किसी
भी संकट का हल निकालने के लिए उससे जुड़ी सही जानकारी का होना सबसे अहम
है। लेकिन हाल की कुछ घटनाओं से लगता है कि कृषि और किसानों के संकट के
मामले में आंकड़ों के स्तर पर सरकार की हालत बहुत बेहतर नहीं है। इस पर
लगातार सवाल भी उठ रहे हैं। ऐसे में अगर यह स्थिति नहीं सुधरती है तो
दिक्कतें कम होने की बजाय बढ़ सकती हैं। सूखे के बावजूद गेहूं उत्पादन में
बढ़ोत्तरी का अनुमान पहला मामला गेहूं उत्पादन का है। कृषि मंत्री और
उनके मंत्रालय ने दावा किया कि देश में सूखे की स्थिति के बावजूद गेहूं के
उत्पादन पर कोई प्रतिकूल असर नहीं होगा और यह पिछले साल से अधिक रहेगा।
इसके लिए 9.4 करोड़ टन उत्पादन का अनुमान जारी किया गया। साथ ही सरकार ने
305 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद का लक्ष्य भी तय किया। लेकिन जब बाजार में
गेहूं की आवक शुरू हुई तो वह बहुत बेहतर नहीं रही। यह पिछले साल से करीब
50 लाख टन कम रही है। इसके चलते गेहूं की सरकारी खरीद करीब 230 लाख टन पर
अटक जाने की संभावना है। जो 305 लाख टन के तय लक्ष्य से करीब 70 लाख टन कम
रहेगी। गेहूं की कीमतों पर पड़ सकता है असर नतीजा यह होगा कि केंद्रीय पूल
में सरकार के पास बहुत अधिक स्टॉक नहीं रहेगा और सरकार के पास बाजार में
कीमतों पर नियंत्रण के लिए खुले बाजार में गेहूं की बिक्री के लिए बहुत
विकल्प नहीं रहेंगे। इसका सीधा असर कीमतों पर आ सकता है। जो अभी से दिखने
भी लगा है क्योंकि खपत वाले क्षेत्रों में जहां गेहूं का उत्पादन नहीं होता
है वहां दाम बढ़ने लगे हैं और फ्लॉर मिलें आयात के लिए लाबिंग करने लगी
हैं। यही नहीं पिछले साल भी सरकार ने गेहूं उत्पादन का अनुमान बढ़ाचढ़ाकर
पेश किया था और बाद में इसे 9.57 करोड़ टन के पहले अनुमान से करीब 92 लाख
टन घटाकर ताजा आंकड़ों में 8.65 करोड़ टन कर टन कर दिया गया है। असल में
पहले और आरंभिक अऩुमान ही लोगों को याद रहते हैं और कृषि उत्पादन के
अनुमानों के पांचवें और अंतिम अऩुमान तक पहुंचते पहुंचते कितना बदलाव आ
जाता है इसको लेकर समीक्षा कम होती है। यही नहीं उत्पादन अऩुमानों में कमी
के जरिये अगले साल की कृषि विकास दर को भी बेहतर दिखाने में मदद मिलती है।
मसलन पिछले वित्त वर्ष 2015-16 की 1.1 फीसदी की कृषि विकास दर सही उत्पादन
आकलन की स्थिति में ऋणात्मक या शून्य पर आ सकती है । शुगर मिल्स के आंकड़ों
पर भरोसा कर रही सरकार दूसरा मामला है चीनी उत्पादन का। करीब छह महीने
पहले तक सरकार चीनी उत्पादन की अधिकता और घरेलू बाजार में गिरती कीमतों के
चलते निर्यात प्रोत्साहन दे रही थी। वहीं उद्योग को प्रोत्साहन के लिए
किसानों के नाम पर चार रुपए प्रति क्विंटल की गन्ना मूल्य सब्सिडी तय करने
के साथ कहा गया कि वह गन्ना किसानों की मदद कर रही है। चीनी उद्योग भी
सरकार से मदद लेने के लिए चालाकी करता रहा और महाराष्ट्र में भारी सूखे के
बावजूद उत्पादन को पिछले सीजन के लगभग बराबर ही आंकता रहा। सरकारी तंत्र
भी निजी उद्योगों के संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) पर भरोसा
करता रहा। लेकिन अब उत्पादन करीब 30 लाख टन रहेगा।
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