भारत से निर्यात होने वाली मूंगफली की गुणवत्ता पर वियतनाम के सवाल उठाने के बाद अब इंडोनेशिया ने इसमें एफ्लाटॉक्सिन पाए जाने की वजह से भारत से आयात बंद कर दिया है। एफ्लाटॉक्सिन जहरीले और कैंसर जैसी बीमारी पैदा करने वाले रसायन हैं, जो फफूंदी से पैदा होते हैं। ये फफूंदी मिट्टी, मृत वनस्पति, घास और अनाज में पैदा होती हैं। इंडोनेशिया ने भारत से आने वाली मूंगफली की खेप में एफ्लाटॉक्सिन और कीटनाशक के अवशेष की जांच के लिए कहा है। लेकिन उनकी संबंधित संस्थाओं ने हमारे कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के पास पंजीकृत 21 प्रयोगशालाओं में से केवल छह को मान्यता दी है। इंडोनेशिया के संबंधित विभागों ने बहुत कम प्रयोगशालाओं को मंजूरी दी है, इसलिए निर्यातकों को अपने कंटेनरों के लिए प्रमाणपत्र हासिल करने में तीन सप्ताह तक की देरी हो रही है। एपीडा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'हमने इंडोनेशियाई प्राधिकरणों से हमारे पास पंजीकृत 21 प्रयोगशालाओं में से कुछ और को मंजूरी देने को कहा है। हमने यह पाया है कि निर्यातकों को मूंगफली की खेप भेजने में देरी हो रही है।' देश का मूंगफली निर्यात वर्ष 2015-16 में 5,36,929 टन पर स्थिर रहा। मूंगफली के निर्यात में 2013-14 के बाद भारी गिरावट आई है। उस समय निर्यात 7,08,386 टन रहा था, जिसकी कीमत 76 करोड़ डॉलर थी। वियतनाम के बाद भारत का दूसरा सबसे ज्यादा मूंगफली निर्यात इंडोनेशिया को होता है। एपीडा के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 के पहले 11 महीनों में इंडोनेशिया को मूंगफली का निर्यात 1,73,966 टन (20.2 करोड़ डॉलर) रहा, जो पिछले साल 1,83,355 टन (19.1 करोड़ डॉलर) था। कुछ खेप में 'ओलिवियर' ऌबग पाए जाने की वजह से वियतनाम को निर्यात में दिक्कत पैदा हुई है। एपीडा ने एपीडा के प्राधिकरणों से आग्रह किया है कि वे एक बार और कंटेनर का फ्यूमिगेशन करने के बाद खेप स्वीकार करें। मुंबई के एक मूंगफली निर्यातक संजय शाह ने कहा, 'इंडोनेशियाई प्राधिकरणों ने खेप में कीटनाशकों के अवशेष के अतिरिक्त प्रमाणन का निर्देश दिया है। इससे अब एक कंटेनर के प्रमाणन की लागत 14,000 हो गई है, जो इन जांचों को अनिवार्य बनाए जाने से पहले 3,000 रुपये प्रति कंटेनर थी।' पहले बोरियों की रैंडम टेस्टिंग होती थी, लेकिन अब इंडोनेशियाई प्राधिकरणों ने सभी बोरियों के अलग-अलग जांच के प्रमाणन का निर्देश दिया है। अगर भारतीय निर्यातक गुणवत्ता के वैश्विक मानक नहीं अपनाते हैं तो निर्यात पर वास्तविक असर अगले कुछ महीनों में दिखेगा। इंडियन ऑयलसीड ऐंड प्रोड्युस एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (आईओपीईपीसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक सरकार ने अग्रणी मूंगफली निर्यातकों की 23 जून को मुंबई में बैठक बुलाई है। आईओपीईपीसी के चेयरमैन संजीव सावला ने पहले भी कहा था कि घरेलू बाजार में मूंगफली की कीमतें विदेशी बाजारों से अधिक हैं, जिससे हमारे निर्यात पर संकट बना हुआ है। पिछले साल कमजोर मॉनसून की वजह से उत्पादन भी गिरा है। 2015 के खरीफ सीजन में मूंगफली का उत्पादन 32 लाख टन रहा, जो 2014 के खरीफ सीजन में 35 लाख टन रहा था। कम उत्पादन से घरेलू बाजार में कीमतें 15 फीसदी बढ़कर 80,000 से 95,000 रुपये प्रति टन हो गई हैं। (BS Hindi)
22 जून 2016
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