कपास के निर्यात पर पाबंदी लगाने के केंद्र के फैसले के बाद महाराष्ट्र के कुछ इलाकों और आंध्र प्रदेश में किसानों ने घबराहट में इसकी बिकवाली शुरू कर दी। कुछ जगहों पर किसानों ने 2500-3000 रुपये प्रति क्विंटल पर कपास की बिक्री की, जो लॉन्ग स्टेपल कॉटन के न्यूनतम समर्थन मूल्य 3300 रुपये प्रति क्विंटल से कम है। इन परिस्थितियों में कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने आंध्र प्रदेश के किसानों से कपास की सीधी खरीदारी शुरू कर दी है और स्थानीय अधिकारियों को निर्देश दिया है कि अगर महाराष्ट्र में औसत गुणवत्ता वाली कपास की कीमतें एमएसपी से नीचे आ जाए तो वहां वे कपास की खरीदारी शुरू कर दें।
उधर, कृषि मंत्री शरद पवार ने कपास निर्यात पर पाबंदी लगाए जाने पर कड़ा ऐतराज जताया है और पाबंदी हटाने की खातिर प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। पवार ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा - 'वाणिज्य मंत्रालय ने मुझसे संपर्क नहीं किया। इस मुद्दे पर मुझे अंधेरे में रखा गया। मुझे इसकी जानकारी विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा सोमवार को अधिसूचना जारी किए जाने के बाद मिली। लाखों किसानों को प्रभावित करने वाले ऐसे फैसले आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति या कीमतों पर कैबिनेट समिति में बातचीत के बाद लिए जाने चाहिए, जैसा कि गेहूं व चीनी के मामले में हुआ था।'
पवार ने कहा कि यह फैसला काफी नुकसानदायक है क्योंकि गुजरात, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के कपास किसान बड़ी मुसीबत में फंस गए हैं क्योंकि कारोबारियों ने इस फैसले के बाद उनसे कपास की खरीदारी बंद कर दी है। उन्होंने कहा कि अब मामला प्रधानमंत्री के पाले में है।
इसी तरह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। मोदी ने लिखा है - इस फैसले से मुझे झटका लगा है। उन्होंने कहा है कि यह फैसला किसानों के लिए काफी खतरनाक साबित होगा।
महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव कॉटन ग्रोअर्स मार्केटिंग फेडरेशन के चेयरमैन एनपी हिरानी ने पवार को लिखे पत्र में कहा है - 'कपास उत्पादकों के हित में केंद्र को तत्काल कपास निर्यात से पाबंदी हटा देनी चाहिए। कपास सलाहकार बोर्ड के अनुमान के मुताबिक, देश में इस साल 345 लाख गांठ कपास का उत्पादन होगा जबकि कुल मांग 240 लाख गांठ है। इसलिए देश में कपास की जरूरत पूरी होने के बाद करीब 105 लाख गांठ कपास बचता है और इसका निर्यात किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इससे किसान लाभान्वित होंगे।'
भाईदास करसनदास ऐंड कंपनी के पार्टनर शिरीष शाह ने कहा कि कपास निर्यात पर पाबंदी किसानों, कारोबारियों, जिनर्स और स्पिनर्स के लिए नुकसानदायक है। उन्होंने कहा कि इससे तत्काल पाबंदी हटाई जानी चाहिए। इसके अलावा केंद्र को तत्काल 33 लाख गांठ कपास निर्यात की अनुमति देनी चाहिए, जिसका पंजीकरण पहले ही हो चुका है। साथ ही 3 लाख गांठ कपास के निर्यात का अनुबंध किया जा चुका है, लेकिन निर्यात के लिए पंजीकरण नहीं कराया गया है।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अतिरिक्त उपाध्यक्ष भद्रेश मेहता का कहना है कि किसानों को 2500 करोड़ रुपये का नुकसान होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि यह फैसला किसानों, कारोबारियों, जिनर्स और स्पिनर्स के लिए नुकसानदेह है। उन्होंने कहा कि चीन की सरकार की तरह यहां की सरकार को किसानों के लिए राहत की घोषणा करनी चाहिए। चीन की सरकार ने किसानों के हक में कपास का समर्थन मूलल्य 3 फीसदी बढ़ा दिया था। (BS Hindi)
07 मार्च 2012
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