चीनी मिलों से हरित ईंधन की आपूर्ति की कमी के कारण एक बार फिर तेल
विपणन कंपनियां (ओएमसी) अपने एथेनॉल मिश्रण के लक्ष्य से चूक सकती हैं।
वर्ष 2013 में आरंभ होने वाले इस एथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम की शुरुआत आर्थिक
नजरिये से चीनी मिलों की मदद के लिए की गई थी। उस समय सरकार ने पहले पांच
सालों में पेट्रोल के साथ पांच प्रतिशत और उसके बाद 10 प्रतिशत एथेनॉल
मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया था। हालांकि तेल विपणन कंपनियां चार सालों
में भी प्रथम वर्षों का पांच प्रतिशत का लक्ष्य प्राप्त करने में सफल नहीं
हो पाई हैं।
2015-16 के गन्ना पेराई सीजन के दौरान तेल विपणन कंपनियों को चीनी
मिलों से 130 करोड़ लीटर एथेनॉल लेना था लेकिन आपूर्ति केवल 111 करोड़ लीटर
ही की गई थी। तेल विपणन कंपनियां सिर्फ 4.15 प्रतिशत मिश्रण का लक्ष्य ही
प्राप्त कर सकीं। इस साल भी भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लि. (बीपीसीएल) की
अगुआई में तेल विपणन कंपनियों ने 78 करोड़ लीटर आपूर्ति की मांग से अपनी
अभिरुचि (ईओएल) दिखाई है। हालांकि यह भी लक्ष्य से तीन प्रतिशत से भी कम
है। कोल्हापुर (महाराष्ट्र) स्थित आधुनिक डिस्टिलरीज की सलाहकार फर्म
एथेनॉलइंडिया डॉट कॉम के मुख्य सलाहकार दीपक देसाई ने कहा कि अगर पिछले साल
की तरह ही दूसरी या तीसरी निविदा अथवा अभिरुचि दिखाई जाती है तो इस साल
गन्ने की कम उपलब्धता और आसमान में पहुंच रही शीरे व ईएनए यानी एक्स्ट्रा
न्यूट्रल एल्कोहल (एथेनॉल की एक किस्म जिसका इस्तेमाल प्राय: पीने योग्य
एल्कोहल के विनिर्माण में किया जाता है) की कीमतों के कारण एथेनॉल की
आपूर्ति कम रहेगी। इस तरह इस साल एथेनॉल मिश्रण के आवश्यक पांच प्रतिशत की
तुलना में चार प्रतिशत से ऊपर जाने की संभावना नहीं लगती।
सूत्रों ने कहा कि ईएनए के दामों में इजाफा हुआ है और फिलहाल यह 10
प्रतिशत ऊंचे 45-46 रुपये प्रति लीटर पर चल रहे हैं। चूंकि ईएनए से पांच
प्रतिशत पानी निकालने के लिए उसे आगे संसाधित किया जाता है इसलिए इस
प्रक्रिया की लागत में प्रति लीटर 1-1.50 रुपये जुड़ जाता है। इस प्रकार
एथेनॉल उत्पादन की लागत तेल विपणन कंपनियों के प्रति लीटर 37-38 रुपये के
भुगतान की तुलना में तकरीबन 50 रुपये प्रति लीटर बैठती है। देसाई ने कहा कि
इसलिए तेल विपणन कंपनियों को एथेनॉल की आपूर्ति से डिस्टिलरीज की उत्पादन
लागत का कम से कम 30 प्रतिशत का नुकसान हो रहा है। इस कारण इस साल एथेनॉल
उत्पादन में डिस्टिलरीज की रुचि कम हो गई है। महाराष्ट्र स्टेट फेडरेशन ऑफ
को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज के प्रबंध निदेशक संजीव बाबर के मुताबिक बड़ी
संख्या में डिस्टिलरीज ने खासतौर पर महाराष्ट्र में सूखे से प्रभावित
क्षेत्रों में व्यावहारिक कारणों से अपना परिचालन बंद कर दिया है। चूंकि
शीरे के दाम पिछले साल के 4,500 रुपये के मुकाबले 90-95 प्रतिशत बढ़कर
फिलहाल 8,500 रुपये प्रति टन चल रहे हैं इसलिए एथेनॉल उत्पादन मुश्किल हो
गया है। हालांकि मौजूदा बड़ी डिस्टिलरीज एथेनॉल विनिर्माण के लिए स्वतंत्र
शुगर मिलों से शीरे की खरीद कर रही हैं।
कृषि मंत्रालय के प्रथम अग्रिम अनुमान के अनुसार 2016-17 में भारत का
गन्ना उत्पादन गिरकर 30.525 करोड़ टन रहने की संभावना है जबकि पिछले साल यह
35.216 करोड़ टन था। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक
अविनाश वर्मा ने कहा, 'गन्ने की उपज में गिरावट के फलस्वरूप इस साल देश के
कुछ भागों में पेराई और शीरे की उपलब्धता में कमी आई है, इसके विपरीत मांग
ऊंची बनी हुई है। इसके अलावा चूंकि शीरे के दाम बढ़ गए हैं और एथेनॉल में
गिरावट आई है इसलिए स्वतंत्र डिस्टिलरीज के लिए एथेनॉल विनिर्माण मुश्किल
हो रहा है। सरकार ने न केवल एथेनॉल खरीद के दाम 2-3 रुपये प्रति लीटर तक कम
कर दिए हैं, बल्कि उत्पाद शुल्क की छूट भी वापस ले ली है जिसका पिछले साल
तक डिस्टिलरीज फायदा उठा रही थीं।' (BS Hindi)
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