नई दिल्ली September 21, 2008
खाद्यान्न प्रबंधन पर सरकार की मुश्किलें बढ़ गई है। सरकार ने पहले तो बाजार की स्थिति का बिना अध्ययन किए 1000 रुपये प्रति क्विंटल गेहूं की खरीद की। अब उसे खुले बाजारों में सस्ती दर पर बेचने की योजना बनाई जा रही है। लेकिन आलम यह है कि देश के लगभग सभी राज्यों में इस समय गेहूं निर्धारित समर्थन मूल्य से भी कम पर खुले बाजार में बिक रहा है। ऐसे में अंदाजा लग सकता है कि इस महंगे सरकारी गेहूं को खरीदेगा कौन? वैसे खाद्य मंत्रालय ने घाटा सहकर भी इस गेहूं को बेचने का निर्णय लिया है। उसने इस गेहूं की अलग अलग राज्यों में भिन्न भिन्न कीमतें घोषित की हैं।उत्तर प्रदेश में अलीगढ़, कानपुर, फैजाबाद की मंडियों में गेहूं का भाव 1055 रुपये प्रति क्विंटल है।
पंजाब की खन्ना मंडी में गेहूं 970 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है जबकि यहां के लिए केंद्र की दर बाजार भाव से ज्यादा यानी 1021 रुपये प्रति क्विंटल है। गुजरात की राजकोट मंडी में गेहूं की कीमत औसतन 1000 रुपये प्रति क्विंटल है और केंद्र ने यहां गेहूं 1088 रुपये प्रति क्विंटल बेचने का निर्णय लिया है।
दक्षिण भारत में कर्नाटक की नारकुंडा मंडी में गेहूं का भाव 1140 रुपये प्रति क्विंटल है और केंद्र ने यहां के लिए 1160 रुपये का भाव निर्धारित किया है। मध्यप्रदेश की पथरिया मंडी में गेहूं की कीमत 975 रुपये से 1000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच है, जबकि केंद्र ने यहां के लिए 1075 रुपये का भाव निर्धारित किया है।
जाहिर है कि राज्यों की मंडियों में केंद्र द्वारा निर्धारित भाव से कम पर गेहूं बिक रहा है।केंद्र ने अप्रैल-जून में 1000 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदा था। उस खरीद भाव में आढ़ती कमीशन, लदाई, ढुलाई और भंडारण का भी खर्च जोड़ने पर यह कीमत लगभग 1250 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थी।
लेकिन जब राज्यों की मंडियों में इससे कम दाम पर गेहूं बिक रहा था, तो केंद्र की यह मजबूरी हो गई कि वह भी कम दामों पर ही गेहूं बेचे। वैसे भी, खुले बाजार में गेहूं पर्याप्त मात्रा में है, इसलिए भी केंद्र पर कम दाम पर गेहूं बेचने का दबाव है।
खाद्य और कृषि मंत्री शरद पवार ने जुलाई में 60 लाख टन गेहूं खुले बाजारों में बेचने का निर्णय लिया था, जिसे कैबिनेट ने भी मंजूरी दे दी थी। लेकिन राज्यों की मंडियों में कम दाम पर गेहूं बिकने से केंद्र की मुसीबत बढ़ गई और उसे कम दामों पर इन मंडियों में गेहूं बेचने को मजबूर होना पड़ा। सदर बाजार ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष ओमप्रकाश जैन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकार जो कदम उठा रही है, वह सिर्फ राजनीतिक चोंचले हैं। दरअसल सरकार के इस कदम से किसानों को तात्कालिक लाभ पहुंचेगा, लेकिन इसे ज्यादा दिनों तक जारी नही रखा जा सकता है। (BS Hindi)
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