चीनी का घरेलू उत्पादन बढऩे के बावजूद सरकार द्वारा ओपन जनरल लाइसेंस (ओजीएल) में निर्यात की अनुमति नहीं दिए जाने से इसकी कीमतों में अभी तेजी की संभावना नहीं है। उत्पादक मंडियों में जनवरी से अभी तक चीनी की कीमतों में 7.2 फीसदी और वायदा बाजार में 11.7 फीसदी की गिरावट आ चुकी है।
चालू पेराई सीजन 2010-2011 (अक्टूबर से नवंबर) के दौरान चीनी उत्पादन में 29 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। जबकि व्यापारियों पर चीनी की स्टॉक लिमिट 200 क्विंटल सरकार ने तय की हुई है। ऐसे में ओजीएल में निर्यात खुलने के बाद ही मौजूदा कीमतों में तेजी आने की संभावना है। कोआपरेटिव चीनी मिलों के संगठन एनएफसीएसएफ ने भी मांग की है कि सरकार को ओजीएल में पांच लाख टन चीनी निर्यात की तुरंत अनुमति देनी चाहिए। इससे मिलों की खराब होती वित्तीय स्थिति सुधरेगी।
चीनी के थोक कारोबारी सुधीर भालोठिया ने बताया कि पिछले दो महीने में चीनी की एक्स-फैक्ट्री कीमतों में 225-250 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। उत्तर प्रदेश में चीनी के एक्स-फैक्ट्री भाव घटकर शुक्रवार को 2,800 से 2,875 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। दिल्ली थोक बाजार में इसके दाम घटकर 2,950-3,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। उधर महाराष्ट्र में चीनी के एक्स-फैक्ट्री भाव घटकर इस दौरान 2,550-2,600 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ गए हैं।
एनसीडीईएक्स पर चीनी के मार्च महीने के वायदा अनुबंध में निवेशकों की मुनाफावसूली से गिरावट बनी हुई है। जनवरी से अभी तक मार्च महीने के वायदा अनुबंध में चीनी की कीमतें 11.7 फीसदी तक घट चुकी हैं। शुक्रवार को मार्च महीने के वायदा अनुबंध में इसकी कीमतें घटकर 2,777 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुई जबकि पहली जनवरी को इसका भाव 3,103 रुपये प्रति क्विंटल था।
मार्च महीने के वायदा अनुबंध में 28,890 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। कमोडिटी विश्लेषक अभय लाखवान ने बताया कि मिलों की बिकवाली ज्यादा आ रही है जबकि व्यापारियों पर स्टॉक रखने की सीमा तय की हुई है। इसीलिए स्टॉकिस्टों की मांग भी कमजोर है। ओजीएल में अभी तक सरकार ने चीनी निर्यात पर कोई फैसला नहीं किया है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में अभी तेजी की संभावना नहीं है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चालू पेराई सीजन (अक्टूबर से नवंबर ) के दौरान चीनी का उत्पादन 245 लाख टन होने का अनुमान है। जबकि पेराई सीजन के शुरू में लगभग 50 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। ऐसे में चीनी की कुल उपलब्धता चालू सीजन में 295 लाख टन की बैठेगी जबकि देश में चीनी की सालाना खपत 225 लाख टन की होती है। उन्होंने बताया कि चीनी निर्यात की अनुमति पर खाद्य मामलों पर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह की आगामी बैठक में विचार हो सकता है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू पेराई सीजन में पंद्रह फरवरी तक 138 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 15 फीसदी ज्यादा है।
पिछले पेराई सीजन में गन्ने की कमी के कारण 15 अप्रैल तक ही मिलों में पेराई चली थी लेकिन चालू सीजन में मई के आखिर तक मिलों में पेराई चालू रहने की संभावना है। ऐसे में उत्पादन 250 लाख टन होने का अनुमान है। पिछले पेराई सीजन में देश में चीनी का उत्पादन 190 लाख टन का ही हुआ था।
चीनी के व्यापारियों पर लगी स्टॉक लिमिट की अवधि को एक साल के लिए बढ़ाने की सिफारिश की गई है। उपभोक्ता मामले विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक चीनी पर स्टॉक लिमिट की अवधि को बढ़ाकर 31 मार्च 2012 तक किए जाने की सिफारिश की गई है।
इस समय व्यापारी 200 क्विंटल चीनी का स्टॉक ही रख सकते हैं। ईजीओएम की आगामी बैठक में इस पर निर्णय लिया जायेगा। चीनी व्यापारियों पर स्टॉक लिमिट की अवधि 31 मार्च 2011 तक के लिए लगी हुई है। ऊंची कीमतों से उपभोक्ता को राहत दिलाने के लिए सरकार ने फरवरी 2009 में चीनी के व्यापारियों पर स्टॉक लिमिट लगाई थी। (Business Bhaskar....R S Rana)
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