10 सितंबर 2013
कमोडिटी में निवेश को अच्छी तरह से समझने की है जरूरत
पिछले 10 वर्षों में जिंस श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली परिसंपत्तियों में से एक रही है जिसने निवेशकों के लिए दो अंकों में प्रतिफल दिया है। इसे सोने के जरिये अच्छी तरह से समझा जा सकता है जिसकी वैल्यू 2003 से लगभग चार गुना (डॉलर के संदर्भ में) हो चुकी है और पिछले एक दशक में रुपये के संदर्भ में इसमें पांच गुना इजाफा हुआ है। तुलनात्मक रूप से प्रमुख एसऐंडपी बीएसई सेंसेक्स 2003 के मध्य से लगभग 4.7 फीसदी चढ़ा है।
पिछले पांच वर्षों में सोने का प्रदर्शन शानदार रहा है। घरेलू सर्राफा बाजार में सोने की कीमतें 2008 के बाद से 18.6 फीसदी की सीएजीआर से बढ़ी हैं जो नैशनल स्टॉक एक्सचेंज के 50 शेयरों वाले निफ्टी सूचकांक द्वारा इस अवधि में दिए गए 4.2 फीसदी के प्रतिफल की तुलना में काफी अधिक है। सोने ने उन निवेशकों के लिए 18 फीसदी का सालाना प्रतिफल दिया है जिन्होंने पिछले 10 वर्षों में अपने निवेश को बनाए रखा। इसके विपरीत डाउ जोंस इस अवधि के दौरान महज 2.8 फीसदी मजबूत हुआ। पिछले पांच वर्षों की तस्वीर भी ज्यादा अलग नहीं है। इससे जिंस में निवेशकों की बड़ी दिलचस्पी को बढ़ावा मिला है। ज्यादातर ब्रोकरों और फंड प्रबंधक अब कमोडिटी डेस्क पर ध्यान दे रहे हैं। भारत में सामान्य तौर पर एक खुदरा निवेशक के लिए कमोडिटी के संदर्भ में मामला शेयर बाजारों की पिछले पांच वर्षों में नई ऊंचाई छूने में विफल रहने, प्रतिकूल ब्याज दरों (महंगाई के समायोजन के संदर्भ में) और बढ़ती जिंस कीमतों से मजबूती मिली है। इससे लगता है कि निवेश का नया युग आ गया है जिसमें जिंस को इक्विटी, बॉन्ड और रियल एस्टेट जैसी पारंपरिक परिसंपत्तियों के साथ प्रतिस्पर्धा करना पड़ रहा है।
जिंस के लिए निवेश की परख और विश्लेषण आसान नहीं है। कई मामलों में यदि निवेशक अपने निवेश को बनाए रखता है तो इक्विटी पर लाभांश प्रतिफल शुरू से ही अच्छा हो सकता है या एक निश्चित समयावधि के दौरान शानदार हो सकता है। पिछले 10 वर्षों में शेयरों के पोर्टफोलियो की लाभांश आय 12.4 फीसदी की सालाना दर से बढ़ी है जबकि शुरुआती आय मई 2003 में 3.2 फीसदी की ऊंचाई से 2008 के शुरू में 0.9 फीसदी के निचले स्तर पर भी रही। इस दर पर 2003 में इस पोर्टफोलियो में 1 लाख रुपये का शुरुआती निवेश 2013 में 7,660 रुपये की लाभांश आय देगा।
यदि आपके पोर्टफोलियो में शामिल कोई कंपनी लाभांश घोषित नहीं (नीति के तहत) करती है तो आप अपने स्वामित्व अनुपात के हिसाब से कंपनी के मुनाफे में भागीदारी के हकदार बने रहेंगे। दूसरे शब्दों में, इक्विटी नकदी द्वारा समर्थित है, चाहे यह चालू (लाभांश) हो या आस्थगित (मुनाफे को लाभांश के तौर पर नहीं वितरित किया गया हो)।
