नई दिल्ली September 02, 2008
देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के चीनी मिलों पर वर्ष 2008-09 के सीजन में समय पर पेराई करने का दबाव होगा क्योंकि गन्ने की खेती का क्षेत्र पहले के मुकाबले कम है और गुड़ उत्पादक इकाइयों की तरफ इसके मुड़ने की संभावना ज्यादा है।
उल्लेखनीय है कि जाने माने चीनी उत्पादक जैसे बजाज हिंदुस्तान, बलरामपुर चीनी और त्रिवेणी इंजीनियरिंग सभी की इकाइयां उत्तर प्रदेश में हैं। चीनी उद्योग के सूत्रों ने बताया है कि वे अक्टूबर-मध्य से पेराई का काम शुरू करने की कोशिश करेंगे ताकि गुड़ उत्पादक इकाइयों की तरफ इनका फिराव न हो और उन्हें पर्याप्त गन्ना उपलब्ध हो पाए।यह साल 2007-08 के सीजन के ठीक उल्टा होगा क्योंकि इस सीजन में राज्य सरकार द्वारा निर्धारित 125 रुपये प्रति क्विंटल के मूल्य के विरोध में मिलों ने पेराई की शुरुआत करने में एक महीने का विलंब किया था। उच्च न्यायालय द्वारा 110 रुपये प्रति क्विंटल के अंतरिम मूल्य की घोषणा किए जाने के बाद मिलों ने नवंबर के उत्तरार्ध्द में पेराई की शुरुआत की थी। चीनी का सीजन अक्टूबर से सितंबर तक का होता है।हालांकि, अब परिस्थितियां पूर्णत: बदल गई हैं। पहली बात यह है कि राज्य में गन्ने का रकबा लगभग 20 प्रतिशत कम है क्योंकि किसानों ने बेहतर मूल्य का फायदा उठाने के लिए धान जैसी फसलों का रुख किया है। दूसरी तरफ चीनी की कीमतों में काफी बढ़ोतरी हुई है और यह पिछले सितंबर की तुलना में फिलहाल 35 प्रतिशत अधिक है (फैक्ट्री कीमत 1,800 रुपये प्रति क्विंटल) क्योंकि साल 2008-09 में उत्पादन तीन सालों में सबसे कम होने का अनुमान है। अधिक कीमतें और भविष्य का रुख जैसी वजहें मिलों के लिए पर्याप्त हैं कि वे अधिक से अधिक गन्ने की पेराई सुनिश्चित करें और परिस्थितियों का लाभ उठाएं। हो सकता है कि एक मिल दूसरे मिल के सुरक्षित क्षेत्र में किसानों को बेहतर मूल्य देने की हद तक भी चला जाए, जैसा कि मिलों ने साल 2005-06 के सीजन में किया था।फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स, मुजफ्फरनगर के प्रेसिडेंट अरुण खंडेलवाल ने कहा, 'गुड़ उत्पादक कोशिश करेंगे कि वे चीनी मिलों जितनी कीमतों का भुगतान कर पाएं। किसान जितना बेच सकते हैं उतना गुड़ इकाईयों को बेचने को तरजीह देंगे ताकि उन्हें नकद पैसे मिल सकें भले ही वह मिलों की तुलना में थोड़ा कम ही क्यों न हो।पिछले दो सीजन में चीनी मिलों द्वारा विलंब से किए गए भुगतान के कारण किसान खुश नहीं हैं।' जबकि 2007-08 के सीजन में इन गुड़ उत्पादकों ने 60-70 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर गन्ना खरीदा था (राज्य सरकार द्वारा तय की गई कीमत प्रति क्विंटल 125 रुपये थी), इस साल वे बेहतर मूल्य का भुगतान करने की स्थिति में हैं क्योंकि गुड़ की कीमतों में भी महत्वपूर्ण वृध्दि हुई है। गुड़ की कीमत मुजफ्फरनगर में 1,550 रुपये प्रति क्विंटल है। मुजफ्फरनगर एशिया का सबसे बड़ा गुड़ बाजार है। (BS Hindi)
