05 सितंबर 2013
'पैसा दिया नहीं, बनाया देनदार'
एक ओर नैशनल स्पॉट एक्सचेंज (एनएसईएल) का दावा है कि 24 कारोबारियों और उनके ग्राहकों द्वारा भुगतान न करने के कारण ही कंपनी पर 5,600 करोड़ रुपये का बकाया हो गया, दूसरी ओर ज्यादातर कारोबारियों का कहना है कि करीब 13,000 निवेशकों द्वारा निवेश की गई राशि उन तक पहुंची ही नहीं है। इस तर्क के समर्थन में एक्सचेंज द्वारा मुहैया कराए गए लेजर खातों में टी+2 चक्र के तहत निपटाए गए किसी लेनदेन का कोई जिक्र नहीं है। दरअसल कुछ सदस्यों का दावा है कि एक्सचेंज को टी+25 कारोबार के लिए जमा कराई गई मार्जिन मनी का भी भुगतान करना है। निवेशकों ने लेनदेन दोहरे कारोबार के जरिये किया।
उन्होंने टी+2 प्रक्रिया के तहत जिंसों की खरीदारी की और टी+25 प्रक्रिया के जरिये बेचा। कारोबारियों के लिए यह कारोबार टी+2 पर बिक्री और टी+25 प्रक्रिया के तहत खरीदारी का होता था। पिछली 31 जुलाई को एनएसईएल ने निपटान को 15 दिनों के लिए टाल दिया। तय तारीख 15 अगस्त से कुछ दिनों पहले ही एनएसईएल ने कारोबारियों को उनके कारोबार और लेनदेन संबंधी कुछ खाते और रिपोर्ट भेजे जिसमें उनके बकाए का जिक्र था।
बंबई उच्च न्यायालय में दाखिल की गई मध्यस्थता याचिका में हरिमोहन द्वारा प्रवर्तित कंपनी ताविशी इंटरप्राइजेज ने कहा कि एनएसईएल ने 1 अप्रैल, 2013 और 12 अगस्त, 2013 के बीच ताविशि द्वारा किए लेनदेन की जानकारी भेजी है। हरिमोहन मोहन इंडिया के प्रवर्तक जगमोहन के भाई हैं। इन खातों के मुताबिक, 'इन खातों की जांच करने के बाद याचिकाकर्ता 8 अगस्त और 9 अगस्त की लेनदेन देखकर चकित रह गया। सदस्य होने के नाते कंपनी पर 1,68,35,39,433 रुपये और 1,79,75,23,990 रुपये का बकाया दिखाया गया है। इस तरह कुल बकाया 3,48,10,63,243 रुपये का है।Ó
ताविशी का तर्क है कि चंूकि सौदों के निपटान को 15 अगस्त तक के लिए टाल दिया गया, ऐसे में इन तारीखों के लिए किए गए लेनदेन का ब्यौरा पूरी तरह अवैध है। उनका कहना है, 'ऐसी किसी भी सूरत में चीनी की डिलिवरी की ही नहीं जा सकती चाहे इसकी कीमत कितनी भी दर्ज की गई हो।Ó
याचिका में कहा गया है कि इन खातों के मुताबिक एक्सचेंज द्वारा 8 अगस्त और 9 अगस्त को की गई डिलिवरी की बात को सच माना जाए तो यह एक्सचेंज के उस परिपत्र का उल्लंघन माना जाएगा जिसके तहत उसने सौदे के निपटान को 15 दिनों के लिए टाल दिया था। ऐसे लेनदेन को गलत बताते हुए ताविशी का कहना है कि अगर इन सभी लेनदेन को हटा दिया जाए तो कंपनी के पास एक्सचेंज का कोई बकाया नहीं रहेगा।
कंपनी का तर्क है कि एक्सचेंज ने अकेले ही बकाया और भुगतान को 14 अगस्त तक के लिए टाल दिया। लेकिन एक्सचेंज ने अपनी रिलीज में कहा कि इस तारीख के लिए कारोबारियों से भी सहमति ली गई थी। जबकि वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं किया गया था।
इन खातों और याचिका का अध्ययन कर चुके दिल्ली के रहने वाले एनएसईएल के एक अन्य निवेशक एसएस ढिंगड़ा का कहना है कि स्पष्ट है कि तथाकथित कर्जदारों या कारोबारियों तक कोई रकम नहीं पहुंची है। ढिंगड़ा कहते हैं, 'इन खातों में की गई अकेली प्रविष्टिï टी+25 के तहत जिंसों के बेचने की है जो कर्जदाता के लिए खरीद की प्रविष्टिï है। एनएसईएल से मेरा सवाल यह है कि कारोबारी के लिए टी+2 प्रविष्टिï कहां है?Ó ढिंगड़ा कहते हैं कि एनएसईएल के दावे सच से कोसों दूर है।
उनका कहना है, 'दस्तावेजों से साफ है कि एनएसईएल का यह दावा कि शुगर दिल्ली के कारोबारियों के पास निवेशकों का पैसा है और पैसा लौटाने की जिम्मेदारी कारोबारियों की है, पूरी तरह बकवास और गलत है।Ó ढींगड़ा कहते हैं कि वह शाह पर आपराधिक कार्रवाई और फाइनैंशिल टेक्रोलॉजीज का कारोबार बंद कराने के लिए न्यायालय का रुख करने की योजना बना रहे हैं।
फर्जीवाड़ा!
* कारोबारियों का तर्क है, एक्सचेंज के खातों में टी+2 चक्र के तहत निपटाए गए किसी लेनदेन का कोई जिक्र नहीं है
* कुछ सदस्यों का दावा है कि एक्सचेंज को टी+25 कारोबार के लिए जमा कराई गई मार्जिन मनी का भी भुगतान करना है
* बंबई उच्च न्यायालय में दाखिल की गई मध्यस्थता याचिका में हरिमोहन द्वारा प्रवर्तित कंपनी ताविशी इंटरप्राइजेज ने दिए अपने पक्ष में तमाम तर्क
(BS Hindi)
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