बैंक जमाओं और बॉन्डों जैसे निर्धारित आय उत्पादों के लिए भी यही स्थिति है। ये सभी निवेशक को पूर्व-निर्धारित ब्याज का भुगतान करते हैं। कोई आवास या वाणिज्यिक संपत्ति किरा
जिंस निवेशक हालांकि अपने निवेश को बनाए नहीं रख सकते और उन्हें तुरंत या बाद में इसे बेचना ही होगा। इससे सामान्य स्थिति में कोई समस्या नहीं होगी लेकिन कीमतों में अचानक या तेज गिरावट की स्थिति में जरूरी साबित होगा, जैसा कि 2008 के अंत में लीमन संकट के बाद देखा गया था। इससे कई विश्लेषकों ने जिंस को निष्क्रिय रकम के तौर पर करार दिया है। यह कोई ब्याज या लाभांश नहीं चुकाती है और बढ़ोतरी से आपको किसी तरह के फायदे की उम्मीद नहीं की जाती है। साथ ही आपको भंडारण, बीमा और प्रबंधन शुल्क के तौर पर जिंस लागत को वहन करना होता है। वहीं इक्विटी में स्टोरेज और प्रबंधन शुल्क काफी कम है।
कमोडिटी कारोबारी कमोडिटी ट्रेडिंग में जुड़े जोखिम को लेकर सतर्क हैं। मोतीलाल ओसवाल कमोडिटीज में सहायक निदेशक (प्रमुख-जिंस एवं मुद्रा) किशोर नरने कहते हैं, 'जिंस कोई निवेश योजना नहीं है जिसे आप खरीद कर लंबे समय के लिए रख सकें। यह इक्विटी डेरिवेटिव की तरह है जिसमें आप शॉर्ट-टर्म ट्रेडिंग कर सकते हैं।Ó हालांकि वह कहते हैं, 'जिंस शेयरों की तुलना में कम अस्थिर है और इसलिए यह सुरक्षित है। चूंकि इसमें समय लगता है और जिंस तैयार करने के लिए काफी संसाधन की जरूरत होती है, लेकिन कीमतें सीमित दायरे में रहती हैं।Ó
रिटर्न के अभाव ने इसे निवेशकों को उचित मूल्य तक पहुंचने में मुश्किल बना दिया है। किसी शेयर की वैल्यू वास्तविक या अनुमानित डेटा या प्रति शेयर आमदनी, लाभांश प्राप्ति या बुक वैल्यू प्रति शेयर या इस तरह के अन्य मूल्यांकन अनुपात पर निर्धारित हो सकती है। समीक्षाधीन अवधि में शेयर की बाजार वैल्यू में विभिन्न मूल्यांकन मानकों पर काफी उतार-चढ़ाव आ सकता है, लेकिन हर एक बार निवेशकों के लिए शेयर कीमत के बारे में संभावना बनी रहती है। यह संभावना जिंस में नहीं देखी जाती है।
विश्लेषकों का कहना है कि जिस तरह से आप इक्विटी में फंडामेंटल के हिसाब से विश्लेषण करते हैं, वैसा जिंसों के लिए किया जा सकता है। नरने कहते हैं, 'जिंस कीमतें मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती हैं और किसी विश्वस्त निवेशक के लिए इस समीकरण का आकलन करना ज्यादा कठिन कार्य नहीं है। इसके अलावा जिंस कीमतें अपनी उत्पादन लागत से बहुत अधिक ऊपर-नीचे भी नहीं जा सकती हैं।Ó
