नई दिल्ली September 15, 2008
हिमाचल प्रदेश के सेबों को फिर से दिल्ली के बाजार का सहारा मिल गया है। पिछले कुछ सालों में देश के कई छोटे-बड़े बाजारों में अपना दखल खो चुके हिमाचली सेबों के लिए यह बड़ी राहत और खुशी की बात मानी जा रही है।
कयास लगाए जा रहे थे कि इस साल हिमाचल प्रदेश में सेब का रेकॉर्ड उत्पादन होने से उत्पादकों को बाजार ढूंढने में मुश्किलें आ सकती है। दिल्ली की विशाल फल और सब्जी मंडी आजादपुर शुरू से ही हिमाचली सेब के लिए बड़ा बाजार रही है।लेकिन पिछले कुछ साल में किसानों ने हिमाचल के ही शिमला, सोलन, नरकंडा और रोहरू तथा चंडीगढ़ जैसे दूसरे शहरों के बाजारों का रुख किया। इसके अलावा निजी कंपनियों ने भी सक्रियता दिखाई जिससे इस राज्य के सेबों की पहुंच दिल्ली के बाजार में बहुत ही कम हो गई। पिछले तीन साल में इन वजहों से सेब खरीदने में दिल्ली का एकाधिकार टूट गया। ऐसी हालत में दिल्ली के आढ़तियों को उत्पादकों को आकर्षित करने के लिए कई कदम उठाने पड़े। राज्य के फल और सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष लेख राज चौहान ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस साल फिर हिमाचल के सेब बड़ी मात्रा में दिल्ली के बाजार में बेचे गए हैं। इसकी वजह यहां के बाजार का देश के दूसरे छोटे-छोटे बाजारों से काफी बड़ा और कहीं ज्यादा स्थायी होना है। उनके अनुसार, दिल्ली के आढ़तिए सेब बेचने के एवज में 6 फीसदी का हिस्सा लेते हैं लेकिन दूसरे राज्यों की मंडियों का यह हाल है कि उत्पादक खुद सेब बेच सकते हैं। दिक्कत यह है कि छोटे बाजारों में किसी ट्रक से आए माल को खाली होने में कई दिन लग जाते हैं। चौहान ने बताया कि दिल्ली के बाजार में ऐसा नहीं है और यहां बड़ी आसानी से माल बिक जाता है। इसे समझते हुए ही वहां के सेब उत्पादकों ने दिल्ली की मंडियों का रुख किया है। दिल्ली में बेहतरीन गुणवत्ता वाले सेबों की कीमत प्रति पेटी (22 किलोग्राम) 900 रुपये तक मिल रही है। देश में कहीं भी सेब की यह सबसे ज्यादा कीमत है। यहां की बाजार की खासियत यही है कि जम्मू और कश्मीर से भी सेबों की बड़ी मात्रा में आवक के बावजूद कीमतें लगातार स्थिर बनी हुई है। किसानों का कहना है कि हालांकि बीते वर्षों में इस दौरान सेब की कीमत तुलनात्मक रूप में काफी कम हुआ करती थी। लेकिन इस साल सेब के काफी अच्छे दाम मिल रहे हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार के मुताबिक, रोजाना सेब के 3.5 लाख बक्से लदे 700 ट्रक राज्य से बाहर जा रहे हैं। अब तक तकरीबन 1.1 करोड़ बक्से राज्य के बाहर भेजे जा चुके हैं। इसके बावजूद किसान ट्रकों की कमी की शिकायत कर रहे हैं। चौहान का कहना है कि राज्य सरकार पड़ोसी राज्यों से पर्याप्त ट्रक जुटा पाने में नाकाम रही है। (BS Hindi)
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