नई दिल्ली/मुंबई March 13, 2011
किसी ब्रांड के नाम से बेचे जाने वाले आभूषणों पर 1 फीसदी के उत्पाद कर से 1 लाख करोड़ रुपये वाले जेम्स ऐंड ज्वैलरी उद्योग को राहत नहीं मिलेगी। वित्त मंत्रालय इस उद्योग की उत्पाद कर की वापसी की मांग से सहमत नहीं हुआ और ब्रांडेड आभूषण बनाने वाले अग्रणी निर्माताओं ने उत्पाद शुल्क का भुगतान करना शुरू भी कर दिया है।वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा - हम ब्रांडेड आभूषणों पर प्रस्तावित उत्पाद करों की समीक्षा नहीं कर रहे हैं। वित्त मंत्रालय ने ब्रांडेड आभूषणों के साथ-साथ सोने, चांदी, प्लैटिनम, पैलेडियम, रोडियम, इरिडियम, ओस्मियम से बने किसी अन्य सामानों या किसी ब्रांड केनाम से बेचे जाने वाले सामानों पर 1 फीसदी का उत्पाद शुल्क लगाने की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने हमसे ब्रांडेड आभूषणों के बारे में पूछा था और हमने उन्हें इस बाबत विस्तार से जानकारी दी थी। उन्होंने कहा कि अगर उद्योग को किसी तरह का संदेह हो तो हम स्पष्टीकरण जारी कर सकते हैं।मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में हॉलमार्क और हाउस-मार्क को छूट दी गई है, जो किसी ज्वैलर या ऐसा काम करने वालों की पहचान को प्रतिबिंबित करता है और इसे ब्रांड नहीं माना जाएगा। इसे ब्रांडेड ज्वैलरी के तौर पर तभी वर्गीकृत किया जाएगा अगर आप इसे उदाहरण के तौर तनिष्क के लिए टी का इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि कारोबारी समुदाय ने कहा है कि उत्पाद कर सिर्फ महंगे ब्रांड पर लगाया जाना चाहिए।कई ज्वैलर अपने नाम से आभूषण बेच रहे हैं और उनमें से कई ब्रांड बन चुके हैं। लेकिन जेम्स ऐंड ज्वैलरी ट्रेड फेडरेशन के प्रतिनिधियों ने पिछले हफ्ते वित्त मंत्रालय के साथ हुई बैठक में कहा था कि ज्वैलर के नाम को ब्रांड नहीं माना जाना चाहिए। वास्तविकता यह है कि उद्योग मोटे तौर पर असंगठित है और छोटे ज्वैलर छोटे कारीगरों के हाथ से आभूषण बनवाते हैं। तनिष्क जैसी कुछ चुनिंदा कंपनियों ने पहले ही उत्पाद कर चुकाना शुरू कर दिया है। टाइटन इंडस्ट्रीज (ज्वैलरी डिविजन) के सीईओ सी. के. वेंकटरामन ने कहा - टाइटन ने शुल्क चुकाना शुरू कर दिया है और उम्मीद कर रहा है कि सरकार प्रतिष्ठित स्थानीय ज्वैलरों को भी ब्रांड के तौर पर देखेगी, जो कि वे हैं।जेम्स ऐंड ज्वैलरी फेडरेशन (जीजेएफ) के चेयरमैन विनोद हेग्रीव ने हालांकि कहा कि ज्यादातर छोटे ज्वैलर छोटे कारीगरों से आभूषण बनवाते हैं जो कारीगर की तरह काम करते हैं, लेकिन वे छोटे व असंगठित हैं। इसके बाद आभूषणों को खुदरा दुकानदारों को बेचा जाता है। कारीगरों की संख्या छोटी है, ऐसे में दुकानों पर उत्पाद शुल्क नहीं लगाया जा सकता क्योंकि इसका भुगतान विनिर्माताओं द्वारा होना चाहिए, न कि कारोबारियों द्वारा। ये चीजें क्रियान्वयन को जटिल बनाती हैं।वास्तव में बेंगलुरु जैसे उत्पाद कर के कार्यालयों ने ज्वैलरों को नोटिस भेजना शुरू कर दिया है कि ब्रांड नाम से बेचे जाने वाले आभूषणों पर वे उत्पाद कर चुकाएं। चूंकि यह उद्योग असंगठित क्षेत्र में है, लिहाजा कुछ के ही पास सही मायने में विनिर्माण की सुविधा है। ऐसे में इसका क्रियान्वयन मुश्किल है और आभूषण की बिक्री सोने की कीमत, श्रमिक लागत और वैट के आधार पर होती है। यह शायद इकलौता उत्पाद है जो इस तरह बेचा जाता है, ऐसे में वैट संग्रह की उचित व्यवस्था भी मुश्किल है।सरकार ने कहा है कि ब्रांडेड उत्पाद पर कर चुकाने की जिम्मेदारी ब्रांड के मालिक की है और काम करने वाले मालिक के बदले कर चुका सकता है। हालांकि ज्वैलरी उद्योग में काम करने वाले कारीगर होते हैं, जो औपचारिक तौर पर रिकॉर्ड नहीं रखते। कारोबारी के बदले कर चुकाने के लिए उन्हें जिम्मेदार बनाने के परिणामस्वरूप ये कारीगर इस कारोबार से तौबा कर सकते हैं कि उत्पाद कर विभाग उन्हें परेशान कर सकता है। (BS Hindi)
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