हालांकि समीक्षकों का कहना है कि मांग-आपूर्ति समीकरण और उत्पादन लागत मूल निर्माताओं और जिंस के उपयोगकर्ताओं के अनुरूप है। जिंस में 50 प्रतिशत से अधिक निवेशक अब त्वरित लाभ हासिल करना चाहते हैं। एक इक्विटी विश्लेषक ने नाम गुप्त रखे जाने की शर्त पर बताया, 'जिंस वायदा के खरीदारों के लिए खरीदारी कीमत कोई समस्या नहीं है, क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि वे अनुबंध के लिए ऊंची कीमत चुकाने को इच्छुक खरीदार तलाशने में सफल रहेंगे। इसलिए जिंस में ट्रेडिंग व्यापक तौर पर इक्विटी की तुलना में अधिक फायदेमंद है।Ó
इक्विटी बाजार में निवेशक अक्सर अपने कोष का पांच गुना तक हासिल कर सकते हैं। जिंस में, यह अनुपात 20 गुना तक हो सकता है। जिंस में पोर्टफोलियो जोखिम कम है, क्योंकि इसमें रिटर्न शेयरों के साथ जुड़ा हुआ नहीं है। व्हार्टन स्कूल द्वारा 1959 से 2004 के आंकड़ों के आधार पर कराए गए अध्ययन के अनुसार जिंस वायदा रिटर्न शेयरों से नकारात्मक रूप से संबद्घ है और यही वजह है कि जब शेयरों में सुस्ती आती है तो जिंस में तेजी दिखती है। हालांकि यह जुड़ाव सभी परिसंपत्ति वर्गों के वित्तीय निवेशकों की व्यापक मौजूदगी की वजह से टूटता दिख रहा है।
उदाहरण के लिए, 2008 के लीमन संकट को अंदरूनी तौर पर कीमतों में गिरावट से बढ़ावा मिला था जिससे इक्विटी, बॉन्डों और जिंसों में वैश्विक बिकवाली हुई। उदाहरण के लिए, कच्चे तेल की कीमतें दो-तिहाई तक गिर गईं, जबकि सोने की कीमतें कुछ ही महीनों में आधी रह गई थीं। तब सभी परिसंपत्ति वर्गों (इक्विटी शामिल) में 2009 में रिकवरी देखी गई। तब हालांकि अमेरिकी शेयर बाजार ने नई ऊंचाई बनाई वहीं सोने को छोड़ कर ज्यादातर जिंसें 2008 की अपनी ऊंचाई छूने में विफल रही थीं। औद्योगिक जिंसों के सबसे बड़े उपभोक्ता चीन की अर्थव्यवस्था अब सुस्त है और विश्लेषकों का कहना है कि जिंस को जल्द नई ऊंचाई बनाना कठिन कार्य होगा।
ये बातें रखें याद
* जिंस इक्विटी, बैंक जमाओं या संपत्ति की तरह प्रतिफल मुहैया नहीं कराती है
* कई बड़ी और प्रतिष्ठिïत कंपनियां अपने राजस्व और मुनाफे में वृद्घि के हिसाब से लाभांश मुहैया कराती हैं
* वित्त वर्ष 2013 में निफ्टी की 50 में से 49 कंपनियों ने इक्विटी लाभांश घोषित किया। बीएसई-500 में शामिल कंपनियों में लाभांश चुकाने वाली कंपनियों का अनुपात 78 फीसदी है।
* 50 शेयरों के पोर्टफोलियो वाला निफ्टी फिलहाल 1.5 फीसदी का लाभांश प्रतिफल मुहैया कराता है। इसमें 1 लाख रुपये का निवेश लगभग 1500 रुपये की लाभांश आय से संबद्घ होगा।
* लाभांश प्रतिफल शेयर कीमत से विपरीत तौर पर जुड़ा हुआ है।
* पिछले 10 वर्षों में निफ्टी में शामिल कंपनियों का लाभांश भुगतान 12.4 फीसदी की सीएजीआर से बढ़ा है।
* निफ्टी जैसे किसी पोर्टफोलियो में 2003 में किया गए एक लाख रुपये का शुरुआती निवेश अब 7,660 रुपये की लाभांश आय देगा।
* शेयरधारकों के लिए लाभांश आय कर-मुक्त है। (BS Hindi)
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