भारत धीरे-धीरे 70 अरब डॉलर के खली बाजारों से बाहर होता जा रहा है।
इसकी वजह पेराई के लिए तिलहनों का अभाव और कई देशों के खली आपूर्तिकर्ता के
रूप में उभरना है। तिलहन पेराई मिलों ने तत्काल सरकारी नियमों को नरम
बनाने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि ऐसा करने ही भारत को वैश्विक
तिलहन बाजार में अपना खोया मुकाम हासिल कर सकता है।
तीन साल पहले तक भारत का वैश्विक खली कारोबार में 5 फीसदी से अधिक
योगदान था। उस समय घरेलू स्रोतों से तिलहन की भरपूर आपूर्ति थी। लेकिन अब
भारत के खली निर्यात में भारी गिरावट आई है। यह मई 2016 में 94 फीसदी की
भारी गिरावट के साथ महज 7,737 टन रहा, जो पिछले साल के इसी महीने में
1,21,339 टन था। खली के घटते निर्यात से भारतीय तिलहन पेराई मिलों की
वित्तीय हालत बिगड़ी है। इस वजह से ज्यादातर मिलों ने अपना घाटा कम करने के
लिए अपनी परिचालन क्षमता 50 फीसदी से कम कर दी है। अभी उन्हें प्रत्येक एक
टन तिलहन पेराई पर करीब 1,000 से 1,500 रुपये का नुकसान हो रहा है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक बी
वी मेहता ने कहा, 'अगर देश के निर्यात में आगे भी यही रुझान बना रहा तो वह
जल्द ही वैश्विक खली बाजारों से बाहर हो जाएगा।'
वैश्विक कारोबारी माहौल में तेजी से बदलाव के कारण पिछले 3 साल में
भारत के खली निर्यात में भारी गिरावट दर्ज की गई है। भारत का खली निर्यात
2013-14 में 43.8 लाख टन था, जो 2014-15 में घटकर 24.7 लाख टन और 2015-16
में 12.1 लाख टन पर आ गया। कारोबारी सूत्रों ने चालू वित्त वर्ष यानी
2016-17 में भारत से खली का निर्यात 10 लाख टन से कम रहने का अनुमान है।
भारतीय खली निर्यातक कई समस्याओं से जूझ रहे हैं, जिससे निर्यात प्रभावित
हुआ है। तिलहनों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय किए जाने से मिलें
किसानों से एमएसपी से नीचे तिलहन नहीं खरीद पाती हैं, जिससे खली की ज्यादा
लागत आ रही है।
वनस्पति तेल की कीमतें कमजोर बनी हुई हैं, इसलिए घरेलू पेराई मिलों
महंगे दामों पर तिलहन की खरीदारी नहीं कर सकतीं। घरेलू मिलें घरेलू स्तर पर
पैदा होने वाले तिलहनों की पेराई के बजाय सीधे रिफाइंड तेल का आयात कर रही
हैं और इसकी पैकेजिंग कर बेच रही हैं। वे तेल और खली बनाने के बजाय तेल के
कारोबार पर ध्यान दे रही हैं। विश्व के तीन प्रमुख सोयाबीन उत्पादक
देशों-अर्जेन्टीना, ब्राजील और अमेरिका में इस जिंस के भारी उत्पादन से
स्थितियां बदल गई हैं। चीन जैसे देशों ने सोयाबीन का आयात कर घरेलू स्तर पर
पेराई शुरू कर दी है। इससे चीन की खली के आयात पर निर्भरता कम हो गई है।
वर्ष 2013-14 तक भारतीय खली का सबसे बड़ा आयात ईरान कुछ समय पहले तक
वैश्विक आर्थिक प्रतिबंधों से जूझ रहा था। इससे ईरान की खली के आयात के लिए
भारत पर निर्भरता बढ़ गई थी। लेकिन अब पश्चिमी देशों ने ईरान पर प्रतिबंध
हटा लिए हैं, इसलिए ईरान ने भारत से खली का आयात लगभग बंद कर दिया है। (BS Hindi)
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