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02 सितंबर 2008

नहीं बनेगा विलायत में अनाज भंडार

नई दिल्ली September 02, 2008
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनाजों की अधिक कीमतों को देखते हुए सरकार ने विदेशों में अनाज का भंडार बनाने की योजना को टाल दिया है।
सरकार ने विदेशों में 20 से 30 लाख अनाज के भंडार बनाने की संभावनाओं की जांज करने की जिम्मेदारी चार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को सौंपी थी ताकि घरेलू जरूरत के वक्त खर्चीले आयात की जगह अपेक्षाकृत सस्ते में अनाजों का आयात किया जा सके। विदेशों में अनाज का भंडार होने से वैश्विक बाजार में खाद्य कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव से कुछ हद तक सुरक्षा मिलती साथ ही अपूर्ति संबंधी सुनिश्चितता भी होती। एक सरकारी अधिकारी ने बताया, 'शुरुआत में ही यह विचार साध्य नहीं लगा क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अनाजों की कीमत असामान्य रूप से अधिक थी। इसके अलावा, गेहूं की घरेली खरीद भी रेकॉर्ड स्तर पर की गई और अब इनके पर्याप्त भंडार उपलब्ध हैं।'वर्ष 2007-08 में देश में गेहूं और चावल का रेकॉर्ड उत्पादन हुआ है। सरकार ने गेहूं के 30 लाख टन के नीतिगत-भंडार और 20 लाख टन और अधिक चावल का भंडार बनाने का भी निर्णय किया है। अधिकांश खाद्य जिंसों की कीमतें वैश्विक बाजार की तुलना में घरेलू बाजार में महत्वपूर्ण रूप से कम हैं और आयात की कोई आवश्यकता नहीं है।केंद्र सरकार ने अपने विभिन्न उपायों जैसे गेहूं और गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा कर और शुल्क रहित आयात की अनुमति देकर उपभोक्ताओं को बढ़ती कीमतों से कुछ हद तक सुरक्षित रखा है। पिछले दो वर्षों में सरकार को अधिक कीमत पर गेहूं का आयात करना पड़ा था क्योंकि घरेलू खरीद जन वितरण प्रणाली की मांग के लिए पर्याप्त नहीं थी।साल 2006 में सरकार ने 205 डॉलर प्रति टन के औसत मूल्य के हिसाब से 55 लाख टन गेहूं का आयात किया था। वर्ष 2007 में किए गए 13 लाख टन गेहूं के करार की कीमत असाधारण तौर पर बढ़ कर 365 डॉलर प्रति टन हो गई। वैश्विक बाजार में भारत जैसे बड़े देश के प्रवेश से मूल्यों में बढ़ोतरी हुई थी। (BS Hindi)

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