19 सितंबर 2013
एनएसईएल में सत्यम जैसा घोटाला!
एनएसईएल घोटाले का पर्दाफाश हुए 47 दिन बीत चुके हैं। स्कैम कैसे हुआ? इस पर सैकड़ों आर्टिकल्स लिखे जा चुके हैं। इनसे यह साबित हो चुका है कि 5500 करोड़ रुपये का घोटाला इंडियन फाइनैंशल मार्केट के दो पुराने स्कैम से बहुत बड़ा है। एफएमसी और फाइनैंस मिनिस्ट्री दोषियों को सजा दिलाने के लिए सचाई सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इन्वेस्टर्स की प्रॉब्लम सॉल्व होती नहीं दिख रही। लगभग 13,000 इन्वेस्टर्स अपना पैसा पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। इनमें दो पीएसयू और 175 ब्रोकर्स हैं। जिग्नेश शाह पूरी मशक्कत के बावजूद इतने दिनों में सिर्फ 140 करोड़ रुपयेरिकवर कर पाए हैं।
यह उनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए शर्मनाक है। मैनेजमेंट इन्वेस्टर्स के प्रति जिम्मेदारी नहीं निभा पाया है। इस मामले में उनकी तरफ से गलतबयानी हुई है। भ्रामक शेड्यूल दिए गए हैं। डिफॉल्टर्स और एक्सचेंज के अधिकारियों के खिलाफ कथित शिकायतें दर्ज की जा रही हैं, लेकिन एक्सचेंज और उसके डायरेक्टर्स के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। बेचारे मैनेजर बलि का बकरा बन रहे हैं।
हमें इन बातों पर ध्यान देना चाहिए:
1. फाइनैंशल टेक्नलॉजी ग्रुप के टोटल प्रॉफिट में एनएसईएल का सबसे ज्यादा (60 फीसदी) 130 करोड़ रुपयेका कॉन्ट्रिब्यूशन है, तो कैसे कंपनी रिस्क और कंप्लायंस रिस्पॉन्सिबिलिटी से दूर भाग सकती है। नियमों के हिसाब से बड़ी सब्सिडियरीज के अकाउंट्स की स्क्रीनिंग मेन ऑडिटर करते हैं। हर बोर्ड मीटिंग में इंटरनल और एक्सटर्नल ऑडिटर की बात सुनी जाती है
2. एनएसईएल के चेयरमैन के रिश्तेदार उसके सबसे बड़े बॉरोअर हैं। यह संयोग नहीं है। स्टॉक का प्राइमरी कोलैटरल गायब है। वेयरहाउस और उनकी रिसीट फर्जी हैं। सभी ऑडिट सटिर्फिकेट बोगस हैं।
3. कंपनी की चार बड़ी सीए फर्म को हटाकर एक छोटी फर्म की सविर्स ली गई, जिसका रिश्ता प्रमोटरों से है।
4. अंजनी सिन्हा के हलफनामे से कुछ चौंकाने वाले फैक्ट्स निकले हैं। उनके हिसाब से प्रॉब्लम 2011 से ही चल रही थी। उनके हिसाब से डिफॉल्ट के मामले दो साल पहले से ही शुरू हो गए थे। उसी साल बोर्ड की इजाजत से ऑडिटर्स भी बदले गए।
एनएसईएल ने मई में एनएसईएल एसजीएफ के लिए एक बॉरोअर के साथ 200 करोड़ रुपयेका प्रॉफिट ट्रेड एग्रीमेंट किया और 10 करोड़ रुपयेका पहला इंस्टॉलमेंट हासिल किया। एफटी ग्रुप की एंटिटी आईबीएमए एनएसईएल, एमसीएक्स और एमसीएक्स-एसएक्स पर ट्रेड करती है। ये एक्सचेंज भी एफटी के हैं। आईबीएमए को बॉरोअर एलओआईएल से प्रॉफिट एंट्री के तौर पर 20 करोड़ रुपयेमिले। अंजनी सिन्हा के मुताबिक, ऑडिटर्स ने उस पर साइन करने से मना कर दिया। मतलब बोर्ड और ऑडिट कमेटी को इसका पता था। एनएसईएल/आईबीएमए को बॉरोअर एनके (एनएसईएल के चेयरमैन के रिलेटिव की कंपनी) से प्रॉफिट एंट्री के तौर पर 21 करोड़ रुपये मिले।
इनसे पता चलता है कि फर्जीवाड़े का सबसे ज्यादा फायदा एफटी ग्रुप को हुआ। कंपनियों के बही-खाते एफटी ग्रुप लेवल पर कंसॉलिडेट किए गए हैं। इसका मतलब कंसॉलिडेटेड बुक्स में प्रॉफिट असल से ज्यादा दिखता है। ऐसे मैनुपलेशन की जांच की जानी चाहिए। मामला सत्यम केस जैसा लगता है। ग्रुप की दूसरी कंपनियों में ऐसे फर्जी ट्रांजैक्शन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
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