बिजनेस भास्कर नई दिल्ली
कॉटन निर्यात पर रोक सरकार के गले की हड्डी बनती जा रही है। टेक्सटाइल उद्योग समेत किसानों द्वारा तीखी आलोचना करने के बाद अब सरकार में शामिल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख एवं कृषि मंत्री शरद पवार इस फैसले को सरासर गलत बता रहे हैं। उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि उन्हें इस फैसले को लेकर अंधेरे में रखा गया। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को ही प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस फैसले को तत्काल वापस लेने की गुजारिश कर चुके हैं। गुजरात के कांग्रेसी नेताओं ने भी प्रधानमंत्री से मिलकर इस निर्णय को वापस लेने की मांग की है। वहीं, दूसरी तरफ टेक्सटाइल सचिव किरण ढींगरा भी मंगलवार को इस मामले पर सफाई देती नजर आईं। ढींगरा ने बताया कि अप्रैल, 2010 में मंत्रियों के समूह ने अनौपचारिक रूप से यह फैसला लिया था कि आगामी सीजन के लिए 50 लाख गांठ का स्टॉक (कैरी फारवर्ड) मौजूद रहना चाहिए और इसके बाद शेष कॉटन का निर्यात किया जा सकता है। हालांकि, मौजूदा स्थिति को देखते हुए आगामी सीजन के लिए सिर्फ 36.59 लाख गांठ का स्टॉक बच रहा है। इसी वजह से कॉटन के निर्यात पर रोक लगाई गई है।
कृषि मंत्री ने मंगलवार को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एक कार्यक्रम के बाद बताया, ‘मुझे इस मुद्दे पर अंधेरे में रखा गया। विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा सोमवार को अधिसूचना जारी किए जाने के बाद ही मुझे इसकी जानकारी मिली।’ पवार ने कहा कि इस निर्णय से देश के लाखों किसान प्रभावित होंगे। ऐसे में इस तरह का फैसला या तो आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति या फिर उच्चाधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह की बैठक में लिया जाना चाहिए, जैसा कि गेहूं, चावल तथा चीनी के निर्यात के लिए लिया जाता है। उधर, सौराष्ट्र गिनर्स एसोसिएशन ने कॉटन निर्यात पर रोक के फैसले के विरोध में 7-8 मार्च को बंद का ऐलान किया है। भारतीय किसान संगठनों के एक संघ सीआईएफए के महासचिव पी. चेंगल रेड्डी ने भी रोक हटाने की मांग की है। निर्यात पर रोक लगा देने से जहां अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉटन की कीमतों में तेजी दर्ज की गई, वहीं घरेलू बाजार में इसके दाम गिर गए। उत्पादक राज्यों की मंडियों में इसकी कीमत 1,000 रुपये गिरकर 3,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गई।(Business Bhaskar......R S Rana)
07 मार्च 2012
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें