September 03, 2008
मौजूदा खरीफ सीजन में देश के कई इलाकों में बारिश थोड़ी अनियमित रही है। इस साल दक्षिणी राज्यों के अंदरूनी इलाकों सहित मध्य और पश्चिमी भारत के कई हिस्सों में ठीक से बारिश नहीं हुई।
इससे खरीफ फसल के उत्पादन को लेकर अनिश्चितता की स्थिति अब तक बरकरार है। वैसे कुल मिलाकर मौजूदा सीजन में मानसून का प्रदर्शन संतोषजनक माना जा रहा है। इस साल अगस्त के पहले हफ्ते से ही देश के लगभग सभी हिस्सों में अच्छी बारिश हुई। न केवल मात्रा के लिहाज से बल्कि वितरण के लिहाज से भी। इन 4 हफ्तों के दौरान हुई जोरदार बारिश से औसत या औसत से अधिक उत्पादन होने की उम्मीदें जगी हैं। चिंता मक्के के उत्पादन को लेकर जताई जा रही है। गौरतलब है कि स्टॉर्च और पोल्ट्री उद्योग द्वारा मक्के का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। पहले आशंका जताई गई थी कि रकबा घटने से मक्के का उत्पादन घट सकता है। लेकिन मुख्य उत्पादक क्षेत्रों में अच्छी बारिश के बाद अब इसकी उत्पादकता में सुधार होने का अनुमान जताया जा रहा है। तिलहन की बात करें तो जुलाई अंत तक अच्छी बुआई न होने से इसका उत्पादन घटने का अंदेशा था। लेकिन अगस्त में यह आशंका गलत साबित हुई जब कई वजहों से मोटे अनाज का उत्पादन क्षेत्र में कमी हुई। वह इसलिए कि इन खेतों में तिलहन की बुआई हो गई। इसके परिणामस्वरूप, तिलहन का रकबा पिछले साल से भी अधिक हो गया।आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल 31 अगस्त तक जहां 1.7 करोड़ हेक्टेयर में तिलहन की बुआई की गई थी, वहीं इस साल 1.73 करोड़ हेक्टेयर में इसकी खेती की जा रही है। इस बार सोयाबीन का रकबा 8 लाख हेक्टेयर बढ़ा है। पिछले साल 87 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की खेती हुई थी जबकि इस बार 95 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन बोया गया है।हालांकि मूंगफली का उत्पादन क्षेत्र पिछले साल की तुलना में थोड़ा घटा है। पिछले साल जहां 51.5 लाख हेक्टेयर में मूंगफली बोई गई थी, वहीं इस बार 50.5 लाख हेक्टेयर में मूंगफली बोई गई है। यही हाल कपास का है। पिछले साल 90.9 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती हुई थी जबकि इस साल केवल 89.1 लाख हेक्टेयर में कपास रोपा गया है।जानकारों के मुताबिक, इसका मतलब यह नहीं कि कपास का उत्पादन में इस साल कमी होगी। भले ही इस बार कपास का रकबा घटा है लेकिन इस बार बड़े पैमाने पर बीटी कॉटन बीजों को बोया गया है। बीटी कॉटन बीजों की उत्पादकता काफी अच्छी होती है, लिहाजा उत्पादन में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।जहां तक धान की बात है तो यह लगभग तय है कि इसका उत्पादन पिछले साल के रेकॉर्ड उत्पादन 9.64 करोड़ टन से भी ज्यादा होगा। क्योंकि इस साल पिछले साल से 15 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त जमीन पर धान रोपा गया है। पिछले साल जहां 3.3 करोड़ हेक्टेयर में धान रोपा गया था, वहीं इस बार 3.45 करोड़ हेक्टेयर में धान लगाया गया है।वैसे दलहन के उत्पादन को लेकर सबसे ज्यादा चिंता जताई जा रही है। पिछले साल की तुलना में इस बार दलहन का रकबा लगभग 20 लाख हेक्टेयर कम होने की आशंका है। दलहन उत्पादन के लिए मशहूर कर्नाटक और महाराष्ट्र से खबर है कि वहां दलहन के रकबे में 30 से 40 फीसदी की कमी हुई है।ऐसा इसलिए कि जब दलहन बोने का सही समय होता है तब उत्पादक क्षेत्रों में नमी सामान्य से काफी कम रही। इसका असर दलहन के रकबे में जोरदार कमी के रूप में देखने को मिला। दूसरी ओर, राजस्थान की स्थिति कुछ अलग रही है। इस राज्य में दलहन का रकबा 12 फीसदी बढ़ा है।विशेषज्ञों के मुताबिक, इसकी मुख्य वजह बाजरा उत्पादक क्षेत्रों में मूंग और मोठ की बुआई होना है। गन्ने के रकबे में भी 9 लाख हेक्टेयर से ज्यादा की कमी हुई है। जानकारों के मुताबिक, हर तीन साल में एक बार गन्ने के उत्पादन क्षेत्र में कमी होती है।इस सीजन की सबसे अच्छी बात मानसून का ओवरऑल प्रदर्शन औसत के आसपास रहना है। 1 जून से 29 अगस्त के बीच पूरे देश में औसत से महज 2 फीसदी कम बारिश हुई। जानकारों के मुताबिक, खेती के लिहाज से ऐसी स्थिति संतोषजनक मानी जानी चाहिए।हालांकि देश के उत्तर-पश्चिमी इलाके में औसत से 16 फीसदी ज्यादा वर्षा हुई है। देश के केंद्रीय भाग में औसत से 8 फीसदी, दक्षिणी राज्यों में 4 फीसदी और उत्तर-पूर्वी राज्यों में 5 फीसदी कम बारिश हुई। महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा में औसत से क्रमश: 20 और 44 फीसदी एवं कर्नाटक के उत्तरी-पूर्वी भाग में 25 फीसदी कम बारिश हुई है जो चिंता की मुख्य वजह मानी जा रही है। (BS Hindi)
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