नई दिल्ली September 15, 2008
कई विवादों की जड़ में रहा गेहूं तीन साल में पहली बार अपने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी कम कीमत में बिक रहा है।
गेहूं के तीन सबसे बड़े उत्पादक राज्यों पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की अनाज मंडियों में तो अब यह हाल आम हो चुका है। पंजाब के खन्ना और संगरूर जिले के आटा चक्की संचालकों और आढ़तियों ने बताया कि इस समय किसान 950 से 970 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं बेच रहे हैं।गौरतलब है कि रबी के बीते सीजन में गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,000 रुपये प्रति क्विंटल रहा था। इन लोगों ने आगे बताया कि अप्रैल-मई में उनके द्वारा 1,010 से 1,020 रुपये की दर से गेहूं की खरीदारी की गई थी। मंडी शुल्क, रख-रखाव खर्च जैसे खर्चों को जोड़ने पर अब एक क्विंटल की लागत 1,150 से 1,160 रुपये तक पहुंच गई है। अनाज मंडी खन्ना में आरती फ्लोर मिल के डी. सी. सिंगला कहते हैं कि मौजूदा हालात को देखते हुए सरकार को गेहूं निर्यात की अनुमति दे देनी चाहिए। इससे न केवल उद्योगों को फायदा पहुंचेगा बल्कि किसानों को भी इसका लाभ मिलेगा। खन्ना में गेहूं की रोजाना आवक 40 से 50 टन के बीच चल रही है। सिंगला ने कहा कि बेहतर कीमत मिलने की उम्मीद में किसानों ने बड़े पैमाने पर गेहूं का भंडारण कर रखा है पर उनके लिए बुरी बात है कि गेहूं की कीमत अब चढ़ने की बजाए लुढ़क रहे हैं। इसलिए सरकार को गेहूं निर्यात पर लगी पाबंदी अब हटा लेनी चाहिए। गेहूं की कीमतों में हुई जबरदस्त बढ़ोतरी को देखते हुए सरकार ने फरवरी 2007 से गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगा रखी है। गेहूं के वायदा कारोबार पर भी पाबंदी है। एफसीआई के अध्यक्ष आलोक सिन्हा ने बताया कि गेहूं के एमएसपी से भी नीचे जाने से साबित होता है कि सरकारी एजेंसियों द्वारा रेकॉर्ड गेहूं खरीदे जाने से खुले बाजार में गेहूं की कमी हो जाने का अनुमान गलत था। (BS Hindi)
15 सितंबर 2008
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