साल 2012-13 के बजट में खाद्य सब्सिडी के लिए 75,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो पिछले साल के मुकाबले महज 3 फीसदी ज्यादा है। इसके बाद बहस शुरू हो गई है कि अगले वित्त वर्ष से राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य सुरक्षा अधिनियम को लागू करने में देरी होगी।
भारतीय खाद्य निगम को 10,000 करोड़ रुपये दिए जाने से संकेत मिलता है कि खरीद, भंडारण और इसे संभालने की खातिर निगम के नकदी प्रवाह की जरूरतों की खातिर मौजूदा वित्त वर्ष के मुकाबले इसमें बहुत ज्यादा बढ़ोतरी की दरकार शायद नहीं थी।
हालांकि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बजट भाषण में आश्वस्त किया है कि उनका मंत्रालय इस कानून को लागू करने के लिए जरूरी सब्सिडी उपलब्ध कराएगा, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अंतिम विश्लेषण में शायद ही ऐसा देखने को मिले।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा - अगले उनकी योजना वित्त वर्ष के आखिर तक खाद्य सुरक्षा कानून (जिसमें महज गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को शामिल किया जाएगा) को चरणबद्ध तरीके से लागू करने की है तो केंद्रीय भंडार में इसके लिए पर्याप्त अनाज है। 1 मार्च 2012 को निगम के केंद्रीय भंडार में 550 लाख टन अनाज था, जो खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने के लिए अनुमानित अनाज से महज 90-100 लाख टन कम है। इसकी भरपाई मौजूदा खरीद सीजन में गेहूं के जरिए आसानी से की जा सकती है, जो देश के कुछ हिस्से में शुरू हो चुका है। इस साल रिकॉर्ड 880 लाख टन गेहूं उत्पादन का अनुमान है। इस साल के बजट में पहली बार राष्ट्रीय व राज्य स्तरीय खाद्य आयोगों की स्थापना के लिए 50 लाख रुपये रखे गए हैं, साथ ही उचित मूल्य की दुकानों व गोदामों की स्थापना के लिए 5 करोड़ रुपये रखे गए हैं। ये दोनों चीजें विधेयक के मसौदे का हिस्सा है। हालांकि गहन कोशिशों के बावजूद क्या आगामी वित्त वर्ष में इसे वास्तव में लागू किया जा सकता है।
खाद्य विधेयक फिलहाल संसद की स्थायी समिति के पास है, जो शायद ही मौजूदा बजट सत्र के दौरान अपनी सिफारिशें दे पाएगी। वास्तव में खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने हाल में कहा था कि खाद्य विधेयक मौजूदा बजट सत्र में शायद ही पारित हो पाएगा क्योंकि राज्यों के साथ विचार-विमर्श पूरा नहीं हो पाया है। विधेयक के मौजूदा स्वरूप का नागरिक समाज के साथ-साथ राज्य सरकारों ने भी विरोध किया है। जिन्हें लगता है कि इन चीजों से गरीबों के बीच सस्ते अनाज के वितरण के लिए कानून बनाने का उनका अधिकार छिन जाएगा।
सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना का काम जुलाई 2012 से पहले पूरा नहीं हो पाएगा। इसके जरिए गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले वास्तविक लाभार्थी की पहचान होगी। संसद का मॉनसून सत्र जुलाई के आखिर में या फिर अगस्त में शुरू होने की संभावना है, लिहाजा स्थायी समिति की सिफारिशों के आधार पर विधेयक फिर से तैयार करने के लिए सरकार के पास काफी कम समय बचेगा। आमसहमति पर पहुंचने के लिए खाद्य मंत्रालय ने प्राथमिकता वाले और सामान्य श्रेणी के परिवारों को एक साथ जोडऩे का प्रस्ताव रखा है और राज्यों को इस अधिनियम के तहत गरीबों की पहचान करने का अधिकार देने की बात कही है। (BS Hindi)
19 मार्च 2012
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