नई दिल्ली । वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के लिए बजट घाटे से निपटने की चुनौती से भी बड़ी मुश्किल आम बजट में खाद्य सुरक्षा विधेयक को जगह देनी हो गई है।
राजनीतिक दबाव में लागू होने वाला यह कानून बजट की सेहत के लिए जर्बदस्त झटका होगा, इसीलिए यह प्रणब के गले में फंस गया है जिसे न वह आसानी से निगल सकते हैं और न ही उगल सकते हैं। बजट सत्र में सभी की निगाहें इसी पर होंगी। सरकार के लिए खाद्य सुरक्षा बिल के रास्ते की बाधाओं से पार पाना आसान नहीं होगा। राजनीतिक रूप से यह विधेयक पारित हो भी गया तो घाटे के भारी बोझ में दबी सरकार के लिए इसे लागू करना कठिन हो जाएगा।
इतना ही नहीं, ज्यादातर मंत्रालयों ने अपनी मुश्किलें सरकार को गिना दी हैं। सबको अति रियायती अनाज मुहैया कराने की इस योजना के लिए जितने खाद्यान्न की जरूरत होगी, उसकी उपलब्धता को लेकर कृषि मंत्रालय ने पहले ही संदेह जता दिया है। कृषि मंत्रालय ने कृषि उत्पादकता बढ़ाने और उसे बनाए रखने के लिए आम बजट से भारी मदद की अपेक्षा की है। मंत्रालय ने आशंका भी जताई है कि बाढ़ और सूखे जैसी दैवीय आपदाओं से खेती को हर दो तीन साल में बड़ी चुनौतियों का मुकाबला करना पड़ता है। इससे पैदावार घट जाता है। पैंसठ फीसदी असिंचित खेती को सिंचित बनाने में निवेश की जरूरत गिनाई है।
प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार सी रंगराजन की अगुआई वाली कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट में खाद्य सुरक्षा विधेयक की चुनौतियों का ब्योरा पेश किया है। इस बिल के लागू होने से डेढ़ लाख करोड़ रुपये की भारी सब्सिडी से खजाने की सेहत खराब हो सकती है। इससे पहले कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के लिए अतिरिक्त मदद की जरूरत पड़ेगी।
अनाज के भंडारण की पुख्ता व्यवस्था नहीं होने से अलग मुश्किलें खड़ी हैं। सबसे बड़ी समस्या तो राशन प्रणाली [पीडीएस] की है, जहां से अनाज बीच में ही गायब हो रहा है। राशन के अनाज की इस चोरी को रोकने में राज्य सरकारें नाकाम रही हैं। पिछले कुछ सालों में इस प्रणाली को सुधारने की सारी कोशिशें विफल रही हैं। ऐसी दशा में खाद्य सुरक्षा विधेयक के लागू होने पर गहरा संदेह है। (Dainik Jagran)
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