देश के दूसरे सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश के चीनी मिलों पर वर्ष 2008-09 के सीजन में समय पर पेराई करने का दबाव होगा क्योंकि गन्ने की खेती का क्षेत्र पहले के मुकाबले कम है और गुड़ उत्पादक इकाइयों की तरफ इसके मुड़ने की संभावना ज्यादा है।
उल्लेखनीय है कि जाने माने चीनी उत्पादक जैसे बजाज हिंदुस्तान, बलरामपुर चीनी और त्रिवेणी इंजीनियरिंग सभी की इकाइयां उत्तर प्रदेश में हैं। चीनी उद्योग के सूत्रों ने बताया है कि वे अक्टूबर-मध्य से पेराई का काम शुरू करने की कोशिश करेंगे ताकि गुड़ उत्पादक इकाइयों की तरफ इनका फिराव न हो और उन्हें पर्याप्त गन्ना उपलब्ध हो पाए।यह साल 2007-08 के सीजन के ठीक उल्टा होगा क्योंकि इस सीजन में राज्य सरकार द्वारा निर्धारित 125 रुपये प्रति क्विंटल के मूल्य के विरोध में मिलों ने पेराई की शुरुआत करने में एक महीने का विलंब किया था। उच्च न्यायालय द्वारा 110 रुपये प्रति क्विंटल के अंतरिम मूल्य की घोषणा किए जाने के बाद मिलों ने नवंबर के उत्तरार्ध्द में पेराई की शुरुआत की थी। चीनी का सीजन अक्टूबर से सितंबर तक का होता है।हालांकि, अब परिस्थितियां पूर्णत: बदल गई हैं। पहली बात यह है कि राज्य में गन्ने का रकबा लगभग 20 प्रतिशत कम है क्योंकि किसानों ने बेहतर मूल्य का फायदा उठाने के लिए धान जैसी फसलों का रुख किया है। दूसरी तरफ चीनी की कीमतों में काफी बढ़ोतरी हुई है और यह पिछले सितंबर की तुलना में फिलहाल 35 प्रतिशत अधिक है (फैक्ट्री कीमत 1,800 रुपये प्रति क्विंटल) क्योंकि साल 2008-09 में उत्पादन तीन सालों में सबसे कम होने का अनुमान है। अधिक कीमतें और भविष्य का रुख जैसी वजहें मिलों के लिए पर्याप्त हैं कि वे अधिक से अधिक गन्ने की पेराई सुनिश्चित करें और परिस्थितियों का लाभ उठाएं। हो सकता है कि एक मिल दूसरे मिल के सुरक्षित क्षेत्र में किसानों को बेहतर मूल्य देने की हद तक भी चला जाए, जैसा कि मिलों ने साल 2005-06 के सीजन में किया था।फेडरेशन ऑफ गुड़ ट्रेडर्स, मुजफ्फरनगर के प्रेसिडेंट अरुण खंडेलवाल ने कहा, 'गुड़ उत्पादक कोशिश करेंगे कि वे चीनी मिलों जितनी कीमतों का भुगतान कर पाएं। किसान जितना बेच सकते हैं उतना गुड़ इकाईयों को बेचने को तरजीह देंगे ताकि उन्हें नकद पैसे मिल सकें भले ही वह मिलों की तुलना में थोड़ा कम ही क्यों न हो।पिछले दो सीजन में चीनी मिलों द्वारा विलंब से किए गए भुगतान के कारण किसान खुश नहीं हैं।' जबकि 2007-08 के सीजन में इन गुड़ उत्पादकों ने 60-70 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर गन्ना खरीदा था (राज्य सरकार द्वारा तय की गई कीमत प्रति क्विंटल 125 रुपये थी), इस साल वे बेहतर मूल्य का भुगतान करने की स्थिति में हैं क्योंकि गुड़ की कीमतों में भी महत्वपूर्ण वृध्दि हुई है। गुड़ की कीमत मुजफ्फरनगर में 1,550 रुपये प्रति क्विंटल है। मुजफ्फरनगर एशिया का सबसे बड़ा गुड़ बाजार है। (BS Hindi)
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