण पर पूरा जोर होगा। उन्होंने दावा किया कि सूखे या बाढ़ के बावजूद देश में खाद्यान्न की कमी नहीं पड़ेगी। नजीर के तौर पर उन्होंने कहा कि वर्ष 2009 में भीषण सूखा पड़ने के बावजूद 21.9 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ था। यह वर्ष 2006 में बेहतर मानसून वाले साल के मुकाबले अधिक है। रिपोर्ट में खेती में कम निवेश पर चिंता जताते हुए इसे बढ़ाने की जरूरत बताई गई है। (Dainik Jagran)
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