मुंबई March 08, 2011
वैश्विक बाजार की तरह घरेलू बाजार में भी कपास की कीमतों में तेज गिरावट देखी जा रही है। अनुमान से ज्यादा उत्पादन होने और कपास निर्यात पर रोक लगाने की आशंकाओं के चलते हाजिर और वायदा दोनों में कपास की कीमतों में गिरावट शुरू हो गई। हालांकि, कुछ जानकार बाजार में चल रहे इस उतार-चढ़ाव को सटोरियों का खेल मान रहे हैं।एनसीडीईएक्स पर कपास अप्रैल अनुबंध 4 फीसदी की गिरावट केसाथ 1,110 रुपये प्रति 20 किलोग्राम पर पहुंच गया जबकि मार्च अनुबंध 3.9 फीसदी लुढ़ककर 1,115 रुपये प्रति 20 किलोग्राम हो गया। वायदा बाजार की तरह हाजिर बाजार में भी कपास की कीमतों में गिरावट देखने को मिली। शंकर-6 कपास की कीमतें प्रति क्ंिवटल करीबन 150 रुपये गिरकर 16,450 रुपये पर पहुंच गई, जबकि एक मार्च को शंकर-6 कपास की प्रति क्विंटल कीमत 16,600 रुपये के आस-पास थी। चीन में कपास की पैदावार अच्छी होने और चीन द्वारा कपास का निर्यात बढ़ाने की खबर से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की कीमतों में गिरावट शुरू हुई। आईसीसी में कपास वायदा 3 फीसदी लुढ़ककर करीब 2 डॉलर प्रति पाउंड के पास पहुंच गई। वैसे, घरेलू बाजार में कपास की कीमतें गिरने की प्रमुख वजह वैश्विक न होकर घरेलू बताई जा रही हैं। कपास सलाहकर बोर्ड (सीएबी) ने कपास का पैदावार अनुमान बढ़ा दिया है। सीएबी के ताजा अनुमान के मुताबिक इस बार कपास का उत्पादन 329 लाख गांठ (एक गांठ बराबर 170 किलोग्राम) होने की उम्मीद है जबकि पहले सीएबी ने 325 लाख गांठ उत्पादन होने का अनुमान लगाया था। ऐंजल ब्रोकिंग की वेदिका नार्वेकर कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय के साथ घरेलू कारक कीमतों को गिराने में सहायक साबित हो रहे हैं। कपास निर्यात रोकने के लिए कुछ संगठनों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है जिससे कारोबारियों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है और इससे बाजार प्रभावित हो रहा है।बाजार के जानकारों का कहना है कि देश में कपास उत्पादन कम होने की भ्रामक जानकारी सटोरियों ने फैलाई थी। कहा गया कि बारिश की वजह से गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की फसल खराब हुई है और सरकार ने निर्यात के लिए भी रास्ता खोल दिया है, ऐसे में इस साल रिकॉर्ड स्तर पर कीमतें जाएंगी। इन अफवाहों से कपास की कीमतें पिछले दो महीनों में तेजी से बढ़ीं और जिसका फायदा सटोरियों ने जमकर उठाया। वैश्विक बाजार में कीमतें कम होने और उत्पादन अधिक होने की वजह से अब गिरावट का दौर शुरू हुआ है। अनुमान है कि अगले 10-15 दिनों में 56,000 रुपये प्रति कैंडी पर कीमतें पहुंच सकती हैं जबकि अभी यह 58,500 रुपये पर है। 1 मार्च को यह दर 69,000 रुपये प्रति कैंडी थी।कारोबारियों की मानी जाए तो कपड़ा कारोबारियों द्वारा कपास निर्यात पर रोक की मांग काफी जोर से चल रही हैं। कीमतें बढऩे की वजह से सरकार इस पर विचार भी कर रही है। दूसरी तरफ विदर्भ के किसान भी कपास निर्यात के पक्ष में नहीं हैं। ऐसे में संभव है कि सरकार निर्यात कोटा न बढ़ाए। निर्यात कोटा नहीं बढ़ाने पर भी कीमतों में गिरावट होना तय माना जा रहा है। (BS Hindi)
09 मार्च 2011
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