धान और गेहूं के अलावा दूसरी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)
पर निश्चित खरीद की गारंटी या किसी तरह का प्रोत्साहन न मिलने की वजह से
पंजाब में फसलों में विविधता नहीं दिख रही है। इसके बजाय एक व्यापक क्षेत्र
में गर्मी के दिनों में ज्यादा पानी वाली फसल धान और सर्दियों में गेहूं
की खेती का चलन है। सरकार केवल न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही खरीदारी करती है
ऐसे में ये दो फसलें राज्य के एक बड़े क्षेत्र में क्रमश: खरीफ और रबी फसल
में शामिल है जबकि अन्य फसलें लगभग हाशिये पर हैं। राज्य कृषि विभाग की
आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों से भी यह बात स्पष्ट हो जाती है।
बासमती सहित धान के तहत शामिल क्षेत्र वर्ष 2010-11 में 28.30 लाख हेक्टेयर
था जो सरकार के विविधीकरण के दावे के बावजूद वर्ष 2014-15 में 28.94 लाख
हेक्टेयर के स्तर पर पहुंच गया।
मालवा में कभी कपास एक प्रमुख फसल हुआ करती थी लेकिन इसका रकबा
2010-11 के 48,4000 हेक्टेयर से कम होकर 420,000 हेक्टेयर रह गया और इस साल
भी इसमें कमी आई और यह करीब आधा रह गया। मक्के की फसल का भी यही हाल रहा
और पंजाब में इसका रकबा 2010-11 के 134,000 हेक्टेयर से कम होकर महज
126,000 हेक्टेयर क्षेत्र तक सिमट गया। रबी फसल में गेहूं सबसे बड़ी फसल है
जिसे 2010-11 में 3510 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उगाया गया था लेकिन यह
2014-15 में 3514 लाख हेक्टेयर के स्तर तक चला गया। कपास की फसल में कमी
आने की वजह से इस साल धान और बड़े क्षेत्र में उगाया जाएगा।
भारतीय किसान यूनियन एकता उग्रहण के महासचिव सुखदेव सिंह कोकड़ी कलां
कहते हैं, 'किसान सभी तरह की फसलें उगाने को तैयार हैं लेकिन वे चाहते हैं
कि उनकी फसलें निश्चित तौर पर न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ खरीदी जाएं।
उन्होंने सूर्यमुखी, बागवानी, सब्जियों और कई दूसरी फसलों के साथ प्रयोग
किया है ताकि फसलों में विविधता आए लेकिन उन्हें असफलता मिली।' वह कहते
हैं, 'फसलों की विविधता को खत्म करने के लिए हरित क्रांति भी जिम्मेदार है।
इससे पहले सभी किसान अपने खेतों में तीन से चार फसलें उगाया करते थे।'
गुरुवार को फसल विविधीकरण पर सरकार की विज्ञप्ति के मुताबिक राज्य में इस
कार्यक्रम पर 2013-14 से ही अमल किया जा रहा है और इस कार्यक्रम का मुख्य
उद्देश्य वैकल्पिक फसलों की उत्पादन तकनीक को बढ़ावा देना है। इसी दिशा में
पहल के तहत किसानों के खेतों में मक्का, कपास, चिनार और यूकलिप्टस आदि
दिखाए जा रहे हैं। वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता की
पहल करते हुए सीड ड्रिल, बुवाई यंत्र, स्प्रे पंप, थ्रेशर, और फसल की कटाई
के बाद वाली मशीन आदि भी मुहैया कराई जा रही हैं।
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