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04 सितंबर 2008

पंजाब में धान की मस्ती शबाब पर लेकिन बुरे हैं कपास के हाल

चंडीगढ़ September 03, 2008
पंजाब में मौजूदा सीजन में धान का रकबा पिछले साल के रेकॉर्ड 26.1 लाख हेक्टेयर को पीछे छोड़ते हुए 26.6 लाख हेक्टेयर तक जाने की उम्मीद है। वहीं कपास के रकबे में उल्लेखनीय कमी होने के संकेत हैं।

अनुमान है कि मक्के का रकबा मौजूदा खरीफ सीजन में थोड़ा बढ़ सकता है। मालूम हो कि धान, कपास और मक्का पंजाब की महत्त्वपूर्ण खरीफ फसलें हैं। गौरतलब है कि इस साल सरकार ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 850 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया है जबकि पिछले साल धान का एमएसपी 100 रुपये बोनस सहित केवल 745 रुपये प्रति क्विंटल था। इस तरह पिछले साल की तुलना में इस साल धान के एमएसपी में 105 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि कर दी गयी है। किसानों के मुताबिक, उत्पादन लागत में हुई वृद्धि के मद्देनजर धान के बिक्री मूल्य में हुई वास्तविक वृद्धि शून्य है। संगरूर जिले के किसान सुखप्रीत सिंह के अनुसार, पिछले कुछ समय में धान की उत्पादन लागत में कई गुने की बढ़ोतरी हो चुकी है पर इसकी तुलना में एमएसपी की वृद्धि बहुत थोड़ी है। इसका दुष्परिणाम है कि किसान को लगातार घाटा हो रहा है। सालों से पंजाब में कृषि की हालत देश में सबसे अच्छी रही है। इस राज्य में देश के कुल उत्पादन का 20 फीसदी गेहूं, 11 फीसदी चावल और 12 फीसदी कपास पैदा किया जाता है। जहां तक केंद्रीय पूल की बात है तो पंजाब का योगदान 75 फीसदी गेहूं और 34 फीसदी चावल का है। सरकार द्वारा घोषित ताजा आंकड़े बताते हैं कि 1999-2000 से 2006-07 के बीच राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में खेती की हिस्सेदारी तकरीबन 20.65 फीसदी की है। 2001 की जनगणना के मुताबिक, राज्य की 39 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है।जाहिर है, इस राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए खेती का योगदान सबसे महत्त्वपूर्ण है। राज्य में गैर-बासमती चावल की खरीदारी में सरकारी एजेंसियों का बोलबाला है। गेहूं की खरीदारी में भी सरकारी एजेंसियों का दबदबा रहा है। बीते सीजन में कुल बिक्री का 72 फीसदी सरकारी और शेष 28 फीसदी निजी एजेंसियों के खाते में गया है। इसी प्रकार की प्रवृत्ति गैर बासमती चावल की खरीद में भी रही है।2006-07 में 1.38 करोड़ टन की कुल आवक का 76 फीसदी सरकारी एजेंसियों ने जबकि शेष निजी एजेंसियों ने खरीदा। पिछले साल किसानों को प्रति क्विंटल 677 रुपये से 729 रुपये के बीच भुगतान किया गया। निजी एजेंसियों को सरकारी एजेंसियों द्वारा चुकाई गई कीमत से 10-20 फीसदी ज्यादा कीमत किसानों को देनी पड़ी। पिछले साल बासमती उत्पादकों को उनके उत्पाद के एवज में बहुत अच्छी कीमत मिल गई थी। बीते सीजन में पूसा-1121 किस्म के बासमती चावल के लिए किसानों को 2,000 से 3,000 रुपये प्रति क्विंटल तक का भुगतान किया गया था। इसका असर इस बार दिखा भी है। इस साल बासमती के रकबे में बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल राज्य में जहां 2.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बासमती पैदा किया गया था, वहीं इस बार 3.5 लाख हेक्टेयर में बासमती लगाई गई है। बासमती चावल की खरीदारी केवल निजी एजेंसियों द्वारा की जाती है। देश से बासमती चावल के होने वाले निर्यात में पंजाब की हिस्सेदारी 25 से 30 फीसदी की होती है।यहां से अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों को बासमती चावल का निर्यात होता है। देश में भी बासमती की खासी खपत होती है। राज्य में इस साल कपास के रकबा में उल्लेखनीय कमी होने के संकेत हैं। (BS Hindi)

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