मुंबई March 04, 2011
महाराष्ट्र में चीनी के हाजिर कारोबारियों ने बंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और हाजिर व वायदा कारोबार की बाबत नियमों में अंतर को समाप्त करने की मांग की है। प्रतिनिधि निकाय महाराष्ट्र शुगर मर्चेंट ऐंड ब्रोकर्स एसोसिएशन ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि अलग नियमों की वजह से जिंस एक्सचेंजों में बढ़ते कारोबार से सट्टेबाजी को बढ़ावा मिलता है और इस तरह से चीनी जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें प्रभावित होती है। याचियों ने अदालत से अपील की है कि हाजिर व वायदा दोनों तरह के कारोबारियों को एकसमान मौका उपलब्ध कराया जाए।याचियों ने कहा है कि यह आवश्यक है क्योंकि हाजिर कारोबारी 200 टन से ज्यादा स्टॉक नहीं रख सकते और उनके लिए लाइसेंस की अनिवार्यता भी है, जिसे इस साल मार्च तक के लिए आगे बढ़ाया गया है। हालांकि वायदा कारोबारी अनिवार्य लाइसेंस के बगैर 8000 टन तक की चीनी का कारोबार एक समय में कर सकते हैं। याचियों ने कहा है कि यह कदम विभेदकारी, मनमाना और बिना किसी आधार का है, साथ ही अनुचित भी है। उन्होंने कहा है कि सही वितरण, बिक्री व कीमत नियंत्रण में कामयाबी हासिल करने से इसका कोई लेना देना नहीं है। इसमें भारत सरकार के खाद्य व उपभोक्ता मंत्रालय, चीनी निदेशालय, वायदा बाजार आयोग, एनसीडीईएक्स को पक्षकार बनाया गया है। उच्च न्यायालय में याचिका पर जल्द सुनवाई की उम्मीद है।याचियों ने कहा है कि हाजिर कारोबारी को चीनी निदेशालय द्वारा रिलीज ऑर्डर जारी किए जाने के बाद तय समय में चीनी उठाना पड़ता है और अगर कारोबारी ऐसा करने में नाकाम रहते हैं तो उन्हें अर्थदंड भुगतना पड़ता है और ऐसी चीनी को लेवी चीनी में परिवर्तित कर दिया जाता है। लेवी चीनी का वितरण जन वितरण प्रणाली के जरिए फ्री शुगर के मुकाबले कम कीमत पर होता है। दूसरी ओर वायदा बाजार में अगर कारोबारी तय समय पर डिलिवरी लेने में नाकाम रहता है तो इसके लिए उन पर 2 से 3 फीसदी का मामूली अर्थदंड लगाया जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि ऐसी चीनी को लेवी चीनी में नहीं बदला जाता।उन्होंने यह भी तर्क दिया है कि एक्सचेंज में कारोबार के दौरान चीनी की कीमतों में होने वाला उतारचढ़ाव हाजिर बाजार में चीनी के कारोबार को प्रभावित करता है। इसके परिणामस्वरूप वायदा बाजार में चीनी का बहुत ज्यादा कारोबार होता है, लेकिन वास्तविक डिलिवरी काफी कम होती है।याचियों ने एनसीडीईएक्स के आंकड़ों को आधार बनाया है और इसमें कहा गया है कि 20 जनवरी को समाप्त हुए अनुबंध में कारोबार करीब 804 करोड़ रुपये का हुआ जबकि वास्तविक डिलिवरी महज 2700 टन का था और अगर कीमत में इसे बदला जाए तो यह 8 करोड़ रुपये बैठता है। दूसरे शब्दोंं में वायदा बाजार में होने वाली वास्तविक डिलिवरी कुल कारोबार का सिर्फ एक फीसदी ही है। ऐसा तब है जबकि चीनी को आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में शामिल किया गया है, जिसमें इसकी बिक्री व वितरण के साथ-साथ कीमतें भी नियंत्रित होती हैं। (BS Hindi)
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